Author : Prasanna Karthik

Published on Sep 04, 2020 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 संकट ने कई पुरानी मिसालों को ख़त्म कर दिया है. साथ ही इसने प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा का भी पर्दाफ़ाश किया है.

प्रवासी मज़दूर संकट के बाद संरचनात्मक सुधार की पूरी कोशिश करें

दूसरे कई कारणों के अलावा भारत का आर्थिक विकास उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश के प्रवासी मज़दूरों की वजह से मुमकिन हो पाया है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़ ऐसे प्रवासी मज़दूरों की संख्या 5.6 करोड़ थी. हालांकि, फिलहाल कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि अभी कम-से-कम 10 करोड़ प्रवासी मज़दूर हैं जिनका भारत की GDP में 10% योगदान है. लेकिन प्रवासी मज़दूरों के योगदान के बावजूद उनके हितों का असरदार ढंग से ख़्याल नहीं रखा गया है. जहां किसानों को कई सरकारी योजनाओं का फ़ायदा (हालांकि अपर्याप्त) मिलता है, ग्रामीण इलाक़ों के मज़दूरों को MNREGA का फ़ायदा मिलता है, वहीं प्रवासी मज़दूरों को सरकार की तरफ़ से कोई औपचारिक समर्थन नहीं मिलता है. हालांकि, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान इत्यादि जैसे कई राज्यों ने श्रम क़ानूनों में व्यापक बदलाव किए हैं ताकि कामगारों को रोज़गार देने में आसानी हो लेकिन उन्होंने प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ नहीं किया है- इससे प्रवासी मज़दूर नाराज़ हो सकते हैं. प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों के काम-काज और रहन-सहन के स्तर में सुधार लाने के लिए व्यापक राष्ट्रीय रणनीति लागू करने की ज़रूरत है. इसके लिए व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 2019 (जिसे आगे संहिता कहा जाएगा) को लोकसभा में पेश किया गया है.

प्रवासी मज़दूरों के हितों की रक्षा और उनका शोषण रोकने के लिए इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडिशन ऑफ सर्विस) एक्ट 1979 में पारित किया गया था. इस क़ानून का मक़सद “एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले प्रवासी मज़दूरों के रोज़गार को क़ानून के दायरे में रखना और उनके काम-काज की स्थिति को ठीक करना” है. इस क़ानून के मुताबिक़ दूसरे राज्य के प्रवासियों को काम पर रखने वाले संस्थान ख़ुद को ज़रूर रजिस्टर कराएं और ऐसे मज़दूरों को सिर्फ़ लाइसेंस रखने वाले ठेकेदार ही काम पर रख सकते हैं. लाइसेंस रखने वाले ठेकेदार जिन मज़दूरों को काम पर रख रहे हैं, उनकी विस्तृत जानकारी राज्य के श्रम विभाग को मुहैया कराएं. काम कर रहे प्रवासी मज़दूरों को निश्चित रूप से घरेलू मज़दूरों के बराबर मज़दूरी दी जाए. एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा के दौरान उन्हें उनकी मज़दूरी और भत्ते के अलावा विस्थापित होने पर भी उन्हें भत्ता ज़रूर दिया जाए. क़ानून में ये भी ज़रूरी किया गया है कि रोज़गार देने वाला प्रवासी मज़दूरों को स्वास्थ्य सुविधाएं और रहने की जगह मुहैया कराएगा.

अगर सही ढंग से पालन किया जाए तो ये क़ानून महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, दिल्ली इत्यादि राज्यों में जहां स्थानीय मज़दूरों को काम पर रखना ज़्यादा महंगा है, वहां प्रवासी मज़दूरों को काम पर रखने में जो फ़ायदा है, वो ख़त्म कर देता है. नतीजतन प्रवासी मज़दूरों को काम पर रखने वाले संस्थान अपने यहां मज़दूरों की संख्या कम बताते हैं और प्रवासी मज़दूर जिन सुविधाओं के हक़दार हैं वो उन्हें नहीं मुहैया कराते. उन राज्यों के श्रम विभाग के अधिकारियों को अक्सर इस बात की जानकारी होती है लेकिन वो प्रवासी मज़दूरों के कल्याण की क़ीमत पर रिश्वतखोरी करने लगते हैं.

श्रम संविधान की समवर्ती सूची में है और इस पर राज्यों में 100 और केंद्र में क़रीब 40 क़ानून हैं. भारत के जटिल श्रम क़ानूनों को आसान बनाने की कोशिश के तहत केंद्र सरकार ने लोकसभा में संहिता को पेश किया है. ये संहिता 13 मौजूदा श्रम क़ानूनों की जगह लेती है जिनमें इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन एक्ट भी शामिल है. हालांकि, जहां तक प्रवासी मज़दूरों के कल्याण की बात है तो संहिता में मूल क़ानून की मजबूरियां भी शामिल हैं. इसमें अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूरों के अलग हालात का पर्याप्त ढंग से ख़्याल नहीं रखा गया है और ज़्यादातर मामलों में उनसे घरेलू मज़दूरों की तरह बर्ताव किया गया है. पहले के क़ानूनों की तरह इस संहिता में भी प्रवासी मज़दूरों के कल्याण को बढ़ावा देने में गृह राज्य की सरकारों को ज़िम्मेदारी से मुक्त रखा गया है. ये संहिता कोविड-19 के फैलने से पहले बनाई और पेश की गई थी. भारत के प्रवासी मज़दूरों के हालात पर सबक़ सीखने के बाद संहिता के क़ानून बनने से पहले निम्नलिखित पहलुओं को इसमें ज़रूर शामिल किया जाना चाहिए:

  1. राष्ट्रीय प्रवासी मज़दूर डाटा बेस और विशिष्ट पहचान
  2. मौजूदा सरकारी समर्थन- क़ानूनी और वित्तीय साक्षरता
  3. व्यापक कौशल विकास रोडमैप
  4. स्वास्थ्य देखभाल के लिए समर्थन
  5. प्रवासी मज़दूर भविष्य निधि

राष्ट्रीय प्रवासी मज़दूर डाटा बेस और विशिष्ट पहचान

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के 81वें अंश में अंतर्राज्यीय माइग्रेशन को केंद्र का विषय बताया गया है. इसका इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार प्रवासी मज़दूरों का व्यापक राष्ट्रीय डाटा बेस बनाए जिसका डाटा राज्य मुहैया कराएं.

प्रवासी मज़दूरों को लेकर आधिकारिक आंकड़ा राज्य सरकार रोज़गार देने वालों और उन्हें काम पर रखने वाले लाइसेंस प्राप्त ठेकेदारों से इकट्ठा करती है. एक तरफ़ जहां ज़्यादातर ठेकेदार मज़दूरों की संख्या कम बताते हैं तो कई ठेकेदार मज़दूरों की संख्या बताते ही नहीं और कुछ ऐसे भी ठेकेदार भी हैं जो बिना लाइसेंस के ही मज़दूरों को काम पर रखते हैं. इसकी वजह से प्रवासी मज़दूरों का सही-सही आंकड़ा नहीं मिल पाता. आज भी प्रवासी मज़दूरों पर सबसे विश्वसनीय आंकड़ा 2011 की जनगणना का है. लॉकडाउन के एलान के बाद केंद्र और राज्य की सरकारें प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को लेकर तैयार नहीं दिखीं, इसकी एक वजह आंकड़े नहीं रहने को भी माना गया है.

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के 81वें अंश में अंतर्राज्यीय माइग्रेशन को केंद्र का विषय बताया गया है. इसका इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार प्रवासी मज़दूरों का व्यापक राष्ट्रीय डाटा बेस बनाए जिसका डाटा राज्य मुहैया कराएं. इस डाटा बेस के ज़रिए प्रत्येक अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूर के लिए आधार से जुड़ा पहचान पत्र तैयार किया जाना चाहिए. इस आधार से जुड़े पहचान पत्र को JAM (जनधन खाता, आधार और मोबाइल) से जोड़ना चाहिए. इस पहचान पत्र को हासिल करने के बाद प्रवासी मज़दूरों के लिए जो भी योजना बनेगी उसका फ़ायदा निश्चित तौर पर उन्हें मिलेगा. इन फ़ायदों में कैश ट्रांसफर भी शामिल है. ऐसा राष्ट्रीय डाटा बेस होने से केंद्र, गृह राज्य और जहां प्रवासी मज़दूर काम कर रहे हैं, वहां की सरकार को सटीक जानकारी मिलेगी. रोज़गार देने वालों और ठेकेदारों को भी कहा जाना चाहिए कि वो जिन प्रवासी मज़दूरों को काम पर रख रहे हैं, उनको विशिष्ट पहचान पत्र का इस्तेमाल करते हुए श्रम सुविधा पोर्टल पर रजिस्टर कराएं. इससे आसानी से आंकड़े मिल सकेंगे और इसके आधार पर नीति और कल्याण के क़दम उठाए जा सकेंगे और उन्हें आसानी से लागू किया जा सकेगा.

मौजूदा सरकारी समर्थन

ओडिशा सरकार ने देश के दूसरे हिस्सों में काम करने वाले अपने प्रवासी मज़दूरों के लिए श्रमिक सहायता टोल फ्री हेल्पलाइन की स्थापना की ताकि वो ओडिशा राज्य सरकार से समर्थन हासिल कर सकें. इसके अलावा ओडिशा सरकार ने प्रवासी मज़दूरों के लिए हेल्प डेस्क और सहायता केंद्र की भी स्थापना की और प्रवासी मज़दूरों के बच्चों के लिए हॉस्टल की भी स्थापना की. इन पहल के ज़रिए ओडिशा मानवीय तस्करी विरोधी यूनिट को मज़बूत करने की तरफ़ भी विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि अक्सर रोज़गार के अवसर की तलाश में जुटी युवा महिलाओं का शोषण होता है. सहायता केंद्र ओडिशा के भीतर हैं लेकिन जिन राज्यों से मज़दूर काम की तलाश में जाते हैं, उन्हें उन राज्यों में भी सेवा केंद्र ज़रूर खोलना चाहिए जहां काम के लिए मज़दूर गए हैं.

ओडिशा सरकार ने देश के दूसरे हिस्सों में काम करने वाले अपने प्रवासी मज़दूरों के लिए श्रमिक सहायता टोल फ्री हेल्पलाइन की स्थापना की ताकि वो ओडिशा राज्य सरकार से समर्थन हासिल कर सकें. इसके अलावा ओडिशा सरकार ने प्रवासी मज़दूरों के लिए हेल्प डेस्क और सहायता केंद्र की भी स्थापना की और प्रवासी मज़दूरों के बच्चों के लिए हॉस्टल की भी स्थापना की.

संहिता में ज़रूर इस बात का प्रावधान होना चाहिए कि जिन राज्यों में 5 लाख से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर हैं वो राज्य में सहायता केंद्र की स्थापना करें और जिन राज्यों से 5 लाख से ज़्यादा मज़दूर किसी ख़ास राज्य में जाते हैं वो भी उस राज्य में सेवा केंद्र की स्थापना करें. इन केंद्रों के ज़रिए राज्य सरकारें नियमित तौर पर श्रमिकों के संपर्क में रहें और उनके काम की जगह के हालात, काम-काज की शर्तों, स्वास्थ्य सुविधा इत्यादि के बारे में जानकारी हासिल करें. ये जानकारी न सिर्फ़ आंक़ड़े की कमी पूरी करेंगे बल्कि प्रवासी मज़दूरों के कल्याण को भी सुनिश्चित करेंगी.

ये सेवा केंद्र प्रवासी मज़दूरों को दो ख़ास क्षेत्रों में भी ज़रूर मदद करें: क़ानूनी अधिकार और वित्तीय जागरुकता. प्रवासी मज़दूरों को केंद्र और राज्य के अलग-अलग क़ानून के तहत उनके क़ानूनी अधिकारों के बारे में ज़रूर जागरुक किया जाना चाहिए. इससे उन्हें काम पर रखने वाले ठेकेदार क़ानून का पालन करेंगे. प्रवासी मज़दूरों की सहायता के मौजूदा कार्यक्रम के तहत गृह राज्य वित्तीय साक्षरता और वित्तीय समावेशन में मदद करने के लिए श्रम सारथी जैसे NGO के साथ ज़रूर साझेदारी करें. प्रवासी मज़दूरों का वित्तीय समावेशन उनके परिवारों को आर्थिक रूप से ऊपर उठाने में बड़ी भूमिका निभाता है.

व्यापक कौशल विकास रोडमैप

भारत में भारी संख्या में मौजूद प्रवासी मज़दूरों को तब तक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा जब तक कि उनके पास हुनर नहीं है या है भी तो बिल्कुल कम. तकनीक में तेज़ी से होती तरक़्क़ी के कारण सभी उद्योगों में रोज़गार का परिदृश्य बदल रहा है. ऐसे में भारत के प्रवासी मज़दूरों को इन बदलावों का फ़ायदा उठाने के लिए तैयार करना चाहिए. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत नौजवानों के कौशल विकास के लिए बनी एक योजना के ज़रिए अभी तक 69 लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है लेकिन प्रवासी मज़दूरों के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है. कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय ऐसा ही एक कौशल विकास कार्यक्रम प्रवासी मज़दूरों के लिए शुरू करे. प्रवासी मज़दूर जिस राज्य के निवासी हैं और जहां वो काम करने के लिए जाते हैं, वहां के उद्योगों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर हुनर का विकास किया जाना चाहिए. राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद की एक रिपोर्ट में चार क्षेत्रों का ज़िक्र किया गया है जहां उत्तर प्रदेश के प्रवासी मज़दूरों को ट्रेनिंग दी जा सकती है ताकि उन्हें बेहतर मज़दूरी मिल सके और उनके काम-काज की स्थिति बेहतर हो सके. ये चार क्षेत्र हैं- निर्माण, रिटेल, परिवहन और घरेलू काम-काज. उद्योग आधारित ख़ास ट्रेनिंग भी दी जा सकती है. इसके लिए उन राज्यों से समन्वय किया जा सकता है जिन्हें ख़ास हुनर की ज़रूरत है. उदाहरण के लिए, गुजरात में ग्लास और ग्लास के बने बर्तन के उत्पादन उद्योग में राजस्थान के प्रवासी मज़दूरों को बड़ी संख्या में रोज़गार मिला हुआ है. राजस्थान सरकार अपने प्रवासी मज़दूरों को ग्लास उत्पादन और उसकी देखभाल के कौशल की ट्रेनिंग दे सकती है जिससे कि वो पहले दिन से ही काम शुरू कर सकें. भारत के 10 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को उद्योग की ज़रूरत के आधार पर व्यावसायिक कौशल की ट्रेनिंग भारत को दुनिया में उत्पादन का केंद्र बनाने में मदद करेगी. मज़दूरों को मिलने वाली मज़दूरी भी उनके हुनर से जोड़नी चाहिए.

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत नौजवानों के कौशल विकास के लिए बनी एक योजना के ज़रिए अभी तक 69 लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है लेकिन प्रवासी मज़दूरों के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है. कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय ऐसा ही एक कौशल विकास कार्यक्रम प्रवासी मज़दूरों के लिए शुरू करे. प्रवासी मज़दूर जिस राज्य

स्वास्थ्य देखभाल के लिए समर्थन

संहिता में फिलहाल ये ज़रूरी है कि प्रवासी मज़दूरों को काम पर रखने वाले ठेकेदार उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराएं. इसकी वजह से लागत बढ़ती है जिसका नतीजा ये होता है कि ठेकेदार इस नियम को नहीं मानते और मज़दूरों की संख्या कम बताते हैं. रोज़गार देने वालों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी देने के इरादे का मक़सद अच्छा है लेकिन वास्तव में इसका असर ठीक नहीं है. इसलिए प्रवासी मज़दूरों को स्वास्थ्य सुविधा देने की ज़िम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए. विशिष्ट पहचान हासिल करने के बाद सभी प्रवासी मज़दूरों को अपने-आप आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल कर लेना चाहिए. इससे रोज़गार देने वालों की स्वास्थ्य को लेकर ज़िम्मेदारी कम हो जाएगी जिससे वो सही-सही जानकारी दे सकेंगे.

प्रवासी मज़दूर भविष्य निधि

सरकार एक ऐसा क़ानून ज़रूर बनाए जो सभी प्रवासी मज़दूरों के लिए भविष्य निधि की सुविधा दे. उम्र और हुनर के आधार पर एक तय रक़म का निर्धारण होना चाहिए जिसे एक भविष्य निधि खाते में जमा किया जाए. ये योगदान केंद्र, गृह राज्य और उस राज्य के द्वारा किया जाए जहां मज़दूर काम करता है. ये निधि प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा का काम करेगी.

कोविड-19 संकट ने कई पुरानी मिसालों को ख़त्म कर दिया है. साथ ही इसने प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा का भी पर्दाफ़ाश किया है. भारत की GDP में उनके महत्वपूर्ण योगदान के बाद भी नीति बनाने वालों या राजनेताओं का ध्यान कभी उनकी तरफ़ नहीं गया. भारत के प्रवासी मज़दूर ऐसे माहौल के हक़दार हैं जो उनकी वर्तमान स्थिति को बेहतर और उनके भविष्य को टिकाऊ बनाए. व्यापक सुधारों के ज़रिए उनके काम-काज के हालात में स्थायी बदलाव के वो हक़दार हैं और ये बाक़ी भारत को भी फ़ायदा पहुंचाएगा. अब जब हम इस समस्या की जटिलता के बारे में जानते हैं तब भारत को इस मौक़े का इस्तेमाल आगे आने के लिए करना चाहिए और लोकसभा में पेश व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 2019 की पृष्ठभूमि में व्यापक संरचनात्मक सुधार के दौर में प्रवेश करना चाहिए.

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