प्रस्तावना
रूस-यूक्रेन युद्ध तथा पश्चिम एशिया में चल रही अशांति के कारण कनेक्टिविटी के पारंपारिक मार्ग प्रभावित हुए हैं. इसके चलते ऊर्जा एवं खाद्यान्न का अभूतपूर्व संकट पैदा होने के साथ ही भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर इसका गहरा असर पड़ा है. ऐसे में भारत के लिए इस स्थिति से निपटने के तत्काल कदम उठाना ज़रूरी हो गया है. यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि भारत ने अपनी आर्थिक विकास दर को लेकर महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे हैं. भारत का लक्ष्य 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाकर 10 ट्रिलियन अमेरिकी डालर करना है, जो उसके अनुमान के हिसाब से 2034 तक 15 ट्रिलियन अमेरिकी डालर हो जानी चाहिए. इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में इज़ाफ़ा होने के साथ मैन्यूफैक्चरिंग यानी निर्माण क्षेत्र में तेजी आए. चाबहार पोर्ट तथा इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रेड कॉरिडोर (INSTC) इसी संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
ये दोनों पहल, जिसमें नए सीपोर्ट्स यानी समुद्री बंदरगाह, रेल कॉरिडोर्स और यूरेशिया तक नए समुद्री परिवहन लिंक का निर्माण किया जाना है, न केवल व्यावधानों से निपटने के लिए ज़रूरी हैं, बल्कि ये भारत की भू-राजनीतिक तथा आर्थिक कूटनीति के स्तंभ भी हैं. ये दोनों ही पहल भारत को उसके विकास लक्ष्य हासिल करने में अहम भूमिका अदा करेंगी. वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के साथ उभरते भू-आर्थिक एवं भू-कूटनीतिक चुनौतियों को देखते हुए भी भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह भरोसेमंद, टिकाऊ और विविध आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करते हुए सस्टेनेबल ट्रांसपोर्टेशन कनेक्शंस स्थापित करें.
वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के साथ उभरते भू-आर्थिक एवं भू-कूटनीतिक चुनौतियों को देखते हुए भी भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह भरोसेमंद, टिकाऊ और विविध आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करते हुए सस्टेनेबल ट्रांसपोर्टेशन कनेक्शंस स्थापित करें.
नई दिल्ली यह भी चाहता है कि वह इन कनेक्टिविटी परियोजनाओं के माध्यम से सेंट्रल एशियन रिपब्लिक्स (CARs) के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करे. हाइड्रोकार्बन-संपन्न क्षेत्र में स्थित सेंट्रल एशियन रिपब्लिक्स के साथ भारत के ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक संबंध पुरातन सिल्क रोड के जमाने से हैं. वह इसका ही लाभ उठाना चाहता है. सिल्क रोड, मार्गों एवं हाईवेज् का एक ऐसा विस्तृत नेटवर्क था जो 2,000 वर्ष पूर्व भारत तथा मध्य एशिया को जोड़ते हुए एक ट्रेड रुट के रूप में उपयोगी होने के साथ-साथ सांस्कृतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक आदान-प्रदान का भी माध्यम था.[1]
रणनीतिक रूप से CARs यूरेशिया के हृदयस्थल में स्थित है और उन्हें ‘वर्ल्ड आइलैंड’ के भीतर होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों की धुरी माने जाते है. जियोग्राफर हेल्फोर्ड मैकिंडर का मानना था कि जो हार्टलैंड को नियंत्रित करता है वह ही दुनिया को कंट्रोल करता है. [a] इसके अतिरिक्त कज़ाख़स्तान एवं तुर्कमेनिस्तान के प्रचूर हाइड्रोकार्बन भी उन्हें वैश्विक ताकतों के लिए अपना प्रभाव स्थापित करने का अहम क्षेत्र बनाते हैं. भारत भी इस क्षेत्र में अपने प्रभाव में विस्तार लाने की कोशिश कर रहा है.
हालांकि भारत के रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों को पाकिस्तान ने अपने इलाके से आगे बढ़ने की इजाज़त न देते हुए सीमित कर दिया है. तुर्कमेनिस्तान-अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन से उम्मीद की गई थी कि यह तेजी से विकसित हो रहे भारत की ऊर्ज़ा आवश्यकताओं को पूर्ण करेगी. लेकिन इस पाइपलाइन का काम 2006 से अटका हुआ है. ऐसे में बीजिंग ने नई दिल्ली और इस्लमाबाद के बीच दुश्मनी का लाभ उठाते हुए अपनी संकुचित एकाधिकार हासिल करने वाली बहुचर्चित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को आगे बढ़ाने की कोशिश की तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ. BRI के फ्लैगशिप प्रोग्राम चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिट कॉरिडोर (CPEC) के तहत चीन ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के विवादित क्षेत्र को लेकर नई दिल्ली की संप्रभुता और एकजुटता संबंधी चिंताओं की अनदेखी की है. भारत के उत्तरी क्षेत्र को CPEC के माध्यम से घेरने की चीनी कोशिशों के कारण ही नई दिल्ली को भी यूरेशिया, विशेषत: CARs को लेकर अपनी कूटनीति में सुधार करने पर मजबूर होना पड़ा. चाबहार पोर्ट को लैंडलॉक्ड CARs तथा अफ़गानिस्तान के लिए हिंद महासागर तक पहुंचने का ‘गोल्डन गेट’ माना जाता है.[2] इसके माध्यम से नई दिल्ली को भी CARs समेत पूरे यूरेशिया तक अपना व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियां संचालित करने के लिए सबसे नज़दीकी और तेज मार्ग मिल गया है.
इस विशेष रिपोर्ट में इस बात का आकलन किया गया है कि मई 2024 में भारत तथा ईरान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर हुए दस वर्षीय समझौते का क्या असर होगा. इसके अलावा यह समझौता आमतौर पर यूरेशिया और विशेषत: सेंट्रल एशिया के साथ उसके संबंधों को कैसे आकार देगा.
इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रेड कॉरिडोर (INSTC) के साथ चाबहार पोर्ट भारत को मध्य एशिया और उसके पार एक मज़बूत पर्याय उपलब्ध करवाता है.
भारत-मध्य एशिया संबंधों में कनेक्टिविटी की केंद्रीयता
तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में पांच नए मध्य एशिया लोकतांत्रिक देशों-कज़ाख़िस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा अज़रबैज़ान का उदय हुआ. उस वक़्त भारत ने तत्काल इन देशों के साथ अपने राजनायिक संबंध स्थापित करते हुए उन्हें तत्काल आवश्यक वित्तीय सहायता मुहैया करवाई थी. इसके कुछ ही दिनों बाद दोनों क्षेत्रों के सर्वोच्च नेताओं की कूटनीतिक यात्राओं का आदान-प्रदान हुआ. 2012 में नई दिल्ली ने इस क्षेत्र के साथ द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए अपनी ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी’ को जारी कर दिया.[3] नई दिल्ली का CARs की ओर देखने का दृष्टिकोण वहां मौजूद पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों को ध्यान में रखकर अपनाया गया था, ताकि वह अपनी ऊर्ज़ा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए दीर्घावधि साझेदारों के साथ संबंध स्थापित कर सकें. इसके साथ ही भारत संपूर्ण यूरेशिया के साथ अपने सांस्कृतिक संबंधों को भी पुख़्ता और गहरा करना चाहता था. 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी CARs का दौरा किया तो रणनीतिक रूप से हाइड्रोकार्बन संपन्न यह क्षेत्र भारत के रुचि वाले क्षेत्रों के केंद्र में आ गया. प्रधानमंत्री की यात्रा के तुरंत बाद तज़ाख़िस्तान, किर्गिस्तान तथा उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति भी नई दिल्ली के दौरे पर आए थे. इन यात्राओं ने यह साफ़ कर दिया कि दोनों ही क्षेत्र अपने द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने को लेकर कितने उत्सुक थे.[4]
2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी CARs का दौरा किया तो रणनीतिक रूप से हाइड्रोकार्बन संपन्न यह क्षेत्र भारत के रुचि वाले क्षेत्रों के केंद्र में आ गया. प्रधानमंत्री की यात्रा के तुरंत बाद तज़ाख़िस्तान, किर्गिस्तान तथा उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति भी नई दिल्ली के दौरे पर आए थे. इन यात्राओं ने यह साफ़ कर दिया कि दोनों ही क्षेत्र अपने द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने को लेकर कितने उत्सुक थे.
नई दिल्ली ने 2019 में विदेश मंत्रियों के स्तर पर इंडिया-सेंट्रल एशिया डायलॉग की शुरुआत की.[5] यह वार्षिक संवाद अब क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के साथ ही व्यापार एवं आर्थिक संवाद को आगे बढ़ाने का मंच बन चुका है. 2020 में भारत ने CARs में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 1 बिलियन अमेरिकी डालर की क्रेडिट लाइन भी शुरू की. द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाते हुए 2022 में भारत के प्रधानमंत्री तथा CARs के राष्ट्रपतियों का एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन भी हुआ. इस शिखर सम्मेलन का आयोजन इन देशों के बीच राजनायिक संबंध स्थापित होने की 30 वीं वर्षगांठ के अवसर पर किया गया था. इसके बाद जारी दिल्ली घोषणापत्र अब नई दिल्ली तथा CARs के बीच भविष्य में बनने वाले संबंधों की आधारशिला बन चुका है.[6]
नई दिल्ली तथा CARs ने अपने कूटनीतिक तथा आर्थिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए बहुराष्ट्रीय मंचों का उपयोग भी किया है. 12 वर्षों तक निरीक्षक का दर्ज़ा रखने वाले भारत को 2017 में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का पूर्णकालीक सदस्य बनाया गया. नई दिल्ली तथा CARs ने SCO मंच का उपयोग करते हुए भरोसेमंद, टिकाऊ और विविधतापूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं को लेकर बातचीत को आगे बढ़ाने का काम किया है. इन आपूर्ति श्रृंखलाओं को आगे भी ऐसी बेहतर कनेक्टिविटी की आवश्यकता है, जो सदस्य देशों की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए पूर्ण ट्रांजिट/पारगमन अधिकार प्रदान करें. आर्थिक मोर्चे पर भारत ने यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EEU), जिसमें किर्गिस्तान और कज़ाख़िस्तान का समावेश है, के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर बातचीत शुरू कर दी है. इस समूह ने 2017 में एक फिजिबिलीटी रिपोर्ट सौंपी है. मार्च 2014 में भारत तथा EEU के सदस्य देशों के वरिष्ठ अधिकारियों ने FTA को लेकर बातचीत शुरू करने के लिए एक बैठक भी की है.[7]
नई दिल्ली तथा CARs के बीच हुई ऐसी अधिकांश बातचीत में डायरेक्ट कनेक्टिविटी, आर्थिक और व्यापार संबंधी संवाद बढ़ाने जैसे मुद्दों को लेकर विस्तार से बातचीत की गई. CARs तथा भारत दोनों ही चाबहार के माध्यम से डायरेक्ट कनेक्टिविटी हासिल करने को लेकर द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय प्रयास कर रहे हैं. यही बात टेबल 1 में दर्शाई गई है.
टेबल 1: CARs-भारत के बीच चाबहार तथा कनेक्टिविटी को लेकर कूटनीतिक बातचीत
वर्ष
|
बैठक
|
विचार
|
2019
|
विदेश मंत्रियों के स्तर पर भारत-मध्य एशिया संवाद
|
अधिक कुशल कनेक्टिविटी पर ज़ोर
|
2020
|
उज़्बेकिस्तान, भारत, ईरान - त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन
|
चाबहार बंदरगाह व्यापार, ट्रांसिट और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने पर सहमति
|
2021
|
चाबहार दिवस - भारत, अफ़गानिस्तान, आर्मेनिया, ईरान, कज़ाख़िस्तान, उज्बेकिस्तान और रूस
|
भारत ने INSTC मार्ग में चाबहार को शामिल करने का प्रस्ताव दिया
|
2021
|
भारत-मध्य एशिया संवाद की तीसरी बैठक
|
फ्रेमवर्क के भीतर चाबहार बंदरगाह समावेशन पर आगे चर्चा की गई
|
2021
|
चाबहार पर दूसरा त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन
|
चाबहार की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया
|
2021
|
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की ताजिकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ बैठक
|
चाबहार पोर्ट के माध्यम से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मजबूत करने पर चर्चा की
|
2021
|
CARs के विदेश मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बैठक
|
व्यापार और संवर्धित आर्थिक सहयोग के लिए कनेक्टिविटी पर चर्चा की
|
2022
|
भारत-सेंट्रल एशिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन
|
तय किया कि चाबहार पोर्ट और तुर्कमेनबाशी पोर्ट को भारत के साथ सीधे व्यापार की सुविधा के लिए INSTC में शामिल किया जाएगा
|
2022
|
भारत-उज़्बेकिस्तान विदेश कार्यालय परामर्श
|
दोनों पक्ष चाबहार बंदरगाह की पूरी क्षमता का फायदा उठाने के लिए सहमत हुए
|
2022
|
प्रधानमंत्री मोदी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति के बीच द्विपक्षीय बातचीत
|
चाबहार बंदरगाह और INSTC का अधिक से अधिक उपयोग पर ज़ोर
|
2023
|
अफ़गानिस्तान पर भारत-सेंट्रल एशिया संयुक्त कार्य समूह
|
चाबहार पोर्ट के माध्यम से अफगानिस्तान को सहायता पर सहमती
|
स्रोत: लेखक का अपना
चाबहार पोर्ट का उदय
2015 में भारत के तत्कालीन पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री नितिन गडकरी तथा ईरान के सड़क एवं शहरी विकास मंत्री अब्बास अखौंदी ने सिस्तान-बलुचिस्तान प्रांत में मौजूद डीप सी पोर्ट चाबहार को विकसित करने के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे. इसे लेकर 2003 में ही सुझाव आया था, लेकिन ईरान पर लगे प्रतिबंधों की वजह से यह काम अटक गया था.[8] यह पोर्ट ओपन सी में होर्मुज जलडमरूमध्य यानी होर्मुज स्ट्रेट, जिसे थ्री ‘चोक प्वाइंट्स’ में से एक माना जाता है में रणनीतिक रूप से स्थित है. इसकी लोकेशन यह सुनिश्चित करती है कि ये खाड़ी अथवा पश्चिम एशियाई संघर्षों से प्रभावित नहीं होता. इसके अलावा चाबहार पोर्ट गुजरात में कच्छ की खाड़ी में स्थित मुंद्रा तथा कांडला पोर्ट से केवल 550 नॉटिकल माइल्स (nm) तथा महाराष्ट्र के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट से 780 nm की दूरी पर स्थित है. [b] एक कंटेनर जहाज इस दूरी को दो या उससे भी कम दिनों में पार कर सकता है.[9]
2016 में प्रधानमंत्री मोदी की ईरान यात्रा के दौरान दोनों देशों ने चाबहार पोर्ट पर दो टर्मिनल्स विकसित करने को लेकर समझौता किया था. इसमें भारत ने 500 मिलियन अमेरिकी डालर के निवेश करने का वचन दिया था.[10] चाबहार में दो पार्ट कॉम्पलेक्स-शहीद बेहेश्टी तथा शहीद कालांतरी हैं. ईरान की अरिया बंदर ईरेनियन पोर्ट तथा मरीन सर्विसेस कं. (ABI) तथा भारत के इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लि. (IPGL) ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत दोनों टर्मिनल को साधन संपन्न बनाकर संचालित किया जाएगा. यह काम बेहिश्ती कॉम्पलेक्स के विकास के पहले चरण में ही कर लिया जाएगा.
इसके साथ ही चाबहार पोर्ट का विकास मध्य एशिया, कौकस क्षेत्र तथा अफ़गानिस्तान के साधन-संपन्न बाज़ारों के साथ सीधे जुड़ने को लेकर नई दिल्ली की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है. अक्टूबर 2017 में नई दिल्ली ने चाबहार के माध्यम से अफ़गानिस्तान को गेहूं भेजा था.[11] इसके पूर्ण होने पर चाबहार के पहले चरण का उद्घाटन 2017 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रुहानी ने 17 देश के अधिकारियों की मौजूदगी में किया था. 2018 में ईरान ने चाबहार पोर्ट के संचालन के अधिकार 18 माह के लिए IPGL को सौंपे थे. भारत ने भी इस पोर्ट को 6 मोबाइल हार्बर क्रेंस उपलब्ध करवाए थे. इसमें से दो 140 टन तथा चार 100 टन भार को संचालित कर सकती है. इसके अलावा 25 मिलियन अमेरिकी डालर के अन्य उपकरण भी सौंपे गए थे.[12]
इस पोर्ट का विकास चार चरणों में होगा और यह पूर्ण होने पर सालाना 82 मिलियन टन कार्गों का प्रबंधन करेगा. ऐसे में यह भविष्य में समुद्र परिवहन/नाववहन और कंटेनर को हैंडल करने संबंधी आवश्यकताओं को संभालने लायक बन जाएगा. नई दिल्ली का इरादा अगले चरण में इस पोर्ट की वर्तमान कार्गो हैंडलिंग क्षमता को आठ मिलियन टन से बढ़ाकर 18 मिलियन टन करने का है.[13] नई दिल्ली ने चाबहार के लिए 2019-20 में बजटीय आवंटन को 450 मिलियन रुपए से दोगुना करते हुए 2020-21 में 1 बिलियन रुपए कर दिया है. 2021-22 से 2024-25 के वित्त वर्ष में यह आवंटन प्रति वित्त वर्ष 100 करोड़ रुपए ही रहा था.[14]
2019 और 2021 के बीच चाबहार से 1.8 टन के बल्क और चिल्लर कार्गो लेकर 123 जहाज गुज़रे थे. अगस्त 2022 तक यहां के टर्मिनल ने 4.8 मिलियन टन बल्क कार्गो, जिसमें बांग्लादेश, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और रूस के ट्रांसशिपमेंट्स का समावेश था, को हैंडल किया था.[15] उस वक़्त से 90,000 20-फीट समानुपात यूनिट्स (TEUs) से ज़्यादा कंटेनर ट्रैफ़िक और 8.4 MMT से ज़्यादा बल्क और जनरल कार्गो का पोर्ट पर प्रबंधन किया गया है.[16]
टेबल 2: चाबहार पोर्ट में कार्गो हैंडलिंग (2018-19 से 2023-24 के बीच कंटेनर ट्रैफ़िक TEUs में)
वित्तीय वर्ष
|
कंटेनर ट्रैफ़िक (TEUs में)
|
2018-19
|
225
|
2019-20
|
5,782
|
2020-21
|
8,110
|
2021-22
|
1,478
|
2022-23
|
9,126
|
2023-24
|
60,088
|
स्रोत: विभिन्न सरकारी एवं मीडिया रिपोर्टों का उपयोग करके लेखक का अपना.
इस पोर्ट पर कंटेनर ट्रैफ़िक तथा जनरल कार्गो में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है. इसमें केवल 2021-22 में COVID-19 महामारी की वजह से गिरावट देखी गई थी. 2023-24 में इस पोर्ट ने 60,088 TEUs, को हैंडल किया था. यह संख्या 2022-23 में 9,126 के मुकाबले 558 प्रतिशत अधिक थी. 2024 के पहले छह महीनों में शहीद बेहेश्टी टर्मिनल ने अकेले ही 25,788 TEUs को हैंडल किया था, जिसमें बल्क कार्गो की हिस्सेदारी 1.5 MMT को पार कर गई थी.[17] चाबहार के माध्यम से व्यापार में वृद्धि इसलिए हुई है, क्योंकि इसका स्पेशल फ्री ज़ोन के साथ एकीकरण हो चुका है. इसके अलावा नई दिल्ली की ओर से जहाज संबंधी शुल्क और कार्गो हैंडलिंग शुल्क में दी जा रही रियायतों का भी योगदान है. भारत के शिपिंग मंत्रालय के अनुसार इस पोर्ट से गुज़रने वाले जहाजों की संख्या में 43 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है, जबकि यहां 2023-24 में कंटेनर ट्रैफिक 34 प्रतिशत बढ़ा है.[18]
लंबी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट्स एवं उनके आर्थिक औचित्य
चाबहार पोर्ट ने भी अपने स्तर पर अनेक चुनौतियों का मुकाबला किया है. विशेषत: इसके प्रशासन को लेकर आर्बीट्रेशन यानी मध्यस्थता को लेकर उठने वाली चुनौतियों के मामले में अनेक मर्तबा ईरान ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता ढांचे को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है. इसके परिणामस्वरूप 2018 से भारत यहां व्यापार करने के इच्छुक शिपर्स यानी जहाज वाहकों के साथ केवल एक वर्ष का ही अनुबंध कर हस्ताक्षर कर पाता था.[19] यह व्यवस्था ऐसे वाहकों के लिए अनुपयुक्त थी जो लंबी अवधि में स्थिरता और स्थायित्व चाहते थे. ईरानी पोर्ट प्राधिकारियों और उनके भारतीय समकक्षों ने इस मुद्दे का हल निकालने के लिए अनेक संयुक्त कार्य समूह की बैठकें की हैं. अगस्त 2023 में प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान के पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के साथ जोहांसबर्ग में हुए BRICS शिखर सम्मेलन के दौरान भी इस मुद्दे पर चर्चा की थी.[20]
अंतत: मध्यस्थता का मुद्दा हल होने के पश्चात 13 मई 2024 को भारत के पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री, सर्बानंद सोनोवाल तथा ईरान के शहरी विकास मंत्री फ़रज़ानेह सादेग की मौजूदगी में भारत के इंडिया पोर्ट ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (PMO) के बीच शाहिद बेहिश्ती पोर्ट टर्मिनल को 10 वर्षों तक संचालित करने के लिए एक अनुबंध हस्ताक्षरित किया गया. इस समझौते के तहत IPGL चाबहार के अगले चरण का विकास करने के लिए 120 मिलियन अमेरिकी डालर का निवेश करेगा. इसके अलावा 250 मिलियन अमेरिकी डालर की क्रेडिट लाइन उपलब्ध करवाई जाएगी, जिससे परियोजना का आगे विकास होगा तथा 32 जेट्टी का निर्माण किया जाएगा.[21] भारत की ओर से नए उपकरण भी ख़रीदे जाएंगे, जिसमें रीच स्टैकर्स, फोर्कलिफ्ट्स तथा न्यूमैटिक अनलोडर्स शामिल हैं. इनका उपयोग पोर्ट ऑपरेशंस को विस्तार देने के लिए किया जाएगा.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का मानना है कि 10 वर्षीय समझौते की वजह से “पोर्ट में आगे और बड़ा निवेश करने का रास्ता खुल गया है.’’ इसके साथ ही पोर्ट की कार्गों हैंडलिंग क्षमता में भी तेजी से वृद्धि होगी. दोनों ही पक्षों ने UN कमिशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ (UNCITRAL) के तहत मध्यस्थता के नियमों का पालन करने पर सहमति बना ली है.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का मानना है कि 10 वर्षीय समझौते की वजह से “पोर्ट में आगे और बड़ा निवेश करने का रास्ता खुल गया है.’’ इसके साथ ही पोर्ट की कार्गों हैंडलिंग क्षमता में भी तेजी से वृद्धि होगी.[22] दोनों ही पक्षों ने UN कमिशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ (UNCITRAL) के तहत मध्यस्थता के नियमों का पालन करने पर सहमति बना ली है. इसकी वजह से यहां आने वाले जहाज वाहकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा निवेशक भी इस पोर्ट में निवेश करने को लेकर ज़्यादा उत्सुक होंगे और निवेश करेंगे.
रणनीतिक आवश्यकता
21वीं सदी के आरंभ से ही चीन की यूरेशियाई पहलों ने उसकी वैश्विक महत्वकांक्षा का समर्थन करते हुए उसकी घरेलू आर्थिक एवं राजनीतिक चिंताओं से निपटने का काम किया है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) का लक्ष्य 2049 तक यूनाइटेड स्टेट्स (US) को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाना है. घरेलू स्तर पर चीन को ओवरकैपेसिटी यानी अतिक्षमता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. इसका कारण यह है कि चीन ने लोहा, स्टील, सीमेंट, एल्यूमिनियम समेत अन्य बिल्डिंग निर्माण सामग्री का ज़रूरत से ज़्यादा निर्माण कर लिया है. विश्लेषक हे याफेई लिखते हैं कि अब चीन इस चुनौती को ‘‘बाहर निकलते हुए अवसर’’ में बदलने का इच्छुक है. इसके लिए वह ‘‘विदेशों में अपनी विकास रणनीति और अपनी विदेश नीति’’ पर भरोसा कर रहा है.[23] इसी रणनीति की वजह से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में BRI की घोषणा की थी. BRI एक बुनियादी ढांचा विकसित करने की कोशिश है, जिसमें चीनी फर्मों को विदेशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. यह निवेश करने के लिए कर्ज़ भी चीन के सरकारी स्वामित्व वाली बैंकों से दिया जाएगा. BRI के माध्यम से चीन की कोशिश रणनीतिक रूप से अहम पोर्ट, प्राकृतिक संसाधनों और कर्ज़ में डूबे देशों की भूमि का नियंत्रण हासिल करने की है. वह इन देशों को तकनीक का हस्तांतरण करने के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं में इज़ाफ़ा करने के लिए बंद प्रक्रिया के तहत सहायता मुहैया करवाकर अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहता है.
1991 के बाद बीजिंग को CARs को अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक दायरे में लाने में सफ़लता मिली. इसका कारण यह था कि उस दौर में CARs का बाहरी दुनिया से संपर्क बेहद कम ही था. चीन ने इस क्षेत्र के हाइड्रोकार्बन संसाधनों में निवेश करते हुए अनेक पाइपलाइंस का निर्माण किया. वर्तमान में चीन अपने लिए 30 फीसदी प्राकृतिक गैस का आयात करता है. इसमें अधिकांश हिस्सेदारी तुर्कमेनिस्तान की है. वहां से यह गैस पाइपलाइंस के माध्यम से आती है जो बीजिंग तथा शंघाई को मध्य एशिया से जोड़ती है.[24] 2023 में CARs के साथ चीन का व्यापार 89 बिलियन अमेरिकी डालर पहुंच गया था.[25] इसके बावजूद BRI निवेश इस क्षेत्र को चीन के साथ एकीकृत करने में विफ़ल साबित हुए हैं क्योंकि उस निवेश में सीमित आर्थिक तथा रणनीतिक हित स्पष्ट दिखाई देते हैं. 2023 में जारी वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार CARs अब भी दुनिया की सबसे कम जुड़ी हुई अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं.[26]
BRI के फ्लैगशिप प्रोजेक्ट CPEC के तहत बीजिंग ने पाकिस्तान में लगभग 62 बिलियन अमेरिकी डालर का निवेश किया है. शी के अनुसार CPEC की चीन के लिए रणनीतिक तथा भू-राजनीतिक अहमियत बहुत ज़्यादा है. इसका कारण यह है कि यह ऐसी जगह पर स्थित है जहां सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और 21 वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड का संगम होता है.[27] CPEC पाक अधिकृत कश्मीर तक विस्तारित है और भारत के उत्तरी क्षेत्र को घेरता है. पाकिस्तान के साथ चीन के रणनीतिक संबंध, चीन को US-भारत रणनीतिक क्षेत्रीय सहयोग का मुकाबला करने में भी सहायक साबित होते हैं.[28] इसके अतिरिक्त 2000 से ही बीजिंग ने दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में 38 पोर्ट्स का निर्माण किया है. इसका उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा में अपने दख़ल को बढ़ावा देने का था. इसके अलावा BRI के दायरे में आने वाले 78 वर्तमान पोर्ट्स में चीन का दख़ल है. इसके अलावा 43 अन्य प्रस्तावित अथवा निर्माणाधीन पोर्ट्स में भी उसकी मौजूदगी है.[29] इसमें से कुछ पोर्ट्स का निर्माण दक्षिण एशिया में किया जा रहा है, जिन्हें ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ सिद्धांत के तहत देखा जा सकता है.[30] इसमें से एक पोर्ट पाकिस्तान का रणनीतिक ग्वादार पोर्ट है, जिसे 2013 में एक चीनी कंपनी को संचालन के लिए सौंप दिया गया था. उसके बाद से ही अब ग्वादार पोर्ट CPEC का हृदय बन गया है. यह हिंद महासागर को लेकर बीजिंग की समुद्री महत्वाकांक्षा का संकेत देता है.[31]
चाबहार पोर्ट भी नई दिल्ली की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास, व्यापार और अपने नज़दीकी और विस्तारित पास-पड़ोस में भू-रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाने संबंधी रणनीति के लिए अहम होने के साथ ही यह बीजिंग की बढ़ती मौजूदगी का मुकाबला करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. चाबहार पोर्ट, चीनी समर्थन वाले ग्वादार पार्ट से 170 किलोमीटर की दूरी पर है. ऐसे में इसे हिंद महासागर में BRI के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने के लिए रणनीतिक दांव भी माना जाता है. ईरानी सरकार को लेकर अपनी आशंकाओं के बावजूद खाड़ी में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखकर US भी काउंटरबैलेंस यानी जवाबी संतुलन के लिए चाबहार पोर्ट को महत्वपूर्ण मानता है. 2018 में नई दिल्ली ने ईरान में चाबहार समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने के लिए US से छूट हासिल की थी.
आर्थिक रूप से चाबहार पोर्ट भारत को मध्य एशिया तक सीधी पहुंच मुहैया करवाता है, जिसकी उसे बेहद ज़्यादा आवश्यकता थी. यह पोर्ट चीन-पाकिस्तान एक्सिस यानी धुरी को भी बायपास कर देता है. भारत के बढ़ते आर्थिक फुटप्रिंट को देखते हुए मध्य एशिया में भारतीय सामग्री और सेवाओं के लिए अनेक अवसर मौजूद हैं.
आर्थिक रूप से चाबहार पोर्ट भारत को मध्य एशिया तक सीधी पहुंच मुहैया करवाता है, जिसकी उसे बेहद ज़्यादा आवश्यकता थी. यह पोर्ट चीन-पाकिस्तान एक्सिस यानी धुरी को भी बायपास कर देता है. भारत के बढ़ते आर्थिक फुटप्रिंट को देखते हुए मध्य एशिया में भारतीय सामग्री और सेवाओं के लिए अनेक अवसर मौजूद हैं. इस क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन ऊर्जा एवं महत्वपूर्ण खनिज जैसे यूरेनियम बड़ी मात्रा में मौजूद है. ऐसे में चाबहार एक अहम निर्यात बिंदु तथा भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला साबित हो सकता है, जो पारंपरिक पश्चिम एशियाई बाज़ार पर निर्भरता को कम करेगा. कज़ाख़िस्तान के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा (आस्ट्रेलिया के बाद) यूरेनियम भंडार है, जबकि उज्बेकिस्तान यूरेनियम उत्पादन में पांचवें स्थान पर आता है.[32] 2015 में भारत के साथ हुए समझौते के अनुसार कज़ाख़िस्तान 2015 से 2019 के बीच भारत को 5,000 टन यूरेनियम की आपूर्ति करने के लिए प्रतिबद्ध है.[33] इस आपूर्ति को लेकर समझौता अब 2024 तक विस्तारित हो गया है, अत: भारत की यूरेनियम संबंधी 80 प्रतिशत आवश्यकताओं को कज़ाख़िस्तान ही पूरा करेगा.[34]
चाबहार पोर्ट में एक ट्रांजिट हब बनने की क्षमता है. यह भारत को INSTC के माध्यम से मध्य एशिया, द सदर्न कॉकस, यूरोप तथा रूस से जोड़ता है. 2013 में प्रस्तावित INSTC को अब 13 देशों ने अनुमोदित कर दिया है. पूरा होने के बाद सुएज कैनल के मुकाबले INSTC ट्रांजिट टाइम में 40 प्रतिशत तथा फ्रेट कॉस्ट यानी मालभाड़े में 30 प्रतिशत की कमी लाएगा. इसका ईस्टर्न कॉरिडोर [c] कज़ाख़िस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान के माध्यम से सीधी रेल लिंक का उपयोग करते हुए तुर्कमेनिस्तान की सीमा पर स्थित सराख्स और इंचे बुरुन बॉर्डर क्रासिंग पर ईरानी रेलवे नेटवर्क तक अपनी पहुंच स्थापित करेगा. इसकी वजह से CARs को अरब सागर और ईरान से होते हुए भारतीय पोर्ट्स तक सीधी पहुंच उपलब्ध हो जाएगी.[35] पश्चिमी मार्ग भारत को अजरबैजान और रूस से कैस्पियन सी के पश्चिमी तट के माध्यम से जोड़ेगा. बाकू में पश्चिमी रुट यूरोप की ओर जाने वाले मिडिल कॉरिडोर को जोड़ेगा.
INSTC के मिसिंग लिंक्स पर काम 2018 में ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से अटक गया था. पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से रूस के उत्तरी कॉरिडोर से भी व्यापार प्रभावित हुआ. इसका कारण 2022 में शुरू हुआ यूक्रेन युद्ध था. इसी वजह से मॉस्को पश्चिमी INSTC में निवेश करने पर बाध्य हुआ था. मई 2023 में रूस तथा ईरान ने ईरानी शहर रश्त तथा अंजली से अस्तारा को जोड़ने वाली 164 किलोमीटर रेलवे लाइन पर काम को गति प्रदान की. इसके लिए रूस ने ईरान को 1.4 बिलियन अमेरिकी डालर का इंटरस्टेट लोन दिया है, जिसके सहयोग से यह रेल लाइन 2027 तक पूर्ण हो जाएगी.[36] इसके बावजूद जुलाई 2022 में रूस के अस्तारखान पोर्ट से इसी मार्ग का उपयोग करते हुए माल की पहली खेप भारत के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट पहुंची. 2023 में INSTC के ईस्टर्न तथा वेस्टर्न कॉरिडोर के माध्यम से 19 मिलियन टन कार्गों का परिवहन किया गया. 2022 में इन्हीं मार्गों से 14 मिलियन टन कार्गों का परिवहन हुआ था. 19 मिलियन टन कार्गों में से 12.5 मिलियन टन का परिवहन रेल से हुआ था.[37] लेकिन इसमें से अधिकांश कार्गो परिवहन अंतरक्षेत्रीय था और ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट की ओर जा रहा था.
जून 2017 में नई दिल्ली ने भारत तथा मध्य एशिया के बीच ईरान के माध्यम से सामग्री परिवहन को व्यवस्थित करने और परिवहन में लगने वाले वक़्त में कटौती करने के लिए TIR कार्नेट्स [d] की आड़ लेकर इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट ऑफ गुड्स के कस्टम्स कंवेंशन को स्वीकार कर लिया. फरवरी 2018 में भारत ने अश्गाबात समझौते से भी जुड़ने का फ़ैसला किया. यह एक मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट समझौता है, जिसमें ईरान, ओमान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं.[38] भारत ने चाबहार पोर्ट के माध्यम से मध्य एशिया से जुड़ने के विकल्प भी देखें. लेकिन 628 किलोमीटर लंबी चाबहार-जाहेदान प्रतिबंधों की वजह से ये विकल्प लंबित हैं. इस वजह से नई दिल्ली को इस रणनीतिक रेल लाइन से अलग होना पड़ा है. हालांकि ईरान इस रेल लाइन के ट्रैक बिछाने के काम को लेकर आगे बढ़ गया है और उम्मीद है कि यह महत्वपूर्ण रेल लाइन इस वर्ष पूर्ण हो जाएगी.[39] ऐसा होने पर चाबहार की क्षमता में वृद्धि होगी और यह मध्य एशिया तथा यूरेशिया का गेटवे बन जाएगा, क्योंकि यह लाइन INSTC तथा ईरानी रेल नेटवर्क को जोड़ देगी.
चाबहार के माध्यम से कनेक्टिविटी की वजह से मध्य एशिया तथा साउथ कॉकस रिजन के साथ व्यापार को बल मिलेगा. वर्तमान में यह व्यापार केवल 5 बिलियन अमेरिकी डालर का है, जबकि यहां 2017 में ही 170 बिलियन अमेरिकी डालर व्यापार की संभावना आंकी गई थी. इसमें यूरेशिया को होने वाला 60.6 बिलियन अमेरिकी डालर का भारतीय निर्यात तथा यूरेशिया से भारत को होने वाला 107.4 बिलियन अमेरिकी डालर आयात शामिल है.[40] भारत की आर्थिक विकास की गति को देखते हुए यहां के व्यापार को उसकी क्षमता के हिसाब से भी दोगुना हो जाना चाहिए था.
CARs का दृष्टिकोण
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी मध्य एशिया को भारत जैसे नए साझेदारों की ओर देखने पर मजबूर होना पड़ा है. CARs अब भारत के साथ कूटनीतिक चैनल्स, समझौतों पर हस्ताक्षर करने और नेताओं की निरंतर यात्राओं के माध्यम से करीबी संबंध स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. 2015 से ही CARs भारत के साथ कनेक्टिविटी को जोड़ने के इच्छुक हैं. इसके लिए वे चाबहार तथा INSTC का उपयोग करने में रुचि ले रहे हैं. इसका एक संकेत तो CARs का भारत को अश्गाबात समझौते में शामिल करना है, जिसकी वजह से भारत को मध्य एशिया तथा यूरेशिया में मौजूद वर्तमान लैंड कनेक्टिविटी जैसे कि कज़ाख़िस्तान-तुर्कमेनिस्तान-ईरान (KTI) रेल लाइन का उपयोग करने की मंजूरी मिल गई है. नई दिल्ली ने भी इसके बदले में इस क्षेत्र को 1 बिलियन अमेरिकी डालर की लाइन ऑफ क्रेडिट मुहैया करवा दी है ताकि वे अपने यहां बुनियादी ढांचे के विकास समेत ताजिकिस्तान के दुशांबे-चोर्टुट राजमार्ग का काम भी करेंगे.[41]
1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद से ही CARs ने कनेक्टिविटी, सुरक्षा और व्यापार में रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने का प्रयास किया है. वे ऐसा मल्टी-वेक्टर फॉरेन पॉलिसी के माध्यम से हासिल करना चाहते हैं, लेकिन वे अलग-अलग ही दिखाई देते हैं. इसी वजह से वे चीन के साथ करीबी से जुड़ गए. लेकिन अब इस क्षेत्र में चीन विरोधी स्वर उठने लगे हैं. CAR के नागरिकों को कर्ज़ कूटनीति, भूमि संसाधनों पर होने वाले अतिक्रमण और क्षेत्र में निजी चीनी सुरक्षा कंपनियों में हो रहे इज़ाफ़े को लेकर चिंता हो रही है. इन निजी सुरक्षा कंपनियों की तैनाती चीनी आर्थिक हितों के साथ BRI की सुरक्षा के नाम पर की गई है. लेकिन चीन के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाजों में उसके शिंगजियांग प्रांत में उइगर, किर्गिज, कज़ाक तथा अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ होने वाला बर्ताव सबसे अहम मुद्दा है.
चीन के एकाधिकार हासिल करने के अभियान और BRI की अगुवाई वाली बुनियादी सुविधा वाली परियोजनाओं से जुड़े संकीर्ण आर्थिक हितों के विपरीत भारत ने हमेशा से भरोसेमंद, टिकाऊ और विविधतापूर्ण और संपूर्ण पारगमन अधिकारों वाली आपूर्ति श्रृंखलाओं पर बल दिया है. भारत की अगुवाई वाली अधिकांश कनेक्टिविटी परियोजनाओं ने हमेशा ही परामर्शपूर्ण पारदर्शी कनेक्टिविटी पर बल दिया है, जो क्षेत्रीय एकता तथा संप्रभुता का सम्मान करने वाली होती हैं.[42] यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीच बीजिंग ने इस क्षेत्र में अपना रुतबा बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन CARs ने अब कनेक्टिविटी, सुरक्षा तथा व्यापार के क्षेत्र में नए साझेदारों की ख़ोज में अपने संसाधनों एवं कूटनीति को जुटाते हुए इसे पुख़्ता किया है. CARs भी मिडिल कॉरिडोर जैसे नए रेजिलियंट/टिकाऊ कनेक्टीविटी कॉरिडोर में तेजी से आगे बढ़ रहे है. यह कॉरिडोर इस क्षेत्र को साउथ कॉकस के माध्यम से सीधे यूरोप के साथ जोड़ता है.[43]
सोवियत के बाद के दौर में चीन तथा रूस के बीच स्थित CARs चाबहार पोर्ट को एक ऐसे अवसर के रूप में देखते हैं जो उन्हें अपने निर्यात बाज़ार में विविधता लाने में सहायक साबित होगा. यह पोर्ट उन्हें सीधे दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया एवं उसके आगे पहुंच उपलब्ध करवाएगा, जिसका वे व्यापार तथा भूकूटनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकेंगे. प्राथमिक रूप से CARs का लक्ष्य नई दिल्ली के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ चाबहार के माध्यम से भारत तक अपनी कनेक्टिविटी में सुधार करना भी है.
निष्कर्ष
भू-राजनीतिक बदलाव, आर्थिक महत्वकांक्षा और क्षेत्र के साथ ऐतिहासिक संबंधों के संगम ने चाबहार को भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक तथा भू-राजनीतिक साधन बना दिया है. यह पोर्ट केवल मैरीटाइम गेटवे और नई दिल्ली की आर्थिक महत्वकांक्षा की ही आधारशिला नहीं है, बल्कि यह हिंद महासागर में बीजिंग की नीति के लिए स्ट्रैटेजिक काउंटरबैलेंस यानी रणनीतिक प्रत्युत्तर भी है जो संतुलन साधने का काम करता है. चाबहार को लेकर हालिया 10 वर्षों का समझौता इस बात का संकेत है कि नई दिल्ली अब इस क्षेत्र में एक भरोसेमंद एवं ज़िम्मेदार साझेदार के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने की विस्तारित दृष्टि रखता है. वैश्विक व्यवस्था में हो रहे टेकटोनिक शिफ्ट यानी विशाल बदलाव के चलते INSTC तथा मिडिल कॉरिडोर के साथ पोर्ट अब प्रमुखता हासिल करते जा रहे हैं.
चाबहार पोर्ट को विकसित करने की भारत की आकांक्षा के बावजूद इसमें अभी अनेक चुनौतियां हैं जिससे निपटा जाना है. इन चुनौतियों में बुनियादी विकास, नौकरशाही के अड़ंगे और भू-राजनीतिक तनावों का समावेश है, जिसकी वजह से INSTC के साथ पोर्ट्स की कनेक्टिविटी में रोड़े अटक रहे हैं. इनसे निपटने के लिए नई दिल्ली को राजनायिक कोशिशों और पश्चिमी साझेदारों के साथ मिलकर रणनीतिक निवेश करते हुए अपनी प्रतिबद्धतता में निरंतरता को दर्शाना पड़ेगा. यह पोर्ट नई दिल्ली को एक क्षेत्रीय समुद्री क्षेत्र शक्ति के रूप में स्थापित करने का अवसर देते हुए यूरेशियाई भूराजनीति एवं भूअर्थनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है. इस पोर्ट की वजह से भारत को क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी में सुधार में योगदान देने का अवसर मिलेगा और वह इससे लाभान्वित भी होगा.
Endnotes
[a] According to Mackinder, the “world island” comprises Europe, Asia, and Africa, containing two-thirds of the earth’s terrestrial surface. He believed that controlling the heartland of the world island, which includes the Central Asian River basins and the two seas, would mean controlling the world. See Halford J. Mackinder, “The Round World and the Winning of the Peace,” Foreign Affairs, 1943. https://www.jstor.org/stable/20029780
[b] 1 nm equals 1.85 km.
[c] The INSTC has three corridors—eastern, middle, and western.
[d] TIR, or Transports Internationaux Routiers (French for ‘international road transport’) is a globally accepted Customs document that allows goods to move across international borders.
[1] Raj Kumar Kothari, “India’s Strategic Interests In Central Asia”, World Affairs: The Journal of International Issues, 2020.
[2] Abhishek De, “Why Chabahar port, seen as counter to Pakistan's Gwadar, matters to India”, India Today, May 16, 2024, https://www.indiatoday.in/india/story/chabahar-port-india-iran-deal-2024-strategic-importance-china-pakistan-gwadar-port-2539799-2024-05-16
[3] Ministry of External Affairs, “Keynote Address by MOS Sri E. Ahamad at First India- Central Asia Dialogue, Government of India , 2012.
[4] Embassy of India, “Statement by External Affairs Minister at the First Session of the India-Central Asia Dialogue”Tashkent, Uzbekistan, 2019, https://eoi.gov.in/Tashkent/?7629?004
[5] Embassy of India, “Statement by External Affairs Minister at the First Session of the India-Central Asia Dialogue”Tashkent, Uzbekistan, 2019,
[6] Ministry of External Affairs, “Delhi Declaration of the 1st India-Central Asia Summit”, Government of India, January 27 2022.
[7] Press Trust of India. “India, Eurasian Economic Union bloc officials hold talks to formally start negotiation for FTA.” The Indian Express, April 2, 2024.
[8] Harsh V. Pant, Ayjaz Wani, “India's Central Asian outreach.” The Hindu, October 25, 2021. https://www.thehindu.com/opinion/op-ed/indias-central-asian-outreach/article37154609.ece
[9] “Chabahar – The third largest port of Iran in the making: Interview with Arun Kumar Gupta, MD Ports Global Ltd.” Maritime Gateway. July 13, 2020.
[10] “India and Iran sign 'historic' Chabahar port deal”, BBC, May 23, 2016, https://www.bbc.com/news/world-asia-india-36356163
[11] Harsh V Pant. “India-Iran Cooperation at Chabahar Port: Choppy Waters.” CSIS. 2018. https://www.csis.org/analysis/india-iran-cooperation-chabahar-port-choppy-waters.
[12] Indo-Asian News Service. “Iran seeks long-term contract with India on developing Chabahar port.” The Economic Times, August 26, 2022.https://economictimes.indiatimes.com/news/india/iran-seeks-long-term-contract-with-india-on-developing-chabahar-port/articleshow/93795317.cms?from=mdr
[13] SubhashNarayan. “India, Iran sign long-term contract for Chabahar Port after years of talks.”Mint, May 13, 2024. https://www.livemint.com/news/india/india-iran-sign-long-term-contract-for-chabahar-port-after-years-of-talks-11715603721790.html.
[14] Ministry of Finance, Government of India. “Notes on Demands of Grants.” India Budget.2024.https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe29.pdf.
[15] Ayjaz Wani. “Slow, Not Steady: Assessing the Status of India-Eurasia Connectivity Projects.” Observer Research Foundation. February 3, 2023. https://www.orfonline.org/research/slow-not-steady-assessing-the-status-of-india-eurasia-connectivity-projects#_edn8
[16] Dinakar Peri and Suhasini Haidar. “India, Iran sign 10-year contract for Chabahar port operation.” The Hindu, May 13, 2024. https://www.thehindu.com/news/national/india-iran-sign-long-term-bilateral-contract-on-chabahar-port-operation/article68171624.ece
[17] “India, Iran to sign Chabahar contract after 2024 elections.” Maritime Gateway, 2024.
https://www.maritimegateway.com/india-iran-to-sign-chabahar-contract-after-2024-elections/.
[18] PIB, “Development of Chabahar Port”, Ministry of Ports, Shipping and Waterways, Government of India, July 26, 2024, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=2037450
[19] Kallol Bhattacherjee, “India and Iran dropped the foreign arbitration clause in the Chabahar port issue.” The Hindu, August 25, 2023.
https://www.thehindu.com/news/national/india-and-iran-drop-foreign-court-arbitration-for-chabahar-port/article67234071.ece
[20] Dinakar Peri and Suhasini Haidar. “India, Iran sign 10-year contract for Chabahar port operation.” The Hindu, May 13, 2024. https://www.thehindu.com/news/national/india-iran-sign-long-term-bilateral-contract-on-chabahar-port-operation/article68171624.ece.
[21] Dinakar Peri and Suhasini Haidar. “India, Iran sign 10-year contract for Chabahar port operation.”
[22] Subhash Narayan. “India, Iran sign long-term contract for Chabahar Port after years of talks.” Mint, May 13, 2024, https://www.livemint.com/news/india/india-iran-sign-long-term-contract-for-chabahar-port-after-years-of-talks-11715603721790.html.
[23] He Yafei, “Chinese Overcapacity Crisis Can Spur Growth through Overseas Expansion,” South China Morning Post, January 7, 2014, https://www.scmp.com/comment/insight-opinion/article/1399681/chinas-overcapacity-crisis-can-spur-growth-through-overseas
[24] Ayjaz Wani. “Amid Russia-Ukraine Conflict, Advantage China in Central Asia.” Observer Research Foundation. November 23, 2023, https://www.orfonline.org/research/amid-russia-ukraine-conflict-advantage-china-in-central-asia
[25] ChuDaye. “Trade, economic cooperation between China, Central Asian countries on fast lane: analyst.” Global Times, May 20, 2024.
[26] World Bank. “Regional Cooperation Reduces Poverty and Builds Resilience in Central Asia.” December 6, 2023.
[27] Amna E. Rafi. “BRI and its flagship project CPEC.” The Express Tribune, December 9, 2023. https://tribune.com.pk/story/2449372/bri-and-its-flagship-project-cpec
[28] James Schwemlein, Strategic Implications of the China-Pakistan Economic Corridor, Washington DC, Carnegie Endowment for International Peace, 2019, https://carnegieendowment.org/2019/12/16/strategic-implications-of-china-pakistan-economic-corridor-pub-80611
[29] Kira Schacht. “Pakistan's Gwadar port shows China's Belt and Road can fail.” DW. May 13, 2024. https://www.dw.com/en/pakistans-gwadar-port-shows-chinas-belt-and-road-can-fail/a-68992914
[30] Iskander Rehman. “China's String of Pearls and India's Enduring Tactical Advantage.” IDSA. June 8, 2010. https://www.idsa.in/idsacomments/ChinasStringofPearlsandIndiasEnduringTacticalAdvantage_irehman_080610
[31] Afridi, J., & Bajoria, J. (2010). China-Pakistan Relations. Council on Foreign Relations, 6, 27-46.
[32] YangJiang. “China leading the race for influence in Central Asia.” Dansk Institut for Internationale Studier. October 10, 2022.https://www.diis.dk/en/research/china-leading-the-race-influence-in-central-asia
[33] “Kazakhstan to supply 5,000 T uranium to India in 2015-19 -Nazarbayev.” Reuters, July 8, 2015.https://www.reuters.com/article/world/us/kazakhstan-to-supply-5-000-t-uranium-to-india-in-2015-19-nazarbayev-idUSL8N0ZO0VD/
[34] Press Trust of India, “India and Kazakhstan to renew uranium supply contract for 2020-24.” Business Standard, November 18, 2019, https://www.business-standard.com/article/pti-stories/india-kazakhstan-to-renew-uranium-supply-contract-for-2020-24-119111801605_1.html
[35] Evgeny Vinokurov, Arman Ahunbaev, Marat Shashkenov, and Alexander Zaboev, “The International North–South Transport Corridor: Promoting Eurasia's Intra- and Transcontinental Connectivity, Reports and Working Papers, 21/5, Eurasian Development Bank, 2021, https://ssrn.com/abstract=4008994
[36] AyjazWani. “Exploring Prospects for India-Azerbaijan Ties Through Connectivity Projects”, Observer Research Foundation, January 22,2024.https://www.orfonline.org/research/exploring-prospects-for-india-azerbaijan-ties-through-connectivity-projects#_ednref16
[37] E. Vinokurov, (Editor), S. Amangeldy, A. Ahunbaev, A. Zaboev, A. Kuznetsov, A Malakhov, The Eurasian Transport Network. Reports 24/6, 2024, .Eurasian Development Bank, Almaty,. https://eabr.org/en/analytics/special-reports/the-eurasian-transport-network/
[38] Embassy of India, Tashkent, Uzbekistan. “Statement by External Affairs Minister at the Second Session of the India-Central Asia Dialogue.” Embassy of India. https://eoi.gov.in/tashkent/?7630?005
[39] “Zahedan-Chabahar railway to be completed by Mar. 2024.” Tehran Times. 2024.https://www.tehrantimes.com/news/470675/Zahedan-Chabahar-railway-to-be-completed-by-Mar-2024
[40] P. Stobdan and Ashok Behuria, G. Balachandran, Chabahar: Gateway to Eurasia, (Ladakh International Centre, 2017)
[41] Indo-Asian News Service. “India becomes a key player in Central Asia riding on infra projects.” ET Infra, December 23, 2022. https://infra.economictimes.indiatimes.com/news/urban-infrastructure/india-becomes-a-key-player-in-central-asia-riding-on-infra-projects/96451374
[42] Ayjaz Wani. “Decoding India's Priorities at the SCO: Connectivity, Counterterrorism, and Afghanistan.” Observer Research Foundation. August 9, 2023. https://www.orfonline.org/research/decoding-indias-priorities-at-the-sco-connectivity-counterterrorism-and-afghanistan#_ednref46
[43] Ayjaz Wani, “The Middle Corridor: Reviving Connectivity for EU-Central Asia Trade and India’s Strategic Imperative,” Occasional Paper No. 449, September 2024, Observer Research Foundation.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.