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रूस यूक्रेन जंग में पुतिन की रणनीति से यूरोपीय देशों में बेचैनी है. इसके चलते यूरोपीय देशों में फूट पड़ने की आशंका प्रबल हो गई है. नेटो और अमेरिका की क्या है रणनीति. इसके साथ यह जानेंगे कि इस युद्ध की बुनियाद कब पड़ी थी.
रूस यूक्रेन जंग को करीब डेढ़ सौ दिन पूरे हो गए है. अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. रूस को उम्मीद थी कि वह यूक्रेन जंग को थोड़े दिनों में समाप्त कर देगा, लेकिन न तो यूक्रेन हार मानता दिख रहा है और न ही रूस पीछे हटता दिख रहा है. 90 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन से जान बचाकर पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं. इस बीच, गेहूं, क्रूड आयल और गैस सहित कई जरूरी चीजों की आपूर्ति पूरी तरह से प्रभावित हुई है. इस जंग ने कई देशों के रणनीतिक समीकरण को बदल कर रख दिया है. अब यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह जंग कब तक चलेगी. इस जंग में क्या है पुतिन की रणनीति. रूसी राष्ट्रपति के इस कदम से क्यों बेचैन हैं यूरोपीय देश. जंग में नेटो और अमेरिका की क्या है रणनीति.
इस जंग में क्या है पुतिन की रणनीति. रूसी राष्ट्रपति के इस कदम से क्यों बेचैन हैं यूरोपीय देश. जंग में नेटो और अमेरिका की क्या है रणनीति.
प्रो पंत का कहना है कि यह जंग जल्द समाप्त होने वाली नहीं है. उन्होंने कहा कि पुतिन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं. रूसी राष्ट्रपति यह कह चुके हैं कि उनका मकसद जेलेंस्की के यूक्रेन में नव-नाजी ताक़तों को खत्म करना है.
3. प्रो पंत का कहना है कि यह जंग जल्द समाप्त होने वाली नहीं है. उन्होंने कहा कि पुतिन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं. रूसी राष्ट्रपति यह कह चुके हैं कि उनका मकसद जेलेंस्की के यूक्रेन में नव-नाजी ताकतों को खत्म करना है. उन्होंने हाल में कहा था कि युद्ध खत्म करने की कोई तारीख तय करने का कोई तुक नहीं है. इससे यह तय माना जा रहा है कि पुतिन डोनबास तक ही नहीं रुकने वाले. उधर, यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि रूस के पास इतनी मिसाइलें नहीं हैं, जितनी हमारे लोगों में जीने की चाहत है. हम अपनी हर चीज वापस लेकर रहेंगे. नेटो प्रमुख जेंस स्टोल्टेनबर्ग का कहना है कि यह युद्ध काफी लंबा खिंचने वाला है और हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यह पता है कि गैस के रूप में इन देशों की कमजोर नस उनके हाथ में है. लिहाजा वह प्रतिबंधों के बावजूद जंग के लिए डटे हुए हैं. उधर, रूस को पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों ने झटका तो दिया है, लेकिन उसके क्रूड आयल की बिक्री पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा है. रूस को अंदाजा है कि प्रतिबंध बढ़ाने को लेकर एक सीमा के बाद पश्चिमी देशों में फूट पड़ सकती है, क्योंकि वह पहले ही संकट में हैं. पुतिन देख रहे हैं कि रूसी क्रूड पर और बंदिशें लगाने के बारे में जी-20 के देशों में सहमति नहीं बन पा रही है. जर्मनी से लेकर इटली तक सबका बुरा हाल है. जर्मनी के हैम्बर्ग में तो ठंड के मौसम में हाट वाटर की राशनिंग तक पर विचार होने लगा है.
रूस को अंदाजा है कि प्रतिबंध बढ़ाने को लेकर एक सीमा के बाद पश्चिमी देशों में फूट पड़ सकती है, क्योंकि वह पहले ही संकट में हैं. पुतिन देख रहे हैं कि रूसी क्रूड पर और बंदिशें लगाने के बारे में जी-20 के देशों में सहमति नहीं बन पा रही है. जर्मनी से लेकर इटली तक सबका बुरा हाल है.
प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका को युद्ध जल्द खत्म करने में कोई दिलचस्प नहीं होगी. अमेरिका जानता है कि इस जंग में रूस कहीं न कहीं कमजोर हो रहा है. इसके अलावा यह जंग अमेरिका की धरती पर नहीं हो रही है. अमेरिका इस कोशिश में है कि जिस तरह अफगानिस्तान में फंसाकर सोवियत संघ को तोड़ दिया गया, उसी तरह यूक्रेन में फंस चुके रूस को घुटनों पर ला दिया जाए. इस जंग से यूरोपीय देशों की चिंता बढ़ी है.यूरोप में महंगाई आसमान पर है. यूरो भी डालर के मुकाबले कमजोर हो रहा है. उन्होंने कहा कि यूरोपियन यूनियन का हाल खराब होना नेटो के लिए रणनीतिक रूप से फायदे की चीज है.
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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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