Issue BriefsPublished on May 23, 2023
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Localising Globalisation In The Bay Of Bengal The Indian Imperative

बंगाल की खाड़ी में ग्लोबलाईज़ेशन का स्थानीय स्वरूप: भारत के लिए अति आवश्यक

  • Soumya Bhowmick
  • Debosmita Sarkar

    हालिया वर्षों में वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के लचीलेपन को बढ़ते आर्थिक संरक्षणवाद और लगातार बदलते रहने वाली भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक तनाव की कसौटी पर परखा जा रहा है. वैश्विकरण के पूर्व समर्थक अमेरिका और यूरोपीय संघ भी चीन पर अत्यधिक आधारित ग्लोबल वैल्यू चेन यानी कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं की वज़ह से लगने वाले झटकों से स्वयं परेशान दिखाई दे रहे हैं. वस्तुओं और सेवाओं के स्थानीयकरण को मिल रहा महत्व एक वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था की व्यवहार्यता पर सवालिया निशान लगा रहा है. बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में, भारत के पास अगले दशक में विकास के ध्रुव के रूप में चीन को प्रतिस्थापित करने और वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने का बेहतरीन मौका उपलब्ध है. लेकिन इसके लिए भारत को दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है. इसमें पहला पहलू है आत्मनिर्भर और मज़बूत क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं का विकास करना, जबकि दूसरा पहलू है उच्च विकास और आर्थिक अभिसरण के लिए वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में बंगाल की खाड़ी का एक आर्थिक ब्लॉक के रूप में आर्थिक एकीकरण करना. अपने हितों को अपने क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संरेखित करने के लिए, भारत को तीन क्षेत्रों - यानी, भोजन, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी, को प्राथमिकता देनी चाहिए. कनेक्टिविटी के मुद्दों पर कार्यात्मक सहयोग भी बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में वैश्वीकरण के स्थानीयकरण की भारतीय अनिवार्यता के लिए अहम साबित होगा.

Attribution:

एट्रीब्यूशन : सौम्या भौमिक एवं देबोस्मिता सरकार, ‘‘लोकलाइजिंग ग्लोबलाइजेशन इन द बे ऑफ बंगाल: द इंडियन इम्पेरटिव,’’ ओआरएफ ओकेशनल पेपर नं. 394, मार्च 2023, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.

बंगाल की खाड़ी में वैश्वीकरण का बदलता स्वरूप

1911 में, जब ब्रिटिश शासकों ने भारत की राजधानी को कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली स्थानांतरित किया था, तो इस फ़ैसले ने बंगाल की खाड़ी (बीओबी) क्षेत्र में स्थित तटीय देशों- यानी बांग्लादेश, इंडोनेशिया, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड के साथ भारत की क्षेत्रीय संपर्क की संभावनाओं को सीमित अथवा कम कर दिया था.[1] थाईलैंड को छोड़कर अन्य देश काफ़ी हद तक अंतमुर्खी थे. इस तरह उनकी अर्थव्यवस्थाएं बाज़ार की ताकतों की तुलना में सरकार पर अधिक आश्रित थीं. 1990 के दशक के आसपास क्षेत्र के अनेक देशों में बाज़ार संचालित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण होने के बाद, बीओबी (BoB) देशों ने फिर से ग्लोबल वैल्यू चेन (GVC) में शामिल होना शुरू कर दिया. इन देशों ने ऐसी नीतियां अपनानी शुरू कर दी, जिसकी वज़ह से वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, प्रौद्योगिकी और सूचना का मुक्त प्रवाह सुगम होने लगा था.

उसके बाद से बीओबी (BoB) देश और व्यापक रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र आर्थिक साझेदारी के लिए एक मज़बूत बाज़ार बनकर उभरा है. ऐसा होता भी क्यों नहीं, आखिरकार यह क्षेत्र दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी का घर होने के साथ ही[2] दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं और सबसे व्यस्त समुद्री व्यापार मार्ग जो है.[3] चीन का मुकाबला करने के लिए क्षेत्र के देशों के बीच तथा अतिरिक्त क्षेत्रीय देशों के बीच साझेदारी में अधिक उत्साह दिखाई देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और वह भारत के साथ ही लगभग हर इंडो-पैसिफिक यानी कि भारत-प्रशांत देश के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार और निवेश भागीदार भी हैं. दरअसल, चीन के साथ ट्रेड वॉल्यूम यानी कि व्यापार की मात्रा में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि हुई है (देखें परिशिष्ट 1). उदाहरण के लिए, 2022 में भारत-चीन व्यापार 135.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है.[4]

2019 के अंत में कोविड-19 महामारी से पहले, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' [a] रणनीति से उपजने वाले ख़तरे को ध्यान में रखते हुए भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच लिंक स्थापित करने के लिए ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को लेकर उत्साह दिखाया था. भारत-प्रशांत क्षेत्र में लिंक स्थापित करते हुए अमेरिका (US), जापान और ऑस्ट्रेलिया भी चीनी ख़तरे से पार पाने अथवा उसे रोकने की कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इस लिंक में अमेरिका के नेतृत्व वाला इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) तथा कॉम्प्रीहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) शामिल हैं. कॉम्प्रीहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) 11 एशिया-प्रशांत देशों का प्रतिनिधित्व करता है. ये दोनों समझौते वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार के लिए बाधाओं और उससे संबंधित व्यापार लागत को कम करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं. बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए इस क्षेत्र के देशों के साथ मज़बूत संबंध स्थापित करने का अर्थ यह है कि इन दोनों ही देशों को व्यापार और वाणिज्य के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम करने का अवसर मिलेगा. चीन की मौजूदगी का मुकाबला करने के लिए ही इन अर्थव्यवस्थाओं के बीच सक्रिय जुड़ाव देखा जा रहा है. उनकी इसी कोशिश ने व्यापक रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र में आने वाले BoB क्षेत्र को वैश्विक अर्थव्यवस्था का गुरुत्वाकर्षण बनाकर वैश्विक व्यापार और आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में सबसे अग्रणी स्थान दिलवा दिया है.

2019 के उत्तरार्ध में कोविड-19 महामारी का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव देखने को मिला था. सबसे अहम बात यह रही कि चीनी उत्पादन अथवा विनिर्माण पर अत्यधिक आश्रित वैश्विक आर्थिक विकास को नुक़सान पहुंचाना शुरू हो चुका था.[5] बार-बार लगने वाले लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों ने बाज़ार की मांग-आपूर्ति की गतिशीलता को संतुलन के करीब पहुंचने से रोक दिया था. इस महामारी ने आपूर्ति श्रृंखला में विनाशकारी व्यवधान पैदा करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों की कमी को भी जन्म दे दिया था.

2020 से, कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को दोहरा सबक दिया है. सबसे पहला सबक यह था कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं की चीनी अर्थव्यवस्था पर अति-निर्भरता को कम करना बेहद ज़रूरी हो गया था. वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले इस कारक को महामारी-प्रेरित पहले लॉकडाउन ने तेज़ी से बढ़ावा दिया और यही फिर उत्पाद बाज़ारों में तेज़ी से गिरावट का कारण बना. इस गिरावट की सबसे बड़ी वज़ह और एक महत्वपूर्ण घटक चीन में आपूर्ति-श्रृंखला में आए व्यवधान थे. इसके अलावा अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि में अमेरिका और जापान जैसे देशों ने चीन में विनिर्माण ठिकानों के विकल्प ख़ोजने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया था. दूसरी ओर वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया, ताइवान और भारत जैसे देश चीन से बाहर निकलने के लिए उत्सुक निवेशकों का स्वागत करने के लिए प्रतिस्पर्धी बन गए थे. (टेबल 1 देखें).[6], [7],[8] ( 7 and 8 endnotes are part of table)

टेबल 1: इंटरनेशनल पॉलिसी सिग्नल्स यानी कि अंतर्राष्ट्रीय नीति संकेत

Country Examples of Policy Signalling
Japan In early April 2020, the government earmarked a stimulus package of $2.3 billion to help its manufacturers shift production out of China to relocate to alternate locations or move back to Japan.[7]
US Imposition of tariffs applied exclusively to Chinese goods worth $550 billion between 2018-20. Multiple statements by former President Donald Trump suggested that American companies were to immediately search for bases other than China to avoid tariffs.[8]

स्त्रोत: कोविड-19: एफडीआई डायनैमिज्म इन साऊथ एंड साऊथईस्ट एशिया, ओआरएफ[9]

 

इलेक्ट्रॉनिक्स सेगमेंट यानी कि क्षेत्र के दिग्गज खिलाड़ियों के असेंबली पार्टनर्स यानी कि कलपूर्जों को जोड़ने वाले अब चीन से निकलकर दक्षिण अथवा दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों में जाने के इच्छुक हैं. मसलन, एप्पल की भारत में विनिर्माण का विस्तार करने की योजना है. इतना ही नहीं एप्पल के आपूर्तिकर्ता फॉक्सकॉन की भी अगले तीन वर्षों में भारत में एक बिलियन अमेरिकी डॉलर तक निवेश करने की योजना है.[10] ऑटोमोबाइल पार्ट्स, फुटवियर और उपकरण के निर्माता भी अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने या इन्हें स्थानांतरित करने के इच्छुक दिखाई दे रहे हैं.

दूसरा, महामारी के दौरान उत्पन्न हुई परिवहन संबंधी बाधाओं ने सरकारों को अंतर-देशीय आपूर्ति श्रृंखलाओं का तुलनात्मक लाभ उठाने की बजाय, मूल्य श्रृंखलाओं को अंतर-क्षेत्रीय बनाने और घरेलू पर्याप्तता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया. सरकारों के इस फ़ैसले ने लचीली घरेलू क्षमताओं की दिशा में जाने का मार्ग प्रशस्त किया. इतना ही नहीं इसकी वज़ह से प्रतिस्पर्धी कीमतों पर आवश्यक और ग़ैर-आवश्यक वस्तुओं दोनों की सोर्सिंग को लेकर चीन का विकल्प भी तैयार हो गया. इन सब बातों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि महामारी के बाद की दुनिया में वैश्वीकरण के रुझानों में नए आयाम जोड़ते हुए, विभिन्न देश अब आर्थिक समूहों और बहुपक्षीय प्लेटफार्मों में अपनी भागीदारी के मामले को लेकर अधिक सतर्क दिखाई देने लगे हैं.

उदाहरण के लिए, 2020 में, भारत ने दो कारणों से: मज़बूत घरेलू बाज़ार के हितों की रक्षा करने और आरसीईपी में चीन की भागीदारी से ख़ुद को अलग करने के लिए, दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक ब्लॉक, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (IRCP) में शामिल नहीं होने का फ़ैसला लिया था.[11] इसी प्रकार 2022 की शुरूआत में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने ऐतिहासिक व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौते की वज़ह से भारतीय निर्यातकों को अफ्रीकी और अरब बाज़ारों तक पहुंचने बनाना आसान हो जाएगा. इसी प्रकार समझौते के कारण ही इन दोनों देशों के बीच दो तरफा व्यापार मौजूदा यूएस 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अगले पांच वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा.[12]

महामारी के बाद की स्थिति में सुधार का मार्ग सुगम बनाने की दिशा में की गई अनेक कोशिशों में भारत-यूएई की उपरोक्त कोशिश भी शामिल है. इसके बावजूद अब भी अनेक चुनौतियां पेश आ रही है, जिसमें 2022 में चीन की 'शून्य-कोविड' नीति की चुनौती शामिल है. चीन की इस नीति का घरेलू स्तर पर व्यापक विरोध हो रहा है. चीन की इस नीति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना झेलनी पड़ रही है. वैश्विक समुदाय का आरोप है कि चीन की इस नीति के कारण ही पुनर्निर्माण के लिए वैश्विक संभावनाएं और प्रयास प्रभावित हुए हैं. चीन की बड़े पैमाने पर तालाबंदी और प्रतिबंध लगाने जैसे कट्टरपंथी उपायों ने ख़ुदरा कारोबार से लेकर ऑटोमोबाइल निर्माण तक के आर्थिक क्षेत्रों को नए सिरे से प्रभावित किया है. नवंबर 2022 में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीएवा ने बीजिंग से आग्रह किया था कि ‘‘चीन को अपने यहां आपूर्ति श्रृंखलाओं के कामकाज का आकलन करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए कि उसके आकलन का दुनिया के बाकी हिस्सों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है.’’[13]

यह तय है कि चीन में हाल ही में कोविड-19 के मामलों में आए उछाल की वज़ह से अन्य देशों के व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधानों से बुरा प्रभाव पड़ने वाला है. चीन में कोरोना का बढ़ता असर बढ़ते वैश्विक आर्थिक संकट की गंभीरता को और गहरा करने का काम करेगा. BoB के आसपास का क्षेत्र इस वक्त निरंतर परिवर्तन अथवा उठापटक का सामना कर रहा है. एक ओर जहां श्रीलंका में एक पूर्ण आर्थिक पतन की स्थिति देखी जा रही है, वही एक सैन्य तख़्तापलट और भारी बेरोज़गारी की स्थिति से म्यांमार परेशान है. इसी प्रकार बांग्लादेश और भारत में घरेलू मुद्रा में अस्थिरता के साथ ही मुद्रास्फीति में वृद्धि का असर हो रहा है. उधर पाकिस्तान भी राजनीतिक उथल-पुथल और वित्तीय आपातकाल का सामना कर रहा है. नेपाल का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है, जबकि उसका विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है. इसके अलावा यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष की वज़ह से वैश्विक दक्षिण के देशों में ऊर्जा बाज़ारों को अव्यवस्थित कर रखा है. इसके साथ ही खाद्य-तेल निर्यातक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती और खाद्य कीमतों पर ऊर्जा मूल्य वृद्धि के प्रभाव (चित्र 1 देखें) ने विशेषत: गरीब वर्ग के लिए खाद्य सुरक्षा को एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना दिया है.

चित्र 1: मार्च 2022 तक चुनिंदा देशों में खाद्य मुद्रास्फीति में देखी गई वार्षिक वृद्धि (प्रतिशत में)

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स्त्रोत: ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स[14]। *मैक्सिको और वियतनाम के लिए डेटा अप्रैल 2022 से है.

यूएस (US)और यूरोपीय संघ (EU) दोनों वर्तमान में चीन पर निर्भर जीवीसी से स्वायत्त होने के लिए औद्योगिक संप्रभुता [b] की नीति को अपना रहे हैं. यूएस और यूरोपीय संघ (EU) ने ईयू-यूएस ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल (TTC) और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) जैसे समझौते तैयार किए हैं, जिसमें चीन शामिल नहीं है. इसमें यूएस और यूरोपीय संघ ने अपना ध्यान ‘‘समान विचारधारा वाले देशों’’ पर केंद्रित किया हैं.[15] 2022 में, बाली में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के मौके पर, अमेरिका ने चीन के साथ ‘‘प्रबंधित प्रतिस्पर्धा’’ पर अपना ध्यान देने की नीति को दोहराया था. लेकिन चीन लगातार इसे अस्वीकार करता आया है.[16] अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला बनाने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है. अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं में से 40 प्रतिशत को रूस से आयात करने वाले यूरोपीय संघ के देशों पर ऊर्जा की कीमतों में निरंतर वृद्धि का व्यापक प्रभाव पड़ा है. ऊर्जा के साथ-साथ, एल्युमिनियम और निकेल जैसी प्रमुख धातुओं की कीमतों में भी तेज़ी देखी गई, जिसके चलते बाज़ार मूल्य में इज़ाफ़ा होते देखा गया.[17]

यह भी स्पष्ट ही है कि हालिया वर्षों में चीनी अर्थव्यवस्था में देखी जा रही मंदी की वज़ह से वैश्विक अर्थव्यवस्था कमज़ोर हुई है.[18] घरेलू मांग में गिरावट की वज़ह से विदेशी निर्यातकों को नुक़सान पहुंचा है. इसी प्रकार चीन में सख़्त लॉकडाउन और उससे संबंधित प्रतिबंधों ने विशेषत: अन्य एशियाई देशों में निमातार्ओं की आपूर्ति को प्रभावित किया है. इसी प्रकार बढ़ती ब्याज दरों और बढ़ती आर्थिक मंदी के साथ-साथ अमेरिका और यूरोप में मुद्रास्फीति का दबाव भी चुनौती बनकर उभरा है. इन सभी कारणों ने वैश्विक व्यापक आर्थिक मापदंडों की जटिल व्यवस्था में मौजूद ख़ामियों को उजागर किया है.

वास्तव में वैश्वीकरण के प्रतिमान, जैसा कि दुनिया जानती है, दुनिया भर में इवॉल्व यानी कि विकसित होने लगे हैं. ऐसे में नीति निर्माताओं के समक्ष एक नीति विरोधाभास प्रकट हो गया है. अब उन्हें वैश्वीकरण, स्थानीयकरण या 'ग्लोकलाइजेशन' के बीच में से किसी एक का चयन करना है. तीसरे विकल्प यानी कि 'ग्लोकलाइजेशन' का चुनाव करते वक़्त नीति निर्माताओं को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आखिर वैश्विक अर्थव्यवस्था के भीतर स्थानीयकरण की सीमा क्या तय की जानी चाहिए. जहां तक भारत का सवाल है तो यह साफ़ है कि क्षेत्र के अन्य देशों के साथ संबंध मज़बूत होने से क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं के निर्माण पर ध्यान देकर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जा सकता है. विकसित देश भू-राजनीतिक घटनाओं के कारण औद्योगिक संप्रभुता की नीति को अपना रहे है. अत: यह ज़रूरी हो गया है कि अब भारत को भी नए उत्पादों और आपूर्तिकतार्ओं की पहचान करने के लिए एक विविधीकरण विश्लेषण करना चाहिए. इस स्थिति में ही प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव यानी कि उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन और 'मेक इन इंडिया' जैसी नीतियां कारगर साबित होती हैं. इसका कारण यह है कि इन नीतियों की वज़ह से ही घरेलू फर्मों को बाकी दुनिया के साथ कमोडिटी पैरिटी यानी कि वस्तु समानता और प्राइस कम्पीटिटिवनेस यानी कि मूल्य प्रतिस्पर्धा के लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिलती हैं.

बंगाल की खाड़ी के लिए 'ग्रैविटी मॉडल' लागू करना

एक बदलती वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि और चीनी अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की बढ़ती अनिवार्यता को देखते हुए  BoB या बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों को व्यापार और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण पर अपनी इंटर्नल डायनैमिक्स यानी कि आंतरिक गतिशीलता को परखना होगा. इसके अलावा, कुछ देशों की इंसुलेटिंग टेंडेंसीज यानी कि अपना बचाव करने की प्रवृत्ति, राष्ट्रवाद का बढ़ता जोश और कोविड-19 महामारी- ये सभी वैश्विक अर्थव्यवस्था की यथास्थिति को चुनौती दे रहे हैं. दूसरी ओर क्वॉड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (Quad) जैसी संभावित सुरक्षा व्यवस्थाओं ने ट्रांजिशन यानी कि संक्रमण की इन उभरती लहरों का मुकाबला करने का प्रयास किया है. लेकिन आर्थिक क्षेत्रों में उनका प्रभाव सीमित ही रहा है.[19]

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव को भारत संतुलित करता है. अत: भारत BoB देशों की ताकत को आर्थिक ब्लॉक के रूप में बढ़ावा देकर उसे अपने विकास एजेंडे में सबसे आगे का स्थान दे रहा है. बहु-क्षेत्रीय बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन यानी कि तक़नीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC यानी कि बिम्सटेक)[20] और क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए एशियाई विकास बैंक (ADB) के निवेश जैसे क्षेत्रीय समूहों को नए सिरे से प्रोत्साहन[21] देने की कोशिश को इस क्षेत्र को व्यापार और निवेश केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में किए जा रहे प्रयास ही माना जा रहा है. BoB क्षेत्र के तटीय देशों- भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड में वैश्विक आबादी के 25 प्रतिशत से ज़्यादा नागरिकों का बसेरा हैं.[22] और ये देश एक साथ मिलकर 5.46 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के लिए ज़िम्मेदार हैं.[23] ऐसे में ये सभी इस क्षेत्र को ग्लोबल प्रोडक्ट यानी कि वैश्विक उत्पाद और फैक्टर मार्केट्स यानी कि कारक बाज़ार दोनों का ही एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी यानी कि हिस्सेदार बनाते हैं.

अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे व्यापारिक भागीदारों को चीन के लिए एक स्थायी विकल्प पेश करते हुए, क्षेत्रीय वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देना, इस क्षेत्र के देशों की विकास संभावनाओं और दीर्घकालिक आर्थिक लचीलेपन में सीधे योगदान दे सकता है. अमेरिका और यूरोपीय संघ में फिलहाल देखी जा रही अपने भीतर यानी कि घरेलू निर्भरता बढ़ाने की कोशिश, दरअसल चीनी प्रभाव को दूर करने का प्रयास हैं. ऐसे में इन प्रयासों का ग्लोबल साउथ के अन्य देशों पर प्रभाव पड़ सकता है. इस स्थिति में ग्लोबल साउथ के देशों को संभावित व्यापार प्रवाह से वंचित रहना पड़ सकता है. बदले में, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कैसे ये विकासशील देश आर्थिक परिणामों में ग्लोबल नॉर्थ से पिछड़ते रहेंगे. अन्य संस्थागत कारकों की तरह, इन देशों का आर्थिक अभिसरण भी इस बात से जुड़ा हुआ है कि ये देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में किस हद तक एकीकृत हो चुके हैं.[24] इसलिए, चीन के व्यवहार्य विकल्प के रूप में BoB देशों को एक आर्थिक ब्लॉक के रूप में प्रस्तुत करना इन देशों को वैश्विक आर्थिक लैडर यानी कि सीढ़ी पर अपनी पकड़ बनाने में सक्षम बना सकता है.

BOB देशों और अमेरिका या यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंध चीन के साथ उनके व्यापार की तुलना में ऐतिहासिक रूप से सीमित रहे हैं.[25],[26] 2022 में, चीन अमेरिका का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, जो उसके कुल व्यापार का 13.2 प्रतिशत है. चीन, यूरोपीय संघ के लिए भी तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. इन देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा को प्रभावित करने वाले विशिष्ट कारकों से निष्कर्ष निकालते हुए, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का स्ट्रक्चरल ग्रैविटी मॉडल यानी कि संरचनात्मक आकर्षण शक्ति मॉडल यह बताता है कि दो देशों के बीच होने वाले व्यापार में वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा इसके आर्थिक आकार (उत्पादन का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रत्येक व्यापारिक भागीदार की क्षमता के साथ-साथ बाज़ार की मांग को दर्शाता है) के हिसाब से डायरेक्टली प्रपोर्शनल यानी कि सीधे आनुपातिक होती है. और यह  संबंधित व्यापार लागतों से इनवर्सली रिलेटेड यानी कि विपरीत रूप से संबंधित होती है.[27] स्ट्रक्चरल ग्रैविटी मॉडल यानी कि  संरचनात्मक आकर्षण शक्ति  मॉडल को इस प्रकार दशार्या जा सकता है:

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ग्रैविटी मॉडल से मिले अनुभवजन्य साक्ष्य यह बता सकते हैं कि कैसे अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी संपन्न अर्थव्यवस्थाओं और एशिया में उनके विकासशील समकक्षों के बीच व्यापार संबंध विकसित हुए हैं.[28], [29],[30]

सबसे पहले, अन्य कारकों को दरकिनार करते हुए चीनी अर्थव्यवस्था के बड़े आकार ने ही चीन को दुनिया भर के देशों के साथ अपने व्यापार संबंधों को बेहतरीन ढंग से स्थापित करने में अहम भूमिका अदा की है. चीन की अर्थव्यवस्था का आकार उसके उत्पादन के पैमाने की स्थिर अर्थव्यवस्थाओं को दशार्ती है. इसी वज़ह से वैश्विक बाज़ारों में उसे इसका तुलनात्मक लाभ मिलता है, जबकि इसकी बड़े घरेलू बाज़ार में उत्पन्न मांग भी सहायक साबित होती है. टेबल 2 BoB क्षेत्र में यूएस और यूरोपीय संघ के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के कुल आर्थिक आकार को दर्शाता है. चीन की तुलना में, BoB के तटवर्ती इलाकों में अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्थाएं उसके पीछे ही रही हैं. ऐसे में BoB देशों का एक बड़े आर्थिक ब्लॉक में होने वाला क्षेत्रीय एकीकरण ही BoB क्षेत्र और ग्लोबल नॉर्थ में स्थित देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार प्रवाह को बढ़ाने में सहायक साबित हो सकता है. इससे क्षेत्रीय और वैश्विक व्यापारिक साझेदारों की चीन पर वर्तमान में जो अत्यधिक निर्भरता दिखाई देती है, उसमें कमी आ सकती है.

टेबल 2: सकल घरेलू उत्पाद (वर्तमान अमेरिकी डॉलर, 2021) के अनुसार US, EU, चीन और BoB के लिए कुल आर्थिक आकार

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स्त्रोत: वर्ल्ड डेवलपमेंट इंडिकेटर्स यानी कि विश्व विकास संकेतक[31]

साक्ष्य यह भी बताते हैं कि व्यापार भागीदारों के कुल आर्थिक आकार के अलावा, देशों की आय के स्तर में सापेक्ष अंतर घटने पर भी द्विपक्षीय व्यापार प्रवाह बढ़ता है.[32],[33] दरअसल व्यापारिक भागीदारों की अतिव्यापी प्रतिनिधि मांग ही है जो सार्वभौमिक मांग में तब्दील हो जाती है. ऐसे में इन भागदारों के बीच प्रोडक्ट डिफरेन्शीऐशन यानी कि उत्पाद विशिष्टिकरण और इंट्रा-इंडस्ट्रिी यानी कि अंतर-उद्योग व्यापार ज़रूरी हो जाता है.

इस प्रकार, समान प्रतिनिधि मांगों वाले राष्ट्रों में समान उद्योगों और समान लेकिन विभेदित वस्तुओं में एक दूसरे के साथ व्यापार विकसित करने की संभावना दिखाई देती है. अन्य देशों के साथ मांग में यह समानता प्रति व्यक्ति आय के स्तरों में देखी जाने वाली समानता से प्रभावित होती है.[34] BoB देशों का एक आर्थिक ब्लॉक में होने वाला एकीकरण यहां के अलग-अलग देशों और अमेरिका या यूरोपीय संघ के आय स्तरों में सापेक्ष अंतर को कम कर सकता है. यह मांग पूर्वाग्रह के कारण विशेषज्ञता की अनुमति देकर प्रतिनिधि मांगों के आधार पर व्यापार को संचालित करता है.

दूसरा, संबंधित लेनदेन लागत भी द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित करती है. इनमें भौगोलिक स्थिति द्वारा प्रेरित प्राकृतिक व्यापार लागतें शामिल हैं (यानी कि अधिक सरलता से समझाया जाए तो व्यापारिक भागीदारों के बीच की दूरी तय करने पर लगने वाली परिवहन संबंधी लागत का योगदान अथवा दोनों देशों में वस्तु विशेष के मूल्य से जुड़े लाभ अथवा अंतर का कम होना) या अननैचुरल ट्रेड कॉस्ट यानी कि अप्राकृतिक व्यापार लागत (सांस्कृतिक संबंधों, लॉजिस्टिक्स यानी कि रसद संबंधी बाधाओं या व्यापार बैरियर यानी कि बाधाओं से प्रेरित) जैसी लागते शामिल हैं.[35] उत्पादक गतिविधियों और दीर्घकालिक व्यापार संबंधों से जुड़े पैमाने की डायनैमिक इकोनॉमिस यानी कि गतिशील अर्थव्यवस्थाओं ने चीन को इस क्षेत्र के अन्य संभावित व्यापारिक भागीदारों के मुकाबले तुलनात्मक लाभ की स्थिति उपलब्ध करवाई है. वक़्त के साथ-साथ डायनैमिक इकोनॉमिस ऑफ स्केल यानी कि पैमाने की गतिशील अर्थव्यवस्थाओं ने चीन को अधिक उत्पादकता, अधिक प्रगतिशील यानी कि परिष्कृत नेटवर्क स्थापित कर तालमेल बनाने में मदद की है. इसके परिणामस्वरूप ही चीन वैश्विक और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं में अधिक एकीकरण करने में सफ़ल हो पाया है. इन सभी कारकों ने ही अंतत: संबंधित व्यापार लागत को कम करने में चीन की सहायता की है. इस सहायता के कारण ही चीन और उसके व्यापारिक भागीदारों के बीच द्विपक्षीय प्रवाह में वृद्धि हुई है.

कोविड महामारी के बाद चीनी अर्थव्यवस्था में स्थित आपूर्ति श्रृंखला में आ रहे व्यवधान चीन को उपलब्ध लाभ की इस स्थिति को पलटने अथवा प्रभावित करने की संभावना रखते है. ऐसे में BoB देशों के पास ख़ुद को GVCs में चीन का विकल्प बनाकर ख़ुद को स्थापित करने का बेहतरीन मौका है. इस क्षेत्रीय समूह में शामिल देशों को ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि वे संबद्ध व्यापार लागतों को कम करने का प्रयास करें. मध्यम से दीर्घावधि में, भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाने, व्यापार नेटवर्क में विविधता लाने, और लचीले संचार और बुनियादी ढांचा प्रणालियों के निर्माण से क्षेत्रीय और वैश्विक वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है.

इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दीर्घकाल में तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देना ज़रूरी होगा. सबसे पहला मुद्दा GVCs के भीतर ऐसे बाज़ार के इष्टतम दायरे को समझना ज़रूरी है. दूसरा मुद्दा इस क्षेत्र के लिए सबसे अनुकूल संभावित फॉरवर्ड तथा बैकवर्ड लिंकेजेस और व्यापार व्यवस्था की प्रकृति की पहचान करने की आवश्यकता है. तीसरा मुद्दा ट्रेड-ऑफ्स् यानी कि लेन-देन और राष्ट्रीय आर्थिक और व्यापक क्षेत्रीय लक्ष्यों के बीच तालमेल स्थापित करना होगा.

वैश्विक अर्थव्यवस्था के व्यापक दायरे के भीतर, क्षेत्रीय आर्थिक ब्लॉक द्विपक्षीय व्यापार प्रवाह को प्रोत्साहित करने और आर्थिक अभिसरण को बढ़ाने के अलावा अन्य उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं. ये उत्पादक गतिविधियों के स्थानीयकरण को भी सक्षम कर सकते हैं जो क्षेत्रीय व्यापारिक भागीदारों के बीच समन्वय और मौजूदा संपूरकताओं से लाभान्वित होते हैं. घरेलू अर्थव्यवस्था के भीतर आत्मनिर्भरता हासिल करना एक दूर का लक्ष्य साबित हो सकता है. लेकिन क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को मज़बूत करने से वैश्विक ढांचे के भीतर समूहों के बीच आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने को बढ़ावा मिल सकता है. इस तरह की आत्मनिर्भरता कोविड-19 महामारी जैसे वैश्विक संकट के समय में एक हद तक इन्सुलेशन यानी कि सुरक्षा भी प्रदान करती है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देशों का क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण उनकी साझा आंतरिक और बाहरी कमज़ोरियों को उजागर करते हुए उनके आपसी हितों को संरेखित करता है. ऐसे में यह बात इन देशों को लंबे समय में आर्थिक लचीलेपन के निर्माण के अपने सामान्य एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए व्यवहार्य मार्गों पर काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. वर्तमान संदर्भ में BoB क्षेत्र में अर्थव्यवस्थाओं के लिए तीन विशिष्ट क्षेत्र, दीर्घकालिक लचीलेपन की दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं. दुनिया भर में तेज़ी से विकसित हो रहे भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक तनावों की वज़ह से खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा पर ख़तरा मंडरा रहा हैं. ऐसे में इस बात को ध्यान में रखते हुए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित अर्थव्यवस्थाएं और क्षेत्रीय समूह एक मज़बूत क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए इन सेक्टर्स यानी कि क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे सकते हैं. प्रभावी क्षेत्रीय आर्थिक व्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कनेक्टिविटी यानी कि संपर्क व्यवस्था स्थापित करना सबसे महत्वपूर्ण पहलू बन जाता है. इसके साथ ही इस दिशा में प्रौद्योगिकी और डिजिटल कनेक्टिविटी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

भारत वर्ष 2023 में ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20)’s के सम्मेलनों की अध्यक्षता संभाल रहा हैं. अत: वह BoB क्षेत्र और व्यापक रूप से विकासशील देशों की इन प्राथमिकताओं को वैश्विक मंच तक विस्तृत अंदाज में पहुंचा सकता है. मसलन, भारत की G20 अध्यक्षता बांग्लादेश और म्यांमार जैसे BoB देशों के लिए आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है. इसका कारण यह है कि इन देशों के साथ मौजूदा भारतीय व्यापार संबंध, भारत के पूर्वोत्तर तक इनको मिली पहुंच के साथ ही ये देश बेहतर बहुपक्षवाद को स्थापित करने की भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' और 'एक्ट ईस्ट' नीतियों के केंद्र में हैं.[36] वैश्विक प्रशासन से संबंधित मुद्दों या चुनौतियों का हल निकालने के उद्देश्य से ही दुनिया की कुछ सबसे उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं G20 फोरम में शामिल हुई हैं. ऐसे में क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं पर रोशनी डालते हुए अथवा इन्हें बढ़ावा देते हुए भारत वैश्विक दक्षिण क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में इन क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं के महत्व को उजागर कर सकता है. इसके अलावा, भारत के पड़ोस में कुछ सबसे कमज़ोर देश और समाज हालिया वैश्विक व्यवधानों के चलते उपजने वाले आर्थिक परिणामों को भुगत रहे हैं. लेकिन विकसित दुनिया का इस ओर कम ही ध्यान जा रहा है अथवा वह इसकी उपेक्षा कर रही है. ऐसे में G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत इस समस्या का समाधान ख़ोज सकता है. यह समाधान ख़ोजने के लिए भारत अपने अनुभवों से मिले सबक का उपयोग भी कर सकता है. इन समाधानों के माध्यम से भारत खाद्य, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के तीन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर वैश्विक सहमति बनाने में सफ़ल हो सकता है. अत: BoB क्षेत्र में वैश्विकरण के स्थानीयकरण करने को लेकर भारत की अनिवार्यता अगर सफ़ल हो जाती है तो यह सफ़लता वर्तमान वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है. ऐसे में भारत आने वाले वर्षों में एक वैश्विक आर्थिक शक्ति और प्रमुख भू-राजनीतिक अभिनेता के रूप में अपनी भूमिका को और भी मज़बूत कर सकता है.

प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का ढांचा

खाद्य पदार्थ

रूस-यूक्रेन युद्ध आरंभ होने के बाद खाद्य सुरक्षा की चुनौती केंद्रबिंदु बनकर उभरी है. वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए यूक्रेन और रूस दोनों ही बेहद महत्वपूर्ण हैं. अत: उनके बीच होने वाले संघर्ष के पहले से ही महामारी के बाद की दुनिया में भूख की समस्या से जूझ रहे निम्न और मध्यम आय वाले देशों और BoB अर्थव्यवस्थाओं सहित कमज़ोर आबादी वाले देशों पर व्यापक प्रभाव पड़ा हैं.

रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया के एक तिहाई से अधिक गेहूं और जौ का निर्यात करने के साथ ही 70 प्रतिशत से अधिक सूरजमुखी के तेल का निर्यात करते हैं. अत: युद्ध की वज़ह से लगभग 20 मिलियन टन यूक्रेनी अनाज का निर्यात रुक जाने की वज़ह से दुनिया भर के देश बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.[37] रूस के यूक्रेन पर आक्रमण करने से पहले, एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में अनुमानित 6 मिलियन टन कृषि वस्तुओं का मासिक निर्यात किया जा रहा था. जून 2022 तक, यह संख्या अपने मूल्य के पांचवें हिस्से तक सिकुड़ गई।[38] संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FFAO) के अनुसार, 2020 और 2023 के बीच वैश्विक खाद्य कीमतों में 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.[39] यह संगठन भोजन की कीमतों और उपलब्धता पर युद्ध के प्रभाव के कारण कुपोषित आबादी में 7.6 मिलियन से 13.1 मिलियन तक की वृद्धि होने का आकलन भी करता है.[40]

चित्र 2: खाद्य असुरक्षा की व्यापकता (जनसंख्या प्रतिशत)

 

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स्त्रोत: विश्व बैंक से डेटा का उपयोग करते हुए लेखकों के अपने.[41]

ऐसी स्थिति में श्रीलंका में आर्थिक मंदी ने आग में घी डालने का काम करते हुए स्थानीय आबादी पर खाद्य सुरक्षा पर कहर बरपाया है;[42] बांग्लादेश भी खाद्य मुद्रास्फीति के प्रकोप का सामना कर रहा है.[43] 2021 में अचानक जैविक खेती पद्धति अपनाने के फ़ैसले की वज़ह से श्रीलंका का कृषि क्षेत्र से जुड़ा व्यापार प्रभावित हुआ था. इसके बाद स्थिति तेज़ी से बिगड़ती गई और देश को चावल और चीनी सहित आवश्यक वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं सहित विभिन्न अन्य वस्तुओं का आयात करने पर मज़बूर होना पड़ा. ये सारी वे वस्तुएं थी जो श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था ने ऐतिहासिक रूप से सरप्लस यानी कि अधिशेष ही उत्पादित की थी. 2022 तक, अर्थव्यवस्था के लिए विनिमय की एक प्रमुख वस्तु रही चाय यानी कि चाय उद्योग को 425 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक का घाटा उठाना पड़ा. इसके परिणामस्वरूप देश की विदेशी मुद्रा की स्थिति और भी खराब हो गई.[44] इस संदर्भ में, क्षेत्रीय समूहों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वे अपनी खाद्य सुरक्षा को भू-राजनीतिक घटनाओं और घरेलू व्यापक आर्थिक ख़तरों से बचाने के लिए सुरक्षा उपाय तैयार करें.

एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट नेशंस (ASEAN) फूड बैंक की तर्ज पर ही BIMSTEC यानी कि बिम्सटेक देशों के लिए एक फूड बैंक स्थापित करने का विचार एक अच्छी शुरूआत है. यह बैंक कीमतों को स्थिर करने में सहायक साबित होगा.[45] नवंबर 2022 में, भारत ने BIMSTEC देशों की दूसरी कृषि मंत्रिस्तरीय बैठक की मेज़बानी की थी. इस बैठक में सदस्य देशों से आग्रह किया गया कि वे कृषि क्षेत्र में सुधार लागू करते हुए खाद्य प्रणालियों में मुख्य रूप से बाजरा को बढ़ावा देने के लिए एक क्षेत्रीय रणनीति विकसित करें.[46] बाजरा जैसे खाद्य पदार्थों का अधिशेष उत्पादन करने वाले देशों के बीच इस खाद्य पदार्थ यानी कि बाजरे का प्रचार और अंतर-क्षेत्रीय व्यापार, खाद्य असुरक्षा को कम करने में सहायक हो सकता है.

ऊर्जा

ऊर्जा आयात के आंकड़े बताते हैं कि BIMSTEC यानी कि बिम्सटेक के सभी देश-विशेषत: भारत, म्यांमार और भूटान-ऊर्जा आयात पर अत्यधिक निर्भर हैं. (टेबल 3 देखें) क्षेत्र के व्यापार की ईंधन पर निर्भरता ने इसे रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे बाहरी व्यापक आर्थिक झटकों को लेकर अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है.

टेबल 3:  BIMSTEC अर्थव्यवस्थाओं में होने वाला ईंधन का आयात (वस्तु आयात के प्रतिशत के रूप में)

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स्त्रोत: विश्व बैंक के डेटा का उपयोग करते हुए लेखकों के अपने.[47]

नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने की दिशा में संक्रमण को गति देने में विफ़ल रहने के साथ ही बांग्लादेश की ईंधन के आयात पर भारी निर्भरता ने उसे विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में एक अनिश्चित स्थिति में लाकर रख दिया है. यूक्रेन युद्ध ने उसकी इस परेशानी को और बढ़ावा ही दिया है. ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि के साथ ही सब्सिडी पर होने वाले ख़र्च में वृद्धि की वज़ह से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए राजकोषीय संतुलन और करंट अकाउंट यानी कि चालू खाता का घाटा चिंताजनक बने हुए हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार को अगस्त 2022 में अंतत: कुछ मितव्ययिता के उपाय पर अमल करना पड़ा है.[48] इसके तहत ईंधन (प्रति लीटर) की घरेलू कीमतों में वृद्धि की गई: डीजल (42.5 प्रतिशत तक, 114 टका तक); मिट्टी का तेल (42.5 प्रतिशत, 114 टका तक); ऑक्टेन (51.6 प्रतिशत, 135 टका तक); और पेट्रोल (51.1 प्रतिशत, 130 टका तक). विगत 20 वर्षों में की गई ये लगभग सबसे अधिक वृद्धि थी.

BIMSTEC देशों ने कुछ वर्ष पहले ही अक्टूबर 2005 में 'BIMSTEC में ऊर्जा सहयोग के लिए कार्य योजना' जारी कर दी थी. इसके बाद अगस्त 2018 में बीआईएमएसटीईसी ग्रिड इंटरकनेक्शन की स्थापना के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर भी किए गए. लेकिन इस ग्रिड की स्थापना के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे, अनुकूल ऊर्जा बाज़ार नहीं मिलने, ग्रिड प्रणाली के सिंक्रनाइजेशन की कमी और बिजली और प्राकृतिक गैस पाइपलाइन प्रौद्योगिकी के लिए ग्रिड कोड के साथ ही क्षेत्र के लिए उपयुक्त वित्तीय नीतियों की गैरमौजूदगी समेत अन्य संबंधित मुद्दों ने BIMSTEC देशों के बीच क्षेत्र में ऊर्जा सहयोग की राह को बाधित किया है अथवा मुश्किल बना कर रख दिया है. 2021 में, BIMSTEC ग्रिड इंटरकनेक्शन कोऑर्डिनेशन कमेटी ने तय किया था कि वह ऊर्जा के व्यापार और आदान-प्रदान के लिए एक नीतिगत ढांचा तैयार करते हुए एक टैरिफ तंत्र की स्थापना करें. कोऑर्डिनेशन कमेटी BIMSTEC ग्रिड इंटरकनेक्शन मास्टर प्लान स्टडी (BGIMPS) पर भी काम कर रही है.[49]

इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं में हरित प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान में निवेश करने की विशाल क्षमता है, जो उन्हें आत्मनिर्भर ऊर्जा बाज़ारों को विकसित करने में सहायक साबित हो सकती है. मसलन, जापानी फर्मों से मिलने वाले FDI का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. इस FDI की वज़ह से 1455 से अधिक जापानी कंपनियां सभी क्षेत्रों में काम कर रही हैं.[50] यदि हरित ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास में स्केल इकॉनॉमिस् यानी कि पैमाना अर्थव्यवस्थाओं और जापानी फर्मों की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग किया जा सका, तो यह चीन पर क्षेत्रीय निर्भरता को कम करेगा. वर्तमान में चीन ही सौर ऊर्जा में सबसे अहम खिलाड़ी है.[51] कांफ्रेन्स ऑफ पार्टिज् (COP27) के 57 वें सम्मेलन में, भारत ने वर्ष 2070 तक कोयला और तेल सहित सभी प्रकार के जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने की अपनी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को सार्वजनिक किया था.[52] भारत की अगुवाई में बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र, सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा में नवाचारों संबंधी ज्ञान और सीख साझा कर सकता है. भारत का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन देश में हरित हाइड्रोजन के निर्माण, उपयोग और निर्यात को बढ़ावा दे सकता है. इसके अलावा यह मिशन ऊर्जा क्षेत्र में क्षेत्र की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं की औद्योगिक और परिवहन गतिविधियों के डीकाबोर्नाइजेशन को गति देने का काम भी कर सकता है.

टेक्नोलॉजी

इंटीग्रेशन यानी कि एकीकरण अब केवल एक भौतिक अवधारणा नहीं रह गया है. डिजिटल कनेक्टिविटी भी अब एक समान रूप से महत्वपूर्ण डोमेन यानी कि क्षेत्र बन गया है. डिजिटल प्रौद्योगिकियां लोगों से लोगों के जुड़ाव/नेटवर्क को सक्षम करके मनोवैज्ञानिक कनेक्टिविटी की मुहैया करवा रही हैं.[53] डिजिटल टेक्नोलॉजीज का लगातार विस्तार हो रहा हैं. ऐसे में भारत को एक क्षेत्रीय डिजिटल सहयोग ढांचे के निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए, जो ई-कॉमर्स, डिजिटल नवाचार, साइबर-सुरक्षा और लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने का काम करें.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सूचना प्रौद्योगिकी (IT) ने चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) में अहम भूमिका अदा की है, क्योंकि तक़नीकी प्रगति के साथ ही व्यापार सहयोग और महामारी के प्रतिरोध सहित विभिन्न क्षेत्र प्रभावित होते है. विभिन्न देशों की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को सूचित करने और आकार देने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), डेटा प्रोसेसिंग और ट्रांसफर, और डेटा सुरक्षा में होने वाला विकास केंद्रीय भूमिका निभा सकता है.[54] नियोक्लासिकल यानी कि नवशास्त्रीय के साथ-साथ एंडोजिनस ग्रोथ थियेरिज् यानी कि अंत:विकसित सिद्धांत, विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी के स्तर में बदलाव को ही गरीबी के पीछे का एक कारण होने का संकेत देते हैं.[55] इससे यह भी पता चलता है कि जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, अमीर और गरीब के बीच की खाई उनके प्रति व्यक्ति आय स्तरों में अभिसरण के साथ कम होती जाती है.

बंगाल की खाड़ी में स्थित देशों ने भले ही IT क्रांति यानी कि  IT रेवोलुशन में देर से प्रवेश किया, लेकिन उन्नत प्रौद्योगिकी के आयात के कारण इन अर्थव्यवस्थाओं की टोटल फैक्टर प्रॉडक्टिविटी यानी कि कुल कारक उत्पादकता (TFP) में काफी सुधार किया है. 1997 में अपनी स्थापना के बाद BIMSTEC ने पहले ही सहयोग के लिए प्रौद्योगिकी की अपने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक के रूप में पहचान कर ली थी. उस समय, BIMSTEC देशों ने कृषि आधारित उद्योगों, खाद्य प्रसंस्करण, हर्बल उत्पादों, जैव प्रौद्योगिकी, और ICT से संबंधित उद्योगों में लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रौद्योगिकी से जुड़ा अनुसंधान करने और तकनीक के आदान-प्रदान का लक्ष्य निर्धारित किया था.[56] उस अवधि के दौरान दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया मुख्य रूप से कृषि प्रधान क्षेत्र थे और पश्चिमी दुनिया के मुकाबले उनके यहां उद्योगों की स्थापना अथवा उसकी स्थिति भी छोटी थी अत: इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग मुख्यत: कृषि वस्तुओं को उनकी मूल्य श्रृंखलाओं में आगे ले जाने के उद्देश्य से किया गया था.

श्रीलंका BIMSTEC की विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल में अग्रणी था. 2008 की शुरूआत में, BIMSTEC नेताओं ने कोलंबो में BIMSTEC प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा (TTF) की स्थापना की कल्पना की थी.[57] लेकिन इस दिशा में समूह के प्रयास पिछले दो दशकों में बेहद धीमे रहे हैं. (परिशिष्ट 2 देखें)

बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में मौजूद ज़बरदस्त मानव संसाधन क्षमता का उपयोग प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों द्वारा किया जा सकता है. यह ज़रूरी भी है, क्योंकि भारत से दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्यात, उदाहरण के लिए, 2020 और 2022 के बीच कुल निर्यात के 0.1 प्रतिशत ही रहा है. यानी कि यह स्पष्ट होता है कि सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्यात लगातार कम ही रहा है. (चित्र 3 देखें).[58] 2014 में शुरू की गई 'मेक इन इंडिया' योजना का BoB क्षेत्र में आर्थिक प्रगति के लिए लाभ उठाया जा सकता है. इस क्षमता का अधिकतम उपयोग करने के लिए BoB देशों को क्षेत्रीय सहयोग सहित अन्य देशों के साथ सहयोग की रणनीतियों के माध्यम से अपने युवाओं के कौशल विकास में निवेश करना होगा. भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के 2030 तक 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उपभोक्ता बाज़ार बन जाने का अनुमान है. जिसमें ई-कॉमर्स सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक रहने वाला है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि महामारी के बाद के परिदृश्य में उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है.[59]

चित्र 3: भारत का सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात (प्रतिशत हिस्सा)

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स्त्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक के डेटा का उपयोग करते हुए लेखकों के अपने.[60]

भारत-जापान डिजिटल साझेदारी को 2018 में एक मेमोरेंडम ऑफ कोऑपरेशन यानी कि सहयोग ज्ञापन (MOC) में औपचारिक रूप दिया गया. यह अगली पीढ़ी के नेटवर्क के लिए अक डोमेन में इंटर-कंपनी सहयोग (स्टार्टअप सहित) और R&D के माध्यम से स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने और डिजिटल सुरक्षा बढ़ाने का प्रयास करता है.[61] इस बीच, अप्रैल 2021 में शुरू की गई ऑस्ट्रेलिया-भारत साइबर साझेदारी के परिणामस्वरूप क्वांटम कंप्यूटिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है. अप्रैल 2021 में, जापानी फर्म फुजित्सु ने अक और मशीन लर्निंग (ML) में अनुसंधान और विकास (R&D) में तेज़ी लाने के लिए बेंगलुरु में एक शोध केंद्र भी खोला है.[62] इसी तरह के प्रयासों से क्षेत्र के देशों को एक-दूसरे की ताकत का दोहन करने और संयुक्त रूप से प्रौद्योगिकी मूल्य श्रृंखलाओं में आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है. इस क्षेत्र में जापानी निवेश ज़्यादातर बांग्लादेश पर केंद्रित रहा है, जहां निर्यात कारोबार में 300 से अधिक जापानी कंपनियां काम कर रही हैं. यह भारत में जापानी फर्मों के विपरीत है, जिनका व्यवसाय मॉडल डोमेस्टिक-ओरियंटेड यानी कि घरेलू-उन्मुख है. दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी और पूंजी का मुक्त प्रवाह, क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं के निर्माण में उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर योगदान करने में मददगार साबित हो सकता है. इससे पूरा BoB क्षेत्र लाभान्वित हो सकता है.

साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने में क्षेत्रीय सहयोग अहम भूमिका निभा सकता है. मसलन, Quad ने साइबर सुरक्षा को एक स्तंभ के रूप में शामिल किया है जो प्रत्येक देश की ताकत पर आधारित है. ऑस्ट्रेलिया जहां महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सुनिश्चित करने का का काम करता हैं, वहीं जापान वर्कफोर्स यानी कि कार्यबल और टैलेंट यानी कि प्रतिभा विकास की अगुवाई कर रहा है. उधर अमेरिका सॉफ्टवेयर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है. भारत के पास आपूर्ति-श्रृंखला को लचीला बनाए रखने के लिए साइबर सुरक्षा के संचालन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई हैं. अत: वह क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं में BoB आर्थिक ब्लॉक के तक़नीकी एकीकरण में अहम भूमिका निभा सकता है. Quad के मॉडल का अनुसरण करते हुए, ऐसे क्षेत्रीय समूहों को BoB में तक़नीकी प्रगति के हित को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे के साथ बातचीत करनी चाहिए. समुद्री नेटवर्क के डिजिटल घटकों में प्रगति को बढ़ावा देने और प्रौद्योगिकी संचालित सार्वजनिक वस्तुओं जैसे सामान्य इंटरनेट जोन का उपयोग करने के लिए भी सहयोग ज़रूरी है. ऐसा सहयोग करने के इच्छुक देश क्षेत्र में बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं का उपयोग कर सकते हैं.[63]

क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को हतोत्साहित करतीं कनेक्टिविटी चुनौतियां

प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय भागीदारी के लिए भौतिक संपर्क सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. 2020 में, उप-सहारा अफ्रीका का कुल अंतर-क्षेत्रीय व्यापार 22 प्रतिशत था, जिसकी तुलना में दक्षिण एशिया में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार क्षेत्र के कुल व्यापार का केवल 5.6 प्रतिशत ही रहा था.[64] इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाएं सूचना, पूंजी और प्रौद्योगिकी के मुक्त प्रवाह के बिना एक एकीकृत क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला बनाने में असमर्थ हैं. मसलन, बांग्लादेश और भारत के पास एक-दूसरे को पूरक ताकत मौजूद हैं, लेकिन सीमा शुल्क निकासी संबंधी बाधाओं की वज़ह से समय और उत्पादन लागत में इज़ाफ़ा हो जाता है. यह समस्या विभिन्न फर्मों को यहां की क्षेत्रीय विनिर्माण व्यवसायों में निवेश करने से रोकती है. प्रॉक्सिमटी यानी कि निकटता के तर्क को नकारते हुए, भारत के कुल व्यापार का BoB क्षेत्र में अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ व्यापार लगभग 2-4 प्रतिशत ही है.[65] BIMSTEC देशों और दक्षिण एशिया में निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपलब्ध व्यापार डेटा के अनुसार, समूह के सात देशों में से पांच के कुल व्यापार में निर्यात का प्रतिशत दस प्रतिशत से कम है. (चित्र 4 देखें)[66]

चित्र4: दक्षिण एशिया में निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को वस्तुओं का निर्यात (कुल वस्तु निर्यात का प्रतिशत)

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स्त्रोत: विश्व बैंक से डेटा का उपयोग करते हुए लेखकों के अपने.[67]

दक्षिण एशिया में सीमा पार व्यापार में औसत 53.4 घंटे का वक़्त लगता है; यूरोप और मध्य एशिया (ECA) के लिए यह 16.1 घंटे है, और ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट यानी कि आर्थिक सहयोग और विकास (OCED) जैसे उच्च आय वाले देशों के संगठन के लिए 12.7 घंटे का समय लगता है.[68] सीमा अनुपालन लागत की जब बात आती है, तो यह लागत दक्षिण एशिया के लिए 310 अमेरिकी डॉलर है; ECA के लिए यह 150 अमेरिकी डॉलर और OCED के लिए 136.8 अमेरिकी डॉलर है.

बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में एकीकरण का स्तर बेहद कम है, जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक खाई पैदा करता है. इस खाई की वज़ह से यहां देशों को उनके तत्काल पड़ोस में उपलब्ध अवसरों तक पहुंचकर उसका लाभ उठाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उदाहरण के लिए, म्यांमार, नेपाल और भूटान में जलविद्युत बुनियादी ढांचे की बहुतायत है, लेकिन घरेलू मांग के अभाव में ये तीनों देश इसका दोहन करने में इसलिए रुचि नहीं रखते हैं, क्योंकि उनके यहां की घरेलू मांग परियोजना लागत को उचित नहीं ठहरा सकती.[69] दूसरी ओर, भारी मात्रा में ऊर्जा का आयात करने वाले भारत और बांग्लादेश इस जलविद्युत के लिए उत्कृष्ट बाज़ार साबित हो सकते हैं. इस क्षेत्र के देशों को ऐसा मज़बूत क्षेत्रीय उत्पादन नेटवर्क बनाना चाहिए, ताकि इन संपूरकताओं का उपयोग किया जा सकें. टेबल 4 में दिखाए गए intra-BIMSTEC यानी कि अंतर-बिम्सटेक व्यापार मैट्रिक्स यानी कि सांचे को देखने पर उप-क्षेत्रीय संबंधों में कमी साफ़ दिखाई देती है. क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के संसाधन आधार, उनकी मौजूदा उत्पादन क्षमता और नेटवर्क, के साथ बाज़ार की मांग संरचना का सावधानीपूर्वक विश्लेषण BIMSTEC देशों के बीच अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है.

टेबल 4: Intra-BIMSTEC व्यापार (निर्यात, प्रतिशत)

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स्रोत: UNESCAP (2021)[70] । * कोष्ठकों में संख्या वर्ष 2000 के लिए संबंधित डेटा दर्शाती है.

ऊर्जा क्षेत्र में क्षेत्रीय एकीकरण के लिए असाधारण रूप से बड़ी मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है. अत: विशेषत: इस क्षेत्र में क्षेत्रीय एकीकरण के लिए ADB जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों का समर्थन मिलाना आवश्यक हो जाता है. चूंकि इस काम में भारी मात्रा में निवेश लगता है, अत: म्यांमार और नेपाल जैसे देश उन्हें अपने दम पर वित्तपोषित करने में सक्षम नहीं होंगे. कुछ समय पहले तक, नेपाल के जलविद्युत क्षेत्र में चीन एक महत्वपूर्ण निवेशक था. लेकिन भारत में अपने सबसे बड़े निर्यात बाज़ार में से एक नेपाल में कदम रखने का इच्छुक था, अत: नेपाल ने अपनी जलविद्युत परियोजनाओं के दरवाजे भारतीय कंपनियों के लिए खोलकर इस क्षेत्र में विभिन्न निवेशकों को अवसर प्रदान करने का निर्णय ले लिया है.[71] भारत-भूटान जलविद्युत सहयोग, उनके द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों के पारस्परिक रूप से लाभकारी विस्तार के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है.[72] इसी तरह, भारत को पड़ोस के अन्य देशों में नवीकरणीय बिजली परियोजनाओं के लिए नॉलेज इनपुट यानी कि ज्ञानदान और द्विपक्षीय वित्त पोषण प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए. भारत को ऐसी कंपनियों की स्थापना में सहायता करना चाहिए, जो इन परियोजनाओं का स्वामित्व लेकर उसका संचालन कर सकें. प्रमुख हितधारकों के रूप में स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में एक पावर ग्रिड बनाई जा सकती है. यह ग्रिड बंगाल की खाड़ी और अन्य क्षेत्रों के बीच व्यापार ऊर्जा संसाधनों के लिए स्प्रिंगबोर्ड के रूप में कार्य कर सकती है.

 

आक्रामक चीनी निवेश

क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला बनाने के लिए BoB क्षेत्र के देशों को कुशल कनेक्टिविटी नेटवर्क की ज़रूरत है. विभिन्न आपूर्ति श्रृंखलाओं को समुद्री संपर्क से जोड़ने में बंदरगाह केंद्रीय हिस्सा हैं. यूनाइटेड नेशन कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट यानी कि व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) का अनुमान है कि 2019-2024 की अवधि में वैश्विक समुद्री व्यापार 3.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि होगी. बंगाल की खाड़ी की समुद्री क्षमता अपार है. अत: इस क्षेत्र में चीनी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर यानी कि संपर्क के बुनियादी ढांचे में निवेश का प्रभावी विविधीकरण अहम हो जाता है.[73]

इस पृष्ठभूमि में इस क्षेत्र के देशों के लिए यह अहम हो जाता है कि वे अपने समग्र विदेशी ऋण और चीन से लिए गए अपने ऋण के बीच एक अच्छा संतुलन बनाए रखें.

वर्तमान में चीन ही विकासशील दुनिया का सबसे बड़ा लेनदार राष्ट्र है. यह बात BoB के उन देशों के लिए ज्यादा सटीकता के साथ लागू होती हैं, जो चीन की BRI परियोजना का हिस्सा हैं. उदाहरण के लिए श्रीलंका जैसा देश जो अभी भी 2022 में शुरू हुए आर्थिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका के लिए, हंबनटोटा बंदरगाह विदेशी ऋणों पर निर्मित अवास्तविक परियोजनाओं का एक ऐसा उदाहरण है, जिसमें राजमार्गों हवाई अड्डे और कन्वेंशन हॉल का निर्माण किया गया है. 2003 में मंत्रिस्तरीय टास्क फोर्स [c] ने इस कनसेप्ट यानी कि अवधारणा को अस्वीकार कर दिया था. इसके बावजूद इस बंदरगाह का उस समय के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के गृहनगर के पास निर्माण करने के लिए चीनी वित्तपोषण लिया गया था. इसके लिए श्रीलंका को 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया गया था.[74] यह बंदरगाह व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनने विफ़ल साबित होने पर बीजिंग ने 2017 में एक सरकारी स्वामित्व वाले निगम, चाइना मर्चेंट्स ग्रुप से 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर में इस बंदरगाह को 99 साल की लीज पर लेकर इस परियोजना को बचाया था.

कई विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि चीन की 'ऋण-जाल कूटनीति' का श्रीलंका शिकार हो गया था.[75] हालांकि श्रीलंका के बकाया विदेशी ऋण के उच्चतम प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार चीन नहीं है. लेकिन चीन की लिक्विडेशन यानी कि ऋणमुक्ति तकनीक और विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में छिपे हुए ऋण भी बीजिंग के ऋणों के आक्रामक वितरण से होने वाली समस्या और उसके परिणामों को दर्शाने वाले साबित होते हैं. कोलंबो स्थित थिंक टैंक, एडवोकाटा इंस्टीट्यूट के विश्लेषकों के अनुसार, 2022 तक चीनी लेनदारों को श्रीलंका द्वारा बकाया राशि निम्नलिखित थी: चीन विकास बैंक निगम को 119 मिलियन अमेरिकी डॉलर बकाया; चीन विकास बैंक को 232 मिलियन अमेरिकी डॉलर; और चीन के निर्यात-आयात बैंक को 232 मिलियन अमेरिकी डॉलर बकाया.[76]

द इंडियन पोटेंशियल यानी कि भारत का सामर्थ्य

यदि ग्रेट निकोबार द्वीप में इंटरनेशनल कन्टेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल यानी कि अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT) के माध्यम से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सही ढंग से उपयोग किया जाता है, तो पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग कॉरिडोर में एक केंद्र के रूप में ICTT नई दिल्ली की महत्वाकांक्षाओं को गति प्रदान करने वाला साबित हो सकता है.[77] भारत के पूर्वी तट पर बंदरगाहों में मौजूद लॉजिस्टिकल यानी कि रसद संबंधी मुद्दों, जैसे भीड़भाड़ और भंडारण स्थान की कमी को समाप्त किय जाना चाहिए, ताकि बंदरगाहों और उपयोगकर्ता देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध को बढ़ावा दिया जा सकें.[78] भारत को पूर्वी तट पर निजी बंदरगाहों जैसे कट्टुपल्ली, कृष्णापटनम और एन्नोर शामिल हैं, में अधिक निवेश को भी प्रोत्साहित करना चाहिए. इन बंदरगाहों के पास डीप वॉटर यानी कि गहरे पानी के चैनल हैं, बेहतर कनेक्टिविटी और संचालन में दक्षता पहले से ही मौजूद है.

कैबोटेज कानूनों में ढील से भारतीय बंदरगाहों में सीधे शिपमेंट में वृद्धि हुई है. यदि खाड़ी में देशों के बीच चलने वाले जहाज़ों के लिए इसी तरह के कदम उठाए गए तो पड़ोसी देशों के बीच कार्गो की आसान आवाज़ाही को और प्रोत्साहित किया जा सकता  हैं.[79] नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से भारत को जोड़ने वाले सड़क और रेल परिवहन में किए जाने निवेश में ही भारत की ताकत निहित है. यह निवेश उसने कई साल पहले शुरू कर दिया था. पड़ोसी देशों के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए इन परियोजनाओं के दायरे का विस्तार किया जा सकता है. दरअसल परिवहन कनेक्टिविटी को लेकर BIMSTEC मास्टर प्लान भी मौजूद है, जो BIMSTEC सदस्य देशों की घरेलू और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने के उद्देश्य से 10 साल की रणनीति को ध्यान में रखकर बनाया गया है.[80] 2022 में पांचवें BIMSTEC शिखर सम्मेलन में, भारत ने BIMSTEC के ऑपरेशनल बजट यानी कि परिचालन बजट को बढ़ाने के लिए 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि देने का भी वादा किया है.[81]

कनेक्टिविटी नेटवर्क और व्यापार को सक्षम और सुगम करने से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पहलू है मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था का मौजूद होना. खाड़ी में एक नियम और व्यवस्था-आधारित वातावरण को बढ़ावा देने के लिए प्रासंगिक जानकारी को स्वतंत्र रूप से साझा किया जाना चाहिए. चीन की विस्तारवादी नीतियों को देखते हुए इस क्षेत्र के देशों द्वारा समुद्री निगरानी और बुनियादी ढांचे में निवेश किया जाना चाहिए. इस मामले में इन देशों को 2016 में बने इंडोनेशिया-मलेशिया-फिलीपींस समझौता के मॉडल का अनुसरण करना होगा. इसके तहत उपरोक्त तीनों देशों के बीच समुद्री डकैती और अपहरण की घटनाओं पर क्विक रिस्पॉन्स यानी कि त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए एक हॉटलाइन स्थापित की गई थी.[82] भारत सरकार द्वारा स्थापित मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क जैसी पहलें BoB क्षेत्र में स्थानीयकरण को सक्षम बनाने में सहायक साबित हो सकती हैं. जब बात व्यापार की आती है तो पहले से ही टैरिफ यानी कि शुल्क के स्तर कम होने के बाद भी टैरिफ की दरों में कमी करने की बजाय व्यापार को सुगम बनाना ज़्यादा लाभकारी साबित होता दिखाई देता है.[83] बाज़ार की अगुवाई में होने वाला एकीकरण और सरकार के नेतृत्व वाली पहलों का उपयोग अति-स्थानीय औद्योगिक मूल्य श्रृंखला बनाने के लिए किया जाना चाहिए, जो खाड़ी के सूक्ष्म क्षेत्रों को जोड़ने का काम कर सकें.[84]

अन्य विकासात्मक प्राथमिकताएं

BoB की ग्लोकलाइजेशन नीतियों में समान विकास के साथ-साथ जलवायु शमन और अनुकूलन के पहलुओं को भी शामिल किया जाना चाहिए. इस क्षेत्र के देश विभिन्न नॉन-ट्रेडिशनल सिक्योरिटी यानी कि गैर-पारंपरिक सुरक्षा (NTS) ख़तरों के प्रति संवेदनशील हैं. इसका कारण सिंकिंग लैंडस्केपस् यानी कि डूबते परिदृश्य, बार-बार आने वाले चक्रवात और बाढ़, आजीविका का नुक़सान और जलवायु परिवर्तन से बड़े पैमाने पर होने वाला पलायन है. ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के अनुसार, BoB क्षेत्र के सभी देश दुनिया भर के 20 सबसे व्लनरेबल यानी कि असुरक्षित देशों में शामिल हैं.[85] व्यापार और सहयोग की मौजूदा प्रणाली से आगे बढ़ते हुए, स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी को अपनाने से इस क्षेत्र के देश जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं.[86] स्थानीय व्यवसायों और स्थानीय सरकारों को शामिल करके सस्टैनबिलिटी यानी कि संवहनीयता लक्ष्यों को स्थानीयकृत किया जाना चाहिए.

खाड़ी में स्थायी आजीविका के उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिए, यहां के देशों को अपनी ब्लू इकॉनॉमी यानी कि समुद्री अर्थव्यवस्था को विकसित करना चाहिए. इसके लिए यहां के देशों के बीच सहयोग के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी भी ज़रूरी है. मौजूदा अध्ययनों से खाड़ी की मैरीटाइम रिन्यूएबल एनर्जी यानी कि समुद्री अक्षय ऊर्जा (MRE) क्षमता का पता चला है. इसमें विशेष रूप से समुद्र की लहर[87] से होने वाला ऊर्जा उत्पादन और ज्वारीय ऊर्जा की क्षमता शामिल हैं.[88] इसका दोहन करने के लिए, यहां के देशों को इस क्षेत्र में MRE को मैप करने यानी कि उसका ख़ाका खींचने में सहयोग करना चाहिए. इसी प्रकार इन देशों को लेवलाइज्ड कॉस्ट्स ऑफ एनर्जी (LCOE) यानी कि ऊर्जा की स्तरित लागत को टाइडल यानी कि ज्वारिय के लिए मौजूदा 0.20/केडब्ल्यूएच-0.45/केडब्ल्यूएच अमेरिकी डॉलर और वेव एनर्जी यानी कि तरंग ऊर्जा के लिए 0.30/केडब्ल्यूएच-0.55केडब्ल्यूएच से कम करने के लिए R&D और बुनियादी ढांचे में निवेश करना चाहिए.[89] कुशल इंटरकनेक्टेड ग्रिड का प्रावधान किए जाने पर इस क्षेत्र में मज़बूत आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ-साथ LCOE को और कम किया जा सकता है.

एक्सट्रिम क्लायमेट इवेंट्स यानी कि अधिकतम मात्रा की जलवायु घटनाओं से जुड़ी घटनाओं को लेकर BoB अर्थव्यवस्थाओं की असुरक्षितता को देखते हुए, ह्यूमेनिटेरियन अस्सिटंस एंड डिजास्टर रिसपॉन्स यानी कि मानवीय सहायता और आपदा प्रतिक्रिया (HADR) का मुद्दा भी महत्वपूर्ण हो जाता है. क्योंकि इसमें आपदा के बाद जलवायु आपदा पीड़ितों के पुनर्वास के साथ-साथ बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण भी शामिल होता है.[90] खाड़ी के देशों को सहयोग करते हुए अपनी HADR क्षमताओं का निर्माण करना चाहिए. इस कार्य में इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंर्फोमेशन सर्विसेस यानी कि भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) समन्वय का काम कर सकता है. अनुकूलन क्षमता में सुधार, लचीलापन बढ़ाने, और जलवायु आपदाओं के प्रति कम संवेदनशील होने के लिए अनुकूलन रणनीतियों को ग्लोबल गोल ऑन एडप्टेशन यानी कि अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA) के आधार पर संचालित किया जाना चाहिए. BIMSTEC के नेतृत्व में इस क्षेत्र में अनुकूलन में सहायता और जलवायु-लचीले विकास को बढ़ावा देने के लिए एक कोष का निर्माण किया सकता है.[91]

मैरीटाइम कनेक्टिविटी यानी कि समुद्री संपर्क का विस्तार करते समय, यह अनिवार्य है कि क्षेत्र में उच्च जीवाश्म ईंधन पर निर्भर समुद्री उद्योग डीकाबोर्नाइज्ड हो, क्योंकि इसके उत्सर्जन को देशों के नेशनली डिटर्मिन्ड कॉन्ट्रीब्यूशन यानी कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) में शामिल नहीं किया जाता है.[92]

मुख्य मूल्य श्रृंखलाओं पर समुद्री उद्योग का डीकाबोर्नाइजेशन तीन श्रृंखलाओं पर निर्भर है (चित्र 5 देखें): पहली श्रृंखला ईंधन श्रृंखला है, जहां एक हरित ईंधन श्रृंखला की अनुपलब्धता की वज़ह से दोहरे ईंधन इंजन वाले जहाज़ मुख्य रूप से पारंपरिक ईंधन पर चलने के लिए मजबूर हो जाते है. खाड़ी के देशों को तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG), ग्रीन मेथनॉल, और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे कम कार्बन/शून्य-उत्सर्जन ईंधन के विकास में एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए.[93]

चित्र 5: समुद्री उद्योग में वैल्यू चेन और चुनिंदा डीकाबोर्नाइजेशन एनेबलर्स यानी कि सहायक

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स्त्रोत: UNCTAD, परिवहन और व्यापार सुविधा न्यूजलेटर[94]

 

दूसरी श्रृंखला जहाज़ निर्माण श्रृंखला है. जहाज़ निर्माण श्रृंखला को जहाज़ों को अधिक ऊर्जा कुशल और कम प्रदूषणकारी बनाने के लिए अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देने की आवश्यकता है. ऐसा करने का संभावित मार्ग हाइड्रोडायनामिक हल यानी कि पतवार डिजाइन की ऑप्टिमाइजिंग करके, नौकायन के दौरान विंड यानी कि हवा का उपयोग, बहु-ईंधन इंजन तथा कुशल मार्ग तथा बंदरगाह संचालन को आसान बनाने वाले  प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान को अपनाना हो सकता है. इसके साथ ही डिजाइन और निर्माण प्रक्रिया में सर्क्यूलैरिटी यानी कि चक्रीयता को शामिल किया जाना चाहिए.[95] घरेलू बाज़ार में भारत द्वारा शुरू की गई कार्बन क्रेडिट प्रणाली के तर्ज़ पर ही खाड़ी के अन्य देश भी कार्बन क्रेडिट प्रणाली स्थापित कर सकते हैं, जो कम/शून्य उत्सर्जन प्रणाली में परिवर्तन के लिए जहाज़ निर्माण को प्रोत्साहित करेगा.[96]

समुद्री उद्योग का परिचालन इस मामले से जुड़ी तीसरी श्रृंखला है, जिसमें ईंधन भरना, लोड करना और यात्रा करना शामिल है. इस क्षेत्र के देश अपने बंदरगाहों में बुनियादी ढांचे का विकास करके वैकल्पिक ईंधन प्रणालियों के भंडारण की सुविधा उपलब्ध करवाते हुए डीकाबोर्नाइजेशन को सक्षम कर सकते हैं. जहाज़ संचालकों को भी अपने बेड़े के आकार और गति का प्रबंधन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्हें भी जहाज़ों में हाइड्रोडायनामिक डिजाइन और दोहरे ईंधन इंजनों को शामिल करने और अधिक हरित ईंधन का उपयोग करने के लाभ समझाकर इसे अपनाने की दिशा में ले जाना होगा.

अंत में, क्षेत्र में 2030 के सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिए BoB के तटीय देशों के सभी हितधारकों के बीच सहयोग ज़रूरी है. SDG 17 (पार्टनरशिप ऑफ द गोल्स यानी कि लक्ष्यों के लिए साझेदारी) का उद्देश्य ‘‘कार्यान्वयन के साधनों को मज़बूत करना और सतत विकास के लिए वैश्विक साझेदारी को पुनर्जीवित करना है.’’[97] महामारी के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में SDGs को संशोधित करने की मांग नहीं करनी चाहिए, बल्कि महामारी को खाड़ी में सहयोग के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में देखकर उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.[98] यह एक्सेस यानी कि पहुंच से संबंधित मुद्दों को उजागर करता है: पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा न होने के परिणाम; पीने योग्य पेयजल और स्वच्छता सुविधाएं नहीं होना; और पहुंच से जुड़े अन्य मुद्दों के साथ ही अप्रवासियों के लिए बुनियादी नागरिक अधिकार नहीं होना. BoB में रिजिल्यन्ट सोसायटिज यानी कि लचीले समाज के लिए एक सार्वभौमिक रोडमैप में सतत विकास के तीन व्यापक स्तंभों- पीपल यानी कि लोग, प्लैनेट यानी कि पृथ्वी/ग्रह और प्रास्पेरिटी यानी कि समृद्धि को ध्यान में रखा जाना चाहिए. इसका ओवरार्चिंग यानी कि अति महत्वपूर्ण उद्देश्य होना चाहिए, ‘‘कोई भी पीछे न छूटे.’’

निष्कर्ष

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइज़ेशन, जिसे ऐतिहासिक रूप से एक व्यापक व्यवस्था के रूप में परिकल्पित किया गया है, निस्संदेह अधिक क्षेत्रीय और वैश्विक एकीकरण का कारण बना है. वैश्वीकरण ने वस्तुओं और सेवाओं में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के चैनल खोल दिए हैं, उत्पादन लाइनों के वर्टिकल डिसिन्टग्रेशन यानी कि ऊर्ध्वाधर या सीधे विघटन का मार्ग प्रशस्त करते हुए तुलनात्मक मूल्य लाभ, बाज़ार तक अधिक पहुंच, वित्तीय बाज़ार के उदारीकरण और ज्ञान के प्रसार के साथ-साथ तक़नीकी नवाचारों के प्रसार में अहम भूमिका अदा की है. बाज़ार संचालित नीतियों के समर्थन से वैश्वीकरण ने आय के औसत स्तरों और समग्र आर्थिक विकास में भारी इज़ाफ़ा किया है.

हालाँकि, वर्तमान भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक स्थितियों अथवा संदर्भों ने वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को एक संक्रमण के सिरे पर लाकर खड़ा कर दिया है- जहां यह आवश्यक है कि देश 'स्थानीयकरण' और 'वैश्वीकरण' की प्रतिस्पर्धी ताकतों के बीच संतुलन साधने की कोशिश करें. चीन की आर्थिक विस्तारवादी नीति और GVCs में चीन एकीकरण से उत्पन्न ख़तरे, यूएस-चीन व्यापार युद्ध के कारण पनप रहे तनाव, कोविड-19 महामारी की शुरूआत के बाद से आपूर्ति श्रृंखला में पड़े व्यवधान के साथ ही अब रूस-यूक्रेन संघर्ष के साथ इसमें इज़ाफ़ा देखा गया है. इन सभी कारणों की वज़ह से सभी वैश्विक उत्तरी देशों में अब अपनी औद्योगिक संप्रभुता को बनाए रखने और चीनी अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की कोशिशों को तेज करते हुए देखा जा सकता हैं. वैश्विक उत्तरी देशों के इस फ़ैसले का पूरे दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों पर गहरा आर्थिक प्रभाव पड़ता साफ़ दिखाई दे रहा है.

इस स्थिति को अपने हितों की दिशा में अनुकूल रूप से मोड़ने के लिए, भारत BoB में तटीय देशों के बीच मज़बूत क्षेत्रीय संबंधों को प्रोत्साहित करते हुए, आर्थिक साझेदारी के 'ग्लोकलाइज्ड' मॉडल के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकता है. इस क्षेत्र में खाद्य, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को लेकर आत्मनिर्भर बनने की अपार क्षमता मौजूद हैं. ऐसे में इस दिशा में लक्षित नीति निर्माण के साथ इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश इस क्षेत्र के देशों की ओर से की जा सकती है. 2023 में चीन को सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में पछाड़ने और एक क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने की तैयारी भारत कर रहा है. ऐसे में भारत ही BoB के समुद्र तटों में इन क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को विकसित करने के लिए आवश्यक परिस्थितियां बनाने के लिए सभी हितधारकों को एकजुट करते हुए इस दिशा में होने वाली पहल का नेतृत्व कर सकता है.[99]

खाद्य क्षेत्र में, किसी और क्षेत्र में पैदा होने वाले संकट की वज़ह से इस क्षेत्र में होने वाली भोजन की कमी के ख़िलाफ़ सुरक्षा उपायों को स्थापित करने के लिए क्षेत्रीय भागीदारों को सहयोग करना चाहिए. इसी प्रकार यहां के देशों को कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए क्षेत्रीय रणनीतियां बनाकर खाद्य प्रणालियों की सस्टैनबिलिटी यानी कि संवहनीयता सुनिश्चित करनी चाहिए. इसके अलावा, वैश्विक अक्षय ऊर्जा बाज़ार में चीनी प्रभाव को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भारतीय अनुभव का लाभ उठाकर क्षेत्र में आत्मनिर्भर ऊर्जा बाज़ारों का निर्माण किया जा सकता है. तक़नीकी प्रगति के क्षेत्र में, GVC में क्षेत्र के तक़नीकी एकीकरण के लिए डिजिटल अपस्किलिंग यानी कि अतिरिक्त हुनर अथवा गुण अर्जित करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग और नवाचार में निवेश अनिवार्य है.

ये सब हासिल करने के लिए, सुगम कनेक्टिविटी सबसे पहली आवश्यकता है. इसमें भी समुद्री कनेक्टिविटी यानी कि समुद्री संपर्क पर ध्यान केंद्रित करने वाले निवेश से ही सबसे अधिक रिटर्न यानी कि मुनाफ़ा दिखाई देता है. BoB क्षेत्र के भीतर और शेष दुनिया के लिए मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी नेटवर्क का निर्माण बेहतर व्यापार सुविधा और संबंधित व्यापार लागतों में कमी लाने का काम करेगा. मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी नेटवर्क का निर्माण होने पर ये सुविधाएं BoB देशों और US या EU के बीच द्विपक्षीय या बहुपक्षीय प्रवाह को बढ़ाने के काम को प्रोत्साहित करेंगी.

G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत द्वारा भी जिन प्राथमिकताओं पर ज़ोर दिया जा रहा है, वे दक्षता, इक्विटी यानी कि समानता और पर्यावरणीय स्थिरता के तीन लक्ष्यों को पूरा करने वाली ही हैं. इस तरह, दुनिया भर में बड़े पैमाने पर इन लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जाए, इस पर वैश्विक संवाद को सुगम बनाते हुए भारत BoB क्षेत्र की प्राथमिकताओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है.

इन आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए BoB देशों को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिसमें भविष्य की सभी नीतियों में कार्बन तटस्थता और समावेशी विकास शामिल हो. G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत द्वारा भी जिन प्राथमिकताओं पर ज़ोर दिया जा रहा है, वे दक्षता, इक्विटी यानी कि समानता और पर्यावरणीय स्थिरता के तीन लक्ष्यों को पूरा करने वाली ही हैं. इस तरह, दुनिया भर में बड़े पैमाने पर इन लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जाए, इस पर वैश्विक संवाद को सुगम बनाते हुए भारत BoB क्षेत्र की प्राथमिकताओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है. ऐसा करते हुए भारत क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के दायरे में आत्मनिर्भरता के आधार पर 'ग्लोकलाइजेशन' के एक मॉडल को हासिल करने के लिए सुचारु परिवर्तन की दिशा में समाधान ख़ोजने का काम कर सकता है.

शुरूआत से ही इस क्षेत्र में BoB के तटीय देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के लिए भारत की भू-राजनीतिक उपस्थिति बेहद अहम है. सबसे पहले तो चीनी वर्चस्व वाली मूल्य श्रृंखलाओं से संबंध विच्छेद करना अथवा उनसे दूरी बना लेना वैश्विक उत्तर के देशों के लिए संभव हो सकता है, लेकिन BoB के तटीय देशों की चीन के साथ भौगोलिक निकटता से उत्पन्न होने वाली प्रत्यक्ष चुनौती को देखते हुए इन देशों (भारत सहित) के लिए ऐसा करना आसान नहीं है. मसलन, इस क्षेत्र के अधिकांश देशों के चीन के साथ पहले से ही व्यापक व्यापार संबंध और परस्पर जुड़े कनेक्टिविटी नेटवर्क स्थापित हो चुके हैं. ऐसे में इन नेटवर्कों से अलग होने की क्षेत्र के विकासशील देशों को काफ़ी अधिक कीमत चूकानी पड़ सकती है. दूसरी बात यह है कि BoB क्षेत्र में चीन और भारत का सक्रिय कारक काफ़ी जटिल है. क्षेत्र के अपेक्षाकृत छोटे राष्ट्रों के लिए, ये दो खिलाड़ी क्षेत्रीय प्रभुत्व को काउंटरबैलेंस यानी कि प्रतिकार करने का काम करते हैं. भारत को अपनी पहल पर इन क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं के विकास की प्रक्रिया पर अमल करते वक़्त इस कारक को भी ध्यान में रखना होगा. ऐसा करना इन क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं की स्थिरता सुनिश्चित करने के साथ ही भारत के अपने हितों की सर्वोत्तम रक्षा करने के लिए भी ज़रूरी है.


(सौम्या भौमिक, ओआरएफ के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.)

 

(देबोस्मिता सरकार, ओआरएफ के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में जूनियर फेलो हैं.)


NLSIU, बेंगलुरु में पूर्व ओआरएफ इंटर्न अरविंद जे नामपुथिरी की ओर से शोध में की गई सहायता को लेखक स्वीकार करते हैं.

परिशिष्ट

परिशिष्ट 1: हिंद-प्रशांत देशों के साथ चीन का ट्रेड वॉल्यूम यानी कि व्यापार परिमाण (बिलियन अमेरिकी डॉलर में)

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स्त्रोत: वर्ल्ड इंटिग्रेटेड ट्रेड सोल्यूशन्स, वर्ल्ड बैंक यानी कि विश्व एकीकृत व्यापार समाधान (WITS), विश्व बैंक[100]

परिशिष्ट 2: BIMSTEC की ओर से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में किए गए प्रयास

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स्त्रोत : ‘‘BIMSTEC एंड द फोर्थ इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन : द रोल ऑफ टेक्नोलॉजी इन रिजनल डेवलपमेंट,’’ यानी कि ‘‘बिम्सटेक और चौथी औद्योगिक क्रांति: क्षेत्रीय विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका,’’[101] ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन और ‘‘साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन’’, BIMSTEC यानी कि ‘‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार’’, BIMSTEC[102]


Endnotes

[1]Constantino Xavier and Darshana M. Baruah, “Connecting the Bay of Bengal: The Problem”, Bay of Bengal Initiative, Carnegie India, March 1, 2018.

[2] “Population Trends”, UNFPA Asia and the Pacific, https://asiapacific.unfpa.org/en/populationtrends

[3]  Lisa Louis, “The Outlines of a European Policy on the Indo-Pacific”, The Interpreter, Lowy Institute, November 26, 2020.

[4] Ananth Krishnan, “India’s Imports from China Reach Record High in 2022, Trade Deficit Surges beyond $100 Billion”, The Hindu, January 13, 2023.

[5] Soumya Bhowmick, “The pandemic-induced BRI: Then, now and what next?”, ORF Expert Speak, September 3, 2021.

[6] Soumya Bhowmick and Priyanka Sahasrabudhe, “The pandemic-induced BRI: Then, now and what next?”, ORF Commentaries, July 4 2020.

[7] Isabel Reynolds and Emi Urabe, “Japan to Fund Firms to Shift Production Out of China ”, Bloomberg, April 8, 2020.

[8] Dorcas Wong and Alexander Chipman Koty, “The US-China Trade War: A Timeline – China Briefing News”, China Briefing News, August 25, 2020.

[9] Soumya Bhowmick, “COVID-19: FDI dynamism in South and Southeast Asia”, ORF Expert Speak, July 27, 2020.

[10] Yimou Lee and Sankalp Phartiyal, “Exclusive: Apple Supplier Foxconn to Invest $1 Billion in India, Sources Say”, Reuters, July 10, 2020.

[11] Sumit Ganguly and Surupa Gupta, “Why India Refused to Join the World’s Biggest Trading Bloc”, Foreign Policy, November 23, 2020.

[12]  “India-UAE Trade Pact Set to Almost Double Two-Way Trade to USD 100 Billion in 5 Yrs”, The Economic Times, February 19, 2022.

[13] “China Should End Its Anti-COVID Lockdowns, the Head of the IMF Says”, NPR, November 29, 2022, https://www.npr.org/2022/11/29/1139730073/china-covid-lockdowns-imf-georgieva

[14]   “The Graphic Truth: Global Food Prices on the Rise”, GZERO Media, May 9, 2022, https://www.gzeromedia.com/the-graphic-truth-global-food-prices-on-the-rise

[15] Milton Ezrati, “While Europe And America Decouple From China, Asia Integrates”, Forbes, December 27, 2021, https://www.forbes.com/sites/miltonezrati/2021/12/27/while-europe-and-america-decouple-from-china-asia-integrates/

[16] Ananth Krishnan, “Biden, Xi Look to ‘Manage Competition’ amid Rising Tensions”, The Hindu, November 14, 2022, https://www.thehindu.com/news/international/biden-xi-jinping-meet-g20-indonesia-november-14-2022/article66135482.ece

[17] “How the Russia-Ukraine Conflict Is Impacting Supply Chains”, Consultancy.eu, July 13, 2022, https://www.consultancy.eu/news/7993/how-the-russia-ukraine-conflict-is-impacting-supply-chains

[18] Jacky Wong, “China’s Economic Troubles Won’t Stay at Home”, The Wall Street Journal, May 6, 2022, https://www.wsj.com/articles/chinas-economic-troubles-wont-stay-at-home-11651834676

[19] Mukesh Aghi, “Why the Quad Needs to Improve Its Economic Game”, The Diplomat, August 30, 2021, https://thediplomat.com/2021/08/why-the-quad-needs-to-improve-its-economic-game/

[20] Diksha Munjal, “Explained | What Is the BIMSTEC Grouping and How Is It Significant?”, The Hindu, April 6, 2022, https://www.thehindu.com/news/international/explained-what-is-the-bimstec-grouping-and-how-is-it-significant/article65275690.ece

[21]   Li Dongxiang and Bruce Winston, “Building Seamless Transport Connectivity in the Bay of Bengal Region”, Development Asia, April 12, 2021, https://development.asia/insight/building-seamless-transport-connectivity-bay-bengal-region

[22]  “World Population Clock: 8 Billion People (LIVE, 2023)”, Worldometerhttps://www.worldometers.info/world-population/#region

[23]  World Bank, “GDP (Current US$) – India, Bangladesh, Thailand, Indonesia, Myanmar, Sri Lanka, World | Data”,  World Development Indicators, The World Bank Group, https://data.worldbank.org/indicator/NY.GDP.MKTP.CD?end=2021&locations=IN-BD-TH-ID-MM-LK-1W&start=2021&view=bar

[24] Andres Lopez, Sonia De Lucas and Maria Jesus Delgado, “Economic Convergence in a Globalized World: The Role of Business Cycle Synchronization”, PLoS ONE, Volume 16, Issue 10, October 21, 2021, https://doi.org/10.1371/journal.pone.0256182

[25]  “Foreign Trade – U.S.’s Top Trade Partners”, United States Census Bureau, October 2022, https://www.census.gov/foreign-trade/statistics/highlights/top/top2210yr.html

[26]  “China Overtakes US as EU’s Biggest Trading Partner”, BBC News, February 17, 2021, https://www.bbc.com/news/business-56093378

[27]  Scott Baier and Samuel Standaert, “Gravity Models and Empirical Trade”, Oxford Research Encyclopedias Economics and Finance, Oxford University Press, March 31, 2020, https://doi.org/10.1093/acrefore/9780190625979.013.327

[28] Scott Baier and Samuel Standaert, “Gravity Models and Empirical Trade”

[29] Thomas Chaney, “The Gravity Equation in International Trade: An Explanation”, Journal of Political Economy, Volume 126, Issue 1, February 2018, The University of Chicago Press Journals, https://doi.org/10.1086/694292

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[31] World Bank, “GDP (Current US$) – India, Bangladesh, Thailand, Indonesia, Myanmar, Sri Lanka, World | Data”

[32]  Elhanan Helpman, “Imperfect competition and international trade: Evidence from fourteen industrial countries”, Journal of the Japanese and International Economies, Volume 1, Issue 1, 62–81, March 1987, https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/088915838790027X

[33] Scott. L. Baier and Jeffrey H. Bergstrand, “The growth of world trade: Tariffs, transport costs, and income similarity”, Journal of International Economics, Volume 53, Issue 1, 1–27, February 2001, https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S002219960000060X

[34] Staffan B. Linder, An Essay on Trade and Transformation, New York: Willey1961, https://ex.hhs.se/dissertations/221624-FULLTEXT01.pdf

[35] Scott Baier and Samuel Standaert, “Gravity Models and Empirical Trade”

[36] Sohini Bose, “Why is Bangladesh important in India’s G20 presidency?”, ORF Expert Speak, February 15, 2023, https://www.orfonline.org/expert-speak/why-is-bangladesh-important-in-indias-g20-presidency/

[37] “How Did Russia-Ukraine War Trigger a Food Crisis?”, Times of India, June 19, 2022, https://timesofindia.indiatimes.com/world/europe/how-did-russia-ukraine-war-trigger-a-food-crisis/articleshow/92297814.cms

[38]  Heinz Strubenhoff, “The War in Ukraine Triggered a Global Food Shortage”, Brookings, June 14, 2022, https://www.brookings.edu/blog/future-development/2022/06/14/the-war-in-ukraine-triggered-a-global-food-shortage/

[39]  FAO, “FAO Food Price Index | World Food Situation”, Food and Agriculture Organization of the United Nationshttps://www.fao.org/worldfoodsituation/foodpricesindex/en/

[40] FAO, “FAO Chief Economist briefing from New York – FAO Food Price Index for February 2023”, Food and Agriculture Organization of the United Nations, March 3, 2023, https://www.fao.org/new-york/events/detail/fao-chief-economist-briefing-from-new-york-fao-food-price-index-february-2023/en

[41] World Bank, “Prevalence of Severe Food Insecurity in the Population (%) – India, Thailand, Bangladesh, Sri Lanka, Nepal, Bhutan, Myanmar | Data”, World Development Indicators, The World Bank Group, https://data.worldbank.org/indicator/SN.ITK.SVFI.ZS?locations=IN-TH-BD-LK-NP-BT-MM

[42]  “Food Crisis in Sri Lanka Likely to Worsen amid Poor Agricultural Production, Price Spikes and Ongoing Economic Crisis, FAO and WFP Warn”, World Food Programme, September 12, 2022, https://www.wfp.org/news/food-crisis-sri-lanka-likely-worsen-amid-poor-agricultural-production-price-spikes-and-ongoing

[43]  Sadiqur Rahman, “Comprehensive Plan Crucial for Absorbing the Coming Food Crisis”, The Business Standard, November 16, 2022, https://www.tbsnews.net/features/panorama/comprehensive-plan-crucial-absorbing-coming-food-crisis-532682

[44] Monica Verma, “How Environmental Wokeness Cost Sri Lanka Its Food Security”, News18, April 11, 2022, https://www.news18.com/news/opinion/the-indian-connection-behind-sri-lankas-disastrous-environmental-wokeness-4962938.html

[45] Nilofar Suhrawardy, “BIMSTEC Summit Raises Idea of Food Bank”, The Free Online Library, November 14, 2008.

[46]India hosted the 2nd BIMSTEC Agriculture Ministers meeting under the chairmanship of Union Agriculture Minister Shri Narendra Singh Tomar”, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Government of India, November 10, 2022,

[47] World Bank, “Fuel Imports (% of Merchandise Imports) – India, Thailand, Bangladesh, Sri Lanka, Nepal, Bhutan, Myanmar | Data”, World Development Indicators, The World Bank Group.

[48]Diesel Price Hiked by Tk34 per Litre, Octane by Tk46”, The Business Standard, August 5, 2022.

[49]  “BIMSTEC Grid Interconnection Coordination Committee Deliberates on How to Undertake the BIMSTEC Grid Interconnection Master Plan Study (BGIMPS)”, BIMSTEC Event, July 30, 2021, BIMSTEC.

[50]  “Japanese Investments in India – Overview & Opportunities”, Invest India. 

[51]  Seema Prasad, “China to Dominate 95% of Solar Panel Supply Chain”, Down to Earth, July 11, 2022.

[52] Gloria Dickie, “COP27: India Lays out Plan for Long-Term Decarbonization”, Reuters, November 14, 2022.

[53]  “International Conference on Situating the Bay of Bengal in a Free and Open Indo-Pacific”, ORF Event Reports, November 16, 2022.

[54] Jaykumar Patel, Martin Manetti, Matthew Mendelsohn, Steven Mills, Frank Felden, Lars Littig, and Michelle Rocha, “AI Brings Science to the Art of Policymaking”, BCG Global, April 5, 2021.

[55] René Antonio Hernández, “Neoclassical and Endogenous Growth Models: Theory and Practice”, Working Paper, Warwick University, May 2003.

[56]Science, Technology & Innovation – Home-The Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation (BIMSTEC)”, BIMSTEC.

[57] “Science, Technology & Innovation – Home-The Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation (BIMSTEC)”

[58]Survey on Computer Software and Information Technology Enabled Services Exports: 2021-22”, Press Releases, September 8, 2022, Reserve Bank of India.

[59]   “India’s Consumer Digital Economy: A US$800b Opportunity by 2030”, EY India, March 3, 2023.

[60] “Survey on Computer Software and Information Technology Enabled Services Exports: 2021-22”

[61]  “Promotion of Japan-India Business Cooperation in the Field of Digital Infrastructure Welcomed”, The Ministry of Economy, Trade and Industry (METI), Government of Japan, December 12, 2019.

[62]  Poornima Nataraj, “Fujitsu Launches New Centre in Bengaluru to Accelerate AI and ML Innovation”, Analytics India Magazine, April 18, 2022.

[63] Soumya Bhowmick and Pratnashree Basu, “BIMSTEC and the Fourth Industrial Revolution: The Role of Technology in Regional Development”, ORF Issue Brief No. 344, March 2020.

[64] Niara Sareen and Riya Sinha, “India’s Limited Trade Connectivity with South Asia”, Brookings, May 26, 2020.

[65] Niara Sareen and Riya Sinha, “India’s Limited Trade Connectivity with South Asia”

[66] World Bank, “Merchandise Exports to Low- and Middle-Income Economies in South Asia (% of Total Merchandise Exports) – India, Thailand, Bangladesh, Sri Lanka, Nepal, Bhutan, Myanmar | Data”, World Development Indicators, The World Bank Group.

[67] World Bank, “Merchandise Exports to Low- and Middle-Income Economies in South Asia (% of Total Merchandise Exports) – India, Thailand, Bangladesh, Sri Lanka, Nepal, Bhutan, Myanmar | Data”

[68] Suresh P Singh and Swati Verma, “Time to Address Local Fears and Concerns to Connect the Bay of Bengal Community”, India Narrative, November 10, 2021.

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[72]  “China Infra Projects in Focus as Crisis Worsens in Sri Lanka”, The Hindu, May 11, 2022.

[73] Amit Bhandari, “Bay of Bengal Connectivity”

[74] “China Infra Projects in Focus as Crisis Worsens in Sri Lanka”

[75]  “China’s Debt Trap Diplomacy Responsible for Economic Calamity in Sri Lanka”, Business Standard News, July 21, 2022.

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[78]India’s maritime connectivity and importance of the Bay of Bengal”, ORF Event Reports, August 15, 2018.

[79]  Angelo Mathais, “Direct Loadings at Indian Ports Spike after Cabotage Law Revision”, The Loadstar, February 8, 2022.

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[81]  “India to Provide $1 Million to BIMSTEC to Increase Its Operational Budget”, Business Standard News, March 30, 2022.

[82] Soumya Bhowmick and Pratnashree Basu, “BIMSTEC and the Fourth Industrial Revolution: The Role of Technology in Regional Development”

[83] Saman Kelegama, “Regional Economic Integration in the Bay of Bengal”, The Daily Star, February 24, 2016.

[84] Suparna Karmakar, “Reimagining India’s Engagement with BIMSTEC”, ORF Issue Brief No. 404, September 2020.

[85] Global Climate Risk Index 2021German Watch, January 25, 2021.

[86] “International Conference on Situating the Bay of Bengal in a Free and Open Indo-Pacific”

[87] Arefin  Kowser, Md Tarequl Islam, Md Giyas Uddin, Tapan Bihari Chakma, Mohammad Zahedur and Rahman Chowdhury, “Feasibility Study of Ocean Wave of the Bay of Bengal to Generate Electricity as a Renewable Energy with a Proposed Design of Energy Conversion System”, International Journal of Renewable Energy Research, Volume 4, Issue 2, May 2014.

[88] Myisha Ahmad, G. M. Jahid Hasan, H. M. Mohaymen Billah Chy and Gazi Masud Md. Mahenoor, “Renewable Energy Potentials along the Bay of Bengal Due to Tidal Water Level Variation”, MATEC Web of Conferences, January 22, 2018.

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[90] “India’s maritime connectivity and importance of the Bay of Bengal”

[91] Fahmida Kahtun, “BIMSTEC Countries and Climate Change: Imperatives for Action”, ORF Issue Brief No. 299, June 2019.

[92] Mikael Lind, Wolfgang Lehmacher, et. al., “Decarbonizing the Maritime Sector: Mobilizing Coordinated Action in the Industry Using an Ecosystems Approach”, Article No. 89, UNCTAD Transport and Trade Facilitation Newsletter N°94, June 8, 2022.

[93]  Mikael Lind, Wolfgang Lehmacher, et. al., “Decarbonizing the Maritime Sector: Mobilizing Coordinated Action in the Industry Using an Ecosystems Approach”

[94] Mikael Lind, Wolfgang Lehmacher, et. al., “Decarbonizing the Maritime Sector: Mobilizing Coordinated Action in the Industry Using an Ecosystems Approach”

[95] Mikael Lind, Wolfgang Lehmacher, et. al., “Decarbonizing the Maritime Sector: Mobilizing Coordinated Action in the Industry Using an Ecosystems Approach”

[96] Aditi Tandon, “India Set to Build Its Own Carbon Credit Market, Change Building Bylaws for Energy Efficiency”, Mongabay-India, August 18, 2022.

[97]Goals 17: Strengthen the means of implementation and revitalize the Global Partnership for Sustainable Development”, Sustainable Development, United Nations Department of Economic and Social Affairs.

[98] Ole Petter Ottersen and Eivind Engebretsen. “COVID-19 Puts the Sustainable Development Goals Center Stage – Nature Medicine”, Nature, October 9, 2020.

[99] Karthikeyan Sundaram, “India’s Population Has Already Overtaken China’s, Analysts Estimate”, Bloomberg, January 18, 2023.

[100]  World Integrated Trade Solution (WITS), World Bank.

[101]  Soumya Bhowmick and Pratnashree Basu, “BIMSTEC and the fourth industrial revolution: The role of technology in regional development”

[102]  “Science, Technology & Innovation – Home-The Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation (BIMSTEC)”

 

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