Published on Oct 09, 2020 Updated 0 Hours ago

बैटरी क्षेत्र से जुड़ी पुरानी तकनीकों के एक चरण को लांघ कर भारत सीधे ‘नई-बैटरी तकनीकों’ के दौर में पहुंच सकता और रणनीतिक रूप से बैटरी आयात पर अपनी निर्भरता और आपूर्ति से जुड़े जोखिमों को कम कर सकता है.  

‘भारत के बैटरी विनिर्माण तंत्र को ज़रूरत है चार्ज करने की’

दुनियाभर में फैली कोरोनावायरस महामारी ने भारत में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने की ज़रूरत को और मज़बूत किया है, क्योंकि अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत आज भी अत्यधिक रूप से आयात पर निर्भर है. यह इसलिए भी ज़रूरी हो गया है क्योंकि भारत में ज़रूरत का बहुत सा सामान चीन से आयात किया जाता है, और चीन एक ऐसा देश है जिसके साथ भारत के बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने आयात और सीमा-पार व्यापार को मुश्किल बना दिया है. अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बढ़ते क़दम के चलते भारत ने बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के उत्पादन को लेकर एक बड़ा लक्ष्य अपने सामने रखा है. ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहन बनाने के लिए इस्तेमाल में आने वाले पुर्ज़ों, अक्षय ऊर्जा से जुड़े उपकरणों और बैटरी इत्यादि के घरेलू निर्माण के लिए भारत को ठोस प्रयास करने होंगे.

भारत ने साल 2019-20 में 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बैटरी खरीदी. यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि बैटरी क्षेत्र में भारत आयात पर बहुत अधिक निर्भर है. बैटरी की मांग को बढ़ाने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं- इलेक्ट्रिक वाहन और अक्षय ऊर्जा के भंडारण के ज़रूरी नए तरह के उपकरण. यह दोनों क्षेत्र अपने आप में भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ते उपयोग से भारत को तेल के आयात में कटौती करने की छूट मिलेगी और यह प्रदूषण के लिहाज़ से भी एक बेहतर क़दम है. यही वजह है कि साल 2030 तक भारत ने इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ोत्तरी के लिए 30 प्रतिशत का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा अक्षय ऊर्जा और भंडारण से जुड़ी कई तरह की परियोजनाओं को भी आगे बढ़ाया जा रहा है, जहां स्थिर भंडारण के लक्ष्य को पूरी करने के लिए बैटरी का सहारा लेने की योजना है. हालांकि, भारत में व्यावसायिक रूप से ‘बैटरी सेल’ बनाने की क्षमता का अभाव है, इसलिए आयात में कटौती करने और बैटरी ख़रीद से जुड़े पूंजीगत व्यय पर नियंत्रण करने के लिए, भारत सरकार ने घरेलू स्तर पर बैटरी उद्योग को बढ़ावा देने और इसका विनिर्माण शुरु करने की योजना बनाई है.

भारत सरकार के थिंक-टैंक नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अगर बैटरी के 100 प्रतिशत घरेलू विनिर्माण के ज़रिए, इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहता है, तो उसे 300 बिलियन अमेरीकी डालर की लागत से कम से कम 3,500 गीगावॉट आवर क्षमता वाले बैटरी भंडारण की आवश्यकता होगी. लागत की दृष्टि से देखें तो इसकी कीमत, तेल के आयात में हुई कमी की आधी से भी कम कीमत के बराबर है. भारत ऊर्जा भंडारण गठबंधन (IESA) ने इलेक्ट्रिक वाहनों और ऊर्जा भंडारण प्रणाली के क्षेत्र में बढ़ते अवसरों को ध्यान में रखते हुए भी साल 2025 तक बैटरी क्षेत्र से संबंधित मांग बढ़कर 300 गीगावॉट आवर तक होने का अनुमान है.

बैटरी उद्योग क्षेत्र में हो रहे इस विस्तार के चलते, भारत सरकार ने बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहनों के कल-पुर्ज़े और विभिन्न घटक घरेलू स्तर पर बनाए जाने के लिए पिछले साल, ‘नेशनल मिशन ऑन ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज’ की शुरुआत की, ताकि चरणबद्ध तरीके से विनिर्माण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा सके. इस पहल के ज़रिए भारत में बड़े पैमाने पर निर्यात के लायक गुणवत्ता वाले बैटरी विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना होगी ताकि भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में बढ़ रही मांग से भी इस विनिर्माण क्षेत्र को लाभ मिले. नीति आयोग ने पांच बिलियन अमेरीकी डालर की अनुमानित लागत पर अगले दस सालों में 50 गीगावाट आवर की क्षमता वाली ‘गीगाफैक्टरीयां’ स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है.

मौजूदा दौर की सबसे प्रमुख बैटरी तकनीक, लिथियम आयन (ली-आयन) बैटरी है. बैटरी क्षेत्र में आई नई तकनीकों और अलग-अलग प्रकार की इनोवेशन, फिलहाल व्यावसायिक रूप से आगे ले जाने लायक यानी मापनीय नहीं हैं. रीसर्च से पता चलता है कि ली-आयन बैटरी पैक की लागत पिछले दशक में 85 प्रतिशत तक गिरी है, और 2024 तक इसकी कीमत 35 प्रतिशत की गिरावट के साथ 100 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोवाट आवर तक पहुंच जाएगी. हाल ही में जारी हुई एक अन्य रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ली-आयन बैटरी विनिर्माण क्षमता 2019 की तुलना में 2030 तक चार गुना बढ़कर 1.3 टेरावाट आवर हो जाएगी. इस क्षमता का 80 प्रतिशत हिस्सा एशिया प्रशांत क्षेत्र से आता है, और इस क्षेत्र के भीतर भी चीन फिलहाल इस मामले में अग्रणी है. माना जा रहा है कि 2030 तक चीन अपनी क्षमता को 345 गीगावाट आवर से बढ़ा कर 800 गीगावाट आवर करने की उम्मीद रखता है.

लिथियम, कोबाल्ट, निकल, मैगनीज़ आदि पृथ्वी से मिलने वाली दुर्लभ धातुएँ ली-आयन बैटरी के निर्माण के लिए ज़रूरी कच्चा माल हैं. इन धातुओं के खनन और विनिर्माण संयंत्रों को स्थापित करने के लिए अत्यधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता है. चीन ने लिथियम और अन्य दुर्लभ धातुओं के खनन के लिए स्थानीय और विदेशी (लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया) स्तर पर भारी निवेश किया है. इसके अलावा, चीन ने बड़े पैमाने पर बैटरी निर्माण क्षमता को वित्तपोषित भी किया है, जिसके चलते अन्य देशों के लिए इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है और किसी भी देश के लिए इस क्षेत्र में उतरना आसान नहीं है.

इस बीच भारत ने अभी तक यह सर्वे नहीं किया है कि विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उसके पास लिथियम के पर्याप्त भंडार हैं या नहीं. पिछले साल भारत ने लगभग 14,000 टन लिथियम की खोज की थी, लेकिन चिली में मिले 8.6 मिलियन, ऑस्ट्रेलिया में मिले 2.8 मिलियन और अर्जेंटीना के 1.7 मिलियन टन के भंडार की तुलना में यह बहुत कम है. बैटरी विनिर्माण उद्योग में सफल होने के लिए, भारत को दुर्लभ तत्वों के अपने भंडारों का तत्काल पता लगाना होगा. साथ ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों से दुर्लभ तत्वों की आपूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए भारत को इन देशों के साथ या तो ख़रीद संबंधी दीर्घकालिक अनुबंध करने होंगे या फिर अपने राजनयिक संबंधों का लाभ उठाते हुए, दुनियाभर में मौजूद इन क्षेत्रों में, खनन गतिविधियों में निवेश करना होगा. इससे बैटरी निर्माण के संयंत्र लगाने के लिए निवेशकों में विश्वास बढ़ेगा और उन्हें इस बात का आश्वासन मिलेगा कि इन संयंत्रों के लिए ज़रूरी कच्चा माल उपलब्ध रहेगा. इस संबंध में भारत ने हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के तीन केंद्रीय प्रतिष्‍ठान- राष्‍ट्रीय एल्‍यूमि‍नियम कम्‍पनी लिमिटेड (NALCO), हिन्‍दुस्‍तान कॉपर लिमिटेड (HCL) तथा मिनरल एक्‍सप्लोरेशन कम्‍पनी लिमिटेड (MECL) की भागीदारी से, खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (Khanij Bidesh India Ltd)  की स्थापना की है ताकि रणनीतिक रूप से विदेशों में मौजूद खनिज संपत्ति का पता लगाया जा सके. इसके अलावा भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में, एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि भारत को आवश्यक खनिजों की आपूर्ति हो सके और एक नई ऊर्जा अर्थव्यवस्था के रूप में भारत अपने लक्ष्यों को पूरा कर सके.

नीति आयोग ने पांच बिलियन अमेरीकी डालर की अनुमानित लागत पर अगले दस सालों में 50 गीगावाट आवर की क्षमता वाली ‘गीगाफैक्टरीयां’ स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है.

सौर ऊर्जा उपकरणों और ली-आयन निर्माण की दौड़ में भारत का प्रवेश देरी से हुआ है, लेकिन इसे लेकर भारत को भविष्य में बैटरी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सामने आ रहे नए अवसरों को गंवाना नहीं चाहिए. भारत को बैटरी विनिर्माण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर शोध और अनुसंधान के लिए निवेश कर इसके ज़रिए नए दृष्टिकोणों का पता लगाना चाहिए. इनमें सॉलिड स्टेट बैटरी, उच्च ऊर्जा घनत्व से जुड़ी बैटरी-रसायन संबंधी नई तकनीकें, बैटरी से जुड़े नए उपकरण व सामग्री और उच्च तापमान सहने की क्षमता वाले रसायनों के अलावा, हाइड्रोजन सेल इत्यादि पर रीसर्च शामिल है. यदि भारत में बैटरी तकनीक पर अनुसंधान के लिए मज़बूत तंत्र उपलब्ध होगा, तो वह इस विशिष्ट अवसर का उपयोग कर इस क्षेत्र में आगे निकल सकता है, क्योंकि विश्व की कई अर्थव्यवस्थाएं अब इस क्षेत्र में निवेश की इच्छुक हैं. ऐसा कर, भारत पुरानी तकनीक के एक पूरे चरण को लांघ कर सीधे ‘नई-बैटरी तकनीकों’ के दौर में पहुंच सकता है और रणनीतिक रूप से बैटरी आयात पर अपनी निर्भरता और आपूर्ति से जुड़े जोखिमों को कम कर सकता है.

उद्योग और प्रयोगशालाओं के बीच की दूरी को कम करने से बैटरी के व्यावसायिक निर्माण की संभावनाएं बढ़ेंगी और भारत तेज़ी से इस क्षेत्र में काम शुरु कर पाएगा. भारत सरकार, बैटरी प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करने वाले अनुसंधान संस्थानों को उद्यम निधि या उच्च जोखिम वाले वित्तपोषण की पेशकश कर सकती है, जो इन संस्थानों और संगठनों को नई तकनीकों और इनोवेशन के व्यावसायिकरण के लिए सक्षम बनाएगी. सोडियम-आयन बैटरी तकनीक इसका एक उदाहरण हो सकती है, जिसका प्रदर्शन ली-आयन बैटरी के करीब है, और सोडियम-आयन बैटरी के लिए कच्चा माल स्थानीय स्तर पर जुटाया जा सकता है, जिसके चलते लागत भी कम हो सकती है.

बैटरी विनिर्माण उद्योग में सफल होने के लिए, भारत को दुर्लभ तत्वों के अपने भंडारों का तत्काल पता लगाना होगा. साथ ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों से दुर्लभ तत्वों की आपूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए भारत को इन देशों के साथ या तो ख़रीद संबंधी दीर्घकालिक अनुबंध करने होंगे

बैटरी उत्पादन बढ़ने के साथ, बैटरी के कचरे के निपटान संबंधी ज़रूरतें भी पैदा होती हैं. बैटरी कचरे का गलत निपटान एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या पैदा कर सकता है, इसलिए इससे जुड़े सवालों को संबोधित करना भी ज़रूरी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत में बैटरी रीसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) उद्योग एक मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिससे इस क्षेत्र में भी कई मीलियन डॉलर के नए अवसर पैदा हो सकते हैं. इस संबंध में औद्योगिक स्तर पर रीसाइक्लिंग फिलहाल यूरोपीय संघ और चीन द्वारा ही की जाती है, लेकिन यह बाज़ार फिलहाल अपने शुरुआती चरण में है और इसमें नए खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त संभावनाएं हैं. आयात को कम करने और बैटरी विनिर्माण में टिकाऊ होने के लिए, बैटरी रीसाइक्लिंग क्षेत्र में निवेश करना भी ज़रूरी होगा. रीसाइक्लिंग के ज़रिए दुर्लभ खनिजों और तत्वों को प्राप्त करने से आयात पर निर्भरता भी कम होगी. कुलमिलाकर एक ऐसे आत्मनिर्भर और सक्षम ढांचे की आवश्यकता है, जहां बैटरी रीसाइक्लिंग, नए उद्यमों की शुरुआत करने वाले निर्माताओं और कच्चा माल उपलब्ध कराने वाले स्रोतों की एक चक्रीय (सर्कुलर) अर्थव्यवस्था कायम हो. यह ज़रूरी है कि इस चक्र में मौजूद सभी कारक आने वाले वर्षों में रीसाइक्लिंग पर ध्यान केंद्रित कर बैटरी उद्योग के विकास की ओर अग्रसर हों.

यदि भारत में बैटरी तकनीक पर अनुसंधान के लिए मज़बूत तंत्र उपलब्ध होगा, तो वह इस विशिष्ट अवसर का उपयोग कर इस क्षेत्र में आगे निकल सकता है, क्योंकि विश्व की कई अर्थव्यवस्थाएं अब इस क्षेत्र में निवेश की इच्छुक हैं.

भारत सरकार ने ‘आत्मानिर्भर भारत’ योजना के तहत घरेलू उद्योग को नए सिरे से समर्थन देने और भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने प्रयासों को तेज़ किया है. भारत सरकार ने हाल ही में बैटरी भंडारण से जुड़े क्षेत्र को भी ‘चैंपियन सेक्टर’ भी घोषित किया है. इन प्रयासों के साथ-साथ, सरकार को बैटरी क्षेत्र से जुड़े अन्य कारकों जैसे- बिजली क्षेत्र, नई ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र, सड़क परिवहन, विज्ञान एवं तकनीक विभाग, विदेश-मामले, भारी उद्योग, खनन व पर्यावरण और वन व जलवायु परिवर्तन क्षेत्र से जुड़े विभागों और मंत्रालयों के साथ मिलकर बैटरी क्षेत्र के भविष्य के लिए एक रोडमैप बनाना होगा. इस व्यापक और विस्तृत योजना का मकसद सभी विभागों और मंत्रालयों के मिलेजुले प्रयासों से बैटरी क्षेत्र का सर्वांगीण विकास होगा क्योंकि यह सभी इस क्षेत्र की सफलता के लिए किसी न किसी पहलू को नियंत्रित करेंगे. इलेक्ट्रिक वाहन और अक्षय ऊर्जा क्षेत्रों में हो रहे विकास के साथ, भारत के लिए यह ज़रूरी है कि वो एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करे जिसके तहत घरेलू स्तर पर, स्वदेशी के बैनर तले बैटरी निर्माण उद्योग स्थापित किया जा सके. भारत अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तेल, सौर ऊर्जा संबंधी पीवी उपकरणों और अब बैटरी के आयात पर निर्भर रहा है. इसने भारत को बड़ी तादाद में पूंजीगत व्यय की ओर धकेला है. साथ ही विपरीत वैश्विक परिस्थितियों और तनावपूर्ण भू-राजनीतिक संबंधों ने अब आपूर्ति श्रृंखलाओं को जोखिम भरा बना दिया है. ऐसे में एक वैकल्पिक तंत्र की स्थापना ज़रूरी है, क्योंकि भारत अब बैटरी क्षेत्र में अपनी गाड़ी को पटरी से उतरने देने का जोखिम नहीं उठा सकता. कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था कायम करने की दिशा में बैटरी क्षेत्र का विकास एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसके विस्तार की दिशा में काम करना ज़रूरी है.

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