Author : Manoj Joshi

Originally Published दैनिक भास्कर Published on Feb 09, 2024 Commentaries 0 Hours ago

मोदी और नवाज शरीफ के बीच केमिस्ट्री अच्छी रही है. सेना के समर्थन से इस्लामाबाद में अभी एक प्रभारी हुकूमत है, जो कई चुनौतियों से जूझ रही है. ऐसे में भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बंधों के नए रास्ते खुल सकते हैं.

हमारे पड़ोस में होने वाले चुनावों के क्या मायने हैं?

यह इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी-वर्ष है. इस साल दुनिया भर के लगभग 80 देशों में चुनाव होंगे या पहले ही हो चुके हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि सभी चुनाव लोकतांत्रिक नहीं होंगे. बहुत से चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष भी नहीं होंगे. लेकिन उन सभी के छोटे-बड़े परिणाम होंगे.

 

सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारत के पड़ोस में मालदीव, बांग्लादेश और भूटान में अभी-अभी चुनाव हुए हैं, वहीं अगले छह महीनों में भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका और इंडोनेशिया में चुनाव होंगे. यानी चीन, नेपाल और म्यांमार को छोड़कर हमारे सभी पड़ोसी इस छोटे-से कालखंड में चुनावों के साक्षी बन चुके होंगे.

 

मालदीव और भूटान में चुनावों के कारण पहले ही सरकार बदल चुकी है. बांग्लादेश में सरकार में कोई बदलाव नहीं हुआ है. और भारत को भी उम्मीद है कि उसकी मौजूदा सरकार दोबारा चुनी जाएगी. भूटान में पूर्व प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने पिछले महीने चुनाव जीतकर नई सरकार बना ली है.

 

चुनाव में बड़ा मुद्दा आर्थिक संकट का था. तोबगे को आम तौर पर भारत के प्रति मित्रवत माना जाता है और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत के 2024-25 के अंतरिम बजट में भूटान को 2399 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं.

 

यह हमारे किसी भी पड़ोसी देश को दी गई सबसे बड़ी राशि है. यह देखना अभी बाकी है कि तोबगे सरकार चीन के साथ कैसे सीमा-वार्ता करेगी. लोते शेरिंग के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने कहा था कि वे चीन के साथ सीमा-विवाद सुलझाने के लिए तैयार हैं और इस दिशा में बातचीत को आगे बढ़ाया है. भारत उस घटनाक्रम पर उत्सुकता से नजर रख रहा है, क्योंकि इसका डोकलाम क्षेत्र पर भूटान के रुख पर प्रभाव पड़ता है, जिस पर चीन दावा करता है.

इस बात की पूरी सम्भावना है कि अगले चुनावों से पहले नहीं तो उनके बाद वहां चीजें बदल सकती हैं. लेकिन इस साल की शुरुआत में बांग्लादेश में दोबारा चुनी जाने वाली शेख हसीना की अवामी लीग सरकार से ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है.

मालदीव का आवंटन- जो 2023-24 में 400 करोड़ रुपए था- वह बढ़कर 790.90 करोड़ रुपए हो गया है. यह भारत विरोधी रुख अपनाने वाली मुइज्जू सरकार से निपटने की नई दिल्ली की रणनीति का संकेत है. भारत जानता है कि कि उसे वहां मजबूत समर्थन प्राप्त है और वह इस देश के साथ जुड़े रहने का इरादा रखता है.

 

इस बात की पूरी सम्भावना है कि अगले चुनावों से पहले नहीं तो उनके बाद वहां चीजें बदल सकती हैं. लेकिन इस साल की शुरुआत में बांग्लादेश में दोबारा चुनी जाने वाली शेख हसीना की अवामी लीग सरकार से ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है.

 

चुनाव विवादास्पद था क्योंकि मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने इसका बहिष्कार किया था. इसके भले ही तत्काल कोई परिणाम न आएं, लेकिन समय के साथ बांग्लादेश में सर्वसत्तावादी झुकाव बढ़ने से इस्लामिक चरमपंथ को बढ़ावा मिल सकता है.

 

श्रीलंका में इस साल सितम्बर/अक्टूबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. समस्या यह है कि इस देश का नेतृत्व एक ऐसी पार्टी कर रही है, जो कभी शक्तिशाली रहे लेकिन अब उपहास का पात्र बन चुके राजपक्षे परिवार से जुड़ी है. यूनाइटेड नेशनल पार्टी के वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, राजपक्षे की श्रीलंका पोडजुआना पेरामुना (एसएलपीपी) के समर्थन से जीत की उम्मीद कर रहे हैं, जिसके पास संसद में बहुमत है.

 

लेकिन एसएलपीपी ने अभी तक अपना समर्थन घोषित नहीं किया है. विक्रमसिंघे भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों के पक्ष में हैं, जिसने पिछले साल आर्थिक आपातकाल के दौरान श्रीलंका की मदद की थी. उन्होंने भारत से सम्भावित मुद्रा एकीकरण की बात कही है. लेकिन वहां के प्रमुख सिंहली समुदाय में भारत-विरोधी भावनाएं है, जिसके लिए इसे स्वीकार करना मुश्किल होगा.

 

इंडोनेशिया में भी इसी महीने आम चुनाव का पहला दौर होगा, लेकिन कोई भी नई सरकार चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद इस साल के अंत तक ही कार्यभार सम्भालेगी. फिलहाल पूर्व जनरल प्राबोवो सुबिआंतो राष्ट्रपति चुनाव के लिए बड़े अंतर से आगे चल रहे हैं.

पाकिस्तान पर जरूर सवालिया निशान बना हुआ है. सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार इमरान खान जेल में हैं और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है.

पाकिस्तान पर जरूर सवालिया निशान बना हुआ है. सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार इमरान खान जेल में हैं और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है. उनके समर्थक भाषणों में उनकी आवाज उत्पन्न करने के लिए एआई का उपयोग करके और टिक टॉक की मदद से जोरदार अभियान चला रहे हैं. लेकिन फौज इमरान की पीटीआई को जीतने नहीं देगी.

 

उनकी पसंद नवाज शरीफ की पीएमएल है. मोदी और नवाज शरीफ के बीच केमिस्ट्री अच्छी रही है. सेना के समर्थन से इस्लामाबाद में अभी एक प्रभारी हुकूमत है, जो कई चुनौतियों से जूझ रही है. ऐसे में भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बंधों के नए रास्ते खुल सकते हैं.

 

मालदीव, बांग्लादेश, भूटान में अभी-अभी चुनाव हुए हैं, वहीं अगले छह महीनों में पाकिस्तान, श्रीलंका और इंडोनेशिया में चुनाव होंगे. यानी चीन, नेपाल, म्यांमार को छोड़ हमारे सभी पड़ोसी इस साल चुनावों के साक्षी बनेंगे.

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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