Published on Nov 26, 2021 Updated 0 Hours ago

पिछले प्रिज़्म (PRISM)  भागीदार के रूप में जो चीनी बाज़ार में अपने अस्तित्व बनाए रखने में  कामयाब रहा था, लेकिन याहू के बाहर निकलने का अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा में ख़ासा रणनीतिक प्रभाव पड़ेगा.

Yahoo: याहू के पीआरसी से बाहर निकलने के रणनीतिक संकेत?

Source Image: Getty

हाल में अमेरिका (America) स्थित पूर्व तकनीक क्षेत्र (Technology Sector) की दिग्गज कंपनी याहू (Yahoo) ने चीन (China) के बाज़ार से बाहर निकलने का ऐलान किया और इसकी वजह चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को बताया. यह पहली बार नहीं था जब किसी अमेरिकी फर्म ने चीन के बाज़ार से बाहर निकलने का फैसला किया हो. हाल के दिनों में माइक्रोसॉफ्ट की लिंक्डइन ने भी चीन(पीआरसी) के बाज़ार से बाहर निकलने का निर्णय लिया. हालांकि गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट की शुरूआत के साथ ही कई विदेशी कंपनियों के चीन के बाज़ार के साथ रिश्ते काफी उतार चढ़ाव भरे रहे हैं.

अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव और उसके बाद तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा के बढ़ने की वजह से दोनों ही महाशक्तियों ने अपनी तकनीकी कंपनियों की एक दूसरे के देश की बाज़ारों तक पहुंच को कम किया है. हालांकि  चीन ऐसे कदम को लेकर थोड़ा कम आगे रहा है लेकिन अमेरिका ने खुले तौर पर कुछ चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और अमेरिकी बाज़ार में चीन के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पाबंदियां लगा दीं, साथ ही वैश्विक बाज़ार से चीन के डाटा कलेक्शन की क्षमता को भी कम करने की दिशा में प्रयास करने शुरू कर दिए. इधर चीन नई आवश्यकताओं के जरिए विदेशी फर्मों के संचालन में दिक्कतें पैदा कर रहा है.

अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव और उसके बाद तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा के बढ़ने की वजह से दोनों ही महाशक्तियों ने अपनी तकनीकी कंपनियों की एक दूसरे के देश की बाज़ारों तक पहुंच को कम किया है. 

इस घमासान के बीच पर्सलन इन्फॉर्मेशन प्रोटेक्शन लॉ (पीआईपीएल) है जिसका लक्ष्य  सेवाओं या व्यावहारिक रूपरेखा तैयार करने के प्रावधान के लिए फर्मों द्वारा व्यक्तिगत डेटा संग्रह के कार्य को सीमित करना है. इस उपाय को अलग से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि वैश्विक ‘निगरानी पूंजीवाद’ व्यापार मॉडल के बड़े संदर्भ में अमेरिका और चीन द्वारा खेले जा रहे ‘रिफ्लेक्सिव गेम’ की कड़ी में एक अहम कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.

माना जाता है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के साथ जिस तकनीकी प्रतियोगिता की शुरुआत की थी वो आज भी जिंदा है और ख़ास बात यह है कि उनके निष्कासन के बाद भी जारी है.

इस कारोबारी मॉडल के तहत, फर्म उपयोगकर्ता से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर भरोसा करती हैं, जिसके जरिए वे लाभ के लिए उपयोगकर्ता के व्यवहार को संशोधित कर सकते हैं लेकिन यह डेटा राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि दुश्मन मुल्क के नागरिकों पर राजनीतिक इच्छा या व्यक्तिगत रूप से किसी को टारगेट कर उस पर थोपने में भी इस्तेमाल की जाती है.

चीन का भ्रम

चीन वैश्विक जंग के इस नए रूप को अपनाने में हमेशा से सक्रिय रहा है, जैसा कि इसके विदेशी प्रभावों को संचालित करने के तरीकों से भी साबित होता है, व्यक्तिगत तौर पर किसी को टारगेट करना और इसकी सीमाओं से परे इसके ऐप्स के जरिए नैरेटिव को सेट करना और झेनुआ डेटा लीक जैसे खुलासे जिसके तहत विदेशी नेतृत्व की मनोवृति की रूपरेखा को जानने की कोशिश शामिल है.  हालांकि ऐसी गतिविधियों के चलते दूसरी ओर, चीन को यह डर भी सताता है कि उसकी वैधता ख़त्म हो सकती है और इसका परिणाम शासन में बदलाव की संभावना को भी जन्म देता है. यह त्यानआनमेन प्रकरण के बाद से ही होता चला आ रहा है.

याहू अमेरिका की कोई साधारण कंपनी नहीं है. हालांकि इसका बाज़ार मूल्य अब वो नहीं है जो पहले हुआ करता था. यह प्रिज़्म सहयोगियों में से एक महत्वपूर्ण साझेदार है जो अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी का एक बेहद प्रमुख वैश्विक डेटा जासूसी सहयोगी है. इतना ही नहीं यह उन गिने चुने प्रिज़्म प्रोवाइडरों में से  एक है जिसने तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद चीन के बाज़ार का सामना किया है. चीन की चुनौतियों का सामना करने के लिए चीन(पीआरसी) में याहू की मौजूदगी का बेहद महत्व है.

चीन वैश्विक जंग के इस नए रूप को अपनाने में हमेशा से सक्रिय रहा है, जैसा कि इसके विदेशी प्रभावों को संचालित करने के तरीकों से भी साबित होता है, व्यक्तिगत तौर पर किसी को टारगेट करना और इसकी सीमाओं से परे इसके ऐप्स के जरिए नैरेटिव को सेट करना और झेनुआ डेटा लीक जैसे खुलासे जिसके तहत विदेशी नेतृत्व की मनोवृति की रूपरेखा को जानने की कोशिश शामिल है.   

याहू और दूसरे प्रिज़्म साझेदारों का बाज़ार से बाहर निकलने के दो मतलब हैं: पहला, माना जाता है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के साथ जिस तकनीकी प्रतियोगिता की शुरुआत की थी वो आज भी जिंदा है और ख़ास बात यह है कि उनके निष्कासन के बाद भी जारी है. दूसरी, चीन सत्ता में बदलाव की संभावना को लेकर लगातार असुरक्षित हो रहा है. भ्रम का यह जाल चीन को अपने नियंत्रण के क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी तकनीकी कंपनियों के संचालन को सीमित करने के लिए तरह-तरह के उपायों को उठाने के लिए उकसाता है. हालांकि घरेलू कंपनियां बिना किसी विरोध के चीन की ऐसी कार्रवाई को मानने को तैयार रहेंगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.