Published on Dec 21, 2022 Updated 0 Hours ago
हिंद महासागर क्षेत्र में संतुलन और फ़ायदे का जुगाड़: 2021 में श्रीलंका और मालदीव की क़वायद

भारत और चीन के बीच तेज़ होती प्रतिस्पर्धा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की लगातार बढ़ती अहमियत ने हिंद महासागर और उसमें बसे छोटे-छोटे द्वीप देशों में दुनिया की दिलचस्पी बढ़ा दी है. ज़ाहिर तौर पर इससे इन द्वीप देशों के बर्ताव और उनकी विदेश नीतियों के संचालन पर भी असर पड़ा है. मसलन मालदीव 2021 में अपनी ‘इंडिया फ़र्स्ट’ नीति की बजाए भारत और चीन के बीच की प्रतिस्पर्धा का फ़ायदा उठाने की कोशिश करता ज़्यादा नज़र आया. इसी तरह श्रीलंका भी पूरे साल भारत और चीन के बीच संतुलन साधते हुए ख़ुद को आर्थिक तबाही के दलदल में जाने से बचाने की जुगत करता रहा.  

भारत और चीन की रस्साकशी से फ़ायदा उठाता मालदीव  

2021 में मालदीव अपनी ‘इंडिया फ़र्स्ट’ नीति के तहत भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता देता रहा. इस नीति के हिसाब से आगे बढ़ने के पीछे मालदीव के दो प्रमुख मकसद थे. पहला- भारत को अपने नज़दीक बनाए रखना औऱ दूसरा चीनी कर्ज़ों के मकड़जाल से ख़ुद का बचाव करना. दरअसल 2013 से 2018 के बीच मालदीव की अब्दुल्ला यामीन सरकार चीन से तक़रीबन 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण ले चुकी थी. हालांकि चीन के साथ अपने रिश्तों में खटास लाए बिना मालदीव दुनिया की दूसरी ताक़तों के साथ भी अपनी रणनीतिक संपर्क क़ायम करने की क़वायद करता रहा है. 

चीनी कर्ज़ों के बढ़ते बोझ और भारत द्वारा इसकी काट करने को लेकर दिखाई जाने वाली दिलचस्पी ने मालदीव को अपनी ‘इंडिया फ़र्स्ट’ नीति में नई जान फूंकने को मजबूर कर दिया है. 2021 में दोनों ही पड़ोसी देशों ने इस नीति को नई रफ़्तार देने की पूरी कोशिश की. ज़ाहिर तौर पर मालदीव ने अपने यहां भारत को अपना दूसरा मिशन खोलने की मंज़ूरी दे दी. भारत की वैक्सीन कूटनीति का लाभ लेने वाले शुरुआती देशों में मालदीव का नाम भी शुमार रहा. 

‘इंडिया फ़र्स्ट’ की नीति और भारत के साथ नज़दीकियां मालदीव के लिए सुरक्षा और आपदा से लड़ने में मददगार साबित हुई है. भारत अपनी गश्ती नौकाओं और विमानों के ज़रिए मालदीव के विशेष आर्थिक क्षेत्र की निगरानी और गश्त लगाता रहा है. भारत 2021 में मालदीव के उथुरु थिला फ़ाल्हू नौसैनिक अड्डे पर नेशनल डिफ़ेंस फ़ोर्स कोस्ट गार्ड हार्बर का विकास करने, उसको सहारा देने और उसका रखरखाव करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जता चुका है.

मालदीव में चीन की बढ़ती दिलचस्पी इस द्वीप देश के लिए भारत से ज़रूरी और टिकाऊ निवेश हासिल करने में भी मददगार साबित हुई है. मालदीव को ऐसे निवेश की सख़्त ज़रूरत थी. 2021 के मध्य तक मालदीव में भारत 2 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा की 45 बड़ी विकास परियोजनाओं पर काम कर रहा था. 

इसके अलावा मालदीव में चीन की बढ़ती दिलचस्पी इस द्वीप देश के लिए भारत से ज़रूरी और टिकाऊ निवेश हासिल करने में भी मददगार साबित हुई है. मालदीव को ऐसे निवेश की सख़्त ज़रूरत थी. 2021 के मध्य तक मालदीव में भारत 2 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा की 45 बड़ी विकास परियोजनाओं पर काम कर रहा था. इतना ही नहीं, बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में मालदीव की सबसे बड़ी परियोजना- द ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पर भी भारत दस्तख़त कर चुका है. भारत इसके लिए 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक के कर्ज़ (line of credit) और 10 करोड़ डॉलर के अनुदान की मंज़ूरी दे चुका है. ज़ाहिर है मालदीव को भारत की ओर से बेहद ज़रूरी निवेश और प्रोत्साहन हासिल हो रहे हैं. 

दूसरी ओर, चीन को इस साल मालदीव में कुछ ख़ास हासिल नहीं हो सका. हालांकि मालदीव की ओर से द्विपक्षीय बैठकों को लेकर थोड़ी-बहुत क़वायद ज़रूर की गई. बीआरआई को आगे बढ़ाने का भरोसा भी दिया गया. बदले में मालदीव को चीन से कोविड-19 के टीके भी हासिल हुए. ज़ाहिर है कि 2021 में मालदीव ने चीन को नाख़ुश किए बिना उससे कुछ मुनाफ़े हासिल करने की जुगत लगाई. हालांकि इन तमाम क़वायदों के बेहद मामूली नतीजे सामने आए हैं. 2021 के मध्य तक मालदीव में चीन के हिस्से सिर्फ़ एक सक्रिय परियोजना थी. दिसंबर 2021 में उसे ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा एक और प्रोजेक्ट देने की पेशकश की गई. 

बहरहाल चीन को मालदीव में अपनी हदों का कुछ हद तक एहसास हो गया है. भारत के प्रति मालदीव के लगाव और भारत से जुड़ी उसकी प्राथमिकताओं को चीन समझ चुका है. चीन को अंदाज़ा हो चुका है कि मालदीव में भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करने में उसकी सीमाएं क्या हैं. नतीजतन उसने दक्षिण एशिया में अपनी व्यापक परियोजनाओं से मालदीव को अलग कर दिया है. विदेश मंत्रियों की बैठकचीन-दक्षिण एशिया ग़रीबी उन्मूलन और सहकारी विकास और चीन-दक्षिण एशिया आपात आपूर्ति भंडार जैसे कार्यक्रमों के संदर्भ में ये बात पूरी तरह से साफ़ हो गई है.   

इतना ही नहीं मालदीव ने भी 2021 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े व्यापक घटनाक्रमों में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी. भारत और श्रीलंका के साथ हाल ही में चालू की गई त्रिपक्षीय सुरक्षा वार्ताओं की संस्थागत व्यवस्था के ज़रिए मालदीव हिंद महासागर में सुरक्षा को बढ़ावा देने की क़वायद में जुट गया है. मालदीव ने अमेरिका के साथ भी अपना पहला सालाना सुरक्षा और बचाव से जुड़ा संवाद शुरू किया है. अपनी ज़मीन पर अमेरिका के पहले कूटनीतिक मिशन की मेज़बानी करने को लेकर भी मालदीव ने सकारात्मक रुख़ दिखाया है. इससे भी अहम बात ये है कि मालदीव ने अमेरिका से आपात और वित्तीय सहायता हासिल करने को लेकर अपनी रज़ामंदी दिखाई है. 

मालदीव ने चीनी प्रभाव और कर्ज़ के मकड़जाल में फंसाने की उसकी फ़ितरत को आईना दिखाने करने की पुरज़ोर कोशिश की है. इसके लिए उसने भारत और दुनिया की दूसरी बड़ा ताक़तों से अपना संपर्क बढ़ाया है.

कुल मिलाकर मालदीव ने चीनी प्रभाव और कर्ज़ के मकड़जाल में फंसाने की उसकी फ़ितरत को आईना दिखाने करने की पुरज़ोर कोशिश की है. इसके लिए उसने भारत और दुनिया की दूसरी बड़ा ताक़तों से अपना संपर्क बढ़ाया है. हालांकि इन सबके बावजूद हिंद-प्रशांत में बढ़ती प्रतिस्पर्धा से फ़ायदा उठाने की उम्मीद में मालदीव किसी भी सूरत में चीन को नाख़ुश करने से हिचकता रहा है.   

श्रीलंका: संतुलन बिठाने की कला में सुधार

2021 में श्रीलंका ने भारत और चीन के बीच संतुलन बिठाने की अपनी कारीगरी को और बेहतर कर लिया. इस दौरान काफ़ी हद तक श्रीलंकाई विदेश नीति अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़े हासिल करने और आर्थिक संकट से ख़ुद का बचाव करने से जुड़ी क़वायदों से प्रभावित रही है. 

श्रीलंका में साल 2021 की शुरुआत ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ECT) के भविष्य को लेकर भारी मतभेदों के साथ हुई थी. इस मुद्दे पर देश भर में विरोध-प्रदर्शन हुए. बताया जाता है कि चीन की ओर से मिल रही शह के चलते श्रीलंका में इसकी समीक्षा की गई. आगे चलकर श्रीलंका ने एकतरफ़ा रूप से ECT परियोजना को रद्द कर दिया. इससे परियोजना में उसके साथी देशों- भारत और जापान को भारी निराशा हाथ लगी. इतना ही नहीं, श्रीलंका ने जाफ़ना प्रायद्वीप में चीनी कंपनियों को ऊर्जा क्षेत्र की कुछ परियोजनाएं शुरू करने तक की पेशकश कर डाली. 2021 के मध्य में श्रीलंकाई संसद ने कोलंबो पोर्ट सिटी इकॉनोमिक कॉमर्स बिल भी पास कर दिया. श्रीलंका के इस क़दम ने भारत की चिंता बढ़ा दी है. इस विधेयक से उस पूरे इलाक़े को विशेष आर्थिक क्षेत्र का दर्जा मिल गया है. साथ ही विदेशियों को सरकार में भागीदारी की इजाज़त मिल गई है. 

2021 के मध्य में श्रीलंकाई संसद ने कोलंबो पोर्ट सिटी इकॉनोमिक कॉमर्स बिल भी पास कर दिया. श्रीलंका के इस क़दम ने भारत की चिंता बढ़ा दी है.

चीन को लुभाने वाले इन क़दमों से श्रीलंका को कई तरह के मुनाफ़े भी हासिल हुए. 2021 में श्रीलंका विदेशी मुद्रा भंडार से जुड़े गंभीर संकटों का सामना करता रहा. इसके अलावा उसे 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर के बकाया विदेशी कर्ज़े भी चुकाने थे. लिहाज़ा नकदी बदलने (currency swaps) और अनुदानों के लिए श्रीलंका की चीन पर निर्भरता बदस्तूर जारी रही. इसके अलावा फ़ॉरेन करेंसी टर्म फ़ाइनेंसिंग फ़ैसिलिटी (FTFF) के लिए भी श्रीलंका को चीन का ही सहारा रहा. श्रीलंका लगातार चीन से कर्ज़ हासिल करता आ रहा है. इसके अलावा वो चीन के साथ ऋण से जुड़े नए-नए करार भी कर रहा है. अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए श्रीलंका की ओर से अतिरिक्त तौर पर ताज़े कर्ज़ के लिए चीन से दरख़्वास्त भी की जाती रही है. 

बहरहाल, इन तमाम क़वायदों के बावजूद श्रीलंकाई सरकार ये अच्छी तरह से समझती है कि ना वो और ना ही भारत की सरकार पूरी तरह से एक-दूसरे का साथ छोड़ सकते हैं. यही वजह है कि श्रीलंका ने अडानी समूह के साथ वेस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (WCT) से जुड़ा करार किया है. इसके अलावा उसने कई मौक़ों पर भारत की ओर से वित्तीय सहायता भी मांगी है. हालांकि चीन के मुक़ाबले भारत से वित्तीय सहायता पाने में श्रीलंका को ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली है. यक़ीनन चीन की ओर श्रीलंका के बढ़ते झुकावों से भारत ख़ुश नहीं है. इसके बावजूद मानवतावादी और कोविड-19 की रोकथाम को लेकर भारत ने श्रीलंका को मदद पहुंचाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी. साथ ही उसे भारत की ओर से निवेश और कर्ज़ की मंज़ूरियां (lines of credit) भी मुहैया कराई जाती रही हैं. 

बहरहाल 2021 का अंत होते-होते श्रीलंका एक बार फिर से भारत से क़रीबी बढ़ाने की जुगत में लग गया. दरअसल खाद (fertiliser) से जुड़े सौदे को लेकर चीन और श्रीलंका के बीच मतभेद और गहरे हो गए. ऐसे में श्रीलंका ने भारत से फ़र्टिलाइज़र लिक्विड की इमरजेंसी सप्लाई करने का अनुरोध किया. श्रीलंका का ये क़दम चौंकाने वाला है. कूटनीति की बिसात पर आम तौर पर वो भारत के ख़िलाफ़ चीन के दांव का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन इस बार श्रीलंका ने संतुलन के इस खेल में अपनी चाल बदल दी. इस बार चीन के ख़िलाफ़ उसने भारत के दांव का इस्तेमाल कर लिया. श्रीलंका के नज़रिए से देखें तो उसकी ये चाल ग़ैर-मामूली है. 

कुछ अर्सा पहले ही श्रीलंका ने भारत के साथ एक वित्तीय पैकेज को भी अंतिम रूप दिया है. श्रीलंकाई सरकार से अपनी नाराज़गी के चलते भारत ने इस पैकेज को लंबे समय से अटका रखा था. इस नए सौदे में भारत ने श्रीलंका को नकदी बदलने (currency swaps) और ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी दी है. साथ ही खाद्य और मेडिकल आयातों के लिए कर्ज़ मुहैया कराने की सुविधा देने का वादा भी किया है. बदले में श्रीलंका ने भी भारत को लुभाने वाले कुछ फ़ैसले किए हैं. उसने जाफ़ना में चीनी परियोजनाओं को रद्द कर दिया है. साथ ही सामरिक रूप से अहम त्रिंकोमाली टैंक फ़ार्म के आधुनिकीकरण का प्रस्ताव भी भारत के सामने रखा है. श्रीलंका के इन पैंतरों से साफ़ है कि ज़रूरत पड़ने पर वो चीन को भी अपने मनमुताबिक आईना दिखा सकता है. 

निष्कर्ष

दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत की बदलती भूराजनीति ने मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों पर काफ़ी असर डाला है. दोनों ही देशों ने भारत और चीन की प्रतिस्पर्धा का भरपूर फ़ायदा उठाने की कोशिश की है. आने वाले वर्षों में इस रस्साकशी के और तेज़ होने के आसार हैं. 

मालदीव में अब्दुल्ला यामीन अपने ऊपर लगे तमाम इल्ज़ामों से बरी हो चुके हैं. देश में भारत विरोधी मुहिम  (India Out campaign) ज़ोर पकड़ने लगी है. वहां भारतीय टेक्नीशियनों, कर्मचारियों और अधिकारियों की मौजूदगी के मुद्दे को खुलकर सियासी हवा दी जा रही है. दूसरी ओर मालदीव में चीन की दिलचस्पी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इन तमाम हालातों से साफ़ संकेत मिलते हैं कि मालदीव में 2023 में होने वाले आम चुनावों में इन ताक़तों के बीच अपना रसूख़ दिखाने की होड़ और तेज़ हो जाएगी. इसी तरह श्रीलंका में भी चीन की दिलचस्पी और प्रभाव बढ़ता जा रहा है. श्रीलंका के ख़िलाफ़ भी उसने कर्ज़ के जाल में फंसाने वाली अपनी कूटनीति का प्रयोग किया है. चीन उत्तरी श्रीलंका और तमिल समुदायों के बीच अपनी पैठ बनाने की ताक में है. ज़ाहिर है चीन के इन तमाम पैंतरों से भारत की चिंता बढ़ने वाली है. कुल मिलाकर नया साल मालदीव और श्रीलंका, दोनों के लिहाज़ से बेहद प्रतिस्पर्धी साबित होने वाला है. ऐसे में देखना होगा कि भावी मसलों पर उनकी प्रतिक्रिया क्या होती है और भारत और चीन के बीच वो कैसे संतुलन बिठाते हैं. 

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Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. He focuses on broader strategic and security related-developments throughout the South Asian region ...

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