Author : Ambuj Sahu

Published on Aug 21, 2019 Updated 0 Hours ago

नीति निर्माताओं को पहले यह समझना होगा कि भारत रक्षा क्षेत्र में एआई के जरिये कौन से लक्ष्य हासिल करना चाहता है ताकि वह दुश्मन देशों पर बढ़त बना सके. उन्हें इस सवाल का जवाब ढूंढना होगा कि हम किस तरह का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चाहते हैं?

सैन्य अभियान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: कहां खड़ा है भारत?

विज्ञान और अलग-अलग क्षेत्रों में तकनीकी खोज के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी औद्योगिक क्रांति 4.0 का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. असैन्य और सैन्य अभियानों में इसके इस्तेमाल से व्यापक बदलाव लाया जा सकता है. अभी तक बड़ी सेना रखने वाले अमेरिका, चीन और रूस जैसे कुछ देशों के ही सैन्य दबदबा कायम करने के बारे में सोचा जा सकता है, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से इस सोच को चुनौती मिल रही है. एआई दोहरे इस्तेमाल वाली तकनीक है और सैन्य ताकत के विकेंद्रीकरण में इसकी दिलचस्प भूमिका हो सकती है. इस तकनीक के मामले में जो प्रगति हुई है, उससे हथियारों की एक ऐसी होड़ शुरू होने की संभावना बन गई है, जहां समय गुजरने के साथ पारंपरिक सैन्य क्षमता की अहमियत कम होती जाएगी. इससे मध्यम दर्जे की सैन्य ताक़तेंजो अभी असैन्य क्षेत्र में एआई तकनीक के इस्तेमाल में आगे हैं, उनके लिए सैन्य क्षेत्र में दबदबे की होड़ का रास्ता खुल गया है. इसलिए भारत को भी सैन्य क्षेत्र में एआई के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में देर नहीं करनी चाहिए.

इसी साल जनवरी में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि अगर हमारे यहां की सेना जल्द एआई तकनीक को नहीं अपनातीं तो इस मामले में भारत पिछड़ सकता है. एआई की परिभाषा पर मोटे तौर पर सहमति है यानी जो काम इंसान कंप्यूटर या डिजिटली कंट्रोल्ड रोबोट की मदद से करता है, वैसे काम कंप्यूटर खुद ब खुद करे. तकनीक की दुनिया में आजकल डेटा साइंस पर जोर है. इसलिए आम धारणा यह है कि इसे एआई से अलग नहीं किया जा सकता. सच तो यह है कि मशीन लर्निंग इसका एक छोटा हिस्सा है, जिसकी एआई तकनीक के विकास में भूमिका रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में इसके अलावा नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी), रोबोटिक्स, ऑटोनॉमस लोकोमोटिव और दूसरे तकनीकी माध्यमों का भी योगदान रहा है. इसलिए भारत में एआई को समझने के लिए व्यापक नज़रियेकी जरूरत है और इसे सिर्फ डेटा साइंस के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी तक सीमित रखना ठीक नहीं होगा. इस लेख में रक्षा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के डिवेलपमेंट पर चर्चा की जा रही है. इस मामले में भारत के सामने निकट भविष्य में कौन सी चुनौतियां आ सकती हैं, हम उस पर गौर कर रहे हैं. इसमें उन संस्थानों और पहल को समझने की कोशिश की गई है, जिनके इर्द-गिर्द देश की एआई नीति बनने की उम्मीद है. इसके बाद लेख में यह बताया गया है कि रक्षा क्षेत्र में एआई तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में देश को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. लेख में उन बुनियादी सवालों को भी जिक्र किया गया है, जिनका जवाब नीति निर्माताओं को एआई प्रोग्राम पर कदम आगे बढ़ाने से पहले ढूंढना होगा.

इस क्षेत्र में भारत की अब तक की उपलब्धियां

रक्षा मंत्रालय ने फरवरी 2018 में डिफेंस और रणनीतिक इस्तेमाल के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक समिति बनाई थी. इस समिति ने जून में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इसकी सिफ़ारिशों पर रक्षा मंत्रालय ने अमल किया. उसने नीति को लागू करने के लिए एक सांस्थानिक ढांचा बनाया, रक्षा संगठनों को इस बारे में दिशानिर्देश जारी किए और एआई के क्षेत्र में क्षमता बढ़ाने के लिए एक विजन पेश किया. फरवरी 2019 में मंत्रालय ने एक उच्चस्तरीय रक्षा एआई काउंसिल (हाई लेवल डिफेंस एआई काउंसिल यानी डीएआईसी) का गठन किया. रक्षा मंत्री को इसका अध्यक्ष बनाया गया, जिन पर डिफेंस में एआई तकनीक को अपनाने के लिए रणनीतिक दिशा तय करने की ज़िम्मेदारीहै. डीएआईसी को सरकार और इंडस्ट्री के बीच साझेदारी में भी भूमिका निभानी होगी. तकनीक और स्टार्टअप्स (उभरती हुई कंपनियां) को खरीदने को लेकर मिले सुझावों की समीक्षा की जवाबदेही भी उसकी होगी. उसने डिफेंस एआई प्रोजेक्ट एजेंसी (डीएआईपीए) बनाने के बारे में भी सोचा है, जो इस नीति पर अमल में केंद्रीय भूमिका निभाएगी.

भारत जैसे मध्यम आय वर्ग वाले देश के लिए एआई प्रोग्राम पर साफ मक़सद पता होना चाहिए क्योंकि वह इस क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश नहीं कर सकता.

रक्षा मंत्रालय ने हथियारों में एआई तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने पर ध्यान देने का निर्देश दिया है. उसने इसके लिए डेटा कलेक्शन (आंकड़े इकट्ठा करने), पेटेंट हासिल करने से लेकर इंटर्नशिप, ट्रेनिंग प्रोग्राम और तकनीक सीखने की ख़ातिरछुट्टी देने जैसे निर्देश दिए हैं. तीनों सेनाओं के मुख्यालय (एचएचक्यू) को एआई आधारित एप्लिकेशन डिवेलप करने के लिए रक्षा मंत्रालय को मिले बजट से 100 करोड़ रुपये दिए जाएंगे. विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि एआई ‘फोर्स मल्टीप्लायर’ है यानी इससे हथियारों की क्षमता काफी ज्यादा बढ़ाई जा सकती है. उसने जोर देकर कहा था कि सभी रक्षा संस्थान एआई के इस्तेमाल की रणनीति बनाएं. ऊपर हमने बताया है कि रोबोटिक्स से भी एआई का मकसद हासिल किया जा सकता है. डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) की संस्था सेंटर ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (सीएआईआर) ने भी कुछ ऑटोनॉमस टेक्नोलॉजी पर आधारित प्रॉडक्ट्स बनाए हैं. उसने टैक्टिकल कमांड कंट्रोल के लिए इंटरनेट आधारित संचार व्यवस्था पर ध्यान दिया है. जासूसी करने और टोह लेने के लिए सीएआईआर ने स्नेक रोबोट, हेक्सा-बोट और सेंट्रीज (संतरी) जैसे दिलचस्प प्रॉडक्ट तैयार किए हैं. उसके पास एआई आधारित एल्गोरिद्म और डेटा माइनिंग टूलबॉक्स हैं, जिनका प्रयोग इमेज और वीडियो की पहचान करने और एनएलपी में किया जा सकता है. हालांकि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में डेटा आधारित अप्रोच, एफिशिएंट लर्नर एल्गोरिद्म तभी फ़ायदेमंदहो सकते हैं, जब आपके पास विशाल आंकड़ों को प्रोसेस करने वाला हार्डवेयर भी हो.

एआई तक आसान पहुंच और उसे असरदार बनाने में निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एआई के लिए हाई स्किल और भारी निवेश की जरूरत है, जिसमें निजी क्षेत्र से मदद मिल सकती है.

जिन सवालों का जवाब ढूंढना होगा…

नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट ‘नेशनल स्ट्रैटिजी फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस #AIforAll’ में बताया गया है कि सामान्य तौर पर एआई तकनीक को अपनाने में कौन सी चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं. इसके अलावा, मिलिट्री सेक्टर में एआई के अपनाने में और भी दिक्कतें आएंगी. सबसे पहले नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि भारत रक्षा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये क्या हासिल करना चाहता है. हम किस तरह की एआई तकनीक चाहते हैं? क्या हमें दुश्मन देश को साथ छोटी झड़पों या लड़ाइयों के लिए ड्रोन की जरूरत है या इसके लिए सीमा पर ऑटोनॉमस पैट्रोलिंग गाड़ियों की दरकार है? युद्धक्षेत्र में मशीनों को कितनी आज़ादीदेनी चाहिए? भारत जैसे मध्यम आय वर्ग वाले देश के लिए एआई प्रोग्राम पर साफ मक़सद पता होना चाहिए क्योंकि वह इस क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश नहीं कर सकता. असल में यह रोजी-रोटी बनाम बंदूक का सवाल है यानी कल्याणकारी योजनाओं की कीमत पर वह राष्ट्रीय सुरक्षा पर खर्च नहीं बढ़ा सकता. इसके उलट विकसित देशों में तकनीकी प्रोग्राम पहले फेल हो जाएं या तेजी से फेल हों, तो उन पर फर्क नहीं पड़ता, जबकि सीमित संसाधनों की वजह से भारत के पास ऐसी आज़ादीनहीं है. दूसरी, भारत में सैन्य और असैन्य क्षेत्र में एआई तकनीक के इस्तेमाल में सबसे बड़ी बाधा इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है. एआई विशाल आंक़ड़ों पर जटिल एल्गोरिद्म का इस्तेमाल करता है. इसके लिए मजबूत हार्डवेयर और उसमें मदद के लिए देश में डेटा बैंक जरूरी हैं. महत्वपूर्ण सैन्य तकनीक विदेश स्थित सर्वर के डेटा पर आश्रित नहीं रह सकती क्योंकि इससे विदेश नीति को लेकर स्वायत्तता बनाए रखना संभव नहीं होगा. तीसरी, एआई तक आसान पहुंच और उसे असरदार बनाने में निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एआई के लिए हाई स्किल और भारी निवेश की जरूरत है, जिसमें निजी क्षेत्र से मदद मिल सकती है. इसमें इनोवेशन के लिए पैसे और हुनर दोनों की दरकार होगी. मौजूदा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में रक्षा क्षेत्र में 49 प्रतिशत निवेश की ऑटोमेटिक रूट से इजाज़त है. इससे अधिक निवेश के लिए सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है. ध्यान रहे कि रक्षा क्षेत्र को निजी कंपनियों के हाथ में देने को लेकर भारत का रुख़ अभी तक सतर्कता भरा रहा है.

क्या करना होगा..

अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ (और फ्रांस) के पास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अनुसंधान और विकास (रिसर्च एंड डिवेलपमेंट) के लिए अपने विजन डॉक्युमेंट हैं. भारत को भी एआई पर साफ सोच के साथ इसी तरह से शुरुआत करनी चाहिए. उसके पास भले ही सीमित संसाधन हैं, लेकिन कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग के क्षेत्रों में देश में विश्वस्तरीय एकेडमिक की कमी नहीं है. अकादमिक जगत के ये लोग आईआईटी, आईआईएस, एनआईटी और आईआईएसईआर में हैं. रक्षा क्षेत्र में एआई के रणनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए अकादमिक-उद्योग-नीतिगत स्तर पर तालमेल जरूरी है. पिछले सेक्शन में हमने जो सवाल उठाए थे, उनका जवाब भी इससे मिल सकता है. सरकार को ऐसा सिस्टम बनाना चाहिए, जिससे देश में एआई उद्योग को बढ़ावा मिले. हमें इसके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना होगा ताकि डेटा सर्वर देश की सीमा के अंदर हों. इससे रणनीतिक स्वायत्तता के साथ डेटा प्राइवेसी से जुड़ी चिंताएं भी दूर होंगी.

देश में नागरिक क्षेत्रों में एआई का इस्तेमाल बढ़ रहा है. मिसाल के लिए, एआई आधारित स्टार्टअप्स की संख्या के लिहाज से भारत जी-20 देशों में तीसरे नंबर पर है. पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इकॉनमी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से समाज के अधिकतम फायदे के लिए ‘5-I’ विजन पेश किया था. भारत को एआई तकनीक के दोहरे इस्तेमाल के मकसद से काम करना चाहिए और उसे रक्षा क्षेत्र में एआई निवेश के लिए बाजार को खोलना होगा. इसके लिए रक्षा क्षेत्र में 49 प्रतिशत निवेश (ऑटोमेटिक रूट से) की सीमा की समीक्षा करनी होगी.

भारत इस क्षेत्र में देर से पहल कर रहा है और उसे इसका फायदा उठाना चाहिए. वह बुनियादी सुरक्षा ज़रूरतोंको पूरा करने के लिए मौजूदा नैरो-एआई टेक्नोलॉजी को कॉपी कर सकता है.

नीति निर्माताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि सरकार की प्रमुख पहल- मेक इन इंडिया इन डिफेंस और डिजिटल इंडिया- के इस्तेमाल से रक्षा उद्योग में कैसे तकनीकी क्रांति लाई जा सकती है. भारत की सुरक्षा चिंताएं खासतौर पर पाकिस्तान पर केंद्रित रही हैं, लेकिन वह एआई के क्षेत्र में चीन की प्रगति की अनदेखी नहीं कर सकता. जून 2017 में स्टेट काउंसिल एआई प्लान से चीन की महत्वाकांक्षी एआई नीति का पता चला था. इसमें बताया गया था कि वह 150 अरब युआन की एआई इंडस्ट्री खड़ी करना चाहता है, जो 2017 की तुलना में 10 गुना बड़ी होगी. वैसे, भारत को एआई पर अपने लक्ष्य चीन के निवेश को ध्यान में रखकर तय नहीं करने चाहिए. भारत इस क्षेत्र में देर से पहल कर रहा है और उसे इसका फायदा उठाना चाहिए. वह बुनियादी सुरक्षा ज़रूरतोंको पूरा करने के लिए मौजूदा नैरो-एआई टेक्नोलॉजी को कॉपी कर सकता है. इससे सीमा की निगरानी और जासूसी जैसे काम किए जा सकते हैं. उसे अभी एआई में इनोवेशन पर बहुत पैसे खर्च नहीं करने चाहिए. ‘रक्षा क्षेत्र में एआई’ योजना के जरिये भारत को सेना के आधुनिकीकरण और दुश्मन देशों पर बढ़त हासिल करने पर ध्यान देना चाहिए. भारत के लिए आज उस क्षेत्र में तेजी से कदम उठाने का वक्त आ गया है, जिसे गरमपंथी सुरक्षा जानकार एआई आर्म्स रेस कहते हैं.


अंबुज साहू ORF नई दिल्ली में स्ट्रैटिजिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च इंटर्न हैं.

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