Issue BriefsPublished on Sep 14, 2023
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योजना बनाने से लेकर लागू करने तक: नेट-ज़ीरो केंद्रित बदलाव को तेज़ करने के लिए शहरों की भूमिका पर पुनर्विचार

  • Rhea Srivastava
  • Sanjay Seth
  • Sarah Harper
  • Zerin Osho

    वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 70% से अधिक और प्राथमिक ऊर्जा खपत के 75% से अधिक के लिए शहर ज़िम्मेदार हैं. 2050 तक, दुनिया की दो-तिहाई से अधिक आबादी शहरों में रहेगी, जिससे बुनियादी ढांचे की और अधिक आवश्यकता होगी और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होगी. फिर भी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हरित परिवर्तन नीतियों का डिज़ाइन बनाते समय काफी हद तक शहर, हाशिए पर रहते हैं. शहर नवाचार, प्रौद्योगिकी और साझेदारियों का लाभ उठाते हुए नीति, अभ्यास और भागीदारी को जोड़कर स्थानीय शासन मॉडलों को बदल सकते हैं. जी20 नेताओं को नेट-ज़ीरो और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्मी को सीमित करने की दिशा में जलवायु कार्रवाई (जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किए उठाए जाने वाले कदम) को तेज़ करने में शहरों की भूमिका को पहचानने और उसका समर्थन करने की ज़रूरत है. यह नीति पत्र वर्तमान रुझानों, अर्बन20 (यू20) एंगेजमेंट ग्रुप (एंगेजमेंट ग्रुप में हर जी20 सदस्य के गैर-  सरकारी प्रतिभागी होते हैं. ये जी20 नेताओं को सिफ़ारिशें पेश करते हैं और नीति-निर्माण प्रक्रिया में योगदान देते हैं) और जी20 देशों के पहले हुए संप्रेषण के आधार पर नीतियों की अनुशंसा करता है ताकि शहरों को नेट-ज़ीरो लक्ष्य की ओर ले जाने के लिए प्रभावी जलवायु कार्रवाई को लागू करने में आने वाली बाधाओं का सामना किया जा सके. ये सिफ़ारिशें शहरों को सशक्त बनाने; शहरों की तकनीक़ी, संस्थागत और वित्तीय क्षमताओं के निर्माण; जलवायु वित्त को सुविधाजनक बनाने और एकीकृत शहरी जलवायु कार्रवाई को प्राप्त करने के लिए बहु-हितधारक भागीदारी पर ज़ोर देती हैं.

Attribution:

एट्रीब्यूशन: संजय सेठ और अन्य., “योजना से कार्रवाई तक: नेट ज़ीरो परिवर्तनों को तेज़ करने के लिए शहरों की भूमिका पर पुनर्विचार,” टी20 नीति पत्र, जून 2023.

टास्क फोर्स 4: विकास को फिर से बल देना: स्वच्छ ऊर्जा और हरित संक्रमण


सार

वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 70% से अधिक और प्राथमिक ऊर्जा खपत के 75% से अधिक के लिए शहर ज़िम्मेदार हैं. 2050 तक, दुनिया की दो-तिहाई से अधिक आबादी शहरों में रहेगी, जिससे बुनियादी ढांचे की और अधिक आवश्यकता होगी और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होगी. फिर भी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हरित परिवर्तन नीतियों का डिज़ाइन बनाते समय काफी हद तक शहर, हाशिए पर रहते हैं. शहर नवाचार, प्रौद्योगिकी और साझेदारियों का लाभ उठाते हुए नीति, अभ्यास और भागीदारी को जोड़कर स्थानीय शासन मॉडलों को बदल सकते हैं. जी20 नेताओं को नेट-ज़ीरो और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्मी को सीमित करने की दिशा में जलवायु कार्रवाई (जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किए उठाए जाने वाले कदम) को तेज़ करने में शहरों की भूमिका को पहचानने और उसका समर्थन करने की ज़रूरत है. यह नीति पत्र वर्तमान रुझानों, अर्बन20 (यू20) एंगेजमेंट ग्रुप (एंगेजमेंट ग्रुप में हर जी20 सदस्य के गैर-  सरकारी प्रतिभागी होते हैं. ये जी20 नेताओं को सिफ़ारिशें पेश करते हैं और नीति-निर्माण प्रक्रिया में योगदान देते हैं) और जी20 देशों के पहले हुए संप्रेषण के आधार पर नीतियों की अनुशंसा करता है ताकि शहरों को नेट-ज़ीरो लक्ष्य की ओर ले जाने के लिए प्रभावी जलवायु कार्रवाई को लागू करने में आने वाली बाधाओं का सामना किया जा सके. ये सिफ़ारिशें शहरों को सशक्त बनाने; शहरों की तकनीक़ी, संस्थागत और वित्तीय क्षमताओं के निर्माण; जलवायु वित्त को सुविधाजनक बनाने और एकीकृत शहरी जलवायु कार्रवाई को प्राप्त करने के लिए बहु-हितधारक भागीदारी पर ज़ोर देती हैं.

1.चुनौती

दुनिया एक तेज़ी से बदलते वैश्विक परिदृश्य को अनुभव कर रही है, और इस सदी की सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना, जिसका एक आवश्यक घटक नेट-ज़ीरो (शून्य उत्सर्जन वाले) शहरों में परिवर्तन है. जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने संकेत दिए हैं कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए तेज़ और व्यापक परिवर्तनों की आवश्यकता है, जिसमें 2030 तक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कम से कम 45 प्रतिशत की कमी के लक्ष्य शामिल हैं, इसके बाद 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करना.[i] नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त मानवीय गतिविधियों के सभी पहलुओं परिवर्तनकारी बदलाव और डीकार्बनाइज़ेशन (डीकार्बनाइज़ेशन का अर्थ कार्बन डाई-ऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती है) को आवश्यक बना देता है, विशेष तौर पर  शहरी क्षेत्रों में.[ii]

शहर आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण इंजन हैं जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 80 प्रतिशत पैदा करते हैं.[iii] दुनिया की 10 सबसे बड़ी महानगरीय अर्थव्यवस्थाओं का अनुमानित संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 9.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो जर्मनी और जापान की संयुक्त अर्थव्यवस्थाओं से बड़ा है.[iv] शहर अब दुनिया की 55 प्रतिशत से अधिक आबादी का घर हैं और अनुमान है कि 2050 तक यह बढ़कर लगभग 70 प्रतिशत हो जाएगा.[v] हालांकि, शहर, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के भी 70 प्रतिशत[vi] और वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा की खपत के 75 प्रतिशत से अधिक के लिए ज़िम्मेदार हैं.[vii] साथ ही, शहरों को बार-बार भारी ऊष्मा तनाव (heat stress) की घटनाओं का सामना करना पड़ेगा और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच औसत तापमान का अंतर भी बढ़ना तय है.[viii] शहरी नागरिक- विशेष रूप से शहरी गरीब और वंचित आबादी- बाढ़, लू और आपदा की वजह से होने वाले विस्थापन जैसी कई जलवायु परिवर्तन जोखिमों के प्रति तेज़ी से संवेदनशील स्थिति में पहुंचते जा रहे हैं.[ix] जनसंख्या और उपभोग में वृद्धि और बढ़ता जलवायु जोखिम साथ मिलकर पहले से ही तनावग्रस्त नगरपालिका क्षेत्रों पर दबाव बढ़ा ही रहे हैं.

नेट-ज़ीरो शहरों, जिन्हें जलवायु-तटस्थ शहर, नेट-ज़ीरो ऊर्जा शहर और कार्बन-मुक्त शहर के रूप में भी जाना जाता है, उन शहरी क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस (CHG) उत्सर्जन की मात्रा और उत्सर्जन को हटाने या उसे प्रति-संतुलित किए जाने की मात्रा के बीच एक संतुलन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं.[x] ये शहर विभिन्न गतिविधियों जैसे ऊर्जा उत्पादन, परिवहन और कचरा प्रबंधन से अपने कार्बन फ़ुटप्रिंट को ख़त्म करने या उसे प्रति-संतुलित करने का लक्ष्य रखते हैं, जबकि वायुमंडल से सीएचजी उत्सर्जन को हटाने या उसे सोखने के उपाय लागू करते हैं. एक नेट-ज़ीरो शहरी परिवर्तन शहर की योजना, डिज़़ाइन और शासन में एक मौलिक सामाजिक-तकनीक़ी बदलाव[a] को दर्शाता है.[xi] शहरी नागरिकों की सबसे करीबी सरकार होने के नाते, शहर की सरकारें भी समुदायों को नेट-ज़ीरो लक्ष्यों के अनुरूप नवीन समाधानों के सह-निर्माण में शामिल करने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती हैं. कई शहर इस सामाजिक-तकनीक़ी बदलाव को लाने के इच्छुक हैं, और कम से कम 1,000 शहरों ने पहले ही संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC) के नेतृत्व वाले ‘शून्य की ओर दौड़’ (‘Race to Zero’) अभियान के तहत नेट-ज़ीरो उद्देश्यों के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है.[xii] फिर भी, शहरी क्षेत्रों को अपने डीकार्बनाइज़ेशन प्रयासों को लागू करने और तेज़ करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है.

शासन और नियामक प्राधिकरण

पेरिस समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौते स्पष्ट रूप से जलवायु तटस्थता प्राप्त करने में शहरों के महत्व को उजागर करते हैं. कुछ देशों ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को भी अद्यतन किया है ताकि अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं में शहरों की भूमिका को प्रतिबिंबित किया जा सके.[xiii] सरकारों के उच्च स्तर पर इस तरह की नीतियों और कदमों से शहरों को उनके नेट-ज़ीरो  लक्ष्य हासिल करने के लिए उपयोगी मार्गदर्शन और निर्देशन मिलता है.

हालांकि, राष्ट्रीय सरकारें अक्सर शहरी सरकारों की तुलना में स्थानीय मुद्दों को समझने वाली कुशल नीतियों को लागू करने में सक्षम नहीं होती हैं क्योंकि शहर की सरकार अपने विशिष्ट क्षेत्रों और चुनौतियों के बारे में विशेष जानकारी रखती हैं.[xiv] नगर पालिकाएं अधिक उन्नत उपायों को लागू करने के अपने कानूनी अधिकार में अक्सर राष्ट्रीय और राज्य सरकारों की ओर से बाधाओं का सामना करती हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान की 12वीं अनुसूची शहरों को सीमित अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है. यह अधिकार क्षेत्र मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन से संबंधित कचरा प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और शहरी वन प्रबंधन के क्षेत्रों में हस्तक्षेप करता है. अन्य गतिविधियों, जिनमें ऊर्जा उत्पादन और वितरण, परिवहन और औद्योगिक क्षेत्र शामिल हैं, पर राज्य और केंद्र सरकारों का नियंत्रण होता है. शहरी स्तर पर प्रभावी रूप से नेट-ज़ीरो स्थिति में परिवर्तन करने के लिए स्वायत्तता और समन्वय का एक संयोजन आवश्यक है, जिसमें कई हितधारकों को शामिल करके क्षैतिज एकीकरण (horizontal integration) और कई स्तरों की सरकारों के साथ ऊर्ध्वाधर समन्वय (vertical coordination) दोनों की आवश्यकता होती है.[xv]

वित्तीय तंत्र

शहरों के पास अक्सर अपनी डीकार्बनाइज़ेशन की कोशिशों के लिए वित्तपोषण के अभिनव तरीकों का उपयोग करने के लिए वित्तीय स्वायत्तता और संस्थागत क्षमता नहीं होती, जो भूमि-आधारित वित्तपोषण के साधनों और संपत्ति करों से लेकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी तक हैं. विकासशील देशों में अक्सर विकास की आवश्यकताओं, जिसमें सुलभ और पर्याप्त बुनियादी ढांचे का प्रावधान शामिल है, को  प्राथमिकता मिलती है, जबकि जलवायु संरक्षण आवश्यकताओं को एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ के रूप में माना जाता है.[xvi] संयुक्त राष्ट्र मानव बस्तियां एजेंसी (UN-Habitat) की विश्व के शहर रिपोर्ट 2022, के अनुसार जलवायु अनुकूलन को ध्यान में रखते हुए निम्न-आय वाले देशों के शहर समुदायिक कार्रवाई पर अधिक निर्भर करते हैं, जबकि उच्च-आय वाले देश जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए परिवहन और भवनों के क्षेत्रों में  दक्षता और नेतृत्व पर अधिक ध्यान देते हैं.[xvii] निम्न-आय वाले शहरों को जलवायु परिवर्तन कम करने के प्रयासों में मदद करने के लिए, उनकी वित्तीय क्षमता को मज़बूत करने की आवश्यकता है.

इसके अलावा, 2050 तक जितने शहरी क्षेत्रों की ज़रूरत होगी उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक अभी तक बने नहीं हैं.[xviii] विश्व आर्थिक मंच और विश्व बैंक का अनुमान है कि तब तक दुनिया को हर साल 3.7 से 5.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर शहरी बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा.[xix] विकसित अर्थव्यवस्थाओं को पुराने पड़ते शहरी बुनियादी ढांचे को बदलने की अतिरिक्त चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.[xx] छोटे पैमाने की सरकारों को वर्तमान में और आने वाले दशकों में शहरी संपत्ति के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पैदा होने वाले ख़तरों का सामना करने के लिए वित्तीय, कानूनी और तकनीक़ी क्षमता से लैस किया जाना चाहिए. इस तरह के उपाय छोटे पैमाने की सरकारों को बीमा, कार्बन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों से संबंधित राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव और अंतरराष्ट्रीय ईंधन बाज़ारों का बेहतर ढंग से सामना करने में मदद कर सकते हैं.

तकनीक़ी क्षमता और जागरूकता

तीसरी बाधा स्थानीय स्तर पर कार्बन-तटस्थ कार्यों की योजना और कार्यान्वयन के लिए आवश्यक तकनीक़ी विशेषज्ञता, जागरूकता और संसाधनों की कमी है. आज के तेज़ी से विकसित होते हुए प्रौद्योगिकी परिदृश्य ने शहरों को स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा-कुशल इमारतों और इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल जैसे उन्नत तकनीक़ी तरीकों के साथ प्रयोग करने में सक्षम बनाया है, जो कम कार्बन वाले शहरी विकास में सहायता करते हैं.[xxi]हालांकि, इन तरीकों को ठीक से लागू करने के लिए शहर के हितधारकों को उच्च तकनीक़ी क्षमता और संसाधन जुटाने की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, ऐसा भी हो सकता है कि अधूरी जानकारी और सीमित नेटवर्किंग के कारण शहर के अधिकारियों की-  नवीन जलवायु परिदृश्य मॉडलिंग उपकरण, शहर-स्तरीय जलवायु डाटा एकत्र करने के लिए समाग्री, और जलवायु कार्यों को लागू करने के लिए अन्य ढांचे- जैसे संसाधनों की जानकारी और उन तक पहुंच न हो. मौजूदा समय में अंतर्राष्ट्रीय शहरों के गठबंधन और नेटवर्क, जैसे कि ग्लोबल कॉन्वेंट ऑफ मेयर फॉर क्लाइमेट एंड एनर्जी (GCoM) और सी40 सिटीज क्लाइमेट लीडरशिप ग्रुप, जलवायु लक्ष्यों को लागू करने के लिए ढांचागत आधार प्रदान करते हैं और शहरों के बीच क्षैतिज रूप से ज्ञान के साझाकरण को सक्षम बनाते हैं, लेकिन वैश्विक शासन में उनकी क्षमता और प्रभाव सीमित है.[xxii]

2.जी20 की भूमिका

जी20 में शहरों को लक्षित समर्थन प्रदान कर उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण के साथ स्थानीय स्तर पर प्रतिक्रियाओं को तेज़ करके नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने के लिए वैश्विक प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम बनाया जाएगा.

तेज़ी से शहरीकरण की प्रवृत्ति और वैश्वीकरण के शहरी शासन पर प्रभाव ने शहर के नेतृत्व के लिए यह ज़रूरी बना दिया है कि वह अधिक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को अपनाए. शहर नेट-ज़ीरो संक्रमण को आगे बढ़ाने में योगदान करने के लिए आवश्यक कार्यों को करने में सक्षम हैं, जैसे कि मोडल शिफ्ट (मोडल शिफ़्ट का अर्थ परिवहन के एक माध्यम से दूसरे माध्यम में परिवर्तन करने  से है जिसके केंद्र में संवहनीय और लोचदार आपूर्ति श्रृंखला बनाने का विचार होता है. उदाहरण के लिए डिलीवरी वैन को ई-कार्गो बाइक से बदलना) को लागू करना, इमारतों और परिवहन सहित कार्बन-गहन क्षेत्रों से उत्सर्जन को कम करना और ऊर्जा दक्षता में सुधार जैसे उपायों का उपयोग करके संसाधनों के उपभोग को कम करना. कम-कार्बन नवाचारों वाली नई तकनीकों, नीतियों और व्यवसाय मॉडलों के साथ प्रयोग करने की अपनी क्षमता और संभावना के कारण शहर इनके कार्यान्वयन के लिए एक आदर्श मंच हैं.

जी20 देशों ने शहरों के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव को पहचाना है और अर्बन 20 (यू20) एंगेजमेंट ग्रुप बनाकर शहरी गतिशीलता को अंतरराष्ट्रीय विचार-विमर्श में लेकर लाया है.  केवल पांच वर्षों के भीतर, इसने शहरों और जी20 के प्रमुखों के बीच संचार का एक मज़बूत मंच स्थापित किया है, जिससे वैश्विक विकास एजेंडा को और बढ़ावा मिल रहा है और शहरी क्षेत्रों की भूमिका को अंतरराष्ट्रीय सतत विकास प्रयासों में स्वीकार किया जा रहा है.[xxiii] इस भागीदारी समूह के तहत विचार-विमर्श स्थानीय नेतृत्व का आह्वान करता है कि वह आपस में सहयोग कर क्रियान्वित की जाने वाली प्रक्रियाओं, नवीन विचारों, निर्णयों और कार्यों को सुदृढ़ करें ताकि वैश्विक स्थिरता और जलवायु लक्ष्यों, जिनमें पेरिस समझौता और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (SDG) शामिल हैं, को प्राप्त किया जा सके.

नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में शहरों की भूमिका को जी20 ने 2021 के रोम लीडर्स डिक्लेरेशन में भी स्वीकार किया है, जिसमें शहरों को “जी20 संसाधन दक्षता संवाद के माध्यम से समर्थन करने और  सतत विकास को संभव बनाने वाले के रूप में शहरों के महत्व को पहचानने” की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है.”[xxiv] 2021 के संयुक्त जी20 ऊर्जा-जलवायु मंत्रियों के ज्ञापन में भी “राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय प्राधिकरणों के बीच समन्वय और सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता” का उल्लेख है, और शहरों को “स्वच्छ, ऊर्जा-कुशल, टिकाऊ, किफ़ायती और विश्वसनीय तकनीकों की नवीन प्रयोगशालाओं” के रूप में मान्यता दी गई है.[25][xxv]

जी20 के नेता गैर-सीओ2 सुपर प्रदूषकों[b] में कटौती करके जी20 देशों के नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जलवायु परिवर्तन को रोकने की कार्रवाई को रफ़्तार देने में शहरों की भूमिका को और बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे तापमान को 2050 तक 0.6°सेल्सियस और 2100 तक 1.2°सेल्सियस तक कम किया जा सकता है.[xxvi] गैर-सीओ2 सुपर प्रदूषकों में कटौती के लिए बनाई गई रणनीतियों से शहरों में उत्सर्जन में भारी कमी लाई जा सकती है. उदाहरण के लिए, अपशिष्ट क्षेत्र से 20 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन होता है, जो “कोलकाता में कुल उत्सर्जन का 35%, नैरोबी में 31% और रियो डी जनेरियो में 22%” है.[xxvii] इसके अलावा, 2050 और 2100 में वैश्विक रूप से एचसीएफ़ के उत्सर्जन का आधा से अधिक हिस्सा अचल एयर-कंडिश्नर से होगा,[xxviii] जिसकी वृद्धि शहरी क्षेत्रों में बहुत अधिक है.

जी20 का विकास बैंकों और वित्तपोषण सुविधाओं का नेटवर्क भी नवीन वित्तीय तंत्र का समर्थन करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता प्रदान कर सकता है. यूएनईपी द्वारा जी20 की इटली की अध्यक्षता के समय उसके साथ मिलकर तैयार किए गए स्मार्ट, लचीले और टिकाऊ शहरों की कार्य योजना,[xxix] में स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन, टिकाऊ वित्त ढांचे और निवेश के लिए शहरों की क्षमता का समर्थन करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है.

3.जी20 को सिफ़ारिशें

शहरों को नेट-ज़ीरो उत्सर्जन में परिवर्तन  करने के लिए बहु-स्तरीय शासन और समन्वय से सहारा देकर सशक्त बनाएं

जी20 देशों को अपने राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDCs) को मज़बूत करने और पेरिस समझौते की प्राप्ति में योगदान करने में शहरों द्वारा प्रदान किए जाने वाले अवसरों, रचनात्मकता और गतिशीलता को पहचानना चाहिए.[xxx] जी20 सदस्य देशों के कई शहरों ने नेट-ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए अपनी स्वयं की महत्वाकांक्षी नीतियों और योजनाएं बनाई हैं. उदाहरण के लिए, सियोल महानगर की सरकार (SMG) ने 2004 में अपनी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार लागू किए, जिससे अंततः सियोल सार्वजनिक परिवहन का एक आदर्श शहर बन गया.[xxxi] इन सुधारों के परिणामस्वरूप 2004 और 2017 के बीच बस में सवारियों की संख्या में 9.4 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि हुई.[xxxii] इन सुधारों के साथ-साथ बाद में लागू किए गए अन्य सुधारों से सियोल में परिवहन उत्सर्जन में लगभग एक चौथाई की कमी आई है[xxxiii] और 2021 में देश भर में बिके इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 2020 से दोगुनी हो गई है.[xxxiv] सियोल की योजना है कि 2026 तक इलेक्ट्रिक वाहन उसके कुल पंजीकृत वाहनों का 10% हो जाएं, जिससे 2005 के स्तर के मुकाबले उत्सर्जन लगभग 43% तक कम हो सकता है.[xxxv] इसी तरह, भारत के मुंबई शहर ने अपनी महत्वाकांक्षी जलवायु संरक्षण कार्ययोजना में 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है, जो भारत के 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लक्ष्य से 20 साल पहले का है.[xxxvi]

ये सफलताएं और जी20 सदस्य देशों के उन शहरों से जुड़ी सीखें, जिन्होंने महत्वाकांक्षी जलवायु और सतत विकास नीतियों को लागू किया है, राष्ट्रीय जलवायु नीति विकास तक पहुंचनी चाहिएं. वे अन्य जी20 शहरों के ज्ञान में भी वृद्धि करने में मदद कर सकती हैं जो अपने खुद के सक्षमकारी ढांचे को डिज़ाइन कर रहे हैं.

शहरों की एक साथ आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक संस्थागत दृष्टिकोण विभिन्न कर्ताओं, क्षेत्रों और संस्थानों के बीच सहयोग और समन्वय की आवश्यकता को स्वीकार करता है ताकि उनकी अंतःक्रियाओं और अंतःनिर्भरताओं को प्रभावी ढंग से समझा जा सके.[xxxvii] शहरों की सरकारों की सक्रिय भागीदारी के बिना, जलवायु संरक्षण के लिए किए जाने वाले कामों की प्रतिबद्धताओं के वैश्विक समझौतों को ज़मीन पर होने वाली व्यावहारिक पहल में नहीं बदला जा सकता है.

शहरों की कोशिशों से बदलाव लाने की क्षमताओं को जी20 उप-राष्ट्रीय सरकारों (sub-national governments) को ज़्यादा महत्वाकांक्षी जलवायु संरक्षण कार्य करने के लिए प्रेरित कर और सक्षम बनाकर बढ़ा सकता है. शहर के नेताओं के साथ नियमित वार्ता, जो शहरों के बीच समन्वय और शहर के भीतर तकनीक़ी सहायता प्रदान करती है, का उपयोग बाधाओं और अवसरों की स्थानीय जानकारी का अनुरोध करने, कमियों और प्रमुख हितधारक समूहों की पहचान करने और राष्ट्रीय जलवायु संरक्षण कार्य योजनाओं की सफलता दर में सुधार करने के लिए किया जा सकता है.[xxxviii] इन वार्ताओं को मौजूदा शहरी नेटवर्क जैसे यू20 या ग्लोबल कॉन्वेंट ऑफ मेयर्स के माध्यम से समन्वित किया जा सकता है, लेकिन इन्हें बढ़ाया जाना होगा ताकि इसमें रियल एस्टेट मालिक, नगरपालिका के सार्वजनिक निर्माण विभाग, मेयर से जुड़े राजनीतिक नेता और अन्य स्थानीय ज्ञानधारक शामिल हों जो शहरी क्षेत्रों और उनके निवासियों के विकास को प्रभावित करते हैं. बहु-पक्षधारकों द्वारा सुविधा उपलब्ध करवाए जाने के प्रयास उद्योग के कर्ताओं और स्थानीय व्यवसायों से अंतर्ग्रहण को बढ़ावा देते हैं, भवनों के निरीक्षण या डीजल प्रतिबंध जैसी बाध्यकारी नीतियों में सुधार जारी करते हैं, और प्रमुख हितधारकों को सतत विकास एजेंडा के शूरवीरों में बदलते हैं, ज्ञान के आदान-प्रदान का समर्थन करते हैं ताकि अनुसंधान के प्रयासों में अतिरेक को कम किया जा सके, दक्षता को अधिकतम किया जा सके और निजी पूंजी को आकर्षित किया जा सके.[xxxix] यह दृष्टिकोण जलवायु नीतियों और प्रभावी निर्णय लेने के निर्माण के लिए साक्ष्य भी उपलब्ध कराता है.[xl]

इस संबंध में, जी20 के तहत शहरी 20 (यू20) भागीदारी विचार-विमर्श को स्थानीय स्तर पर नीतियों और पीयर-टू-पीयर सहयोग को प्रोत्साहित करके एकीकृत शहरी जलवायु संरक्षण कार्यों के लिए गति को बढ़ाने के लिए और अधिक काम करना चाहिए. इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:

पीयर-टू-पीयर प्रशिक्षण, जहां ऐसे शहर जो कम-कार्बन परिवहन, ऊर्जा-कुशल इमारतें, डिजिटलीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन सहित टिकाऊ विकास पहलों को शुरू करने का लक्ष्य रखते हैं, वे पेरिस, सियोल या लंदन जैसे शहरों के मौजूदा प्रयासों से सीख सकते हैं.

मौजूदा नियामक ढांचे और शहरी संवहनीयता पहलों और कार्बन के न्यूनीकरण के लिए उनकी सापेक्ष सफलता के विश्लेषण को प्रकाशित करना, जिसमें हर एक मामले (केस स्टडी) में बेहतर वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे सामाजिक लाभों के साथ प्रति डॉलर उत्सर्जन में कमी (MTCO2eq/USD) का मूल्यांकन करना.

जी20 देशों के भीतर शहरों के बीच सहयोग, जैसे उपकरण संग्रह या नगरपालिका अपशिष्ट में मीथेन पर ध्यान देना, जैसी कोशिशों की मात्रा को बढ़ाना जिससे कार्यान्वयन लागत कम होती है और भागीदारी की दरों में सुधार होता है.

  1. जलवायु संरक्षण कार्ययोजनाओं को विकसित और कार्यान्वित करने के लिए शहरों की तकनीक़ी और संस्थागत क्षमताओं को बढ़ाएं

कार्बन-तटस्थ और संवहनीय भविष्य में परिवर्तन करने के लिए, स्थानीय सरकारों और प्रशासकों को शहरी परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे की योजना, डिज़ाइन, प्रबंधन और वित्तपोषण में एक मूलभूत बदलाव लाने की ज़रूरत है.[xli] इस उद्देश्य के लिए, जी20 के शहरी 20 भागीदारी समूह को प्रमुख क्षेत्रों में काम करने के सबसे अच्छे तरीकों और ज्ञान को साझा करने का लक्ष्य रखना चाहिए, जिसमें कम-कार्बन उत्सर्जन वाला परिवहन, ऊर्जा-कुशल इमारतें, डिजिटलीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन शामिल हैं. उदाहरण के लिए, यू20 विचार-विमर्श गैर-सीओ2 सुपर प्रदूषकों में कटौती को तेज़ करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जबकि महत्वाकांक्षी और समान डीकार्बनाइज़ेशन की कोशिश साथ-साथ की जाती रहे, जिससे वायु प्रदूषण को कम करने और शहरों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का अतिरिक्त लाभ भी हासिल होगा.

प्रौद्योगिकीय उपकरणों, शहर-स्तरीय सामानों और इस तरह के कार्यों से संबंधित ढांचे को शहर की सरकारों के बीच साझा किया जा सकता है ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए बेहतर शहरी नियोजन और डिज़ाइन को सक्षम बनाया जा सके. बेंचमार्किंग और रेटिंग प्रणालियों के माध्यम से बुनियादी ढांचे की संवहनीयता को मापने और मूल्यांकन करने के लिए कई मानक और उपकरण उपलब्ध हैं. उदाहरण के लिए, भारत में स्मार्ट सर्फेसिस कोलिशन (Smart Surfaces Coalition) ने एक समग्र, कंप्यूटर-आधारित तरीका विकसित किया है जिसका उपयोग सभी शहर अपने स्वयं के डेटा के साथ कर सकते हैं, और टेरी (TERI) के साथ साझेदारी में, भोपाल में स्मार्ट सर्फेस के अनुकूलन का शहर-व्यापी विश्लेषण कर रहा है.[xlii] इसके अनुरूप, जी20 विचार-विमर्श में स्थानीय हितधारकों के कौशल विकास को प्रोत्साहित करने का भी लक्ष्य होना चाहिए ताकि डाटा संग्रह, रणनीतिक योजना प्रक्रियाओं, प्रशासनिक प्रक्रियाओं और अन्य समन्वय की बेहतर समझ हो सके.[xliii] इसके लिए, जी20 कार्यकारी समूह सार्वभौमिक मापन-प्रणाली, सामान्य शब्दावली और साझा मूल्यांकन और निगरानी ढांचे को निर्धारित कर सकते हैं, जो कि काफ़ी हद तक मौजूदा ढांचे और ज्ञान उत्पादों से ली जाए. इसी तरह, यू20 शिखर सम्मेलन को विशेषज्ञता, नीति वकालत और साथ-साथ सीखना (पीयर लर्निंग छात्रों के एक दूसरे के साथ और एक-दूसरे से सीखने की प्रक्रिया को कहते हैं. आमतौर पर यह सुविधा शिक्षण और सीखने की प्रक्रियाओं जैसे कि छात्रों के नेतृत्व में कार्यशालाओं, अध्ययन समूह, एक-दूसरे से सीखने की साझेदारी और समूह कार्यों के माध्यम से होता है) तक पहुंच प्रदान करके शहर के हितधारकों की क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

iii. जलवायु वित्त के प्रवाह को सुगम बनाएं

जलवायु परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधनों को जुटाने और वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए, शहरों को क्षमता विकास में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि जलवायु वित्त स्रोतों की सीमित जानकारी, साख की कमी और अविकसित ऋण पूंजी बाज़ार.[xliv] यू20 और जी20 के कार्यकारी समूहों, जिसमें सतत वित्त कार्य समूह भी शामिल है, के समर्थन से, शहर की सरकारें अपनी क्षमता बढ़ा सकती हैं ताकि वे नवीन वित्त तंत्र, जैसे कि संपत्ति कर और सार्वजनिक-निजी भागीदारी, की पहचान कर सकें और जलवायु वित्त को जुटा सकें.

केवल उभरते बाज़ारों में ही 2030 तक प्रतिवर्ष 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सतत निवेश के अवसर हैं.[xlv] बहुराष्ट्रीय बैंक शहरों के लिए मुख्यधारा के वित्त तक पहुंच को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. शहरों की साख को मज़बूत करने के राष्ट्रीय दृष्टिकोणों से इसे और अधिक सुगम बनाया जा सकता है.[xlvi] इसके अलावा, बहुराष्ट्रीय विकास बैंकों के पास तकनीक़ी सहायता प्रदान करने की क्षमता है जो शहरों को वैश्विक वित्तीय बाज़ारों और अनुकूलित उपकरणों, जैसे कि क्रेडिट बीमा, ऋण हानि भंडार, और नगरपालिका हरित बॉंड तक पहुंचने में सहायता कर सकते हैं. इसलिए, जी20 विचार-विमर्श को, अपने सतत वित्त कार्य समूह के माध्यम से, इस क्षमता का दोहन करने और शहरी स्तर के निवेशों को प्राथमिकता देकर बहुराष्ट्रीय विकास बैंकों की निम्न-कार्बन शहरी परियोजनाओं के वित्तपोषण में एक बड़ी भूमिका के लिए वकालत करनी चाहिए.


एट्रीब्यूशन: संजय सेठ और अन्य., “योजना से कार्रवाई तक: नेट ज़ीरो परिवर्तनों को तेज़ करने के लिए शहरों की भूमिका पर पुनर्विचार,” टी20 नीति पत्र, जून 2023.


[i] Joeri Rogelj et al., “Mitigation Pathways Compatible with 1.5 C in the Context of Sustainable Development,” in Global Warming of 1.5°C. An IPCC Special Report on the impacts of global warming of 1.5°C above pre-industrial levels and related global greenhouse gas emission pathways, in the context of strengthening the global response to the threat of climate change, sustainable development, and efforts to eradicate poverty, V. Masson-Delmotte et al., ed., 93­–174. In Press, 2016.

[ii] Karen Seto et al., “From Low- to Net-Zero Carbon Cities: The Next Global Agenda,” Annual Review of Environment and Resources 46, no. 1 (2021): 377-415, doi:10.1146/annurev-environ-050120-113117.

[iii] United Nations Environment Programme (UNEP), “Smart, Sustainable and Resilient Cities: The Power of Nature-based Solutions,” UNEP, 2022.

[iv] Richard R Florida, “The Economic Power of Cities Compared to Nations,” Bloomberg CityLab, March 16, 2017.

[v] UN-Habitat, “World Cities Report 2022: Envisaging the Future of Cities,” Nairobi, Kenya: UN-Habitat, 2022.

[vi] United Nations Environment Programme (UNEP) and International Resource Panel, “The Weight of Cities: Resource Requirements of Future Urbanization – Summary for Policymakers,” UNEP, 2018.

[vii] UNEP and International Resource Panel, “The Weight of Cities: Resource Requirements of Future Urbanization – Summary for Policymakers.”

[viii] Weilin Liao et al., “Amplified Increases of Compound Hot Extremes Over Urban Land in China,” Geophysical Research Letters 48, no. 6 (2021): e2020GL091252; Lei Zhao et al., “Global Multi-Model Projections of Local Urban Climates,” Nature Climate Change 11, no. 2 (February 2021): 152–57.

[ix] Judy L. Baker, “Climate Change, Disaster Risk, and the Urban Poor | Urban Development,” World Bank Publications, 2012.

[x] Seto et al., “From Low- to Net-Zero Carbon Cities: The Next Global Agenda”.

[xi] Frank W. Geels et al., “Sociotechnical Transitions for Deep Decarbonization,” Science 357, no. 6357 (2017): 1242-1244. ISSN 1095-9203.

[xii] UN-Habitat, “World Cities Report 2022: Envisaging the Future of Cities”

[xiii] ] Nicola Tollin et al., “Accelerated Urban Climate Action: How do the Revised Nationally Determined Contributions Stack Up?” UN-Habitat, 2022.

[xiv] ] Ana Plescia-Boyd and UN-Habitat, “Enhancing Nationally Determined Contributions through Urban Climate Action,” UN-Habitat, 2020.

[xv] UN-Habitat, “World Cities Report 2022: Envisaging the Future of Cities”

[xvi] “Sustainable Recovery 2020 Investing in Climate Change Adaptation Can Generate More Than USD 7.1 Trillion in Net Benefits,” IISD, June 15, 2020.

[xvii] UN-Habitat, “World Cities Report 2022: Envisaging the Future of Cities“

[xviii] World Bank Group, “Investing in Urban Resilience: Protecting and Promoting Development in a Changing World,” Washington: World Bank, DC, 2016.

[xix] World Economic Forum, “Inspiring Future Cities & Urban Services: Shaping the Future of Urban Development and Services Initiative,” World Economic Forum, 2016.

[xx] Gerd Schwartz et al., eds., Well Spent. USA: International Monetary Fund, 2020, Accessed May 23, 2023.

[xxi] Rhea Srivastava and Ayyoob Sharifi, “Smart Cities: Concepts and Underlying Principles,” In Resilient Smart Cities, eds. Ayyoob Sharifi and Pourya Salehi, 39-65. Cham: Springer, 2021.

[xxii] Salome Gongadze, “The Emergent Role of Cities as Actors in International Relations,” E, August 6, 2019.

[xxiii] Rhea Srivastava, “Cities as Global Actors: Enhancing Urban Leadership at G20,” The Economic Times, January 30, 2023.

[xxiv] “G20 Rome Leader’s Declaration,” Rome, October 30, 2021.

[xxv] “Joint G20 Energy-Climate Ministerial Communiqué,” July 23, 2021.

[xxvi] Y. Xu and V. Ramanathan, “Well below 2 °C: Mitigation Strategies for Avoiding Dangerous to Catastrophic Climate Changes,” Proceedings of the National Academy of Sciences 114, no. 39 (September 26, 2017): 10321. ; S. Szopa et al., “Chapter 6: Short-Lived Climate Forcers,” in Climate Change 2021: The Physical Science Basis, Contribution of Working Group I to the Sixth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change (Contribution of Working Group I to the Sixth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change, 2021), 7.

[xxvii] C40 Cities Climate Leadership Group and C40 Knowledge Hub, “Methane: Why Cities Must Act Now,” C40 Knowledge Community, July 2022.

[xxviii] P. Purohit et al., “Electricity Savings and Greenhouse Gas Emission Reductions from Global Phase-Down of Hydrofluorocarbons,” Atmos. Chem. Phys. 20, no. 19 (2020): 11305-11327, doi:10.5194/acp-20-11305-2020.

[xxix] United Nations Environment Programme (UNEP), “Smart, Sustainable and Resilient Cities: The Power of Nature-based Solutions,” UNEP, 2022.

[xxx] Global Covenant of Mayors for Climate and Energy (GCoM), “Climate Emergency: Unlocking the Urban Opportunity Together,” GCoM, 2019.

[xxxi] “Fixing a City’s Broken Public Bus Service,” Development Asia, March 22, 2023.

[xxxii] “Fixing a City’s Broken Public Bus Service,” Development Asia, March 22, 2023.

[xxxiii] “C40-Bloomberg Philanthropies Awards: Seoul’s Transformative Electric Vehicle Programme,” C40 Cities, March 17, 2023.

[xxxiv] Jo He-rim, “EV Sales Almost Double This Year in Korea,” The Korea Herald, November 15, 2021, sec. Transport.

[xxxv] “C40-Bloomberg Philanthropies Awards: Seoul’s Transformative Electric Vehicle Programme,” C40 Cities, March 17, 2023.

[xxxvi] “Mumbai Becomes First South Asian City to Aim for Carbon Neutrality by 2050,” India Today,  March 14, 2022.

[xxxvii] Gabriel Lanfranchi, Kate Kooka, Olivier Richard, and Malcolm Shield, “Delivering National Climate Action through Decarbonized Cities,” T20 Japan , 2019.

[xxxviii] Ana Plescia-Boyd and UN-Habitat, “Enhancing Nationally Determined Contributions through Urban Climate Action”.

[xxxix] Jennifer Layke, Eric Mackres, Sifan Liu, Nate Aden and Renilde Becqué, “Accelerating Building Efficiency: Eight Actions for Urban Leaders.” World Resources Institute, 2016.

[xl] Ana Plescia-Boyd and UN-Habitat, “Enhancing Nationally Determined Contributions through Urban Climate Action”.

[xli] TERI and South Pole, “Enabling Cities to Implement Innovative Sustainable Urban Solutions,” New Delhi: TERI, 2022.

[xlii] Megha Behal, Greg Kats, and Rashad Kaldany, “Ensuring That India’s Cities Remain Liveable Despite Extreme Heat: The Role of Smart Surfaces for Bhopal as Model for Urban India,” May 2022.

[xliii] Gabriel Lanfranchi, Kate Kooka, Olivier Richard, and Malcolm Shield, “Delivering National Climate Action through Decarbonized Cities,” T20 Japan , 2019.

[xliv] TERI and South Pole, “Enabling Cities to Implement Innovative Sustainable Urban Solutions”.

[xlv] Barbara Buchner et al, “Global Landscape of Climate Finance 2021,” Climate Policy Initiative, December 14, 2021.

[xlvi] Hannah Abdullah, Ursula Eicker, Karim Elgendy, Roxana Dela Fiamor, Namita Kambli, and Adeline Rochet, “Empowering Cities in the Race to a Just Net Zero Transition,” T20 Indonesia, 2022.

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Zerin Osho is the Director of IGSD India Program, focusing on fast mitigation strategies and sustainable development in climate-vulnerable states. With over a decade at ...

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