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इकॉनमी के सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि कृषि की हालत अच्छी नहीं है. पहले हीट वेव आई, फिर जलवायु परिवर्तन के चलते किसानी पर असर पड़ा.
पैंडेमिक में आए पिछले दो त्योहारी सीजन ने जिस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था को बूस्ट किया, इस बार भी उससे उम्मीद करना गलत नहीं है. आमतौर पर लोग इस सीजन में खरीदारी करने के लिए पैसे जमा करके रखते ही हैं. इस बार फेस्टिव सीजन की खास बात यह है कि यह थोड़ा पहले आ रहा है तो पहले जा भी रहा है. आमतौर फेस्टिव सीजन नवंबर तक चलता है, लेकिन इस बार दुर्गा पूजा से लेकर दिवाली तक का यह सीजन अक्टूबर में ही खत्म हो रहा है.
आमतौर फेस्टिव सीजन नवंबर तक चलता है, लेकिन इस बार दुर्गा पूजा से लेकर दिवाली तक का यह सीजन अक्टूबर में ही खत्म हो रहा है.
इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही से जीडीपी में 13 प्रतिशत के आसपास बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है. आरबीआई का भी ऐसा ही अनुमान आया था. यह अनुमान कितना कारगर हो सकता है और कहां इसके लूप होल हो सकते हैं, आइए देखें:
लेकिन यह कहना बड़ा मुश्किल है कि इसका आने वाली तिमाहियों पर क्या असर पड़ेगा और क्या जीडीपी ग्रोथ उसी तरह बनी रहेगी. पिछले डेटा देखें तो फेस्टिव सीजन के बाद की तिमाहियों में आमतौर पर जीडीपी ग्रोथ रेट गिर जाती है. पैंडेमिक के दौरान तो फेस्टिव सीजन के बाद वाली तिमाहियां लगातार दूसरे साल भी बहुत अच्छी नहीं गई हैं. फिर भी सबसे अहम बात यह है कि सर्विस सेक्टर से ही अधिकतर बढ़त मिलेगी. फेस्टिव सीजन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि तीसरी तिमाही में अगर मैन्युफैक्चरिंग पर अच्छा असर पड़े, तो ग्रोथ में इसका फायदा मिलेगा.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अगर ऑटो इंडस्ट्री की बात करें तो हालत यह है कि सप्लाई चेन रुकी हुई है. अगर कोई साधारण मैन्युअल गाड़ी खरीदना चाह रहा है तो दिल्ली जैसी जगह में तीन-तीन महीने की वेटिंग चल रही है.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अगर ऑटो इंडस्ट्री की बात करें तो हालत यह है कि सप्लाई चेन रुकी हुई है. अगर कोई साधारण मैन्युअल गाड़ी खरीदना चाह रहा है तो दिल्ली जैसी जगह में तीन-तीन महीने की वेटिंग चल रही है. यह सब सेमी-कंडक्टर चिप ना मिलने के कारण हो रहा है. चीन में बार-बार लॉकडाउन हो रहा है, अधिकतर फैक्ट्रियां उधर ही हैं. उसके अलावा ताइवान, चीन और अमेरिका के बीच फंसा हुआ है.
इकॉनमी के सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि कृषि क्षेत्र की हालत अच्छी नहीं है. पहले हीट वेव आई, फिर जलवायु परिवर्तन के चलते किसानी पर असर पड़ा. पैदावार इससे पहले ही प्रभावित हो चुकी है. इससे एग्रीकल्चर प्रोड्क्शन में चाहे वह बेसिक फूड ग्रेन हों, चाहे खाने-पीने के दूसरे सामान, सब पर असर पड़ेगा. इसमें एक प्रबल संभावना है कि कीमतें बढ़ेंगी. त्यौहार के वक्त अगर कीमतें बढ़ती हैं तो इसका असर खरीदारी पर भी पड़ेगा.
वेव आई, फिर जलवायु परिवर्तन के चलते किसानी पर असर पड़ा. पैदावार इससे पहले ही प्रभावित हो चुकी है. इससे एग्रीकल्चर प्रोड्क्शन में चाहे वह बेसिक फूड ग्रेन हों, चाहे खाने-पीने के दूसरे सामान, सब पर असर पड़ेगा.
अभी मुद्रास्फीति की सिर्फ ग्रोथ रेट ही नीचे जा रही है, महंगाई नहीं. होलसेल प्राइसिंग इंडेक्स देखें तो एक समय में जो महंगाई 15 फीसदी के आसपास बढ़ रही थी, जून-जुलाई तक यह 13 से 11 प्रतिशत हुई. आने वाले दिनों में अगर यह 11 प्रतिशत से गिरकर 9 प्रतिशत पर भी आ जाए, तो बहुत है. इसका मतलब है कि दाम सामान्य नहीं हुए, बस इतना हुआ कि 100 रुपये का जितना सामान पहले 111 रुपये में आता था, वह 109 रुपये में आएगा तो इस त्योहारी सीजन में इसका असर भी देखने को मिलेगा.
यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...
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