Issue BriefsPublished on Oct 11, 2023
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कैसे G20 एक खंडित दुनिया में वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ नेतृत्व कर सकता है

कार्य बल 7: बेहतर बहुपक्षवाद की ओरः वैश्विक संस्थाओं और ढांचों का रूपांतरण करना 


सार

एक लगातार खंडित हो रही वैश्विक व्यवस्था में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वाले युग में बनाए गए बहुपक्षीय संस्थानों पर उनकी क्षमताओं, दृष्टि और 21वीं सदी की आवश्यकताओं को पूरा करने के इरादे को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. यह वैश्विक सुरक्षा और ख़तरों से संबंधित मुद्दों के लिए विशेष रूप से सच है, जैसे कि आतंकवाद को लेकर वैश्विक प्रतिक्रिया.

बहुपक्षीय व्यवस्था को चुनौती देने वाले बयानों को आधार बनाकर आगे बढ़ने के प्रयास में, पूरी दुनिया के लिए सुरक्षा चिंताओं, जैसे कि आतंकवाद निरोध, को लेकर भविष्य के ख़तरों से निपटने के लिए विचारों के इनक्यूबेटर (अंडे सेने की मशीन या समय पूर्व जन्मे शिशु को जिंदा रखने की मशीन. यहां अर्थ नए विचारों को विकसित करने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में है) के रूप में कार्य करने के लिए नए मंचों की आवश्यकता होगी. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि बहुपक्षीय संस्थानों को अपनी सीमाओं को समझना और उनका प्रबंधन करना होगा, क्योंकि आतंकवाद का मुकाबला करने के भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक पहलू तेज़ी से एक-दूसरे के साथ गूंथ रहे हैं.

अफ़गानिस्तान में तालिबान के सत्ता में वापसी करने और संयुक्त राष्ट्र में लश्कर-ए-तैयबा जैसी संस्थाओं को ब्लैकलिस्ट करने में चीन के अड़चन लगाने के साथ, गैर-राज्य आतंकवादी कर्ता तेज़ी से राजनीतिक विसंगतियों का लाभ उठाने की स्थिति में आ रहे हैं. इसके अलावा, पारंपरिक सुरक्षा और मौजूदा वैश्विक व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाली चीज़ों पर ‘वैश्विक सर्वमान्य’ सोच की बढ़ती कमी का भी इस्तेमाल इन कर्ताओं द्वारा अपने प्रभुत्व और विस्तार के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है.

यह नीति संक्षिप्त जी20 के दृष्टिकोण से वैश्विक आतंकवाद विरोधी आख्यानों और नीतियों को देखता है, और यह पड़ताल करता है कि मोटे तौर पर आर्थिक जनादेश के बावजूद क्या इस समूह के पास कठिन सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मंच बनने की संभावना और इरादा है. विशेष रूप से, यह संक्षिप्त दिखाता है कि आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने पर अपना ध्यान केंद्रित करने के अलावा जी20 जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद के बीच संबंधों के अध्ययन और उसका मुकाबला करने पर भी अपनी भागीदारी बढ़ा सकता है, खासकर जलवायु परिवर्तन कैसे आतंकवाद के अंतर्निहित चालक के रूप में पहचाने जाने वाले कारकों को तेज़ कर सकता है, साथ ही ऑनलाइन कट्टरपंथ को रोकने पर भी ध्यान दे सकता है.

1.चुनौती

कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक व्यवस्था को उलटकर रख दिया है. यद्यपि इन नीति परिवर्तन बिंदुओं से पहले ही ज़्यादातर चीज़ें पहले से ही एक घुमावदार ढलान पर थीं, अब अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों में बहुपक्षवाद कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है. जनवरी 2023 में, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में भारत के स्थायी मिशन ने कहा कि ऐसे अन्य बहुदेशीय और बहुपक्षीय समूहों द्वारा संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों की जगह ले लिए जाने का वास्तविक ख़तरा है जो ‘ज़्यादा प्रतिनिधिक, ज़्यादा पारदर्शी और ज़्यादा लोकतांत्रिक हैं और इसलिए ज़्यादा प्रभावी हैं.[i]

2023 में जी20 की भारत की अध्यक्षता इस समूह को अपने मूल डिज़ाइन के रूप में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को मज़बूत करने के बजाय एक मंच के रूप में बड़ा जनादेश लेने के लिए सावधानीपूर्वक प्रेरित कर रही है.[ii] इसमें वैश्विक सुरक्षा पर चर्चा करने की आवश्यकता भी शामिल है, एक ऐसा मुद्दा जिससे जी20 पारंपरिक रूप से दूर रहा है. हालांकि, भू-अर्थशास्त्र पर किसी भी चर्चा से सुरक्षा संबंधी विचारों को बाहर नहीं किया जा सकता है, जिसमें संप्रभु, भौगोलिक और आर्थिक सुरक्षा को सुरक्षित करने के मौलिक पहलू के रूप में आतंकवाद का मुकाबला करना शामिल है.

2.जी20 की भूमिका

जैसा कि वैश्विक स्तर पर अन्य प्रारूपों में होता है, सितंबर 2001 में अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों के कुछ ही महीने बाद नवंबर में आयोजित हुई अपनी पहली शिखर बैठक में जी20 ने अपने व्यापक जनादेश के हिस्से के रूप में आतंकवाद पर चर्चा की थी. 2001 ओटावा शिखर सम्मेलन वाशिंगटन डीसी द्वारा आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए किए गए एक आक्रामक प्रयास का हिस्सा बन गया, जिसमें वित्तपोषण और भ्रष्टाचार सहित आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले मुद्दे शामिल थे. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे संस्थानों को आतंकवाद विरोधी जनादेश को व्यापकता के साथ ग्रहण करते हुए सक्रिय सैन्य अभियानों से आगे जाने के लिए अधिक वज़न दिया गया था. जैसा कि दुनिया, वाशिंगटन के कुछ शत्रुओं[iii] सहित, अमेरिका के नेतृत्व वाले ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ के पीछे गोलबंद हुई तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे संस्थान भी विशेष रूप से इस ख़तरे को दूर करने के लिए डिज़ाइन किए गए ‘उप-अंतरराष्ट्रीय आदेश’ बनाने में शामिल हुए.[iv] आईएमएफ़ के काले धन को सफ़ेद करने के ख़िलाफ़ और आतंकवाद के वित्तपोषण के विरुद्ध इस्तेमाल किए गए साधनों को, एएमएल/सीएफ़टी के साथ, सफल माना जाता है.[v] संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सितंबर 2001 के हमलों के कुछ ही दिनों बाद सर्वसम्मति से आतंकवाद-रोधी प्रस्ताव (काउंटरटेररिज़्म रेज़्योल्यूशन)- प्रस्ताव 1373 पारित किया, यहां तक ​​कि रूस ने भी इसे जनवरी 2002 में घरेलू कानून के रूप में लागू किया.[vi]

हालांकि, ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’, अफ़गानिस्तान और इराक़ में युद्ध, चीन के उदय और अब यूक्रेन में चल रहे संघर्ष ने 2001 के बाद, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए की गई साझेदारी को काफ़ी हद तक खंडित कर दिया है. इसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के आर्थिक और सितंबर 2001 के बाद के सुरक्षा आदेशों में बदलाव की आवश्यकता को जन्म दिया है. 2015 में तुर्की में जी20 शिखर सम्मेलन में एक मजबूत सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी एजेंडा सामने आया. जब तुर्की को जी20 की अध्यक्षता मिली थी तब सीरियाई संकट और आईएसआईएस का उदय शिखर पर था, जिसके परिणामस्वरूप सीरिया से शरणार्थियों की बाढ़ आई हुई थी और यूरोप के साथ उसके संबंध भी तनावपूर्ण हो गए थे.[vii] फिर भी, तुर्की की अध्यक्षता के तहत ही जी20 का जनादेश वास्तव में “समावेशी आर्थिक विकास” की विशिष्टता से “आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ाई”[viii] की ओर बढ़ा था, जो मौजूदा संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्रों, जनादेशों और प्रस्तावों पर आधारित है, जैसे कि प्रस्ताव 2178 जिसमें विशेष रूप से पश्चिम एशिया में सक्रिय आतंकी समूहों और इन समूहों में शामिल होने के लिए विदेशियों के पहुंचने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की गई थी.[ix]

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर 2015 का बयान जी20 के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था. यह संयुक्त राष्ट्र में गतिरोधों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में, संयुक्त राष्ट्र के ऐसे सदस्य देशों को होने वाली निराशा से प्रेरित था, जो यूएनएससी के बाहर थे.[x] हालांकि, यह संवेग सभी भावी शिखर सम्मेलनों में इसी तरह से बना नहीं रह सका था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दी गई एकतरफ़ा शक्तियां मोटे तौर पर इसके शक्तिशाली सदस्य देशों के विशिष्ट उद्देश्यों के अनुरूप थीं. उदाहरण के लिए, आतंक के ख़तरों पर अमेरिकी दृष्टिकोण आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए प्रमुख वैश्विक दृष्टिकोण बन गया, जबकि कई अन्य देशों को लगा कि आतंक के ख़तरों पर उनके विचार को उतना ही महत्व नहीं दिया गया.[xi] इसने क्षेत्रीय स्तर पर आतंकवाद का मुकाबला करने की सोच को नए सिरे से ज़िंदा किया जो कि 1970 और 1980 के दशक में अधिक प्रमुख थी . मध्यम शक्तियां अब तेज़ी से अपनी आवाज़ के सुनाई देने और अपने एजेंडा पर विचार करने के लिए जी20 और अन्य छोटे बहुपक्षीय मंचों को अधिक उपयोगी साधन के रूप में देखने लगी हैं, क्योंकि प्रभाव साझा करने के मामले में ये अधिक बहुलवादी हैं.[xii]

हालांकि, यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने या सुरक्षा बहस जैसे मुद्दों के लिए एक वैकल्पिक मंच के रूप में जी20 के दायरे को चुनौती मिली है. महत्वपूर्ण यह भी है कि मार्च 2023 में रूस-चीन शिखर सम्मेलन के बाद आए बयान ने नई दिल्ली में होने वाले आगामी शिखर सम्मेलन में जी20 के लिए आने वाली मुश्किलों को उजागर किया है. संयुक्त बयान में कहा गया है कि “दोनों पक्ष (रूस और चीन) बहुपक्षीय मंचों के राजनीतिकरण और कुछ देशों द्वारा अप्रासंगिक मुद्दों को बहुपक्षीय मंचों के एजेंडा में शामिल करने और बहुपक्षीय तंत्रों के प्राथमिक कार्यों को कमजोर करने के प्रयासों की कड़ी निंदा करते हैं.”[xiii] यह बयान जी20 विदेश मंत्रियों के यूक्रेन संघर्ष पर मतभेदों के कारण, मार्च 2023 में हुई उनकी बैठक के बाद, एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी करने में विफल रहने के बाद आया है.[xiv]

बहुपक्षवाद का टूटना एक ऐसे नाज़ुक समय में हुआ है, जब आतंकवादी समूह प्रौद्योगिकी के उपयोग के कारण एक सुरक्षा ख़तरा पैदा करते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अपने मत के प्रचार और भर्ती के प्राथमिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर और क्रिप्टोकरेंसी और ड्रोन का उपयोग करते हुए[xv] आतंकवादी समूह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी लाभान्वित हो रहे हैं.[xvi] इस प्रकार, आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के लिए सुरक्षित स्थानों को रोकने के लिए क्षमता निर्माण पहले से मौजूद बहुपक्षीय प्रणालियों का उपयोग करके सबसे अच्छे तरीके से किया जा सकता है.[xvii] दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के बढ़ते ध्रुवीकरण (इस तथ्य के साथ कि आतंकवाद से संबंधित अपने मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए संयुक्त राष्ट्र बहुत बड़ा मंच है) और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मंच के रूप में यूएनएससी के उपयोग की आलोचना को देखते हुए, जी20 जैसे छोटे और अधिक तेज़तर्रार मंचों को आतंकवाद से संबंधित चिंताओं पर जुड़ने के लिए अधिक फलदायी रास्ते के रूप में देखा जा सकता है.

3.जी20 के लिए सिफ़ारिशें

जी20 सहयोग के तीन क्षेत्रों पर विचार कर सकता है: एफ़एटीएफ़ के साथ मिलकर नई तकनीकों के माध्यम से आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करना; जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद (और संघर्ष और उग्रवाद जैसे संबंधित मुद्दों) के बीच संबंध को पहचानना और उन पर ध्यान देना; और ऑनलाइन कट्टरपंथ को रोकना. तीनों ही क्षेत्रों में नए भौतिक और डिजिटल रुझान नज़र आ रहे हैं जिन्हें सघन जांच और प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई की आवश्यकता होगी. अगर जी20 ख़तरों को लेकर एक समान धारणाओं के आधार पर उपयुक्त रूपरेखा विकसित करने में सक्षम हो सके तो संभावित रूप से इन मुद्दों को हल करने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है. इसके लिए तेज़ी से बदलती वैश्विक व्यवस्था में बहुपक्षवाद कैसे काम कर सकता है, इस पर एक दीर्घकालिक रूपरेखा की आवश्यकता होगी.

*नई तकनीकों के ज़रिये आतंकवाद के वित्तपोषण का मुक़ाबला करना

जी20 पहले से ही निर्धारित प्रोटोकॉल (आचार संहिता) के साथ आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला कर रहा है. इन प्रोटोकॉल को मज़बूत करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आतंकवादी समूह किसी भी सदस्य देश के माध्यम से पैसे को घुमाकर अपनी गतिविधियों को वित्तपोषित करने में क़ामयाब न हो सकें. चुनौती सोच के साथ ही समूह के जनादेश और अपेक्षाओं में बुनियादी बदलाव लाने की है.

जी20 के लिए आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका अंतरराष्ट्रीय धन शोधन के लिए आधिकारिक निगरानी निकाय, एफ़एटीएफ़, के साथ काम करना है.[xviii] समय के साथ, एफ़एटीएफ़ ने आतंकवाद के वित्तपोषण पर सार्थक कार्रवाई करने के लिए अपने दायरे को भी बढ़ा लिया है. उदाहरण के लिए, एफ़एटीएफ़ ने आतंकवाद के वित्तपोषण से जुड़े व्यक्तियों के बारे में जानकारी साझा करने और सहयोग करने की उनकी अनिच्छा के आधार पर देशों को ब्लैक-लिस्ट और ग्रे-लिस्ट में वर्गीकृत करने के लिए एक मानदंड विकसित किया है.

जी20 ने एफ़एटीएफ़ के साथ नज़दीक़ रहकर काम किया है, अक्सर अपने एजेंडा को आधार दिया है और एफ़एटीएफ़ को अपने सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों को रिपोर्ट करने को कहा है.[xix] महत्वपूर्ण बात यह है कि नवंबर 2022 में, जी20 और एफ़एटीएफ़ ने आभासी डिजिटल संपत्तियों, जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी के महत्व पर चर्चा की, जो आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिए तेज़ी से उपयोग की जा रही हैं. इस तरह की नई प्रौद्योगिकियों के लिए नियामक उपकरणों की अनुपस्थिति आतंकवाद के वितपोषण का मुकाबला करने में एक चुनौती है.[xx] यह जी20 और एफ़एटीएफ़ के लिए पड़ताल करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है, ख़ासकर जब से आतंकवादी समूह ऐसी तकनीकों का लाभ उठाते हैं.[xxi]

*जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के सुरक्षा पहलू को ध्यान में रखना

जलवायु परिवर्तन एक बेहद महत्वपूर्ण कारक है जो पहले से मौजूद दरारों को बढ़ाता है और आतंकवाद के कर्ता इसका फ़ायदा उठा सकते हैं.[xxii] उदाहरण के लिए, यह साबित हो गया है कि जलवायु परिवर्तन विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के बीच आय असमानता को बढ़ाता है.[xxiii] आय असमानता और शिक्षित युवाओं के रोज़गार प्राप्त करने में असमर्थता, ऐसे दो प्रमुख कारक हैं जो युवाओं को आतंकवादी प्रचार के प्रति संवेदनशील बनाते हैं.[xxiv] इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन लोगों को शरणार्थी बनने के लिए भी मजबूर करता है, जिससे शरणार्थियों को वित्तीय अस्तित्व के लिए आतंकवाद की ओर धकेले जाने[xxv] और इससे अप्रवासी विरोधी भावनाएं उत्पन्न होने, जिनके परिणामस्वरूप शरणार्थियों पर हमले होने का दोहरा ख़तरा पैदा होता है.

जलवायु परिवर्तन का एक और पहलू जिसे आतंकवादी समूहों ने अपनाया है, वह है जलवायु प्रभावों को अनुकूलित या कम करने और स्थानीय आबादी की सहायता करने के लिए सेवाओं का प्रावधान. उदाहरण के लिए, सोमालिया में, अल-शबाब आतंकवादी समूह राजनीतिक हिंसा, अकाल और जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदा होने वाली आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से पीड़ित आबादी के लिए ‘उद्धारकर्ता’ के रूप में उभरा है.[xxvi] वास्तव में, 2018 में, जुबालैंड के लिए अल-शबाब के क्षेत्रीय नेता ने प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की क्योंकि वे मानव और पशुधन के लिए एक गंभीर ख़तरा थे और सामान्य रूप से पर्यावरण के लिए हानिकारक थे.[xxvii]

इसके अतिरिक्त, अकस्मात जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान, आतंकवादी समूह अक्सर ही सरकारी राहत कार्यों को दरकिनार कर प्रभावित आबादी को सहायता प्रदान करने में सक्षम होते हैं. इससे आतंकवादी समूह अपनी लोकप्रियता स्थापित कर सकते हैं और भर्ती बढ़ा सकते हैं. उदाहरण के लिए, पाकिस्तानी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा की धर्मार्थ शाखा, जमात-उद-दावा ने 2015 में देश में आए भूकंप के बीच चंदा इकट्ठा किया और प्रभावितों को राहत प्रदान की.[xxviii] इसी तरह, अरब प्रायद्वीप में अल-क़ायदा ने भी 2016 में यमन के दक्षिणी हिस्से में आए चक्रवात के बाद राहत कार्य किए थे.[xxix]

जी20 देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के इस सुरक्षा पहलू को स्वीकार करना चाहिए और इस मुद्दे को अपनी चर्चा में शामिल करना चाहिए. पहला क़दम जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद और उग्रवाद के बीच संबंध के समूह-व्यापी विश्लेषण को प्रोत्साहित करना होगा. एक और प्रासंगिक कदम आतंकवादी समूहों की राहत गतिविधियों का मुक़ाबला करने के लिए आपदा तैयारियों और पूर्व-योजना में वृद्धि करना होगा.

*ऑनलाइन कट्टरपंथ से मुक़ाबला करना

कई आतंकवादी समूहों और दूर-दराज़ के चरमपंथी तत्वों की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति, और इंटरनेट का प्रसार और प्रचलन, वैश्विक स्तर पर युवाओं को कट्टरपंथी बनाने में प्रभावी साबित हुआ है. पिछले एक दशक में, आतंकवादी समूहों के लिए डिजिटल परिवर्तन (डिजिटल माइग्रेशन का अर्थ प्रसाण को एनेलॉग से बदलकर डिजिटल किए जाने से है) के दौर आए हैं, लेकिन परिवर्तन के हर दौर के साथ ऑनलाइन आतंकवादी समूहों की पहुंच और क्षमता काफ़ी कम हो गई है.[30][xxx] वास्तव में, दुनिया भर की सरकारों के साथ काम करने वाली टेक कंपनियां जिहादी समूहों की ऑनलाइन उपस्थिति को रोकने में सफल रही हैं.[xxxi] फिर भी, अन्य दक्षिणपंथी समूह अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मौजूद रहते हैं और अपने मत का प्रचार फैलाते हैं. ऐसे समूहों की पहुंच को देखते हुए, खासकर यूरोप और अमेरिका में, ऐसा लगता है कि उनके मत का प्रचार जी20 और उसके बाहर अन्य देशों की सुरक्षा को प्रभावित करेगा, जिसके लिए उचित प्रतिक्रिया अनिवार्य हो जाती है.

एक महत्वपूर्ण चुनौती भू-राजनीतिक घटनाक्रमों की है. तालिबान की अफ़गानिस्तान में वापसी जैसी बेहद बड़े भू-राजनीतिक बदलावों ने आतंकवादी समूहों को अपने मत के प्रचार का प्रभाव बढ़ाने में सक्षम बनाया है. अफ़गानिस्तान की स्थिति से पैदा हुए इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत जैसे समूहों का ऑनलाइन मत प्रचार भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों को निशाना बना रहा है, जिसकी प्रचार सामग्री सांप्रदायिक, सामाजिक और जातीय विभाजनों पर केंद्रित है.[xxxii] इसके अतिरिक्त, तालिबान की वापसी के साथ, जो कभी चरमपंथी प्रचार माना जाता था, वह अब अफ़गानिस्तान का मुख्यधारा का राजनीतिक बयान बन चुका है.

जी20 देश ऐसे कड़े कानून बना सकते हैं, जिनके तहत टेक कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वाले आतंकवादी समूहों के बारे में जानकारी प्रदान करना आवश्यक होगा. इसके साथ ही, इसमें शामिल देश ऐसी नीति भी विकसित कर सकते हैं जो राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए इन नियमों का दुरुपयोग किए जाने को रोकती हो. जी20 उन उपयोगकर्ताओं को ख़त्म करने के लिए सूचना साझा करने के लिए तंत्र स्थापित कर सकता है जो हिंसक और आतंकवादी विचारों का प्रचार करने के लिए तकनीकी क्षेत्रों का उपयोग कर रहे हैं. जी20 देशों के लिए यह सुनिश्चित करने का यह एक उपयोगी तरीका हो सकता है कि भागीदार देशों का उपयोग डिजिटल प्रचारकों और आतंकवाद समूहों के ऑनलाइन भर्तीकर्ताओं के लिए लॉन्चिंग स्पेस के रूप में न किया जाए.


श्रेय: कबीर तनेजा और मोहम्मद सिनान सियेच, ‘आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए जी20 के बहुपक्षवाद का लाभ लेना’ ” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, जून 2023.


[i] “Permanent Mission of India to the UN, 77th Session of the United Nations General Assembly”, Ministry of External Affairs, Government of India, 26 January, 2023.

[ii] [2] Deepshikha Sikarwar, “World pushing India for ambitious G20 agenda: Amitabh Kant”, The Economic Times, April 3, 2023.

[iii] Chen-peng Chung, “China’s “War On Terror””, Foreign Affairs, July 1, 2002.

[iv] Anju Aggarwal and Jason Wong, “The September 11 terrorist attacks dominate G20 agenda”, University of Toronto, November 17, 2001.

[v] Joe Whittaker, “How do terrorists use financial technologies?”, International Centre for Counter Terrorism, March 13, 2023.

[vi] “Resolution 1373”, United Nations Security Council, 28, September, 2001.

[vii] Ali Kucukgocmen, “Turkey’s green light for migrants alienates European allies”, Reuters, March 3, 2020.

[viii] Ambreen Agha, “G20 summit and counterterrorism: Expanding its remit or temporary inflection?”, Indian Council of World Affairs, 22 August, 2017.

[ix] “Resolution 2178”, United Nations Security Council, September 24, 2014.

[x] “G20 statement on the fight against terrorism”, Organisation for Economic Cooperation and Development, November 2015.

[xi] “India criticises UN terror report for ignoring JeM, LeT militant groups”, IANS, February 10, 2022.

[xii] Aarshi Tirkey, “Minilateralism: Weighing the prospects for cooperation and governance”, Observer Research Foundation, September 1, 2021.

[xiii] Rezaul H Laskar, “Xi, Putin joint statement reveals new stand on Indo-Pacific, plan for G20 meet”, The Hindustan Times, March 22, 2023.

[xiv] “No joint statement at G20 Foreign Ministers’ meeting says S Jaishankar”, The Hindu, March 2, 2023.

[xv] Andrew Mines and Devorah Margolin, “Cryptocurrency and the Dismantling of Terrorism Financing Campaigns”, Lawfare Blog, August 26, 2020.

[xvi] Katharina Nett and Lukas Rüttinger ,“Insurgency, Terrorism and Organised Crime in a Warming Climate”, Climate Diplomacy, October 2016, pp. 10-35.

[xvii] Kabir Taneja, “Countering terrorism should find space in all multilateral debates”, The Hindustan Times, March 13, 2023.

[xviii] Financial Action Task Force – 30 years, FATF, 2019 Paris, www.fatf-gafi.org/publications/fatfgeneraldocuments/FATF-30.html

[xix] Shwetha Bansal, “India’s G20 presidency: Taking the lead on regulation of digital assets”, Indian Express, December 23, 2022, https://indianexpress.com/article/opinion/columns/indias-g20-presidency-taking-the-lead-on-regulation-of-digital-assets-8339468/.

[xx] Cynthia Dion-Schwarz, David Manheim and Patrick B. Johnston “Terrorist Use of Cryptocurrencies Technical and Organizational Barriers and Future Threats”, Rand Report, 2019.

[xxi] Nikita Malik, “Terror in the Dark: How Terrorists Use Encryption, The Darknet, And Cryptocurrencies”, Henry Jackson Society Report, April 2018.

[xxii] Mohammed Sinan Siyech, “Climate Change and violent Non state actors in the Middle East”, Sharq Forum, May 2020.

[xxiii] Jonathan Colmer, “How does climate change shape inequality, poverty and economic opportunity?”, Economics Observatory. 

[xxiv] Corine Graff, “poverty, Development, and Violent extremism in Weak States”, Brookings Institution, June, 2016.

[xxv] Jeremiah O. Asaka, “Climate Change – Terrorism Nexus? A Preliminary Review/Analysis of the Literature”, Perspectives on Terrorism. 15 (1), 81 – 92.

[xxvi] Tanya Rashid and Neil Brandvold, “Famine propelled by conflict and climate change threatens millions in Somalia”, PBS, November 21, 2022.

[xxvii] Bethan McKernan, “Al Shabaab bans single use plastic bags because of ‘threat to people and livestock’”, The Independent, July 3, 2018.

[xxviii] Asad Hashim, “Militant-linked charity on front line of Pakistan quake aid”, Reuters, October 30, 2015.

[xxix] Thomas Jocelyn, “AQAP provides social services, implements sharia while advancing in southern Yemen”, Long War Journal, February 2016.

[xxx] Suraj Ganesan and Mohammed Sinan Siyech, “Islamic State Online: A Look at the Group’s South Asian Presence on Alternate Platforms”, GNET Report, February 27, 2023.

[xxxi] Ganesan and Siyech, “Islamic State Online”

[xxxii] Kabir Taneja, “Reviewing the evolution of pro-Islamic State propaganda in South Asia”, Observer Research Foundation, January 6, 2022.

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Authors

Kabir Taneja

Kabir Taneja

Kabir Taneja is a Deputy Director and Fellow, Middle East, with the Strategic Studies programme. His research focuses on India’s relations with the Middle East ...

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Mohammed Sinan Siyech

Mohammed Sinan Siyech

Mohammed Sinan Siyech is a Non – Resident Associate Fellow working with Professor Harsh Pant in the Strategic Studies Programme. He will be working on ...

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