Issue BriefsPublished on Jun 06, 2023
ballistic missiles,Defense,Doctrine,North Korea,Nuclear,PLA,SLBM,Submarines

G20 में समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए जन-जन तक डिजिटल पहुंच बनाने के रास्ते

समावेशी स्वास्थ्य के लिए सार्वभौम (universal) डिजिटल पहुंच सतत विकास लक्ष्य- 3 (बेहतर स्वास्थ्य और सलामती) हासिल करने से जुड़े G20 के दृष्टिकोण का हिस्सा है. हालांकि इन उद्देश्यों तक पहुंचने के रास्ते स्पष्ट नहीं हैं. भारत और बाक़ी तमाम देश स्वास्थ्य सेवाओं के सघन डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में हैं. ये पॉलिसी ब्रीफ़ डिजिटल स्वास्थ्य इंफ़्रास्ट्रक्चर को एकीकृत करने का रोडमैप मुहैया कराता है. इससे सस्ती, न्यायसंगत, और सार्वभौम स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच उपलब्ध कराई जा सकेगी. समावेशी (inclusive) स्वास्थ्य सेवा तक विश्वव्यापी डिजिटल पहुंच के लिए ऑन्टोलॉजी का प्रयोग कर ये रोडमैप प्रस्तुत किया गया है. समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए सार्वभौम डिजिटल पहुंच से जुड़ी नीतियां ऑन्टोलॉजी में बड़े पैमाने पर दिखाए गए रास्तों पर आधारित होनी चाहिए. इस सिलसिले में समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक विश्वव्यापी डिजिटल पहुंच के जाने-माने प्रभावी रास्तों पर निश्चित रूप से बल दिया जाना चाहिए. साथ ही ज्ञात बेअसर रास्तों को नई दिशा भी दी जानी चाहिए और अज्ञात नए रास्तों की खोज और पड़ताल की जानी चाहिए.

टास्क फ़ोर्स 6 एक्सीलरेटिंग एसडीजीज़: एक्सप्लोरिंग न्यू पाथवेज़ टू 2030 एजेंडा


चुनौती

समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम डिजिटल पहुंच भारत और G20 देशों के सतत विकास लक्ष्य-3 (SDG-3) से जुड़े दृष्टिकोण का हिस्सा है. ऐसी पैठ सुनिश्चित करने की चुनौती पेचीदा है और इसे निश्चित रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए. इसकी ऑन्टोलॉजी (चित्र 1 देखिए[i]) जटिलता की स्पष्ट, संक्षिप्त और समग्र परिभाषा है, और चुनौती को पूरा करने के रास्तों का एक 'खाका' है.

समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए सार्वभौम डिजिटल पहुंच की ऑन्टोलॉजी

'समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम डिजिटल पहुंच' को परिभाषित करते समय स्वास्थ्य सेवा को इस रूप में समझा जा सकता है: (क) भौतिक, मानसिक और समग्र देखभाल, और (ख) निवारक, बेहतरी, बीमारी (कभी-कभार, लगातार), पुनर्वास से जुड़ी और पैलिएटिव केयर. ये तत्व ऑन्टोलॉजी में स्वास्थ्य सेवा के केंद्रीय दृष्टिकोण और चरण के रूप में सूचीबद्ध हैं (चित्र 1). लिहाज़ा केंद्रीय दृष्टिकोण और चरण से जुड़ा 6*3 = 18 का मिश्रण, जो स्वास्थ्य सेवा को शामिल करता है, उसमें मिसाल के तौर पर ये शामिल हैं- (क) निवारक भौतिक स्वास्थ्य सेवा, और (ख) मानसिक पुनर्वास स्वास्थ्य सेवा. इसलिए स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी नीतियों को जनसंख्या के सभी हिस्सों के लिए इन 18 संयोजनों की ज़रूरतों का निश्चित रूप से निपटारा करना चाहिए.

समावेशी स्वास्थ्य सेवा की सुविधाओं के साथ डिजिटल पैठ को भौतिक (साक्षात) पहुंच के साथ जोड़ा जाना चाहिए. देखरेख की इस क़वायद को तमाम प्रकार के कर्मियों द्वारा मुहैया कराई जानी चाहिए. इनमें फ़िज़िशियंस (जनरलिस्ट्स और स्पेशलिस्ट्स), पारंपरिक वैद्य, नर्स, स्वास्थ्य कर्मचारी, फ़ार्मासिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता, देखभाल करने वाले, समकक्ष लोग और परिवार शामिल हैं. लिहाज़ा स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच 2*6*3*10 = 360 संभावित मिश्रणों को दर्शाती है. मिसाल के तौर पर इनमें ये कारक शामिल हैं- (क) स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा निवारक भौतिक स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच, और (ख) देखरेख मुहैया कराने वालों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य की पुनर्वास सुविधाओं तक भौतिक पहुंच उपलब्ध कराना. निश्चित रूप से नीतियों में जनसंख्या के सभी हिस्सों के लिए इन 360 संयोजनों की ज़रूरतों का निपटारा किया जाना चाहिए.

समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक जन-जन की पैठ जनसंख्या के सभी समूहों के लिए पहुंच को प्रदर्शित करती है. इनमें शहरी, ग्रामीण, वंचित, देसी समुदाय, दिव्यांग, किशोर उम्र वाले, युवा और बुज़ुर्ग शामिल हैं. इन समूहों की ज़रूरतों में और उन्हें मुहैया कराई जाने वाले सेवाओं के बीच निश्चित रूप से अंतर किया जाना चाहिए. प्रभावी स्वास्थ्य रक्षा के लिए उनको एकीकृत किया जाना चाहिए. लिहाज़ा समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम पहुंच 2*6*3*10*8 = 2,880 मिश्रण को प्रदर्शित करती है, जिसमें मिसाल के तौर पर- (क) शहरी आबादी के लिए स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा भौतिक रूप से मुहैया कराई जा रही निवारक स्वास्थ्य सेवा की डिजिटल पहुंच, और (ख) देसी जनसंख्या को देखरेख कर्मियों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही पुनर्वास से जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य सेवा- शामिल है. नीतियों में निश्चित रूप से जनसंख्या के सभी खंडों द्वारा इन 2880 प्रकार की ज़रूरतों का निपटारा किया जाना चाहिए.

चित्र 1: समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम डिजिटल पहुंच की ऑन्टोलॉजी

स्रोत: ख़ुद लेखक के

समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक विश्वव्यापी पहुंच को प्रभावित करने वाली तीन प्रकार की शक्तियों को ऑन्टोलॉजी के दूसरे कॉलम में सूचीबद्ध किया गया है. ये हैं: (क) उनकी बाधाएं, (ख) उनके लिए मापदंड, और (ग) पहुंच सुनिश्चित करने वाले वाहक. इसलिए पहुंच का निर्धारण करने वाली शक्तियां हैं: 3*2*6*3*10*8 = 8,640, जिसमें मिसाल के तौर पर (क) शहरी आबादी के लिए स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा मुहैया कराई जाने वाली भौतिक निवारक स्वास्थ्य सेवाओं के रास्ते की अड़चनें, और (ख) देसी आबादी के लिए देखभाल में शामिल कर्मियों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली पुनर्वास और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मापदंड. नीतियां निश्चित रूप से इन 8,640 शक्तियों के ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए.

नीतियों को (क) ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने के रास्ते की रुकावटों को दूर करना चाहिए, और (ख) इन्हें मुहैया कराने के लिए मानकों की स्थापना करनी चाहिए, और (ग) सात प्रकार के संसाधनों (तकनीकी, मानवीय, सूचनात्मक, वित्तीय, स्थान संबंधी, बुनियादी ढांचा और अस्थायी संसाधनों) के प्रबंधन के ज़रिए इनके वाहकों को प्रस्तुत करना चाहिए. लिहाज़ा इस सिलसिले में समावेशी स्वास्थ्य सेवा को लेकर सार्वभौम डिजिटल पहुंच के 7*3*2*6*3*10*8 = 60,480 संभावित रास्ते हैं. ऑन्टोलॉजी में जोड़े गए इन रास्तों में मिसाल के तौर पर: (क) शहरी जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाले निवारक भौतिक स्वास्थ्य रक्षा की डिजिटल पहुंच के रास्ते की तकनीकी रुकावटों का प्रबंधन करना, और (ख) स्थानीय जनसंख्या को देखरेख कर्मियों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले पुनर्वास और मानसिक स्वास्थ्य सेवा तक भौतिक पहुंच के लिए वित्तीय मानकों का प्रबंधन, शामिल हैं.

दुनिया के देश समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पैठ के लिए ऑन्टोलॉजी के आधार पर व्यवस्थित रूप से रास्तों का चुनाव करते हुए उनको क्रियान्वित करने के लिए ज़रूरी नीतियों का निर्माण कर सकते हैं. इस कड़ी में चुने गए विकल्प और निर्माण की प्रक्रिया, निश्चित रूप से मौजूदा दौर में उपलब्ध बेहतरीन प्रमाणों पर आधारित होनी चाहिए. इनका चुनाव शोध, अन्य नीतियों और व्यवहारों के ज़रिए होना चाहिए. इस प्रकार ऑन्टोलॉजिकल विश्लेषण, समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए सार्वभौम डिजिटल पहुंच सुनिश्चित करने को लेकर प्रभावी नीतियों के निर्माण का एक व्यापक रोडमैप मुहैया कराएगा, जो भारत समेत तमाम G20 देशों के लिए कारगर हो सकता है.

G20 की भूमिका   

समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए विश्वव्यापी डिजिटल पहुंच मुहैया कराने की चुनौती का निपटारा करने में G20 एक अहम भूमिका निभा सकता है. इसके लिए एजेंडे तय करने के मक़सद से एक समिति गठित की जा सकती है. इस दिशा में (क) शोध, नीति और व्यवहार, और (ख) फ़ीडबैक और सीखने के ज़रिए अनुसंधान को नीति से व्यवहार तक बदलने की क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. वर्तमान में इस चुनौती का निपटारा कर रोडमैप मुहैया कराने के लिए इससे मिलता-जुलता कोई एकीकृत ढांचा या ठोस क़वायद नहीं है. समिति के एजेंडे को घटक देश की कार्य-योजना के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही समिति के एजेंडे को भी देशों की कार्य-योजनाओं के बारे में पूरी सूचना होनी चाहिए. इनके अलावा संयुक्त राष्ट्र (UN) और उसकी एजेंसियों, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य संस्थाओं के एजेंडे के बारे में भी पुख़्ता सूचनाएं रखी जानी चाहिए.

निश्चित रूप से समावेशी स्वास्थ्य सेवा की दिशा में सार्वभौम डिजिटल पहुंच की ऑन्टोलॉजी को G20 के सभी देशों के लिए रूपरेखा के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए. इस ढांचे के तहत हर देश को अपनी स्थानीय ज़रूरतों, प्राथमिकताओं और संसाधनों के आधार पर अपने रास्तों का चयन करना चाहिए. साझा रूपरेखा अपनाए जाने से ज्ञान को औपचारिक रूप देने और उनको हस्तांतरित करने में मदद मिलेगी. G20 के एक देश में इस क़वायद के क्रियान्वयन से हासिल फ़ीडबैक और जानकारियों (learnings) को समूह के दूसरे देश और G20 से बाहर के राष्ट्रों के साथ बांटना भी सुगम हो जाएगा. इस प्रक्रिया को चयनात्मक, विभाजित और एकाकी प्रयास की बजाए सम्मिलित, प्रणालीगत और व्यवस्थित क़वायद में बदलना चुनौतीपूर्ण है. ऊपर बताया गया रुख़, निर्माण और ज्ञान लागू करने के चक्र को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा.

किसी देश द्वारा समावेशी स्वास्थ्य सेवा की दिशा में सार्वभौम डिजिटल पहुंच के लिए इस ढांचे का निश्चित रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए. इसके ज़रिए अत्याधुनिक तौर-तरीक़ों, ज़रूरत से जुड़े हालात और व्यवहार से जुड़ी परिस्थितियों का ख़ाका तैयार किया जा सकता है. इन तीन हालातों के बीच के अंतर का विश्लेषण बेहद अहम है. इसी पड़ताल के ज़रिए शोध को पहले नीति और उसके बाद व्यवहार में बदलने की क़वायद का मार्गदर्शन किया जाना चाहिए. इसके बाद फ़ीडबैक और सबक़ लेने के लिए इसे दोबारा शोध के हवाले किया जाना चाहिए, ताकि सतत विकास लक्ष्य-3 से जुड़ा दृष्टिकोण हासिल किया जा सके. इस कड़ी में G20 की समिति को सदस्य देशों की मदद करनी चाहिए, जिससे ये तमाम राष्ट्र अपनी नीतियों में सहभागिता और तालमेल बनाकर इस प्रक्रिया में सीखे गए सबक़ों के बारे में आपसी संवाद बिठा सकें.

G20 के लिए सिफ़ारिशें

समावेशी स्वास्थ्य सेवा में सार्वभौम डिजिटल पहुंच के लिए G20 को एक अंतरराष्ट्रीय समिति की स्थापना करते हुए राष्ट्रीय समूहों के निर्माण को प्रोत्साहित करना चाहिए. निश्चित रूप से इन समितियों को एक साझा ढांचे के रूप में ऑन्टोलॉजी को स्वीकार करना चाहिए और उनके हिसाब से ख़ुद को ढाल लेना चाहिए. साथ ही एक प्रणालीगत रुख़ के साथ आगे बढ़ना चाहिए. इससे संसाधनों का समग्र इस्तेमाल करते हुए ऐसे देखभाल मुहैया कराने के लिए ज़रूरी शक्तियों को आगे बढ़ाया जा सकेगा. निश्चित रूप से परिणामों को लेकर इन समितियों को ज़िम्मेदार और जवाबदेह होना चाहिए. G20 को दी जाने वाली विस्तृत सिफ़ारिशें ऑन्टोलॉजी के कॉलम के हिसाब से व्यवस्थित की गई हैं, और उसके बाद उन्हें एकीकृत किया गया है. ये सिफ़ारिशें विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों और अन्य मिलते-जुलते निकायों के मौजूदा अनुसंधानों, नीतियों, व्यवहारों और प्रस्तावों से मेल खाती हुई हैं. इनकी वरीयता देशों के हिसाब से से तय की जानी चाहिए.

डिजिटल स्वास्थ्य सेवा

डिजिटल स्वास्थ्य सेवा नीति की प्राथमिकताएं स्वास्थ्य रक्षा के मोर्चे पर हरेक देश की वरीयताओं के हिसाब से मेलजोल वाली और अनुकूलित होनी चाहिए. साथ ही उन्हें हरेक देश की स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी प्राथमिकताओं को आकार भी देना चाहिए.

  • भौतिक स्वास्थ्य सेवा आगे भी अहम बनी रहेगी; मानसिक स्वास्थ्य और ज़्यादा अहम बनता जा रहा है; और समग्र स्वास्थ्य सेवा अहमियत हासिल करती जा रही है (मिसाल के तौर पर, भारत में). डिजिटल पहुंच को देखरेख की इन प्रणालियों में अंतर करते हुए इनकी ज़रूरतों को एकीकृत करना चाहिए.
  • देखभाल के अलग-अलग चरणों की प्राथमिकताएं मेडिकल जानकारी में उन्नति, देश की जनसंख्या की बनावट, आबादी की आवश्यकताओं और राष्ट्र की स्वास्थ्य सेवा नीतियों के हिसाब से बदल जाती हैं. लंबी मियाद में डिजिटल पहुंच को देखभाल के अलग-अलग स्तरों की ज़रूरतों को एकीकृत करते हुए उनको सहारा देना चाहिए. इनमें गर्भधारण से पहले की अवस्था से लेकर मृत्यु तक के चरण शामिल हैं.
  • डिजिटल स्वास्थ्य सेवा एकीकृत, जन-केंद्रित, अंतर-संपर्कों वाली और बेहद भरोसेमंद होनी चाहिए.
  • स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच को डेटा निर्माण में मदद करनी चाहिए ताकि किसी देश की आबादी के लिए समावेशी स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ बनाने को लेकर सबसे प्रभावी और कार्यकुशल हस्तक्षेपों का निर्धारण किया जा सके.
  • इसे नीरस क्रियाओं और दोहराव भरे कामकाज का अंत करते हुए काग़ज़ी कार्यवाहियों को समाप्त करना चाहिए. साथ ही बेहतर निर्णय लेने की क़वायद में मदद करते हुए स्वास्थ्य कर्मियों को मार्गदर्शन उपलब्ध कराना चाहिए ताकि वो क्लीनिकल दिशानिर्देशों की पालना में सुधार ला सकें.
  • डिजिटल स्वास्थ्य प्रशासन को किसी देश के स्वास्थ्य रक्षा प्रशासनिक ढांचे और क़ानूनी ज़रूरतों के साथ निश्चित रूप से तालमेल बिठाना चाहिए.

डिजिटल स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच

प्रभावी और दक्ष स्वास्थ्य सेवा के लिए डिजिटल पहुंच आवश्यक है, लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है. इसे स्वास्थ्य सेवा तक भौतिक (साक्षात रूप में) पहुंच के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलना चाहिए. इस समूह की क्षमताओं का व्यवस्थित रूप से उपयोग किया जाना चाहिए.

  • स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच को भौतिक (साक्षात रूप में) पहुंच के साथ पूरक, सहायक और उनके स्थान पर उपयोग होने वाले स्वरूप में कार्य करना चाहिए. हर चरण के लिए ज़रूरी और उपयुक्त क़वायद के रूप में इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए. साथ ही स्वास्थ्य सेवा के केंद्रीय दृष्टिकोणों से भी तालमेल बिठाना चाहिए.
  • डिजिटल और भौतिक (साक्षात रूप में) पहुंच को स्वास्थ्य सेवा की ज़रूरतों, इनकी आपूर्ति करने वाले कर्मियों और इन्हें प्राप्त करने वाली आबादी के हिसाब से निश्चित रूप से संतुलित होना चाहिए
  • स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच को संचार, क्रियान्वयन, पालना, प्रेरणा और बर्ताव से जुड़ी नई-नई चुनौतियों का निपटारा करना चाहिए.
  • डिजिटल स्वास्थ्य सेवा पहुंच और जुड़ाव को प्रतिक्रियात्मक होने की बजाए पूर्व सक्रियता वाला होना चाहिए. इसे निश्चित रूप से स्वास्थ्य सेवा के पैमाने और दायरे का कायाकल्प करना चाहिए. केवल सरल रूप से मौजूदा ज़रूरतों की ही पूर्ति ना करके डिजिटलीकरण की शक्ति का उपयोग करते हुए मौजूदा आपूर्ति को स्वायत्त बनाना चाहिए.
  • डिजिटल स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को निश्चित रूप से न्यायसंगत होना चाहिए और इसे स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में असमानताओं में कमी लानी चाहिए.

डिजिटल स्वास्थ्य सेवा वितरण कर्मचारी

स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के संपूर्ण दायरे तक डिजिटल पहुंच की उपलब्धता होनी चाहिए. उनकी भूमिका, आवश्यकताओं और उनके द्वारा संतुष्ट की जाने वाली ज़रूरत के आधार पर इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए. इसे स्वास्थ्य सेवा की आपूर्ति से जुड़ी उनकी भूमिका को स्वचालित बनाने, उनमें ‘गतिविधियों, कार्यक्रमों और विषयवस्तुओं से जुड़ी सूचनाओं का प्रवाह जोड़ने’ (informate)[ii] और आगे चलकर स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति में उनकी भूमिका के कायाकल्प करने के लिए ऐसी प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

  • किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति से जुड़ी डिजिटल पहुंच उस प्रकार की देखभाल की पूरी मियाद और संबंधित व्यक्ति के पूरे जीवनकाल के दौरान हस्तांतरणीय (transferable) होनी चाहिए.
  • डिजिटल पहुंच में अलग-अलग बीमारियों के हिसाब से तैयार किए गए कार्यक्रमों की आपूर्ति की क्षमता होनी चाहिए. साथ ही मरीज़ों के हिसाब से केंद्रित देखरेख भी प्रभावी रूप से मुहैया कराई जानी चाहिए.
  • किसी व्यक्तिविशेष की स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति तक डिजिटल पहुंच निश्चित रूप से भरोसेमंद, निजी, गोपनीय और सुरक्षित होनी चाहिए.
  • किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति तक डिजिटल पहुंच की क़वायद को सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की ओर से मुहैया कराए जा रहे विशिष्ट स्वास्थ्य सेवा क्रियाकलापों को सहारा देते हुए उनको एकीकृत करना चाहिए.
  • किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य सेवा वितरण तक डिजिटल पहुंच को निश्चित रूप से पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण और सक्षमताओं में जोड़ा जाना चाहिए.
डिजिटल स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने वाली आबादी

ज़रूरतों, आवश्यकताओं, स्थान और संसाधनों के आधार पर जनसंख्या के सभी खंडों के लिए डिजिटल पहुंच निश्चित तौर पर उपलब्ध होना चाहिए. इनका विस्तार से ख़ाका तैयार किया जाना चाहिए. इस तरह की पैठ को बदलती ज़रूरतों और आवश्यकताओं के हिसाब से अनुकूलित होना चाहिए क्योंकि मानवीय आबादी धीरे-धीरे सबक़ सीखती है और उनकी उम्मीदों का चरणबद्ध रूप से उभार होता है. इसे आबादी के विभिन्न समूहों के लिए ऐसी पहुंच के फ़ायदों और चुनौतियों का निपटारा करना चाहिए.

  • स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच के प्रावधान को विशाल आबादी के प्रयोग के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए. इस सिलसिले में उनकी ज़रूरतों, स्थान और संसाधनों को आधार बनाया जाना चाहिए.
  • स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच की संरचना, विकास और वितरण में आबादी के विभिन्न समूहों से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए. उनकी सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं को इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
  • मानवीय आबादी में स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पैठ के फ़ीडबैक और उससे हासिल सबक़ को इस पहुंच के वैश्वीकरण और स्थानीयकरण की प्रक्रिया के नतीजे के तौर पर सामने आना चाहिए.
  • समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक विश्वव्यापी डिजिटल पहुंच का वितरण आबादी के सभी समूहों तक किया जाना चाहिए. उनकी प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं के आधार पर इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए. स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच के चलते भविष्य में उनकी वरीयताओं और ज़रूरतों में भारी बदलाव आ सकता है. फ़ीडबैक को निश्चित रूप से नीतियों में जोड़ा जाना चाहिए.
  • शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं को समग्र डेटा उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि कार्यक्रमों और हस्तक्षेपों के प्रभाव का आकलन किया जा सके.

डिजिटल स्वास्थ्य सेवा की शक्तियां

स्वास्थ्य सेवा नीतियों में डिजिटल पैठ को निश्चित रूप से ऐसे पहुंच से जुड़े मानकों की स्थापना करनी चाहिए. साथ ही पहुंच के रास्ते की बाधाओं को पार करने में मदद करनी चाहिए और इनके वाहकों की सहायता करनी चाहिए. हालांकि कई बार कुछ रुकावटों को पेश करने और वाहकों को हटाए जाने की ज़रूरत पड़ सकती है ताकि स्वास्थ्य सेवा वितरण की वैधानिकता और अनुरूपता सुनिश्चित की जा सके.

  • प्रशासनिक, वैधानिक, और नियामक नीतियों को स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच से जुड़े मापदंडों की स्थापना करनी चाहिए.
  • स्वास्थ्य सेवा के डिजिटल वितरण और आपूर्ति से जुड़े आचार-व्यवहार को निश्चित रूप से सामान्य रूप दिया जाना चाहिए.
  • प्रशासनिक, वैधानिक, नियामक और आचार मानकों को क्रियान्वित करने के लिए निश्चित रूप से संसाधनों की तैनाती की जानी चाहिए. रुकावटों में बढ़ोतरी होने या वाहकों में गिरावट आने के बावजूद इस तरह की क़वायदों को अंजाम दिया जाना चाहिए.
  • स्वास्थ्य सेवा की डिजिटल पहुंच की अड़चनों पर क़ाबू पाने के लिए संसाधनों की तैनाती की जानी चाहिए. इन रुकावटों में कनेक्शन की गुणवत्ता, ऑपरेटिंग सिस्टम्स और प्लेटफ़ॉर्मों में बार-बार होने वाले अपडेट्स और कर्मियों में आने वाली थकान को शामिल किया जा सकता है.
  • स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल पहुंच के वाहकों की मदद के लिए संसाधनों की तैनाती की जानी चाहिए. इन वाहकों में शिक्षा, सहारा देना, प्रोत्साहन और कामकाज का लचीलापन शामिल हैं.

डिजिटल स्वास्थ्य सेवा संसाधन

समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम डिजिटल पहुंच के लिए तकनीकी और वित्तीय संसाधन आवश्यक तो हैं लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है. समावेशी स्वास्थ्य रक्षा तक विश्वव्यापी डिजिटल पहुंच के लिए ऑन्टोलॉजी में संसाधनों के संपूर्ण दायरे का प्रबंधन किया जाना चाहिए. इसके अलावा मानकों के हिसाब से ख़रा उतरते हुए रास्ते की रुकावटों पर क़ाबू पाया जाना चाहिए.

  • देखभाल सेवा मुहैया कराने वालों और ऐसी सेवाएं प्राप्त करने वालों की तकनीकी संसाधनों तक पहुंच होना बेहद ज़रूरी है. स्वास्थ्य सेवा के हरेक चरण और उसके दायरे में आने वाले क्षेत्रों में ये उपलब्ध होना चाहिए. साथ ही इसे सभी प्रयोगकर्ताओं के संदर्भ में गुणवत्ता की ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए.
  • मानवीय संसाधनों को प्रभावी और दक्ष रूप से प्रणाली की संरचना तैयार कर उसका विकास और संचालन करना चाहिए. देखभाल सेवा का वितरण करने वाले कर्मियों और इसे हासिल करने वाली आबादी के लिए प्रौद्योगिकी के क्रियाकलापों को निश्चित रूप से सहारा दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवा के हरेक चरणों और केंद्रित दृष्टिकोणों में इसे तमाम गतिविधियों को भी आगे बढ़ाना चाहिए. समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए इसे सार्वभौम डिजिटल पहुंच की गुणवत्ता को लेकर भी पूरी तरह से आश्वस्त करना चाहिए.
  • सूचनात्मक संसाधनों को विश्वव्यापी स्वास्थ्य सेवा के लिए सार्वभौम डिजिटल पहुंच का निश्चित रूप से कायाकल्प करना चाहिए. साथ ही गतिविधियों, कार्यक्रमों और विषयवस्तुओं से जुड़ी सूचनाओं का प्रवाह भी जोड़ना चाहिए. ये सूचना प्रणाली के बारे में ही होनी चाहिए, इसका प्रबंधन भी प्रणाली द्वारा ही किया जाना चाहिए और इसे प्रणाली पर ही लागू किया जाना चाहिए. स्वास्थ्य सेवा प्राप्त कर रही आबादी, उसे उपलब्ध करा रहे कर्मी, स्वास्थ्य सेवा के विभिन्न चरणों और उसके अलग-अलग केंद्रीय दृष्टिकोणों से जुड़ी क़वायदों को इस सूचना में जोड़ा जाना चाहिए. लेन-देनों, फ़ैसलों, व्याख्याओं और ज्ञान के विकास के लिए इसे ज़रूरी सहायता उपलब्ध करानी चाहिए.
  • वित्तीय संसाधन बाक़ी सभी संसाधनों की उपलब्धता, सुलभता और गुणवत्ता को सहारा देते हैं. नतीजतन पूरी प्रणाली ही इसके आसरे टिकी रहती है. वित्तीय संसाधनों को सभी स्थानों और सभी कालखंडों में प्रणाली की निरंतरता भी सुनिश्चित करनी चाहिए. भौतिक (साक्षात) पहुंच के मुक़ाबले डिजिटल पहुंच के ये दो मुख्य फ़ायदे हैं.
  • स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और इन सेवाओं के प्राप्तकर्ताओं तक स्थान संबंधी संसाधन निश्चित रूप से उपलब्ध होने चाहिए और ये उनकी पहुंच के दायरे में भी रहने चाहिए. संवाद की गोपनीयता, निजता और सुरक्षा बरक़रार रखने के लिए ये निहायत ज़रूरी हैं. समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक डिजिटल सार्वभौम पहुंच के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी और अन्य बुनियादी ढांचों के दोनों सिरों में ऐसी क़वायद की दरकार होती है. स्थान संबंधी संसाधन, स्वास्थ्य सेवा को भौतिक रूप से (साक्षात तरीक़े से) मुहैया कराने वाले स्थानों से स्वतंत्र हो सकते हैं या उनकी मौजूदगी उसी स्थान पर (collocated) भी हो सकती है. इस तरह भौतिक और डिजिटल सेवाओं की सुविधाएं एक ही स्थान पर स्थित रह सकतीहैं.
  • बुनियादी ढांचे से जुड़े संसाधन ग़ैर-तकनीकी भौतिक संसाधन होते हैं. मसलन, इमारतें, प्लंबिंग, प्रशासन और अन्य सहायताकारी प्रणालियां. ये प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य सेवा वितरण के रास्ते पर तो नहीं होते लेकिन इन सेवाओं का वितरण करने वाले कर्मियों और इन्हें प्राप्त कर रही आबादी को मदद ज़रूर पहुंचाते हैं.
  • अस्थायी संसाधन स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और प्राप्तकर्ताओं की उपलब्धता और पहुंच को जोड़ने में सहायक होते हैं. इतना ही नहीं, ये चरणबद्ध (किसी भी समय) रूप से मुहैया कराई जाने वाली आपात स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान के साथ-साथ मौजूदा (किसी भी मियाद में) नियमित सेवाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित करते हैं.

समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम डिजिटल पहुंच

समावेशी स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौम डिजिटल पहुंच मुहैया कराने की कामयाबी प्रस्तावित समितियों द्वारा स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक तौर पर इसके प्रशासन पर निर्भर करेगी. नीतियों के निर्माण के साथ-साथ शासन के दायरे में ज्ञान उत्पन्न करने के मिशन और औपचारिक शोध के ज़रिए इसे लागू करने की क़वायद को भी जोड़ा जाना चाहिए. साथ ही नीतियों और व्यवहारों के आकलन को भी इसका हिस्सा बनाना होगा. देश के डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के साथ इसका तालमेल और एकीकरण होना बेहद आवश्यक है. इतना ही नहीं, ऐसे मिशन द्वारा तैयार किए गए इकोसिस्टम का इसे प्रभावी रूप से उपयोग भी करना चाहिए. हरेक देश को फ़ीडबैक के साथ मौजूदा लर्निंग सिस्टम का विकास करना चाहिए. इससे सार्वभौम डिजिटल पहुंच को समावेशी स्वास्थ्य सेवा के साथ जोड़ने के रास्ते का मार्गदर्शन हो सकेगा.

निष्कर्ष

समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए सार्वभौम डिजिटल पहुंच हासिल करने के लिए एक रोडमैप की दरकार है. ये पॉलिसी ब्रीफ़ इस घुमावदार रास्ते में आगे बढ़ने के लिए स्पष्ट, संक्षिप्त और समग्र रूपरेखा मुहैया कराता है. इस ढांचे को प्रणालियों के शासन के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है ताकि स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर ऐसी पहुंच उपलब्ध कराई जा सके. इतना ही नहीं, निम्न आय वाले कई देशों में प्रौद्योगिकी के प्रायोजकों और वित्तीय संसाधनों की भारी ज़रूरत है. हर देश को अपनी मौजूदा रणनीतियों और समन्वय तंत्रों का आकलन करना चाहिए. पहले से मज़बूत क़ानूनी आधारों और क्षमता निर्माण की पर्याप्त क़वायदों से सार्वभौम डिजिटल पहुंच को फ़ायदा होगा. इस प्रकार डिजिटल कायापलट की प्रक्रिया के वाहक बुनियादी ढांचे की स्थापना मुमकिन हो सकेगी. साथ ही संस्थागत रूपरेखाओं और तंत्रों को मज़बूत बनाया जा सकेगा. यही व्यवस्थाएं दक्षता बढ़ाती हैं और सेवा वितरण में सुधार लाती हैं.


एट्रीब्यूशन: अर्कालगुड रामप्रसाद आदि, “पाथवेज़ टू यूनिवर्सल डिजिटल एक्सेस टू इन्क्लूसिव हेल्थकेयर इन द G20,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023


Bibliography

Select Literature on Digital Access to Healthcare

Asian Development Bank. “Guidance for Investing in Digital Health,” 2018.

Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry. “Re-Engineering Indian Healthcare 2.0,” 2019.

Garrett Mehl, Özge Tunçalp, Natschja Ratanaprayul, Tigest Tamrat, María Barreix, David Lowrance, Kidist Bartolomeos, et al. “WHO SMART Guidelines: Optimising Country-Level Use of Guideline Recommendations in the Digital Age.The Lancet Digital Health 3, no. 4 (April 1, 2021): e213–16.

International Telecommunication Union News. “Digital Systems Support Equitable Healthcare.” ITU Hub, March 17, 2022.

Ministry of Health and Family Welfare. “Health Data Management Policy.” Government of India, 2020.

———. “National Digital Health Blueprint,” 2019.

National Health Authority. “National Digital Health Mission.” Ministry of Health and Family Welfare, Government of India, July 2020.

National Health Service, England. “A Plan for Digital Health and Social Care.” GOV.UK, 2022.

NITI Aayog. “National Health Stack: Strategy and Approach.” Government of India, July 2018.

———. “Public Health Surveillance in India 2035,” 2020.

Shoshana Zuboff. In The Age Of The Smart Machine: The Future Of Work And Power. New York: Basic Books, 1988.

United Nations. “Secretary-General’s Roadmap for Digital Cooperation,” 2020.

World Health Organization. “Global Diffusion of EHealth: Making Universal Health Coverage Achievable: Report of the Third Global Survey on EHealth,” 2016.

———. “Global Strategy on Digital Health 2020-2025,” 2021.

———. How to Plan and Conduct Telehealth Consultations with Children and Adolescents and Their Families. Geneva: World Health Organization, 2021.

———. “Recommendations on Digital Interventions for Health System Strengthening,” 2019.

———. “Young People and Digital Health Interventions: Working Together to Design Better,” 2020.

Authors’ Selected Publications

Adrian P. Mundt, Matías Irarrázaval, Pablo Martínez, Olga Fernández, Vania Martínez, and Graciela Rojas. “Telepsychiatry Consultation for Primary Care Treatment of Children and Adolescents Receiving Child Protective Services in Chile: Mixed Methods Feasibility Study.JMIR Public Health and Surveillance 7, no. 7 (July 22, 2021): e25836.

Alicia Núñez, Arkalgud Ramaprasad, Thant Syn, and Harold Lopez. “An Ontological Analysis of the Barriers to and Facilitators of Access to Healthcare.Journal of Public Health, April 5, 2020.

Alicia Núñez, S. D. Sreeganga, and Arkalgud Ramaprasad. “Access to Healthcare During Covid-19.International Journal of Environmental Research and Public Health 18, no. 6 (March 14, 2021): 2980.

Álvaro Jiménez-Molina, Pamela Franco, Vania Martínez, Pablo Martínez, Graciela Rojas, and Ricardo Araya. “Internet-Based Interventions for the Prevention and Treatment of Mental Disorders in Latin America: A Scoping Review.Frontiers in Psychiatry 10 (2019).

Ariel I La Paz and Arkalgud Ramaprasad. “Aligning Biomedical Informatics with Clinical and Translational Science.” In Proc. Ann. Hawai’i Int. Conf. Syst. Sci., HICSS, 2009.

Arkalgud Ramaprasad, Annette L Valenta, and Ian Brooks. “Clinical and Translational Science Informatics: Translating Information to Transform Health Care.” In HEALTHINF - Proc. Int. Conf. Hlth. Informatics, 135–41, 2009.

Arkalgud Ramaprasad, Nanda Kumar Bidare Sastry, and Thant Syn. “Envisioning Precision Healthcare Informatics: A Unified Framework.” In MEDINFO 2017: Precision Healthcare through Informatics, 245:564–68. IOS Press, 2017.

Arkalgud Ramaprasad, Shobana Gupta, Sridhar R Papagari Sangareddy, A. Prakash, and R. Venkatasubramanian. “Bridging the Digital Divide in E-Health Applications: Leading the Way to an Informed Patient.International Journal of Healthcare Technology and Management 8, no. 1–2 (2007): 120–40.

Arkalgud Ramaprasad, Sridhar S Papagari, and Joy Keeler. “EHealth: Transporting Information to Transform Health Care.” In HEALTHINF - Proc. Int. Conf. Hlth. Informatics, 344–50. Porto, Portugal, 2009.

Arkalgud Ramaprasad, Susanna Ghosh Mitra, Devina Neogi, S D Sreeganga, and Nibras K Thodika. “Integration of Data Science for Timely Tuberculosis (TB) Care.TBINFO 2, no. 1 (March 2022).

Graciela Rojas, Vania Martínez, Pablo Martínez, Pamela Franco, and Álvaro Jiménez-Molina. “Improving Mental Health Care in Developing Countries Through Digital Technologies: A Mini Narrative Review of the Chilean Case.Frontiers in Public Health 7 (2019).

Joshua D. Cameron, Arkalgud Ramaprasad, and Thant Syn. “An Ontology of and Roadmap for MHealth Research.International Journal of Medical Informatics 100 (April 2017): 16–25.

Nibras K Thodika, Susanna Ghosh Mitra, Arkalgud Ramaprasad, and Sulegai Dhondusa Sreeganga. “Toward Strengthening Active Case Finding for Ending Tuberculosis in India.International Journal of Health Planning and Management, August 21, 2021, 1–6.

Pablo Martínez, Graciela Rojas, Vania Martínez, María Asunción Lara, and J. Carola Pérez. “Internet-Based Interventions for the Prevention and Treatment of Depression in People Living in Developing Countries: A Systematic Review.Journal of Affective Disorders 234 (July 1, 2018): 193–200.

Suman Gadicherla, Lalitha Krishnappa, Bindu Madhuri, Susanna G. Mitra, Arkalgud Ramaprasad, Raja Seevan, S. D. Sreeganga, Nibras K. Thodika, Salu Mathew, and Vani Suresh. “Envisioning a Learning Surveillance System for Tuberculosis.PLOS ONE 15, no. 12 (December 14, 2020): e0243610.

Vania Martínez, Marcelo A. Crockett, Ajay Chandra, Sarah Shabbir Suwasrawala, Arkalgud Ramaprasad, Alicia Núñez, and Marcelo Gómez-Rojas. “State of Mental Health Research of Adolescents and Youth in Chile: An Ontological Analysis.International Journal of Environmental Research and Public Health 19, no. 16 (2022): 9889.


[a] The ontology in Figure 1 has been developed based on the extensive experience of the authors and selected literature.

[b] To informate is to generate information about healthcare delivery and make it visible.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.