Author : Rajeev Agarwal

Issue BriefsPublished on Sep 03, 2024
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पश्चिम एशिया में भारत की कूटनीतिक कोशिशों में ईरान की भूमिका!

  • Rajeev Agarwal

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली विदेश नीति की एक अहम सफ़लता भारत की पश्चिम एशिया के साथ बने वर्तमान संबंधों में देखी जा सकती है. लेकिन इस इलाके में आने वाले एक अहम देश ईरान के साथ उसके संबंध अब तक उच्च स्तर हासिल नहीं कर सके हैं. इस ब्रीफ में ईरान-भारत के बीच संबंधों को नए सिरे से तय करने की वकालत की जा रही है. ईरान में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति तथा PM मोदी के तीसरे कार्यकाल के चलते यह बात सुगम हो सकती है. यहां दोनों देशों के पास उपलब्ध विकल्प एवं अवसरों का परीक्षण किया गया है. इसके साथ ही क्षेत्र में हाल में ही परिवर्तनों की पड़ताल की गई है, जिसकी वजह से भारत और ईरान के बीच बातचीत प्रभावित हो रही है. जैसे-जैसे भारत पश्चिमी एशिया में अपनी पहुंच को मजबूत करने की कोशिश करते हुए कूटनीतिक संरेखन हासिल करने की कोशिश कर रहा है, वैसे-वैसे ईरान इसमें अहम कड़ी बनकर उभर रहा है.

Attribution:

राजीव अग्रवाल, “पश्चिमी एशिया में भारतीय कूटनीतिक प्रयासों में ईरान की अहमियत,” ORF इश्यू ब्रीफ नं. 725, अगस्त 2024, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने सईद जलीली को शिकस्त देने के बाद 30 जुलाई 2024 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी.[1] वहां राष्ट्रपति पद के लिए औचक चुनाव पांच जुलाई को करवाए गए थे. ईरान में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मई माह में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में असामयिक मौत के बाद अस्थिरता की स्थिति बनी थी. लेकिन यह स्थिति इन चुनावों के सफ़लतापूर्वक संपन्न होने के साथ ही समाप्त हो गई है. अब ईरान एक बार फिर अपने घरेलू और विदेशी मामलों पर ध्यान दे सकता है. आसपास के क्षेत्र में गाज़ा में चल रहा वर्तमान युद्ध ईरान के लिए अहम है. इसका कारण यह है कि इस युद्ध के पूर्वी दिशा में लेबनान की ओर फ़ैलने का अंदेशा है. ईरान, हिजबुल्लाह को समर्थन दे रहा है. ऐसे में इस संघर्ष के भड़कने की संभावना से इनकार  नहीं किया जा सकता. लेकिन इसके साथ ही ईरान को हालिया वर्षों में हुई प्रगति, विशेषत: 2023 में, को भी आगे बढ़ाना होगा. वर्ष 2023 को इस इलाके की क्षेत्रीय कूटनीति का एक सफ़ल वर्ष माना जाता है.

 अब ईरान एक बार फिर अपने घरेलू और विदेशी मामलों पर ध्यान दे सकता है. आसपास के क्षेत्र में गाज़ा में चल रहा वर्तमान युद्ध ईरान के लिए अहम है. इसका कारण यह है कि इस युद्ध के पूर्वी दिशा में लेबनान की ओर फ़ैलने का अंदेशा है. 

यूनाइटेड स्टेट्‍स  (US) में होने जा रहा राष्ट्रपति पद का चुनाव भी ईरान के लिए बेहद अहम माना जा रहा है. अगर डोनाल्ड ट्रंप की बतौर राष्ट्रपति वापसी होती है तो ईरान के ख़िलाफ़ शत्रुतापूर्ण अंदाज में कदम उठाने की शुरुआत हो जाएगी. यह बात ट्रंप के पहले कार्यकाल में साफ़ देखी जा चुकी है. उस दौरान US ने एकतरफा ही ईरान परमाणु संधि को ख़ारिज कर दिया था. यह संधि 2018 में हुई थी. इसे जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) कहा गया था. इसके तहत ईरान और उनके  प्रमुख देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाना था कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही काम करेगा. इसके अलावा अब्राहम समझौता भी था. यह समझौता ट्रंप के कार्यकाल [a] के दौरान ही तय किया गया था. इसमें इज़राइल और अरब देशों के बीच बातचीत को आधिकारिक रूप देने की बात कही गई थी. इस वजह से शिया-बहुल ईरान को इस क्षेत्र के अन्य सुन्नी-बहुसंख्य अरब देशों का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया था. हालांकि ट्रंप के कार्यकाल के बाद कुछ अन्य ऐसे फ़ैसले लिए गए हैं, जो ईरान के हक में दिखाई देते हैं.

 

इन फ़ैसलों में से एक अहम फ़ैसला था चीन की मध्यस्थता के चलते हुआ सऊदी अरब-ईरान शांति समझौता, जिसकी घोषणा मार्च 2023 में की गई थी. इसके अलावा ईरान को शंघाई  सहयोग संगठन (SCO)[b] तथा BRICS [c] में शामिल करने का निर्णय भी लिया गया था. शांति समझौते की वजह से सुलह की एक लहर सी चल पड़ी थी, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में ईरान की स्वीकार्यता बढ़ी थी. इसके अलावा जब अक्टूबर 2023 में गाज़ा में युद्ध की शुरुआत हुई तो इसने ईरान की सैन्य शक्ति और सोच का भी प्रदर्शन कर दिया. आरंभ में ईरान समर्थित हमास और हिजबुल्लाह ने इज़राइल पर हमले किए और बाद में ईरान ने भी अप्रैल 2024 में पहली बार इज़राइल को सीधा निशाना बनाते हुए अपनी सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन किया. इन सारी घटनाओं के चलते ईरान को इस क्षेत्र के संघर्षों में केंद्रीय स्थान हासिल हो गया है क्योंकि क्षेत्र के अन्य देश दूर से तमाशा देख रहे थे.

 

इन गतिविधियों से उत्साहित होकर ईरान इस क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश में है. सऊदी अरब के साथ हुए शांति समझौते से भी पहले तत्कालीन राष्ट्रपति रईसी ने ‘नेबरली पॉलिसी’ (सियासत-ए-हमसायगी) की घोषणा कर दी थी. यह घोषणा उन्होंने अगस्त 2021 में राष्ट्रपति पद का भार संभालने के तुरंत बाद कर दी थी. इस नीति का उद्देश्य ईरान का अपने पड़ोसी अरब देशों, विशेषत: सऊदी अरब, के साथ संबंधों में सुधार करना है. इस नीति में शामिल ‘लुक ईस्ट’ अर्थात ‘पूर्व की ओर’ हिस्से का उद्देश्य अपने निकटतम पड़ोसी से आगे जाकर सहयोगियों की ख़ोज करना है. यही वजह से है कि ईरान ने रूस  तथा चीन दोनों के ही साथ कूटनीतिक साझेदारी कर ली है. ईरान के पूर्व में एक और देश है, भारत, जो उसका यानी ईरान का भरोसेमंद  सहयोगी साबित हो सकता है.

 

भारत के लिए भी ईरान हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है. दोनों देशों के पास सभ्यता का साझा इतिहास है. फ़ारसी और संस्कृत भाषा में काफ़ी समानता है. प्राचीन इतिहास से साफ़ हो जाता है कि ईरानी और भारतीय की उत्पत्ति मनुष्यों के एक ही समूह से हुई थी. यह समूह मध्य एशिया में अनेक सदियों पहले उपजाऊ भूमि के आसपास रहा करता था. यहां के साझा आवास से भारत की दिशा में आर्यन विस्थापन की शुरुआत 6,000 BCE के आसपास हुई.

 

आधुनिक दौर में भी ईरान हमेशा से भारत के लिए पास-पड़ोस में स्थित एक महत्वपूर्ण देश रहा है, जिसके साथ वह 1947 में विभाजन और आजादी मिलने से पहले तक सीमाएं साझा करता था. आजादी के तुरंत बाद भारत तथा ईरान ने 15 मार्च 1950[2] को एक दोस्ताना संधि पर हस्ताक्षर किए थे. हाल ही में अप्रैल 2001 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी  वाजपेयी की ईरान यात्रा के दौरान तेहरान घोषणापत्र[3] पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसके तुरंत बाद जब ईरान के राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी ने जनवरी 2003 में भारत का दौरा किया था तो नई दिल्ली घोषणापत्र[4] पर हस्ताक्षर किए गए थे.

 

लेकिन ये द्विपक्षीय संबंध अपनी गति को बनाए रखने में विफ़ल रहे. इसका मुख़्य कारण था कि पश्चिमी देशों की ओर से ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे. इन प्रतिबंधों में ईरान के साथ कारोबार करने पर वैश्विक स्तर पर रोक लगा दी गई थी. यह रोक ईरान के साथ कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का निर्यात करने पर भी लगाई गई थी. जुलाई 2015 में ईरान परमाणु संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद जनवरी 2016 से लेकर मई 2018 के बीच प्रतिबंधों में कुछ रियायत दी गई थी. लेकिन इस छोटी अवधि को छोड़ा दिया जाए तो दिसंबर 2006 से ये प्रतिबंध जारी है. 2006 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के माध्यम से ईरान पर यह प्रतिबंध लगाए गए थे. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1737 पारित किया गया था. यह प्रतिबंध ईरान की ओर से अपने यूरेनियम समृद्ध कार्यक्रम को रोकने में विफ़ल रहने की वजह से लगाए गए थे.[5]

 

अनेक बाधाओं के बावजूद PM मोदी ने मई 2016 में ईरान का दौरा किया और बाद में फरवरी 2018 में ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने भी भारत का दौरा किया था.[6] इन दोनों ही यात्राओं के दौरान व्यापार, कनेक्टिविटी और मध्य एशिया तथा अफगानिस्तान में पारगमन सुगम करने वाले अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसी अवधि में ईरान के चाबहार बंदरगाह [d] के काम ने गति पकड़ी थी. इस गति के पीछे भारत ने अहम भूमिका अदा की थी. इसी वर्ष 13 मई को भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के संचालन को लेकर एक दस वर्षों के अनुबंध पर भी हस्ताक्षर किए है.[7] इस अनुबंध के तहत भारत अगले दस वर्षों तक चाबहार बंदरगाह को आगे विकसित करते हुए इस दौरान वहां की सुविधाओं का अपनी सामग्री  का निर्यात करने के लिए भी उपयोग करेगा. भारत के पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस अनुबंध को ऐतिहासिक[8] बताया है. उनके अनुसार इस अनुबंध की वजह से दोनों देशों के बीच व्यापार, समुद्री सहयोग और ट्रांसशिपमेंट का एक नया दौर शुरू  होगा तथा भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार में भी इज़ाफ़ा होगा.

चाबहार में इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ कॉरिडोर (INSTC)[e] में भी एक अहम कड़ी बनने की क्षमता है. भारत, ईरान तथा रूस की पहल पर सितंबर 2000 में आरंभ INSTC का उद्देश्य भूमिबद्ध मध्य एशियाई गणतंत्रों की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है. बाद में 11 अन्य देशों ने भी इसके साथ जुड़ने का निर्णय लिया है. [f] वर्तमान मार्ग के चलते मुंबई (भारत) से कार्गों यानी सामान को बंदर अब्बास (ईरान) तक समुद्री मार्ग से पहुंचाना बेहद आसान हो जाता है. इसके अलावा बंदार अब्बास से बंदर-ए-अंज़ली तक सड़क मार्ग से, बंदर-ए-अंज़ली से रूस के कैस्पियन सागर में स्थित अस्त्राखान  बंदरगाह तक जहाज से और अस्त्राखान  से रूसी फेडरेशन के अन्य इलाकों और यूरोप के दूर-दराज के इलाकों में रुसी रेलवे से सामान पहुंचाया जा सकता है.

 यह भारत का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह है. इसके संचालन की शुरुआत होने से भारत को चाबहार बंदरगाह तक अपने पैर फ़ैलाने का अवसर मिल गया है. 

INSTC को जून 2022[9] में संचालित करना शुरू किया गया जब रूस के कैस्पियन सागर बंदरगाह क्षेत्र के तहत अस्त्राखान  के सोल्यांका से पहली कार्गो खेप मुंबई के न्हावा शेवा बंदरगाह, जिसे जवाहरलाल नेहरू  पोर्ट भी कहा जाता है तक पहुंची थी. यह भारत का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह है. इसके संचालन की शुरुआत होने से भारत को चाबहार बंदरगाह तक अपने पैर फ़ैलाने का अवसर मिल गया है. ऐसे में INSTC के साथ चाबहार के एक और हिस्से से जुड़ जाना भारत के लिए काफ़ी लाभदायक साबित होगा. इसका कारण यह है कि भारत इस मार्ग से गुज़रने वाले बहुसंख्या कनेक्टिविटी मार्गों तक अपनी पहुंच बनाकर यूरोप तक पहुंचने की महत्वाकांक्षा रखता है.[10]

 

 स्रोत : अल जज़ीरा https://www.aljazeera.com/economy/2022/7/27/russias-new-economic-escape-route

ईरान का महत्व

भारत के लिए ईरान केवल चाबहार बंदरगाह की वजह से ही महत्वपूर्ण नहीं है. वह इसलिए भी अहम नहीं है कि वह भारत को अफगानिस्तान तथा अन्य मध्य एशियाई गणतंत्रों के साथ कनेक्टिविटी उपलब्ध, क्योंकि इन देशों तक पाकिस्तान से गुज़रने वाला भारत का सबसे नज़दीकी सड़क मार्ग बंद है, करवाता है. ईरान इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस क्षेत्र में उसका आकार, उसका इतिहास, उसकी स्थिति तथा उसकी भूमिका बेहद अहम है. वह ईराक के साथ मिलकर पर्सियन गल्फ के संपूर्ण उत्तरी तट के भौगोलिक इलाके को अपने दायरे में लेकर लेवांत/लेवंट, मध्य एशिया तथा दक्षिण एशिया के लिए एक अहम कड़ी उपलब्ध करवाता है. इसके अलावा यह प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडारगृह भी है. भू-राजनीतिक  रूप से ईरान और उसकी सभ्यता का इतिहास, अनेक सदियों से हुआ राजनीतिक विकास, आर्थिक और सैन्य क्षमताओं की वजह से भी इस इलाके में एक शक्ति समझा जाता है. ईरान की स्ट्रेट ऑफ होर्मुज में होने वाले जहाजों के आवागमन को नियंत्रित करने और रोकने की क्षमता का आर्थिक और भू-राजनीतिक  प्रभाव पड़ सकता है. यह प्रभाव न केवल इस क्षेत्र के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर दिखाई दे सकता है और इसकी वजह से अहम ऊर्जा आपूर्ति में रुकावट देखी जा सकती है.[11]

 इस इलाके में ईरान दूसरे नंबर पर आता है. पहले स्थान पर तुर्किए है. हालांकि अधिकांश रिपोर्ट्‌स में जिस बात की अनदेखी कर दी जाती है वह है कि ईरान के पास जितनी सैन्य क्षमता होने के आंकड़े उपलब्ध है, उसके पास उन आंकड़ों से कहीं ज़्यादा सैन्य क्षमता मौजूद है. 

गाज़ा में चल रहे वर्तमान युद्ध ने दिखा दिया है कि ईरान ही इस क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली सैन्य क्षमता वाला देश है. यह बात क्षमता और इरादे दोनों ही मामलों में लागू होती है. 2024 की ग्लोबल फायर-पॉवर रिपोर्ट,[12] जो 145 देशों को सैन्य स्तर पर वरीयता देती है, के अनुसार ईरान 14 वें स्थान पर है. उसका स्थान इज़राइल के 17 वें स्थान से कहीं आगे है. इस इलाके में ईरान दूसरे नंबर पर आता है. पहले स्थान पर तुर्किए है. हालांकि अधिकांश रिपोर्ट्‌स में जिस बात की अनदेखी कर दी जाती है वह है कि ईरान के पास जितनी सैन्य क्षमता होने के आंकड़े उपलब्ध है, उसके पास उन आंकड़ों से कहीं ज़्यादा सैन्य क्षमता मौजूद है. वह अपने असल आंकड़ों को अपने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) में बांटे गए हथियार तथा मानव संसाधन बताकर छुपा लेता है. इसके अलावा वह अपने सहयोगियों या फिर नॉन-स्टेट यानी गैरकानूनी संगठनों की आड़ में भी अपनी सैन्य क्षमता को छुपा लेता है. ‘मिलिट्री बैलेंस 2024’ की रिपोर्ट[13] के अनुसार 2023 में ईरान का रक्षा ख़र्च अनुमानित IRR (ईरानी रियाल) 3.194 ट्रिलियन (लगभग 43.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर ) था. ऐसे में वह सैन्य ख़र्च के मामले में इस इलाके में केवल सऊदी अरब से पीछे है. सऊदी अरब का रक्षा बजट 69.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर  है.

 

पिछले तीन दशकों में ईरान ने विद्रोहियों और छद्‌म संगठनों का एक ऐसा जटिल नेटवर्क खड़ा करने में सफ़लता हासिल की है जो इस क्षेत्र में उसकी और से लड़ाई लड़ता है. प्रसिद्ध ‘थ्री Hs’ हमास (गाज़ा पट्टी में), हिजबुल्लाह (लेबनान) और हूती (यमन) इसमें प्रमुख है. इसके अलावा भी अनेक छोटे लेकिन प्रभावी समूह उसके लिए काम करते है. उसने इन समूहों को घातक हथियारों का उपयोग करने का प्रशिक्षण भी दिया है. इसमें ड्रोन के साथ कम और मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें शामिल है. ये विद्रोही लेवांत/लेवंट में आम आबादी से बीच घुसकर बैठे हैं. इस वजह से उनके लिए काम करना बेहद आसान हो जाता है.

 

ईरान का परमाणु कार्यक्रम ही पश्चिमी के साथ उसके विवाद की जड़ है. इस कार्यक्रम की वजह से ही उसे अनेक आर्थिक प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ा है. लेकिन यही कार्यक्रम इस इलाके में उसकी मजबूत अभिव्यक्ति का माध्यम भी है. ईरान ने JCOPA पर हस्ताक्षर करने की वजह से प्रतिबंधों में आने वाली कमी को देखते हुए कुछ ढील दी थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय  परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की फरवरी 2024[14] की रिपोर्ट के अनुसार ईरान अब भी उच्च स्तरीय यूरेनियम को समृद्ध कर रहा है. अब उसके पास कुल समृद्ध यूरेनियम की मात्रा 5,525 किलो हो गई है. इसी रिपोर्ट से यह भी पता चला कि अब ईरान के पास ऐसा 121.5 किलो समृद्ध यूरेनियम है जिसकी शुद्धता 60 प्रतिशत है. IAEA की अपनी सैद्धांतिक व्याख्या के अनुसार 60 प्रतिशत तक समृद्ध यूरेनियम की 42 किलो मात्रा ही परमाणु बम[15] बनाने के लिए ज़रूरी न्यूनतम मात्रा है. ऐसे में ईरान के पास ऐसे तीन बम बनाने की क्षमता मौजूद है.

 

ईरान के ऊर्जा भंडार, कच्चा तेल तथा प्राकृतिक गैस, ही उसकी आर्थिक शक्ति के प्रमुख स्रोत है. उसके पास दुनिया के तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है, जबकि प्राकृतिक गैस भंडार के मामले में वह नंबर दो पर आता है. यह बात US स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी भी मानता है.[16] ईरान का कुल तेल भंडार[17] 209 बिलियन बैरल होने का अनुमान है, जबकि प्राकृतिक गैस भंडार 33,988 बिलियन क्यूबिक मीटर्स है. 2021 के अंत में ईरान के पास पश्चिम एशिया का 24 प्रतिशत तेल भंडार था. वैश्विक स्तर पर यह 12 प्रतिशत होता है.[18] 2021 में ईरान ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज  (OPEC) में पांचवां सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक था, जबकि 2020 में वैश्विक स्तर पर वह तीसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस उत्पादक था.

 

आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से होने वाली परेशानी तथा वर्तमान में चल रहे गाज़ा युद्ध के बावजूद मई 2024 में ईरान का कच्चे तेल का उत्पादन पिछले दो वर्षों के मुकाबले 20 प्रतिशत बढ़कर 3.4 मिलियन बैरल प्रतिदिन  (bpd) हो गया था.[19] यह वैश्विक स्तर पर होने वाली तेल आपूर्ति का 3.3 फ़ीसदी है. मार्च 2024 में ईरान का कच्चे तेल का निर्यात औसतन 1.61 मिलियन bpd रहा,[20] जो मई 2023 में रहे 1.68 मिलियन bpd के बाद से सर्वाधिक था. सन  2023 में दर्ज़ आंकड़ा 2018 के बाद सर्वाधिक रहा था. मई 2018 में अमेरिका की अगुवाई में पुन: लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध लागू होने से पहले ईरान का कच्चे तथा कंडेनसेट  तेल का निर्यात 2.8 मिलियन bpd हो गया था.

 

ईरान दुनिया का सबसे अहम शिया मुस्लिम राष्ट्र है. उसका वैचारिक, राजनीतिक और सैन्य प्रभाव लेवांत/लेवंट में व्यापक तौर पर तथा सीरिया, इराक, लेबनान और कॉकस क्षेत्र में अफगानिस्तान में फ़ैला हुआ है. भारत में भी अच्छी ख़ासी तादाद में शिया आबादी है जो ईरान की ओर सम्मान की दृष्टि से देखती है.

 

पुरानी रुकावटें

 

भारत और ईरान के बीच संबंध उनकी क्षमताओं के अनुसार विकसित नहीं हो सकें. इसका कारण द्विपक्षीय मुद्दों से नहीं जुड़ा था, बल्कि इसके लिए बाहरी कारण ज़िम्मेदार थे. इन कारणों में मई 2019 में US की ओर से ईरान की परमाणु संधि को ख़ारिज करने के बाद आर्थिक प्रतिबंध दोबारा लागू होने के बाद भारत की ओर से ईरान पर लगाई तेल आयात पर पाबन्दी, भारत-इज़राइल के नजदीकी संबंध और ईरान के चीन के साथ बढ़ती नज़दीकियां शामिल हैं. चीनी मुद्दे में स्थिति खासतौर पर मार्च 2021 में दोनों देशों के बीच 25 वर्षीय कूटनीतिक साझेदारी को लेकर हुए समझौते के बाद और भी बिगड़ गई थी.[21]

 

अन्य कारणों में यमन के गृहयुद्ध में ईरान का शामिल होना भी दोनों देशों के बीच संबंधों की राह में रुकावट बना हुआ है. एक ओर जहां भारत इस गृह युद्ध  में तटस्थ है, वहीं ईरान ने हूती विद्रोहियों का समर्थन किया है. हूती विद्रोहियों ने भारत के सहयोगियों जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के ख़िलाफ़ 2019 में ड्रोन से हमले किए थे. अगस्त 2019 में ईरान ने एक बयान[22] जारी करते हुए जम्मू और कश्मीर से उसका विशेष दर्ज़ा वापस लेने के भारत के फ़ैसले की आलोचना की थी. इसी प्रकार पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करने को लेकर भारत के पश्चिमी देशों के दबाव में आने के फ़ैसले से भी ईरान नाराज़ है. 

 

बदली हुई परिस्थितियां

 

पिछले कुछ वर्षों में कुछ ऐसे बदलाव हुए है, जिसकी वजह से भारत-ईरान संबंधों में सुधार आ सकता है. सऊदी-ईरान शांति समझौता होने की वजह से पश्चिम एशिया में डायनैमिक्स ही बदल गया है. इसका कारण यह है कि क्षेत्र के दो बड़े प्रतिद्वंद्वी अब आपस में तालमेल साधने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में अब भारत के लिए ईरान के साथ बातचीत करना और भी आसान हो गया है. (हालांकि भारत ने कभी भी ईरान के साथ अपने संबंधों को सऊदी अरब और ईरान के संबंधों को लाभ-हानि के चश्मे से नहीं देखा था.) ईरान के परमाणु कार्यक्रम में संशोधन को लेकर बातचीत फंसी हुई है. ऐसे में यह साफ़ है कि इसे लेकर कोई संधि नहीं होने वाली और पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों में भी कोई ढील भी नहीं दी जाएगी. इसकी वजह से ईरान के संबंध में भारत को फ़ैसला लेने में आसानी होगी, क्योंकि पश्चिमी देशों के रुख़ में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है. अत: भारत वैश्विक हितों को संतुलित करने के लिए ईरान के साथ अपने संबंधों को चाहे जितना सुधार सकता है.

 ईरान अब इस क्षेत्र में हथियारबंद ड्रोन का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वालों में शामिल हो गया है.  इन सारी बातों की वजह से अब पश्चिम एशियाई क्षेत्र में ईरान की ओर देखने का नज़रिया भी बदल गया है.

2023 में ईरान का SCO तथा BRICS में समावेश भारत के समर्थन के बगैर संभव नहीं था. अब गाज़ा युद्ध की वजह से ईरान-इज़राइल के बीच छोटा सैन्य विवाद भड़क गया है. इसकी वजह से अप्रैल 2024 में दोनों देशों ने एक-दूसरे के इलाकों पर सीधा सैन्य हमला किया था. यह इस बात का संकेत है कि ईरान इस क्षेत्र में अपना परंपरागत कूटनीतिक धैर्य[23] को खोने लगा है. इसे एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में देखा जाना चाहिए.

 

इसके अलावा ईरान तथा कतर के बीच भी अब नज़दीकी संबंध विकसित होते दिखाई दे रहे है. 2017 में सऊदी अरब, UAE और बहरीन ने कतर के साथ अपने राजनयिक  संबंधों को समाप्त करते हुए उसके ख़िलाफ़ सड़क, समुद्री और हवाई रोक लगा दी थी. इन तीनों ही देशों ने कतर पर आतंकवाद और उग्रवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया था. इस वजह से जून 2017 में गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल  (GCC) से कतर को निष्कासित कर दिया गया था. इस अवसर का लाभ उठाकर ईरान ने तुरंत कतर की तरफ सहायता का हाथ बढ़ाते हुए उसे खाद्यान्न और औषधियों की आपूर्ति की थी. ईरान ने रोज़ाना 1,100 टन भोजन भेजा था. इतना ही नहीं उसने ऊपर  दिए गए तीनों देशों की ओर से लगाई गई हवाई रोक के बावजूद कतर को अपनी हवाई सीमा का उपयोग करने की अनुमति भी दी थी. कतर को GCC में साढ़े तीन वर्षों के बाद पुन: शामिल कर लिया गया था. वह 2021 से लगातार GCC के शिखर सम्मेलनों में शामिल हो रहा है. लेकिन उसके ख़िलाफ़ तीनों देशों की ओर से उठाए गए कदमों की वजह से वह ईरान का नज़दीकी सहयोगी बन गया है. गाज़ा में चल रहे युद्ध को ख़त्म करने के प्रयासों में कतर भी एक अहम खिलाड़ी बन गया है. इसका कारण यह है कि हमास का मुख्यालय अब भी दोहा में ही है. इसके अलावा सऊदी अरब और UAE ने इस मामले में मिश्रित रवैया अपना रखा है. युद्ध[24] के दौरान पश्चिमी और इज़राइली दबाव के आगे डटकर खड़े होने वालों में ईरान का साथ मुख़्यत: कतर और तुर्किए ही दे रहे है.

 

पूर्व राष्ट्रपति रईसी की ‘नेबरली पॉलिसी’[25] और चीन की मध्यस्थता के साथ सऊदी अरब के साथ हुए शांति समझौते की वजह से अब सऊदी अरब तथा UAE दोनों के ही तेहरान के साथ पूर्ण राजनयिक  संबंध हैं. मई 2024 में ईरान तथा UAE ने अपनी संयुक्त आर्थिक समिति[26] का पहला सत्र भी अबु धाबी में आयोजित किया था. इसका उद्देश्य आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ावा देना था. मिस्र के पश्चिमी देशों के साथ नज़दीकी की वजह से ईरान-मिस्र के संबंध भी दशकों से बाधित थे. लेकिन अब इसमें भी सुधार हो रहा है. मई 2024 में ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन तथा मिस्र के विदेश मंत्री समीह  शौकरी[27] के बीच ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन  (OIC) में शामिल देशों के प्रमुखों के बंजुल में हुए 15 वें शिखर सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकात में दोनों ने द्विपक्षीय संबंध सुधारने को लेकर बातचीत की थी. उसी महीने में शौकरी ने तेहरान का दौरा किया था. वे रईसी के अंतिम संस्कार में आए थे. ऐसा करते हुए वे ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद कदम रखने वाले मिस्र के पहले विदेश मंत्री बन गए थे.

 

तुर्किए के साथ भी ईरान के संबंध विवादित रहे हैं. इसमें दोनों ही देशों की ओर से सीरिया में प्रतिद्वंद्वी  गुटों को दिया जा रहा समर्थन एक अहम कारण है. लेकिन गाज़ा में हो रहे युद्ध ने दोनों देशों को करीब लाने का काम किया है. रईसी ने जनवरी 2024 में अंकारा का दौरा करते हुए तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप  तैयप एर्दोगन[28] से मुलाकात कर आपसी संबंधों को सुधारने और गाज़ा को लेकर संयुक्त नीति बनाने पर बातचीत की थी. इसके साथ ही सीरिया को भी मई 2023[29] में अरब लीग में दोबारा शामिल किया गया. लगभग 12 वर्ष पूर्व उसकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इसका कारण था कि सीरिया में मार्च 2011 में ‘अरब स्प्रिंग’ प्रदर्शनों के बाद गृह युद्ध शुरू  हो गया था. इस वजह से भी ईरान की स्थिति और भी मजबूत हो जाती है, क्योंकि सीरिया उसका एक महत्वपूर्ण साथी है.

 

कुछ अन्य गतिविधियों ने भी इस क्षेत्र में ईरान को मजबूत बनकर उभरने में सहायता की है. अफगानिस्तान से अगस्त 2021 में US की वापसी के बाद ईरान ने मौके का फ़ायदा उठाकर तालिबान के साथ बातचीत शुरू की थी. अनेक वर्षों की देरी के बाद INSTC के पूर्ण होने से भी ईरान क्रॉस-कॉन्टिनेंटल ट्रेड का अहम हब, विशेषत: रूस और मध्य एशिया के लिए, बन गया है. लंबी दूरी तक मारक क्षमता रखने वाले घातक ड्रोन का उत्पादन करने की क्षमता और उसे क्षेत्र में अपने छद्‌म साथियों और रूस तक निर्यात करने की वजह से भी ईरान ने अपनी सैन्य शक्ति में इज़ाफ़ा कर लिया है. ईरान अब इस क्षेत्र में हथियारबंद ड्रोन का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वालों में शामिल हो गया है.[30] इन सारी बातों की वजह से अब पश्चिम एशियाई क्षेत्र में ईरान की ओर देखने का नज़रिया भी बदल गया है.

 

पश्चिम एशिया के साथ भारत के संबंधों में भी गुज़रे दशकों में परिवर्तन आया है. पश्चिम एशिया का अगस्त 2015 में [g] दौरा करने के बाद से PM मोदी ने दोस्ती का हाथ बढ़ाए रखा है. इस क्षेत्र के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों में अप्रत्याशित सुधार देखा गया है. ये संबंध केवल खरीददार-विक्रेता जैसे पारंपरिक  संबंधों से आगे निकल गए हैं. भारत अब ऊर्जा आयात पर ही ध्यान केंद्रित  कर रहा है. इसके बावजूद पश्चिम एशिया में ईरान ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां भारत की पहुंच बढ़ने के बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध अब तक ठोस साझेदारी में नहीं बदल सके हैं.

 

इसके बावजूद दोनों देशों के नेताओं ने विगत कुछ वर्षों में अलग-अलग मंचों पर मुलाकात की है. चाबहार बंदरगाह संधि के साथ ईरान से भारत में तेल का निर्यात दोबारा आरंभ होने की संभावना जैसे अनेक मुद्दों पर बातचीत को जारी रखने के विकल्पों से बातचीत में बढ़ावा संभव दिखाई देता है.

 

विकल्प और अवसर

ईरान और भारत दोनों ने ही इस बात का प्रदर्शन किया है कि उनकी नीतियां उनके राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही संचालित होती हैं. दोनों ओर से यह स्वीकार कर लेना कि द्विपक्षीय संबंध भी इसी सिद्धांत पर आधारित होंगे, सहयोग के नए द्वार खोल सकता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ‘सुधारवादी’ हैं या ‘कट्टरपंथी’. रूहानी को ‘सुधारवादी’ कहा गया था, जबकि रईसी को ‘कट्टरपंथी’ बोला गया था. फर्क इस बात से पड़ता है कि दोनों ही नेताओं के कार्यकाल में ईरान और भारत के संबंध बराबरी पर ही थे. रूहानी और मोदी ने 2016 तथा 2018 में यात्राओं का आदान-प्रदान करते हुए अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. रईसी और मोदी के बीच भी अनेक बहुराष्ट्रीय मंचों पर उत्साहजनक बातचीत हुई थी.

 

निश्चित ही चाबहार समझौते पर हस्ताक्षर रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना के कुछ दिन पहले ही किए गए थे. पेज़ेशकियान ने 12 जुलाई 2024[31] को एक बयान जारी किया था. यह बयान उनके अनुसार ‘‘नए विश्व के लिए एक संदेश’’ था. पेज़ेशकियान, उस वक़्त भी ‘प्रेसिडेंट-इलेक्ट’ थे, ने कहा था कि वे एक ‘‘संतुलित विदेश नीति’’ के समर्थक हैं. एक ऐसी नीति जो ईरानी तथा फारसी गौरव का जतन करें. इस गौरव का जतन करते हुए यह नीति विश्व के साथ ‘‘सम्मान, समझदारी और उपयुक्तता’’ के आधार पर बातचीत करें. उनके इस बयान में भारत का उल्लेख नहीं था, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि वे भारत के साथ ईरान के संबंधों को और भी सुधारना चाहेंगे.

 चाबहार बंदरगाह से जाहेदान  शहर  के बीच 700 किलोमीटर के रेलवे लिंक को भी फास्ट ट्रैक किया जा रहा है. बाद में इस लिंक को ईरान के मौजूदा रेल नेटवर्क के साथ जोड़ा जाना है. 

दोनों देशों के बीच नई बातचीत में निश्चित रूप से ऊर्जा आपूर्ति का मुद्दा सबसे अहम होगा. मई 2019 के पहले भारत की तेल की ज़रूरतों का 10 फीसदी तेल ईरान से आता था. अगर भारत ईरान से तेल का आयात दोबारा शुरू करता है तो इसकी वजह से उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूर्ण करने की संभावनाओं का एक नया पिटारा ख़ुल सकता है. ईरान, जो इस वक़्त चीन को भी आपूर्ति कर रहा है, को बदले में एक बड़ा बाज़ार मिल सकता है. निकट दिखाई दे रहे भविष्य में तो भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए जीवाश्म ईंधन पर ही आश्रित दिखाई देता है. ऐसे में एक विविधतापूर्ण पोर्टफोलियो भारत के हित में होगा. संभावनाएं तो अपार है. लेकिन अब तक केवल UAE ने ही भारत के लिए कूटनीतिक तेल आरक्षित रखने का प्रस्ताव दिया है. भारत चाहे तो ऐसा ही वादा वह ईरान से करवाने के लिए भी हाथ आगे बढ़ा सकता है.

 

महत्वाकांक्षी ईरान-ओमान-भारत गैस पाइपलाइन पर 1993 से ही चर्चा चल रही है. लेकिन इस पर बात आगे नहीं बढ़ सकी है. 23 मई 2022 को तत्कालीन राष्ट्रपति रईसी की ओमान यात्रा[32] के दौरान दोनों देशों ने दो अंडरसी (समुद्र के भीतर) गैस पाइपलाइन विकसित करने पर हामी भरी थी. इसके साथ ही दोनों देश अपनी समुद्री सीमा पर एक ऑयल फील्ड भी विकसित करने को तैयार हुए थे. यदि ऐसा वास्तव में होता है तो इस पाइपलाइन को भारत तक विस्तारित करने की संभावना हकीकत बन जाती है. ऐसा हुआ तो यह असफ़ल ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइन[h] की जगह लेकर भारत तक प्राकृतिक गैस की अबाधित आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती है. वर्तमान में भारत को सबसे ज़्यादा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति कतर से होती है. इसके अलावा अबु धाबी एवं UAE.[i],[33],[34] से भी बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस आती है. अगर ईरान भी इसकी आपूर्ति शुरू कर देगा तो इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बल ही मिलेगा.

 

जैसे-जैसे INSTC आगे बढ़ेगा इसका लाभ भारत और ईरान दोनों को ही मिलेगा. भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच सामग्री का आवागमन सुगम करने के लिए चाबहार बंदरगाह को INSTC के साथ जोड़ने का भी प्रस्ताव है. इसका कारण यह है कि चाबहार को INSTC कॉरिडोर के ईस्टर्न रूट यानी पूर्वी मार्ग की एक अहम कड़ी के रूप में देखा जाता है. चाबहार बंदरगाह, स्ट्रेट  ऑफ होर्मुज के बाहर स्थित है. ऐसे में वह भौगोलिक रूप से बेहतर स्थिति में है. ऐसे में पर्शियन  गल्फ क्षेत्र में संघर्ष के कारण यदि समुद्री मार्ग बाधित होते है तो भी भारत के व्यापार को चाबहार बंदरगाह की वजह से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. चाबहार बंदरगाह से जाहेदान  शहर[35] के बीच 700 किलोमीटर के रेलवे लिंक को भी फास्ट ट्रैक किया जा रहा है. बाद में इस लिंक को ईरान के मौजूदा रेल नेटवर्क के साथ जोड़ा जाना है. एक बार यह विकसित हो गई तो जाहेदान शहर तक यह लिंक और उससे आगे अफगानिस्तान के झरांज तक पहुंचना आसान हो जाएगा. ऐसे में चाबहार का उपयोग करते हुए भारत से अफगानिस्तान तक मानवीय सहायता पहुंचाने में आसानी होगी.

 

ईरान के साथ नज़दीकी सैन्य सहयोग भी भारत के हित में होगा. दोनों देशों के बीच 2001 में एक रक्षा समझौता हुआ था. लेकिन उसके बाद बात वह अटक कर रह गई. इसका मुख़्य कारण ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध थे. चूंकि अब प्रतिबंध किसी भी वक़्त हटाए जा सकते हैं, अत: भारत को अपनी कूटनीतिक स्वायत्तता का उपयोग करते हुए इस सहयोग को आगे बढ़ाना चाहिए. हाल के वर्षों में ईरान ने छोटी एवं मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल्स, हाइपरसोनिक  मिसाइल्स और हथियारबंद ड्रोन जैसे आधुनिक हथियार विकसित किए हैं. उदाहरण के तौर पर अप्रैल 2024 में उसने अपने अपडेटेड एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम बावर-373 का प्रदर्शन किया. कहा जा रहा है कि यह सिस्टम रूसी S-400 सिस्टम से ज़्यादा घातक एवं शक्तिशाली है.

 

पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों का मुकाबला करने के लिए भी भारत और ईरान संयुक्त सैन्य आतंकवाद विरोधी अभ्यास कर सकते हैं. ऐसा अभ्यास ईरान में पाकिस्तान की सीमा पर किया जा सकता है. यह अभ्यास ऐसे इलाकों में हो सकता है जो आपात सैन्य स्थिति में ईरान के लिए लाभदायक साबित हो सकता है. भारत को चीन और पाकिस्तान का दो-मोर्चों पर मुकाबला करना पड़ रहा है. ऐसे में भारत और ईरान के बीच सैन्य समन्वय, पाकिस्तान के ख़िलाफ़ प्रभावी निवारक कदम माना जा सकता है. नौसेना के मोर्चे पर ईरानी बंदरगाहों पर पोर्ट कॉल्स तथा पर्शियन  गल्फ में पाकिस्तानी बंदरगाहों के करीब लॉजिस्टिकल सुविधाओं का निर्माण सैन्य कूटनीति में मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है.

 

इसके साथ ही ईरान के साथ नज़दीकी नौसैनिक सहयोग अरब सागर से गुज़रने वाले भारतीय जहाजों को सुरक्षित मार्ग भी मुहैया कराएगा . इसके अलावा अरब सागर के समुद्री मार्ग भी सुरक्षित हो जाएंगे. ईरान ने इसके पहले भी संघर्ष के दौरान भारतीय जहाजों को सुरक्षित मार्ग मुहैया करवाया है. उदाहरण के लिए 2019 में पर्शियन  गल्फ में यूनाइटेड स्टेट्‍स  के साथ तनाव के दौरान भी ईरान ने भारत के साथ सहयोग करते हुए उसके ऑपरेशन संकल्प को सफ़ल बनाया था. ऑपरेशन संकल्प का उद्देश्य स्ट्रेट  ऑफ होर्मुज से भारतीय जहाजों को सुरक्षित निकालना था.[36] इसके अलावा ईरान इस क्षेत्र में समुद्री डाकुओं से मुक़्त रखने अथवा उन्हें दूर रखने में भी भारत की सहायता कर सकता है.

 

निष्कर्ष 

 

भारत और ईरान मिलकर काफ़ी कुछ हासिल कर सकते हैं. प्रधानमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी भी पश्चिम एशिया की तरफ पहुंच और रणनीतिक संरेखन को मजबूती देना चाह रहे हैं. इसी प्रकार ईरान भी हाल के वर्षों में उसे मिली रणनीतिक प्रगति को पुख़्ता करना चाहता है. ऐसा करने के लिए उसे भरोसेमंद और विश्वासपात्र नए सहयोगी चाहिए. इन दो पुरानी सभ्यताओं के बीच नवउर्जित बातचीत चीजों को सही दिशा में ले जाने वाली साबित हो सकती है. 

 

कर्नल राजीव अग्रवाल सेना के वरिष्ठ होने के साथ पश्चिम एशिया विशेषज्ञ भी है. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मिलिट्री इंटेलिजेंस के निदेशक तथा विदेश मंत्रालय में निदेशक के रूप में भी काम संभाला है.




 

 

[1]Endnotes

 

 Reformist Pezeshkian beats hard-liner to win Iran presidential election, promising outreach to West, Indian Express, 07 July 2024, https://indianexpress.com/article/world/reformist-pezeshkian-iran-presidential-election-9438308/

[2] Brief on India Iran Relations, Embassy of India Tehran, https://www.indianembassytehran.gov.in/eoithr_pages/MTY,

[3] Text Of Tehran Declaration, Press Information Bureau Archives, https://archive.pib.gov.in/archive/releases98/lyr2001/rapr2001/11042001/r1104200112.html

[4] The Republic of India and the Islamic Republic of Iran "The New Delhi Declaration", Ministry of External Affairs Documentshttps://www.mea.gov.in/other.htm?dtl/20182/The+Republic+of+India+and+th#1

[5] UN Security Council Resolution 1737, 27 December 2006, https://documents.un.org/doc/undoc/gen/n06/681/42/pdf/n0668142.pdf?token=Pd2yKqQAhZ6iC04Rr0&fe=true

[6] India-Iran Joint Statement during Visit of the President of Iran to India (February 17, 2018), Press Information Bureauhttps://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1520840

[7] After long wait, India inks Chabahar port's 10-year deal with Iran, Business Standard, 13 May 2024, https://www.business-standard.com/economy/news/after-long-wait-india-inks-chabahar-port-s-10-year-deal-with-iran-124051301357_1.html

[8] India, Iran sign 10-year contract for Chabahar port operation, The Hindu, 13 May 2024, https://www.thehindu.com/news/national/india-iran-sign-long-term-bilateral-contract-on-chabahar-port-operation/article68171624.ece

[9] Poonam Mann, INSCTC Operationalised, CAPS, 26 July 2022, https://capsindia.org/instc-operationalised/#_ednref2

[10] India plans expansion in Iran’s Chabahar, plans afoot to link port with INSTC, Economic Times, 21 April 2021, https://economictimes.indiatimes.com/industry/transportation/shipping-/-transport/india-plans-expansion-in-irans-chabahar-plans-afoot-to-link-port-with-instc/articleshow/82024011.cms?from=mdr

[11] The Strait of Hormuz is the world's most important oil transit chokepoint, US Energy Information Administration, 21 November 2023

 https://www.eia.gov/todayinenergy/detail.php?id=61002#:~:text=the%20Arabian%20Sea.-,The%20Strait%20of%20Hormuz%20is%20the%20world's%20most%20important%20oil,of%20global%20petroleum%20liquids%20consumption.

[12] Middle East Military Strength, Global Fire Power 2024https://www.globalfirepower.com/countries-listing-middle-east.php

[13] Page 335, Military Balance 2024, Published by International Institute of Strategic Studies (IISS)https://www.iiss.org/en/publications/the-military-balance/

[14] Page 8 of IAEA Report on Verification and monitoring in the Islamic Republic of Iran in light of United Nations Security Council resolution 2231 (2015), 26 February 2024, https://www.iaea.org/sites/default/files/documents/gov2024-7.pdf

[15] Entering Dangerous, Uncharted Waters: Iran’s 60 Percent Highly Enriched Uranium, Report by Institute for Science and International Security, 11 April 2022,https://isis-online.org/isis-reports/detail/entering-uncharted-waters-irans-60-percent-highly-enriched-uranium#ref1

[16] Iran Country Analysis, US Energy Information Administration, 17 November 2022, https://www.eia.gov/international/analysis/country/IRN

[17] Iran Facts and Figures, OPEChttps://www.opec.org/opec_web/en/about_us/163.htm

[18] Iran Overview, US Energy Information Administrationhttps://www.eia.gov/international/analysis/country/IRN

[19] Iran’s crude oil output up 20% in 2 years at 3.3% of global supply: What does this mean for the Iran-Israel proxy war?, Live Mint, 16 April 2024, https://www.livemint.com/market/commodities/irans-crude-oil-output-up-20-in-2-years-at-3-3-of-global-supply-what-does-this-mean-for-the-proxy-war-with-israel-11713273713779.html

[20] Iran’s crude oil output up 20% in 2 years at 3.3% of global supply: What does this mean for the Iran-Israel proxy war?, Live Mint, 16 April 2024, https://www.livemint.com/market/commodities/irans-crude-oil-output-up-20-in-2-years-at-3-3-of-global-supply-what-does-this-mean-for-the-proxy-war-with-israel-11713273713779.html

[21] Iran and China sign 25-year cooperation agreement, Reuters, 29 March 2021, https://www.reuters.com/article/world/iran-and-china-sign-25-year-cooperation-agreement-idUSKBN2BJ0HG/

[22] Iran issues rare criticism of India over Kashmir, Atlantic Council, 30 August 2019, https://www.atlanticcouncil.org/blogs/iransource/iran-issues-rare-criticism-of-india-over-kashmir/

[23] Understanding Iran’s strategic patience and why it is over now, Firstpost, 18 April 2024, https://www.firstpost.com/opinion/understanding-irans-strategic-patience-and-why-it-is-over-now-13760939.html

[24] The Qatar Blockade Is Over, but the Gulf Crisis Lives On, Foreign Policy,27 January 2021, https://foreignpolicy.com/2021/01/27/qatar-blockade-gcc-divisions-turkey-libya-palestine/

[25] IRAN’S NEIGHBORHOOD POLICY: AN ASSESSMENT, 19 April 2024, Middle East Council on Global Affairs, https://mecouncil.org/publication_chapters/irans-neighborhood-policy-an-assessment/

[26] UAE and Iran agree to bolster economic ties and trade co-operation, The National, 02 May 2024, https://www.thenationalnews.com/business/economy/2024/05/02/uae-and-iran-agree-to-bolster-economic-ties-and-trade-co-operation/

[27] Iranian, Egyptian FMs discuss boosting ties, regional developments, Xinhua News, 05 May 2024, https://english.news.cn/20240505/066ab3415ae344c6b67b947e5cabe3b0/c.html

[28] Turkey, Iran agree on need for regional stability amid Israel’s war on Gaza, Al Jazeera Newshttps://www.aljazeera.com/news/2024/1/24/turkey-iran-agree-on-need-for-regional-stability-amid-israels-war-on-gaza

[29] Arab League readmits Syria as relations with Assad normalise, Reuters, 08 May 2023, https://www.reuters.com/world/middle-east/arab-league-set-readmit-syria-relations-with-assad-normalise-2023-05-07/#:~:text=CAIRO%2C%20May%207%20(Reuters),a%20move%20criticised%20by%20Washington.

[30] Iran’s better, stealthier drones are remaking global warfare, Economic Times, 09 April 2024, https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/irans-better-stealthier-drones-are-remaking-global-warfare/articleshow/109158989.cms?from=mdr

[31] My message to the new world, By Iranian President-elect Masoud Pezeshkian, Tehran Times, 12 July 2024, https://www.tehrantimes.com/news/501077/My-message-to-the-new-world

[32] Oman and Iran ink deals on oil field, gas pipelines, The Economic Times, 06 June 2022,

https://energy.economictimes.indiatimes.com/news/oil-and-gas/oman-and-iran-ink-deals-on-oil-field-gas-pipelines-official/92029718

[33] India saves $6 bn on Qatar LNG deal renewal; signs $78 billion pact for 20 years, The Economic Times, 06 February 2024, https://economictimes.indiatimes.com/industry/energy/oil-gas/india-likely-to-extend-lng-import-deal-with-qatar-for-20-years-at-lower-rates/articleshow/107445186.cms?from=mdr

[34] Indian Oil signs long term LNG import deals with ADNOC LNG, Total Energies, The Economic Times, 17 July 2023, https://economictimes.indiatimes.com/industry/energy/oil-gas/indian-oil-signs-long-term-lng-import-deals-with-adnoc-lng-totalenergies/articleshow/101824972.cms?from=mdr

[35] India, Iran may restart rail connectivity project between Chabahar and Zahedan, Live Mint, 01 July 2024, https://www.livemint.com/politics/policy/india-iran-may-restart-rail-connectivity-project-between-chabahar-and-zahedan-11719732939940.html

[36] Op Sankalp : 3rd Year Of Indian Navy’s Maritime Security Operations, Ministry of Defence, 19 June 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1835382

 

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