Special ReportsPublished on Mar 25, 2025
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Strategic Premises For The Future Of India S Air Power

‘भारतीय वायुसेना के सुनहरे भविष्य के लिये ज़रूरी रणनीतिक आधार’

  • Diptendu Choudhury

    दीप्तेंदु चौधरी, भारतीय वायुसेना के सुनहरे भविष्य के लिये ज़रूरी रणनीतिक आधार, ओआरएफ़ स्पेशल रिपोर्ट नं. 250, फरवरी 2025, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन

प्रस्तावना

आधुनिक युद्धों में हवाई ताक़त की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. यानी आज के दौर के युद्धों और भविष्य के युद्धों में जो भी देश अपने आसमान का जितना अधिक उपयोग करने में महारत रखेगा और अपनी हवाई मारक क्षमता का जितना ज़्यादा इस्तेमाल करने की काबिलियत रखेगा, साथ ही जितनी तेज़ी के साथ ज़रूरत के मुताबिक़ हवाई युद्ध के लिए आवश्यक तकनीक़ी दक्षता हासिल करेगा, वो उतना ही ताक़तवर सिद्ध होगा. दुनिया में हाल को दिनों में जो भी युद्ध हुए हैं, या चल रहे हैं, उनमें यह बात साबित हुई है. यूक्रेन के ख़िलाफ़ लड़ाई में रूस ने जिस प्रकार से अपने अपनी हवाई ताक़त का भरपूर इस्तेमाल किया है, गाज़ा और लेबनान में इजराइल ने जिस तरह से भीषण हवाई हमलों को अंज़ाम दिया है, उनमें वायु शक्ति का महत्व स्पष्ट दिखाई देता है. इसी प्रकार से म्यांमार के जुंटा विरोधियों के ख़िलाफ़ जिस प्रकार से वहां की सेना ने हवाई हमले किए हैं, हूती विद्रोहियों की तरफ से लाल सागर में अपने दबदबा स्थापित करने और जहाजों की आवाजाही को बाधित करने के लिए जिस तरह से ड्रोन और मिसाइल हमलों को अंज़ाम दिया गया है, साथ ही सीरिया और इराक़ में कुर्द आतंकवादियों पर तुर्किये द्वारा हवाई हमले किए गए हैं और अफ़ग़ानिस्तान में हाल ही में जिस तरह से पाकिस्तानी वायुसेना ने आक्रामकता दिखाई है, उनसे भी पता चलता है कि किसी देश के पास हवाई हमले की ताक़त होना कितना ज़रूरी है.

इन सभी उदाहरणों से यह भी पता चलता है कि देशों द्वारा सभी तरह की लड़ाइयों और संघर्षों में हवाई हमले की अपनी क्षमता का इस्तेमाल दूसरे पक्ष पर दबाव डालने और अपनी सैन्य ताक़त का एहसास कराने के लिए किया जाता है. इसके अलावा चीन द्वारा ताइवान के ख़िलाफ़ अपनी हवाई मारक क्षमता का प्रदर्शन भी इसी तरह का उदाहरण है. ज़ाहिर है कि चीन द्वारा ताइवान के हवाई क्षेत्र का अतिक्रमण करने के लिए अपने बड़े लड़ाकू विमानों का आक्रामक तरीक़े से उपयोग किया जाता है. चीन की इन हरकतों ने कहीं न कहीं दोनों देशों को अलग करने वाले जलडमरूमध्य में विभाजन रेखा के वज़ूद को ही एक प्रकार से समाप्त कर दिया है.[1] इसीलिए, देखा जाए तो किसी भी देश की सैन्य सुरक्षा के लिए ज़मीन और समुद्र दोनों ही जगहों पर हवाई क्षेत्र की सुरक्षा बेहद ज़रूरी हो गई है. कहने का मतलब है कि हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण सिर्फ वायु सेना के लिहाज़ से ही ज़रूरी नहीं है, बल्कि ज़मीन, हवा और समुद्र पर होने वाले युद्धों के लिहाज़ से भी बहुत आवश्यक है.

भारत के संदर्भ में कुछ मुख्य बातें

मौज़ूदा वक़्त में दुनिया भर में जो भी युद्ध और संघर्ष चल रहे हैं, वो कहीं न कहीं भारत के लिए अपनी हवाई ताक़त और सुरक्षा के संदर्भ में कई चीज़ों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं. ज़ाहिर है कि भारत को अपने दो पड़ोसी देशों यानी चीन और पाकिस्तान से लगातार ख़तरा बना हुआ है, ये दोनों ही देश परमाणु ताक़त से लैस हैं और दोनों के पास शक्तिशाली वायुसेनाएं हैं. भारत की बात की जाए, तो भविष्य में अगर यहां युद्ध होते हैं, तो उनमें निश्चित तौर पर विवादित हवाई क्षेत्र ज़रूर शामिल होंगे. इसके अलावा, अपने हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए भारत को किसी भी हद तक जाकर लड़ाई करनी होगी. फिर चाहे वो लड़ाई सामरिक युद्ध क्षेत्र के लिए हो, देश की हवाई सीमा में दुश्मन को घुसने से रोकने के लिए हो, या फिर सैन्य कार्रवाई के लिए उच्च जोख़िम वाले हवाई क्षेत्रों की रक्षा के लिए हो. कहने का मतलब है कि अगर भारत का अपने हवाई क्षेत्रों पर पुख्ता नियंत्रण नहीं होगा, तो उसे दुश्मन देशों की वायु सेनाओं द्वारा आक्रामक कार्रवाई का सामने करना पड़ेगा और इससे कहीं न कहीं ज़मीन पर लड़े जा रहे युद्धों पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा.[2]

 

ऐसे में अगर यह माना जाता है कि भविष्य में भारत कोई भी युद्ध, फिर चाहे वो ज़मीन पर लड़ा जाए या फिर समुद्र में, उसे हवाई ताक़त के आक्रामक इस्तेमाल के बगैर लड़ा या जीता जा सकता है, तो यह एक भुलावे की तरह ही होगा. हालांकि, वर्तमान में भारत की हवाई मारक क्षमता कई वजहों से तेज़ी से कम होती जा रही है. इनमें दुश्मन की तुलना में लड़ाकू विमानों की संख्या में कमी, बेहतर हथियार पेलोड क्षमता, उच्च मिशन दर, एयरफ़ील्ड्स की अधिक संख्या, कम परंपरागत स्थानों और कम ऊंचाई पर विमानों और हेलिकॉप्टरों को तैनात करने और रिकवरी की क्षमता[3] मिशनों के बीच तेज़ी से होने वाले बदलाव के साथ-साथ हवा से हवा में विमान (A-A) में ईंधन भरने की क्षमता, हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली (AWACS) और हवाई प्रारंभिक चेतावनी और नियंत्रण (AEWC ) एकीकरण [A] जैसी वजहें शामिल हैं.

 अगर किसी देश की सेना ताक़तवर होती है या कहें कि आक्रामक होती हैं, तो दुश्मन उसे आंख दिखाने से पहले सौ बार सोचता है और हमले की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. किसी देश की सैन्य शक्ति में सबसे बड़ी भूमिका हवाई ताक़त की होती है. 

अगर किसी देश की सेना ताक़तवर होती है या कहें कि आक्रामक होती हैं, तो दुश्मन उसे आंख दिखाने से पहले सौ बार सोचता है और हमले की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. किसी देश की सैन्य शक्ति में सबसे बड़ी भूमिका हवाई ताक़त की होती है. यही वजह है कि आक्रामक हवाई अभियानों के साथ एयर डिफेंस यानी हवाई क्षेत्र की रक्षा (AD) के बीच तालमेल आज दुनिया भर की सभी पेशेवर वायु सेनाओं के लिए बेहद ज़रूरी हो गया है. इस मामले में भारतीय वायु सेना (IAF) भी कोई अपवाद नहीं है और इस क्षमता से लैस है. आईएएफ अपनी इसी एकीकृत एयर डिफेंस (IAD) क्षमता के माध्यम से हवाई रक्षा अभियानों और सभी आक्रामक एयर ऑपरेशन्स के बीच सामंजस्य स्थापित करती है. इतना ही नहीं, इस क्षमता को AD सेंसर और सरफेस-एयर हथियार प्रणालियों की बहु-स्तरीय व्यूह रचना के साथ एक एक्सटेंडेड इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस (EIAD) यानी विस्तारित एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली द्वारा मज़बूत किया गया है. EIAD प्रणाली के ज़रिए एक बड़े क्षेत्र में हवाई ख़तरों से बचाव किया जा सकता है. इससे हवाई क्षेत्र में दुश्मन की किसी भी गतिविधि का तुरंत पता लगाया जा सकता है और उसे रोका जा सकता है. इसके अलावा, इस प्रणाली के माध्यम से दुश्मन के विरुद्ध आक्रामक और मारक हवाई हमलों को अंज़ाम दिया जा सकता है.

 

अगर चीन की तुलना में भारत की वायुसेना की किसी बढ़त के बारे में बात की जाए, तो आईएएफ के पास दुश्मन के इलाक़े में घुसकर हमला करने की आक्रामक क्षमता है और यही क्षमता उसे चीनी वायु सेना से उन्नत बनाती है. भारतीय वायुसेना की इस काबिलियत को और निखारने की ज़रूरत है और इसके लिए अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है, साथ ही मारक क्षमता को भी उन्नत करने की आवश्यकता है. इसके अलावा, हवा से हवा में ईंधन भरने की क्षमता और हवा व सतह से दागे जाने वाले हथियारों को भी और ज़्यादा विकसित करने की आवश्यकता है.[4] भारतीय वायुसेना के भविष्य के EIAD अभियानों का वायुसेना की भविष्य की क्षमताओं के साथ वैचारिक और सैद्धांतिक तालमेल भारत की संयुक्त सैन्य रणनीति के लिए बेहद ज़रूरी है. ऐसा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इससे तिब्बत में चीनी की एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल डिफेंस प्रणालियों को भेदने और पाकिस्तान के मज़बूत एयर डिफेंस नेटवर्क को शिकस्त देने के लिए ज़रूरी सामरिक क्षमताओं का विकास होगा.

 

आज के दौर के आधुनिक युद्ध क्षेत्र बेहद जटिल हैं और हवाई क्षेत्र भी चुनौतियों से भरे हुए हैं. ज़ाहिर है कि अपनी रक्षा के लिए इन युद्ध क्षेत्रों और हवाई क्षेत्रों की न सिर्फ़ कड़ी निगरानी की ज़रूरत है, बल्कि इन पर अपना नियंत्रण स्थापित करना भी आवश्यक है. ऐसा होने पर ही हर प्रकार के हवाई ख़तरे का पता लगाया जा सकता है, उसकी गंभीरता को पहचाना जा सकता है और उसका माकूल जवाब दिया जा सकता है. इसके अलावा, किसी भी युद्ध के दौरान हवाई और ज़मीनी लड़ाइयों के बीच सामंजस्य स्थापित करने और आक्रामक कार्रवाई के लिए न केवल भारतीय थल सेना के सामरिक युद्ध क्षेत्रों पर नज़र रखने की ज़रूरत होती है, बल्कि हवाई क्षेत्र का भी गहनता के साथ प्रबंधन करने की आवश्यकता होती है. दुश्मन देश की ओर से किए गए हवाई हमले का समय रहते पता लगाना और उसके लड़ाकू विमानों या हवाई हथियारों के अपनी सीमा में घुसने से पहले ही करारा जवाब देना ज़रूरी है. इसके अलावा, हवा में ही दुश्मन के आक्रमण को नेस्तनाबूद करने एवं अपने हवाई क्षेत्र का अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए और भविष्य में होने वाली किसी भी हवाई कार्रवाई का समुचित जवाब देने के लिए अपने पूरे हवाई क्षेत्र को स्वचालित निगरानी तंत्र एवं पुख्ता नेटवर्क से लैस करना ज़रूरी है. ऐसा करके ही हवाई क्षेत्र की अच्छे से रक्षा की जा सकती है. भारत में वर्तमान में यह वायुसेना की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) की वजह से यह किया जा रहा है. यह प्रणाली सभी सतही और हवाई राडारों एवं हवाई रक्षा हथियार प्रणालियों के बीच एक नेटवर्क स्थापित करती है, साथ ही डेटा का भी आदान-प्रदान करती है, जिससे हवाई ख़तरे का तत्काल पता लग जाता है और उसका जवाब भी दिया जाता है.[5] वर्ष 2019 में बालाकोट में जब्बा टॉप पर भारत की एयर स्ट्राइक और उसके बाद हुए कई हवाई अभियानों के दौरान IACCS ने अपनी क्षमता एवं उपयोगिता को बखूबी दिखाया है. इस प्रणाली के ज़रिए ही हवाई हमले के लिए ज़रूरी पल-पल की जानकारी मिली, साथ ही सेंसर के माध्यम से लक्ष्य के बारे पता लगा, जिससे एकदम सटीक हमले को अंज़ाम दिया जा सका.

 

आने वाले दिनों में IACCS को अपग्रेड करने के लिए जो भी क़दम उठाए जाएं, उनमें भारतीय थल सेना के सर्विलांस रडार्स को वायुसेना के EIAD के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. ज़ाहिर है कि इनके एकीकरण से ज़मीन पर लड़े जाने वाले सभी युद्धों, फिर चाए वो रक्षात्मक हों या आक्रामक, में अधिक व्यापक एयर डिफेंस क्षमता हासिल होगी, साथ ही इसमें ख़र्च भी बहुत कम आएगा.[6] इसके अलावा, IACCS को एयरोस्पेस कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम में भी अपग्रेड करने की ज़रूरत है. इससे न केवल अंतरिक्ष समेत एरियल प्लेटफार्मों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी, बल्कि सभी प्रकार के हवाई और अंतरिक्ष हमलों से निपटने की क्षमता भी हासिल होगी.[7]

 भारतीय वायुसेना के IACCS ने एक दशक से भी ज़्यादा समय से व्यापक स्तर पर एयर डोमेन अवेयरनेस (ADA) यानी वायु क्षेत्र में मानवयुक्त और मानवरहित विमानों का पता लगाने, ट्रैकिंग और पहचान को बेहतर तरीक़े से सुनिश्चित किया है. 

भारतीय वायुसेना के IACCS ने एक दशक से भी ज़्यादा समय से व्यापक स्तर पर एयर डोमेन अवेयरनेस (ADA) यानी वायु क्षेत्र में मानवयुक्त और मानवरहित विमानों का पता लगाने, ट्रैकिंग और पहचान को बेहतर तरीक़े से सुनिश्चित किया है. ADA को सशक्त करने की दिशा में जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, वो सराहनीय हैं, लेकिन भविष्य की ज़रूरतों के लिहाज़ ये प्रयास नाकाफ़ी हैं. देखा जाए तो आज पूरी दुनिया में अंतरिक्ष एक बेहद प्रतिस्पर्धी और संघर्ष का क्षेत्र बन गया है. इसके अलावा, अंतरिक्ष को तेज़ी से हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा रहा है. निसंदेह तौर पर भविष्य में नियर स्पेस यानी पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से और अंतरिक्ष के बीच की जगह का सैन्य ज़रूरतों के लिए व्यापक स्तर पर इस्तेमाल किया जाएगा, ऐसे में किसी देश के लिए सिर्फ़ अपने हवाई क्षेत्र के प्रबंधन और नियंत्रण का कोई मतलब नहीं रह जाता है. हाइपरसोनिक हथियार, जैसे कि स्पेस ग्लाइड व्हीकल्स और फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम, बैलिस्टिक मिसाइल अर्ली वार्निंग सिस्टम (BMEWS) बेहद गंभीर ख़तरा पैदा करते हैं. इसके साथ ही एंटी-सैटेलाइट वेपन (ASAT) क्षमताएं, जैसे कि को-ऑर्बिटल सिस्टम, डायरेक्टेड एनर्जी वेपन, हाई-पावर्ड लेजर्स, स्पेस-इनेबल्ड इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग एवं स्पूफिंग जैसे हाइपरसोनिय हथियार भी बेहद ख़तरनाक हैं. सैन्य ही नहीं, बल्कि नागरिक नज़रिए से भी अंतरिक्ष की गतिविधियों को नियंत्रित करना बहुत महत्वपूर्ण है. भारत के सिविल एविएशन सेक्टर की असीमित विकास संभावनों के मद्देनज़र और राष्ट्रीय उद्यम के रूप में अंतरिक्ष के बढ़ते नागरिक उपयोग को देखते हुए भारत के लिए अंतरिक्ष पर नियंत्रण स्थापित करना और भी ज़रूरी हो जाता है.

 

इसीलिए, भारत को नियर स्पेस और अंतरिक्ष के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना चाहिए और वहां की गतिविधियों को लेकर सतर्कता बढ़ाने के लिए क़दम उठाने चाहिए. ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि ADA यानी हवाई क्षेत्र जागरूकता को एकीकृत एयरोस्पेस डोमेन अवेयरनेस (IADA) में विस्तारित किया जाए. यानी भारत को IADA के तहत सिर्फ़ हवाई क्षेत्र की गतिविधियों की ही निगरानी नहीं करनी चाहिए, बल्कि इसमें हवा के साथ-साथ निकट अंतरिक्ष और बाहरी अंतरिक्ष में होने वाली हर हलचल की जानकारी हासिल करने को भी शामिल करना चाहिए. इस लिहाज़ से देखा जाए, तो भारत की भविष्य की सुरक्षा के लिए दो चीज़ें बेहद अहम हैं. पहली चीज़ है IADA यानी इंटीग्रेटेड एयरोस्पेस डोमेन अवेयरनेस क्षमता का विकास. जबकि दूसरी चीज़ है एकीकृत हवाई रक्षा क्षमता को इंटीग्रेटेड एयरोस्पेस डिफेंस कैपेबिलिटी (IADC) में बदलना. इसके लिए, भारत को अपने रिसर्च एवं डेवलपमेंट (R&D) में तेज़ी लाना आवश्यक है, ताकि भविष्य के IADA ढांचे पर आधारित एक व्यापक IADC सुविधा को विकसित किया जा सके. हालांकि, यह इतना आसान नहीं है, इसके लिए भारत को व्यापक स्तर प्रयास करने होंगे और एक दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा. यानी इसके लिए भारतीय वायुसेना और भारत के सिविल स्पेस एवं एविएशन सेक्टर के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने की दिशा में सक्रियता दिखानी होगी.

 

जहां तक भारत के सेंसर कवरेज के विस्तार की बात है, तो भारत के लिए समुद्र से घिरे अपने छोटे-छोटे आईलैंड्स में एयर सर्विलांस सेंसर्स स्थापित करना भी बेहद ज़रूरी है. भारत की अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापक हितों के लिए हिंद महासागर क्षेत्र का रणनीतिक महत्व बहुत अधिक है और इसी के मद्देनज़र भारत के द्वीपीय क्षेत्रों में हवाई निगरानी सेंसर लगाना अनिवार्य है.[8] ऐसा करने से भारत की शांतिकालीन हवाई रक्षा यानी युद्ध से पहले आम दिनों में सामान्य हवाई रक्षा को मज़बूती मिलेगी और यह अधिक लचीली भी बनेगी. इसके अलावा, भारत की मुख्य भूमि एवं द्वीपीय क्षेत्र पर स्थित संप्रभु हवाई क्षेत्रों, यानी भारत के छह एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन्स (ADIZ) पर पुख्ता नियंत्रण भी बेहद ज़रूरी है. कहने का मतलब है कि इन हवाई क्षेत्रों में होने वाली हर हलचल पर नज़र रखना, जैसे कि हवाई यातायात का पता लगाना, पहचानना, निगरानी और नियंत्रण सुनिश्चित किया जाना चाहिए. इसके अलावा, इन हवाई क्षेत्रों को भारत के भविष्य के एयरोस्पेस सुरक्षा जागरूकता एवं नियंत्रण गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए.[9]

 

सिविल और मिलिट्री एविएशन के लिए एक व्यापक नज़रिया

किसी देश की व्यापक हवाई ताक़त में सिविल एविएशन यानी नागरिक उड्डयन की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है. ऐसे में भारत को डिफेंस और सिविल एविएशन इंडस्ट्री में गठजोड़ की संभावनाओं को समझना चाहिए और इस दिशा में उचित क़दम उठाना चाहिए. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से देखा जाए, तो सिविल एविएशन और मिलिट्री एविएशन के बीच कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां दोनों के बीच समानताएं हैं. ऐसा इनके काम करने के तौर-तरीक़ों का एक सा होने, संचालन में पारस्परिक जुड़ाव और एक तरह की क्षमताएं होने की वजह से है. इसके अलावा, देश की आर्थिक प्रगति, विदेश नीति को सशक्त करने, कूटनीति को तेज़ करने, राजनीतिक समर्थन और राजनीतिक संदेश देने एवं मानवीय सहायता में योगदान के लिहाज़ से देखें, तो एविएशन सेक्टर असीमित संभावनाओं से भरा हुआ है. ऐसे में भारत को एक व्यापक और दूरदर्शी एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट एवं प्रोडक्शन (ATDP) रणनीति विकसित करने की ज़रूरत है. यानी एक ऐसी रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है, जो न केवल पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर आधारित हो, बल्कि विमानन उद्योग को एक लाभदायक आर्थिक उद्यम बनाने के लिए अधिक से अधिक निवेश को आकर्षित करने वाली हो. भारत के विमानन उद्योग को उम्मीद है कि अगले चार वर्षों के दौरान 350 अरब रुपये (4.99 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश होगा. भारत सरकार वर्ष 2025 तक 220 नए एयरपोर्ट्स बनाने के साथ ही हवाई अड्डा इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण और एविएशन नेविगेशन सेवाओं के विकास के लिए 1.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने योजना बना रही है.[10]

 

भारत को लागत-प्रतिस्पर्धी अंतरिक्ष अनुसंधान, विकास और उत्पादन में विशेषज्ञता हासिल है, यानी भारत दूसरे देशों की तुलना में इन कामों को बहुत कम ख़र्च में करता है. इस क्षेत्र में किफ़ायती लड़ाकू विमानों, वायुसेना की क्षमता को बढ़ाने के लिए महत्वूर्ण उपकरणों एवं तकनीक़ों, एयर डिफेंस रडारों, हथियार प्रणालियों, हवाई हथियारों, फिक्स्ड एवं रोटरी-विंग सिविल पैसेंजर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और मानव रहित लड़ाकू विमानों की भारी मांग है. ऐसे में भारत अगर कम लागत में बेहतर तकनीक़ विकसित करने की अपनी इस महारत का इस्तेमाल एकीकृत सैन्य-नागरिक विमानन उद्योग में भी करता है, तो निश्चित रूप से रणनीतिक तौर पर देश के भविष्य के लिए यह बहुत लाभदायक हो सकता है. ऐसा करने से भारत न केवल अपनी सैन्य ज़रूरतों को पूरा कर सकेगा, बल्कि कम लागत वाले प्रतिस्पर्धी निर्यात के ज़रिए क्षेत्र में अपने प्रभाव को भी बढ़ा सकता है. ज़ाहिर तौर पर जब कम लागत में बेहतर टेक्नोलॉजी और उन्नत सैन्य साज़ो-सामान मिलेंगे, तो दूसरे देशों की भारत पर निर्भरता बढ़ेगी और इससे पूरे रीजन में उसका दबदबा भी बढ़ेगा.

 भारतीय वायुसेना, पाकिस्तानी वायुसेना और चीन की पीपुल्स रिबलेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के पास मौज़ूद लड़ाकू विमानों एवं युद्ध के लिए ज़रूरी दूसरे सैन्य साज़ो-सामनों, हथियारों व सैन्य उपकरणों की उपलब्धता में बहुत ज़्यादा अंतर है, जो कि बेहद चिंता का विषय है. 

भारतीय वायुसेना, पाकिस्तानी वायुसेना और चीन की पीपुल्स रिबलेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के पास मौज़ूद लड़ाकू विमानों एवं युद्ध के लिए ज़रूरी दूसरे सैन्य साज़ो-सामनों, हथियारों व सैन्य उपकरणों की उपलब्धता में बहुत ज़्यादा अंतर है, जो कि बेहद चिंता का विषय है. अगर भारत की बात की जाए, तो भारत की पांचवीं पीढ़ी के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) की परियोजना पहले से ही बहुत धीमी गति से चल रही है. इन लड़ाकू विमानों के वायुसेना में शामिल होने में अभी एक दशक का समय लग सकता है. ज़ाहिर है कि इतने वर्षों में चीन तिब्बत में अपनी हवाई ताक़त को बहुत सशक्त कर चुका होगा और अपनी वायुसेना के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे का विकास कर परिस्थितियों के अपने अनुकूल बना चुका होगा. कहने का मतलब यह है कि जब तक AMCA भारतीय वायुसेना को मिलेगा, तब तक चीन अपने छठी पीढ़ी के उन्नत लड़ाकू विमान न केवल तिब्बत में तैनात कर चुका होगा, बल्कि उन्हें पाकिस्तान को भी सौंप चुका होगा. इससे निसंदेह रूप से भारत भी वायुसेना तकनीक़ और सैन्य क्षमता के मामले में चीन से पिछड़ जाएगी. एक और चिंता वाली बात यह भी है कि इन दस वर्षों के दौरान भारत की जो चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं, जो कि इस समय आईएएफ की सबसे बड़ी ताक़त हैं, उनका बेड़ा भी अपनी उन्नत क्षमताओं के बावज़ूद एक दशक पुराना हो जाएगा. नई पीढ़ी के विमानों की कमी भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है. इसकी वजह यह है कि बीजिंग न केवल ताइवान, बल्कि पूर्वी और दक्षिण चीन सागर पर अपनी मनमानी चलाने और अपनी विदेश नीति को धार देने के लिए अपनी हवाई ताक़त का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है. चीन के इस रवैये से प्रतीत होता है कि भविष्य में वह भारत के ख़िलाफ़ भी अपने इसी हथकंडे का उपयोग कर सकता है.[11] भारत से सटी विवादित सीमाओं पर चीन की वायुसेना यानी PLAAF की हवाई गतिविधियां पहले से ही काफ़ी बढ़ चुकी हैं. इसके अलावा, बीजिंग विवादित इलाक़ों में व्यापक स्तर पर बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है और सीमावर्ती इलाक़ों में बस्तियां भी बसा रहा है. आने वाले दिनों में बीजिंग अपने दावों को मज़बूती देने और लद्दाख व अरुणाचल प्रदेश में अपने विस्तारवादी इरादों को अमली जामा पहनाने के लिए हवाई सीमा के अतिक्रमण की घटनाओं में तेज़ी ला सकता है, साथ ही अपनी आक्रामक हवाई गतिविधियों को बढ़ा सकता है.

 

भारत ने 1971 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में अपनी हवाई ताक़त का आक्रामक तरीक़े से इस्तेमाल किया था. हालांकि, उसके बाद से भारत को उस तरह से अपनी वायु सेना का उपयोग नहीं करना पड़ा है और इसने कहीं न कहीं देश की सुरक्षा में हवाई ताक़त के रणनीतिक इस्तेमाल को लेकर शिथिलिता सी आ गई है, या कहें कि इसका महत्व कम हो गया है. देखा जाए तो ज़मीन और समुद्री क्षेत्रों में हवाई ताक़त की विशेषता ने सीमित रक्षा बजट वाले भारत में सेना की संयुक्त क्षमताओं को एकजुट करने और सशक्त करने के बजाए सर्विस आधारित हवाई ताक़त क्षमताओं की ज़रूरत को बढ़ाने का काम किया है. ज़ाहिर है कि वर्टिकल डोमेन यानी हवाई और नियर स्पेस क्षेत्र भारतीय वायु सेना के लिए ऐसा क्षेत्र है, जहां उसे अपनी ताक़त को सशक्त करने और सैन्य अभियानों को संचालित करने में विशेषज्ञता हासिल की ज़रूरत है. कहने का मतलब है कि देश की भविष्य की सुरक्षा आवश्यकताओं और अन्य सेवाओं की साझा युद्ध ज़रूरतों को हर तरीक़े से पूरा करने के लिए भारतीय वायुसेना की क्षमताओं को मज़बूत किया जाना चाहिए.[12]

 

दुनिया में चले रहे मौज़ूदा युद्धों में जिस प्रकार से जमकर हवाई हमले किए जा रहे हैं, उनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी देश के लिए हवाई क्षमता कितनी ज़रूरी है और इसका किस-किस तरीक़े से उपयोग किया जा सकता है. जैसे कि हवाई हमलों के दौरान मानवयुक्त और मानवरहित लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया जाता है, अलग-अलग प्रकार के लंबी दूरी तक सटीक निशाना साधने वाले हथियारों को उपयोग किया जाता है, हाइपरसोनिक और एडवान्स्ड एरियल मिसाइल दागी जाती हैं. इसके अलावा, हवाई हमलों को अंज़ाम देने में परिष्कृत वायु रक्षा प्रणाली और सतह एवं अंतरिक्ष से चलाए जाने वाले हथियारों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें एयरोस्पेस से संचालित किया जाता है. भविष्य में अलग-अलग क्षेत्रों यानी ज़मीन, समुद्र और अंतरिक्ष से लड़े जाने वाले युद्धों में सशक्त हवाई ताक़त बेहद ज़रूरी है, क्योंकि इसी से तीनों जगहों से आक्रामकता के साथ लड़ाई लड़ी जा सकती है. चीन वर्ष 2047 तक विश्व स्तरीय सैन्य शक्ति बनने के अपने लक्ष्य को पाने के लिए मज़बूती से डटा हुआ है और सेंट्रल ग्लोबल स्टेट या झोंगगुओ (Zhōngguó) के रूप में अपनी भूमिका बढ़ा रहा है. चीन ने सामरिक दृष्टि से अपनी हवाई और अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया है. गौरतलब है कि चीन के छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान पहले से ही अमेरिकी लड़ाकू विमानों से आगे निकल चुके हैं.[13]

निष्कर्ष

निसंदेह तौर पर एक शक्तिशाली भारत के लिए वायुसेना की महत्वपूर्ण भूमिका भविष्य में भी यू हीं बनी रहेगी. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि नई दिल्ली भारतीय वायुसेना की आवश्यकताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखे और वर्तमान में हवाई क्षमता के मामले में भारत की चीन पर जो बढ़त है, उसने बरक़रार रखने की हर मुमकिन कोशिश करे.

भारत एक तेज़ी से बढ़ती आर्थिक शक्ति है और दुनिया में महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है. इस वजह से भारत देखा जाए तो चीन के साथ हर क्षेत्र में रणनीतिक होड़ में शामिल है. भारत और चीन दोनों की वायुसेनाएं बहुत ताक़तवर हैं, ऐसे में हवाई क्षेत्र और अंतरिक्ष में नियंत्रण को लेकर काफ़ी खींचतान होना लाज़िमी है. इसका भविष्य में होने वाले ज़मीनी अभियानों पर भी असर पड़ेगा. इसीलिए, भविष्य की संयुक्त सैन्य रणनीतियों में वर्टिकल डोमेन पर नियंत्रण को प्रमुखता देनी चाहिए और रणनीतियों में इसे शामिल करना चाहिए. इसके अलावा, भारत की भविष्य की EIAD प्रणाली यानी विस्तारित एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली का उसकी गहन आक्रामक क्षमताओं के साथ तालमेल रणनीतिक युद्ध के लिए ज़रूरी होगा. हवाई क्षेत्र और अंतरिक्ष के बढ़ते एकीकरण और भविष्य में राष्ट्रीय सुरक्षा व संप्रभुता के लिए इसके बढ़ते महत्व के मद्देनज़र एयरोस्पेस डोमेन अवेयरनेस एवं एयरोस्पेस डिफेंस को बगैर समय गंवाए न केवल एकीकृत करने की ज़रूरत है, बल्कि इसमें अधिक से अधिक निवेश करने, इसका विकास और विस्तार करने भी आवश्यकता है. ऐसे में भारत की विशाल नागरिक विमानन क्षमता और भविष्य की सैन्य वायु शक्ति ज़रूरतों को पूरा करने वाली एक समग्र एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट एवं प्रोडक्शन (ATDP) रणनीति न केवल देश की एविएशन इंडस्ट्री को सशक्त करेगी, बल्कि उसकी उत्पादकता बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगी. इसके अलावा, जब तक भारत अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं हो जाता है, तब तक भारतीय वायुसेना की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्वदेशी विमानन उद्योग की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, यानी देश की विमानन कंपनियों से आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ-साथ दूसरे देशों से भी फाइटर जेट ख़रीदने होंगे. निसंदेह तौर पर एक शक्तिशाली भारत के लिए वायुसेना की महत्वपूर्ण भूमिका भविष्य में भी यू हीं बनी रहेगी. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि नई दिल्ली भारतीय वायुसेना की आवश्यकताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखे और वर्तमान में हवाई क्षमता के मामले में भारत की चीन पर जो बढ़त है, उसने बरक़रार रखने की हर मुमकिन कोशिश करे.

 

Endnotes

 [a] Air-to-Air (A-A) refuelling or aerial tanking, Airborne Warning and Control System (AWACS), and Airborne Early Warning and Control (AWEC) are critical combat enablers necessary for contemporary and future air operations in both war and peace.

[1] Ben Lewis, “2022 ADIZ Violations: China Dials Up Pressure on Taiwan,” CSIS, March 23, 2023.

 

[2] Air Mshl (Dr) Diptendu Choudhury, “The IAF’s Transformation into the Indian Air and Space Force,” Chanakya Forum, January 25, 2024.

 

[3] Choudhury, “The IAF’s Transformation into the Indian Air and Space Force”

 

[4] Air Marshal Diptendu Choudhury, “Breaching the Dragon’s A2AD: Strategic Targeting the Key,” in USI Strategic Year Book 2023 (New Delhi: Vij Books, 2023), pp. 176-185.

 

[5] Doctrine of the Indian Air Force, IAP2000-22, pp.44-45.

 

[6] Air Mshl Diptendu Choudhury, “Air Defence is Everywhere,” Vivekananda International Foundation, July 24, 2020.

 

[7] Choudhury, “Air Defence is Everywhere”

 

[8] Air Mshl (Dr) Diptendu Choudhury (Retd), “Rising Chinese Air Power in the Maritime Domain- Is it Time to Reset Maritime Strategy?,” Chanakya Forum,

 

[9] Air Marshal (Dr) Diptendu Choudhury (Retd), Future Employment of Air Power: Strategic Inferences for India, USI Monograph 05-2024, December 2024

 

[10]Indian Aviation Industry,” India Brand Equity Foundation.

[11] Air Mshl Diptendu Choudhury, “Convergence of the Indo- Pacific with the Indian Ocean—Is a Maritime- Centric Approach Enough? An Indian Perspective,” Journal of Indo-Pacific Affairs (May-June 2024).

[12] Choudhury, Future Employment of Air Power: Strategic Inferences for India

 

[13] Yu Zeyan, “Has China Unveiled its Sixth Generation Fighter?,” Think China, December 30 2024.

 

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