Author : Seema Sirohi

Published on Dec 16, 2020 Updated 0 Hours ago

बाइडेन ने इस बात को लेकर एक शब्द भी नहीं कहा कि उनके उम्मीदवार, चीन के बढ़ते सैन्य, तकनीकी और आर्थिक प्रभुत्व के ख़िलाफ़ काम करने के नज़रिए से कैसे सबसे उपयुक्त हैं.

अमेरिका: रक्षा मंत्री को लेकर बाइडेन के चुनाव पर उठ रहे हैं चौतरफ़ा सवाल

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए नव-निर्वाचित जो बाइडेन ने रक्षा मंत्री के पद के लिए सेवानिवृत्त जनरल लॉयड ऑस्टिन को चुना है. इस चुनाव पर देश ही नहीं विदेशों में भी सवाल उठाए जा रहे हैं. इस वक्त जब संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी व मित्र देशों के सामने चीन के रूप में एक बड़ी चुनौती है तो ऐसे में, महान शक्ति प्रतियोगिता के इस युग में, किसी के परिचित व वफ़ादार होने को क्या उसकी सबसे महत्वपूर्ण काबलियत माना जा सकता है?

बाइडेन ने इस बात को लेकर एक शब्द भी नहीं कहा कि उनके उम्मीदवार, चीन के बढ़ते सैन्य, तकनीकी और आर्थिक प्रभुत्व के ख़िलाफ़ काम करने के नज़रिए से कैसे सबसे उपयुक्त हैं. ऑस्टिन को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं, मसलन, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी[1] में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ अर्जन तारापोर के मुताबिक ऑस्टिन के पास, एशिया और “भविष्य की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा की मांग” को समझने और उससे निपटने को लेकर अनुभव की कमी है.

चीन के साथ संबंधों में गिरावट और बीजिंग के ख़िलाफ़ कैनबरा के एकाकी रुख़ के मद्देनज़र, ऑस्टिन के चुनाव को लेकर ऑस्ट्रेलिया स्पष्ट रूप से सबसे आहत है. ऑस्ट्रेलिया स्थित अमेरिकी अध्ययन केंद्र में विदेश नीति और रक्षा मामलों के निदेशक एशले टाउनसेंड, इस बाबत ट्विटर पर राय ज़ाहिर करने को लेकर त्वरित रहे: “रक्षा मंत्री के रूप में ऑस्टिन के चयन को लेकर अपने स्पष्टिकरण में चीन या इंडो-पैसिफिक रणनीतिक परिदृश्य का उल्लेख करने में बाइडेन की विफलता को अमेरिकी सहयोगियों और इन क्षेत्रों में उसके साझेदारों द्वारा बड़ी चिंता के साथ देखा जाएगा.”

इस संबंध में अन्य मज़बूत उम्मीदवार मिशेल फ़्लोरनॉय हो सकती थीं, जो पूर्व रक्षा सचिव रह चुकी हैं, और जिनके पास चीन को लेकर विशेषज्ञता है और जिन्होंने हाल ही में इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि अमेरिका को अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए क्या करने की आवश्यकता है. जानकारों का मानना है कि इस पद के लिए चयन करते हुए मिशेल फ़्लोरनॉय जैसे उम्मीदवारों की पूरी तरह से अनदेखी की गई.

अश्वेत सांसदों का दबाव

बाइडेन के लिए, ऑस्टिन को नामित करना इतिहास रचने के मौके के रूप में अधिक है, क्योंकि लॉयड ऑस्टिन पहले अफ्रीकी-अमेरिकी हैं जो रक्षा विभाग के प्रमुख हैं. इसके अलावा ऑस्टिन को नामित करने और उनके चयन के पीछे, अश्वेत सांसदों की ओर से यह दबाव भी शामिल था कि अधिक संख्य़ा में अल्पसंख्यकों को कैबिनेट पदों पर नियुक्त किया जाए. बाइडेन ने ऑस्टिन को “ट्रेलब्लेज़िंग लीडर” के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने “अनुकरणीय नेतृत्व, चरित्र और मार्ग-दर्शन” दिखाया है. उन्होंने कहा कि ऑस्टिन मौजूदा समय में चुनौतियों का सामना करने और हमारे सामने आने वाले संकटों के लिए विशिष्ट रूप से योग्य हैं, जो देश भर में कोविड-19 की महामारी के लिए वैक्सीन वितरित करने में अमेरिकी सेना की मदद की ज़रूरत से जुड़ा एक संदर्भ था.

लेकिन क्या अमेरिकी रक्षा मंत्री का चयन घरेलू स्तर पर राजनीतिक हित साधने और चीन द्वारा विश्व में अपना वर्चस्व बढ़ाए जाने के मद्देनज़र नहीं होना चाहिए? दूसरे शब्दों में, क्या वाशिंगटन अब विदेशों में अपना प्रभुत्व महसूस नहीं करना चाहता है? निश्चित रूप से, ऑस्टिन या किसी और के अधीन रक्षा विभाग वैक्सीन वितरित कर सकता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इराक़ में उनका अनुभव या आईएसआईएस (ISIS) से निपटने में उनका हुनर, अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के बड़े सवालों की दृष्टि से कितना प्रासंगिक है, जो आज अमेरिका के सामने एक मुख्य़ चुनौती है.

बाइडेन के लिए, ऑस्टिन को नामित करना इतिहास रचने के मौके के रूप में अधिक है, क्योंकि लॉयड ऑस्टिन पहले अफ्रीकी-अमेरिकी हैं जो रक्षा विभाग के प्रमुख हैं. इसके अलावा ऑस्टिन को नामित करने और उनके चयन के पीछे, अश्वेत सांसदों की ओर से यह दबाव भी शामिल था 

अपने भाषण में और अपनी पसंद का औचित्य सिद्ध करते हुए, जो बाइडेन द्वारा लिखे गए संपादकीय में उन्होंने चीन या हिंद-प्रशांत क्षेत्र (इंडो-पैसिफिक) का कोई उल्लेख़ नहीं किया. वह संदर्भ जिनको एशियाई नेता ढूंढ रहे थे यह जानने के लिए कि अमेरिकी प्रशासन की आगे की रणनीति क्या हो सकती है. वास्तव में, जो बाइडेन द्वारा इस दौरान “एशिया-पैसिफिक” शब्द का इस्तेमाल किए जाने ने सभी को और भी अधिक चकित किया, क्योंकि चीन के उल्लेखनीय अपवाद के अलावा, दुनिया के बाकी हिस्सों में इस क्षेत्र को परिभाषित करते हुए अब पुरानी शब्द प्रणाली “एशिया-प्रशांत” का इस्तेमाल किए जाने के बजाय, “इंडो-पैसिफिक” कहा जाता है.

ऑस्टिन ने भी अपने नामांकन को स्वीकार करते हुए अपनी औपचारिक टिप्पणी में अपने नेता का अनुसरण किया और “एशिया-पैसिफिक” शब्द का इस्तेमाल किया और इस बात की पुष्टि कर दी कि दोनों नेताओं द्वारा यह प्रयोग जानबूझ कर किया गया और सोचासमझा चुनाव था, न कि आकस्मिक उपयोग. वॉशिंगटन द्वारा उपयोग की जाने वाली शब्दावली में विशिष्ट महत्व निहित होते हैं, जो विदेश नीति और अमेरिकी रुख़ को बयां कर सकते हैं, और ऐसे में पुरानी शब्दावली पर लौटने के कई राजनीतिक पर्याय हो सकते हैं, जो रणनीतिक दृष्टि से उल्लेखनीय हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि चीन ने दो साल से अधिक समय तक “इंडो-पैसिफिक” शब्द के उपयोग पर कड़ाई से आपत्ति जताई है, और उसके मुख़पत्र ग्लोबल टाइम्स ने दो हफ्त़े पहले कहा था कि बाइडेन इस उपयोग को छोड़ दें, और “एशिया प्रशांत” की पुरानी शब्दावली पर लौट आएं.

चीन के प्रति अमेरिकी रुख़ में बदलाव

यह नीतिगत स्तर पर अमेरिकी रूख़ में उस बदलाव का संकेत है जिसे एक “रीसेट” के रूप में देखा जा सकता है और जिसे चीन और इसके सबसे सतत प्रवक्ता व पूर्व अमरीकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर, लंबे समय से मांगते रहे हैं, तब भी जब अपने आखिरी हफ्त़ों में ट्रंप प्रशासन बीजिंग पर शिकंजा कसने से बाज़ नहीं आ रहे हैं. यदि वाकई ऐसा है, तो भारत सहित, उन सभी विदेशी मंत्रालयों, जिन्होंने अलग-अलग विभागों और अतिरिक्त जनशक्ति को समर्पित कर वॉशिंगटन के नेतृत्व में भारत-प्रशांत नीति को तैयार करने की दिशा में प्रयास किए, उन्हें अब इस पर विचार करना होगा.

ऑस्टिन ने भी अपने नामांकन को स्वीकार करते हुए अपनी औपचारिक टिप्पणी में अपने नेता का अनुसरण किया और “एशिया-पैसिफिक” शब्द का इस्तेमाल किया और इस बात की पुष्टि कर दी कि दोनों नेताओं द्वारा यह प्रयोग जानबूझ कर किया गया 

हालांकि, अमेरिकी नागरिक इस तथ्य को लेकर अधिक सचेत हैं कि एक सैन्य अधिकारी के रूप में ऑस्टिन ऐसे किसी पद पर तैनात न हों जिसे सही मायनों में एक नागरिक के पास जाना चाहिए, क्योंकि कानून द्वारा आवश्यक होने के बाद भी उन्हें अपने पद से हटे हुए सात साल नहीं हुए हैं. उन्हें कांग्रेस की ओर से रियायत की ज़रूरत होगी और इस मायने में कुछ डेमोक्रेट सांसद यह रियायत देने में संकोच कर रहे हैं.

अमेरिका में सात साल की ‘कूलिंग-ऑफ अवधि’ को अनिवार्य करने वाला एक कानून है क्योंकि कांग्रेस को डर था कि पूर्व जनरल कुछ सेवारत अधिकारियों के साथ बेहद सहज हो सकते हैं, और इसके चलते राष्ट्रपति को निष्पक्ष सलाह नहीं दी जाएगी. इससे पहले केवल दो बार अमेरिकी कांग्रेस ने एक पूर्व सैन्य अधिकारी को रक्षा विभाग का नेतृत्व करने के लिए छूट दी थी- एक बार 1950 में जब राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने जॉर्ज मार्शल को रक्षा मंत्री नियुक्त किया था और हाल ही में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनरल जेम्स मैटिस को 2016 में नामित किया था. इन दो अपवादों के अलावा अतीत का अनुभव दिखाता है कि कांग्रेस अपने इस फैसले में सही थी क्योंकि दोनों बार पूर्व जनरल, व्हाइट हाउस की तुलना में अपने वर्दीधारी सहयोगियों का पक्ष लेते अधिक प्रतीत हुए.

सीनेट द्वारा पुष्टिकरण प्रक्रिया में कानूनी कठिनाइयों के अलावा, ऑस्टिन का नामांकन अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है. एशिया में मौजूद राजनयिक उनके अनुभव में कमी को लेकर चिंतित हैं, और यह एक ऐसा राजनितिक-कूटनीतिक फलक है जो फिलहाल सबसे अधिक मायने रखता है.

बाइडेन की पसंद और उनके चुनाव ने इस आधार को हिला दिया है, यह न्यूनतम रूप से भी यह दर्शाता है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति चीन को चुनौती के रूप नहीं देखते ख़ासतौर पर उतनी बड़ी चुनौती के रूप में नहीं, जितना वह कुछ अन्य देशों के लिए हो सकता है.  

यदि कोई यह मानता है कि डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टियां दोनों इस बात पर सहमत हैं कि चीन, अमेरिकी प्रभुत्व को लेकर एकमात्र अड़चन और रोड़ा है तो बाइडेन की पसंद और उनके चुनाव ने इस आधार को हिला दिया है, यह न्यूनतम रूप से भी यह दर्शाता है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति चीन को चुनौती के रूप नहीं देखते ख़ासतौर पर उतनी बड़ी चुनौती के रूप में नहीं, जितना वह कुछ अन्य देशों के लिए हो सकता है.

बाइडेन के फ़ैसले से ‘नई दिल्ली’ चौकस

इस प्रकार अब तक के कुछ संकेत बाइडेन प्रशासन की चीन संबंधी रणनीति में ट्रंप प्रशासन के चीन के प्रति सख्त़ रवैये की कड़ी आलोचना और गठजोड़ पर फिर से ज़ोर देने संबंधी लगते हैं. यह संकेत, अमेरिकी विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने और तकनीकी विकास में अधिक संसाधनों को उपयुक्त करने से संबंधित हैं. इसके अलावा बाइडेन जलवायु परिवर्तन और उत्तर कोरिया जैसे मुद्दों पर भी चीन के साथ मिलकर काम करने के इच्छुक हो सकते हैं. जैसा कि तारापोर कहते हैं, “अमेरिका चीन के साथ अपनी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को किस तरह लेता है वह भारत को प्रभावित कर सकता है. क्या बाइडेन चीनी आक्रामकता के लिए प्रतिक्रियाशील होंगे या इसे रणनीतिक रूप से आकार देंगे? क्या वह दीर्घकालिक अमेरिकी क्षमताओं के निर्माण के लिए ज़रूरी सामग्री और राजनीतिक क्षमता में निवेश करेंगे या संकटों से निपटने में उलझे रह जाएंगे. अगर नई-दिल्ली के परिप्रेक्ष्य में सोचें तो यह सबसे बड़ी अनिश्चितता है.”

यह संकेत, अमेरिकी विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने और तकनीकी विकास में अधिक संसाधनों को उपयुक्त करने से संबंधित हैं. इसके अलावा बाइडेन जलवायु परिवर्तन और उत्तर कोरिया जैसे मुद्दों पर भी चीन के साथ मिलकर काम करने के इच्छुक हो सकते हैं.

ऑस्टिन के सबसे बेहतरीन साल इराक़, सीरिया और अफ़गानिस्तान में विद्रोह से लड़ने वाली अमेरिकी सेना की देखरेख को लेकर थे. उनकी विशेषज्ञता मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में है- उन्होंने पाकिस्तान की सेना से निपटा है, लेकिन भारत प्रशांत क्षेत्र में नहीं. इराक़ और सीरिया में आईएसआईएस (ISIS) का आकलन करने और लड़ने के बारे में उनका रिकॉर्ड 2015 में सुर्खियों में था, जब दिवंगत सीनेटर जॉन मैक्केन ने 60 विद्रोही लड़ाकों को प्रशिक्षित करने के लिए उनके द्वारा खर्च किए गए 500 मिलियन डॉलर पर कड़े सवाल उठाए थे.

ऑस्टिन ने कथित तौर पर यह भी माना कि आईएसआईएस कोई बड़ा ख़तरा नहीं है, जिसके कारण राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें अल-क़ायदा की कनिष्ठ टीम यानी ‘जूनियर वैराइसिटी’ टीम भी कहा. आगे चलकर, इतिहास ने इस बात को गलत साबित किया और बेहद क्रूर तरीके से. बीस जनवरी को बाइडेन द्वारा अमेरिका में अपने राष्ट्रपति कार्यकाल की शुरूआत के समय एक बात जो ध्यान में रखी जानी चाहिए वह है कि घरेलू जरूरतें, वैक्सीन के वितरण से संबंधित होंगी जिन्हें प्राथमिकता दी जाएगी ताकि उग्र रूप से फैलती माहमारी को नियंत्रण में लाया जा सके. लेकिन बाकी दुनिया चीन पर लगाम लगाने के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़ी पहल की भी तलाश करेगी. उम्मीद है, वह इन दोनों वर्गों में काम कर सकें, क्योंकि अमेरिका के सहयोगी और भागीदार देशों को आश्वस्त करना भी महत्वपूर्ण है.


[1] Via e-mail exchange between the author and Arzan Tarapore

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