Originally Published जागरण Published on Sep 28, 2024 Commentaries 0 Hours ago

ऐसा प्रतीत होता है कि जनता ने ढांचागत बदलाव और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए जनादेश दिया है.

समस्या न बनने पाए श्रीलंका: जेवीपी की नई सरकार और चुनौतियां

Image Source: जागरण

श्रीलंका के हालिया चुनाव में जनता विमुक्ति पेरामुना यानी जेवीपी को जीत हासिल हुई और उसके नेता अनुरा कुमारा दिसानायके नए राष्ट्रपति चुने गए. ऐसा प्रतीत होता है कि जनता ने ढांचागत बदलाव और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए जनादेश दिया है. नई सरकार की विदेश नीति को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं. दिसानायके के अतीत और वैचारिक झुकाव को देखते हुए यह स्वाभाविक भी है. हालांकि वर्तमान आर्थिक एवं भूराजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए यही संभावना अधिक है कि श्रीलंका उसी राह पर आगे बढ़ेगा, जिसमें वह भारत और चीन के साथ संतुलन साध सके. सुशासन और सुधारों को लेकर नई सरकार से जुड़ी उम्मीदें भी दीर्घकाल में भारत और उसके सहयोगियों को लाभ पहुंचाएंगी.

जेवीपी पिछली सदी के सातवें दशक में अस्तित्व में आई. अपने मार्क्सवादी चिंतन और सिंहली राष्ट्रवादी विचारधारा के चलते आरंभ से ही उसका रवैया भारत विरोधी रहा. 

भारत से कैसा रहेगा संबंध

जेवीपी पिछली सदी के सातवें दशक में अस्तित्व में आई. अपने मार्क्सवादी चिंतन और सिंहली राष्ट्रवादी विचारधारा के चलते आरंभ से ही उसका रवैया भारत विरोधी रहा. दक्षिण एशिया में भारतीय ‘विस्तारवाद’ से निपटना उसके वैचारिक लक्ष्यों में से एक रहा. इसने 1971 में पहली बार श्रीलंका राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया, जिसे तुरंत ही दबा दिया गया. तब कोलंबो एयरपोर्ट की सुरक्षा के अलावा सरकार के अनुरोध पर भारत ने सामुद्रिक निगरानी का भी काम किया. हालांकि 1987 से 1990 के बीच दूसरे दौर के इसके विद्रोह में भारत विरोधी तेवर कहीं तीखे थे. जेवीपी ने श्रीलंका-भारत के उस समझौते का भी विरोध किया था, जिसके तहत श्रीलंका में भारतीय शांति सेना को अनुमति दी गई थी. 

इसी का नतीजा है कि भारत श्रीलंका में एयरपोर्ट और बंदरगाहों को अपग्रेड करने के साथ ही त्रिनकोमाली क्षेत्र के विकास और अक्षय ऊर्जा, रिफाइनरी, एनर्जी ग्रिड एवं पेट्रोलियम पाइपलाइन से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश कर रहा है.

अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाने और भ्रष्ट एवं अक्षम कुलीन तबके को हटाने में भी इस संगठन ने अपने भारत विरोधी रवैये को नए तेवर दिए. वर्ष 1994 में जेवीपी सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ मुख्यधारा की राजनीति से जुड़ी, मगर मतदाताओं की पारंपरिक पसंद नहीं बन पाई. जब 2022 के आर्थिक संकट में लोग स्थापित व्यवस्था और नेताओं से आजिज आ गए, तब दिसानायके की लोकप्रियता बढ़नी शुरू हुई. जेवीपी के बढ़ते ग्राफ ने भारत को भी इस पार्टी के साथ सक्रियता बढ़ाने की दिशा में उन्मुख किया. चूंकि चुनावी नतीजों को लेकर भारी अनिश्चितता जुड़ी थी तो भारत के लिए सत्ता के प्रमुख दावेदारों के साथ संपर्क बनाए रखना जरूरी था. इसी सिलसिले में चुनावों से पहले भारत ने श्रीलंका के विभिन्न दलों के नेताओं को आमंत्रित किया. विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कई नेताओं से बात भी की. दिसानायके भी इन नेताओं में शामिल रहे. 

 

भारत की व्यावहारिक सक्रियता

भारत की व्यावहारिक सक्रियता उसकी पड़ोसी-प्रथम नीति और सागर दृष्टिकोण के अनुरूप ही है. चूंकि समय के साथ श्रीलंका का भूराजनीतिक महत्व और बढ़ा है तो भारत भी वहां अपनी मौजूदगी बढ़ाकर लाभ उठाने के प्रयास में लगा है. जिस समय श्रीलंका आर्थिक दुश्वारी और अस्तित्व के संकट से जूझ रहा था, तब भारत ने चार अरब डॉलर के कर्ज के साथ ही करेंसी स्वैप, अनुदान और क्रेडिट लाइन जैसे कई उपायों से उसे मदद पहुंचाई. इसके अलावा कई आवश्यक वस्तुओं और दवाओं की आपूर्ति की. इस पड़ोसी देश पर चीन की बढ़ती पकड़ को देखते हुए भारत ने अपने प्रयासों की गति और बढ़ाई. इसी का नतीजा है कि भारत श्रीलंका में एयरपोर्ट और बंदरगाहों को अपग्रेड करने के साथ ही त्रिनकोमाली क्षेत्र के विकास और अक्षय ऊर्जा, रिफाइनरी, एनर्जी ग्रिड एवं पेट्रोलियम पाइपलाइन से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश कर रहा है. तमाम भारतीय कंपनियां श्रीलंका सरकार के उपक्रमों में निवेश में दिलचस्पी दिखा रही हैं. दोनों देश एक लैंड ब्रिज बनाने पर भी चर्चा कर रहे हैं. आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग अनुबंध (ईटीसीए) पर भी बात चल रही है. 

जेवीपी के स्तर पर भी बदलाव की आहट दिखती है. उसे महसूस हो रहा है कि समकालीन विश्व में शीत युद्ध वाली मानसिकता से काम नहीं चल सकता. चुनावों के दौरान भी यह रवैया दिखा. उसे यह लगता है कि अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भारत का भूराजनीतिक कद और उसकी आर्थिकी बहुत मददगार हो सकती है. दिसानायके ने श्रीलंका के विकास और बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाने के जो चुनावी वादे किए हैं, उनकी पूर्ति भारत के साथ सहयोग से ही संभव हो सकती है. सरकार पर्यटन और सूचना प्रौद्योगिकी के जरिये भी राजस्व बढ़ाना चाहती है. उसमें भी भारत की अहम भूमिका होगी. इसलिए भारत की चिंताओं पर गौर करना जेवीपी के लिए जरूरी होगा. उसके घोषणा पत्र में भी उल्लेख था कि किसी भी देश विशेषकर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम में डालने वाली किसी भी प्रकार की गतिविधि को उसकी जमीन और जल एवं वायु सीमा से इजाजत नहीं दी जाएगी. इसके बाद भी भारत को देखना होगा कि श्रीलंका उसके हितों के लिए समस्या न बनने पाए. 

भारत की चिंताओं पर गौर करना जेवीपी के लिए जरूरी होगा. उसके घोषणा पत्र में भी उल्लेख था कि किसी भी देश विशेषकर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम में डालने वाली किसी भी प्रकार की गतिविधि को उसकी जमीन और जल एवं वायु सीमा से इजाजत नहीं दी जाएगी. इसके बाद भी भारत को देखना होगा कि श्रीलंका उसके हितों के लिए समस्या न बनने पाए. 

यह तय है कि नई सरकार चीन के साथ भी संतुलन साधने की दिशा में बढ़ेगी. बीजिंग भी अपनी साम्यवादी विचारधारा को देखते हुए नई सरकार के साथ सक्रियता बढ़ाएगा. दिसानायके भी चुनाव पूर्व भारत से पहले चीन का दौरा कर चुके हैं. करीब सात अरब डालर के साथ बीजिंग श्रीलंका के लिए सबसे बड़े ऋणदाताओं में से एक बना हुआ है. हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति और मजबूत करने के लिए चीन के ऐसे प्रयास जारी रहेंगे. जैसे हंबनटोटा में रिफाइनरी के लिए 4.5 अरब डालर के निवेश की पेशकश श्रीलंका के लिए जरूर लुभावनी होगी, जिससे उसे अपनी आर्थिकी को पटरी पर लाने में मदद मिलेगी. 

 

नई सरकार की नई चुनौती

हालांकि चुनाव जीतने के बाद वादों को पूरा करने की नई चुनौती उत्पन्न होती है. देखना होगा कि दिसानायके इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं. दिसानायके ने कुछ कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं, जिसका संभावित निवेश पर कुछ असर पड़ सकता है. जैसे अदाणी एनर्जी की परियोजना को लाल झंडी दिखाना. हो सकता है कि वह कुछ ऐसे फैसले लें, जो चीन के गले न उतरें, जो तमाम तिकड़मों के सहारे देशों के शोषण की योजना पर काम करता है. हालांकि अगर दिसानायके नीर-क्षीर विश्लेषण के साथ इस दिशा में आगे बढ़ते हैं तो यह भारत और उसके जैसे सोच वाले साझेदारों के लिए ही फायदेमंद होगा, क्योंकि तब चीन के लिए अनुचित लाभ की गुंजाइश खत्म हो जाएगी. साथ ही श्रीलंका के तंत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही भी बढ़ेगी. 


(पंत आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष और शिवमूर्ति एसोसिएट फेलो हैं)   

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.