म्यांमार इन दिनों संघर्ष और हिंसा में घिरा हुआ है. पिछले साल अक्टूबर में जातीय हथियारबंद संगठनों अराकान आर्मी, म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी और तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी के बीच बने थ्री ब्रदरहुड अलायंस की तरफ से चलाए गए ऑपरेशन 1027 ने समीकरण में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिया है. 2021 के सैन्य विद्रोह से अब तक टकराव में लगभग 67 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है क्योंकि विरोध करने वाले संगठनों ने सेना को सत्ता से हटाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं.
इस बदलते हालात में सेना का विरोध करने वाले संगठनों ने उल्लेखनीय ताकत का प्रदर्शन किया है. उन्होंने काफी बड़े हिस्से पर बढ़त बनाई है, अनेकों सफलता हासिल की है और अपने गठबंधन में शामिल होने के लिए दूसरे जातीय हथियारबंद समूहों (EAO) को आकर्षित किया है. इसकी वजह से सैन्य सत्ता पर दबाव बढ़ गया है. ध्यान देने की बात है कि 11 अप्रैल को व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र म्यावाड्डी पर विरोधी संगठनों का कब्ज़ा और उसके बाद अप्रैल के अंत में सैन्य बलों का उस पर फिर से नियंत्रण इस संघर्ष के बदलते स्वरूप के बारे में बताता है.
2021 के सैन्य विद्रोह से अब तक टकराव में लगभग 67 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है क्योंकि विरोध करने वाले संगठनों ने सेना को सत्ता से हटाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं.
थाईलैंड के मे सोट सीमा पर म्यांमार के केयिन/करेन प्रांत में स्थित म्यावाड्डी बहुत ज़्यादा सांकेतिक और रणनीतिक महत्व रखता है. अपने छोटे आकार के बावजूद ये हर साल 1 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा के सीमा पार व्यापार की सुविधा देता है. म्यावाड्डी पर नियंत्रण की वजह से सैन्य सरकार को थाईलैंड के साथ व्यापार का बड़ा हिस्सा मिलता है.
अपने वाणिज्यिक महत्व के अलावा म्यावाड्डी म्यांमार में सैन्य शासन का विरोध करने वाले अलग-अलग जातीय और लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों के लिए एक केंद्र बिंदु के रूप में काम करता है. म्यावाड्डी की रणनीतिक स्थिति ने उसे देश के भीतर बदलाव और स्वायत्तता की वकालत करने वालों के लिए एक मिलने-जुलने की जगह बना दिया है.
हथियारबंद गुटों का बदलता समीकरण
करेन, जिनकी संख्या म्यांमार की 5.8 करोड़ की आबादी में लगभग 7 प्रतिशत है, देश का तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है. सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों की तरह करेन ने भी लगातार म्यांमार की केंद्र सरकार से अधिक स्वायत्तता की वकालत की. सैन्य बलों ने करेन समुदाय को हाशिए पर रखा और उनके मानवाधिकार का उल्लंघन किया. इस वजह से थाईलैंड की तरफ बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ. थाईलैंड में बने नौ रिफ्यूजी कैंपों में रहने वाले म्यांमार के लगभग 90,000 शरणार्थियों में से एक बड़ा हिस्सा करेन समुदाय के लोगों का है जो पिछले संघर्षों के दौरान देश छोड़कर भागे थे.
करेन नेशनल यूनियन (KNU) और उसका सशस्त्र गुट करेन नेशनल लिबरेशन आर्मी (KNLA) जातीय करेन समुदाय की तरफ से सैन्य शासन के ख़िलाफ़ 74 साल पुराने संघर्ष में शामिल रही है. ये संगठन 2021 के सैन्य विद्रोह का विरोध करने वाले शुरुआती बागी गुटों में से हैं. सत्ता पर सेना के कब्ज़े के कुछ ही समय के बाद KNU ने पहले के एक युद्धविराम समझौते को रद्द कर दिया और पूरे दक्षिण-पूर्व म्यांमार में सेना की चौकियों पर हमला करने की अपील की. KNU का नेतृत्व दावा करता है कि उसने अलग-अलग जातीय पृष्ठभूमि के कई विद्रोहियों को हथियार मुहैया कराए और ट्रेनिंग दी. सैन्य विद्रोह के समय से KNLA ने अपने साथ 10,000 से ज़्यादा सैनिकों को जोड़ लिया है.
इन संगठनों ने अप्रैल की शुरुआत से म्यावाड्डी शहर को निशाना बनाया और इसका अंत 11 अप्रैल को आख़िरी सैन्य चौकी पर KNLA के कब्ज़े से हुआ. 19 अप्रैल को KNLA के द्वारा ड्रोन की मदद से हमला किया गया और उसके बाद 20 अप्रैल को म्यावाड्डी पर पूरी तरह नियंत्रण के लिए हमलों में बढ़ोतरी हुई. उधर सैन्य सरकार ने म्यावाड्डी पर फिर से कब्ज़ा करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ऑपरेशन ऑन्ग ज़ेया के तहत हवाई हमले किए.
सैन्य सरकार ने करेन नेशनल आर्मी (KNA) की मदद से 24 अप्रैल को म्यावाड्डी पर फिर से कब्ज़े का ऐलान किया. इसकी वजह से KNA की वफादारी को लेकर सवाल उठने लगे. कायिन/करेन प्रांत में बॉर्डर गार्ड फोर्स की यूनिट ने पिछले दिनों सेना के साथ संपर्क तोड़ लिया और अपना नाम बदलकर KNA रख लिया. इस तरह लगा कि वो मौजूदा लड़ाई में जातीय सशस्त्र संगठनों के साथ शामिल हो गई है.
ध्यान देने की बात है कि थाईलैंड-म्यांमार की सीमा पर स्थित श्वे कोक्को, जिसे 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' का दर्जा दिया गया है, जुए और घोटालों के एक केंद्र के रूप में बदल गया है.
KNA की शुरुआत 2010 में KNLA के एक गुट से हुई थी और सॉ चिट थू के नेतृत्व में ये बॉर्डर गार्ड फोर्स के नाम से जानी जाती थी. मानव तस्करी में इसकी भागीदारी की वजह से इस पर ब्रिटेन ने पाबंदी लगा रखी है. म्यावाड्डी में सॉ चिट थू के व्यापक व्यावसायिक हितों, जिनमें जुआ और धोखाधड़ी की गतिविधियां शामिल हैं, के कारण हालात और जटिल होते हैं. ध्यान देने की बात है कि थाईलैंड-म्यांमार की सीमा पर स्थित श्वे कोक्को, जिसे 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' का दर्जा दिया गया है, जुए और घोटालों के एक केंद्र के रूप में बदल गया है. ख़बरों के मुताबिक KNA इन गतिविधियों से हर साल 19 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमा रही है.
म्यांमार के सैन्य शासकों के साथ चिट थू के संबंध का पता नवंबर 2022 में सैन्य शासन के जनरल से उनके द्वारा मानद उपाधि प्राप्त करने से पता चलता है. ये सम्मान और आर्थिक हित एक-दूसरे से मिले हुए हैं और संभवत: इसी ने मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल के बीच KNA के सैन्य शासन से जुड़ने के फैसले को प्रभावित किया है. सीमावर्ती क्षेत्र की संवेदनशील स्थिति लंबे समय से चल रहे संघर्ष को लेकर चिंता बढ़ाती है जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर अनिश्चितता पैदा होती है.
विस्थापन की चुनौतियां
मौजूदा संघर्ष की वजह से नागरिकों का विस्थापन पड़ोसी देशों में हो रहा है. म्यांमार के कायिन/करेन प्रांत के हज़ारों लोगों को सैन्य सरकार और जातीय करेन टुकड़ियों के बीच बढ़ते टकराव की वजह से थाईलैंड में शरण लेना पड़ा है. 20 अप्रैल को थाईलैंड में म्यांमार से लगभग 3,000 लोग आए. संघर्ष कम होने के बाद शरण लेने वाले लोगों की संख्या में कुछ हद तक कमी आई है लेकिन भविष्य में शरणार्थियों की तादाद बढ़ने की आशंका है. इसके अलावा म्यांमार की अनिवार्य सैनिक सेवा के कानून के कारण हज़ारों युवाओं को पड़ोसी देश में जाना पड़ रहा है.
मार्च में थाई सरकार ने गृह युद्ध से प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए एक मानवीय कॉरिडोर की शुरुआत की. 1,38,000 अमेरिकी डॉलर की कीमत की सहायता, जिसमें मुख्य रूप से खाद्य, इंस्टेंट बेवरेज (तुरंत पेय पदार्थ) और टॉयलेटरीज़ (साबुन, टूथपेस्ट, तेल, इत्यादि) शामिल थे, कायिन/करेन प्रांत में बांटी गई. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के मुताबिक म्यांमार में 28 लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों ने सेना के कब्ज़े से शुरू हुई लड़ाई के बाद अपना घर-बार छोड़ा है. थाई अधिकारी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि आपदा प्रबंधन पर मानवीय सहायता के लिए आसियान समन्वय केंद्र सहायता बांटने की प्रक्रिया पर निगरानी रखेगा ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आसियान की शांति योजना के एक हिस्से के रूप में सभी लोगों तक बराबर और पक्षपात रहित राहत सामग्री पहुंचाई जा सके. हालांकि कई क्षेत्रों से ये आशंका है कि सैन्य सरकार अपने नियंत्रण वाले प्रदेशों तक ही पूरी राहत सामग्री पहुंचाने के लिए इस प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ कर सकती है.
पूरे घटनाक्रम को लेकर अवगत रहने के लिए थाईलैंड के प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन ने एक समिति और एक उप समिति बनाई है जिनका नेतृत्व उनके पास है. इन समितियों में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, विदेश मंत्रालय और अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल हैं. समिति से जुड़े लोगों ने स्थिति की समीक्षा के लिए 22 अप्रैल को मे सोत का दौरा किया. प्रधानमंत्री ने म्यांमार की लड़ाई के थाई हवाई क्षेत्र तक फैलने को लेकर चिंता जताई है.
अप्रैल की शुरुआत में थाईलैंड ने म्यांमार से शरण लेने के उद्देश्य से आने वाले 1,00,000 लोगों के स्वागत के लिए अपनी तैयारी का एलान किया था, ये योजना भी थी कि अगर विस्थापन जारी रहता है तो और शरणार्थियों को आने दिया जाएगा. म्यांमार से भागने वाले लोगों को शरण देने के लिए थाईलैंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में शिविरों की स्थापना की गई. हालांकि उनके रहने की अवधि और राष्ट्रीय निगरानी तंत्र (नेशनल स्क्रीनिंग मेकेनिज़्म) के तहत ‘संरक्षित लोगों’ के दर्जे के लिए योग्यता का विवरण अनिश्चित बना हुआ है.
शरणार्थियों के आने को लेकर थाईलैंड की प्रतिक्रिया तात्कालिक चुनौतियों और दीर्घकालिक असर- दोनों की समझ के बारे में बताना चाहिए. अगर आने वाले वर्षों में स्थिति अस्थिर बनी रहती है तो शरणार्थियों के लिए सामाजिक एकीकरण, आर्थिक अवसर और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की सख्त ज़रूरत होगी. इसके अलावा सीमा पार सुरक्षा ख़तरों का समाधान करने और क्षेत्रीय स्थिरता बरकरार रखने के लिए पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ तालमेल अनिवार्य होगा.
अगर आने वाले वर्षों में स्थिति अस्थिर बनी रहती है तो शरणार्थियों के लिए सामाजिक एकीकरण, आर्थिक अवसर और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की सख्त ज़रूरत होगी.
लाओस के आसियान का अध्यक्ष होने की वजह से थाईलैंड ने उसे ये प्रस्ताव दिया है कि म्यांमार संकट को हल करने के मक़सद से एक बैठक की मेज़बानी करने की संभावना का पता लगाए. आसियान की पांच बिंदु की सर्वसम्मति इस स्थिति का समाधान करने में शांतिपूर्ण संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक रूप-रेखा प्रदान करती है. हालांकि व्यावहारिक समाधान के लिए सैन्य सरकार और अन्य प्रमुख किरदारों समेत सभी हितधारकों की भागीदारी की ज़रूरत होती है. लेकिन इस बात को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है. मौजूदा अध्यक्ष के तौर पर एक अलग दिशा की तरफ ले जाने में लाओस की भूमिका तय होना बाकी है.
म्यांमार की स्थिति को लेकर उचित प्रतिक्रिया के मामले में आसियान संगठन के भीतर मूलभूत बंटवारा मौजूद है. कुछ देश जहां सैन्य सरकार को पूरी तरह जवाबदेह ठहराने और शांति की योजना का पालन करने तक म्यांमार को आसियान से बाहर करने की वकालत करते हैं, वहीं थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया जैसे देश म्यांमार को अपनी सदस्यता बरकरार रखने की अनुमति देते हुए “सैन्य सरकार को स्वीकार्य” बताते हैं.
थाईलैंड इस संकट के अलग-अलग पहलुओं के स्वरूप को स्वीकार करता है और वो मानवीय सिद्धांतों को बनाए रखने और सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. लगातार घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कोशिशों की ज़रूरत को स्वीकार कर थाईलैंड रिफ्यूजी संकट का समाधान करने और अपने देश एवं इस क्षेत्र में संकट के असर को कम करने के लिए सक्रिय उपाय कर रहा है. हालांकि इन प्रयासों के प्रभावों को देखा जाना अभी भी बाकी है.
श्रीपर्णा बनर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.
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