Author : Kanchan Gupta

Published on Jul 31, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख सिद्धांत के तौर पर चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार कम करने और आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ने के फ़ैसले को लोगों ने पसंद किया है.

सीमा पर सेना तैनात, करें चीनी राखी, अगरबत्ती का बहिष्कार

भारतीयों के बीच चीन के ख़िलाफ़ साफ़ तौर पर ज़ोरदार ग़ुस्सा है. जाने-पहचाने छल और धोखे के सहारे पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर PLA की तरफ़ से ज़मीन हड़पने की कोशिश के कारण 15-16 जून को दोनों देशों के सैनिकों के बीच ख़ूनी झड़प हुई. इसमें 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई जबकि बड़ी संख्या में चीन के सैनिक भी मारे गए. इस घटना के बाद चीन के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा और भी ज़्यादा है. ये कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि चीन के ख़िलाफ़ पूरे भारत में लोगों के बीच जो ग़ुस्सा है वो घरेलू राजनीति और आने वाले कई वर्षों तक सरकार के फ़ैसले को प्रभावित करेगा.

इन नतीजों का असर लंबे वक़्त तक रहेगा जब तक कि सरकार उलटफेर करते हुए चीन के एप पर प्रतिबंध, बुनियादी ढांचे की जिन परियोजनाओं में चीन की कंपनियों ने बोली लगाई है उन्हें रद्द करने, 5जी तकनीक वाली चीन की कंपनी हुवावे के भारत में आने पर रोक और ऑटोमेटिक रूट के ज़रिए चीन की कंपनियों के सीधे निवेश पर प्रतिबंध जैसे फ़ैसलों को बदल न दे. फिलहाल मोदी सरकार LAC पर चीन के विश्वासघात और पड़ोसियों ख़ासकर नेपाल को भारत के ख़िलाफ़ उकसाने, वो भी उस वक़्त जब पूरा ध्यान चीन से शुरू कोविड-19 महामारी और उसके विनाशकारी नतीजों से लड़ने पर है, को लेकर सख़्त है. वो ऐसे देश से निपटने को लेकर साफ़ है जो कभी बेरहम दुश्मन से दोस्त नहीं बन सकता.

इस बीच बीजेपी के सहयोगी संगठनों जैसे स्वदेशी जागरण मंच और उसके वैचारिक सलाहकार RSS का दबाव भारत को चीन के निर्यात पर असर डालेगा. ये ऐसा क्षेत्र है जहां चीन को सबसे ज़्यादा नुक़सान होगा. पहले से ही भारत-चीन व्यापार को कम करने की गंभीर मांग है. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के आह्वान के मुताबिक़ है. शुरुआती आंकड़े इशारा करते हैं कि भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख सिद्धांत के तौर पर चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार कम करने और आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ने के फ़ैसले को लोगों ने पसंद किया है. चीन के बेलगाम “विस्तारवाद” पर पीएम मोदी का बयान भी लोगों को पसंद आया.

लोगों के मिजाज़ को फौरन समझते हुए नामी कंपनियों ने इस बात की इच्छा जताई है कि वो चीन की सप्लाई से अपने उत्पादन को अलग रखेंगी. हीरो साइकिल ने चीन के साथ 900 करोड़ के समझौते को ख़त्म कर दिया है. अब वो यूरोप का रुख़ करेगी. JSW स्टील ने एलान किया है कि वो अगले दो साल के भीतर चीन से सभी कच्चा माल ख़रीदना बंद कर देगी. होम एप्लायंस बनाने वाली सबसे मशहूर कंपनी TTK प्रेस्टीज ने फ़ैसला लिया है कि इस साल सितंबर तक वो चीन से सभी आयात बंद कर देगी. इसके अलावा जियो भी है जो ‘मेड इन चाइना’ से ना सिर्फ़ पूरी तरह मुक्त है बल्कि जिसने दुनिया को भारतीय तकनीक की ताक़त भी दिखाई है.

अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (CAIT) ने चीन में बनी राखियों और उन्हें बनाने में चीन के कच्चे माल के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ बहिष्कार की अपील की है. परिसंघ का कहना है कि सिर्फ़ इस फ़ैसले से चीन को भारत से कमाई में 4,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होगा

चीन की सप्लाई से अलग दूसरे विकल्पों पर ध्यान सिर्फ़ बड़ी भारतीय कंपनियां ही नहीं दे रही हैं. कारोबारी भी फ़ायदा और निवेश पर तुरंत रिटर्न को नज़रअंदाज़ कर मज़बूती से राष्ट्रीयता का झंडा बुलंद कर रहे हैं. अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (CAIT) ने चीन में बनी राखियों और उन्हें बनाने में चीन के कच्चे माल के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ बहिष्कार की अपील की है. परिसंघ का कहना है कि सिर्फ़ इस फ़ैसले से चीन को भारत से कमाई में 4,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होगा. एक सामान्य धागा जो भाई और बहन के बीच पवित्र बंधन का प्रतीक है, उसके लिए भी अगर हमें चीन से आयात करने की ज़रूरत है तो ये हमारे लिए शर्म की बात है.

परिसंघ की योजना है कि अगले साल तक सस्ते चीनी सामान जैसे खिलौने, घड़ियां, कॉरपोरेट गिफ़्ट और कपड़ों का आयात एक लाख करोड़ रुपये कम करे. ऑनलाइन रिटेलर अब सामान बेचने वाली कंपनियों के लिए ये बताना ज़रूरी करेंगे कि वो ये बताएं कि उनका सामान किस देश में बना है. अगर चीन के ख़िलाफ़ नफ़रत और उसे चोट पहुंचाने की इच्छा मौजूदा स्तर पर ही बनी रही तो सामान बेचने वाली कंपनियों के लिए भारी छूट के बावजूद अपने स्टॉक को ख़त्म कर पाना मुश्किल होगा.

ये सभी क़दम ‘स्प्रिंग थंडर’ की तरह लगते हैं. ‘स्प्रिंग थंडर’ ऐसी कहावत है जिससे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अच्छी तरह वाकिफ है. अगर ये थंडर तूफ़ान में तब्दील हुआ तो चीन को ये एहसास होने लगेगा कि LAC पर गैर-ज़रूरी दुश्मनी और भारत के ख़िलाफ़ दांव-पेच का क्या नतीजा होता है. एक दूसरा नियम भी है:  ज़मीन को लेकर चीन के लालच के ख़िलाफ़ सैन्य जवाब के मुक़ाबले जहां कूटनीति बेहतर क़दम है लेकिन तब भी भारत को चीन की धौंस को लेकर अपने संकल्प को कमज़ोर नहीं करना चाहिए. अनुभव बताते हैं कि समझौता करने में हम आगे हैं. सरकार के भीतर और बाहर भारत में बहुत ज़्यादा चीन और रणनीतिक मामलों के ‘विशेषज्ञ’ हैं जो भारत के राष्ट्रीय हितों से ज़्यादा नेहरू की गुटनिरपेक्षता और पंचशील के सिद्धांतों को तरजीह देते हैं.

‘स्प्रिंग थंडर’ ऐसी कहावत है जिससे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अच्छी तरह वाकिफ है. अगर ये थंडर तूफ़ान में तब्दील हुआ तो चीन को ये एहसास होने लगेगा कि LAC पर गैर-ज़रूरी दुश्मनी और भारत के ख़िलाफ़ दांव-पेच का क्या नतीजा होता है.

भारत के अटल बने रहने के लिए भारतीयों को चीन और वहां बने कम दाम के उत्पादों को और भी ज़्यादा दृढ़ता के साथ ‘ना’ कहना होगा. ऐसा करने से चीन को लेकर भारत अपने राजनीतिक नज़रिए में बदलाव करने के लिए मजबूर होगा, साथ ही प्रतिस्पर्धी क़ीमत पर चीन में बने सामानों की तरह भारत में भी सामान बनाने की क्षमता बनेगी. तब भी पूर्वी लद्दाख में चीन की घुसपैठ को लेकर जो ग़ुस्सा है वो क्षणिक साबित हो सकता है और चीन के सैनिकों के टेंट उखाड़ने और LAC से हटकर चले जाने से ये ख़बर ख़त्म हो जाएगी. इतिहास को लेकर बेहद खराब समझ वाले देश भारत में लोगों की याददाश्त बेहद कमज़ोर है और ग़ुस्सा ग़ायब होने में समय नहीं लगता: आज है कल नहीं.

PLA के हाथों 20 भारतीय सैनिकों की मौत को लेकर लोगों के बेहद ग़ुस्से के बीच हमने ये भी देखा कि मोबाइल बनाने वाली एक चीनी कंपनी के सारे हैंडसेट लॉन्च के दिन ही बिक गए. भारत के लोगों में दोहरा रवैया कूट-कूटकर भरा हुआ है. तीन साल पहले दीवाली के मौक़े पर चीन में बने प्लास्टिक के दीये और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति का बहिष्कार करने और उनकी जगह मिट्टी के बने दीये और मूर्ति का इस्तेमाल करने का अभियान चलाया गया था. उस साल तो लोगों ने बहिष्कार किया लेकिन अगली दीवाली में चीन के सामानों की फिर ज़ोरदार बिक्री हुई.

पिछले कुछ सालों के दौरान परंपरागत मिट्टी के सामान बनानेवाले कुम्हारों के कारोबार पर काफ़ी असर पड़ा है और लोग चीन से आयातित सस्ते सामान ख़रीदने लगे हैं. भारतीयों को चीन के ज़हरीले आयातित सामान ख़रीदने के लिए बहलाया नहीं गया है बल्कि वो ख़ुद अपनी मर्ज़ी से ये सामान ख़रीदते हैं क्योंकि उनकी क़ीमत कम होती है, दिखने में आकर्षक होते हैं और दीवाली पर तड़क-भड़क की ज़रूरत को पूरा करते हैं. लेकिन इसकी वजह से युद्ध में जीत के बाद श्री राम की अयोध्या वापसी के समय से चली आ रही भारतीय परंपरा और स्थानीय शिल्पकारों पर जो असर पड़ा है, वो न तो उपभोक्ताओं और न ही विक्रेता के सोच-विचार की चीज़ है.

सरकारी बेरुख़ी और लोगों की किफ़ायत बरतने की आदत का एक और उदाहरण अगरबत्ती है जिसे अमीर और ग़रीब- दोनों तबके के भारतीय ख़रीदते हैं. अगरबत्ती के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण सामान बांस की छड़ी है जिस पर सुगंध को चिपकाया जाता है.

भारत सरकार ने अपनी बुद्धिमानी दिखाते हुए बांस को पेड़ों की सूची में रख दिया और इस तरह उसको संरक्षित प्रजाति में डाल दिया. इसकी वजह से भारतीय अगरबत्ती उद्योग के लिए देसी बांस की सप्लाई पर असर पड़ा. इसका फ़ायदा उठाते हुए चीन ने भारतीय बाज़ार में लाखों टन बांस की छड़ी की सप्लाई की. स्थानीय रोज़गार और आमदनी पर इसके असर को जाने बिना 2011 में सरकार ने बांस के उत्पादों पर आयात शुल्क 30 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया. इसकी वजह से चीन के बांस की छड़ी और भी सस्ती हो गई और हज़ारों लोगों का रोज़गार ख़त्म हो गया और छोटे उद्योग बंद करने पड़े. लेकिन पूजा-पाठ में आगे और ख़र्च करने में पीछे भारतीय उपभोक्ता इस बात से ख़ुश थे कि अब वो कुछ कम पैसे में देवी-देवताओं की आराधना कर सकेंगे.

भारत सरकार ने अपनी बुद्धिमानी दिखाते हुए बांस को पेड़ों की सूची में रख दिया और इस तरह उसको संरक्षित प्रजाति में डाल दिया. इसकी वजह से भारतीय अगरबत्ती उद्योग के लिए देसी बांस की सप्लाई पर असर पड़ा. इसका फ़ायदा उठाते हुए चीन ने भारतीय बाज़ार में लाखों टन बांस की छड़ी की सप्लाई की.

जब 2018 में सरकार ने बांस को घास के तौर पर फिर से वर्गीकृत किया तो उम्मीद जताई गई कि भारतीय अगरबत्ती बाज़ार में चीन की मौजूदगी ख़त्म हो जाएगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. चीन ने तैयार बांस की छड़ी और कच्चे सामान को और सस्ता कर दिया. इसकी वजह से भारत को इसके निर्यात में और बढ़ोतरी हुई.

भारत को बांस की छड़ी पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने में दो साल लग गए. हालांकि ये अब भी 2011 के मुक़ाबले 5 प्रतिशत कम है. इसकी कोई वजह नहीं बताई गई कि आयात शुल्क 25 प्रतिशत ही क्यों रहना चाहिए. शायद सरकार को लगता है कि अगरबत्ती की क़ीमत बढ़ी तो पूजा-पाठ करने वाले नाराज़ होंगे और व्यापारी परेशान हो जाएंगे.

भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आधार के रूप में आत्मनिर्भर भारत काफ़ी अच्छी धारणा है. लेकिन सभी धारणाओं की तरह इसको लेकर भी एक स्पष्ट जांच-पड़ताल की ज़रूरत है. यहां एक सुझाव है: सरकार, कारोबार, व्यापारी और उपभोक्ता आत्मनिर्भर भारत की धारण का परीक्षण करने के लिए किसी आसान चीज़ को चुनें. उदाहरण के तौर पर भारत में रोज़ाना 1,490 टन अगरबत्ती की घरेलू ज़रूरत को पूरा करने के लिए उत्पादन में बढ़ोतरी किया जाए जिसके लिए न तो उच्च तकनीक, न ही बड़े पैमाने पर पूंजी की ज़रूरत होगी. मौजूदा समय में भारत की उत्पादन क्षमता रोज़ाना 760 टन है. इस अंतर को चीन से बड़े पैमाने पर आयात के ज़रिए पाटा जाता है. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.

शहीद सैनिक को श्रद्धांजलि देने के लिए चीन में बनी अगरबत्ती जलाने से ज़्यादा क्रूर विडंबना कुछ नहीं हो सकती है. चीन में बनी अगरबत्ती के साथ प्रार्थना से ज़्यादा निष्ठाहीन कुछ भी नहीं हो सकती जो आपके कुछ पैसे तो बचाएगी लेकिन भारतीय को रोज़गार पर चोट पहुंचाती है. चीन के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा तब तक बेकार है जब तक ज़मीनी बदलाव नहीं होता.

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