चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन, जिसमें पार्टी के नेतृत्व के बारे में फ़ैसला होगा, से एक महीने से भी कम समय पहले भ्रष्टाचार विरोधी छानबीन तेज़ हो गई है. क़ानून लागू करने वाले या सुरक्षा विभाग से जुड़े छह वरिष्ठ अधिकारियों को न्यायिक सज़ा मिली है.
सरकार के विरुद्ध और इस ‘राजनीतिक गुटबंदी’ के केंद्र में हैं सार्वजनिक सुरक्षा के मामलों के पूर्व उप मंत्री सुन लिजुन जिन्हें कुछ समय की राहत के साथ मौत की सज़ा मिली है. पूर्व न्याय मंत्री फू झेंगुआ और जियांगसू प्रांत के राजनीतिक एवं क़ानूनी मामलों के प्रमुख वांग लाइक को भी कुछ समय के लिए रोक के साथ मौत की सज़ा मिली है.
सरकार के विरुद्ध और इस ‘राजनीतिक गुटबंदी’ के केंद्र में हैं सार्वजनिक सुरक्षा के मामलों के पूर्व उप मंत्री सुन लिजुन जिन्हें कुछ समय की राहत के साथ मौत की सज़ा मिली है. पूर्व न्याय मंत्री फू झेंगुआ और जियांगसू प्रांत के राजनीतिक एवं क़ानूनी मामलों के प्रमुख वांग लाइक को भी कुछ समय के लिए रोक के साथ मौत की सज़ा मिली है. चीन के मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ सुन लिजुन ने पिछले दो दशकों के दौरान भ्रष्ट लेन-देन के ज़रिए 92 मिलियन अमेरिकी डॉलर जमा किए हैं जबकि फू और वांग ने रिश्वतखोरी से क्रमश: 16 मिलियन अमेरिकी डॉलर और 62 मिलियन अमेरिकी डॉलर इकट्ठा किए हैं. शंघाई, चोंगकिंग और शान्सी प्रांत के पूर्व पुलिस प्रमुख- गोंग दाओआन, डेंग हुइलिन और लियू शिनयून- भ्रष्टाचार और सुन लिजुन के साथ संबंधों की वजह से एक दशक से ज़्यादा जेल की सज़ा काटेंगे. एक बार फिर से बताना ज़रूरी है कि ये एक सामान्य वित्तीय गड़बड़ी का मामला नहीं है क्योंकि सुन पर राजनीतिक सुरक्षा को जोख़िम में डालने का आरोप है. लगता है कि ये चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की “सत्ता को चुनौती” देने के संबंध में पार्टी की शब्दावली है.
सुन लिजुन और फू झेंगुआ सुरक्षा व्यवस्था में कम्युनिस्ट पार्टी के कोई साधारण सदस्य नहीं हैं. सुन को 2018 में सार्वजनिक सुरक्षा का उपमंत्री बनाया गया था और उन्होंने इस मंत्रालय के ‘फर्स्ट ब्यूरो’ में काम किया था जो कि हॉन्ग कॉन्ग और मकाऊ समेत चीन की घरेलू सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है. सुन उस उच्च-स्तरीय दल का हिस्सा थे जिसे CCP नेतृत्व के द्वारा फरवरी 2020 में कोविड-19 के प्रकोप की रोकथाम में मदद के लिए वुहान भेजा गया था. वहीं फू राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को चला रहे थे और ये उनकी ही छानबीन थी जिसकी वजह से सुरक्षा से जुड़े एक और प्रमुख शख़्स और पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के पूर्व सदस्य झाऊ योंगकांग की मुश्किलों में बढ़ोतरी हुई. झाऊ के ख़िलाफ़ जांच सत्ताधारी पार्टी के एक सदस्य के ख़िलाफ़ इस तरह की पहली छानबीन थी और इसके कारण पार्टी की स्थापित परंपरा टूटी थी.
CCP के भीतर बड़े नेता शी जिनपिंग के नेतृत्व और उनकी महत्वाकांक्षा को लेकर बंटे हुए हैं. लेखक ने नीति निर्माताओं से अनुरोध किया है कि वो शी जिनपिंग एवं उनकी अंदरुनी मंडली के बीच मतभेदों पर पूरी तरह ध्यान दें और उनके बर्ताव को बदलने की कोशिश करें.
अफ़वाहों के केंद्र में शी जिनपिंग
लेकिन ये बहुत महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा संस्थानों से जुड़ी इन बड़ी हस्तियों को सज़ा मिलने के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर ये अटकलें तेज़ थीं कि “सैन्य विद्रोह” में शी जिनपिंग को उनके पद से हटा दिया गया है. इस बात को लेकर चर्चा बहुत ज़्यादा है कि ऐसी अफ़वाहों को फैलाने वाला कौन है. चूंकि सामरिक प्रतिस्पर्धा की पृष्ठभूमि में अमेरिका और चीन के बीच दुश्मनी बढ़ गई है, ऐसे में जानकार इस बात का अंदाज़ा लगा रहे हैं कि क्या गुपचुप ढंग से सत्ता में बदलाव की अफ़वाह चीन से मुक़ाबला करने की रणनीति हो सकती है. अटलांटिक काउंसिल ने चीन की सामरिक महत्वाकांक्षा की चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिका की रणनीति को लेकर ‘लॉन्गर टेलीग्राम’ शीर्षक से एक दस्तावेज़ प्रकाशित किया है. इसमें अनुमान लगाया गया है कि 21वीं शताब्दी में चीन की एकमात्र चुनौती शी-जिनपिंग के नेतृत्व में निरंकुश चीन का उदय है. एक अज्ञात वरिष्ठ अधिकारी, जिन्होंने पूरी तरह चीन के मामलों को लेकर काम किया है, के द्वारा लिखे गए लेख में ये दलील दी गई है कि, CCP के भीतर बड़े नेता शी जिनपिंग के नेतृत्व और उनकी महत्वाकांक्षा को लेकर बंटे हुए हैं. लेखक ने नीति निर्माताओं से अनुरोध किया है कि वो शी जिनपिंग एवं उनकी अंदरुनी मंडली के बीच मतभेदों पर पूरी तरह ध्यान दें और उनके बर्ताव को बदलने की कोशिश करें. इसका नतीजा उनकी सामरिक दिशा में बदलाव के रूप में आ सकता है या शी जिनपिंग को बदलकर एक ज़्यादा उदारवादी नेतृत्व को सत्ता सौंपी जा सकती है. अपनी किताब ‘चाइना कू’ में लेखक-राजनयिक रोजर गरसाइड दावे के साथ कहते हैं कि अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ मुक़ाबला करने और उसकी वजह से पलटवार की शी जिनपिंग की नीति से अलग विचार रखने वाले CCP के एक गुट को उन्हें हटाने में फ़ायदा दिख सकता है.
लेकिन क्या इस बात की कोई वजह है कि हमें “सैन्य विद्रोह” की अफ़वाह को लेकर सुराग़ के लिए चीन की सरकार के भीतर झांकना चाहिए? इस सवाल का जवाब शायद चीन में सुरक्षा संस्थान और तकनीक की बड़ी कंपनियों के बीच समीकरण में है. लुलु चेन की किताब ‘इन्फ्लुएंस एंपायर’ बताती है कि सुन लिजुन ने सार्वजनिक सुरक्षा का उप मंत्री होने के नाते CCP के सत्ता से जुड़े प्रमुख सदस्यों पर नज़र रखने के लिए तकनीक की बड़ी कंपनी टेनसेंट की मदद मांगी थी.[i] इसके बाद ख़बरें आईं कि टेनसेंट का एक अधिकारी जांच के दायरे में है क्योंकि उसने कथित तौर पर कंपनी के द्वारा इकट्ठा डाटा को बिना किसी इजाज़त के उस वक़्त सुन लिजुन को सौंप दिया जब उन्हें आरोपों के बाद पद से हटा दिया गया था. संयोग से टेनसेंट के संस्थापक मा हुआतेंग (जिन्हें पोनी मा के नाम से भी जाना जाता है) का CCP से उस समय से संबंध है जब वो चीन की राष्ट्रीय संसद- नेशनल पीपुल्स कांग्रेस- के प्रतिनिधि हुआ करते थे. एक विरोधी तकनीकी कंपनी ने टेनसेंट पर सुरक्षा संस्थान का इस्तेमाल स्कूल के एक शिक्षक को सज़ा देने के लिए करने का आरोप लगाया. उस स्कूल शिक्षक ने गेमिंग में टेनसेंट के हित के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी. लेकिन एक ऐसे देश में जहां राजनीतिक उत्तराधिकार एक बहुत ही गुप्त विषय और पूरी तरह से CCP का विशेषाधिकार है, वहां टेनसेंट के कर्मचारी एल्गोरिदम और डाटा का इस्तेमाल करके पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति- जो वास्तव में चीन की सत्ता पर नियंत्रण करती है- की संरचना के पूर्वानुमान की कवायद में लगे हुए थे.[ii] इस तरह चीन में बड़ी तकनीकी कंपनियों और सुरक्षा संस्थान के बीच गुप्त संबंध हो सकता है. वैसे तो टेनसेंट ने इस कोशिश में किसी भी तरह से शामिल होने से इनकार किया लेकिन ये सवाल पूछा जा सकता है कि क्या 2021 में चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियों पर CCP की कार्रवाई का संबंध इन शरारतों से है. एक बार फिर, CCP की ऐसी सोच लगती है कि कुछ तकनीकी कंपनियों ने ज़्यादा फ़ायदा हासिल किया है क्योंकि उनकी कुछ सेवाएं सार्वजनिक रूप से स्थायी बन गई हैं. इस बात की आशंका है कि ये तकनीकी कंपनियां CCP के सामने चुनौती पेश करने के लिए अपने असर का इस्तेमाल कर सकती हैं.
एक ऐसे देश में जहां राजनीतिक उत्तराधिकार एक बहुत ही गुप्त विषय और पूरी तरह से CCP का विशेषाधिकार है, वहां टेनसेंट के कर्मचारी एल्गोरिदम और डाटा का इस्तेमाल करके पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति- जो वास्तव में चीन की सत्ता पर नियंत्रण करती है- की संरचना के पूर्वानुमान की कवायद में लगे हुए थे
जनवरी 2022 में CCP के अख़बार ‘च्यूशी’ में अपने लेख में शी जिनपिंग ने ख़ुद इस तरह की सोच को स्पष्ट किया कि चीन के आर्थिक विस्तार ने सोशल मीडिया की कंपनियों को बदल दिया है लेकिन उन्होंने इस बात की हिदायत दी कि “ख़राब” ढंग से विकास ने आर्थिक और वित्तीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल दिया है. इस तरह के डर के बारे में शंघाई के फूदान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वू शिनवेन जैसे अकादमिक विद्वानों ने भी चिंता जताई है. शिनवेन ने चेतावनी दी है कि चीन के कारोबार से जुड़े प्रमुख लोगों ने काफ़ी ज़्यादा आर्थिक संपत्ति जुटा ली है और वो CCP से जुड़े कुछ तत्वों की सहायता से इसे राजनीतिक असर में तब्दील करने के लिए उत्सुक हैं.
भारतीय मीडिया की बड़ी भूल
संक्षेप में कहें तो विदेशी सोशल मीडिया में असर रखने वाले लोगों ने शुरू में अफ़वाह को बढ़ावा दिया. ये लोग पहले भी चीन के बारे में झूठे दावे कर चुके हैं. सोशल मीडिया पर अफ़वाह में तेज़ी और एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता के द्वारा इस तरह की अफ़वाह के बारे में ट्वीट करने का मतलब ये हुआ कि बिना किसी ठोस सबूत के कान के कच्चे भारत के कई मीडिया समूहों ने शी जिनपिंग के राजनीतिक पतन की ख़बर झट से चला दी जबकि पश्चिमी देशों का मीडिया ख़ामोश रहा. चीन भारतीय प्रेस में चल रही ख़बरों पर नज़र रखता है और उसने पिछले साल “ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करने वालों” को बढ़ावा देने के लिए मीडिया को चेतावनी भी दी थी. चीन में राजनीतिक परिवर्तन से पहले संभावित अस्थिरता के बारे में भारतीय मीडिया के द्वारा झूठ फैलाना CCP के हाथों में खेलने की तरह है. CCP दो मोर्चे की स्थिति में चीन के पश्चिम में अमेरिका और भारत को एक साथ देखता है जबकि पूर्व में अमेरिका और ताइवान को. ये प्रकरण, जहां भारत के मीडिया ने चीन के घटनाक्रम को लेकर जल्दबाज़ी में ख़बरें चलाईं, भारतीय मीडिया के लिए जागरुक होने का समय है कि हमें वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा रखने वाले पड़ोसी के साथ बेहतर समझ विकसित करनी चाहिए. दूसरी बात, सुरक्षा संस्थान के साथ शी जिनपिंग का एक सशंकित करने वाला संबंध रहा है. इस बात का प्रमाण सार्वजनिक सुरक्षा के पूर्व उप मंत्री सुन लिजुन और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन के पहले चीनी प्रमुख मेंग होंगवी के पतन और पद से हटने से मिलता है.
“सैन्य विद्रोह” की अफ़वाह के पीछे इस समय कोई वास्तविकता नहीं दिखती क्योंकि चीन का सरकारी मीडिया शी जिनपिंग को 20वें पार्टी सम्मेलन का एक प्रतिनिधि बता रहा है. लेकिन जिस वक़्त शी जिनपिंग चीन के सुरक्षा संस्थान पर अपने पूरे नियंत्रण का संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं, उस वक़्त इस तरह की अफ़वाह का उड़ना “महत्वपूर्ण” हैं क्योंकि कूटनीतिक समुदाय के लोगों का कहना है कि शी जिनपिंग राष्ट्रपति के रूप में अपने बेमिसाल तीसरे कार्यकाल को हासिल करने के लिए उत्सुक हैं और उन्होंने अभी तक अपने उत्तराधिकारी का एलान नहीं किया है. अंत में, सुरक्षा प्रणाली में सुन के ‘प्रभाव’ को हटाने के लिए जनवरी में एक उच्च-स्तरीय समिति की नियुक्ति की गई थी. इसके अलावा, चूंकि सुरक्षा संस्थान के जिन सदस्यों को हटाया गया था, उनकी मौत की सज़ा आगे की छानबीन में सहयोग के बदले उम्र क़ैद में बदले जाने की संभावना है, तो इस बात पर विश्वास करने की वजह है कि जब पार्टी के सम्मेलन में एक नये नेतृत्व का एलान होगा तो बड़े पदों पर बैठे कुछ और लोगों पर भी कार्रवाई हो सकती है.
[i] Lulu Yilun Chen, Influence Empire: The Story Of Tencent And China’s Tech Ambition (Hodder & Stoughton, 2022), pp. 198-199.
[ii] Chen, Influence Empire, pp. 199.
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