Author : Harsh V. Pant

Published on Aug 06, 2022 Commentaries 0 Hours ago

काबुल पहुंचे भारतीय दल पर चीन और पाकिस्‍तान की पैनी नजर है. आखिर भारतीय दल की इस यात्रा के क्‍या निहितार्थ है. चीन और पाकिस्‍तान को भारतीय दल की यात्रा क्‍यों अखर रही है. चीन और पाकिस्‍तान को बड़ी चिंता क्‍या है.

भारत से संबंध बढ़ाने के लिए उत्सुक तालिबान, कश्मीर पर किया चीन और पाकिस्तान से अलग रुख़ का ऐलान

तालिबान के कब्ज़े के बाद भारतीय दल अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर पहुंचा है. भारतीय दल ने तालिबान हुकूमत से कई मुद्दों पर बातचीत की है. काबुल पहुंचे भारतीय दल पर चीन और पाकिस्‍तान की पैनी नज़र है. आखिर भारतीय दल की इस यात्रा के क्‍या निहितार्थ है. चीन और पाकिस्‍तान को भारतीय दल की यात्रा क्‍यों अखर रही है. चीन और पाकिस्‍तान की बड़ी चिंता क्‍या है. क्‍या भारत और तालिबान के साथ कूटनीतिक रिश्‍ते शुरू हो रहे हैं. इन तमाम मसलों पर क्‍या है विशेषज्ञ प्रो हर्ष वी पंत की राय.

तालिबान ने काबुल में सत्‍ता ग्रहण करने के बाद साफ कर दिया था कि वह अपनी धरती का इस्‍तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं करेगा. तालिबान का यह स्‍टैंड पाकिस्‍तान के लिए बड़ा झटका था.

1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि पाकिस्‍तान अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान हुकूमत का हिमायती रहा है. अमेरिकी सैनिकों की अफ़ग़ानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान के समर्थन में वह खुलकर सामने आया था. पाकिस्‍तान की मंशा ज़रूर रही होगी कि वह वहां सक्रिय आतंकवादियों के रुख़ को कश्‍मीर घाटी की ओर मोड़ सके. हालांकितालिबान ने काबुल में सत्‍ता ग्रहण करने के बाद साफ कर दिया था कि वह अपनी धरती का इस्‍तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं करेगा. तालिबान का यह स्‍टैंड पाकिस्‍तान के लिए बड़ा झटका था. अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद भारत ने अपने दूतावास के सभी कर्मियों को वापस बुला कर यह संकेत दिया था कि अफ़ग़ानिस्तान में वह लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन करता है.

2- उन्‍होंने कहा कि चीन और पाकिस्‍तान तालिबान हुकूमत को भारत के ख़िलाफ इस्‍तेमाल करना चाह रहे थे. शुरुआत में पाकिस्‍तान सरकार ने इसके लिए प्रयास भी किएलेकिन तालिबान ने अपने स्‍टैंड को साफ कर दिया था. इतना ही नहींउन्‍होंने भारत से कई बार अपने संबंधों को सामान्‍य बनाने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की थीलेकिन भारत अपने स्‍टैंड पर कायम है. हालांकिभारत यह जानता है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान के विकास कार्यों में लाखों करोड़ रुपये का निवेश कर रखा है. उसको अपने निवेश की चिंता है.

पाकिस्तान और चीन भारत के रुख़ से चौकन्ना 

3- हर्ष पंत के मुताबिक, तालिबान के सत्ता ग्रहण करने से पहले भारत पर्दे के पीछे से उसके संपर्क में रहा है. हालांकिअब भारत सीधे अफ़ग़ानिस्तान में एंट्री कर रहा है. भारत ने इसे मानवीय सहायता से जुड़ी मुलाकात बताया हैलेकिन पाकिस्तान और चीन भारत के इस रुख़ से चौकन्ना हो गए हैं. पाकिस्तान अपने आप को हमेशा अफगानिस्तान का मददगार दिखाने में लगा रहा हैलेकिन असल में मदद हमेशा भारत ने की है. खाने के लिए गेहूंदवाई की मदद भारत ने की है. वहींपाकिस्तान ने उसे घटिया क्वालिटी का गेहूं दिया.

तालिबान के सत्ता ग्रहण करने से पहले भारत पर्दे के पीछे से उसके संपर्क में रहा है. हालांकि, अब भारत सीधे अफ़ग़ानिस्तान में एंट्री कर रहा है. भारत ने इसे मानवीय सहायता से जुड़ी मुलाकात बताया है, लेकिन पाकिस्तान और चीन भारत के इस रुख़ से चौकन्ना हो गए हैं.

4- भारत के विरोधी चीन और पाकिस्‍तान तालिबान हुकूमत पर अपनी पकड़ बनाने में लगे रहे. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुरुवार को जब भारतीय दल तालिबान के साथ मुलाकात करने के लिए पहुंचा तो चीनी राजदूत डिंग यिनां ने तालिबान के उपविदेश मंत्री शेर मोहम्‍मद अब्‍बास से मुलाकात की थी. इस घटना को चीन की चिंता के रूप में देखा जाना चाहिए. भारतीय दल के काबुल पहुंचते ही चीन कैसे सक्रिय हो गया. 

5- प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अब अगर चीन और पाकिस्तान तालिबान के करीब हो जाते हैं तो इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत को ही होगा. तालिबान के जरिए पाकिस्तान भारत में आतंकवाद बढ़ा सकता हैतो वहीं चीन आर्थिक मोर्चे पर भारत को नुकसान पहुंचा सकता है. पुराने तालिबान के साथ भारत का अनुभव अच्छा नहीं रहा हैलेकिन नया तालिबान लगातार इस बात को कहता रहा है कि वह भारत के ख़िलाफ अपनी जमीन को इस्तेमाल नहीं होने देगा. इसके साथ ही तालिबान 2.0 ने कहा है कि वह कश्मीर जिहाद को समर्थन नहीं देगा. 

क़तर और रूस में आमने-सामने तालिबान और भारत

भारतीय प्रतिनिधियों की पहले क़तर और अब रूस में तालिबान प्रतिनिधियों से मुलाकातें भी हो चुकी है. पर्दे के पीछे संवाद की कुछ खिड़कियां भी खुली रखी गईं हैं. बताया जाता है कि सरकार अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास के कामकाज न्यूनतम स्टाफ के साथ शुरू करने पर भी विचार कर रही है. इसके लिए एक सिक्योरिटी आडिट भी गत दिनों करवाया गया था. भारतीय राजनयिक टीम का अफगानिस्तान दौरा हाल ही में 27 मई को तजाकिस्तान में हुई शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के बाद सामने आया है. अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के बाद से वह भारत से बेहतर संबंध चाहता है. अब अफगानिस्तान तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने कहा है कि तालिबान अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास और वाणिज्य दूतावास की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देगा. इतना ही नहींतालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने फिर कहा है कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय दूतावास और वाणिज्य दूतावास की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने को तैयार है. भारत को तालिबान से वार्ता शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए और हाल के दिनों में तालिबान और भारत के बीच पर्दे के पीछे कई स्तर पर बातचीत हुई है. तालिबान भारत जैसे देश को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर नहीं रखना चाहता है और यही कारण है कि तालिबान ने लगातार ऐसे संकेत दिए हैं कि वह भारत से बेहतर संबंध चाहता है. 

तालिबान राज और भारत 

भारतीय राजनयिक टीम का अफ़ग़ानिस्तान दौरा अगस्त 2021 में तालिबान राज आने के बाद काबुल में पहली उच्च स्तरीय मौजूदगी है. भारत ने 15 अगस्त को अफगनिस्तान में मची सियासी अफरा-तफरी के बाद दूतावास सेवाएं 17 अगस्त 2021 से अस्थाई तौर पर बंद कर दी थीं. सभी भारतीय राजनयिकों और नागरिकों को भी निकासी मिशन के जरिए निकाल लिया गया था. विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारतीय दल उन साइट्स का भी दौरा करेगी जहां भारत की सहायता परियोजनाएं चल रही हैं. इस दौरान कई मसलों पर बातचीत की गई.

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यह लेख मूल रूप से जागरण में प्रकाशित हो चुका है.

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