Author : Sohini Bose

Published on Dec 30, 2020 Updated 0 Hours ago

सुरक्षा सहयोग, किसी भी प्रवेश द्वार के निर्माण का अभिन्न अंग है. इससे सभी साझीदारों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है और आपसी सहयोग की उनकी कोशिशें भी सफल होती हैं.

बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर: एक सामरिक’ प्रवेश द्वार’ का निर्माण

हाल के वर्षों में भारत ने महाद्वीपीय दृष्टिकोण की जगह समुद्री मामलों को प्राथमिकता देनी शुरू की है. इसकी दो वजहें हैं. पहली तो भारत की वो महत्वाकांक्षा है, जिसके तहत वो हिंद महासागर क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बनना चाहता है. वहीं, दूसरी वजह हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की तेज़ी से बढ़ती आक्रामक गतिविधियां हैं. इन दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भारत ने अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ अपने संबंधों को और बढ़ाने की कोशिश की है. भारत, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के संगठन, आसियान (ASEAN) के साथ संबंधों को मज़बूत बनाने पर अधिक ज़ोर दे रहा है. इस संगठन के सदस्य देश, भारत के पूर्वी क्षेत्र में स्थित पड़ोसी हैं. इसीलिए बंगाल की खाड़ी और उससे लगा अंडमान सागर, भारत और दक्षिणी पूर्वी एशिया के साझा समुद्री क्षेत्र के तौर पर उभरा है. आपसी संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए इन समुद्री क्षेत्रों को गेटवे या प्रवेश द्वार के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है.

गेटवे के मूलभूत तत्व

मशहूर जियोपॉलिटिकल विशेषज्ञ सॉल बर्नार्ड कोहेन ने ‘गेटवे’ की व्याख्या ऐसे क्षेत्र के रूप में की है, ‘जो दो देशों, इलाक़ों और प्रशासनिक क्षेत्रों के बीच पुल का काम करता है.’ हालांकि इस जियोपॉलिटिकल परिकल्पना के बारे में और विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन ये तथ्य कि गेटवे दो क्षेत्रों के बीच पुल का काम करता है, इस बात की ओर इशारा करता है कि इसके समन्वय, सहयोग और संपर्क इसके मुख्य गुण होते हैं. यानी सुरक्षा सहयोग, किसी भी प्रवेश द्वार का अभिन्न अंग है. इससे सभी साझीदारों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, और आपसी सहयोग की उनकी कोशिशें भी सफल होती हैं. इसीलिए, भारत और दक्षिणी पूर्वी एशिया के बीच बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के एक भौगोलिक ही नहीं बल्कि सामरिक ‘गेटवे’ के रूप में स्थापित होने की संभावनाओं को समझने के लिए, इस क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग की संभावनाओं का विश्लेषण करना ज़रूरी है.

चीन की चुनौती और फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन

इस समुद्री क्षेत्र से जुड़ी तमाम चिंताओं में से सबसे प्रमुख, चीन के आक्रामक उभार से जुड़ी अनिश्चितता है. चीन की ‘वैश्विक विकास की रणीनीति’ जैसे कि बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव और मैरीटाइम सिल्क रूट की जड़ में उसकी ईंधन की बढ़ती खपत को पूरा करने की कोशिश है. इसीलिए चीन इस क्षेत्र में, समुद्री संबंधों को मज़बूत करके अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है. इसके लिए वो इस समुद्री क्षेत्र में अपने साझीदार देशों में बुनियादी ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट चला रहा है. हालांकि, बहुत से देश चीन की क़र्ज़ के जाल वाली कूटनीति में फंसने को लेकर आशंकित हैं. उन्हें अंतरराष्ट्रीय समुद्री क़ानून की व्याख्या के चीन के विवादित तरीक़े को लेकर भी फ़िक्र है. ख़ास तौर से भारत को लगता है कि चीन एक लंबी सी लेन ऑफ़ कम्युनिकेशन (SLOC) विकसित करना चाहता है, जिस पर उसका नियंत्रण हो. इसके ज़रिए, चीन का इरादा इस क्षेत्र के सुरक्षा आयाम का अपने हिसाब से निर्धारण करना है. ज़ाहिर है, इस समुद्री क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से आवाजाही को लेकर आशंकाएं मौजूद हैं.

हालांकि, इस विषय से जुड़ी व्यापक चिंताओं के बावजूद, पहली बार वर्ष 2012 में भारत-आसियान कमेमोरेटिव समिट के विज़न स्टेटमेंट में ‘समुद्री सुरक्षा और आवाजाही की स्वतंत्रता…’ को सुनिश्चित करने की ज़रूरत पर बल देने की बात कही गई. यहां तक कि तब भी इस एजेंडा विशेष को लेकर आसियान और भारत की कोई भी बैठक या अभ्यास नहीं किया गया. ये तो उस विज़न स्टेटमेंट के छह साल बाद जाकर, वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-आसियान कमेमोरेटिव सम्मेलन को संबोधित करते हुए, फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन को भारत और आसियान देशों के बीच समुद्री साझीदारी का प्रमुख तत्व बताया. इस शिखर सम्मेलन में ही सभी देशों के नेताओं ने फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन को सुनिश्चित करने के लिए एक साझा व्यवस्था बनाने पर सहमति जताई. तब से ही भारत के इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव 2019 और आसियान-भारत प्लान ऑफ़ एक्शन 2021-2025 ने फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन को प्रोत्साहन दिया है. इसलिए ये कहा जा सकता है कि जहां तक पारंपरिक सुरक्षा संबंधी चिंताओं की बात है, तो इसमें भारत और आसियान के बीच आपसी सहयोग अभी भी शुरुआती दौर में ही है. हालांकि अब भारतीय नौसेना, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों की नौसेनाओं के साथ नियमित रूप से द्विपक्षीय युद्धाभ्यास कर रही है. लेकिन, सभी आसियान देशों के साथ भारत का नौसैनिक अभ्यास अभी अमेरिकी नौसेना और आसियान की सामूहिक नौसेनाओं साथ होने वाले युद्धाभ्यास जैसा नहीं है. जबकि, आसियान देशों ने इसी तरह का नौसैनिक अभ्यास वर्ष 2018 में चीन के साथ किया था.

जहां तक पारंपरिक सुरक्षा संबंधी चिंताओं की बात है, तो इसमें भारत और आसियान के बीच आपसी सहयोग अभी भी शुरुआती दौर में ही है. हालांकि अब भारतीय नौसेना, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों की नौसेनाओं के साथ नियमित रूप से द्विपक्षीय युद्धाभ्यास कर रही है.

ऐसे सुरक्षा सहयोग को मज़बूत बनाने के लिए कुछ सीमित प्रयास ही किए जाने की दो वजहें हो सकती हैं. पहली बात तो इससे चीन के नाख़ुश होने की आशंका है-भारत और आसियान के बीच बढ़ती नज़दीकी को लेकर चीन चिंतित है. और उसे अपने उभार का मुक़ाबला करने की कोशिश करने के तौर पर देखता है. ऐसे परिदृश्य में जहां भारत के 14 फ़ीसदी आयात चीन से होते हैं और आसियान उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, तो जो क़दम चीन के ख़िलाफ़ समझे जा सकते हैं, उनसे बचने की कोशिश होगी. यही कारण है कि न तो चीन और न ही आसियान देश ही अपनी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विज़न में कोई ऐसी बात कहते हैं जिसे चीन के ख़िलाफ़ माना जाए. यही फ़िक्र है जिसके कारण न तो भारत ने और न ही आसियान ने कभी भी इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों की आलोचना की या फिर आपसी सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने की गंभीरता से कोशिश की. इसीलिए, भारत और आसियान दोनों ही पक्ष, आपसी संबंधों के मौजूदा स्तर को लेकर मोहभंग की अवस्था के शिकार हैं. आसियान के अन्य संवाद सहयोगियों की तुलना में भारत द्वारा आसियान को सुरक्षा की गारंटी देने की क्षमता बेहद सीमित है. इसके अलावा क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भारत द्वारा प्रस्तावित सहयोग को स्वीकार करने को लेकर आसियान इसलिए भी आशंकित है कि इससे कहीं अन्य शक्तिशाली ताक़तें नाराज़ न हो जाएं.

वैकल्पिक सुरक्षा की साझेदारी

इन बातों के बावजूद, भारत और आसियान की इस क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत है और उनके आपसी सामरिक हित भी मिलते हैं. इसकी वजह ये भी है कि दोनों ही पक्षों के हिंद-प्रशांत विज़न के केंद्र में आसियान है. वहीं कई अन्य क्षेत्रीय देशों द्वारा भारत से इस क्षेत्र में और प्रभावशाली सुरक्षा मुद्रा अपनाने की बात पर भी ज़ोर दिया जाता रहा है. इसीलिए, बंगाल की खाड़ी में और अधिक ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा चिंताओं की ओर ध्यान दिया जाना स्वाभाविक है. क्योंकि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र, साझा सक्रियता का महत्वपूर्ण अवसर तो प्रदान करता है, पर ये सहयोग किसी अन्य देश के ख़िलाफ़ नहीं मालूम पड़ा. ऐसे तमाम विषय जो बंगाल की खाड़ी में मौजूद हैं, उनमें प्राकृतिक आपदा की आशंकाएं सर्वाधिक हैं.

भारत और आसियान के बीच संवाद में मानवीय सुरक्षा का एक और क्षेत्र कोविड संकट भी है, जिसमें सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनाएं दिखती हैं. भारत ने आसियान देशों के साथ मिलकर ऐसी जेनेरिक दवाएं और मेडिकल तकनीक विकसित करने की इच्छा जताई है, जिनका इस्तेमाल कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज में हो सकता है.

बंगाल की खाड़ी में समुद्री तूफ़ान नियमित रूप से उठते रहते हैं. यहां बार बार सुनामी भी आती रहती है और इंसानों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. हमने वर्ष 2004 में ऐसा होते देखा था. आसियान-भारत के बीच पारंपरिक सुरक्षा के मसलों पर सहयोग से इतर, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत और आसियान, अधिक उत्साह और व्यापक रूप से सहयोग करते आए हैं. आसियान के रीजनल फोरम डिज़ास्टर रिलीफ एक्सरसाइज़ में नियमित रूप से भाग लेता रहा है. इसके अलावा भारत, आसियान कमेटी ऑन डिज़ास्टर मैनेजमेंट में भी नियमित रूप से संवाद करता है, ताकि सहयोग की व्यवस्था को और मज़बूत बनाया जा सके. भारत की ये अपेक्षा भी है कि वो आसियान के कोऑर्डिनेशन सेंटर फॉर ह्यूमैनिटेरियन असिस्टेंस और डिज़ास्टर मैनेजमेंट में अधिक प्रभावशाली और सहयोगी भूमिका निभाए. वहीं, दूसरी तरफ़ आसियान चाहता है कि वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपदा राहत में अपनी छवि के अनुरूप, उसके साथ और अधिक सहयोग करे. भारत ने दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ, कई मौक़ों पर मानवीय मदद और आपदा राहत प्रदान की है. इस चिंता के मानवीय पहलू को देखते हुए इस क्षेत्र में सहयोग को मज़बूती देने की कोशिशों में किसी तीसरे देश ने अब तक दखल नहीं दिया है. ज़ाहिर है, इससे आगे संवाद बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त दिखता है.

भारत और आसियान के बीच संवाद में मानवीय सुरक्षा का एक और क्षेत्र कोविड संकट भी है, जिसमें सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनाएं दिखती हैं. भारत ने आसियान देशों के साथ मिलकर ऐसी जेनेरिक दवाएं और मेडिकल तकनीक विकसित करने की इच्छा जताई है, जिनका इस्तेमाल कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज में हो सकता है. इस बात की प्रबल संभावना है कि अन्य बड़ी ताक़तें, जैसे कि क्वाड प्लस (जिसने इस क्षेत्र में पहले ही परिचर्चा की है) भी भारत और आसियान के बीच ऐसे सहयोग को बढ़ावा देना चाहेंगी. इन ताक़तों को ये उम्मीद है कि भारत और आसियान के बीच इस क्षेत्र में सहयोग से उस ब्लू डॉट नेटवर्क को भी लाभ होगा, जिसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने ‘उच्च स्तर के भरोसेमंद मानक वाले मूलभूत ढांचे के विकास को प्रोत्साहन देने के लिए’ शुरू किया है. इसके उलट, अगर भारत और आसियान देश, पारंपरिक सुरक्षा के मसलों पर सहयोग को बढ़ाएंगे, तो उसे अन्य बड़ी ताक़तों के समूह से बहुत अधिक सकारात्मक सहयोग मिलने की उम्मीद कम ही है.

अगर भारत-आसियान के संबंध ऐसे सहयोग से और मज़बूत होते हैं, तो इससे आपसी विश्वास को बढ़ावा मिलेगा, जो आगे चलकर पारंपरिक चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग में भी काम आएगा. इसीलिए, दोनों पक्षों के लिए, बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में मानवीय चिंताओं से निपटने में सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत है.

इसीलिए, भारत और आसियान के बीच सुरक्षा के क्षेत्र में साझेदारी विकसित करने का अवसर, पारंपरिक चुनौतियों से निपटने के बजाय, मानवीय सुरक्षा की चिंताओं से निपटने के क्षेत्र में अधिक है. लेकिन, अगर भारत-आसियान के संबंध ऐसे सहयोग से और मज़बूत होते हैं, तो इससे आपसी विश्वास को बढ़ावा मिलेगा, जो आगे चलकर पारंपरिक चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग में भी काम आएगा. इसीलिए, दोनों पक्षों के लिए, बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में मानवीय चिंताओं से निपटने में सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत है. इससे ये समुद्री इलाक़े भारत और दक्षिणी पूर्वी एशिया के बीच एक ‘सामरिक गेटवे’ के रूप में उभर सकेंगे.

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