Author : Manoj Joshi

Published on Oct 20, 2023 Updated 0 Hours ago
अमेरिका: 2024 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले बड़े स्तर पर विभाजन की आशंका!

अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री रॉबर्ट एम. गेट्स का कहना है कि ऐतिहासिक दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका (US) मौज़ूदा समय में सुरक्षा के लिहाज़ से शायद सबसे गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है. रॉबर्ट गेट्स ने रूस, चीन, ईरान और उत्तर कोरिया के गठबंधन की तरफ इशारा करते हुए कहा कि “इन देशों के पास मौज़ूद कुल परमाणु हथियारों की संख्या कुछ ही वर्षों में लगभग दोगुनी हो सकती है.” गेट्स अफसोस जताते हुए कहते हैं कि अमेरिका की ओर से इस मुद्दे को लेकर एकजुटता दिखाई जानी चाहिए थी, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अमेरिका की ओर से इस पर बेहद लचर प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. इसका कारण यह है कि अमेरिका की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के नेताओं यानी डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच इस मुद्दे पर गहरे मतभेद हैं. इसके बीच हाल ही में जो कुछ हुआ वो तो और भी हैरान करने वाला था. दरअसल, प्रतिनिधि सभा के स्पीकर केविन मैक्कार्थी को उनकी ही पार्टी के लोगों द्वारा पद से हटा दिया गया. यह साबित करता है कि अमेरिकी कांग्रेस के भीतर रिपब्लिकन पार्टी में ज़बरदस्त ध्रुवीकरण हो गया है और यह विभाजन इतना गहरा है कि उसे संभालना अब बेहद मुश्किल है. रिपब्लिकन पार्टी के भीतर यह फूट कितनी व्यापक है, यह उस समय ज़ाहिर हो गया, जब प्रतिनिधि सभा में बहुमत रखने वाले रिपब्लिकन सदस्यों ने सरकार के लिए अस्थायी रूप से फंड का इंतज़ाम करने के लिए पेश किए गए अपने ही बिल को पारित करने से इनकार कर दिया. हालांकि, इस सबके बावज़ूद अमेरिकी शटडाउन संकट तो जैसे-जैसे टल गया, लेकिन जिन मुद्दों ने स्थितियों को इतना पेचीदा बनाया, वे आज भी जस के तस हैं. अगर अमेरिका में यह शटडाउन हो जाता, तो यह एक दशक के भीतर चौथा शटडाउन होता और यदि यह लंबे वक़्त तक बना रहता, तो देश के आर्थिक हालात बुरी तरह से चरमरा जाते. इतना ही नहीं शटडाउन की स्थिति में कम इनकम वाले ऐसे लाखों लोगों को, जिन्हें खाद्यान्न सहायता उपलब्ध कराई जाती है, उन्हें बहुत दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता, साथ ही सेना समेत सरकारी कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ जाते.

अमेरिकी कांग्रेस के भीतर रिपब्लिकन पार्टी में ज़बरदस्त ध्रुवीकरण हो गया है और यह विभाजन इतना गहरा है कि उसे संभालना अब बेहद मुश्किल है. रिपब्लिकन पार्टी के भीतर यह फूट कितनी व्यापक है

यह सब रिपब्लिक पार्टी में शामिल कट्टर दक्षिणपंथी नेताओं के एक छोटे से ग्रुप की हरकतों का नतीज़ा हैजो कि अपने क़दमों से अपनी ही पार्टी नहींबल्कि देश को भी संकट में धकेल रहे हैं. अमेरिका कांग्रेस में रिपब्लिकन नेतृत्व और बाइडेन प्रशासन के बीच जून में एक समझौता हुआ थाजिसके अंतर्गत अगले 10 वर्षों के लिए फेडरल बजट को फंड देने एवं बजट घाटे में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की कटौती करने की बात शामिल थीलेकिन, “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (MAGA) का नारा बुलंद करने वाले रिपब्लिकन्स ने कांग्रेस के भीतर उस सभी पारंपरिक संस्थागत प्रक्रियाओं को तिलांजलि दे दी हैजो प्रक्रियाएं अभी तक रिपब्लिकन पार्टी के लिए मायने रखती थींरिपब्लिकन सदस्यों ने 1 अक्टूबर को वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले 12 समायोजन विधेयकों (appropriation bills) को संसद में पारित नहीं होने दियाहालांकिपिछले शटडाउन की तुलना में इस बार अलग बात यह थी कि इस दफ़ा रिपब्लिकन्स और डेमोक्रेट्स की बीच विवाद कम थाबल्कि रिपब्लिकन सांसदों के बीच आपसी तकरार ज़्यादा थीसरकार के लिए अस्थाई फंडिंग उपाय के तौर पर फिलहाल बिल को तो पारित कर दिया गया हैलेकिन यह अस्थाई उपाय नवंबर मध्य में समाप्त होने वाला हैयानी  कि ये लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई हैज़ाहिर है कि संभावित शटडाउन संकट के स्थाई समाधान के लिए सरकार को अपने सभी 12 वार्षिक व्यय बिलों को अनिवार्य रूप से कांग्रेस में पास कराना होगाया फिर एक और अस्थाई फंडिंग उपाय के लिए मंज़ूरी लेनी होगीलेकिन ऐसा करने से पहले सरकार को प्रतिनिधि सभा में नए स्पीकर की नियुक्ति करनी होगीजहां रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है और उनमें ज़बरदस्त आपसी फूट है.

 

अमेरिका कि आर्थिक स्थिति

ऊपरी तौर पर देखा जाए तोफिलहाल अमेरिका काफ़ी बेहतर स्थिति में हैसैन्य लिहाज़ से देखेंतो अपने प्रतिद्वंद्वियों  की तुलना में अमेरिका सेना पर अधिक धनराशि ख़र्च करता हैअमेरिकी अर्थव्यवस्था के संकट में घिरने को लेकर तमाम अनुमान जताए गए थेलेकिन अमेरिकी इकोनॉमी ने सभी अनुमानों को झुठला दिया है और बेहतरीन प्रगति  कर रही हैअमेरिका नई औद्योगिक नीति बना रहा है और जब यह तैयार हो जाएगी  लागू की जाएगीतब तकनीक़ी विकास के मामले में अमेरिका बाक़ी दुनिया से काफ़ी आगे निकल सकता हैदूसरी ओरदेखें तो अमेरिकी के प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों की हालत बहुत ख़राब हैरूस तो यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझ कर रह गया है और फिलहाल चीन की हालत भी डांवाडोल  है और उसकी अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही हैचीन में इन दिनों ऋण संकट सुर्खियां बटोर रहा है और बड़ी चेतावनी बनकर उभरा हैसंभावित शटडाउन से ठीक पहलेयानी जब अस्थाई फंडिग उपाय पारित नहीं हुआ थातब क्रेडिट रेटिंग फर्म मूडीज ने चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिकी सरकार द्वारा शटडाउन की घोषणा की जाती हैतो उसकी रेटिंग गिर सकती हैविश्व की चोटी की तीन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से अकेली मूडीज ही हैजिसने अमेरिका को “AAA” रेटिंग देना जारी रखा है. AAA रेटिंग का मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था बेहतर है और वहां क्रेडिट जोख़िम न्यूनतम है. दो महीने पहले ही क्रेडिट  एजेंसी फिच ने ऋण सीमा (debt ceiling) को लेकर चल रहे विवाद एवं गवर्नेंस के मुद्दे के चलते अमेरिका की रेटिंग को घटाकर “AA+” कर दिया थाएस एंड पी ग्लोबल (S&P Global) क्रेडिट  एजेंसी ने भी वर्ष 2011 में अमेरिका में इसी तरह के ऋण सीमा विवाद के दौरान रेटिंग को घटा दिया था.

विश्व की चोटी की तीन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से अकेली मूडीज ही है, जिसने अमेरिका को “AAA” रेटिंग देना जारी रखा है. AAA रेटिंग का मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था बेहतर है और वहां क्रेडिट जोख़िम न्यूनतम है. 

अमेरिका वर्तमान में दोहरे चरित्र की तस्वीर प्रस्तुत करता हैएक ओर उसके पास दिन दूनीरात चौगुनी फलतीफूलती अर्थव्यवस्था है और उसकी दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  द्वारा संचालित होने वाले भविष्य के तकनीक़ी विकास को लेकर होड़ कर रही हैंअमेरिका की सफलता को एक और तरीक़े से समझा जा सकता हैयानी कि अमेरिका दुनियाभर के लोगों का पसंदीदा गंतव्य बना हुआ है और विश्व में हर तरफ से इसकी दक्षिणी सीमा पर प्रवासियों की भीड़ उमड़ रही हैलेकिन अमेरिका के समाज में व्याकुलताचिंता और उतावलापन आज की वास्तविकता हैजो वहां की राजनीति में भी दिखाई देती हैअमेरिकी समाज का यह संकट कितना व्यापक हैवो 6 जनवरी 2021 को उस वक़्त दिखा थाजब राष्ट्रपति चुनाव के नतीज़ों के बाद एक पार्टी के समर्थकों ने परिणाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और बग़ावत पर भी उतर आए थेचिंताजनक बात तो यह है कि उस दौरान तख़्तापलट की कोशिश करने के बावज़ूदआज भी अमेरिका में क़रीब 30 फीसदी मतदाता ऐसे हैंजो यह मानते हैं कि बाइडेन ने धोखाधड़ी के ज़रिए राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की थी.

 

अमेरिका में लंबे समय से चल रहे संकट की कई और भी वजहें हैंअमेरिका कभी सामाजिक गतिशीलता वाला देश थाअर्थात यहां लोगों की सामाजिक स्थिति परिवर्तनशील थीलेकिन आज स्थिति यह है कि पिछले 50 वर्षों के दरम्यान अमेरिका में करोड़पति लोगों की तादाद दस गुना बढ़ गई हैदूसरी तरफवहां अप्रशिक्षित कामगारों की इनकम लगभग आधी रह गई हैहालत यह है कि ऐसे 64 प्रतिशत अमेरिकी नागरिकजिनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं हैउनके वेतन पर बहुत बुरा असर पड़ा हैज़ाहिर है कि ऐसी परिस्थितियों में सामाजिक संघर्ष और संकट को बढ़ने से रोका नहीं जा सकता है.

 

आंकड़ों पर अगर नज़र डालेंतो अमेरिका में क़रीब 6,50,000 लोग ऐसे हैंजिनके पास अपना घर नहीं हैन्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़ लोगों के बेघर होने के पीछे कई कारण हैंलेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह “लंबे समय से वेतन में कमी होना” और सामाजिक सुरक्षा का धराशायी होना हैइसके अलावाइसके पीछे मेंटल हेल्थ से जुड़े मामले और नशीली दवाओं की लत जैसी वजहें भी हैंलेकिन सबसे बड़ा कारण “मकानों का महंगा होना और किफायती आवास तलाशने में दिक़्क़त” हैअमेरिका के महानगरजैसे कि न्यूयॉर्कलॉस एंजिल्सशिकागोमियामीबोस्टनसिएटल और सैन फ्रांसिस्को में लोगों की आबादी कम हो रही है. पिछले दशक के दौरान अमेरिका के 20 सबसे बड़े मेट्रो एरिया से लगभग दस लाख लोग दूर जा चुके हैंज़ाहिर है कि कोविड-19 महामारी के चलते शहरों से दूर कामकाज स्थापित होने की वजह से भी इसमें तेज़ी आई हैबड़े शहरों में लगातार बढ़ रही इस समस्या के पीछे प्रमुख कारणों में ग़रीबों और युवाओं के लिए शहरों में रहनसहन बहुत महंगा हो गया हैअपराध बढ़ गए हैंसार्वजनिक परिवहन के साधनों की संख्या में कमी आई है और शहरों में बड़ी संख्या में ऑफिस स्पेस खाली पड़े हैं.

 

न्याय व्यवस्था

 

इस सबके अलावा अमेरिका के समाज में एक और नकारात्मक सूचक लोगों का जीवन काल हैअमेरिका में कोविड 19 महामारी से काफ़ी पहलेयानी कि वर्ष 2014 के बाद से लोगों का जीवन काल लगातार घट रहा हैलोगों का जीवन काल हमेशा से ही किसी देश के आर्थिक और सामाजिक स्वास्थ्य का सूचक होता है. वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार लोगों की जीवन प्रत्याशा में कमी “देश में आर्थिकराजनीतिक और नस्लीय बंटवारे की वजह से और व्यापक हो गई है.” ऐसे में इसमें कोई हैरानी नहीं है कि वर्ष 1980 के बाद से अमेरिका में ग़रीबों और अमीरों के बीच मृत्यु दर का अंतर 570 प्रतिशत बढ़ गया है.

 

ज़ाहिर है कि नस्लजेंडर एवं गन कल्चर से जुड़े मुद्दे  केवल अमेरिका को एक राष्ट्र रूप में बांटते हैंबल्कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच राजनीतिक खाई को भी और गहरा करते हैंनस्लजेंडर और गन संस्कृति से जुड़े मसले अमेरिका में तब स्पष्ट तौर पर दिखाई देते हैंजब नस्लवाद के विरोधियों एवं गर्भपात अधिकारों से जुड़े प्रदर्शनकारियों का कट्टर दक्षिणपंथी  समूहों और समाज के स्वयंभू ठेकेदारों से सामना होता हैअपने विचारों को थोपने के लिएउन्हें नहीं मानने वालों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन नफ़रत फैलानेउन्हें धमकी देने जैसे कृत्यों को अंजाम देना आम हो गया हैअमेरिका में अत्याधुनिक असॉल्ट राइफलों समेत विभिन्न बंदूकों को रखने पर सख़्त नियमक़ानून बनाए जाने को लेकर भी समाज बंटा हुआ हैइस साल अगस्त तक अमेरिका में सामूहिक गोलीबारी की 470 से अधिक हुई घटनाएं हुई हैंइतना ही नहींपिछले तीन वर्षों की बात करें तो अमेरिका में हर साल 600 से अधिक गोलीबारी की घटानाएं हुईंज़्यादातर अमेरिकी नागरिक बंदूक रखने पर सख़्त क़ानून बनाए जाने का समर्थन करते हैंलेकिन वहां एक संगठित लॉबी ऐसी भी हैजो बंदूक रखने पर किसी भी नए प्रतिबंधों का और क़ानून का विरोध करती है.

 अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का यह रवैया उस वक्त भी देखने को मिला था, जब उसने सभी महिलाओं के गर्भपात के अधिकारों को रद्द करने का निर्णय सुनाया था और नतीज़तन देश के 14 राज्यों ने गर्भपात पर पाबंदी लगा दी थी.

देखा जाए तो अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट भी कहीं  कहीं धुर्र दक्षिणपंथियों का केंद्र बन गया है और अपने फैसलों से देश में सामाजिक बंटवारे को हवा दे रहा हैअमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का यह रवैया उस वक्त भी देखने को मिला थाजब उसने सभी महिलाओं के गर्भपात के अधिकारों को रद्द करने का निर्णय सुनाया था और नतीज़तन देश के 14 राज्यों ने गर्भपात पर पाबंदी लगा दी थी. अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट का नया कार्यकाल शुरू हो गया है और आने वाले दिनों में यहां बंदूक रखने के अधिकारोंफेडरल एजेंसियों की शक्तिसोशल मीडिया से जुड़े नियमक़ानूनों और किसी राजनीतिक दल को अनुचित लाभ दिलाने के मकसद से चुनावी हेरफेर से संबंधित प्रमुख मामलों की सुनवाई होगीआशंका व्यक्त की जा रही है कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट में 6-3 के बहुमत के साथ दक्षिणपंथियों का वर्चस्व हैतो ऐसे में इसके द्वारा आने वाले दिनों में अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था और समाज को और ज़्यादा अस्थिर करने की संभावना है.

 

अमेरिका में चुनाव

 

आने वाले अमेरिकी चुनावों में इस बात की प्रबल संभावना है कि जो बाइडेन के विरुद्ध डोनाल्ड ट्रंप को खड़ा किया जाएगायानी कि अमेरिका में निकट भविष्य में फिलहाल कुछ भी ठीक नहीं होने वाला है. साफ है कि अगले  वर्ष होने वाले चुनाव में एक ऐसा व्यक्ति अपनी दावेदारी पेश करेगा, जो पहले से ही कई आपराधिक एवं धोखाधड़ी के मामलों में फंसा हुआ है और इन मुकदमों में कोर्ट का फैसला उसे सलाखों के पीछे भी पहुंचा सकता हैदूसरी तरफमुक़ाबले में निवर्तमान राष्ट्रपति होंगे और अगर उन्हें दोबारा राष्ट्रपति पद पर चुना जाता हैतो वे 81 वर्ष के हो जाएंगेजो बाइडेन अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में महाभियोग की जांच का सामना कर रहे हैं और अब उनमें को क़ुव्वत भी नहीं दिखाई देती है कि वे अपनी पार्टी में जोश भर पाएं.

 

अमेरिका के प्रख्यात संस्थान जैसे कि अमेरिकी कांग्रेस या फिर सुप्रीम कोर्ट की नाक़ामयाबी की कहानी तस्वीर का एक पहलू हैइसका दूसरा पहलूजो अधिक गंभीर हैवो अमेरिका में लोकतांत्रिक मूल्यों और मानदंडों का तारतार होना और चुनाव में किसी राजनीतिक दल या प्रत्याशी को अनुचित लाभ दिलाने के हथकंडों को अपनाया जाना हैज़ाहिर है कि चुनाव के दौरान हेराफेरी सीधे तौर पर मुक़ाबले की निष्पक्षता को प्रभावित करती हैवैसे भी देखा जाए तो अमेरिकी कांग्रेसजिसका गठन बेहद प्राचीन नियमों और सिद्धांतों के आधार पर किया गया थाउसकी कार्यप्रणाली आसानी से ऐसे किसी बदलाव की अनुमति नहीं देती है.

 

वैश्विक दृष्टिकोण से देखेंतो बड़ा मसला यह है कि आने वाले वर्षों में अमेरिका में कैसे नेतृत्व की उम्मीद की जा सकती हैदुनिया पहले ही पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” अभियान का नतीज़ा देख चुकी हैजिसमें अमेरिका के विश्वसनीय सहयोगियों और साझीदारों को महत्वहीन समझा जाता था और पुतिन  किम जोंगउन जैसे नेताओं के साथ गलबहियां की जाती थींवहींजो बाइडेन ने अपनी नीतियों के बल पर और वैश्विक गठबंधनों के ज़रिए कहीं  कहीं दुनिया में अमेरिका के नीतिगत नेतृत्व को दोबारा स्थापित किया है.

 

निष्कर्ष

 

अमेरिका का 2024 का राष्ट्रपति चुनाव पहली नज़र में वर्ष 2020 के चुनाव को दोहराने जैसा प्रतीत हो सकता हैलेकिन वास्तविकता में इसकी कोई संभावना नहीं हैअमेरिका में जो ताज़ा हालात हैंउनमें राष्ट्रीय हित के मुद्दों में कोई आम सहमति नहीं दिखाई देती हैउदाहरण के तौर पर रूसयूक्रेन युद्ध में अमेरिकी प्रशासन यूक्रेन के साथ खड़ा हैलेकिन इसको लेकर वहां के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल एकमत नहीं हैंराष्ट्रपति  जो बाइडेन ने जो नीतियां अपनाई हैंउनके केंद्र में अमेरिका में निवेश को बढ़ावा देनावैश्विक स्तर पर सहयोगियों और साझेदारों के साथ गठबंधन करना और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करना एवं उसे नियंत्रित करना शामिल हैलेकिन इसके बारे में कोई साफ जानकारी नहीं है कि सत्ता में आने पर रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप  क्या रुख अख़्तियार करेंगेदेखा जाए तो रिपब्लिकन पार्टी में सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप  की बांटने और फूट डालने वाली नीति की छाप दिखाई देती हैज़ाहिर है कि ऐसी परिस्थितियों  में आने वाले दिनों में अमेरिकी विदेश नीति की अस्पष्टता  केवल बढ़ेगीबल्कि स्थितियां और भी अधिक बदतर होती जाएंगी.


 

मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.

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