Author : Harsh V. Pant

Originally Published नवभारत टाइम्स Published on Jul 31, 2024 Commentaries 1 Hours ago

ट्रंप वाइट हाउस में दोबारा दाखिल होने में सफल हों या न हों अमेरिकी राजनीति को आकार देने वाले इस रुझान का अमेरिकी नीतियों पर प्रभाव पड़ना तय है.

ट्रंप के रुख से क्यों बेचैन है दुनिया?

अब जब राष्ट्रपति जो बाइडेन खुद को चुनावी दौड़ से बाहर कर चुके हैं, कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से अपना नामांकन पक्का करवाने की कोशिशों में लगी हैं. लेकिन रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन इस महीने की शुरुआत में ही पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वाइट हाउस के लिए उम्मीदवारी पर अपनी मुहर लगा चुका है.

आलोचक को बनाया रनिंग मेट  

ट्रंप ने सीनेटर जेडी वेंस को अपना रनिंग मेट घोषित किया है. ट्रंप के वेंस कड़े आलोचक रहे हैं. वह उन्हें ‘अमेरिका का हिटलर’ और ‘नैतिक त्रासदी’ तक करार दे चुके हैं. लेकिन यह तो अतीत की बात है. ट्रंप पर हुए जानलेवा हमले के बाद, वेंस ने सीधे बाइडन पर उसका दोष मढ़ा. उन्होंने ट्वीट किया, ‘बाइडन के कैंपेन की मुख्य बात यह रही है कि ट्रंप एक सर्वसत्तावादी फासिस्ट हैं, जिन्हें हर कीमत पर रोकना होगा. इसी नैरेटिव के चलते ट्रंप पर यह कातिलाना हमला हुआ है.’ कन्वेंशन में भी उन्होंने ट्रंप की तारीफों के पुल बांधते हुए कहा कि वह देश के लिए अपना सबकुछ झोंक चुके हैं और यह भी कि उन्हें राजनीति में उतरने की कोई जरूरत नहीं है, सचाई यह है कि देश को उनकी जरूरत है.’

 

विदेश नीति का खाका  

सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने ट्रंप-वेंस विदेश नीति का एक ऐसा खाका पेश किया, जो बाहरी दुनिया को लेकर रिपब्लिकन पार्टी के रुख को अमेरिकी राजनीति की पारंपरिक साझा जमीन से काफी दूर कर देता है. ट्रंप और वेंस की विदेश नीति का यह खाका दुनिया भर में हलचल पैदा कर रहा है.

कुछ दशकों की वॉशिंगटन की नीतियों के परिणामस्वरूप अमेरिका सस्ते चीनी माल और सस्ते विदेशी श्रम से पाटा जा चुका है और आश्चर्य नहीं कि आने वाले दशकों में घातक चीनी फेंटेनाइल से भर जाए.

ट्रंप-वेंस विदेश नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है चीन को लेकर और कड़ा रुख. दोनों ने इस बात को बार-बार रेखांकित किया है, जो कुछ हद तक ठीक भी है कि पिछले कुछ दशकों की वॉशिंगटन की नीतियों के परिणामस्वरूप अमेरिका सस्ते चीनी माल और सस्ते विदेशी श्रम से पाटा जा चुका है और आश्चर्य नहीं कि आने वाले दशकों में घातक चीनी फेंटेनाइल से भर जाए.

ट्रेड वॉर जारी रहा:अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान ट्रंप हालांकि जब-तब चीनी नेता शी चिनफिंग के प्रति अपनी पसंदगी भी जाहिर करते रहे, लेकिन इसके बावजूद वह पेइचिंग के प्रति अमेरिकी नीति की रूपरेखा फिर से तैयार करने में सफल रहे. इसका परिणाम चीन के साथ बाकायदा टेक्नॉलजी वॉर और ट्रेड वॉर के रूप में सामने आया, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह रही कि दुनिया को समझ आ गया कि दूसरों की कीमत पर चीन को बढ़ने देना कितना भारी पड़ सकता है. ट्रंप के उत्तराधिकारी जो बाइडन ने भी ट्रंप के आकलन से दूरी नहीं बरती. शुरुआती आलोचना के बाद उन्होंने न केवल चीनी सामानों पर लगाए गए सीमा शुल्क को बनाए रखा बल्कि उस नीति का और विस्तार भी किया.

चीन की चिंता: फिर भी ट्रंप बिना थके और बिना रुके चीन को निशाना बनाने में लगे हुए हैं. अपने एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने यहां तक कह दिया कि वह चीनी उत्पादों पर सीमा शुल्क 50% तक बढ़ाने में भी नहीं हिचकेंगे क्योंकि इससे अमेरिकी कंपनियां चीन से हटने और अमेरिका में उत्पादन शुरू करने के लिए प्रोत्साहित होंगी. जैसे-जैसे ट्रंप दोबारा व्हाइट हाउस में दाखिल होने के अपने लक्ष्य के करीब होते दिख रहे हैं, पेइचिंग की चिंताएं अधिकाधिक स्पष्ट होती जा रही हैं.

बाइडन और ट्रंप की नीतियों में फर्क भी स्पष्ट हैं. जहां बाइडन ताइवान के समर्थन में मजबूती से खड़े रहे हैं, वहीं ट्रंप का कहना है कि ‘ताइवान को अपनी रक्षा के लिए हमें भुगतान करना चाहिए’.

बाइडन और ट्रंप की नीतियों में फर्क भी स्पष्ट हैं. जहां बाइडन ताइवान के समर्थन में मजबूती से खड़े रहे हैं, वहीं ट्रंप का कहना है कि ‘ताइवान को अपनी रक्षा के लिए हमें (अमेरिका को) भुगतान करना चाहिए’. उनकी दलील है कि ‘ताइवान अमेरिका से 9,500 मील दूर है, जबकि चीन से मात्र 68 मील पर है.’ मतलब यह कि अमेरिका के लिए ताइवान की रक्षा करना आसान नहीं होगा. इस बीच ट्रंप के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार वेंस का कहना है कि अमेरिका अगर यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करता रहा तो चीन द्वारा हमले की स्थिति में ताइवान का समर्थन करने की उसकी क्षमता प्रभावित हो सकती है.

यूक्रेन की सहायता पर एतराज: कुल मिलाकर ट्रंप-वेंस की बातों का मतलब यह है कि यूक्रेन युद्ध का जल्द से जल्द समाप्त होना जरूरी है ताकि अमेरिका अपनी ऊर्जा वास्तविक खतरे यानी चीन से निपटने में लगा सके. वेंस यूक्रेन को दी जाने वाली अमेरिकी सहायता की कड़ी आलोचना करते रहे हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया है कि ‘यूक्रेन का क्या होता है इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’

मुफ्त सवारी की छूट नहीं: ट्रंप और वेंस, दोनों ही रक्षा पर पर्याप्त खर्च न करने के लिए यूरोप पर निशाना साध रहे हैं. सम्मेलन में वेंस ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘अमेरिकी करदाताओं की उदारता के साथ धोखा करने वाले देशों को अब और मुफ्त सवारी नहीं मिलेगी.’ बकौल वेंस, ‘हम यह नहीं कहते कि अमेरिका को नैटो से बाहर निकल आना चाहिए या यूरोप को छोड़ देना चाहिए, लेकिन हमें एशिया की ओर घूमना चाहिए. अमेरिका को पूर्वी एशिया पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा.’

दुनिया के लिए चेतावनी  

सबकी चिंता छोड़कर अपने हितों पर फोकस रखने का अमेरिकी राजनीति में बढ़ता यह रुझान दुनिया के लिए चेतावनी है जो अमेरिका को वैश्विक शांति का मुख्य गारंटर माने बैठी है. ट्रंप वाइट हाउस में दोबारा दाखिल होने में सफल हों या न हों अमेरिकी राजनीति को आकार देने वाले इस रुझान का अमेरिकी नीतियों पर प्रभाव पड़ना तय है.

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