Published on Jan 27, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत के लिए इन दोनों ही उप क्षेत्रों के लिए अलग-अलग कूटनीति बनाना, भारत के लिए उचित भी होगा, व्यवहारिक भी होगा और तभी ये कूटनीति असरदार भी होगी.

एक्ट ईस्ट और एक्ट वेस्ट: भारत की  हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कूटनीति के दो अलग-अलग आयाम

हाल ही में इंडियन ओशन डायलॉग और द डेल्ही डायलॉग का समापन भाषण देते हुए, भारत के विदेश मंत्री, एस. जयशंकर ने कहा कि, ‘भारत अपनी हिंद-प्रशांत कूटनीति का दायरा बढ़ा रहा है. अब हम ने इस में पश्चिमी हिंद महासागर और अरब सागर के क्षेत्रों को भी सम्मिलित कर लिया है. इस का ये मतलब हुआ कि भारत की एशिया-प्रशांत रणनीति में अब खाड़ी देशों के पड़ोसी देश, अरब सागर के छोटे द्वीपीय देश और अफ्रीका को भी शामिल कर लिया गया है. अपनी हिंद-प्रशांत नीति का भौगोलिक दायरा बढ़ाकर भारत ने अपनी कूटनीतिक रणनीति का भी दायरा बढ़ा लिया है. अब केवल भारत के पूर्व में पड़ने वाले इलाक़े ही इस रणनीति का हिस्सा नहीं हैं. क्योंकि इस वजह से भारत अपनी हिंद-प्रशांत कूटनीति में केवल आसियान देशों से संबंध प्रगाढ़ करने पर ध्यान देता था. लेकिन, अब भारत ने इस कूटनीति के दायरे में पश्चिमी हिंद महासागर और अफ्रीका को भी शामिल कर लिया है. यानी अब हिंद-प्रशांत कूटनीति में पश्चिमी हिंद महासागर के लिए विशेष रणनीति की संभावनाएं बढ़ गई हैं.’

हालांकि, ये सोचना ग़लत होगा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के इन दोनों उपक्षेत्रों को लेकर भारत की कूटनीतिक रणनीति एक ही है. ख़ास तौर से तब और, जब इन दोनों ही इलाक़ों में भारत के हित और चिंताएं बिल्कुल अलग-अलग हैं. चूंकि,इन दोनों ही क्षेत्रों का दायरा बहुत व्यापक है. इन इलाक़ों के देशों की संख्या भी ज़्यादा है. तो, ऐसे में भारत के लिए इन दोनों ही उप क्षेत्रों के लिए अलग-अलग कूटनीति बनाना, भारत के लिए उचित भी होगा, व्यवहारिक भी होगा और तभी ये कूटनीति असरदार भी होगी. भारत को अपनी हिंद-प्रशांत नीति को एक्ट ईस्ट और एक्ट वेस्ट के तौर पर दो हिस्सों में बांट देना चाहिए.

एक्ट ईस्ट नीति और हिंद-प्रशांत

हालांकि, पहले ‘लुक ईस्ट’ और फिर ‘एक्ट ईस्ट’ कूटनीति के ज़रिए भारत ने पूर्वी क्षेत्र को तवज्जो देनी शुरू की है. लेकिन, लंबे समय तक भारत अपने पूर्वी पड़ोसी देशों को बस आर्थिक और सामरिक साझीदार के तौर पर देखता रहा था. न कि अपनी सामुद्रिक सुरक्षा और व्यापार के अहम साझीदारों के तौर पर. 2008 के बाद दोनों महासागरों को जोड़कर देखने का विचार पनपने, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अहम सामरिक क्षेत्र मानने की वजह से अपने पूर्वी पड़ोसी देशों को लेकर भारत का नज़रिया काफ़ी बदला है. अब उन्हें सामुद्रिक सामरिक लिहाज़ से देखा जाने लगा है. हालांकि, भारतीय नौसेना ने पूर्वी हिंद महासागर और प्रशांत महासागर जैसे सुदूर के इलाक़ों में अपनी तैनाती की वजह से हमेशा इन क्षेत्रों पर ध्यान दिया था.

जापान की अगुवाई वाले एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर को भारत के बंदरगाह जोड़ने के सागरममला प्रोजेक्ट और आसियान देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के मास्टर प्लान आपस में मिल कर काम कर सकते हैं, ताकि एक साझा लक्ष्य को हासिल कर सकें. 

लेकिन, भारत के कूटनीतिक हलकों में इस इलाक़े की आम तौर पर अनदेखी ही होती रही थी. मौजूदा हालात में सभी प्रमुख ताक़तें, हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर बहुत ज़ोर दे रही हैं. फिर चाहे, अमेरिका हो या फिर ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया. अब तो आसियान देशों ने भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अलग नीति पर (आसियान आउटलुक ऑन द इंडो-पैसिफ़िक) काम शुरू कर दिया है. ये वो देश हैं जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के दायरे में आते हैं. ऐसे में अगर भारत चाहता कि वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अहम भूमिका निभाए. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभर रहे नए समीकरणों में उस की आवाज़ को भी गंभीरता से सुना जाए. तो, भारत के लिए इस क्षेत्र की अनदेखी कर पाना मुश्किल होगा. भारत अपने पूर्वी क्षेत्र के इन पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. हम इस की मिसाल भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ 2+2 डायलॉग के तौर पर देख सकते हैं. जहां दोनों देशों के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री नियमित रूप से आपस में बैठक करते हैं. इसके अलावा, भारत, इस क्षेत्र के चार देशों के साथ नियमित रूप से विदेश मंत्री स्तर की बातचीत करता रहा है. इसके अलावा, भी भारत इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक पैठ बढ़ाने के लिए कई क़दम उठा रहा है. भारत ने आसियान के कई सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर पर भी इस क्षेत्र के लिए नई नीतियां तैयार कर रहा है. भारत ने इंडोनेशिया के साथ मिल कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए साझा विज़न डॉक्यूमेंट जारी किया है. इसके अलावा, दोनों देश आपसी संपर्क बेहतर करने के लिए नियमित रूप से संवाद और बैठकें कर रहे हैं. ताकि भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप स्थित असेह सूबे के बीच संपर्क को और बेहतर किया जा सके. इसके अलावा, भी इन देशों के साथ नज़दीकी बढ़ाने के लिए भारत बहुत कुछ कर सकता है. मिसाल के तौर पर, भारत अपने दक्षिणी पूर्वी एशियाई पड़ोसी देशों के साथ आसियान कनेक्टिविटी 2025 जैसे संपर्क बढ़ाने के मास्टर प्लान पर सहमति बना सकता है. संपर्क बढ़ाने के इन कार्यक्रमों में भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी आगे बढ़ सकता है. जापान की अगुवाई वाले एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर को भारत के बंदरगाह जोड़ने के सागरममला प्रोजेक्ट और आसियान देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के मास्टर प्लान आपस में मिल कर काम कर सकते हैं, ताकि एक साझा लक्ष्य को हासिल कर सकें.

एक्ट वेस्ट नीति और हिंद-प्रशांत 

भारत के कूटनीतिक हलकों में पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र का ज़िक्र, केवल भौगोलिक क्षेत्र के तौर पर हुआ है. भारत ने अपनी हिंद-प्रशांत कूटनीति के तहत अब तक इस क्षेत्र के लिए कोई तर्कसंगत और अकाट्य रणनीति या विज़न नहीं तैयार किया है. पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र को भारत ही नहीं चीन भी अफ्रीका महाद्वीप तक पहुंचने के द्वार के तौर पर देखता है. इस इलाक़े में चीन काफ़ी समय से अपनी आर्थिक और सैन्य पहुंच का विस्तार कर रहा है. ऐसे में भारत, इस मामले में चीन से पीछे रह जाने का जोखिम मोल नहीं ले सकता है.

इसी वजह से हाल ही में भारत के विदेश मंत्रालय ने अपनी हिंद महासागर डिवीज़न में पश्चिमी और दक्षिणी हिंद महासागर के सभी प्रमुख द्वीपों और देशों को शामिल करने का फ़ैसला किया है. भारत सरकार की आधिकारिक नीति भी यही है कि वो अपने भारत प्रशांत क्षेत्र के विज़न में हिंद महासागर क्षेत्र के समुदायों की भागीदारी को बढ़ाएगा. विदेश मंत्रालय ने सरकार के इसी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए हिंद महासागर डिवीज़न का दायरा बढ़ाया है. अब भारत के लिए अगला उचित क़दम ये होना चाहिए कि वो हिंद महासागर कमीशन (सीओआई) में ऑब्ज़र्वर देश का दर्जा हासिल करे. ये अंतर्देशीय आयोग है, जो हिंद महासागर क्षेत्र के पांच देशों के विकास पर नज़र रखता है. इस संदर्भ में फ्रांस, भारत के ऑब्ज़र्वर बनने के दावे का समर्थन करता है.

भारत ने अब हिंद महासागर में सामरिक रूप से बेहद अहम इलाक़े में मौजूद वनीला आइलैंड्स के साथ संबंध बेहतर करने के लिए इंडियन कोस्टगार्ड्स (आईसीजी) को भी सामरिक दांव को इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया है.

इसके अलावा,, भारत ने पिछले साल अक्टूबर में मैडागास्कर और कोमोरोस के साथ रक्षा सहयोग के समझौतों पर दस्तख़त किए हैं. भारत ने मैडागास्कर में अपने दूतावास के लिए एक रक्षा प्रतिनिधि को भी नियुक्त किया है. इससे भारत को इस क्षेत्र में रक्षा के हालात की निगरानी करने में आसानी होगी. भारत ने अब हिंद महासागर में सामरिक रूप से बेहद अहम इलाक़े में मौजूद वनीला आइलैंड्स के साथ संबंध बेहतर करने के लिए इंडियन कोस्टगार्ड्स (आईसीजी) को भी सामरिक दांव को इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया है. चूंकि, जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों और क़ुदरती आपदाओं, ख़ास तौर से समुद्री तूफ़ानों से इन छोटे द्वीपों को ख़तरा बढ़ रहा है. तो,ऐसे में भारतीय नौसेना और भारतीय तट रक्षक दल को ऐसी आपदाओं की सूरत में मानवीय सहायता और आपदा राहत के रोल को और आक्रामक बनाना होगा. इस क्षेत्र में नौसेना और तट रक्षकों को तलाश और बचाव के अभियान की धारऔर तेज़ करनी होगी. वहीं, दूसरी तरफ़ भारत के पूर्वी क्षेत्र के पड़ोसी देशों के पास ईस्ट एशिया समिट, आसियान रीजनल फ़ोरम और विस्तारित आसियान मैरीटाइम फ़ोरम के तौर पर कई ऐसे मौजूदा और स्थापित मंच हैं, जहां वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर आपस में परिचर्चा कर सकते हैं. वहीं, पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र के देशों में ऐसे संवाद के लिए इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन  (आईओआरए) के अलावा कोई और ख़ास संगठन नहीं है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के इस इलाक़े में आपसी सहयोग बढ़ाने की परिचर्चा के लिए मंच प्रदान कर सके.

हम आगे इस बात की चर्चा करेंगे कि भारत कैसे मौजूदा मंचों और तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल करके हिंद-प्रशांत क्षेत्र के पश्चिमी हिंद महासागर इलाक़े के लिए ‘एक्ट वेस्ट’ नीति को अमली जामा पहना सके.

सहयोग बढ़ाने के लिए मौजूदा व्यवस्थाओं का कैसे इस्तेमाल हो-समुद्री इलाक़े की सुरक्षा-हिंद महासागर के देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध बेहतर करने के लिए भारत समुद्री सुरक्षा के आयाम को काफ़ी अहमियत दे रहा है. चूंकि, अहम समुद्री व्यापारिक इलाक़ों की हिफ़ाज़त और सुरक्षा किसी भी देश के सामरिक हितों को साधने में बहुत अहमियत रखने लगी है. ख़ास तौर से ऐसी जगहें, जहां पर टकराव की आशंकाएं होती हैं. ऐसे में, भारत के लिए ज़रूरी है कि वो इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA), इंडियन ओशन कमीशन (COI)और इंडियन ओशन टुना कमीशन (IOTC) जैसे संगठनों के माध्यम से इस इलाक़े में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दे. चूंकि भारत का क़रीब चालीस फ़ीसद कारोबार इंडियन ओशन रिम के दायरे में आने वाले देशों के साथ होता है. ऐसे में आवाजाही की आज़ादी और भारतीय कारोबारी जहाज़ों के सुरक्षित रूप से गुज़रने की गारंटी, भारत के अबाध कारोबार जारी रखने के लिहाज़ से बहुत आवश्यक है. इस नज़र से देखें, तो इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन एक साझा चुनौतियों को पहचानने और उन पर ज़ोर देकर समाधान निकालने के लिए महत्वपूर्ण मंच बन कर उभरा है. इस के माध्यम से भारत पारंपरिक चुनौती (जैसे कि चीन से चुनौती) और ग़ैर पारंपरिक चुनौतियों (जैसे, मानव तस्करी, हथियारों और ड्रग की तस्करी,जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं, अवैध रूप से मछली मारना वग़ैरह) को पहचान कर उन से निपटने में आपसी सहयोग को बढ़ावा दे सकता है.

आंकड़े और जानकारी साझा करने में सहयोग

इंडियन ओशन डायलॉग में विदेश मंत्री एस. जयशंकर के संबोधन से एक तथ्य तो बिल्कुल ही स्पष्ट हो जाता है. वो ये कि भले ही भारत और उस के पूर्वी क्षेत्र के पड़ोसियों के बीच जानकारियां और आंकड़े साझा करने के तमाम माध्यम मौजूद हैं. लेकिन, भारत के पश्चिमी क्षेत्र के पड़ोसियों के साथ ऐसे संवाद के मंच बेहद सीमित हैं. हालांकि, इस का ये मतलब क़तई नहीं है कि भारत और इस के पश्चिमी इलाक़े के पड़ोसियों के बीच ऐसी जानकारियां आपस में बांटने के मंच हैं ही नहीं. 2010 से 2015 के बीच MARSIC प्रोजेक्ट (एनहैंसिंग मैरिटाइम सिक्योरिटी ऐंड सेफ़्टी थ्रो इन्फॉर्मेसन शेयरिंग ऐंड कैपेसिटी बिल्डिंग) इस इलाक़े में लागू था. जिसका मक़सद था कि हिंद महासागरीय क्षेत्र के प्रशासन को और भी सुदृढ़ करना था. इस प्रोजेक्ट के माध्यम से डिजीबूती कोड ऑफ़ कन्डक्ट (DCoC) को सहयोग देना भी था. ये पश्चिमी हिंद महासागर के लिए तय हुआ पहला कोड ऑफ़ कन्डक्ट था. 2015 के बाद से मार्सिक प्रोजेक्ट को यूरोपीय संघ के क्रिटिकल मैरीटाइम रूट वाइडर इंडियन ओशन प्रोजेक्ट (EU CRIMARIO) ने अपने हाथ में ले लिया था. यूरोपीय संघ के इस प्रोजेक्ट का प्रयास होता है कि वो क्षेत्रीय देशों को उन की सामुद्रिक जागरूकता को और सुदृढ़ करने में मदद कर सके. इस के लिए यूरोपीय संघ इन देशों के लोगों को प्रशिक्षण देता है. उन्हें अपनी सुरक्षा की क्षमताएं विकसित करने में मदद करता है. क्रिमारियो (EU CRIMARIO) प्रोजेक्ट ने तमाम देशों के बीच आंकड़े और किसी घटना की जानकारियां साझा करने के लिए IORIS नाम का एक सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म भी विकसित किया है. चूंकि पारदर्शी आंकड़े इकट्ठे करना अफ्रीकी देशों के लिए सर्वोपरि लक्ष्य है, तो, राष्ट्रीय स्तर पर भी जानकारियां जुटाने की व्यवस्था को मज़बूत किया जाना चाहिए. इस प्रयास में भारत अन्य ताक़तों जैसे, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान का साझीदार बन सकता है. इन देशों के माध्यम से भारत सुरक्षित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आधारित राष्ट्रीय सहयोग केंद्र स्थापित कर सकता है. भारत ने ख़ुद भी इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-आईओआर (IFC-IOR) की स्थापना 2018 में गुरुग्राम में की थी. ये नया केंद्र इन्फॉर्मेशन एनालिसिस ऐंड मैनेजमेंट सेंटर (IMAC) के साथ स्थापित किया गया था. जो सभी तटीय रडार श्रृंखलाओ को आपस में जोड़ता है. ताकि भारत के तटीय क्षेत्रों की एक समेकित तस्वीर उभर कर सामने आ सके. हालांकि, ज़्यादातर मौजूदा आंकड़े भारत के ख़ुद के तटीय रडार निगरानी केंद्रों से जुटाया जाता है. लेकिन, भारत का आईएफसी-आईओआर (IFC-IOR) और यूरोपीय संघ का आईओआरआईएस (IORIS) प्लेटफॉर्म आपस में मिल कर काम कर सकते हैं. इन से जुटाए गए आंकड़ों के माध्यम से हिंद महासागर के एक व्यापक इलाक़े की स्पष्ट तस्वीर उभरेगी.

पश्चिमी हिंद महासागरीय देशों के साथ आपसी सहयोग के अन्य क्षेत्रों में ब्लू इकोनॉमी यानी सामुद्रिक संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल, आपदा नियंत्रण और प्रबंधन, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में प्लास्टिक कचरा फेंकने पर नियंत्रण करने के क्षेत्र शामिल हैं. इसके अलावा, इस इलाक़े के बंदरगाहो को आपस में जोड़ने और जहाज़ो की आवाजाही को और नियमित बनाने की दिशा में भी काम किया जा सकता है. मसलन, तंज़ानिया के लिंडी बंदरगाह को भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंबई बंदरगाह से जोड़ा जा सकता है. इसी तरह भारत के पूर्वी क्षेत्र में पश्चिमी सुमात्रा के पडांग बंदरगाह को अंडमान निकोबार और भारत के पूर्वी तटों के अन्य बंदरगाहों से जोड़ने पर ध्यान दिया जा सकता है.

अफ्रीकी और खाड़ी देशों को अपनी हिंद-प्रशांत विदेश नीति में शामिल करने का भारत का फ़ैसला निश्चित रूप से सही दिशा में उठाया गया क़दम है. हालांकि, इन दोनों इलाकों में क्षेत्रीय संस्थाओं और व्यवस्थाओं के इस्तेमाल से सहयोग बढ़ाने के मामले में दोहराव नहीं दिखना चाहिए। अब जब कि अफ्रीका अपनी आबादी और आर्थिक तरक़्क़ी की वजह से विश्व कूटनीतिक हलकों में अपनी जगह और मज़बूत बना रहा है. तो, प्रधानमंत्री मोदी की सरकार, सतत कूटनीतिक प्रयासों के ज़रिए अफ्रीकी और खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों से अपने संबंध लगातार बेहतर बनाने में जुटा हुआ है. ख़ास तौर से संयुक्त अरब अमीरात और ओमान से रिश्ते बेहतर करने में भारत काफ़ी कामयाब रहा है. भारत ने ओमान के साथ समुद्री परिवहन के समझौते पर दस्तख़त किए हैं. इस के माध्यम से भारत को ओमान के सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण ठिकाने पर स्थित दुक़्म बंदरगाह की सुविधाओं के इस्तेमाल की इजाज़त मिल गई है.  अब भारत इस की मदद से पश्चिमी हिंद महासागर, पूर्वी अफ़्रीका और फ़ारस की खाड़ी में अपनी पहुंच बढ़ाने में सक्षम है. इसके अलावा, भारत ने 35वें आसियान शिखर सम्मेलन में हिंद-प्रशांत महासागर इनिशिएटिव को प्रस्तुत कर के अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को और भी नई धार दे दी है.

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Authors

Premesha Saha

Premesha Saha

Premesha Saha is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses on Southeast Asia, East Asia, Oceania and the emerging dynamics of the ...

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Abhishek Mishra

Abhishek Mishra

Abhishek Mishra is an Associate Fellow with the Manohar Parrikar Institute for Defence Studies and Analysis (MP-IDSA). His research focuses on India and China’s engagement ...

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