प्रस्तावना
भोजन सुरक्षा एवं मानसिक स्वाथ्य्य चुनौतियों के बीच संबंध में कमी से ‘सिंडेमिक’ का निर्माण होता है. इस सिंडेमिक में ये दोनों मुद्दे आबादियों के बीच एक-दूसरे की ओर आते हुए आपसी संबंध स्थापित करते हैं. इन दोनों को तेजी से करीब लाने में पहले से मौजूद यानी अंतर्निहित सामाजिक एवं ढांचागत निर्धारक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.[1] इस सिंडेमिक की वजह से भोजन असुरक्षा एवं नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य परिणामों जैसे मानसिक तनाव में वृद्धि, अवसाद एवं चिंता के बीच का जटिल संबंध प्रमुखता से उजागर होता है. ऐसे में दीर्घकालीन भोजन असुरक्षा इन मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को और भी बढ़ाती है, जिससे दोनों के बीच एक बायडायरेक्शनल यानी द्विदिश संबंध तैयार होता है. यह द्विदिश संबंध में लोगों की पर्याप्त पोषण तक पहुंच की क्षमता को बाधित करता है और इसकी वजह से एक सेल्फ़-रिइनफ़ोर्सिंग साइकल यानी स्व-मजबूत चक्र शुरू रहता है. भोजन सुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध के महत्वपूर्ण पहलूओं में स्वास्थ्य परिणामों का आपसी संबंध, संज्ञानात्मक विकास पर पोषण का प्रभाव, लिंग-आधारित असमानताएं तथा संघर्ष एवं संकटों के संयुक्त प्रभावों का समावेश है. ये सारे कारक मिलकर सार्वजनिक स्वास्थ्य के समक्ष मौजूद इस बहुमुखी चुनौती की प्रकृति को उजागर करते हैं. भोजन सुरक्षा [a] एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच पेचीदा संबंधों का हल निकालकर ही सतत विकास लक्ष्यों (SDG) 2 (जीरो हंगर/भूखमरी उन्मूलन) एवं 3 (गुड हेल्थ एंड वेल-बिइंग/बेहतर स्वास्थ्य एवं कल्याण) को हासिल किया जा सकता है. [b]
विश्व में भोजन सुरक्षा एवं पोषण पर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 11 में से औसतन 1 व्यक्ति भोजन असुरक्षा की वजह से दीर्घकालीन भूख़ से प्रभावित होता है. यह इस बात का संकेत है कि 2030 तक भूख़ [c] एवं भोजन असुरक्षा को समाप्त करने की वैश्विक कोशिशें सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रही हैं.
विश्व में भोजन सुरक्षा एवं पोषण पर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 11 में से औसतन 1 व्यक्ति भोजन असुरक्षा की वजह से दीर्घकालीन भूख़ से प्रभावित होता है.[2] यह इस बात का संकेत है कि 2030 तक भूख़ [c] एवं भोजन असुरक्षा को समाप्त करने की वैश्विक कोशिशें सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रही हैं. हालांकि संघर्षों, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती भोजन कीमतों एवं असमानताओं के कारण होने वाली वैश्विक भूख़ में स्थिरता आती दिख रही है. 2017 में जहां 815 मिलियन लोग भूख़ से प्रभावित थे, वहीं यह आंकड़ा 2023 में घटकर 333 मिलियन हो गया है.[3] इस सुधार का श्रेय COVID-19 महामारी के दौरान और उसके पश्चात किए गए हस्तक्षेपों को दिया जा सकता है. लेकिन वैश्विक अनाज व्यापार को प्रभावित करने वाले यूक्रेन युद्ध की वजह से इस सुधार की रफ्तार धीरे-धीरे कम हुई है.[4] इसके अतिरिक्त ग़ाजा में चल रहे संघर्ष के कारण भी वैश्विक भोजन असुरक्षा पैदा होगी.[5] 2019 से 2022 के बीच वैश्विक भूख़ में 122 मिलियन का इज़ाफ़ा हुआ, जबकि भोजन असुरक्षा में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.[6] स्थानीय स्तर पर होने वाले खाद्यान्न की कमी के अलावा संघर्षों की वजह से वैश्विक भोजन व्यवस्था, कृषि उत्पादन प्रभावित होता है. इसी प्रकार संघर्षों के कारण कृषि उत्पादन में कमी से आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित होती है और खाद तथा कृषि रसायनों जैसे महत्वपूर्ण वस्तुओं की कमी देखी जाती है. इसके साथ ही बढ़ती भोजन कीमतों के कारण भी वैश्विक स्तर पर भोजन सुरक्षा में अनेक बाधाएं देखी जाती हैं.[7]
मानसिक III स्वास्थ्य एवं भोजन असुरक्षा: एक सर्कुलर संबंध
भोजन असुरक्षा एवं नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य एक दूसरे के साथ जटिलता से जुड़े हुए हैं. (चित्र 1) उदाहरण के लिए भोजन असुरक्षा के कारण अवसाद हो सकता है और अवसाद के लक्षणों से भोजन असुरक्षा में वृद्धि हो सकती है. घरों में गंभीर भोजन असुरक्षा तथा संभावित नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच बेहद मजबूत सह-संबंध होता है.[8] जब पर्याप्त खाद्यान्न तक पहुंच को लेकर अनिश्चितता की स्थिति होती है तो इस वजह से चिंता बढ़ती है. भोजन सुरक्षा को लेकर इस चिंता के कारण बढ़ने वाले तनाव की वजह से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. इसके अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को बढ़ाने वाले कारकों में जेनेटिक प्रीडिस्पोजिशंस यानी अनुवांशिक पूर्वाग्रह, सामाजिक निर्धारक एवं निजी अनुभव जैसे ट्रॉमा यानी मानसिक आघात संबंधी इतिहास या फिर स्थितियों से निपटने की अपर्याप्त क्षमता शामिल है.
चित्र 1: मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट एवं भोजन असुरक्षा के बीच सर्कुलर रिलेशनशिप

स्रोत: कैलगरी फुड बैंक[9]
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक स्वास्थ्य की व्याख्या इस प्रकार की है. “मेंटल वेल-बिइंग यानी मानसिक कल्याण की वह दशा, जिसमें लोग जिंदगी के तनाव का सामना करते हुए अपनी क्षमताओं का उपयोग कर बेहतर तरीके से सीखकर काम करते हुए अपने समाज के लिए योगदान दे सकते हैं.”[10] विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में भोजन असुरक्षा, कमज़ोर मानसिक स्वास्थ्य परिणामों एवं विशिष्ट मनोसामाजिक तनावों से जुड़ी हुई है. लेकिन यह विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुदा होती है.[11] यह विकास के आरंभिक दिनों में देरी, संज्ञानात्मक विकास को बिगाड़ने और मानसिक स्वास्थ्य मापदंडों पर कम स्कोर के साथ जुड़ा हुआ है. इसकी मुख़्य वजह माइक्रोन्यूट्रियंट्स डिफिशंसी यानी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है.[12] भोजन असुरक्षा से महिलाएं अनुपातहीन ढंग से प्रभावित होती हैं, जिसकी वजह से उनके मानसिक तनाव का शिकार होने की संभावना बढ़ जाती है.[13] माताएं जब भोजन असुरक्षा का अनुभव करती हैं तो माताओं एवं बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे अधिक पाए जाते हैं. इस तनाव के प्रभाव को कम करने के लिए सामाजिक नीति हस्तक्षेप का उपयोग किया जा सकता है.[14] भोजन से वंचित परिवारों के बच्चों को अक्सर अपने पालकों के उग्र बर्ताव और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है. इसका परिणाम बच्चों के नकारात्मक बर्ताव के रूप में देखा जा सकता है.[15] बच्चों में गंभीर भूख़, सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक अहम मुद्दा है. इसकी वजह से मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है तथा पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) अर्थात अभिघातजन्य/हादसा पश्चात तनाव विकार विकसित होने की संभावना रहती है. अनुसंधानों के दौरान यह पाया गया है कि यह स्वतंत्र रूप से लंबी बीमारी, चिंता, अवसाद के साथ अंतरिक व्यवहार से संबंधित है. इन अनुसंधानों में पर्यावरणीय, मैटरनल यानी मातृक तथा चाइल्ड-रिलेटेड फैक्टर यानी बाल-संबंधी कारकों का भी विचार किया गया था.[16] इतना ही नहीं गंभीर भूख़ का जन्म के वक़्त कम वजन, बेघर होने तथा आघात पहुंचाने वाली जीवन घटनाओं से भी मजबूत संबंध होता है. ये सारी बातें प्रभावित आबादी की असुरक्षितता को बढ़ाती हैं.
निश्चित रूप से भोजन असुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंधों को लेकर काफ़ी दस्तावेज़ मौजूद हैं. 2018 में ओंटारियो में हुए एक अध्ययन में पाया गया था कि पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने वाले 40.4 फ़ीसदी लोगों को 12 माह की अवधि में गंभीर भोजन असुरक्षा का सामना पड़ा था.[17] इन लोगों को अक्सर अपनी सीमित आय में गुजर-बसर करने के लिए अपने भोजन की वस्तुओं में कटौती करनी पड़ी थी. इसके मुकाबले भोजन सुरक्षित लोगों में से केवल 15.6 फ़ीसदी लोगों ने ही समान दरों पर मानसिक स्वास्थ्य सहायता का उपयोग किया था.[18]
एक समीक्षा अध्ययन ने भोजन असुरक्षा एवं मानसिक पीड़ा के बीच संबंधों की स्पष्ट रूप से पुष्टि की है. इस अध्ययन ने मानसिक स्वास्थ्य लक्षणों (ईटिंग डिसऑर्डर्स एंड सुसासइड/भोजन विकारों एवं आत्महत्या), आस-पास के कारकों (पर्यावरणीय एवं निजी प्रभाव) तथा खाद्यान्न तक सीमित पहुंच जैसे अहम क्षेत्रों में इसे लेकर और अध्ययन करने की बात कही है.[19] COVID-19 महामारी के दौरान भोजन असुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध को लेकर हुए अध्ययन में पाया गया कि भोजन असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों में चिंता (257 फ़ीसदी) एवं अवसाद (253 फ़ीसदी) पाए जाने का ख़तरा अधिक होता है.[20] लंदन में हुई एक केस स्टडी में भोजन बैंकों पर आश्रित परिवारों के अनुभवों का परीक्षण किया गया.[21] इसमें हिस्सा लेने वाले लोगों ने भोजन की उपलब्धता को लेकर अनिश्चितता के कारण लंबे समय तक तनाव होने की बात बताई. इस वजह से अन्य मूलभूत सुविधाएं जैसे कि आवास एवं स्वास्थ्य सेवा को हासिल करने लेकर उनकी चिंता में भी इज़ाफ़ा हुआ था. गुणात्मक साक्षात्कारों से साफ़ हुआ कि भोजन तक पहुंच को लेकर लगातार बनी हुई चिंता के कारण रोज़मर्रा की जिंदगी में व्यावधान तथा पारिवारिक संबंधों पर नकारात्मक असर हुआ था. बच्चों को पर्याप्त पोषण मुहैया करवाने में विफ़ल रहने के लिए पालक खुद को ही दोषी मानते हुए आत्मग्लानी का शिकार होते थे. इसके चलते उनके सामने मौजूद मानसिक चुनौतियां और भी बढ़ जाती थी.
160 देश के युवाओं में स्वास्थ्य, भोजन उपलब्धता तथा इमोशनल वेल-बिइंग यानी भावनात्मक कल्याण के बीच एक कड़ी पायी गई है.[22] जीवनावश्यक वस्तुओं जिसमें, भोजन स्रोत, पहुंच, उपलब्धता एवं पोषण स्तर शामिल हैं, का अभाव मानसिक कल्याण को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है.[23] अफ्रीका में हुई प्रणालीगत समीक्षा से संकेत मिला है कि भोजन असुरक्षा की वजह से बुजुर्ग वयस्कों एवं महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष रूप से ज़्यादा असर पड़ता है.[24] इसके अलावा पुर्तगाल में हुए अध्ययनों से दिखाई देता है कि भोजन-असुरक्षित परिवारों में रहने वाली महिलाओं में चिंता एवं अवसाद का स्तर अधिक होता है.[25] COVID-19 महामारी के दौरान भोजन असुरक्षा में इज़ाफ़े ने कमज़ोर समुहों को अनुपातहीन ढंग से प्रभावित किया, जिसकी वजह से नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य परिणामों को लेकर इन समूहों की संवेदनशीलता में वृद्धि हुई.[26] महामारी के दौरान की आपात स्थिति के चलते एक विस्तृत एवं प्रणालीगत वैश्विक प्रतिक्रिया देने की अहमियत भी उजागर हो गई. इसका कारण यह था कि COVID-19 की वजह से पहले से ही मौजूद कमज़ोरियां बढ़ी और ढांचागत असमानताओं में इज़ाफ़ा हुआ. इसके चलते इस जटिल समस्या से निपटने में मौजूदा नीति ढांचों की अपर्याप्तता भी साफ़ हो गई.
भोजन असुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए संघर्ष एक बेहद अहम निर्धारक है. संघर्ष का कमज़ोर तबके/आबादी, विशेषत: युवा एवं किशोरों पर दूरगामी असर हो सकता है. ग़ाजा जैसे क्षेत्रों में भोजन असुरक्षा एक गंभीर विषय है, जहां 59.4 फ़ीसदी बच्चे इससे प्रभावित हैं. इस संकट को वर्तमान में चल रहा संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता एवं सीमित संसाधन और भी गहरा कर रहे हैं.
भोजन सुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के सामाजिक-आर्थिक निर्धारक
पौष्टिक आहार की उपलब्धता का वित्तीय स्थिरता के साथ बेहद करीबी संबंध होता है. नियमित आय वालों के पास पौष्टिक विकल्पों को अपनाने की क्षमता होती है. ऐसे में इन लोगों पर भोजन असुरक्षा को लेकर पड़ने वाला तनाव घट जाता है. दूसरी ओर वित्तीय परेशानी के कारण चिंता बढ़ने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर होता है, क्योंकि ऐसे लोगों को पर्याप्त भोजन तक पहुंच स्थापित करने में दिक्कत होती है. शिक्षा हासिल करने की भी इसमें अहम भूमिका होती है. अच्छी शिक्षा हासिल करने वाले लोगों की आय भी अधिक होती है, जिसके चलते वे उन संसाधनों तक पहुंच स्थापित करने में सफ़ल हो जाते हैं जो भोजन सुरक्षा और पौष्टिक जागृति को बढ़ाने में सहायक साबित होते हैं. एक अध्ययन से साफ़ हुआ है कि भोजन-असुरक्षित विद्यार्थी आमतौर पर कलंक और शर्म का सामना करते हैं. ऐसे में वे सहायता लेने में हिचकिचाते हैं और इस कारण के अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में उनके स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे और भी गंभीर हो जाते हैं.[27] इसके विपरीत सामाजिक सहायता से भोजन असुरक्षा के नकारात्मक असर को कम किया जा सकता है. यह बात 2018 में सब-सहारन अफ्रीका में हुए एक अध्ययन में साफ़ हुई थी.[28] इसके अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले लोग जटिल स्वास्थ्य सेवा व्यवस्थाओं में अपनी पौष्टिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते देखे जा सकते हैं. इन लोगों के समक्ष पौष्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध कमज़ोर मरीज व्यवस्था तथा सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसी बाधाएं मौजूद रहती हैं.[29]
भोजन असुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए संघर्ष एक बेहद अहम निर्धारक है. संघर्ष का कमज़ोर तबके/आबादी, विशेषत: युवा एवं किशोरों पर दूरगामी असर हो सकता है. ग़ाजा जैसे क्षेत्रों में भोजन असुरक्षा एक गंभीर विषय है, जहां 59.4 फ़ीसदी बच्चे इससे प्रभावित हैं.[30] इस संकट को वर्तमान में चल रहा संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता एवं सीमित संसाधन और भी गहरा कर रहे हैं. इन बातों की वजह से औसतन 2.2 मिलियन लोगों को तीव्र भोजन असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है. इसमें विनाशकारी भूख़ का सामना करने वाले 576,600 लोगों का भी समावेश है. फिलिस्तीन में कब्ज़े वाले क्षेत्रों जैसे संघर्ष वाले इलाकों में आर्थिक कमज़ोरी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भोजन की ख़पत के वास्तविक मापदंड के मुकाबले अधिक होता है. ऐसे में उच्च-तनाव वाले माहौल में भोजन तक तनाव-मुक़्त पहुंच मुहैया करवाने की आवश्यकता उजागर हो जाती है.[31] यमन में दीर्घकालीन कूपोषण, आवश्यक संसाधनों तक सीमित पहुंच एवं जलवायु परिस्थितियों के कारण कॉलेरा/हैजा संक्रमण [d] में इज़ाफ़ा हुआ है.[32] डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो का उदाहरण भी इस बात को साफ़ कर देता है कि लंबी अवधि तक चलने वाले संघर्षों की वजह से कैसे गंभीर भोजन असुरक्षा एवं कूपोषण में वृद्धि होती है.[33] एक अनुमान के अनुसार गंभीर भोजन असुरक्षा का सामना कर रहे 25.4 मिलियन लोगों में से 900,000 बच्चे गंभीर कूपोषण से पीड़ित हैं.[34] दशकों से चल रहे संघर्ष एवं विस्थापन के कारण 26 मिलियन नागरिक गंभीर भूख़ का सामना कर रहे हैं. इस स्थिति को मौसमी झटकों, इबोला प्रकोप तथा COVID-19 महामारी के आर्थिक प्रभावों ने और भी ख़राब कर दिया है.
इस चल रही अनिश्चितता से मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां बढ़ती हैं, क्योंकि खाद्यान्न की कमी और अन्य अनिश्चितताओं को लेकर चिंता के कारण लोग व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक स्तर पर दबाव का सामना करते हैं. अफगानिस्तान में दशकों से चल रहे संघर्ष की वजह से गंभीर भोजन असुरक्षा एक मानवीय संकट बनकर उभरी है.[35] 2021 में सरकार के पतन के साथ ही अब 19.9 मिलियन नागरिक गंभीर भूख़ का सामना कर रहे हैं. इसमें चार मिलियन कूपोषित महिलाओं तथा बच्चों का समावेश है. इसके अलावा यमन में चल रहे लंबे गृह युद्ध की वजह से 17 मिलियन लोगों को गंभीर भूख़ का सामना करना पड़ रहा है. इस वजह से पहले से ही कमज़ोर वर्गों के बीच कूपोषण में भी वृद्धि हुई है. इन क्षेत्रों में चल रहे संघर्षों की वजह से अस्थिरता, विस्थापन और गरीबी में इज़ाफ़ा होता है और इसका मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम दिखाई देता है.
भोजन असुरक्षा का प्रभाव व्यक्तिगत स्वास्थ्य से परे भी होता है, जिसकी वजह से असमानता तथा गरीबी जैसे प्रणालीगत मुद्दे भी उभरते हैं. इसकी वजह से पौष्टिक आहार तक सीमित पहुंच के कारण गरीबी का अविरत चक्र शुरू होता है. इस कारण आहार की गुणवत्ता घटती है. परिणामस्वरूप स्वास्थ्य परिणाम प्रभावित होता है और उत्पादकता में कमी के साथ-साथ मृत्यु दर में भी इज़ाफ़ा होता है.[36] इस गतिशीलता की वजह से प्रभावित आबादी के भीतर मौजूद मानसिक चुनौतियां और बढ़ जाती हैं. अनुसंधान से संकेत मिलता है कि भोजन असुरक्षा ढांचागत असमानता, प्रणालीगत नस्लवाद तथा विभिन्न तरीकों के उत्पीड़न के साथ मिलकर गंभीर तनाव पैदा करते हुए अहम संसाधनों तक पहुंच को सीमित करता है. ऐसे में प्रतिकूल परिस्थितियों को लेकर चला आ रहा इंटरजनरेशनल यानी पीढ़ीगत चक्र और मजबूत हो जाता है. आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे विकसित देशों में भी पर्याप्त और पौष्टिक भोजन तक पहुंच में आने वाली बाधाओं के कारण गरीबी का अविरत चक्र देखा जाता है.[37] विकासशील देशों में भोजन सुरक्षा के अभाव की वजह से पोषण में कमी बढ़ती है. यह बात रुग्णता/बीमारियों एवं मृत्यु की बढ़ी हुई दर से जुड़ी हुई है.[38]
आर्थिक कठिनाइयों एवं अपर्याप्त पौष्टिक प्रक्रियाओं के कारण यह ख़तरा विशेषत: एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्र के बच्चों पर और भी अधिक मंडराने लगता है. मैक्सिको जैसे देश में जलवायु-संबंधी आपदाओं तथा आर्थिक असमानता जैसों कारकों की वजह से भोजन असुरक्षा में इज़ाफ़ा होता है और इसके चलते महिलाओं समेत कमज़ोर वर्गों की आबादी अनुपातहीन ढंग से प्रभावित होती है.[39] इंपेरिकल स्टडीज यानी प्रयोगसिद्ध अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु-प्रेरित घटनाओं जैसे बाढ़ की वजह से भी भोजन असुरक्षा में बढ़ावा होता है और कालांतर में इसका परिणाम महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर देखा जा सकता है. ऐसे में वित्तीय सुरक्षा एवं अनुकूलक जीवन-यापन में वृद्धि आवश्यक हो गई है.[40]
इतना ही नहीं भोजन असुरक्षा के कारण समाज के मानसिक स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर होता है, जिससे सामाजिक संबंध पर दबाव बढ़ता है और उत्पादकता में कमी आने की वजह से सामाजिक तनाव में इज़ाफ़ा होता है.[41] अनुसंधान से संकेत मिलता है कि जिन परिवारों में देखभाल करने वाले मानसिक तनाव का सामना करते हैं, वहां भोजन असुरक्षा दिखाई देने की संभावना अधिक होती है. यह बात विशेष रूप से कम आय के संदर्भों में लागू होती है. इसके विपरीत मजबूत सामाजिक संबंधों के कारण सुरक्षा की भावना बढ़ती है और इस वजह से भोजन सुरक्षा का ख़तरा कम हो जाता है.
सस्टेनेबल सोल्यूशंस/वहनीय समाधान, वैश्विक प्रयास एवं नीतिगत सुझाव
भोजन असुरक्षा से निपटने के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को लक्षित करने वाले हस्तक्षेप किए जाने ज़रूरी है, ताकि पौष्टिक आहार तक समान पहुंच को सुनिश्चित किया जा सके. इस तरह के प्रयास न केवल मानसिक कल्याण में इज़ाफ़ा करने के लिए आवश्यक है, बल्कि इसके माध्यम से व्यापक सामाजिक चुनौतियों से भी निपटा जा सकता है.
भोजन असुरक्षा सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक ऐसी चिंता है जिसके लिए व्यापक स्तर पर हस्तक्षेप ज़रूरी है. एक अनुमान है कि वर्तमान में गंभीर भोजन असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों के लिए भोजन सुरक्षा उपलब्ध करवाने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य के छह प्रचलित विपरीत परिणामों में 8.9-16 फ़ीसदी की कमी लाई जा सकती है.
भोजन असुरक्षा सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक ऐसी चिंता है जिसके लिए व्यापक स्तर पर हस्तक्षेप ज़रूरी है. एक अनुमान है कि वर्तमान में गंभीर भोजन असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों के लिए भोजन सुरक्षा उपलब्ध करवाने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य के छह प्रचलित विपरीत परिणामों में 8.9-16 फ़ीसदी की कमी लाई जा सकती है.[42] इन परिणामों में हाल ही में आने वाले अवसाद विचारों, पिछले एक वर्ष में देखे गए अवसाद के मामलों, चिंता संबंधी विकारों, मूड डिसऑर्डर्स, कमज़ोर मानसिक स्वास्थ्य दशा और पिछले वर्ष के अंदर आने वाला आत्महत्या का विचार करना शामिल है. पर्याप्त पौष्टिक आहार की आपूर्ति सुनिश्चित करके ही कूपोषण का मुकाबला किया जा सकता है. इसका कारण यह है कि पौष्टिक आहार मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलूओं में प्रत्यक्ष रूप से सहायक साबित होता है. पर्याप्त मात्रा में आहार लिए जाने से नागरिकों के ब्रेन फंक्शन को उच्चतम स्तर पर रखने के लिए आवश्यक न्यूट्रियंट्स यानी पोषक तत्व, जिसमें विटामिन B, आयरन एवं पॉलीफिनॉल्स का समावेश है, भी मिलते है. ये न्यूट्रियंट्स यानी पोषक तत्व जीवन के विभिन्न स्तरों पर मानसिक स्वास्थ्य तथा संज्ञानात्मक प्रदर्शन में सकारात्मक योगदान देते हैं. ऐसे में बढ़ती आयु के साथ आने वाली संज्ञानात्मक स्तर की कमी से बचा जा सकता है और उसे बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है.[43]
चुनौतियों के बावजूद स्केलेबल एवं सस्टेनेबल यानी मापनीय तथा वहनीय हस्तक्षेप एवं इन्नोवेटिव अप्रोचेस् अर्थात नवीन दृष्टिकोण से विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की अलग-अलग आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर समाधान हासिल किया जा सकता है. पश्चिमी अफ्रीकी देशों में असंरक्षित/असुरक्षित आबादी जैसे बच्चों, महिलाओं युवा एवं बुजुर्गों को सीधे सहायता पहुंचाने वाले सामाजिक सुरक्षा कवच कार्यक्रमों की वजह से इन वर्गों को बढ़ती हुई भोजन कीमतों के प्रभाव से निपटने में आसानी हो रही है.[44] यूरोपीयन यूनियन के ‘फार्म टू फोर्क स्ट्रैटेजी’ में भोजन सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एक अनूठे रचनात्मक तरीके [e] को अपनाया गया है.[45] तकनीक-आधारित समाधान जैसे मोबाइल एप्प एवं डाटा एनालिटिक्स का उपयोग करते हुए खाद्यान्न वितरण व्यवस्था में सुधार करते हुए भोजन सुरक्षा को बेहतर बनाने का प्रयास हो रहा है. इसके माध्यम से जहां खाद्यान्न की बर्बादी में कमी आयी है, वहीं वक़्त पर पौष्टिकता संबंधी जानकारी पहुंचाने में भी सफ़लता मिल रही है.[46]
इसी बीच भारत के इलेक्ट्रॉनिक पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (e-PDS) में लाभार्थियों तक सुचारु रूप से सब्सिडाइज्ड अर्थात अनुदानित अनाज पहुंचाने के लिए तकनीक का उपयोग किया जा रहा है. तकनीक की सहायता लेने की वजह से भोजन वितरण को अधिक कुशल बनाकर समाज के उन वर्गों तक पहुंच सुनिश्चित की जा रही है जो सबसे ज़्यादा ख़तरे का सामना करते है.[47] फ्रांस तथा कैलिफोर्निया में शहरी सामुदायिक बगीचों तथा फार्म्स का उपयोग करते हुए आसानी से उपलब्ध स्थानीय उपज मुहैया करवाई जा रही है. ऐसा करते हुए मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपलब्ध हरित क्षेत्रों के साथ-साथ सामुदायिक हिस्सेदारी भी सुनिश्चित की जा रही है.[48] यह बागीचे वहनीयता एवं व्यापक कल्याण का समर्थन करने वाले प्रकृति-आधारित समाधान मुहैया करवाते हैं. ऐसा देखा गया है कि सामुदायिक बगीचे मानसिक, सामाजिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी लाभ पहुंचाते हैं. ऐसे में शहरी परिवेश में इनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करने की क्षमता उजागर होती है.[49]
वन हेल्थ अप्रोच यानी दृष्टिकोण एक ऐसा “समन्वित एवं एकीकृत ढांचा है जो मानव, पशु एवं पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को अनुकूलित करने के साथ वहनीयता संतुलन स्थापित करने में सहायक है.” इसके अलावा इस ढांचे के माध्यम से जटिल वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए एक वैज्ञानिक रूप से पुख़्ता इंटरडिसिप्लिनरी स्ट्रैटेजी भी उपलब्ध होती है.[50] जलवायु परिवर्तन, भोजन सुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण संबंधों पर प्रकाश डालते हुए वन हेल्थ दृष्टिकोण पर्यावरणीय परिवर्तनों, जूनॉटिक डिसिजेस् यानी पशु एवं मानवों के बीच फ़ैलने वाली बीमारियां तथा कृषि प्रक्रियाओं के बीच पेचीदा संबंधों पर बल दे सकता है. सांस्कृतिक जवाबदेही एवं रिफ़्लेक्सिविटी अर्थात शोध में अपनी भूमिका को स्वीकार करने में निहित वन हेल्थ आदर्श इन अंतर संबंधों को विस्तृत रूप से समझने को प्रोत्साहित करता है. वन हेल्थ आदर्श नकारात्मक परिणामों की ओर ले जाने वाले फीडबैक लूप्स की शिनाख्त कर उनसे निपटने के लिए इन अंतर संबंधों की समग्र समझ को प्रोत्साहित करते हैं.
इसके अतिरिक्त डिजिटल प्लेटफॉर्म्स एवं मोबाइल एप्लिकेशंस मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, जिसमें स्ट्रेस रिडक्शन यानी तनाव घटाना, थेरेपी यानी चिकित्सा तथा माइंडफुलनेस प्रैक्टिसेस के साथ अक्सर एकीकृत पौष्टिक सूचना मुहैया करवाते हैं. अध्ययनों से संकेत मिला है कि कॉलेज विद्यार्थियों को लक्षित करने वाले मोबाइल मेंटल हेल्थ एप्लिकेशंस व्यापक रूप से स्वीकार्य, व्यवहार्य एवं प्रभावी हैं. ऐसे में ये विश्वविद्यालय काउंसिलिंग यानी परामर्श सेवाएं देने की अपार क्षमता रखने वाले महत्वपूर्ण संसाधन बन गए हैं.[51] इसके साथ सिक्योर मेंटल हेल्थ एप्लिकेशंस के विकास में ट्रांसडाग्यनॉस्टिक ढांचे के भीतर इमोशन-रेग्युलेशन यानी भावना-विनियमन कौशल को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इसके अलावा बच्चों के आहार, शारीरिक गतिविधियों एवं मोटापे से संबंधित स्कूल-आधारित नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करने में सुधार करने के लिए अपनाई गई रणनीति के अध्ययनों से यह पता चला है कि प्रभाव के आकार की एक विस्तृत श्रृंखला है.[52] सफ़ल दृष्टिकोणों में स्कूल में उपलब्ध करवाए जाने वाले आहार की पौष्टिक गुणवत्ता में सुधार करना, प्रभावी कैंटीन नीतियां अपनाना तथा नियमित रूप से शारीरिक शिक्षा के सेशंस का आयोजन शामिल हैं. मेडिकल न्यूट्रिशन एजुकेशन अर्थात चिकित्सा पोषण शिक्षा में कमी को दूर करने की कोशिशों के तहत एक एकीकृत ढांचे को अपनाने का प्रस्ताव है जिसके तहत क्षमता-आधारित पौष्टिक पाठ्यक्रम, इंटर-प्रोफेशनल एजुकेशन के साथ हेल्थ प्रोफेशनल ट्रेनिंग में अनुसंधान को बढ़ाना भी शामिल रहे.
भोजन असुरक्षा एवं मानसिक रोग स्वास्थ्य के बीच चक्र को तोड़ने के लिए मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को सीधे लक्षित करने वाले हस्तक्षेपों की आवश्यकता है. सस्टेनेबल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने और 2030 तक डेवलपमेंट एजेंडा को हासिल करने के लिए दोनों ही तत्वों को लक्षित करने वाली पहलों को साझा करना ज़रूरी है.
भोजन असुरक्षा एवं मानसिक रोग स्वास्थ्य के बीच चक्र को तोड़ने के लिए मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को सीधे लक्षित करने वाले हस्तक्षेपों की आवश्यकता है. सस्टेनेबल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने और 2030 तक डेवलपमेंट एजेंडा को हासिल करने के लिए दोनों ही तत्वों को लक्षित करने वाली पहलों को साझा करना ज़रूरी है. विभिन्न देशों के बीच फुड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइजेशन (FAO), वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) तथा G20 जैसे संगठनों के सहयोग से भोजन आपूर्ति श्रृंखलाओं में आ रहे व्यावधान को दूर करने तथा मानवीय प्रयासों को मजबूत करने में सहायता मिल सकती है. मानसिक स्वास्थ्य सहायता को वर्तमान सामुदायिक पहलों, विशेषत: व्यापक तौर पर भोजन असुरक्षा का सामना करने वाले क्षेत्रों में, को शामिल करने से एक समग्र रणनीति हासिल की जा सकती है. इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों, सामुदायिक नेताओं एवं नीति निर्माताओं के बीच सहयोग बेहद आवश्यक है.
Endnotes
[1] Ovinuchi Ejiohuo et al., “Nourishing the Mind: How Food Security Influences Mental Wellbeing,” Nutrients 16, no. 4 (2024): 501.
[2] UNICEF, “The state of food security and nutrition in the world 2024: Financing to end hunger, food insecurity and malnutrition in all its forms,” 2024.
[3] World Food Programme, “Global Hunger Crisis,” October 24, 2024, https://www.wfp.org/global-hunger-crisis.
[4] Leal Filho et al., “How the war in Ukraine affects food security,” Foods 12, no. 21 (2023): 3996.
[5] Abdo Hassoun et al., “From acute food insecurity to famine: how the 2023/2024 war on Gaza has dramatically set back sustainable development goal 2 to end hunger,” Frontiers in Sustainable Food Systems 8, 2024: 1402150.
[6] WHO, FAO, IFAD, UNICEF, and WFP, The State of Food Security and Nutrition in the World 2023: Urbanization, agrifood systems transformation and healthy diets across the rural–urban continuum, Italy, World Health Organization, 2023.
[7] Ben Hassen et al., “Impacts of the Russia-Ukraine war on global food security: towards more sustainable and resilient food systems?,” Foods 11, no. 15 (2022): 2301.
[8] Jessiman-Perreault et al., “The household food insecurity gradient and potential reductions in adverse population mental health outcomes in Canadian adults,” SSM-Population Health 3, 2017: 464-472.
[9] Calgary Food Bank, “Mental Health,” https://www.calgaryfoodbank.com/2022/mental-health/.
[10] Pan American Health Organization, “Mental Health”
[11] Andrew D Jones, “Food insecurity and mental health status: a global analysis of 149 countries,” American Journal of Preventive Medicine 53, no. 2 (2017): 264-273.
[12] Maureen M Black et al., “Advancing Early Childhood Development: From Science to Scale 1: Early childhood development coming of age: Science through the life course,” Lancet 389, no. 10064 (2017): 77.
[13] R Srinivasa Murthy et al., “Mental health consequences of war: a brief review of research findings,” World Psychiatry 5, no. 1 (2006): 25.
[14] Robert C Whitaker et al., “Food insecurity and the risks of depression and anxiety in mothers and behavior problems in their preschool-aged children,” Pediatrics 118, no. 3 (2006): e859-e868.
[15] Kevin A Gee et al., “Parenting while food insecure: Links between adult food insecurity, parenting aggravation, and children’s behaviors,” Journal of Family Issues 40, no. 11 (2019): 1462-1485.
[16] Linda Weinreb, “Hunger: its impact on children’s health and mental health,” Pediatrics 110, no. 4 (2002): e41-e41.
[17] Valeria Tarasuk et al., “The relation between food insecurity and mental health care service utilization in Ontario,” The Canadian Journal of Psychiatry 63, no. 8 (2018): 557-569.
[18] Lynn McIntyre et al., “Household food insecurity in Canada: problem definition and potential solutions in the public policy domain,” Canadian Public Policy 42, no. 1 (2016): 83-93.
[19] Candice A Myers, “Food insecurity and psychological distress: a review of the recent literature,” Current Nutrition Reports 9, no. 2 (2020): 107-118.
[20] Di Fang et al., “The association between food insecurity and mental health during the COVID-19 pandemic,” BMC Public Health 21, 2021: 1-8.
[21] Claire Thompson et al., “Understanding the health and wellbeing challenges of the food banking system: A qualitative study of food bank users, providers and referrers in London,” Social Science & Medicine 211, 2018: 95-101.
[22] Frank J. Elgar et al., “Food Insecurity, State Fragility and Youth Mental Health: A Global Perspective,” SSM - Population Health 14, 2021: 100764.
[23] Lesley Weaver et al., “Unpacking the “black box” of global food insecurity and mental health,” Social Science & Medicine 282, 2021: 114042.
[24] John Paul Trudell et al., “The Impact of Food Insecurity on Mental Health in Africa: A Systematic Review,” Social Science & Medicine 278, 2021: 113953.
[25] Ana Aguiar et al., “The bad, the ugly and the monster behind the mirror-Food insecurity, mental health and socio-economic determinants,” Journal of Psychosomatic Research 154, 2022: 110727.
[26] Jason M Nagata et al., “Food insufficiency and mental health in the US during the COVID-19 pandemic,” American Journal of Preventive Medicine 60, no. 4 (2021): 453-461.
[27] Lisa Henry, “Understanding food insecurity among college students: Experience, motivation, and local solutions,” Annals of Anthropological Practice 41, no. 1 (2017): 6-19.
[28] Muzi Na et al., “Does social support modify the relationship between food insecurity and poor mental health? Evidence from thirty-nine sub-Saharan African countries,” Public Health Nutrition 22, no. 5 (2019): 874-881.
[29] Tanja Schwarz et al., “Barriers to accessing health care for people with chronic conditions: a qualitative interview study,” BMC Health Services Research 22, no. 1 (2022): 1037.
[30] World Food Programme, “Palestine,” October 24, 2024, https://www.wfp.org/countries/palestine.
[31] Na et al., “Does social support modify the relationship between food insecurity and poor mental health? Evidence from thirty-nine sub-Saharan African countries”
[32] Qin Xiang Ng et al., “Yemen’s cholera epidemic is a one health issue,” Journal of Preventive Medicine and Public Health 53, no. 4 (2020): 289.
[33] Ejiohuo et al., “Nourishing the Mind: How Food Security Influences Mental Wellbeing”.
[34] Ejiohuo et al., “Nourishing the Mind: How Food Security Influences Mental Wellbeing”.
[35] Claire Klobucista et al., “Al-Shabaab,” Council on Foreign Relations 6, 2022.
[36] Tanja Schwarz et al., “Barriers to accessing health care for people with chronic conditions: a qualitative interview study”
[37] Elizabeth A Dowler and Deirdre O’connor, “Rights-based approaches to addressing food poverty and food insecurity in Ireland and UK,” Social Science & Medicine 74, no. 1 (2012): 44-51.
[38] Yasir Khan and Zulfiqar A. Bhutta, “Nutritional deficiencies in the developing world: current status and opportunities for intervention,” Pediatric Clinics 57, no. 6 (2010): 1409-1441.
[39] Mireya Vilar-Compte et al., “How do context variables affect food insecurity in Mexico? Implications for policy and governance,” Public Health Nutrition 23, no. 13 (2020): 2445-2452.
[40] Sophie Gepp et al., “Impact of unseasonable flooding on women's food security and mental health in rural Sylhet, Bangladesh: a longitudinal observational study,” The Lancet Planetary Health 6 (2022): S14.
[41] Margaret Lombe et al., “Cumulative risk and resilience: The roles of comorbid maternal mental health conditions and community cohesion in influencing food security in low-income households,” Social Work in Mental Health 16, no. 1 (2018): 74-92.
[42] Calgary Food Bank, “Mental Health”
[43] Seema Puri et al., “Nutrition and Cognitive Health: A Life Course Approach,” Frontiers in
Public Health 11, 2023:1023907.
[44] William Hermann Arrey, “Persistent Chronic Food Insecurity and Mitigation Challenges in Sahelian Africa: Can Lessons from ‘Targeted’ Social Protection Policies in the Horn of Africa be of help?”
[45] Felix Baquedano et al., “Food security implications for low‐and middle‐income countries under agricultural input reduction: The case of the European Union's farm to fork and biodiversity strategies,” Applied Economic Perspectives and Policy 44, no. 4 (2022): 1942-1954.
[46] Rambod Abiri et al., “Application of digital technologies for ensuring agricultural productivity,” Heliyon 9, no. 12 (2023): e22601.
[47] Rashmi Pandhare et al., “Modern Public Distribution System for Digital India,” International Research Journal of Engineering and Technology (IRJET) Volume 3, 2016.
[48] Erica Dorr et al., “Life Cycle Assessment of Eight Urban Farms and Community Gardens in France and California,” Resources, Conservation and Recycling 192 (2023): 106921, https://doi.org/10.1016/j.resconrec.2023.106921.
[49] Anna Gregis et al., “Community Garden initiatives addressing health and well-being outcomes: a systematic review of infodemiology aspects, outcomes, and target populations,” International Journal of Environmental Research and Public Health 18, no. 4 (2021): 1943.
[50] John S Mackenzie and Martyn Jeggo, “The one health approach—why is it so important?,” Tropical Medicine and Infectious Disease 4, no. 2 (2019): 88.
[51] Carla Oliveira et al., “Effectiveness of mobile app-based psychological interventions for college students: a systematic review of the literature,” Frontiers in Psychology 12 (2021): 647606.
[52] Courtney Barnes et al., “Improving implementation of school-based healthy eating and physical activity policies, practices, and programs: a systematic review,” Translational Behavioral Medicine 11, no. 7 (2021): 1365-1410.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.