Occasional PapersPublished on May 18, 2023
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भविष्य की तैयारी: भारत के लिये क्यों ज़रूरी है कि वो हाइब्रिड युद्ध क्षमताओं को विकसित करे!

सैन्य और गैर-सैन्य तत्वों के साथ हाइब्रिड युद्ध उभरती हुई वैश्विक चुनौती बनती जा रही है. इसने ख़ुफ़िया जानकारी, सूचना, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, पारंपरिक और अपरंपरागत युद्ध तकनीक़ों का इस्तेमाल कर अदृश्य विरोधियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय क्षमताओं को विकसित करने की ज़रूरत को सामने लाया है. यह आलेख हाइब्रिड युद्ध की बारीकियों पर चर्चा करता है, भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों (पाकिस्तान और चीन) की हाइब्रिड युद्ध क्षमताओं की पड़ताल करता है और वैकल्पिक युद्धों का जवाब देने के लिए भारत को अपनी क्षमताओं को विकसित करने के लिए बढ़ावा देता है.

Attribution:

एट्रीब्यूशन: एस.के.गेड्योक, “भविष्य की तैयारी: भारत के लिये क्यों ज़रूरी है कि वो हाइब्रिड युद्ध क्षमताओं को विकसित करे!”, ओआरएफ़ ओकेश्नल पेपर नं- 399, अप्रैल 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन

परिचय

'हाइब्रिड वॉरफेयर' या 'हाइब्रिड कॉन्फ्लिक्ट' शब्दों की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं है. आमतौर पर संघर्ष के परिदृश्य में हाइब्रिड का अर्थ सर्वाधिक फायदे के लिए युद्ध के विभिन्न तरीक़ों और टूल्स का एक साथ इस्तेमाल करना होता है. हाइब्रिडिटी की व्यापक परिप्रेक्ष्य में भी जांच की जाती है कि बगैर संघर्ष मे शामिल हुए या शामिल होकर किसी दुश्मन को युद्ध में हराने के लिए सबसे प्रभावी तरीक़े से राष्ट्रीय व्यापक शक्ति को कैसे इस्तेमाल किया जाए.

अमेरिका में सितंबर 2001 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद पारंपरिक संघर्ष में हाइब्रिडिटी की आवश्यकता तब पैदा हुई जब लोगों के बीच युद्ध छेड़ने के लिए सशस्त्र बलों के पारंपरिक तरीक़े पर्याप्त साबित नहीं हुए. साल 2006 के इज़राइल-लेबनान युद्ध के दौरान इस अवधारणा को और अधिक अहमियत मिली, जहां इज़राइल के ख़िलाफ़ लेबनान (और हिजबुल्लाह) की अपरंपरागत रणनीति - गुरिल्ला युद्ध, टेक्नोलॉजी का नए तरीक़े से इस्तेमाल और एक प्रभावी सूचना अभियान - को 'हाइब्रिड वॉरफेयर' कहा गया. [i]

कर्नल जॉन जे. मैकक्यूएन, जो ख़ुद एक युद्ध के दिग्गज और काउंटर इनसर्जेंसी के साथ-साथ हाइब्रिड वॉर एक्सपर्ट हैं, उन्होंने हाइब्रिड संघर्ष को "...भौतिक और वैचारिक दोनों आयामों के साथ व्यापक स्तर पर युद्ध: जो पहले, एक सशस्त्र दुश्मन के ख़िलाफ़ संघर्ष और बाद में, युद्धग्रस्त क्षेत्र के लोगों पर नियंत्रण और उनके समर्थन के लिए, जिसमें हस्तक्षेप करने वाले राष्ट्रों के घरेलू मोर्चों का समर्थन, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन शामिल हो...इसके साथ ही स्थानीय आबादी को सुरक्षित और स्थिर करने के लिए, हस्तक्षेप करने वाले देश की सेना को फौरन सुरक्षा, आवश्यक सेवाओं की बहाली, स्थानीय सरकार तैयार करना, सेल्फ डिफेंस फोर्स और अर्थव्यवस्था के आवश्यक तत्वों को बढ़ावा देना चाहिए."[ii]

फ्रैंक जी. हॉफमैन जैसे विद्वान, जो हाइब्रिड युद्ध की अवधारणा का सिद्धांत आगे बढ़ाने वाले लोगों में से एक हैं, उन्होंने कहा है कि हाइब्रिड वॉर राजनीतिक युद्ध तकनीक़ों का इस्तेमाल करता है और युद्ध के विभिन्न रूपों (पारंपरिक, अनियमित और साइबर युद्ध सहित) को एक साथ जोड़ता है, जिसमें अन्य तकनीक़ें भी शामिल रहती हैं (जैसे फेक न्यूज और कूटनीति). [iii]

अपनी किताब हाइब्रिड वॉरफेयर: द चेंजिंग कैरेक्टर ऑफ कॉनफ्लिक्ट में विक्रांत देशपांडे और शिबानी मेहता ने हाइब्रिड या ग्रे जोन कॉनफ्लिक्ट a और ख़तरे [iv] को डिकॉन्स्ट्रक्ट किया है और रेखांकित किया है कि हाइब्रिडिटी – टूल्स के संयोजन के संबंध में, संपर्क और गैर-संपर्क दोनों b - संघर्ष के पूरे इतिहास के दौरान अस्तित्व में रहे हैं.  हालांकि, युद्ध के साधन और तंत्र मौज़ूदा सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों और विज्ञान और टेक्नोलॉजी के विकास के अनुसार बदलते गए हैं. हाइब्रिड युद्ध - ग्रे ज़ोन द्वारा बढ़ाया गया, अप्रतिबंधित या नॉन लीनियर (गैर-रैखिक) वॉरफेयर - आधुनिक समय के संघर्षों को समझने की एक कोशिश है. औद्योगिक-युग के दौरान होने वाले संघर्षों और मध्ययुगीन संघर्षों के बीच मुख्य अंतर हाइब्रिड प्रकृति या नॉन लीनियर अप्रोच (गैर-रैखिक दृष्टिकोण) नहीं है, बल्कि उनके ख़ास सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ की वज़ह से सूचना-युग के वॉरफेयर टूल्स के इस्तेमाल को लेकर है. हाइब्रिड या ग्रे ज़ोन संघर्षों को समझने की कोशिश वांछित राजनीतिक मक़सद को हासिल करने के लिए एक समन्वित, सुसंगत और समय-समय पर एक साथ कई प्रकार की क्षमताओं को लागू करने का संकेत देते हैं. [v] इसके अलावा, 'डिनाइबिलिटी (विकृति)' c का विकल्प और नॉन स्टेट एक्टर्स के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए एक राष्ट्र की सीमितताएं ज़्यादातर देशों को अपने रणनीतिक लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ऐसी ताक़तों को इस्तेमाल करने के लायक बनाता है.

रणनीतिक विश्लेषक शॉन मोनाघन के अनुसार, "हाइब्रिड वॉर मल्टीडोमेन वॉरफाइटिंग अप्रोच (बहुक्षेत्रीय युद्ध दृष्टिकोण) का उपयोग करते हैं, जिसमें साइबर हमले, दुष्प्रचार और गड़बड़ियां, आर्थिक ब्लैकमेल और घात-आघात, प्रॉक्सी फोर्स का प्रायोजन  और निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करके किसी समाज या राष्ट्र को अस्थिर करने के लिए सैन्य विस्तारवाद शामिल है जिसमें पारंपरिक संघर्ष का सहारा नहीं लिया जाता है”[vi]

इसलिए  हाइब्रिड युद्ध को भू-राजनीतिक विकास और युद्ध के बदलते चरित्र के आधार पर रणनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के लिए एक फोकस्ड, सबथ्रेशहोल्ड-लेवल d की कोशिशों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. समकालीन समय में  आर्थिक साधनों, तकनीक़ और अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर  का  स्टेल्थ, ग्रे जो एंबिगुइटी (अस्पष्टता),  नॉन एट्रीब्यूनिलिटी, डिनाइबिलिटी और सावधानी से लिए गए जोख़िम के इस्तेमाल को एक दूसरे के रूप में हाइब्रिड वॉरफेयर, ग्रे जो कॉनफ्लिक्ट या पॉलिटिकल वॉरफेयर के रूप में बताया जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक माहौल हमेशा से गतिशील रहा है. हालांकि कुछ सुरक्षा से जुड़े ख़तरे लगातार बने हुए हैं. उदाहरण के लिए, चीन और पाकिस्तान के बीच मिलीभगत e भारत की सुरक्षा, स्थिरता और शांति के लिए हमेशा से ख़तरा बनी हुई है. इस संदर्भ में  भारत के लिए  दोनों सीमाओं पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए अपने दो प्रमुख विरोधियों की संशोधनवादी प्रवृत्तिf को नाकाम करने के लिए आक्रामक कार्रवाई सहित एक सक्रिय रुख़ अपनाने की आवश्यकता है. इस आलेख का उद्देश्य पाकिस्तान और चीन की क्षमताओं के आधार पर भारतीय संदर्भ में हाइब्रिड युद्ध की बारीकियों को समझना है.

हाइब्रिड संघर्ष को समझना: भारतीय संदर्भ

कम से कम कौटिल्य (प्राचीन भारतीय विचारक जिसे चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है) के युग से भारत में हाइब्रिड संघर्षों पर चर्चाएं अस्तित्व में रही हैं. हालांकि भारत की वर्तमान सैन्य प्रणाली एक औपनिवेशिक विरासत है और यूरोप के निर्धारित युद्ध क्षेत्रों से विकसित हुई है. भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक बड़ी चुनौती जटिल और हाइब्रिड युद्धक्षेत्र की उस सीमा को अपनाने की है. अपने प्रतिद्वंद्वियों (मुख्य रूप से, पाकिस्तान और चीन) द्वारा उत्पन्न ख़तरों को देखते हुए, भारत ने उप-पारंपरिक और पारंपरिक युद्ध को प्राथमिकता दी है, g हालांकि यह परमाणु युद्ध के साये में है.  फिर भी भविष्य के ख़तरे आसान नहीं होगे और ये जटिल और मिश्रित संरचनाओं को जन्म देंगे, जिसके चलते फोर्स एप्लिकेशन और युद्ध लड़ने के सिद्धान्तों और रणनीतियों में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता होगी. राष्ट्रीय और सैन्य उद्देश्य के अनुपालन में एक विशिष्ट उद्देश्य और किसी भी युद्ध या संघर्ष की वांछित आख़िरी स्थिति को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के लिए - जो सर्वोपरि और समझौते से परे होगा - यह आवश्यक है कि एक समग्र अभियान 'ग्रैंड स्ट्रैटेजी' को कई उप- रणनीतियों के साथ लागू किया जाए. किसी भी देश को अपने मूल राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक दृढ़ और निर्णायक संयुक्त सेवाओं की क्षमता (जो भूमि, वायु और समुद्री डोमेन से परे जाती है) द्वारा बढ़ाई गई एक मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है. यह क्षेत्रीय अखंडता पर मौज़ूदा फोकस से ज़्यादा इंटरेस्ट बेस्ड कैपिबिलिटी की ओर एक रणनीतिक बदलाव को अनिवार्य करता है. ऐसे में  भारत को मौज़ूदा राजनीतिक सोच को एक सामंजस्यपूर्ण राष्ट्रीय मानसिकता के विकास की ओर फिर से आगे बढ़ना चाहिए जो केवल सॉफ्ट पावर और यथास्थिति विकल्पों पर आधारित न हो.

कौटिल्य का अर्थशास्त्र, तीसरी शताब्दी का ग्रंथ, और कमंदकी (कम प्रसिद्ध सैन्य रणनीतिकार) द्वारा लिखी गई नितिसार, युद्ध के इतिहास को लेकर भारतीय ग्रंथों में बेहद अहम हैं. दोनों में सबक यह है कि संघर्ष के दौरान या उसके बाद किसी भी वास्तविक बल का इस्तेमाल करने से पहले युद्ध के मैदान को प्रभावित करने के लिए राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों का एक जटिल और हाइब्रिड मिश्रण ज़रूरी है. जबकि कौटिल्य कूटनीति, असंतोष, आर्थिक दबाव और संघर्ष के पहले, संघर्ष के दौरान और बाद में शक्ति की निरंतरता की व्याख्या करता है, जबकि कामांडकी डराने-धमकाने के तरीक़ों के लिए धोखे, मनोवैज्ञानिक युद्ध और उपेक्षा को जोड़ती है. सूचना युग के वर्तमान संदर्भ में इसे लागू करने पर, इन अवधारणाओं का अर्थ यह है कि हर आधुनिक, विशिष्ट और विघटनकारी टूल, टेक्नोलॉजी और पारिस्थितिकी तंत्र को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना है.

भारत की वर्तमान राष्ट्रीय नीतियां, युद्ध की अवधारणाएं  और शक्ति संरचनाएं युद्ध की विकसित प्रकृति के अनुरूप नहीं हैं. ज्वॉइंट वॉरफेयर सिद्धांतों की सफल रणनीति बनाने और युद्ध के 'ख़तरे और क्षमता' प्रतिमान को संबोधित करने के लिए, एक देश और उसकी सेना को 'अधिकतम लाभ' प्राप्त करने के लिए एकीकृत बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी, जो केवल पेशेवर सैन्य शिक्षा और सिविलh - मिलिट्री फ्यूज़न से ही पाई जा सकती है. i जैसा कि दुश्मनों की योजना में विभिन्न प्रकार के ख़तरे शामिल हो सकते हैं - कम लागत और कम तकनीक़ से लेकर उच्च लागत और विशिष्ट तकनीक़ों तक - यह ज़रूरी है कि राष्ट्रीय शक्ति के सभी तत्वों को देश की स्ट्रैटाइज्ड ज्वॉइंट ऑपरेशनल प्लान में शामिल किया जाए. राजनीतिक नेतृत्व को चाहिए कि वह राजनीतिक-सैन्य कूटनीति और चतुर राज्य-कौशल नीतियों को प्रोत्साहित करे जो देश के महत्वपूर्ण हितों की रक्षा के लिए एक मज़बूत और विश्वसनीय सैन्य क्षमता को लगातार विकसित और संरक्षित करते हुए संघर्षों को रोकने के लिए सॉफ्ट पावर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन की उम्मीद को जगा सके.

भारत सरकार को इंटर मिनिस्ट्रियल और इंटर एजेंसी प्लानिंग और सिविल मिलिट्री फ्यूज़न के समन्वय को इस्तेमाल में लाना चाहिए  और गैर-सरकारी संगठनों और शिक्षाविदों सहित निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता को इसमें शामिल करना चाहिए. इस तरह का कदम संघर्ष के गैर-सैन्य पहलुओं को संबोधित करने की क्षमता में बढ़ोतरी करेगा. हालांकि  ऑपरेशनल लेवल पर, भारत को युद्ध के जटिल और हाइब्रिड चरित्र के साथ जुड़ने के लिए अपने इंटीग्रेटेड ज्वॉइंट वॉरफाइटिंग सिद्धांतों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें और परिष्कृत करना चाहिए. सेना को अपनी विचारधाराओं का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए जैसा कि वे ऑपरेशनल आर्ट से जुड़े होते हैं और राष्ट्रीय शक्ति के नए स्तंभों को उन्हें अपनी रणनीतिक योजनाओं के कैनवास में शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए. इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सेना के सर्वोच्च नेतृत्व को यह पूरी तरह से समझना चाहिए कि सैन्य पेशे में रणनीति कैसे व्यवस्थित और संचालित की जाती है, और यह रणनीति और नीति से कैसे संबंधित हो सकती है. चीफ़ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के नेतृत्व में  भारत की संयुक्त और एकीकृत सैन्य योजना सामरिक संदर्भ में सैद्धांतिक रूप से अधिक स्पष्ट, अनुकूलन योग्य और कॉम्बैट रेडी बन सकती है.

भारत की गैर-संपर्क, गैर-गतिशील और हाइब्रिड युद्ध नीति के विकास की नई चुनौतियों को समझने की क्षमता के अलावा कि युद्ध अब ज़मीन, समुद्र और आसमान के पारंपरिक आयामों से अलग अंतरिक्ष और सूचना तक विस्तारित हो गया है और हाइब्रिड संघर्ष के वर्तमान हालात में कामयाब होने के लिए यह बेहद अहम है. जैसे कि भारत इस तरह के मल्टीस्पेकट्रल वॉरफेयर में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न है, इसलिए भारत को ऐसे पेशेवरों की आवश्यकता होगी जो अस्थिरता, अनिश्चितता, जटिलता और अस्पष्टता ( जो वीयूसीए इनवायरमेंट के रूप में ज़्यादा संदर्भित किया जाता है) की स्थिति में भी दुश्मन से आगे निकल सकें. हाइब्रिड ख़तरों की जटिलता भविष्य के नेताओं के लिए यह समझना आवश्यक बना देती है कि स्पिन इफेक्ट और ट्रेड ऑफ के बीच काउंटर इनसर्जेंसी, पार्टनर बिल्डिंग और स्टैबिलिटी ऑपरेशन के साथ-साथ साइबर और इन्फॉर्मेशन क्षमताओं को भी बढ़ाने की ज़रूरत है. नतीज़तन, भारत के सशस्त्र बलों के लिए क्षमता विकास आवश्यक है जो तब यह तय कर सकते हैं कि हाइब्रिड युद्ध के माहौल में मल्टीफ्रंट सिनेरियो के लिए इफेक्टिव ऑपरेशनल रेडीनेस हासिल करने के लिए किस स्तर की जानकारी और कैपिबिलिटी फ्यूज़न की आवश्यकता है.

पश्चिमी मोर्चे पर: पाकिस्तान-केंद्रित ख़तरे

भयानक घरेलू उथल-पुथल और संघर्ष के बीच भी पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ विरोधी बयानबाज़ी जारी रखी है. [vii] पाकिस्तानी सेना वर्तमान में देश के पश्चिमी मोर्चे (अफ़ग़ानिस्तान) पर तालिबान और पूर्वी मोर्चे पर भारत के ख़िलाफ़ एक हाइब्रिड स्ट्रैटेजी बनाए रखने पर केंद्रित है. एक स्वतंत्र देश के रूप में अपनी उत्पत्ति के संदर्भ में पाकिस्तान द्वारा भारत के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध छेड़ने की बात को समझना महत्वपूर्ण है; विभाजन के बाद  पाकिस्तानी सेना, भारतीय सेना के विपरीत, राजनीतिक हो गई और राष्ट्र की सत्तारूढ़ संरचना (जिसमें अब सरकार, न्यायपालिका और सेना शामिल है) में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी है.

पाकिस्तान द्वारा उत्पन्न ख़तरों को समझने के लिए, भारत-पाकिस्तान संबंधों को परिभाषित करने वाली कुछ भू-राजनीतिक और रणनीतिक अनिवार्यताओं की जांच करना ज़रूरी है. जम्मू और कश्मीर (J&k) पाकिस्तान के लिए भू-रणनीतिक, सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और डेमोग्राफिक नज़रिए से महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान लंबे समय से 'स्ट्रैटेजिक डेप्थ (रणनीतिक गहराई)' की कमी से सहमा हुआ है. j विभाजन के समय पाकिस्तान ने यह अहसास किया था कि स्ट्रैटेजिक डेप्थ की यह कमी उसे भारत के सैन्य आक्रमण करने की स्थिति में आत्मसमर्पण करने के लिए मज़बूर कर देगी. इसके साथ ही पाकिस्तान को यह चिंता भी सता रही थी कि बड़े पैमाने पर भारतीय स्ट्राइक फॉर्मेशन पाकिस्तान के एपिसेंटर कहे जाने वाले एक समृद्ध राज्य पंजाब को ख़तरे में डाल सकता है. पाकिस्तान के ख़ैबर पख्त़ुनख्वा प्रांत से जम्मू-कश्मीर की निकटता और इसकी बड़ी पश्तून आबादी ने भी पाकिस्तानी अधिकारियों के लिए एक डेमोग्राफिक और जिओ - पॉलिटिकल (भू-राजनीतिक) चुनौती खड़ी की है. हाइड्रो-पॉलिटिक्स (जल-राजनीति) पाकिस्तान के लिए एक अलग मुद्दा है, जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक नहर-सिंचित देश है और जहां बाढ़ का सबसे बड़ा ख़तरा है. सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों का पानी, जो जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान की ओर बहती हैं, देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन एक नदी तट राज्य के रूप में, भारत के पास जलमार्गों को खुले तौर पर नियंत्रित करने और 'पानी को एक हथियार के रूप में' इस्तेमाल करने का विकल्प हमेशा से रहा है. [viii]

1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद पाकिस्तान देश के भीतर किसी भी संभावित विभाजन को रोकने के लिए धार्मिक विचारधारा और कट्टरवाद के आधार पर ख़ुद को एकजुट किया. पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद जिया-उल-हक द्वारा शुरू किया गया इस्लामीकरण का दर्शन, कुरान की शिक्षाओं से प्रेरित एक इस्लामी सेना को बदलने और बनाने के लिए इस्लामी प्रथाओं का पालन करने पर सख़्त नियमों को लागू करने के परे चला गया. यह गुप्त युद्ध की पाकिस्तान की सैद्धांतिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है.

पाकिस्तान ने शीत युद्ध के दौरान अमेरिका के साथ गठबंधन किया और भारत के ख़िलाफ़ एसिमिट्रिक/प्रॉक्सी वॉर की रणनीति अपनाना शुरू कर दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि इस्लामाबाद को हथियारों की बड़े पैमाने पर बिक्री की गई और उसे मदद दी गई. इसके अलावा चीन ने लंबे समय से पाकिस्तान को प्रमुख सैन्य, तकनीक़ी और आर्थिक सहायता देने के साथ ही संवेदनशील परमाणु तकनीक़ और उपकरण सहित परमाणु सामग्री भी प्रदान की है.

पाकिस्तान ने भारत के पंजाब राज्य में खालिस्तानी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए सिख अलगाववाद की मानसिकता का भी भरपूर शोषण किया और जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान से मिलाने के लिए अलग सिख राज्य की स्थापना की आग को भड़काता रहा. [ix]  1980 के दशक के अंत में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान का कोवर्ट (गुप्त) वॉर कश्मीर घाटी में विद्रोह के रूप में मज़बूत आकार लेने लगा. पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी और सेना ने जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद को भड़का कर भारत में अशांति पैदा की है, जिससे गुप्त अभियानों को पूर्ण संघर्ष में तब्दील होने से रोका जा सके. भारत में पाकिस्तान के घुसपैठ का मक़सद जम्मू कश्मीर और देश में आतंकियों के ज़रिए बड़ी मात्रा में नकली धन और नार्कोटेरेरिज्म को बढ़ावा देकर असंतुलन पैदा करना है. पाकिस्तान के हाइब्रिड युद्ध को भारत एक सुनियोजित और संगठित रणनीति के रूप में देखता है, जो स्थानीय (पाकिस्तानी) आबादी और बुनियादी ढांचे के समर्थन पर केंद्रित है और जिसे छद्म तरीक़े से छेड़ा गया है.

ख़ासतौर पर पाकिस्तान ने आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए हैं, जिसका मक़सद स्पष्ट तौर पर अमेरिका को यह दिखाना है कि पाकिस्तान भी आतंकवाद के ख़िलाफ़ है और इस दिखावे के ज़रिए सैन्य सहायता और अपने घटते हार्डवेयर के लिए मदद हासिल करते रहना है. इसके साथ ही, पाकिस्तान ने भारत और अफ़ग़निस्तान में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए स्ट्रैटेजिक असेट (रणनीतिक संपत्ति) के तौर पर तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और हिज़बुल मुजाहिदीन (एचएम) जैसे ज़िहादी संगठनों का भी इस्तेमाल करना जारी रखा है. ऐसे में  भारत को संघर्ष में खींचने के लिए हाइब्रिड युद्ध के लिए पाकिस्तान की संभावित तैयारियों के बारे में अनुमान लगाने से नई दिल्ली को पाकिस्तान की साज़िशों के ख़िलाफ़ ज़्यादा कुशल रणनीति तैयार करने में मदद मिल सकती है.

पाक अधिकृत कश्मीर पर इस्लामाबाद का अवैध कब्ज़ा और देश में चल रही मौज़ूदा राजनीतिक उठापटक और अस्थिर सुरक्षा वातावरण ने आतंकवादियों के लिए परमाणु उपकरणों तक पहुंच को बढ़ावा दिया है - जो निश्चित रूप से पाकिस्तान की अंतर्निहित आशंकाओं में से एक है - और तो और भारत के ख़िलाफ़ रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल हमले का ख़तरा भी बढ़ा दिया है जिसमें या तो औद्योगिक दुर्घटना को ट्रिगर करना या रासायनिक और जैविक एजेंटों (जैसे मस्टर्ड गैस, VX तंत्रिका गैस, या एंथ्रेक्स) का उपयोग करना शामिल हो सकता है.

एक दूसरे परिदृश्य में, पाकिस्तान - लश्कर, एचएम  और कुछ अरब देशों में स्थित अपराध सिंडिकेट के प्रॉक्सी संगठनों के ज़रिए - एक बड़े जहाज (संभवतः तरलीकृत प्राकृतिक गैस ले जाने वाले) को अपहरण करके और उसमें बड़े पैमाने पर विस्फोट कर या फिर भारत के प्रमुख वाणिज्यिक बंदरगाहों में से एक के सीमित क्षेत्रों में कोलैटेरल डैमेज (संपार्श्विक क्षति) कर भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने का प्रयास कर सकता है.

चूंकि, जम्मू-कश्मीर की स्थिति को बदलने के पहले के प्रयास विफल रहे तो पाकिस्तान छद्म युद्ध और गैर बराबरी युद्ध के दूसरे तरीक़ों को अपनाने लगा लेकिन इस क्षेत्र में पाकिस्तान की इन कोशिशों को अंजाम तक पहुंचने से पहले भारत ने उन्हें नाकाम कर दिया. लेकिन पाकिस्तान ने भारतीय सुरक्षा बलों को रक्षात्मक बनाने के लिए हिंसा पर ज़ोर देने के बाद इंतिफादा-शैली के बड़े विरोध प्रदर्शनों, मीडिया के उपयोग और कानूनी और न्यायिक प्रणालियों में घुसपैठ को हथियार बनाना शुरू कर दिया. पिछले कुछ वर्षों में भारत में आतंकवादी हमलों का स्वरूप इस संभावना की ओर इशारा करता है कि विभिन्न ज़िहादी समूहों ने अब अपना फोकस जम्मू-कश्मीर-केंद्रित ग्रामीण विद्रोह से पैन इंडियन अर्बन टेरेरिज्म की ओर स्थानांतरित कर दिया है. इसके साथ यह भी संभावना है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवादी हमलों को अंज़ाम देने के लिए विखंडन की रणनीति के ज़रिए भारत के घरेलू समूहों (जैसे इंडियन मुज़ाहिदीन और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का इस्तेमाल कर सकता है. इसके अलावा भारत में नक्सलियों के व्यापक ख़तरे के भौगोलिक प्रसार - और देश को अस्थिर करने की इसकी क्षमता - को देखते हुए पाकिस्तान ऐसे संगठनों को समर्थन देने पर भी विचार कर सकता है.

इसके अलावा, भारत ने अब पाकिस्तान और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ लगी सीमा के पूरे हिस्से पर बाड़ लगा दी है और आसपास के पानी की निरंतर निगरानी कर रहा है, तो यह संभावना प्रबल हो गई है कि बिना रोक टोक वाली भारत-नेपाल सीमा भारत में आतंकवादी हमले का भविष्य में नया रूट बन सकता है. भारत के वित्तीय, सैन्य और अन्य महत्वपूर्ण नेटवर्क पर भी साइबर हमले की आशंका है. साथ ही इंडियन फेक करंसी और नशीले पदार्थों की ज़्यादा मात्रा में घुसपैठ देश में उथल-पुथल पैदा कर सकती है.

भारत की जवाबी तैयारी

वैश्विक विरोध और अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र को अब अक्सर 'आतंकवाद के केंद्र' के रूप में दुनिया भर में संदर्भित किए जाने के बावज़ूद भारत के प्रति पाकिस्तान अपने टकराव के रुख़ को बदलने को तैयार नहीं दिखता है. [x] इस प्रकार, भारत को स्मार्ट पावर का इस्तेमाल करके एक प्रोएक्टिव हार्डलाइन अप्रोच अपनाकर अपने सुरक्षा हितों की रक्षा करने के लिए तैयार रहना चाहिए, k और सभी उपलब्ध टूल्स (जैसे राजनयिक, आर्थिक, सूचनात्मक, आधारभूत संरचना, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक-सैन्य) का उपयोग करके जवाबी विकल्पों का एक सेट बनाना चाहिए और उपयुक्त पूर्व-पहचान किए गए लक्ष्यों पर निर्दिष्ट विशेष बलों के साथ हार्ड-हिटिंग गुप्त संचालन द्वारा इसे पूरक बनाने की भी ज़रूरत है. दरअसल, बड़ा उद्देश्य यह होना चाहिए कि भारत को एक निष्क्रिय राज्य बनने से रोका जाए और भारत बिना प्रतिशोध के आतंकवादी हमलों को अपनी धरती पर नहीं होने दे.

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दो संभावित अप्रोच हो सकते हैं. सबसे पहला, प्रभावी उपायों के ज़रिए, जिसका मक़सद पाकिस्तान के प्रति भारत की रणनीति और इसके असामान्य वॉरफेयर मेनिफेस्टेशन में रिएक्टिव से प्रोएक्टिव बदलाव लाना है.l इसका मतलब यह होगा कि संकट के हालात को पहले से देखना और उन्हें दूर करने के लिए कई तरह की रणनीतियों का विकास करना है, जिसमें हाई एंड ऑटोनोमस कॉम्बैट टेक्नोलॉजी को शामिल करना और एक तत्काल प्रीइम्पटिव रिस्पॉन्स ऑपश्न मैट्रिक्स तैयार करना शामिल है. m दूसरा, एक संभावित स्थिति में जहां पाकिस्तान को भारत में प्रमुख आतंकवादी हमले के लिए ज़िम्मेदार पाया जाता है और वैसे में कार्रवाई का सर्वोत्तम संभव तरीक़ा मिलिट्री पॉसचरिंग को लागू करने के लिए प्री प्लान्ड स्ट्रैटेजिक कंपोनेंट्स को अंजाम देने के साथ-साथ नुक़सान के बाद के आकलन के जरिए सटीक मल्टी डायमेंशनल स्ट्राइक  सहित तेजी से ज़वाबी कार्रवाई करना है.

पाकिस्तान के हाइब्रिड युद्ध के तरीक़ों में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियां शामिल हैं. ऐसे में भारत के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वह सैन्य कार्रवाई के पारंपरिक साधनों के साथ-साथ थका देने वाले और विघटनकारी संयोजन के ज़रिए गैर-परंपरागत युद्ध तरीक़ों, जैसे कि ज़बर्दस्त रणनीति और गुरिल्ला वॉरफेयर का इस्तेमाल करके एक आक्रामक-सुरक्षात्मक रणनीति को बढ़ावा दे सकता है. इसके अलावा पारंपरिक युद्ध को शामिल करते हुए भारत ऐसी कोशिशों के साथ आगे बढ़ सकता है. हालांकि शांतिपूर्ण परिस्थितियों में भी हाइब्रिड वॉर अप्रत्याशित रूप से छिड़ सकता है. ऐसे में भारत के पास हाइब्रिड युद्ध के कई विकल्प हैं  जिसके लिए कुछ हद तक राजनीतिक-सैन्य समन्वय की आवश्यकता हो सकती है. इसके साथ एक ओर जारी ख़तरा यह भी है कि कुछ (अनियमित) तत्व (जैसे नॉन स्टेट एक्टर्स) अपने संबंधित मक़सद, जैसे राष्ट्र को अस्थिर करना या शांति और सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाना, को हासिल करने के लिए अलायंस अचानक बदल सकते हैं. इसलिए वैकल्पिक युद्धों और नॉन लीनियर संघर्षों के लिए अत्यधिक जोख़िम और राष्ट्रीय हित के प्रति किसी भी प्रकार के समझौतों से बचने के लिए एक ज़्यादा मज़बूत कमांड-एंड-कंट्रोल संरचना और ऑपरेशन की तय परिभाषित सीमाओं की ज़रूरत होती है.

ज़्यादातर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की एसिमिट्रिकल (विषम) और हाइब्रिड वॉरफेयर को लेकर रेसपॉन्स पारंपरिक रही है. हाइब्रिड संघर्ष के दौरान पारंपरिक फोर्स की तैनाती देश में रणनीति की कमी, संसाधनों के अपर्याप्त इस्तेमाल और फोर्स के अप्रभावी इस्तेमाल की ओर इशारा करते हैं. भारत को आक्रामक और रक्षात्मक दोनों क्षमताओं के साथ हाइब्रिड वैकल्पिक वॉरफेयर के लिए पूरी तरह से समर्पित एक डिवीजन बनाना चाहिए. इस डिवीजन के विभिन्न एलिमेंट (तत्व) ऐसे होने चाहिए जो अहम राष्ट्रीय हितों को जहां लगातार ख़तरा बना हुआ है वहां गुप्त अभियान को अंजाम दे सकें. इन्फैंट्री डिवीजन में तीन ब्रिगेड होने चाहिए, जिनमें से दो आक्रामक और सुरक्षात्मक ऑपरेशन, जिसमें साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, सूचना, अंतरिक्ष, संचार, स्पेशल फोर्स, ख़ुफ़िया, निगरानी और मनोवैज्ञानिक युद्ध के एलीमेंट शामिल होने के साथ-साथ भौगोलिक रूप से विशिष्ट एयर, नेवल और लॉजिस्टिक कंपोनेंट के एलीमेंट को भी शामिल कर सके. इसके अलावा, विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को किसी भी तरह के हाइब्रिड ख़तरे से निपटने के लिए स्पेशल फोर्स स्टाइल की संरचना को सक्षम बनाने के लिए सैन्य संरचनाओं को फिर से तैयार करना चाहिए. ऑपरेशनल रिसर्च और सपोर्ट तीसरे ब्रिगेड के दायरे में आना चाहिए. इस ब्रिगेड को असरदार मनोवैज्ञानिक युद्ध विषयों का विकास करना चाहिए, संस्कृति पर ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करनी चाहिए, टारगेटेड एरिया में फॉल्ट-लाइन्स की पहचान करनी चाहिए, विरोधियों के ख़िलाफ़ हमले शुरू करने के लिए साइबर ख़ामियों का फ़ायदा उठाना चाहिए, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के केंद्र के रूप में और ऑपरेशनल डेटा के संरक्षक के रूप में काम करना चाहिए. इस ब्रिगेड को किसी ऑपरेशन के इम्पैक्ट असेसमेंट, ऑपरेशनल रिसर्च के एरिया के साथ ही भविष्य में किए जाने वाले ऑपरेशन के क्षेत्र को देखना चाहिए. पूरी संरचना बेहद गुप्त होनी चाहिए और बेहद सख़्त राजनीतिक-सैन्य कमांड के तहत इसका संचालन होना चाहिए. इतना ही नहीं, पूरी संरचना मांग के हिसाब से ख़ुद को ढलने वाली और तेज़ तर्रार होनी चाहिए जिससे कि शांति और संघर्ष दोनों हालात में आक्रामक और रक्षात्मक तरह के हाइब्रिड वॉर ऑपरेशन को अंजाम दिया जा सके. संगठन ऐसा होना चाहिए जो ‘प्लग एंड फाइट’ n फंकश्नालिटी के लिए ‘नागरिक और सैन्य कंपोनेंट के अनुरूप ढल सके.

हालांकि, ऑपरेशन के दौरान पॉलिटिको-मिलिट्री ओवरसाइट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए लेकिन नियंत्रण के रणनीतिक और सामरिक स्तरों के बीच एक स्पष्ट अंतर भी जरूरी है. रणनीतिक स्तर पर ज़्यादातर काम योजनाओं को बनाने के लिए होता है. सीडीएस ऑफिस में अंतरिक्ष, साइबर, स्पेशल फोर्स और वैकल्पिक वॉर डिविजन नीतियों और रणनीतियों को बनाने के लिए ज़िम्मेदार होने चाहिए. इसके अलावा  रक्षा मंत्रालय के तहत सैन्य मामलों का विभाग वांछित नतीज़े हासिल करने  के लिए आवश्यक टूल चुनने की स्वतंत्रता के साथ स्पेशल फोर्सेज हेडक्वार्टर में अंतर्निहित हो सकता है. विशेष रूप से, हाइब्रिड हमलों के लिए रणनीति बनाते समय, एक पूर्व निर्धारित योजना समय की गंभीरता को देखते हुए अहम हो जाती है.

डिविज़नल कमांडर को हाइब्रिड और काउंटर-हाइब्रिड वॉर कैंपेन और ऑपरेशन के दिन-प्रतिदिन समन्वय के लिए सामरिक ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए. एक थ्री स्टार मिलिट्री कमांडर को नए फोर्स ( जिसे 'सूचना और डायनेमिक सपोर्ट फोर्स कहा जा सकता है ) के कमांडर-इन-चीफ के रूप में नियुक्त किया जा सकता है. कमांडर-इन-चीफ को सीडीएस को रिपोर्ट करना चाहिए. [xi] भारत के पास मौज़ूदा समय में आर्म्ड फोर्स स्पेशल फोर्सेज डिविजन के रूप में एक स्केलेटल स्ट्रक्चर है, जिसे इसकी सीमित क्षमता और लगभग नहीं के बराबर इसे प्राप्त शक्तियों को देखते हुए पुनर्गठित करने की आवश्यकता है. अपने पड़ोस से पैदा होने वाले हाइब्रिड ख़तरों का मुक़ाबला करने के लिए अपने 'सूचना और डॉयनमिक सपोर्ट फोर्स’ को विकसित करते समय भारत के पास विचार करने के लिए कई नीतिगत विकल्प मौज़ूद हैं.

  • संयुक्त सैन्य तैयारी और जवाबी मुक़ाबले के तरीक़े

अगर भारतीय फ़ौज पाकिस्तान की धरती से पैदा होने वाले हर तरह के हाइब्रिड ख़तरे के जोख़िम को दृढ़ता, घातकता और तीव्रता के साथ प्रभावी तरीक़े से मिटाना है, तो इन ख़तरों का विश्लेषण और उनकी प्लानिंग पैरामीटर्स में को-ऑप्ट करना ज़रूरी है. इन वैचारिक फाउंडेशन में काउंटर स्ट्रैटेजी को प्रभावित करने की क्षमता है, जिसे रक्षा नीति, रणनीति और क्षमता विकास के उद्देश्यों के लिए और बेहतर बनाया जा सकता है.

भारतीय सेना द्वारा पॉसिबिल रेस्पॉन्स स्पेशल फोर्सेज द्वारा तेज़ी से गुप्त ऑपरेशन से लेकर एलओसी पर मौज़ूदा संघर्ष विराम को ख़त्म करने और पहचान किए गए आतंकवादी शिविरों पर ड्रोन अटैक के साथ बहुआयामी सर्जिकल/सटीक हमले से लेकर परमाणु पृष्ठभूमि में सीमित/ऑल-आउट युद्ध को शुरू करने तक हो सकती है. हालांकि युद्ध के भड़कने के ख़तरे को देखते हुए भारतीय सशस्त्र बल को ऑपरेशन के लिए तैयार रहना चाहिए. जनसंचार के आधुनिक साधनों और ड्रोन टेक्नोलॉजी ने हाइब्रिड युद्ध की सफलता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की है. जैसे, ड्रोन टेक्नोलॉजी में मौज़ूदा परिवेश में केवल एक फोर्स मल्टीप्लायर के बजाय एक स्पेशल फोर्स बनने की भी क्षमता है. पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए युद्ध की कॉम्पलैक्स और फ्लेक्सिबल नेचर (जटिल और लचीली प्रकृति) इंडियन डिफेंस फोर्सेज से एक एडाप्टिव(अनुकूली), सावधानी पूर्वक तैयार किए गए प्रोफेशनल रिसपॉन्स की मांग करती है. यह देखते हुए कि भारत पाकिस्तान की हाइब्रिड साज़िशों का बार-बार शिकार होता रहता है भारत को अलग-अलग एजेंसियों द्वारा इंटीग्रेटेड ज्वांइट स्टैटिजिक पहल के हिस्से के रूप में सक्रिय आक्रामक उपाय करने की आवश्यकता है. यह एक अच्छी तरह से तैयार की गई राष्ट्रीय हाइब्रिड युद्ध रणनीति के अनुसार किया जाना चाहिए, जो राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का एक अभिन्न अंग बने.

  • राजनीतिक-सैन्य कूटनीति

राजनीतिक-सैन्य कूटनीतिक रेस्पॉन्स में एक दूसरे पर भरोसा बढ़ाने के लिए  क्रॉस बॉर्डर रेल और बस सेवाएं, खेल आयोजन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, ट्रैक- II चैनल और दोनों देशों के बीच आमने-सामने की बातचीत शामिल हो सकती है. इसके अलावा  आतंकवादी संगठनों के परमाणु हथियार पर कब्ज़ा करने के लगातार जोख़िम को देखते हुए - एक ऐसी स्थिति जिसका क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा - वैश्विक समुदाय को पाकिस्तान को आतंकवादी समूहों पर नकेल कसने के बदले में केवल सैन्य सहायता और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए. पाकिस्तान को भारत के ख़िलाफ़ अपनी पारंपरिक सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए सैन्य सहायता और धन का उपयोग करने से भी रोका जाना चाहिए और जवाबदेही के लिए उपयुक्त बेंचमार्क बनाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. भारत को उस अभियान को तेज़ करना चाहिए जिसमें दावा किया जाता है कि पाकिस्तान तब तक नाकाम देशों की श्रेणी में शामिल नहीं होगा जब तक कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा कड़े कदम नहीं उठाए जाते.

संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़े सैनिक योगदानकर्ता के रूप में  भारत को यह दोहराना चाहिए कि पाकिस्तान जैसे 'आतंकी पनाहगाहों' को संयुक्त राष्ट्र के अभियान में सैनिकों का योगदान देने से रोकना चाहिए. इसमें किसी भी तरह का कटबैक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि मिलिट्री पीसकीपिंग फोर्स (सैन्य शांति सेना) द्वारा की गई बचत से पाकिस्तानी बैंकों को पारिश्रमिक मिलने में कमी आएगी. भारत ट्रैक - II सैन्य कूटनीति के माध्यम से रणनीतिक जुड़ाव पर विचार कर सकता है. इस तरह की बातचीत, चर्चा के लिए पर्याप्त जगह देगी, यह देखते हुए कि दोनों पक्षों में व्यापक रूप से सेना का प्रतिनिधित्व किया जाएगा. इसके अलावा भारत को चीन के बढ़ते दबाव का सामना करने के लिए भी अपने संसाधनों पर ध्यान देना होगा और अपने सैन्य आधुनिकीकरण को और मज़बूत करना होगा  लेकिन पश्चिमी सीमाओं पर  संभावित संघर्ष से निपटने की तैयारी करते हुए भारत इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकता है. और यहीं पर पर ट्रैक-II डायलॉग फ़ायदेमंद हो सकता है.

  • सामाजिक आर्थिक उपाय

पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा नहीं देने की स्थिति को बहाल रखते हुए o भारत कई अन्य सामाजिक आर्थिक उपायों को लागू कर सकता है  जिसमें व्यापार को निलंबित करना और संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और अन्य राज्यों के माध्यम से दबाव बनाना शामिल है, ताकि पाकिस्तान से अपने रक्षा बज़ट आवंटन को कम करने को कहा जा सके और जिससे पाकिस्तान में सामाजिक क्षेत्र (विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य पर) के लिए बज़ट आबंटन को बढ़ाया जा सकता है. यह देखते हुए कि पाकिस्तान मौज़ूदा समय में अपनी अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक ख़ामियों, जैसे बाहरी सहायता और मदद पर अधिक निर्भरता, प्राकृतिक आपदाओं, अपर्याप्त कृषि पैदावार, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजनाओं के ख़राब प्रदर्शन और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. ऐसे में इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय उपायों से पाकिस्तान पर और दबाव बढ़ेगा. इस तरह पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के ज़रिए पाकिस्तान पर अलग से प्रतिबंध लगाना और प्रभावी हो सकता है.

ख़ैबर पख़्तूनख्वा प्रांत में वज़ीरिस्तान क्षेत्र में आतंकवादियों (जैसे बलूच लिबरेशन आर्मी) द्वारा क्षति पहुंचा कर सीपीईसी परियोजनाओं को भारी नुक़सान पहुंचा कर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक अस्थिरता के मक़सद को पूरा किया जा सकता है. इसी तरह के हालात पैदा कर स्वात, दिर और चित्राल क्षेत्र में प्रोजेक्ट में देरी करने और निवेशकों और श्रमिकों को  हतोत्साहित करने का मक़सद पूरा किया जा सकता है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को और कमज़ोर बनाने के लिए उसके एक्सपोर्ट मार्केट पर कब्ज़ा करने के लिए भी सावधानीपूर्वक योजना बनाई जानी चाहिए. इसके अलावा  आउटफ्लो ऑफ फंड को ट्रिगर करने के लिए ज़्यादा आर्थिक अस्थिरता के माहौल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को हतोत्साहित किया जा सके. पाकिस्तान को उसकी सीमाओं पर धमकियों के ज़रिए एक ऐसे हथियारों की दौड़ में शामिल करना चाहिए जिसे वह वहन ही नहीं कर सके. आख़िर में, भारत सिंधु जल संधि से हटने पर भी विचार कर सकता है. p

  • कैलिब्रेटेड इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर

पाकिस्तान में मौज़ूदा अस्थिरता सामाजिक क्षेत्र की निरंतर उपेक्षा, देश के बढ़ते व्यापार घाटे, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के ऋण चुकाने में विफलता का नतीज़ा है. इसके चलते हाइब्रिड युद्ध के तौर पर इन्फॉर्मेशन वॉर की स्थिति पैदा हो गई है. हाइब्रिड युद्ध को मौज़ूदा परिदृश्य में शामिल करने के लिए भारत ने पहले ही अपने लैंड वॉरफेयर सिद्धांतों को पूरी तरह बदल दिया है. भारत अब अपने संभावित दुश्मनों का मुक़ाबला करने के लिए एक बहुपक्षीय परिदृश्य में संघर्ष के नॉन कॉन्टैक्ट एरिया (गैर-संपर्क क्षेत्रों) जैसे साइबर, अंतरिक्ष और सूचना का उपयोग कर सकता है, जिससे वह अपने विरोधियों को उनकी ग़लतियों का फ़ायदा उठाकर अस्थिर करने का विकल्प चुन सकता है. दरअसल पाकिस्तान का आरोप है कि भारत ने बहुत पहले ही उसके सामाजिक-जातीय और धार्मिक ख़ामियों का फायदा उठाया है और तनाव को बढ़ाया है. ख़ास तौर पर बलूचिस्तान प्रांत में, जहां सांप्रदायिक हिंसा की सबसे ज़्यादा घटनाएं देखी गई हैं. [xii]

रणनीतिक संचार नीति

विदेश मंत्रालय को एक नेशनल स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन एडवाइजरी कमिटी या फिर नेशनल स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन अथॉरिटी की स्थापना करके एक रणनीतिक संचार नीति को औपचारिक रूप देना चाहिए. इस इकाई में भारत के शीर्ष थिंक टैंक (सरकारी/पैरास्टेटल/निजी-स्वामित्व वाले), रक्षा विश्लेषक, रणनीतिकार, शिक्षाविद और दिग्गज़ों को शामिल करना चाहिए. भारत को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के ख़िलाफ़ दिए गए किसी भी बयान के लिए विश्लेषणात्मक, प्रामाणिक और बुद्धिमत्ता से जवाब देना चाहिए. इस तरह का  संगठन और कोहरेंट स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन पॉलिसी भारत के गौरव और छवि को किसी अन्य राष्ट्र की साज़िश और जानबूझकर किए गए झूठे प्रचार से बचाने के लिए बेहद अहम है.

  • युद्ध को भड़कने से नियंत्रित करने के तरीक़े

पारंपरिक युद्ध में भारत के वर्चस्व के बावज़ूद पाकिस्तान ने भारत के गार्डेड और नो-रिस्क स्टांस वाले रवैए के कारण 'हज़ारों घावों से भारत का ख़ून बहाने' की अपनी नीति को जारी रखा है. फिर भी प्लान्ड हाइब्रिड स्ट्राइक को अंजाम देने के लिए भारत द्वारा पाकिस्तान को किसी भी तरह के जवाब के बदले में इस्लामाबाद से जवाबी कार्रवाई की संभावना है, ख़ासकर अगर नई दिल्ली मिलिट्री रिसपॉन्स का विकल्प चुनती है. इस तरह का रिसपॉन्स डूरंड रेखा (जिसके प्रति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विशेष रूप से संवेदनशील है) के साथ तैनात पाकिस्तानी सशस्त्र बलों की वापसी और परमाणु हमले का रूप ले सकती है. इसलिए रिसपॉन्स मेकानिज्म में युद्ध को भड़कने से बचने के उपायों की एक श्रृंखला को बनाने की ज़रूरत है.

उत्तरी और पूर्वोत्तर मोर्चे पर: द चाइना फैक्टर

चीन अपनी विस्तारवादी और परिवर्तनकारी नीतियों के ज़रिए सैन्य, आर्थिक, डिजिटल और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में अमेरिका को हटाकर महाशक्ति का दर्ज़ा हासिल करने का सपना देख रहा है. यह रणनीतिक सिविल-मिलिट्री फ्यूज़न विचारधारा पर आधारित है, जो सामाजिक आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सुधार, हाई इंड साइन्टिफिक आयडियोलॉजी को बढ़ावा और रिन्यूएबल एनर्जी का इन्फ्यूज़न (संचार) और लगभग इस तरह के सभी विचार व्यापक राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने के लिए शामिल किए जाते हैं. हाल की आर्थिक मंदी, बैंकिंग क्षेत्र और बुनियादी ढांचे और आवास परियोजनाओं को झटका और गंभीर सूखे के बावज़ूद चीन की एक-पक्षीय सरकार ने देश को अपने विस्तारवादी लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ने में सक्षम बनाया है.

हाइब्रिड संघर्ष के लिए चीन के दृष्टिकोण में भारत के इंटेलिजेंस ब्यूरो के साथ टकराव; अतिक्रमण, घुसपैठ, राजनीतिक और सैन्य मोर्चों पर मुखरता, q, [xiii] हिंद महासागर क्षेत्र में आक्रामकता और द्वीपीय इलाक़ों में धमकी देना, कर्ज़ के जाल में फंसाकर आर्थिक औपनिवेशीकरण; समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलीभगत को बढ़ाना; r और ‘कोएरस्वि ग्रेजुअलिज्म’ का सामान्य रवैया अख़्तियार करना शामिल है. s चीन साइबर युद्ध, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, इंटीग्रेटेड नेटवर्क इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, इनफॉर्मेशन ऑपरेशन्स, 'तीन वॉरफेयर स्ट्रैटेजी' (मनोवैज्ञानिक, मीडिया और कानूनी वॉरफेयर), राजनीतिक, कूटनीतिक बातचीत, आर्थिक वॉरफेयर और डेमोग्राफिक वॉरफेयर सहित नॉन कॉन्टैक्ट वॉरफेयर के इस्तेमाल के ज़रिए अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को आगे बढ़ाता है.

भारत के ख़िलाफ़ चीन की हाइब्रिड युद्ध गतिविधियों को कई भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक फैक्टर्स आगे बढ़ा रहे हैं. सबसे पहले, भारतीय क्षेत्र में बीजिंग के विस्तारवादी प्रयासों और झिंजियांग स्वायत्त क्षेत्र और ताइवान में चीनी कार्रवाई ने नई दिल्ली के साथ और उइगरों की रक्षा करने वाले नॉन स्टेट एक्टर्स के साथ गतिरोध को बढ़ावा दिया है.

पाकिस्तान में मौज़ूदा अस्थिरता सामाजिक क्षेत्र की निरंतर उपेक्षा, देश के बढ़ते व्यापार घाटे, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के ऋण चुकाने में विफलता का नतीज़ा है. इसके चलते हाइब्रिड युद्ध के तौर पर इन्फॉर्मेशन वॉर की स्थिति पैदा हो गई है. 

दूसरा, चीन के दक्षिणपूर्व तटीय क्षेत्र t - जिनमें देश की आधी से अधिक आर्थिक, वाणिज्यिक और औद्योगिक गतिविधियां होती हैं – पहले के चीनी सम्राटों की रक्षात्मक नीतियों से प्रेरित ऐतिहासिक समुद्री निष्क्रियता के चलते ख़ास तौर पर कमज़ोर हो गए थे (जिसके कारण पश्चिमी देश मरीन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में तकनीक़ी बढ़ोतरी प्राप्त करने में सक्षम हो गए). इसके अलावा  ताइवान को उसके भौगोलिक स्थान की वज़ह से चीन उसे रणनीतिक लिहाज़ से महत्वपूर्ण मानता है. ताइवान को नियंत्रित करने से चीन, दक्षिण चीन सागर में प्रमुख सी लाइन ऑफ कम्युनिकेशन्स (एसएलओसी) पर हावी हो जाएगा और अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए उन जल क्षेत्रों में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा सकता है. भारत राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से ताइवान के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाने में लगा है और इस तरह ताइपे, नई दिल्ली के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है.

तीसरा, चीन मलक्का स्ट्रेट के विकल्प को भी तलाश रहा है, जिसके माध्यम से उसका 80 प्रतिशत व्यापार बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं के माध्यम से गुजरता है [xiv], ताकि इस महत्वपूर्ण एसएलओसी पर ज़्यादा निर्भर होने से बचा जा सके. इसी तरह भारत के पास मलक्का स्ट्रेट की नाकाबंदी की स्थिति में अपने समुद्री सी लाइन ऑफ कम्युनिकेशन (एसएलओसी) के लिए एक वैकल्पिक मार्ग के रूप में सुंडा स्ट्रेट का इस्तेमाल करने का विकल्प है - जो सुमात्रा और जावा के इंडोनेशियाई द्वीपों के बीच मौज़ूद है और जो जावा सागर और हिंद महासागर को पूर्वी एशिया के समुद्री इलाक़े से जोड़ता है – हालांकि, बीआरआई की अवधारणा मलक्का स्ट्रेट के माध्यम से चीनी व्यापार की कमज़ोरियों को दूर करने के लिए की गई थी लेकिन अब तक इसने भारी निवेश के बावज़ूद चीन को बेहद कम रिटर्न पहुंचाया है. गुड़्स ट्रांसपोर्टेशन की आर्थिक व्यवहार्यता पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि भले ही सभी तीन विकल्प - भूमि, समुद्र और वायु - उपलब्ध हों लेकिन समुद्र  परिवहन सबसे अधिक कॉस्ट इफेक्टिव (लागत प्रभावी) और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य होता है. [xv] ऐसे में यह संभावना बेहद कम है कि एसएलओसी को कभी भी नज़रअंदाज़ किया जाएगा.

चौथा, चीन में दुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा है लेकिन कृषि योग्य भूमि का केवल 7 प्रतिशत (महत्वपूर्ण औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण) हिस्सा देश में उपलब्ध है, जिसके चलते खाद्यान्न की कमी चीन में हो रही है और खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की अपनी आवश्यकताओं के लिए चीन को अफ्रीका और यूरोप पर निर्भर होना पड़ रहा है. इसके अलावा चीनी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़ती जा रही है. मीडियम टर्म में अर्थव्यवस्था की रफ़्तार 7 प्रतिशत से नीचे बने रहने की आशंका जताई  जा रही है. [xvi] लो इनपुट कॉस्ट (ख़ास कर श्रम) के प्रारंभिक फायदों की वज़ह से चीनी अर्थव्यवस्था में जो स्थिरता थी, जो अब उपयोगी नहीं है, चीन को अब अपनी बढ़ती आर्थिक समस्याओं का हल तलाशने के तरीक़ों और साधनों के लिए मज़बूर किया है.

भारत के विकल्प

चीन भारत को क्षेत्रीय आधिपत्य और वर्चस्व की अपनी महत्वाकांक्षा के विरोधी के रूप में देखता है. एक मज़बूत सैन्य बल के रूप में भारत की भू-रणनीतिक स्थिति और विश्वसनीयता भी चीन के मंसूबों के ख़िलाफ़ काम करती है. चीन की आक्रामकता उसकी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में और अधिक एक्सपोज़ हो गई है और उसने पीएलए का आधुनिकीकरण करना भी शुरू कर दिया है. हालांकि भारत चीन के मिलिट्री बिल्डअप (सैन्य निर्माण) के बारे में जानता है लेकिन भारत की प्रतिक्रिया इसे लेकर ठोस नहीं है और यह इस क्षेत्र में पावर डायनेमिक्स को संतुलित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. जब तक भारत, चीन की बराबरी करने के लिए अपनी सैन्य और आर्थिक क्षमताओं का पर्याप्त दोहन नहीं कर लेता, तब तक भारत को चीनी ख़तरे से निपटने के लिए इंटरिम फोकस्ड स्ट्रैटेजी (अंतरिम केंद्रित रणनीति) तैयार करनी चाहिए.

भारत चीन में प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा करने और उसे अपनी विस्तारवादी योजनाओं को लागू करने से रोकने के लिए निम्नलिखित विकल्पों पर विचार कर सकता है.

  • अल्पसंख्यकों का समर्थन

हान, झुआंग, हुई और मांचू समेत अलग-अलग अल्पसंख्यक समुदायों के नाराज़ और उत्तेजित होने की वज़ह से चीन कई तरह के आंतरिक सुरक्षा समस्याओं का सामना कर रहा है. अल्पसंख्यक अक्सर भेदभाव और बहिष्कार का अहसास करते हैं, और पूर्ण और निर्विवाद नागरिकता की शर्तों के बावज़ूद उन्हें अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है. उन्हें नागरिकता से वंचित करने से उनकी कमजोरी बढ़ सकती है और संभावित रूप से बड़े पैमाने पर उनका निष्कासन हो सकता है. जातीय अल्पसंख्यकों द्वारा उठाए गए किसी भी मांग को अक्सर मेन लैंड (मुख्य भूमि) से अलग होने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है और आमतौर पर इसे लेकर किसी भी देश में उन्हें निगेटिव रिसपॉन्स (नकारात्मक प्रतिक्रिया) का सामना करना पड़ता है. झिंजियांग और आंतरिक मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र में एथनिक माइनॉरिटीज (जातीय अल्पसंख्यकों) के अधिकारों का समर्थन घरेलू अस्थिरता की स्थिति पैदा करने, अपने पड़ोसियों के साथ बीजिंग के संबंधों को जटिल बनाने और उसकी क्षेत्रीय अखंडता को ख़तरे में डालने की क्षमता रखता है. [xvii]

  • तिब्बत के लिए अधिक स्वायत्तता का समर्थन

तिब्बत और इसके 5.2 मिलियन निवासियों के लिए अधिक स्वायत्तता का अभियान इस क्षेत्र को लेकर चीन की आक्रामकता के बीच जारी है. दलाई लामा के लिए भारत का पक्ष लेना और तिब्बत के अशांत, असंतुष्ट और उत्पीड़ित युवाओं तक पहुंच बनाना निश्चित रूप से चीन को नुक़सान पहुंचा सकता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य के तौर पर चीन को यह फ़ायदा मिला है कि वह तिब्बत को अपना घरेलू मामला बता सकता है और इसके लिए किसी बाहरी हस्तक्षेप की उसे ज़रूरत नहीं है ऐसा दावा कर सकता है. फिर भी  सोशल मीडिया का उपयोग करके, भारत तिब्बत के प्रताड़ित लोगों के लिए एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए अमेरिका और अन्य विदेशी मित्र देशों की मदद से 'तिब्बती स्वायत्तता के लिए बड़े पैमाने पर वैश्विक आंदोलन को प्रेरित कर सकता है. [xviii]

  • आसियान देशों के साथ गठबंधन

एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) क्षेत्र चीन के लिए बहुत ज़्यादा आर्थिक और सामरिक तौर पर अहमियत रखता है. अगर भारत अमेरिका के साथ एक रणनीतिक साझेदारी और मुक्त व्यापार समझौता करता है, तो यह चीन-म्यांमार पाइपलाइन कॉरिडोर सहित विभिन्न बीआरआई योजनाओं और व्यवस्था के माध्यम से क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करने के चीन की कोशिशों को करारा जवाब होगा. आसियान देश अमेरिका के भू-राजनीतिक दृष्टिकोण में हिंद-प्रशांत अलाइनमेंट से चिंतित हैं. हालांकि, दूसरी ओर ये देश दक्षिण चीन सागर में चीन के मंसूबों समेत चीन की रणनीति और नेविगेशन की स्वतंत्रता और नियम-आधारित व्यवस्था के प्रति उसकी समग्र प्रतिबद्धता के बारे में संदेह रखते हैं, क्योंकि वे बीजिंग को नाराज़ नहीं करना चाहते और उन्हें इस बात का भरोसा भी नहीं है कि अमेरिका किस हद तक इस क्षेत्र में साझा हित को बचाने के लिए आगे बढ़ेगा. क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के बीच एक रणनीतिक सुरक्षा संवाद) में बदलाव के लंबे इतिहास और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर इसकी सुस्त चाल की वज़ह से इस पर भरोसा करना आसान नहीं है. और शायद यह ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस के बीच एक सुरक्षा समझौता) के निर्माण के पीछे की सबसे बड़ी वज़ह रही हो, जो एक प्रकार की ऐड-ऑन व्यवस्था जिसका मतलब अधिक आत्मविश्वास को प्रेरित करना और कई साझेदारों के साथ अमेरिकी साझेदारी के नैरेटिव को प्रचारित करना था. हालांकि, किसी भी मामले में यह साफ है कि आसियान महाशक्तियों के बीच संघर्ष को अपने क्षेत्र में बढ़ावा देने के पक्ष में है. आसियान अपने हितों को बनाए रखता है लेकिन इसके कई सदस्य देश अपनी इच्छा व्यक्त करने में हिचकिचाते हैं. और यही  पॉवर प्ले आसियान देशों को भारत के साथ संबंध विकसित करने से रोकता है. क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें चीनी हितों के ख़िलाफ़ जाते हुए माना जा सकता है. फिर भी, भारत को आसियान क्षेत्र के साथ अपने संयुक्त आर्थिक अवसरों को भुनाने और चीन के मुक़ाबले इन देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. [xix]

  • एकीकृत संयुक्त साइबर युद्ध क्षमताओं की स्थापना

पीएलए और भारतीय सेना नेटवर्क-केंद्रित युद्ध के महत्व को समझते हैं. u पीएलए ने संगठन और कमांड और नियंत्रण में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं लेकिन भारतीय सेना ने ऐसा नहीं किया है. भारतीय सेना को अभी पूरी तरह से इस बात को परखना है कि किस हद तक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध साइबर युद्ध में बदलता जा रहा है. भारतीय सेना के पास सभी स्तरों पर महत्वपूर्ण जैविक साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताएं हैं, लिहाज़ा इन क्षेत्रों में फोर्स को और ज़्यादा ट्रेनिंग दिया जाना चाहिए. टेरिटोरियल आर्मी इस उद्देश्य के लिए एक अच्छी इनक्यूबेटर और मैनिंग एजेंसी हो सकती है. हालांकि भारत के पास एक समर्पित इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर सर्विस का अभाव है जिसका इस्तेमाल सर्विस – स्पेसिफिक मिशन और सैन्य टारगेट के लिए किया जा सकता है, जबकि चीन के पास स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स है. वास्तव में भारत की इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर क्षमता एकजुट नहीं है और देश में एक परिभाषित कमांड संरचना की कमी है और इसकी इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता चीन के समान मिनिचराइजेशन (लघुकरण) का स्तर हासिल नहीं कर पाई है. यह एक सिंगल ऑपरेशनल कमांडर के नियंत्रण में साइबर और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर असेट के एकीकरण की ज़रूरत पर बल देता है. इसके अलावा भारतीय सशस्त्र बलों ने अभी तक चीनी एकीकृत नेटवर्क इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर दृष्टिकोण जैसा कुछ भी विकसित नहीं किया है. इसी दौरान, भारत ने रक्षा साइबर और अंतरिक्ष एजेंसियों और सशस्त्र बल विशेष अभियान डिवीजन की स्थापना की है. इसका एक संभावित कारण यह है कि सशस्त्र बलों और राष्ट्रीय तकनीक़ी जासूसी संगठन के बीच संचार बहुत कम है. अगर भारत को इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड स्थापित करना है, तो सामरिक स्तर तक तीनों सेनाओं के अधिक नेटवर्क केंद्रित होने के लिए इंटर-सर्विसेज थिएटर कमांडर को साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के समन्वय के लिए ऑटोनोमी देने की आवश्यकता होगी.

  • पैदल सेना इकाइयों को विशेष बलों में परिवर्तित करना

जोखिम और अनिश्चितता को गले लगाने के लिए अधिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है जिससे भारतीय सेना को लंबे मिशन के लिए, विवादित क्षेत्र में और अधिक शक्तिशाली दुश्मन के ख़िलाफ़ तैयार किया जा सके. व्यापक स्तर पर, अल्पकालिक सामरिक लाभ पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय विशेष संचालन के रणनीतिक महत्व की मज़बूत समझ को विकसित करने की कोशिश होनी चाहिए. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर किसी घटना की स्थिति में कैसे काम करना है, इस बारे में भारतीय सेना का विचार भी पारंपरिक या फ्लेक्सिबल नहीं है. इसके विपरीत, यह दुश्मन के इलाक़े में अंदर जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करने और सीमा के कई हिस्सों में हॉरिजेंटल एस्केलेशन (क्षैतिज वृद्धि) की पहल को जल्दी से हासिल करने पर ज़ोर देता है. हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि क्या भारत का राजनीतिक प्रतिष्ठान ऐसी योजनाओं के लिए तैयार है. यहां तक कि अगर भारत की मौज़ूदा सरकार यह संदेश देने के लिए दृढ़ है कि जोख़िम की बात करना और फोर्स का उपयोग अविवेकपूर्ण है,  तो ऐसा बहुत कुछ संघर्ष की बारीकियों और चीनी आक्रमण की प्रकृति पर निर्भर करेगा. [xx]

  • अमेरिका के साथ निरंतर जुड़ाव

इस क्षेत्र के लिए एक भरोसेमंद अमेरिकी मौज़ूदगी और दीर्घकालिक रणनीति सुनिश्चित करना चीन की चुनौती को बेअसर करने का एक और तरीक़ा हो सकता है. वैक्सीन, उभरती टेक्नोलॉजी और जलवायु जैसे मुद्दों पर दक्षिण एशियाई देशों के साथ अमेरिका के बाइडेन प्रशासन की निकटता से जुड़ने की कुछ उम्मीदें हैं - ये तीन क्षेत्र जहां चीन ने अब तक दक्षिण एशिया का समर्थन किया है. [xxi] इसके साथ ही, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं अब चीन और कई दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र हैं क्योंकि ये क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक हैं. जी7 की 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड'  पहल v और ब्लू डॉट नेटवर्क W में दक्षिण एशियाई देशों को चीन के बराबर के जुड़ाव की पेशकश करने की क्षमता है.

इसके अलावा बाइडेन प्रशासन ने हिंद-प्रशांत रणनीति दस्तावेज़ जारी किया है[xxii] जो चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य ताक़त से निपटने और ऐसा करने के लिए भारत को सशक्त बनाने पर केंद्रित है. दस्तावेज़ भारत के साथ एक प्रमुख रक्षा साझेदारी की संभावना का द्वार खोलता है और इस क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका के लिए समर्थन व्यक्त करता है. इसमें यह भी कहा गया है कि अमेरिका नई दिल्ली के प्रभाव और क्षेत्रीय नेतृत्व का समर्थन करने के लिए द्विपक्षीय तौर से और समूहों के ज़रिए भारत के साथ काम करना जारी रखेगा, [xxiii] और भारत को भी ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.

अमेरिका दक्षिण एशियाई देशों को ऋण प्रबंधन पर तकनीक़ी सलाह भी दे सकता है. इसका मतलब यह नहीं है कि मल्टीलैटरल डेट रिलीफ इनिशिएटिव जैसे कार्यक्रमों में औपचारिक ऋण राहत की कल्पना की गई हो.  इसके बजाय, अमेरिका चीन के कर्ज़ को स्वीकार करने से पहले और बाद में कर्ज़ लेने वाले देशों को समर्थन देने की पेशकश कर सकता है. अमेरिका, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों को नियमों और शर्तों को निर्धारित करने में सहायता कर सकता है जो चीन के किरदारों के साथ उनकी स्थिति को मज़बूत करेगा, साथ ही साथ उन्हें उनके समग्र ऋण का प्रबंधन और पुनर्गठन करने में मदद करेगा. यूएस डिपार्टमेंट ऑफ़ ट्रेज़री ऑफ़िस ऑफ़ टेक्निकल असिस्टेंस, विकासशील और बदलाव के दौर से गुजरने वाले देशों के वित्त मंत्रालयों और केंद्रीय बैंकों को सार्वजनिक वित्त को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और उनके वित्तीय क्षेत्रों की सुरक्षा करने की उनकी क्षमता को सुदृढ़ करने में मदद करता है, और यह दक्षिण एशिया के देशों में भी इस तरह के जुड़ाव का विस्तार कर सकता है. इसके अलावा अमेरिका ऐसे बदलावों को कम करने के लिए वेस्टर्न मल्टीलैटरल ऑर्गेनाइजेशन पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकता है और इन देशों को राजकोषीय संयम और निरंतरता के लिए वैकल्पिक चैनल तैयार करने में मदद कर सकता है.

  • आधुनिक बुनियादी ढांचे और टिकाऊ क्षमताओं का निर्माण करना

समय के साथ भारत के पड़ोसी देशों की क्षमता का निर्माण उन देशों में ज़्यादा से ज़्यादा स्टेकहोल्डर्स को चीन के अपारदर्शी सौदों से जुड़े जोख़िमों को पहचानने में सक्षम बना सकता है. ये स्टेकहोल्डर चाहते हैं कि उनके राजनीतिक प्रशासन केवल उन संस्थाओं के साथ काम करें जो स्थिरता और जवाबदेही के अंतर्राष्ट्रीय मानकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साझा करते हैं. डेवलपमेंट एड के अपेक्षाकृत नए स्रोत के रूप में, चीन प्रोजेक्ट फाइनेंस (परियोजना वित्त) और डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (प्रत्यक्ष निवेश) पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. चाइना इंटरनेशनल डेवलपमेंट कोऑपरेशन एजेंसी या उसके प्रतिनिधि श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश में अधिकांश चीनी विकास कार्यों को स्वीकार नहीं करते हैं, जो कि विभिन्न चीन के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा स्वीकार किए जाते हैं, जिन्हें कुछ ख़ास क्षेत्रों में केवल ध्यान केंद्रित करने के लिए स्थापित किया गया है. [xxiv]

अगर भारत को इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड स्थापित करना है, तो सामरिक स्तर तक तीनों सेनाओं के अधिक नेटवर्क केंद्रित होने के लिए इंटर-सर्विसेज थिएटर कमांडर को साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के समन्वय के लिए ऑटोनोमी देने की आवश्यकता होगी.

  • सेना की वायु और नौसेना क्षमताओं को बढ़ाना

चीन द्वारा अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने का उद्देश्य पीएलए की अपनी कमियों को दूर करना है, एलएसी पर संघर्ष के लिए पीएलए की लड़ाकू क्षमता में बढ़ोतरी करना और तिब्बत पर भारत की वायु शक्ति की ताक़त को ख़त्म करना है. बहुत ही कम समय के नज़रिए से चीन के ख़िलाफ़ बहुआयामी प्रतिरोध का निर्माण करना एक गंभीर रणनीतिक खामी हो सकती है. भारत को एक ऐसी योजना विकसित करनी चाहिए जो एक विश्वसनीय प्रतिरोध के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करे. इसे एलएसी पर जवाबी हमले करने के लिए डिज़ाइन की गई मज़बूत सैन्य क्षमता से समर्थन मिलना ज़रूरी है. भारत को अपनी क्षमताओं पर ध्यान देना चाहिए जो संघर्ष की स्थिति में दर्दनाक परिणाम देने की कोशिश करते हैं. चूंकि इस क्षेत्र में चीन के पास बहुत अधिक फॉरवर्ड बेस नहीं है और चूंकि तिब्बती पठार की कठिन जलवायु सैनिकों की तैनाती और परिवहन को बेहद चुनौतीपूर्ण बना देती है, इसलिए ऊंचाई पर ऑपरेशनल वर्चस्व सुनिश्चित करने के लिए एयर सुपिरियोरिटी (हवाई श्रेष्ठता) की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी नौसैनिक शक्ति विकसित करने की भी ज़रूरत है. भारत को पारंपरिक साधनों से अलग सोचना चाहिए और लंबी दूरी की मिसाइलों, साइबर युद्ध और अंतरिक्ष के हथियारों के ज़रिए संघर्ष के तत्काल क्षेत्र से परे लागतों को निष्पादित करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए. [xxv]

निष्कर्ष

चीन वर्तमान में आर्थिक और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका के साथ ज़बर्दस्त प्रतिस्पर्धा में लगा हुआ है. हालांकि अमेरिका सैन्य क्षेत्र में हावी होता दिख रहा है लेकिन चीन अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई अहम फैसले ले रहा है, जिसमें एक महत्वपूर्ण डिजिटल बदलाव भी शामिल है. इसके अलावा 2028 तक, चीन का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 24 प्रतिशत हिस्सा होने का अनुमान है, जबकि अमेरिका के पास 14 प्रतिशत हिस्सा ही होगा. [xxvi] फिर भी चीन को अपने लक्ष्यों को पाने के लिए कई गंभीर मुद्दों का सामना करना होगा - उदाहरण के लिए, एक धीमी अर्थव्यवस्था, रियल एस्टेट संकट और डेमोग्राफिक वर्कफोर्स की कमी.

चीन द्वारा इन चुनौतियों की तैयारी के चलते वहां विकास की रफ़्तार जो धीमी होगी उससे जो मौक़ा भारत को मिलेगा उसका लाभ भारत उठा सकता है. इसे सुनिश्चित करने का पक्का तरीक़ा पारंपरिक और हाइब्रिड डोमेन में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना है. साथ ही  भारत को चीनी प्रभुत्व को समायोजित करने और संघर्ष या युद्ध में किसी तरह के सरप्राइज़ से बचने के लिए रणनीति विकसित करनी चाहिए. [xxvii]

हाइब्रिड युद्ध रणनीति के समर्थक युद्ध के किसी भी रूप के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करेंगे जो सैन्य शक्ति से बच सकता है और एक विरोधी की कमज़ोरियों का फायदा उठा सकता है. एक अनुकूल रणनीतिक दृष्टिकोण जो क्षमताओं की एक विस्तृत श्रृंखला पर निर्भर है, युद्ध के हाइब्रिड स्पेक्ट्रम में निरंतर सफलता का ज़रिया है. इस प्रकार अपने पड़ोसियों के लिए भारत को ज्वॉइंट वॉर फाइटिंग संबंधी अवधारणाओं और इंटीग्रेटेड फोर्स स्ट्रक्चर को शामिल करने के लिए अपनी राष्ट्रीय रणनीति की समीक्षा करनी चाहिए और तैयारी करनी चाहिए, जबकि बढ़ी हुई इंटर-एजेंसी, बहुराष्ट्रीय क्षमताओं और समन्वय का विकास करना चाहिए; ख़ुफ़िया और मंत्रिस्तरीय कार्य के लिए एक ढांचा तैयार करना चाहिए; डायनेमिक मिलिट्री डिप्लोमेसी और रणनीतिक संचार विकसित करना चाहिए; रक्षा सहयोग का मूल्यांकन करना चाहिए: अपनी अभियान शक्ति पूर्वानुमान में बढ़ोतरी करनी चाहिए ; संघर्ष के संभावित क्षेत्रों तक पहुंच बनाए रखना; अनुकूली योजना(एडैप्टिव प्लानिंग) में वृद्धि और परिचालन युद्ध कला पर पुनर्विचार; पेशेवर सैन्य शिक्षा कार्यक्रमों में निवेश; और डिजिटल युद्धक्षेत्र परिवेश में अनियमित और स्वायत्त युद्ध छेड़ने की एक नई क्षमता के साथ इंटीग्रेटेड मल्टी डाइमेंश्नल फोर्स को बढ़ाना चाहिए. 'स्ट्रैटेजिक स्पेस डेटरेंस (रणनीतिक अंतरिक्ष निवारण)' पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए, जिसमें बहुआयामी टारगेट को तबाह करने के लिए लेजर, पार्टिकल बीम, या काइनेटिक एनर्जी वेपन का अनुकूलन करने वाले एंटी-सैटेलाइट ऑफेंसिव ऑपरेशन और स्पेस कॉम्बैट प्लैटफॉर्म शामिल हैं. हाइब्रिड वॉरफेयर में मज़बूती हासिल करने के लिए भारत को प्रभावी ढंग से तालमेल बिठाना चाहिए और इन क्षमताओं को संयोजित करना चाहिए. यह देश की प्रमुख पारंपरिक युद्धों में वर्चस्व कायम करने की क्षमता को सुनिश्चित करेगा, हालांकि जो लंबे समय में, एक विकसित वैश्विक शक्ति बनने के सपने को साकार करने की दिशा में बाधा पैदा कर सकता है.

भारत को अपने प्रतिद्वंद्वियों से हाइब्रिड युद्ध के ख़तरों से निपटने के लिए ‘होल ऑफ गर्वनमेंट एप्रोच (संपूर्ण सरकार' दृष्टिकोण)’ विकसित करना चाहिए. उदाहरण के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के निर्देशन में और सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की सहमति से राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय द्वारा तैयार किए गए सभी मंत्रालयों को शामिल करते हुए एक कोऑर्डिनेटेड 'ग्रैंड प्लान' का उपयोग ऐसे जोख़िमों को दूर करने के लिए किया जा सकता है. इसके साथ ही, हाइब्रिड ख़तरों से निपटने के लिए भारत को सैन्य क्षमताओं (उचित कौशल प्रशिक्षण के साथ एक स्पेशल फोर्स के ज़रिए) को बढ़ावा देना चाहिए. आईएसआर क्षमताओं, विशेष रूप से अंतरिक्ष और एरियल आयामों में, x को और विकसित करने की ज़रूरत होगी. सशस्त्र बलों को सभी स्तरों पर सूचना युद्ध क्षमताओं (मनोवैज्ञानिक संचालन, और इलेक्ट्रॉनिक और साइबर युद्ध सहित) को भी प्राथमिकता देनी होगी. फोर्सेज को अपनी युद्ध क्षमता में नई तकनीक़ों को शामिल करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, हाइपरसोनिक और क्वांटम साइंस भी शामिल हैं, जिन्हें पर्याप्त सरकारी समर्थन और सेना द्वारा स्वदेशी उत्पादों को स्वीकार करने के लिए सेना की इच्छा का होना भी ज़रूरी है.

ऐसी क्षमताओं को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों की आवश्यकता होगी, लेकिन सवाल है कि भारत की सामाजिक और ढांचागत प्राथमिकताओं को क्या प्राथमिकता दी जाएगी. इसके बावज़ूद इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दूसरे तरीक़े भी हैं. यूरोपीय विश्व युद्ध-केंद्रित अवधारणाएं और सिद्धांतों से प्राप्त विरासत व्यवस्था को कम लागत वाले विकल्पों और अहम तकनीक़ के बदले में छोड़ दिया जाना चाहिए. सिविल मिलिट्री और इंटर सर्विस फ्यूज़न, 'होल ऑफ नेशन (संपूर्ण राष्ट्र)' दृष्टिकोण के साथ राजनीतिक-सैन्य उद्देश्यों को साकार करना, और यहां तक कि विकासात्मक और आर्थिक लक्ष्यों को सुरक्षा आवश्यकताओं के साथ विलय करना कुछ संभावनाएं जगाती हैं लेकिन यह सब केवल तभी हासिल किया जा सकता है जब युद्ध के लिए असरदार तरीक़े के साथ तैयार होने के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के साथ ही ऑपरेशनल रेडिनेश (परिचालन तत्परता) की कमी को पहचाना और स्वीकार किया जाए.

हाइब्रिड वॉरफेयर की 'लो लाइबिलिटी एंड हाई पेयऑफ (कम देयता और उच्च अदायगी)' रूख़ यह सुनिश्चित करेगी कि यह युद्ध करने का एक पसंदीदा तरीक़ा बन सकता है. हो सकता है कि भारत इस विचारधारा से सहमत ना हो लेकिन उसे इसका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा या फिर पहले से भारत को इसकी तैयारी करनी होगी. कोहरेंट कैपिबिलिटी बिल्डिंग (सुसंगत क्षमता निर्माण) और एक कोऑर्डिनेटेड नेशनल रिस्पॉन्स मेकेनिज्म (समन्वित राष्ट्रीय प्रतिक्रिया तंत्र) के लिए 'होल ऑफ नेशन (संपूर्ण राष्ट्र)' अप्रोच एक संभावना है. भारत को आत्म-मूल्यांकन और ख़तरे के विश्लेषण के लिए एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए. ऐसा करना हाइब्रिड वॉरफेयर की प्रारंभिक चेतावनी व्यवस्था में काफी सुधार कर सकता है, यहां तक कि रेजिलियेंस इनिशिएटिव को यह सपोर्ट कर सकता है और यहां तक कि इसका कंपाउंडेड डेटरेंट इफेक्ट भी हो सकता है. सच्चाई तो यह है कि हाइब्रिड वॉरफेयर से निपटने की क्षमता केवल ऑपरेशनल या टैक्टिकल क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सामरिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी निहित होना चाहिए.


[a] Grey zone conflicts are activities by state and non-state actors that combine non-military and quasi-military tools, and occur in the periods between peacetime (or cooperation) and war (or conflict). These conflicts fall below the threshold of armed conflict, and are aimed to impede, destabilise, weaken, or attack an adversary by considering the vulnerabilities of the target state.

[b] Contact warfare is where there is a physical contact between adversarial forces. Non-contact warfare uses command, control, communications, computer, intelligence, surveillance, and reconnaissance (C4ISR) to achieve strategic objectives.

[c] Deniability or plausible deniability refers to the ability to deny any involvement in illegal or unethical activities due to a lack of evidence to prove such an act. Furthermore, the lack of evidence also makes this kind of deniability plausible and credible.

[d] In the context of war, threshold refers to the levels or limits at which the war is being or will be fought.

[e] In the context of this paper, China-Pakistan collusion refers to the covert cooperation between the two nations against India. For instance, if India is engaged in an armed conflict with Pakistan, China will likely provide moral, material, and logistical support to the latter.

[f] Revisionism or revisionist states favour changes in the prevailing world order in terms of its rules and norms. It is also related to the changing patterns of the distribution of goods or benefits, the implicit structure or hierarchy, and the division of territory among sovereign entities. China is considered to be a revisionist power because it aims to change the global status quo by becoming a dominant player and replacing the US.

[g] Sub-conventional warfare is an all-encompassing term that refers to armed conflicts that are above the level of peaceful co-existence between nations but below the threshold of war. It includes militancy, insurgency, proxy war, and terrorism either as part of a movement or independently. Conventional warfare refers to the traditional means to wage war where the two sides face each other on the battlefield using weapons that are not biological, chemical, or nuclear in nature.

[h] India’s defence education institutions, such as the National Defence University (NDU), train military and civilian officials, technocrats, and politicians. All major global powers, including India’s adversaries, have NDU-like structures.

[i] Civil-military fusion refers to developing a technologically advanced military that can counter all threats from the new emerging technologies in the military domain. In the case of India, the aim of civil-military fusion is to ensure the expression of the nation’s comprehensive national power during war and peace.

[j] Strategic depth is related to military planning and operations, and mostly refers to the physical distance between enemy forces and crucial centers in a country that can be military frontlines, bases, or industrial and commercial hubs.

[k] Smart power can be understood as a combination of soft and hard power in an appropriate context (relative to the situation) and the measure and degree to which it can be applied.

[l] A proactive strategy is related to increasing the strategic offensive tactic or employing punitive deterrent tactics.

[m] Response option matrix refers to the crisis response plans in military parlance.

[n] Plug-and-fight is the military equivalence of plug-and-play, referring to the capability (often in terms of air defence systems) of large military systems, such as the Medium Extended Air Defence System, which automatically recognises and assembles various system elements, like sensors, weapons, and control nodes, into a single integrated supersystem or system-of-systems.

[o] Most favoured nation (MFN) status refers to the preferential trade terms of World Trade Organization member-countries with respect to tariffs and trade barriers to all other member countries as part of Article 1 of the General Agreement on Tariffs and Trade (GATT). Mutual MFN status, supported by trade facilitation, could help boost trade between two countries. India granted MFN status to Pakistan in 1996, but it withdrew this status in 2019 following the Pulwama terror attack.

[p] Negotiated by the World Bank and signed in 1960, the treaty governs the distribution of the waters of the Indus River and its tributaries between India and Pakistan.

[q] In May 2007, China refused to issue a visa to an Indian Administrative Services officer hailing from Arunachal Pradesh citing that the individual was a “Chinese national” and thus did not require a visa. In the same year, there were over 150 transgressions across the Line of Actual Control (LAC), rising to 270 in 2008. Furthermore, in November 2009, Chinese soldiers crossed the LAC and stopped a road construction project in Demchok, Ladakh. In August 2011, Chinese soldiers reportedly used helicopters to land on the Indian side of the LAC and dismantle bunkers. Near similar instances of LAC violations were reported in 2012.

[r] Such as with Pakistan and North Korea.

[s] Coercive gradualism refers to the gradual pursuit of one nation’s interests against those of another country. It is a form of aggression chosen by relatively powerful states. A state may have the capability and capacity to achieve its aims, but it might choose to do so in phased moves as opposed to a single coup de main.

[t] Such as Shanghai, Ningbo, Wenzhou, Fuzhou, Xiamen, Taipei, Guangzhou, Shenzhen, Hong Kong, Zhanjiang, and Haikou.

[u] Network-centric combat/warfare refers to a military doctrine that aims to convert an information advantage into a competitive advantage through the computer networking of dispersed forces.

[v] The Build Back Better Initiative (B3W) was launched by the G7 countries to deliver high-quality, sustainable infrastructure through values-driven, high-standard, and transparent infrastructure partnerships.

[w] The US, Japan, and Australia launched the Blue Dot Network to promote the principles of sustainable infrastructure development globally. It is a means to certify infrastructure projects that fulfil international quality standards.

[x] For instance, remote sensing satellite series, electronic intelligence satellites, unmanned aerial vehicles, autonomous warfare systems, and long-range maritime patrol aircraft.

[i] Stephen Biddle & Jeffrey A Friedman, “The 2006 Lebanon Campaign and the Future of Warfare: Implications for Army and Defence Policy,” Strategic Studies Institute, September 2008.

[ii]  J. John McCuen, “Hybrid Wars,” Military Review, 88 (2), (2008).

[iii] Frank G Hoffman, “Conflicts in the 21st century: Rise in Hybrid Wars, Potomac Institute of Conflict Studies, (2007).

[iv] Vikrant Deshpande & Shibani Mehta (ed.), Hybrid Warfare: The Changing Character of Conflict, (New Delhi: Pentagon Press, 2018).

[v] Vikrant Deshpande & Shibani Mehta (ed.), Hybrid Warfare: The Changing Character of Conflict (New Delhi: Pentagon Press, 2018).

[vi] Sean Monaghan, “Countering Hybrid Warfare So What for the Future Joint Force?” Features, no. 2 (2018): 82-98.

[vii]Pakistan engaging in hostile propaganda against India to divert attention from its domestic failures: MEA report”, The Hindu, March 13, 2023.

[viii] A. G. Noorani, “Water as Weapon”, The Frontline, October 12, 2016.

[ix] Tavleen Singh, “Pakistan involvement in Sikh terrorism in Punjab based on solid evidence: India”, India Today, May 15, 1986.; Kaswar Klasra, “Pakistan backs India’s Sikh separatists as Kashmir tensions rise”, Nikkei Asia, August 29, 2019.; Harjeet Singh, “Khalistan Movement: The Genesis of Soviet Russia”, International Journal of Law Management & Humanities, vol.4, issue 1, 2021, pp. 1382-1413.

[x]  Venda Felbab-Brown, “Why Pakistan supports terrorist groups, and why the US finds it so hard to induce change”, Brookings, January 05, 2018.

[xi]  Brigadier Narender Kumar, “Hybrid Warfare Division: An Urgent Operational Requirement for India”, USI JournalApril 2020 – June 2020.

[xii]  Mona Kanwal Sheikh et al., “Pakistan: Regional Rivalries, Local Impacts”, DIIS Report, no. 12 (2012).

[xiii]  Amit Kumar, “China’s Two-Front Conundrum: A Perspective on the India-China Border Situation”, ORF Occasional paper, no. 393, March 2023.

[xiv]  Brig Anand Tewari, Chinese Geopolitics in the 21st Century: A Post-Pandemic Perspective (New Delhi: Pentagon Press, 2021), pp. 253-254.

[xv]  “Cheaper transport: It’s time to take to water”, Business Standard, March 16, 2016.

[xvi]  Diego A. Cerdeiro and Sonali Jain-Chandra, “China’s Economy is Rebounding, But Reforms Are Still Needed”, IMF, February 23, 2023.

[xvii]  Keith Dede, “Ethnic Minorities in China: The Mongols, Tibetans, Manchus, and Naxi”, Asia Society (2007), : 63-67.

[xviii]  Rob Dickinson, “Tibetan Self-Determination: A Stark Choice for an Abandoned People,” E-International Relations, May 18, 2014.

[xix]  Lt Gen Syed Ata Hasnain, “India and ASEAN Overcoming Perceptions,” The New Indian Express, June 28, 2022.

[xx]  Iskander Rehman, “Hard Men in a Hard Environment: Indian Special Operators along the Border with China,” War on the Rocks, January 25, 2017.

[xxi]  Safiya Ghori-Ahmad and Kyle Gardner, “The dynamics of South Asia: A roadmap for the Biden administration”, Atlantic Council, February 08, 2021.

[xxii]  “Indo-Pacific Strategy of the United States”, White House, February 2022.

[xxiii]  Yeshi Seli, “Empowering India part of US counter-China plan,” The New Indian Express, February 13 2022.

[xxiv]  Deep Pal, “China’s Influence in South Asia: Vulnerabilities and Resilience in Four Countries” Carnegie Endowment for International Peace, October 13, 2021.

[xxv]  Deependra Singh Hooda, “Tackling China’s Infra Build Up along LAC,” The Hindustan Times, June 14, 2022.

[xxvi]  “Chinese economy to overtake US ‘by 2028’ due to Covid,” BBC, December 26, 2020.

[xxvii]  Lt Gen Raj Shukla, “Pursuit of Great Powerhood,” Indian Express, September 02, 2022.

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