ज़ूनोटिक बीमारियां, यानी वो बीमारियां जो जानवरों से इंसानों और इंसानों से जानवरों को हो सकती हैं, वो वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा बोझ हैं. इन बीमारियों को फैलाने में कई तरह के रोगाणुओं की भूमिका होती है, जिनमें बैक्टीरिया, वायरस और ऐसे परजीवी जीव होते हैं, जो इंसानों और जानवरों दोनों की मौत का सबब बन सकते हैं. दुनिया में हर साल 6 जुलाई को ‘वर्ल्ड ज़ूनोसेस डे’ मनाया जाता है. इस दिन का मक़सद, जानवरों से फैलने वाली बीमारियों को लेकर जागरूकता फैलाने वाली गतिविधियों का प्रचार करना होता है. 2017 में एक अनुमान लगाया गया था कि जानवरों से हर साल क़रीब 2.5 अरब लोग बीमार पड़ते हैं और दुनिया भर में लगभग 27 लाख लोगों की जान इनकी वजह से चली जाती है. दुनिया में 200 तरह से भी ज़्यादा के ज़ूनोसेस की जानकारी है. अनुमानों के मुताबिक़, मानव जाति को होने वाली जिन लगभग 70 प्रतिशत नई बीमारियों का पता लगाया गया है, उनके पीछे जूनोसेस होते हैं. इसका मतलब है कि वो जंगली जानवरों में पैदा होते हैं, या फिर घरेलू जानवरों के ज़रिए संक्रमण फैलाते हैं. आज जब दुनिया में जानवरों से फैलने वाली बीमारियों में तेज़ी आ रही है, तो उन कारणों को समझना ज़रूरी है, जो इन बीमारियों के फैलने को बढ़ावा देते हैं. तभी जाकर ज़ूनोटिक बीमारियों के जोखिमों पर असरदार ढंग से क़ाबू पाया जा सकता है. समस्या की विशालता को देखते हुए अलग अलग क्षेत्रों में काम करने वाली संस्थाओं के बीच तालमेल बढ़ाने की ज़रूरत है, तभी इन बीमारियों को बढ़ाने में योगदान देने वाले जटिल कारणों से छुटकारा पाया जा सकता है और इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत पर इनके संक्रमण और दुष्प्रभावों का मुक़ाबला किया जा सकता है.
समस्या की विशालता को देखते हुए अलग अलग क्षेत्रों में काम करने वाली संस्थाओं के बीच तालमेल बढ़ाने की ज़रूरत है, तभी इन बीमारियों को बढ़ाने में योगदान देने वाले जटिल कारणों से छुटकारा पाया जा सकता है और इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत पर इनके संक्रमण और दुष्प्रभावों का मुक़ाबला किया जा सकता है.
कोविड-19 महामारी ने जानवरों से होने वाली संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिए ज़्यादा एकीकृत और सक्रिय नज़रिए की ज़रूरत को रेखांकित किया है. पहला, जोखिम की जानकारी देने और सामुदायिक स्वास्थ्य में ज़ूनोटिक बीमारियों को लेकर सोच में सुधार लाने की आवश्यकता है. इसके लिए ज़ूनोटिक बीमारियों के बारे में जनता को सटीक और प्रभावी तरीक़े से जानकारी देता, इनके जोखिमों और रोकथाम के उपायों के प्रति जागरूकता फैलाना और ग़लत धारणाओं और ग़लत जानकारी से निपटने के उपाय करने की ज़रूरत है. दूसरा, जलवायु परिवर्तन ऐसी बीमारियों को तमाम तरीक़ों से फैलने में योगदान दे रहा है. तापमान और बारिश के पैटर्न बदलाव बीमारी फैलाने वाले जीवों और इनको अपने शरीर में पालने वाले जानवरों के बर्ताव में बदलाव आ सकता है, जिससे जानवरों से फैलने वाले रोगाणुओं का संक्रमण बढ़ सकता है. जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाली मानवीय गतिविधियों जैसे कि जंगलों का ख़ात्मा भी ऐसे माहौल पैदा करते हैं, जो ज़ूनोटिक बीमारियों के प्रसार के लिए मुफ़ीद होते हैं. इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन से इकोसिस्टम में ख़लल पड़ सकता है, जिससे ऐसे जीवों को अपने शरीर में पालने वाले, इनका प्रसार करने वाले और ख़ुद रोगाणुओं के बीच संपर्क में बदलाव आ सकता है, इससे जानवरों से इंसानों तक बीमारियों के फैलने की आशंका में इज़ाफ़ा हो सकता है. दुनिया में बढ़ते कारोबार और इंसानी अप्रवास के साथ जोड़कर देखें तो ये कारण, नई नई ज़ूनोटिक बीमारियों के उभार और उनके प्रसार में योगदान दे रहे हैं. तीसरा, इन बीमारियों को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर नीतियों और नियमों का विकास करने और उन्हें लागू करने की ज़रूरत है.
ज़ूनोटिक बीमारियों पर नज़र रखने और इनके प्रशासन की वैश्विक व्यवस्था इस समय टुकड़ों में बंटी हुई है. और, इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत की ज़िम्मेदारी संभालने वाले संगठनों के बीच आपस में तालमेल का अभाव दिखता है. तालमेल की ये कमी, इन बीमारियों की रोकथाम की व्यवस्था में दरारें डालती है, जिससे दुनिया भर के समुदायों के बीच ज़ूनोटिक बीमारियों के फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है. ज़ूनोटिक बीमारियों को प्रभावी तरीक़े से रोकने के लिए, तमाम भागीदारों और उनके लिए काम करने वाले संगठनों बीच सहयोग की सख़्त ज़रूरत है. (Table 1)
Table 1: प्रशासन के स्तर के हिसाब से ज़ूनोसेस की बीमारियां रोकने के सुझाव
Micro Level |
individual or community level |
Promote good hygiene practices, such as handwashing, proper food handling and preparation |
Safe disposal of animal waste |
Education and awareness campaigns |
Access to healthcare services and veterinary care -to detect and treat zoonotic diseases in a timely manner. |
Meso Level |
Organisations and institutions |
Coordination and collaboration between different sectors- involvement of public health agencies, veterinary services, environmental agencies, and other relevant stakeholders. |
Develop and implement surveillance systems for the early detection and monitoring of zoonotic diseases |
Establish protocols for reporting and responding to outbreaks, as well as conducting research and sharing information on zoonotic diseases. |
Macro level |
National and international governance |
Enact legislation and regulations to ensure the safety of food production and supply chains, as well as the welfare of animals. For instance, strengthening wildlife trade regulations to reduce the risk of zoonoses emergence. |
Allocate resources for research, surveillance, and capacity building in zoonotic disease prevention and control |
International cooperation and collaboration to address zoonotic diseases that transcend national borders. |
Invest in research and development to advance scientific understanding of zoonotic diseases and develop innovative tools and strategies for prevention and control |
इस नज़रिए के तहत इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत के बीच आपस में जुड़ाव को स्वीकार करते हुए, तमाम सेक्टरों और भागीदारों के बीच सहयोग की बात पर ज़ोर दिया जाता है. मिसाल के तौर पर वैश्विक स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और वर्ल्ड ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्थ (OIE) के साथ मिलकर ग्लोबल अर्ली वार्निंग सिस्टम फॉर मेजर एनिमल डिज़ीज़ेज (GLEWS) पर काम करता है. आपसी सहयोग की ये व्यवस्था इन सभी एजेंसियों की ताक़त का इस्तेमाल करके जानवरों से होने वाली बीमारियों के ख़तरों के प्रति आगाह करती है, उनकी रोकथाम और उन पर क़ाबू पाने के लिए काम करती है. WHO ये काम डेटा साझा करने और जोखिमों का मूल्यांकन करके करता है, जिससे किसी बीमारी से निपटने के लिए सही समय पर पूरे तालमेल के साथ क़दम उठाए जा सकें. इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय समझौते और संधियां जैसे कि कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज़ (CITES) और कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी ने भी ज़ूनोटिक बीमारियों को बढ़ाने के प्रमुख कारणों जैसे कि जंगली जानवरों के कारोबार और उनके रहने के इलाक़ों में उथल-पुथल से निपटते हुए, इन बीमारियों की रोकथाम में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. ये संधियां ज़ूनोटिक रोगाणुओं के प्रसार की रोकथाम के लिए टिकाऊ बर्ताव और नियमों को बढ़ावा देते हैं. मिसाल के तौर पर CITES संरक्षित जीवों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नियमन करता है. इनमें वो जीव भी शामिल होते हैं, जिनसे ज़ूनोटिक बीमारियां हो सकती हैं. इन प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करके CITES इंसानों तक इन बीमारियों के प्रसार की रोकथाम करने की कोशिश करता है. इसी तरह कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी, जैव विविधता के संरक्षण और उनके सही इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए काम करता है, जिससे ज़ूनोटिक बीमारियों के उभार और उनकी रोकथाम में मदद मिलती है. वन हेल्थ अलायंस ऑफ़ साउथ एशिया (OHASA) जैसे सहयोगी ढांचों को भी इसीलिए स्थापित किया गया है, जिससे दक्षिणी एशिया में ज़ूनोटिक बीमारियों को उभरने और उनके प्रसार को रोका जा सके. ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) ऐसे नए रोगाणुओं को उभरने से रोकता है, जो वैश्विक समुदाय के लिए ख़तरा बन सकते हैं. ये सहयोगात्मक प्रयास, ज़ूनोटिक बीमारियां पैदा होने से रोकने, उनका पता लगाने और उनसे निपटने के प्रयासों में काफ़ी बड़ा योगदान देते हैं. महामारी संधि को लेकर आजकल चल रही बातचीत इस बात पर ज़ोर देती है कि सदस्य देश, वन हेल्थ की निगरानी व्यवस्था, प्रयोगशाला की क्षमताओं और महामारी में तब्दील होने की क्षमता रखने वाली उष्णकटिबंधीय उपेक्षित बीमारियों से जुड़े जोखिमों को कम करने के प्रति वचनबद्धता जताएं. वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने ‘वन हेल्थ’ के नज़रिए की अहमियत को स्वीकार किया है. इस नज़रिए के तहत इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत के आपस में जुड़े होने की बात को स्वीकार करते हुए ज़ूनोटिक बीमारियों से निपटने के लिए तमाम सेक्टरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया जाता है. ज़ूनोटिक बीमारियों की रोकथाम और उन पर क़ाबू पाने के लिए भारत ने तमाम सेक्टरों के बीच को-ऑर्डिनेशन फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ़ ज़ूनोटिक डिज़ीज़ेज प्रोग्राम शुरू किया है. इसके अतिरिक्त भारत ने रोडमैप टू कॉम्बैट ज़ूनोसेस इन इंडिया (RCZI) पहल को भी विकसित किया है. इसका लक्ष्य देश में ज़ूनोसेस पर क़ाबू पाने के लिए रिसर्च के विकल्पों की पहचान करके उन्हें प्राथमिकता देना है.
ज़ूनोटिक बीमारियों पर नज़र रखने और इनके प्रशासन की वैश्विक व्यवस्था इस समय टुकड़ों में बंटी हुई है. और, इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत की ज़िम्मेदारी संभालने वाले संगठनों के बीच आपस में तालमेल का अभाव दिखता है.
G20 की भूमिका
G20 19 देशों की सरकारों और यूरोपीय संघ (EU) की सरकारों और उनके केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों का मंच है. ज़ूनोटिक बीमारियों का पता लगाने, उनकी रोकथाम और निदान में G20 तमाम सेक्टरों को साथ लाकर आपसी सहयोग और बेहतरीन उपाय साझा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. G20 में इस बात की काफ़ी संभावना है कि वो अपने प्रभावों और संसाधनों का इस्तेमाल करके ज़ूनोटिक बीमारियों की जड़ का पता लगाए. इसके लिए साझा प्रयासों, फंड की व्यवस्था और नीतिगत ढांचे तैयार करने में योगदान दे. G20 इन क्षेत्रों में सहयोग कर सकता है. जैसे कि,
- इंसानों, जानवरों और पर्यावरण की सेहत के बीच आपसी संपर्क के लिए डेटा जमा करने की व्यवस्था सुधारने के लिए G20 स्वास्थ्य के पेशेवरों, जानवरों के डॉक्टरों, पर्यावरणविदों और इंसानों जानवरों के बीच संपर्क के साक्षी रहने वाले लोगों और अन्य प्रासंगिक भागीदारों के बीच तालमेल बढ़ा सकता है, ताकि इन बीमारियों का जल्दी से जल्दी पता लगाकर उनसे निपटने की व्यापक योजना तैयार की जा सके.
- ज़ूनोटिक बीमारियों की निगरानी व्यवस्था को मज़बूत बनाने यानी अर्ली वार्निंग सिस्टम को सुधारने, प्रयोगशालाओं की क्षमता बढ़ाने और डेटा साझा करके उनके विश्लेषण को मज़बूत बनाना
- ज़ूनोसेस की रोकथाम के लिए रिसर्च और विकास की क्षमताओं को बढ़ाना. इसमें इकोलॉजी और ज़ूनोटिक बीमारियों की जानकारी के विज्ञान और टीकों, जांच और इलाज के विकास को बढ़ावा देना शामिल है.
- ज़ूनोसेस की रोकथाम के लिए पर्यावरण के लिए मुफ़ीद आदतों को बढ़ावा देना भी काफ़ी अहम है. इसमें बीमारी के उभार के कारणों जैसे कि जंगलों की कटाई और जानवरों के रहने के क़ुदरती इलाक़ों का खात्मा रोकना शामिल है.
- ये सुनिश्चित करना कि दुनिया भर में ज़ूनोटिक बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के उपाय प्रभावी ढंग से लागू हों. इसमें स्वास्थ्य और इंसानों जानवरों के संपर्क वाले उद्योगों में क्षमता निर्माण में मदद करना, ज़रूरतमंद देशों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना और अंतरराष्ट्रीय मानकों और दिशानिर्देशों को बढ़ावा देना और अपनाना शामिल है.
तमाम उपायों और समझौतों को लागू करने के बावजूद ज़ूनोटिक बीमारियों की रोकथाम का मौजूदा वैश्विक ढांचा बंटा हुआ है. ज़ूनोटिक बीमारियों की रोकथाम के वैश्विक प्रयासों जैसे की निगरानी व्यवस्था को मज़बूत करने, रिसर्च और विकास की क्षमताओं को बढ़ाने, टिकाऊ बर्ताव को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर बीमारियों की रोकथाम और उन पर क़ाबू पाने की प्रभावी व्यवस्थाएं तैयार करने में G20 एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.
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