Published on Oct 31, 2022 Updated 0 Hours ago

शी की अगुवाई में चीन ने अपनी समस्याओं पर क़ाबू पाना सीख लिया है और ये उनका मज़बूत नेतृत्व है जिसकी बदौलत इस तरह के बदलाव आए हैं.

#China: CCP के अधिवेशन में ताइवान पर शी जिनपिंग के छोड़े शिगूफ़े दुनिया को क्यों चिंतित कर सकते हैं!

पिछले दिनों चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के राष्ट्रीय अधिवेशन (National Congress) में शी जिनपिंग को तीसरी बार देश का राष्ट्रपति और पार्टी महासचिव चुना गया. CCP में अपने वफ़ादारों के सामने तक़रीबन एक घंटा 45 मिनट के संबोधन के ज़रिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अगले पांच वर्षों के लिए पार्टी का नीतिगत खाका खींच दिया.  

CCP का नेतृत्व तय करने वाला ये अधिवेशन इस साल चीनी अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव के साए में संपन्न हुआ. देश की अर्थव्यवस्था के अहम घटक जैसे- रियल एस्टेट, विनिर्माण और रिटेल क्षेत्र भारी मुसीबतों से घिरे हैं. मुश्किलों भरे ताज़ा हालात कोविड-19 के चलते लगी पाबंदियों और पिछले कुछ अर्से में लागू किए गए नीतिगत बदलावों का नतीजा हैं. अक्टूबर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी वर्ल्ड इकॉनोमिक आउटलुक में इस साल चीन की GDP में 3.2 फ़ीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान जताया गया है. इसके विपरीत भारत और आसियान-5 के देशों में क्रमश: 6.8 प्रतिशत और 5.3 प्रतिशत की विकास दर का पूर्वानुमान लगाया गया है. चीन में कोविड-19 महामारी के चलते लागू पाबंदियों के ख़िलाफ़ छिटपुट विरोध-प्रदर्शन होते रहे हैं. एक और चिंता अमेरिका के साथ चीन के रिश्तों को लेकर है. दरअसल रूस के साथ चीन के क़रीबी रिश्तों, यूक्रेन में रूसी आक्रामकता की निंदा करने से चीन के इनकार और ताइवान पर चढ़ाई की धमकियों की वजह से अमेरिका के साथ चीन के संबंधों में बिगाड़ आ गया है. ऐसी तमाम चिंताएं और 2012 में सत्ता संभालने के बाद से अबतक हासिल की गई “उपलब्धियों” की गूंज शी के भाषण में सुनाई दी. 2021 में चीन की सरकार ने 10 करोड़ लोगों को ग़रीबी के दलदल से बाहर निकालने का एलान किया. शी ने इस कारनामे को अपनी बड़ी जीत बताकर इसका पुरज़ोर बखान किया. हॉन्गकॉन्ग के मसले पर राष्ट्रपति शी ने संतोष जताते हुए कहा कि अब इस द्वीप की कमान “देशभक्त” लोगों के हाथों में है और राष्ट्र का सम्मान ऊंचा रखने के लिए वहां का राजनयिक कुनबा बेहतरीन काम कर रहा है. 

चीन में कोविड-19 महामारी के चलते लागू पाबंदियों के ख़िलाफ़ छिटपुट विरोध-प्रदर्शन होते रहे हैं. एक और चिंता अमेरिका के साथ चीन के रिश्तों को लेकर है. दरअसल रूस के साथ चीन के क़रीबी रिश्तों, यूक्रेन में रूसी आक्रामकता की निंदा करने से चीन के इनकार और ताइवान पर चढ़ाई की धमकियों की वजह से अमेरिका के साथ चीन के संबंधों में बिगाड़ आ गया है.

कोविड-19 से निपटने के लिए चीन ने अपने शहरों की बाड़ेबंदी कर वहां की पूरी आबादी की टेस्टिंग का काम शुरू कर दिया. इससे वहां के लोगों के मन में कुछ हद तक असंतोष का भाव आ गया. CCP के अधिवेशन से पहले चीन के एपिडेमिक रिस्पॉन्स एंड डिस्पोज़ल लीडिंग ग्रुप (राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के मातहत काम करने वाली समिति) के मुखिया लियांग वानियन ने सरकारी प्रसारण संस्था को एक इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने स्वीकार किया कि लोग महामारी के पहले वाली ज़िंदगी की ओर लौटने की उम्मीद कर रहे थे, हालांकि उन्होंने ये भी माना कि फ़िलहाल इस मुसीबत से बाहर निकलने की कोई रणनीति मौजूद नहीं है. महामारी की आमद के बाद से लेकर अबतक चीन में कोविड के तक़रीबन 10 लाख मामले सामने आए हैं. ये संख्या चीन की आबादी का 0.07 प्रतिशत है. चीनी स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक पश्चिमी देशों की तुलना में चीन में कोविड संक्रमण की दर और वायरस से जान गंवाने वालों की तादाद (लगभग 5,200)- दोनों कम है. हालांकि लियांग ने डर जताया है कि इलाज के बेहतर साधनों के अभाव में मौजूदा नीति को अचानक हटाए जाने से पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा सकती है, जिसके चलते और ज़्यादा लोगों की जान जा सकती है. अक्टूबर के मध्य तक चीन की तक़रीबन 90 फ़ीसदी आबादी को कोविड टीके के सारे डोज़ लग चुके थे. अक्टूबर की शुरुआत तक 60 साल से ज़्यादा उम्र वाले समूह के तक़रीबन 86.3 प्रतिशत हिस्से का टीकाकरण पूरा हो चुका था. 

बेरोज़गारी और ग़रीबी

ग़ौरतलब है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी आपदा को अवसर में बदलने में ख़ास दिलचस्पी रखती है. इसी अंदाज़ को बरक़रार रखते हुए राष्ट्रपति शी ने चीन की ज़ीरो कोविड-19 नीति को नागरिकों की जान की हिफ़ाज़त को प्राथमिकता देने का जामा पहनाकर ख़ूब प्रचारित किया. CCP के मुखपत्र पीपुल्स डेली में छपे एक ताज़ा लेख में ज़ीरो कोविड-19 नीति को बरक़रार रखने के फ़ैसले को जायज़ क़रार दिया गया है. लेख में दुनिया के कुछ देशों के रुख़ की निंदा करते हुए कहा गया है कि इन देशों ने बड़ी तादाद में लोगों की जान जाने के बावजूद “वायरस के साथ जीने का विकल्प चुना है”, इसके विपरीत चीन ने अपने रुख़ से ज़िंदगियां बचाई हैं, भले ही इसके चलते उसे आर्थिक नुक़सान सहना पड़ा है. 

हालांकि, नज़दीकी विश्लेषण से शी की कामयाबियों के इर्द गिर्द रचा गया तिलिस्म उतरता दिखाई देता है. ज़ीरो कोविड रणनीति के चलते अचानक लगाए गए लॉकडाउनों से ग़रीब तबक़े पर मार पड़ी है. इससे चीन के ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से हासिल उपलब्धियों पर पानी फिर जाने का ख़तरा भी पैदा हो गया है. ग़ौरतलब है कि CCP ने “मानवीय इतिहास में पहले कभी ना हासिल हुई कामयाबी” के तौर पर इन उपलब्धियों का ख़ूब प्रचार किया है. हाल ही में जिलिन प्रांत के अधिकारियों ने निम्न-आय वाले परिवारों और निवासियों को 200 युआन (31.5 अमेरिकी डॉलर) की मदद पहुंचाना शुरू किया है. इसके साथ उन्हें सब्ज़ियां और कुछ मेडिकल सामग्रियां भी मुहैया कराई जा रही हैं. 

2022 में चीन में 1 करोड़ से भी ज़्यादा छात्र ग्रेजुएशन पूरी करेंगे. ऐसे में नौकरियों के लिए मारामारी और तेज़ होने की आशंका है. इससे बेरोज़गारी की समस्या और विकराल हो सकती है, जिसका दीर्घकाल में चीन के विकास पर असर पड़ सकता है

2022 में चीन में 1 करोड़ से भी ज़्यादा छात्र ग्रेजुएशन पूरी करेंगे. ऐसे में नौकरियों के लिए मारामारी और तेज़ होने की आशंका है. इससे बेरोज़गारी की समस्या और विकराल हो सकती है, जिसका दीर्घकाल में चीन के विकास पर असर पड़ सकता है. पेकिंग यूनिवर्सिटी के शिक्षाविदों द्वारा किए गए एक अध्ययन से जुटाई जानकारियों से ख़ुलासा हुआ है कि महामारी की रोकथाम के मौजूदा उपायों के तहत चीन की बेरोज़गारी दर 2020 के स्तरों तक पहुंच सकती थी. शोध का आकलन है कि 2020 के मध्य तक चीन में बेरोज़गार लोगों की आबादी 9.2 करोड़ रही होगी, जो वहां की कामगार आबादी का तक़रीबन 12 प्रतिशत है. सरकारी मीडिया ने महामारी से जंग के अभियान में शी को अगुवा के तौर पर पेश किया है. इसने उन्हें चीन में कोविड-19 से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों के साथ क़रीब से जोड़ दिया है. लिहाज़ा CCP के अधिवेशन के फ़ौरन बाद इस मोर्चे पर कोई राहत दिए जाने से चीन के मौजूदा सख़्त रुख (जिसका लक्ष्य लोगों की ज़िंदगी और स्वास्थ्य को ऊपर रखना है) पर सवालिया निशान खड़े हो जाएंगे. 

भविष्य के गर्भ में क्या है?

ताइवान के मसले पर राष्ट्रपति शी की ओर से किए गए एलानों पर श्रोताओं ने ज़ोरदार तालियां बजाईं. शायद इसी से संकेत मिलते हैं आने वाले वक़्त में इस समुद्री इलाक़े के साथ चीन के रिश्तों और अमेरिका-चीन संबंधों की दशादिशा क्या रहने वाली है. शी ने पार्टी और जनता को भरोसा दिया कि वो अलगाववादी ताक़तों से निपटने और द्वीप में विदेशी दख़लंदाज़ियों से जुड़ी चुनौतियों का जवाब देने को तैयार हैं. अगस्त में अमेरिकी हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद CCP अपने आक्रामक रुख़ की बानगी दिखा चुका है. दरअसल अमेरिकी और ताइवानी नेताओं के बीच विस्तृत होते संपर्कों को चीन अपनी संप्रभुता का बड़ा उल्लंघन मानता है. वो इसे अपने वन-चाइना नज़रिए से भटकाव के तौर पर देखता है. इसी धारणा पर अमल करते हुए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने एक बड़ा सैन्य अभ्यास किया. आंशिक घेरेबंदी के तौर पर अंजाम दिए गए इस अभ्यास के तहत चीन ने ताइवान की खाड़ी में असल रूप में उभरी मध्य रेखा के आर-पार नियमित अंतराल पर युद्धपोत और लड़ाकू विमानों की आवाजाही कराई. पार्टी अधिवेशन में अपने कामकाज का ब्योरा देते हुए शी ने ताइवान को शांतिपूर्वक एकीकृत करने के हर संभव प्रयास करने का वादा किया. हालांकि उन्होंने एक बार फिर ज़ोर देकर कहा कि ताइवान को अपने पाले में लाने के लिए ताक़त के इस्तेमाल का अधिकार भी पार्टी के पास बरक़रार है. इसके साथ ही शी ने चीन के संपूर्ण एकीकरण का वादा दोहराते हुए इसके जल्द साकार होने की बात भी कह दी. उन्होंने कहा कि चीनी फ़ौज दुनिया की अव्वल जंगी मशीन बनने की क़वायद को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है और उसमें क्षेत्रीय युद्ध जीतने की क़ाबिलियत मौजूद है. PLA से अपनी ताक़त बढ़ाने की हुंकार भरकर और ताइवान के मसले पर तमाम तरह के शिगूफ़े छोड़कर शी ने ऐसी संभावना पेश कर दी है कि वो अपने तीसरे कार्यकाल में ताइवान के मसले को गरम रखने वाले हैं. निश्चित रूप से ये घटनाक्रम विश्व बिरादरी के लिए चिंता का सबब है. 

शी के संबोधन में तकनीकी मोर्चे पर राष्ट्रवाद का मसला भी उभरकर सामने आया. दरअसल CCP के अधिवेशन से ऐन पहले बाइडेन प्रशासन ने उन दो प्रमुख कारकों पर नकेल कस दिया जिनका चीन के उभार में रोल रहा है. ये हैं- पूंजी और प्रौद्योगिकी. ताज़ा अमेरिकी क़वायद से महंगे और अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर्स (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में इन्हीं का रोल होता है) तक चीन की पहुंच में और ज़्यादा अड़चनें आ गई हैं. इसके अलावा अमेरिकी सरकार ने और ज़्यादा कंपनियों को अपनी काली सूची में डाल दिया है. लिहाज़ा अमेरिकी नागरिकों द्वारा इनमें निवेश पर पाबंदी लग गई है. अपने संबोधन में शी ने अंतरिक्ष अनुसंधान, परमाणु प्रौद्योगिकी, महासागरीय शोध और मेडिकल के क्षेत्र के चीन के वैज्ञानिक विकास का कई बार ज़िक्र किया. 2021 में शोध और विकास के क्षेत्र में चीन ने रिकॉर्ड 2.79 खरब युआन (388 अरब अमेरिकी डॉलर) की रकम ख़र्च की, जो 2020 के मुक़ाबले 14 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है. बाइडेन प्रशासन की कार्रवाइयों के जवाब में ही शी ने प्रौद्योगिकीय दायरे में चीन की ओर से और ज़्यादा नवाचार और आत्मनिर्भरता भरी क़वायादों पर जोर दिया है. 

सौ बात की एक बात ये है कि शी ने भविष्य को अवसरों और ख़तरों से भरे कालखंड के तौर पर पेश किया. उनकी ओर से दी गई चेतावनियों से यही बात ज़ाहिर होती है. उन्होंने दो टूक अंदाज़ में कहा कि “विदेशी ताक़तें” चीन को “ब्लैकमेल करने, उसपर नकेल कसने और उसकी रफ़्तार रोकने” की कोशिश कर सकती हैं. इसके पीछे की मंशा साफ़ है- शी की अगुवाई में चीन ने अपनी समस्याओं पर क़ाबू पाना सीख लिया है और ये उनका मज़बूत नेतृत्व है जिसकी बदौलत इस तरह के बदलाव आए हैं. हालांकि एक पहलू जिसको शी ने नज़रअंदाज़ कर दिया वो है अपने उत्तराधिकारी का नाम तय करना. चीन जैसे विशाल देश में सियासी विरासत की एक स्पष्ट रेखा की दरकार होती है. इस मसले में किसी तरह के खालीपन से राजनीतिक तनाव का ख़तरा रहता है.

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Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...

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