प्रस्तावना
पूर्णत: गैर-पश्चिमी सदस्यता वाले दुनिया के केवल दो बहुपक्षीय संगठन होने की वजह से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और BRICS अपने गठन के वक़्त से ही प्रासंगिक बने हुए हैं. इनका मूल एजेंडा विशिष्ट सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों से संबद्ध होने के बावजूद ये संगठन एक निष्पक्ष, लोकतांत्रिक और न्यायोचित बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की स्थापना का आवाहन करते हुए इस दिशा में प्रयासरत भी है. बहुपक्षीय प्रारूप में इन विभिन्न लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि संगठनात्मक लक्ष्यों और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को लेकर सदस्य देशों के दृष्टिकोण और उनके राष्ट्रीय हितों के बीच सफ़ल एकीकरण साधा जा सके. इस ब्रीफ में SCO के दो अहम सदस्यों यानी भारत और रूस पर ध्यान केंद्रित किया गया है. ऐसा करते हुए यह प्रयास किया गया है कि इन देशों की विदेश नीतियां कैसे विकसित हुई हैं और इसका इन बहुपक्षीय प्रारूपों के साथ सहयोग को लेकर क्या असर होगा.
रूस की बात करें तो 2014 में जब उसने क्राइमिया पर कब्ज़ा किया तो पश्चिम के साथ शीत-युद्ध पश्चात के काल में उसके संबंधों में एक नई गिरावट देखी गई. इस घटना ने नई वैश्विक व्यवस्था के उभरते हुए ढांचे पर भी लोगों का ध्यानाकर्षण किया. इसके बाद 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो यह धारणा और भी पुख़्ता हो गई. रूस के इस पैंतरे की वजह से उसकी विदेश नीति की दिशा में परिवर्तन हुआ और वह पूर्णत: पश्चिम विरोध की ओर झूक गई. ऐसे में रूस की महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए पूर्व के साथ बातचीत करना उसके लिए बेहद मौलिक और मूल बात हो गई. इसी बीच 2014 में विशाल बहुमत के साथ जीत दर्ज़ करने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को बदलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन यह साफ़ था कि वे इस बात का ध्यान रख रहे थे कि भारत की विदेश नीति में निरंतरता बनी रहे. घरेलू स्तर पर विभिन्न विकासात्मक चुनौतियों का सामना कर रहे भारत में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तन की वजह से विश्व का ध्यान भारत पर जाने लगा है. इसके साथ ही इसने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में स्थान पाने की उसकी आकांक्षाओं को भी बढ़ा दिया है. आमतौर पर भारत बहु-गठजोड़ का दृष्टिकोण ही अपनाता है. लेकिन चीन के साथ उसके संबंधों में तनाव की वजह से पिछले एक दशक में भारत के यूनाइटेड स्टेट्स (US) के साथ संबंधों में लगातार वृद्धि हुई है. अक्टूबर 2024 में ही भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव को कम करने को लेकर समझौता हुआ है.
एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत बहुपक्षीयवाद को मुख्यत: अपने हितों को हासिल करने के लिए व्यावहारिक रूप से देखता है. वह बहुपक्षीयवाद के माध्यम से “विकासशील विश्व के भीतर ही गठजोड़” स्थापित करना चाहता है.
पिछले दशक में ही भारत और रूस दोनों ने ही क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए बहुपक्षीय संबंधों को भी तेजी से बढ़ाया है. बहुपक्षीय मंचों में सहयोग भी भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों का अहम हिस्सा है. यह बात दोनों देशों के संयुक्त शिखर बयानों से भी उजागर हो जाती है. एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत बहुपक्षीयवाद को मुख्यत: अपने हितों को हासिल करने के लिए व्यावहारिक रूप से देखता है. वह बहुपक्षीयवाद के माध्यम से “विकासशील विश्व के भीतर ही गठजोड़” स्थापित करना चाहता है. लेकिन ऐसा करते हुए वह न केवल विकसित विश्व से बातचीत करना चाहता है, बल्कि ऐसे समूह जिन्हें “अनौपचारिक संस्थान” कहा जाता है उनके साथ क्षेत्रीय समूहों की सदस्यता भी लेना चाहता है. विभिन्न बहुपक्षीय गठजोड़ के सहयोग के पीछे भारत का उद्देश्य न केवल अपने प्रभाव में इज़ाफ़ा करना है, बल्कि इन गठजोड़ों के माध्यम से वह अपनी आर्थिक विकास की आवश्यकताओं और एक निष्पक्ष वैश्विक व्यवस्था की आकांक्षा की पूर्ति भी करना चाहता है. वैश्विक प्रशासनिक ढांचे से असंतुष्ट होने के बावजूद मौजूदा बहुपक्षीयवाद में सुधार के नाम पर नई दिल्ली वर्तमान में पश्चिम को अलग-थलग करने की कोशिश नहीं कर रही है, बल्कि वह उपलब्ध संगठनों का उपयोग करते हुए अपने हितों को आगे बढ़ाना चाहती है.
दूसरी ओर यूरोपियन अथवा पश्चिम की अगुवाई वाले बहुपक्षीय संगठनों के साथ अपने गठजोड़ को लेकर रूस ने असंतुष्टि व्यक्त कर दी है. रूस के अनुसार “UN-केंद्रित व्यवस्था” में “संकट” के लिए US की नियम आधारित व्यवस्था को हासिल करने का लक्ष्य ही ज़िम्मेदार है. विशेषज्ञों का तर्क है कि “अमेरिकनवाद-विरोध” के साथ अपने हितों को सुरक्षित करने की इच्छा के कारण ही रूस अब क्षेत्रीय बहुपक्षीय ढांचों पर ध्यान देने लगा है. वह पोस्ट-सोवियत स्पेस यानी सोवियत पश्चात स्थिति में भी अपने हितों की रक्षा करना चाहता है ताकि इस इलाके में बाहरी शक्तियां अपना प्रभाव न जमा सकें. कुल-मिलाकर एशिया में बहुपक्षीय संस्थानों से सहयोग करने के मामले में रूस ने व्यावहारिक रवैया अपनाया है. इसका कारण यह है कि उसकी आर्थिक सीमाएं सीमित हैं. इसी वजह से वह इन क्षेत्रीय बहुपक्षीय संस्थानों की प्रभावकारिता पर ध्यान दिए बगैर उनके साथ गठजोड़ कर रहा है.
भारत और रूस दोनों के ही दृष्टिकोण, सिद्धांतों की अपेक्षा व्यावहारिकता को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं. इसी वजह से दोनों को उभरती वैश्विक व्यवस्था में नियम-बनाने और नियम-संवारने या नियमों को आकार देने जैसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सहयोग करने का अवसर मिलता है. इन दोनों ही देशों का लक्ष्य बहुपक्षीयवाद में सुधार करने के साथ साझा चिंताओं, जैसे चीन के बढ़ते प्रभाव, पर समन्वय स्थापित करते हुए एक संतुलित विदेश नीति की दिशा में बढ़ते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना है. पिछले कुछ वर्षों में दोनों ही देशों के लिए इन प्राथमिकताओं में परिवर्तन देखा गया है, जिसने इन देशों के बीच बहुपक्षीय स्तर पर सहयोग को प्रभावित किया है.
राष्ट्रीय हित
2001 में जब SCO की स्थापना की गई तब इसका संस्थापक देश रूस स्वयं चेचन्या युद्ध की वजह से आतंकवाद और उग्रवाद का सामना कर रहा था. ऐसे में आतंकवाद, उग्रवाद एवं अलगाववाद से मुकाबला करने के SCO के उद्देश्य सीधे-सीधे रूस के हितों के लिए प्रसंगिक बन गए. इसके अलावा अधिकांश मध्य एशियाई देशों के लिए अहम रक्षा साझेदार के रूप में अपनी स्थिति को भी रूस गंवाना नहीं चाहता था. इसके चलते ही एक सैन्य गठजोड़, कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रिटी ऑर्गनाइजेशन (CSTO) का गठन किया गया. 2002 में इस सैन्य गठजोड़ ने एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय संगठन का दर्ज़ा हासिल कर लिया. इससे पहले 2000 में रूस, कज़ाख़िस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने मिलकर यूरेशियन इकोनॉमिक कम्युनिटी की स्थापना की थी. ये दोनों गठजोड़ इन देशों के SCO के साथ गठजोड़ के साथ परस्पर-व्यापक (ओवरलैपिंग) थे.
किसी जमाने में सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन देशों के बीच आर्थिक स्तर पर सहयोग बेहद अहम हो गया था. इसका कारण यह था कि चीन ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए SCO में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और डेवलपमेंट बैंक स्थापित करने का विचार रख दिया था. रूस की कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के साथ मध्य एशियाई देशों ने इस विचार का विरोध किया क्योंकि ये सभी प्रोजेक्ट आधारित सहयोग करने के इच्छुक थे. इस इलाके में 9/11 के बाद बढ़ी US की मौजूदगी के साथ-साथ पड़ोस में चीन की बढ़ती शक्ति को भी रूस SCO स्तरीय सहयोग के माध्यम से प्रबंधित करने की कोशिश कर रहा था. अत: भारत की SCO की सदस्यता को रूस की ओर से दिए गए समर्थन को इस इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रबंधित करने की कोशिश के रूप में ही देखा गया था.
भले ही ये उद्देश्य यूरेशिया में रूस की स्थिति के लिए अब भी प्रासंगिक बने हुए है, लेकिन 2014 के बाद से साइनो-रशियन यानी चीन-रूस संबंधों में एक अहम बदलाव आया है. 2022 में दोनों ही पक्षों ने अपने संबंधों को “नो-लिमिट्स पार्टनरशिप्स” यानी ‘‘असीमित साझेदारी’’ कहा था. हालांकि, रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से इन दोनों देशों के बीच संबंध सीमित तो हैं. लेकिन चीन के साथ संबंधों में सहयोग को लेकर यह तो साफ़ है कि रूस अपने पड़ोसी के साथ अब पहले से ज़्यादा सक्रिय होकर काम कर रहा है. परंतु पश्चिम के साथ मुकाबले की तुलना में रूस के लिए SCO की भूमिका अब गैर-परंपरागत सुरक्षा मुद्दों को संभालने अथवा चीन को प्रबंधित करने से आगे बढ़ गई है. अब रूस के लिए SCO की भूमिका एक नई वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने वाली नीति का हिस्सा बन गई है. इस बात को क्षेत्रीय और वैश्विक मसलों में SCO की बढ़ी हुई भूमिका के माध्यम से भी देखा जा सकता है. 2023 की विदेश नीति अवधारणा में SCO (और BRICS) को “एक न्यायसंगत और टिकाऊ वैश्विक व्यवस्था की स्थापना” का हिस्सा बताया गया है. इसका उद्देश्य SCO (और BRICS) दोनों की ही “क्षमता और अंतरराष्ट्रीय भूमिका” में इज़ाफ़ा करना है. यूरेशिया में SCO की भूमिका को और भी विस्तार से व्यक्त किया गया है. इसके अनुसार क्षेत्रीय सुरक्षा में इसकी यानी SCO की भूमिका में वृद्धि करने के साथ ही विकास को बढ़ावा देना है. इसके अलावा यह मॉस्को के ग्रेटर यूरेशियन पार्टनरशिप विजन का भी हिस्सा है. इस पार्टनरशिप विजन के तहत मॉस्को रूसी अगुवाई वाली यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के बीच नज़दीकी सहयोग की इच्छा रखता है.
SCO में शामिल होने का एक कारण यह भी था कि भारत को यूरेशिया में सुरक्षा संबंधी उन मुद्दों को लेकर चिंता होती थी जो सीधे उसे प्रभावित करने वाले थे. ऐसे में भारत चाहता था कि यहां की सुरक्षा को लेकर होने वाली बातचीत में वह भी शामिल रहे. इसके अलावा वह मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को भी सुधारना चाहता था.
SCO को लेकर भारत का रवैया भी आरंभ में रूस जैसा ही था. भारत भी यूरेशियन सुरक्षा को लेकर चिंताओं से परेशान था. वह आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के साथ अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिरता को लेकर परेशान था. इसके अलावा तेजी से उभर रहे चीन को प्रबंधित करने की भारत की भूमिका रूस की भूमिका से मेल खाती थी. SCO में शामिल होने का एक कारण यह भी था कि भारत को यूरेशिया में सुरक्षा संबंधी उन मुद्दों को लेकर चिंता होती थी जो सीधे उसे प्रभावित करने वाले थे. ऐसे में भारत चाहता था कि यहां की सुरक्षा को लेकर होने वाली बातचीत में वह भी शामिल रहे. इसके अलावा वह मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को भी सुधारना चाहता था. अपनी बढ़ती आर्थिक दर के साथ भारत भी अब “रूल-शेपर” यानी ‘‘नियम-निर्धारक’’ बनना चाहता था. इस उद्देश्य से भी वह अन्य देशों के साथ सहयोग का इच्छुक था. भारत ने अब क्षेत्रीय संगठनों को लेकर अपनी पुरानी ‘‘अविश्वास’’ वाली भूमिका को पीछे छोड़ दिया था.
मोदी सरकार ने SCO की सदस्यता हासिल करने की भारत की कोशिशों को जारी रखा. 2014 में रूस-पश्चिम संबंधों में गिरावट के बीच SCO ने अपनी सदस्यता में विस्तार करने संबंधी प्रक्रिया से जुड़े दस्तावेज़ों को अपनाया और 2015 में भारत को इसमें स्थान देने की प्रक्रिया आरंभ हुई. भारत जब 2017 में पूर्ण सदस्य बना तब तक चीन से समर्थन हासिल करते हुए पाकिस्तान भी SCO में प्रवेश पा चुका था. पाकिस्तान के साथ मंच साझा करने पर संतोष करने वाले भारत के समक्ष चीन से ख़राब हो रहे संबंधों की चुनौती भी खड़ी थी. ऐसे में वह SCO के ढांचे में सहयोग को विस्तार देने को लेकर आशंकित रहने लगा. इसी बीच यूरेशिया पर उसका कुल प्रभाव भी सीमित ही रहा, क्योंकि चीन अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार कर रहा था. BRI की मौजूदगी को इस बात का प्रतीक माना जा सकता है. SCO के तहत भारत अकेला ऐसा सदस्य देश है जो BRI का विरोध करता है.
दूसरी ओर 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद BRICS ने फलने-फुलने की शुरुआत की. [a] 2009 में हुए पहले BRIC शिखर सम्मेलन में मॉस्को ने अहम भूमिका अदा की थी. इसका आयोजन येकातेरिनबर्ग में चल रहे SCO शिखर सम्मेलन के साथ-साथ ही किया गया था. इस दौरान इस गठबंधन ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार की मांग की थी, ताकि उभरती हुई शक्तियों को समान रूप से अपनी बात रखने का अवसर मिल सके.
रूस को लगता था कि शीत-युद्ध के बाद के दौर में पश्चिमी देशों ने उसके साथ न्यायोचित बर्ताव नहीं किया है. यही चिंता विकासशील विश्व की भी थी. विकासशील विश्व को लगता था कि उसे फ़ैसला लेने वाले अहम संगठनों से जानबुझकर बाहर रखा गया है. BRICS मुख्यत: आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा था. इसमें मौजूदा वित्तीय प्रशासन करने वाले संस्थानों को लेकर नाराज़गी रखने वाले देश अपनी आर्थिक शक्तियों के साथ एकजुट हो गए थे. इसके अलावा इन देशों का मानना था कि वित्तीय संकट के दौरान विकसित विश्व ने जो प्रयास अथवा जवाबी कार्रवाई की वह अप्रभावी साबित हुई थी.
SCO के विपरीत भारत BRICS का संस्थापक सदस्य हैं. भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण उसका दर्ज़ा अब उभरती शक्ति का हो गया है. ऐसे में ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधार की कोशिशें भारत के लिए भी प्रासंगिक हो गई है. BRICS के चलते एक ऐसा संस्थान बनाने का अवसर मिल रहा था जो बहुपक्षीय निर्णय करने वाले संस्थानों का पर्यायी ढांचा बन सकेगा. 2012 में भारत ने BRICS में न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) के गठन का प्रस्ताव रखा था. 2014 में यह प्रस्ताव कंटिंजेंसी रिजर्व अरेंजमेंट (CRA) के साथ संगठन का पहला संस्थानात्मक तंत्र बन गया था. इसमें NDB और CRA को सीमित सफ़लता मिली थी, लेकिन ये BRICS के भविष्य की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बन गए हैं. अपने 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अधिकृत पूंजी के साथ NDB अपने सदस्य देशों के लिए बुनियादी सुविधाओं के लिए वित्त पोषण जुटाने का एक अहम अतिरिक्त माध्यम बन गया है. इसकी सहायता से सदस्य देश सतत विकास परियोजनाओं के लिए भी वित्त पोषण जुटा सकते हैं. इसी प्रकार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर क्षमता वाला CRA भी सदस्य देशों को वित्तीय संकट से निपटने में सहायता मुहैया करवाने में मददगार साबित होता है. वर्तमान में यह फंड/कोड बेहद कम है और इसे IMF का पर्याय बनने की क्षमता नहीं है. लेकिन इसमें मौजूद संभावनाओं को इतनी जल्दी खारिज़ नहीं किया जा सकता.
2014 के बाद प्रतिबंधों का सामना कर रहे रूस के लिए [b] BRICS [c] का आर्थिक एजेंडा न केवल मौजूदा संस्थानों में सुधार का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह एक पर्यायी संस्थान भी खड़ा करने का मौका है जो पश्चिम के पास मौजूद वित्तीय शक्ति के उपयोग को सीमित करने का काम कर सकता है. इस दिशा में प्रयास को 2022 के बाद उस वक़्त गति मिली जब रूस ने भुगतान व्यवस्था SWIFT की जगह एक पर्यायी व्यवस्था तैयार करने पर ज़ोर दिया. कुछ रूसी अधिकारियों और सरकारी मीडिया ने तो एक कॉमन करेंसी यानी साझा मुद्रा विकसित करने को लेकर चर्चा भी शुरू कर दी थी. एक ओर जहां अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार की कोशिशें भारत में भी प्रतिध्वनित होती है, लेकिन वह फिलहाल BRICS ढांचे के तहत US डॉलर के लिए कोई पर्यायी व्यवस्था स्थापित करने का इच्छुक नहीं है.
अत: SCO और BRICS के साथ जुड़ने के मामले में भारत और रूस के आरंभिक तर्क भले ही एक-दूसरे के प्रति प्रासंगिक हो, लेकिन सदस्य देशों के बीच आपसी संबंध और इन संगठनों को लेकर उनकी योजनाओं का विकास हुआ है. ऐसे में इन देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग भी प्रभावित हुआ है.
BRICS और SCO का संस्थानीकरण
SCO और BRICS दोनों का ही गठन विशेष मुद्दों की वजह से हुआ है. SCO के गठन में क्षेत्रीय सुरक्षा ने अहम भूमिका अदा की थी. इसके अलावा आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से मुकाबला, हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी भी इसके गठन का एक कारण थे. BRICS के पहले साझा बयान में 2008 के वित्तीय संकट के बाद उभरे आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया था. इसमें नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार की वकालत की थी ताकि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बेहतर प्रतिनिधित्व दिया जा सकें.
अपने मूल एजेंडा के अनुरूप SCO ने दो स्थायी निकायों/समितियों का गठन किया. इसमें सेक्रेटरिएट यानी सचिवालय और रिजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर (RATS) अर्थात क्षेत्रीय आतंकवादरोधी ढांचा शामिल था. इनका कार्य सदस्य देशों के आतंकवाद एवं उग्रवाद से निपटने वाले संस्थानों के साथ संबंधों को बनाए रखना और इंटरनेट पर आतंकवाद संबंधी संसाधनों पर नियंत्रण रखना था.
BRICS सदस्यों के समर्थन के कारण रूस के ख़िलाफ़ लगए गए अमेरिकी प्रतिबंधों पर विपरीत असर पड़ा. भारत ने युद्ध का समर्थन नहीं किया, लेकिन उसने गैर-UN प्रतिबंधों का विरोध करते हुए रूसी रुख़ की सहायता ही की है. इसी प्रकार डी-डॉलराइजेशन जैसे मुद्दों पर भी उभरती शक्तियां लंबी अवधि का हल निकालने को लेकर इच्छुक दिखाई देती हैं.
लगभग एक दशक तक रूस एवं चीन ही SCO संयुक्त अभ्यासों में भेजे जाने वाले सैनिकों की संख्या के मामले में प्रमुख योगदानकर्ता थे. बाकी के अधिकांश देश इसमें बतौर पर्यवेक्षक के रूप में ही शामिल होते थे. हाल के वर्षों में इस चलन में सुधार देखा गया है. 2014 में हुए पीस मिशन को SCO के तहत पिछले एक दशक में हुए सबसे बड़े सैन्य अभ्यास के रूप में देखा जाता है. हालांकि, इसमें शामिल होने वाली सेनाओं की संख्या में ऊंच-नीच होती रही है. 2017 में पाकिस्तान के SCO का सदस्य बनने और भारत के साथ पाकिस्तान के संबंधों में तनाव के बावजूद नई दिल्ली इन संयुक्त अभ्यासों में शामिल होता रहा है. ऐसा वह यूरेशियन देशों के साथ गैर-परंपरागत सुरक्षा मुद्दों पर अपने संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए करता आया है. हालांकि सीमा पार आतंकवाद को पाकिस्तान की ओर से दिए जाने वाले समर्थन को लेकर नई दिल्ली ने हमेशा अपनी असंतुष्टि व्यक्त की है. यह मुद्दा SCO शिखर सम्मेलनों में भी प्रमुखता से उठाया जाता रहा है. वर्तमान में चूंकि चीन और पाकिस्तान दोनों ही SCO में मौजूद हैं, अत: भारत इस मंच के भीतर सुरक्षा सहयोग को और गहरा नहीं करना चाहेगा.
इसी बीच RATS की व्यापक प्रभावकारिता का सूक्ष्म परीक्षण होने लगा है. विशेषज्ञ अब इस व्यवस्था के सीमित बजट और कर्मचारियों और इसके संस्थानीकरण में सुधार की चर्चा करने लगे हैं. लेकिन सच तो यह है कि इस तरह का सीमित संस्थानीकरण दरअसल बहुपक्षीय व्यवस्था के हाथों में ज़्यादा अधिकार देने से बचने के लिए जानबुझकर उठाया गया कदम है. CSTO के प्रमुख शक्ति के रूप में रूस ने सैन्य गठजोड़ और RATS के बीच सहयोग बढ़ाने पर बल दिया है. इसी बीच मॉस्को आतंकवादरोधी ढांचा युक्त CSTO के माध्यम से मध्य एशियाई सुरक्षा से जुड़े मामलों में अपना दख़ल बनाए रखता है.
इसी प्रकार NDB को ऊंची अंतरराष्ट्रीय रेटिंग हासिल हुई है. इसके तहत संस्थापक सदस्यों को एक जैसा मताधिकार मिला हुआ है. लेकिन परियोजना वित्त पोषण और सदस्यता संख्या विस्तार के मामले में इसे सीमित सफ़लता ही मिली है. अपने हिस्से के रूप में चीन ने भी 2016 में एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (AIIB) की स्थापना की थी. वहां उसे अनुपातहीन रूप से अधिक प्रभाव मिला हुआ है. NDB स्थानीय मुद्रा में सीमित ऋण देता है. उसका दो-तिहाई कर्ज़ US डालर में दिया जाता है. ऐसे में पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से उसे रूस में अपनी गतिविधियों को बंद करने पर मजबूर होना पड़ा है.
BRICS के संस्थानीकरण में विस्तार की अन्य कोशिशों को भी बेहद कम सफ़लता मिली है. विशेषत: 2022 के बाद से ही रूस ने भुगतान करने की प्रणाली SWIFT को बायपास करने वाली पर्यायी भुगतान प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया है. इसी प्रकार रूसी सरकारी मीडिया भी डी-डॉलराइजेशन के फ़ायदे का गुणगाण करने में जुटी हुई है. उसके अनुसार BRICS को अपनी मुद्रा बना लेनी चाहिए. लेकिन इन विचारों को BRICS के ढांचे के तहत बहुपक्षीय प्रयासों के रूप में सफ़लता नहीं मिली है. राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने भी स्वयं स्वीकारा है कि फिलहाल BRICS के लिए कॉमन करेंसी यानी साझा मुद्रा का “वक्त अभी नहीं आया है.” आज भी ट्रेड फाइनांस यानी कारोबारी वित्त में डॉलर की हिस्सेदारी 80 फीसदी से अधिक है. ऐसे में डी-डॉलराइजेशन की प्रक्रिया एक दीर्घावधि की प्रक्रिया ही कही जाएगी.
इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर RMB के उपयोग को बढ़ाने की चीन की कोशिशों के बीच “चीन की ओर झूकाव रखने वाले देशों” के बीच “2022-23 के कारोबारी वित्त के मुद्रा संयोजन” में बदलाव देखा गया है. विकासशील देशों की डॉलर पर निर्भरता को कम करने वाला तंत्र, US की शेष दुनिया पर प्रतिबंधों के माध्यम से प्रभाव डालने की क्षमता को प्रभावित करेगा. इसे लेकर विकासशील देशों में चिंता चल रही है. हालांकि, इस दिशा में बढ़ने की कोशिशों को लेकर अब भी जमीनी स्तर पर कार्रवाई होती दिखाई नहीं दी है.
इस मामले में भारत ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा के माध्यम से कारोबार करते हुए एक संतुलन साधने की कोशिश की है. ऐसा करते हुए उसने ऐसी पहलों से बचने की कोशिश की है जिसके माध्यम से चीन को मजबूती मिल सकती है. इसी प्रकार वह ऐसे सहयोग से भी बचने की कोशिश कर रहा है जिससे बाद में कोई उसका दुरुपयोग न कर सके. भारत ने लगातार अपनी राष्ट्रीय मुद्रा में ही कारोबार करने की इच्छा को प्रकट किया है, लेकिन उसने BRICS मुद्रा को अपना समर्थन नहीं दिया है. ऐसा करते हुए वह US को अलग-थलग करने से बचना चाह रहा है, जबकि चीन को लेकर अपनी आशंकाओं को भी उजागर कर रहा है. उसका यह कदम इस बात की पुष्टि भी करता है कि वर्तमान में इसका कोई आर्थिक औचित्य नहीं है. वह पर्यायी भुगतान प्रणाली को लेकर भी काफ़ी सावधानी बरत रहा है.
सहयोग के एजेंडे में विस्तार
जैसे-जैसे BRICS और SCO आगे बढ़े हैं, वैसे-वैसे उनके एजेंडा और महत्वकांक्षाओं में भी विस्तार हुआ है. हालांकि उन्हें सहयोग के अहम क्षेत्रों में सीमित सफ़लता ही मिली है. अब दोनों संगठनों के वार्षिक घोषणापत्र में न केवल मूल मुद्दों को लेकर मत व्यक्त होता है, बल्कि इसमें क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं की भी बात होती है. इसमें वर्तमान संघर्षों और आर्थिक विकास के मुद्दे भी शामिल होते हैं.
2014 के फोर्टलेज़ा BRICS घोषणापत्र की लंबाई 2024 के घोषणापत्र से लगभग आधी ही थी. 2014 के घोषणापत्र में शामिल अधिकांश मुद्दे या तो सीधे BRICS से संबंधित थे या फिर इसमें विकासशील विश्व की आर्थिक एवं सुरक्षा मुद्दों पर ही ध्यान दिया गया था. हालांकि पिछले दशक में अब BRICS घोषणापत्र में शामिल होने वाले क्षेत्रीय अथवा वैश्विक चिंताओं से जुड़े मुद्दों की संख्या में तेजी से इज़ाफ़ा देखा गया है. लेकिन इन मुद्दों को लेकर केवल शामिल ही किया जाता है. अर्थात यह केवल घोषणाबाजी ही कही जा सकती है, क्योंकि बाद में इस पर व्यक्त की गई चिंताओं को दूर करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती. BRICS और SCO के एजेंडा में विस्तार भी अहम है. इसके तहत नेताओं की जटिल मुद्दों पर मिलकर काम करने की इच्छा स्पष्ट होती है. उनकी यह इच्छा है कि जटिल मुद्दों पर कोई ऐसा हल निकाला जाए जो सभी सदस्य देशों को स्वीकार्य हो. आर्थिक और विकास के मुद्दों पर होने वाली चर्चाओं में जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दों पर साझेदारी को बढ़ावा मिलने की संभावना है.
इन बहुपक्षीय मंचों पर होने वाली चर्चाओं के चलते विशेष मुद्दों पर अन्य बहुपक्षीय संस्थानों के साथ समन्वय स्थापित करने में सहायता मिल सकती है. यह बात ब्राजील की ओर से अपनी G20 की अध्यक्षता में वैश्विक प्रशासन में सुधार की मांग को लेकर कार्रवाई करने की मांग के रूप में देखी जा सकती है. उसकी यह मांग BRICS के एजेंडे को भी प्रतिबिंबित करती है. BRICS/SCO के एजेंडे में सदस्य देशों के लिए भी विशिष्ठ लाभ शामिल है. मसलन 2024 में BRICS के कजान घोषणापत्र में शामिल “गैरकानूनी प्रतिबंधों” को लेकर जताई गई चिंता को देखा जा सकता है. यह बात रूसी रुख़ के साथ मेल खाती दिखाई देती है. इसे केवल बयान ही नहीं समझा जाना चाहिए. इसका कारण यह है कि इस रुख़ को BRICS देशों की ओर से मिले समर्थन की वजह से ही रूस के ख़िलाफ़ लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों को सफ़लतापूर्वक लागू नहीं किया जा सका. दूसरे शब्दों में BRICS सदस्यों के समर्थन के कारण रूस के ख़िलाफ़ लगए गए अमेरिकी प्रतिबंधों पर विपरीत असर पड़ा. भारत ने युद्ध का समर्थन नहीं किया, लेकिन उसने गैर-UN प्रतिबंधों का विरोध करते हुए रूसी रुख़ की सहायता ही की है. इसी प्रकार डी-डॉलराइजेशन जैसे मुद्दों पर भी उभरती शक्तियां लंबी अवधि का हल निकालने को लेकर इच्छुक दिखाई देती हैं. इसका कारण यह है कि ऐसा करने की वजह से उनकी डॉलर पर निर्भरता कम होगी और वे पश्चिम के दबाव से बच सकेंगे.
खैर, घोषणापत्र में बड़ी संख्या में शामिल मुद्दों पर आगे कार्रवाई को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं होती और न ही इसके लिए कोई वित्तीय व्यवस्था ही की जाती है. ऐसे में इन मुद्दों के साथ जुड़ जाने में कोई बुराई नहीं है और न ही इसके लिए कोई ऊंची कीमत चूकानी पड़ेगी. उदाहरण के लिए BRICS घोषणापत्र ने बार-बार UN सुरक्षा परिषद में सुधार पर जोर दिया है. भारत भी लंबे समय से यह मांग करता आया है. लेकिन BRICS में इसे लेकर शामिल मांग के बावजूद सदस्य देश चीन ने सुरक्षा परिषद के लिए नई दिल्ली की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया है. 2024 के घोषणापत्र में रेड सी में नौका परिवहन की आज़ादी के महत्व पर बल दिया गया था, लेकिन वहां हूती हमलों ने भारत आ रहे जहाजों पर हमले करते हुए उनके आवागमन को प्रभावित किया है. इसी प्रकार BRICS सदस्यों रूस और ईरान पर यमनी विद्रोहियों का समर्थन करने का संदेह है. BRICS की वार्षिक अनुपालन रिपोर्ट्स से संकेत मिलता है कि घोषणापत्र में शामिल आर्थिक विकास से जुड़े मुद्दों पर तो सदस्य देश कार्रवाई करते हैं, लेकिन ऐसा करते हुए वे BRICS स्तरीय सहयोग की बजाय द्विपक्षीय सहयोग का रास्ता अपनाना पसंद करते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान एक और ऐसा मुद्दा है जो बार-बार BRICS घोषणापत्र में आता रहता है. हालांकि सदस्य देशों ने इस मसले पर ध्यान देने के लिए संगठनात्मक ढांचे के तहत काम करना पसंद करने की बजाय अन्य बहुपक्षीय व्यवस्थाओं का उपयोग किया है. निश्चित रूप से अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर SCO का अपना संपर्क समूह होने के बावजूद एक प्रभावी सहयोग तंत्र विकसित नहीं हो सका है. SCO ढांचे के तहत चर्चाएं मददगार साबित होती हैं, लेकिन रूस अपने ही मॉस्को ढांचे के तहत बातचीत की अगुवाई करता है. इसी प्रकार भारत, जिसे अफ़ग़ानिस्तान में US की मौजूदगी का लाभ मिला था वह भी रूस के साथ बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय प्रारूपों के माध्यम से संपर्क में रहता है. ऐसे में ज़्यादा कार्रवाई SCO के दायरे के बाहर ही होती है.
2014 के पांच पन्नों के दस्तावेज़ के मुकाबले 2024 में SCO घोषणापत्र भी लगभग चार गुणा बढ़ गया था. 2014 के दुशांबे घोषणापत्र में 19 प्वाइंट्स शामिल थे. इसमें से 14 SCO एजेंडा में शामिल सुरक्षा एवं आर्थिक सहयोग से संबंधित थे, जबकि शेष मुद्दे मध्य पूर्व और नॉर्थ अफ्रीका रिजन (MENA), सीरिया, ईरान, यूक्रेन और नॉन-प्रोलिफिरेशन यानी अप्रसार से संबंधित थे. 2017 में जब भारत पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ तब अस्ताना घोषणापत्र में सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर ही ध्यान दिया गया था. उसमें आर्थिक सहयोग को लेकर एक ज़्यादा विस्तारित हिस्सा शामिल किया गया था. 2024 के सालाना घोषणापत्र का सुर/लहजा निश्चित रूप से काफ़ी अलग था. इसमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हुए “टेक्टोनिक शिफ्ट्स” यानी रचनात्मक बदलाव का उल्लेख था. इसी प्रकार इसमें देशों की राजनीतिक एवं आर्थिक पसंदों को लेकर “स्वतंत्रता” पर भी प्रकाश डाला गया था. इसमें अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी दृष्टिकोण को झिड़क दिया गया था. इसी प्रकार इसमें उभरती हुई शक्तियों की भूमिका को स्वीकार किया गया था. ऐसे में यह भारत एवं रूस दोनों को ही पसंद आया था.
SCO में भारत की पहल अधिकतर आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित रही है. ऐसे में यह मध्य एशियाई देशों के साथ अपनी क्षेत्रीय स्थिति में सुधार करने के लिए आर्थिक सहयोग करने की उसकी कोशिशों को साफ़ करती है. SCO के आरंभिक वर्षों में रूस SCO के माध्यम से आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने को लेकर रुचि नहीं दिखा रहा था. ऐसे में वह चीन की ओर से इस दिशा में आने वाले प्रस्तावों की राह में रोड़ा बना हुआ था. लेकिन 2014 के बाद उसके रुख़ में बदलाव आने लगा. इसके बावजूद SCO डेवलपमेंट बैंक और एक SCO डेवलपमेंट फंड को लेकर बातचीत फिलहाल मंत्रणा के स्तर पर ही पहुंची है. इतना ही नहीं 2006 में रूस की ओर से प्रस्तावित एनर्जी क्लब का विचार भी अभी तक केवल “कंसलटेटिव” यानी परामर्श प्रारूप में ही है.
भारत भी BRICS जैसे संगठन को “वैश्विक प्रतिनिधित्व” मुहैया करवाने वाले विस्तार के विचार का समर्थन करता है. लेकिन वह चीन-केंद्रित समूह के उभरने को लेकर आशंकित भी है. इसी कारण से वह सदस्यता विस्तार से जुड़ी प्रक्रिया में स्पष्ट मापदंडों को शामिल करने की कोशिश कर रहा है.
कुल मिलाकर संगठन का आर्थिक सहयोग का एजेंडा अटका हुआ ही है. दूसरी ओर बीजिंग की द्विपक्षीय पहल को गति मिल रही है. मॉस्को की ग्रेटर यूरेशियन पार्टनरशिप को बैगर प्रतिबद्धता के मान्यता मिल रही है. रूस अब भी अपनी यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और BRI के बीच सहयोग को लेकर उत्सुक है. हालांकि BRI पर अमल द्विपक्षीय माध्यम से किया जा रहा है. SCO के वार्षिक घोषणापत्र में BRI को लेकर भारत के विरोध को दर्ज़ किया जाता है. घोषणापत्र में ही अन्य सभी SCO सदस्यों की ओर से चीनी कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को समर्थन भी दर्ज़ होता है.
BRICS घोषणापत्र की तरह SCO घोषणापत्र में सदस्य देशों पर कोई ज़रूरत नहीं थोपी जाती. इसमें सदस्य देशों को सहयोग की गति और दिशा तय करने की छूट मिली हुई है. यह दृष्टिकोण भारत और रूस दोनों को ही पसंद आता है. वार्षिक बयान बेहद अस्पष्ट होते हैं. इसके बावजूद इसमें बदलती अंतरराष्ट्रीय रूपरेखा पर प्रकाश डाला जाता है. लेकिन वर्तमान व्यवस्था के ख़त्म करने के हल को लेकर की जाने वाली संयुक्त कार्रवाई की बात नहीं की जाती. ऐसे में यह साफ़ हो जाता है कि विभिन्न सदस्य देश अलग-अलग लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं. ऐसे में दोनों ही संगठनों के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्रभावकारिता अथवा उनका असर कमज़ोर हो रहा है.
उभरती हुई बहुध्रुवीय व्यवस्था में बहुपक्षीय संगठन
मौजूदा बहुपक्षीय ढांचे में मानदंड एवं व्यवहार के नए पैमाने स्थापित करने के लिए सुधारों की मांग करते हुए BRICS और SCO ने एक नई वैश्विक व्यवस्था को आकार देने की कोशिश की है. BRICS और SCO के संस्थानीकरण, नियमित शिखर सम्मेलनों, वार्षिक मंत्रिस्तरीय बैठकों एवं विस्तारित एजेंडे के साथ ही इन दोनों संगठनों के माध्यम से एक न्यायोचित एवं लोकतांत्रिक बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था स्थापित करने का आह्ववाहन किया गया है. भारत और रूस दोनों ही अपनी BRICS एवं SCO की सदस्यता के माध्यम से इस बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था में स्थान पाने की महत्वाकांक्षा रखते हैं. संयुक्त प्रयासों के बगैर दोनों ही देशों को व्यक्तिगत तौर पर पहले से स्थापित नियमों का ख़ात्मा करने में दिक्कत पेश आएगी. ऐसे में सवाल यह है कि भारत और रूस को बहुपक्षीयवाद के माध्यम से व्यवस्था-निर्माण में सक्षम बनाने में BRICS और SCO आखिर कितने सफ़ल रहे हैं.
अब तक का रिकॉर्ड एक मिश्रित चित्र पेश करता है. काम करने की भारतीय एवं रूसी पद्धति में भिन्नता ने BRICS और SCO की कार्य-पद्धति को प्रभावित किया है. आरंभ में ऐसा विचार था कि BRICS और SCO का उपयोग करते हुए भारत एवं रूस दोनों को ही चीन को प्रबंधित करने का अवसर मिलेगा. लेकिन यह लक्ष्य हासिल करने में फिलहाल सफ़लता नहीं मिली है. चीन ने संपूर्ण यूरेशिया पर अपना आर्थिक प्रभाव जमा लिया है. रूस ने भी अब यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) और BRI के एकजुट होकर काम करने को अपना समर्थन दे दिया है. 2024 के SCO घोषणापत्र में इस बात का उल्लेख भी मिलता है. दूसरी ओर अपने पड़ोस में दबंग होते जा रहे चीन को लेकर भारत लगातार आशंकित रहता है. यह बात BRICS में रूस की ओर से आने वाले प्रस्तावों के भारत की ओर से दिए जाने वाले जवाबों में साफ़ झलकती है. चीन के साथ सहयोग के स्तर को लेकर भारत सावधानी बरतता है. SCO अथवा BRICS को पश्चिम-विरोधी संस्थान बनाने की रूस की योजनाओं को लेकर भी भारत चौकन्ना रहता है. इन बातों की वजह से इस बात को लेकर मतभेद उभरने लगे हैं कि दोनों देश यूरेशियन सुरक्षा के भविष्य और पश्चिमी शक्तियों के साथ गठजोड़/बातचीत जैसे मुद्दों से होने वाले लाभ को किस दृष्टि से देखते हैं.
इन संगठनों के विस्तार का दायरा एवं संरचना भी विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है. पश्चिम की BRICS को अलग-थलग करने की कोशिशों के बीच रूस चाहता है कि इसका विस्तार कर दिया जाए. उसे लगता है कि ऐसा होने पर BRICS की अहमियत बढ़ सकेगी. उधर पाकिस्तान की सदस्यता को लेकर भारतीय आशंका के बावजूद रूस ने पाकिस्तान को BRICS की सदस्यता देने का सार्वजनिक तौर पर समर्थन किया है. भारत भी BRICS जैसे संगठन को “वैश्विक प्रतिनिधित्व” मुहैया करवाने वाले विस्तार के विचार का समर्थन करता है. लेकिन वह चीन-केंद्रित समूह के उभरने को लेकर आशंकित भी है. इसी कारण से वह सदस्यता विस्तार से जुड़ी प्रक्रिया में स्पष्ट मापदंडों को शामिल करने की कोशिश कर रहा है.
BRICS एवं SCO को बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था स्थापित करने में सीमित सफ़लता मिलने का एक और संकेत यह है कि सदस्य देशों ने सदैव ही इन संगठनों के पर्याय को तवज्जो दी है. उदाहरण के लिए बीजिंग ने AIIB की स्थापना की और वह ही इसे नियंत्रित भी करता है. इसके सदस्यों की संख्या NDB के सदस्यों से अधिक है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि वह एक ऐसी BRICS पहल में कैसे अपना योगदान देगा जहां शक्तियों का वितरण संस्थापक देशों के बीच बराबरी में किया गया है. भारत और रूस दोनों ही वैकल्पिक संस्थान स्थापित करने की इस लालसा को रोकने में सफ़ल नहीं हुए हैं. रूस तो CSTO एवं EAEU में अग्रीण शक्ति भी है. एक ओर रूस के हिसाब से BRICS का विस्तार गैर-पश्चिमी विश्व को मजबूती प्रदान करते हुए “ग्लोबल मेजॉरिटी” अर्थात “वैश्विक बहुमत” की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करेगा. दूसरी ओर चीन एवं भारत में भी वैश्विक दक्षिण को लेकर अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. इन महत्वकांक्षाओं को वे दोनों क्रमश: G77+चीन एवं वॉइस ऑफ ग्लोबल साऊथ समिट जैसे प्रारूपों के माध्यम से आगे बढ़ाने यानी हासिल करने की कोशिश करने में जुटे हुए हैं. ऐसे में दोनों ही देशों की BRICS और SCO के बाहर रहकर नियम-निर्माण करने की आकांक्षा स्पष्ट झलकती है.
कमज़ोर संस्थानीकरण के लिए भारत एवं रूस दोनों ही अकेले ज़िम्मेदार नहीं हैं. अन्य सदस्य देश भी इन संगठनों पर अपने-अपने देश का नियंत्रण रखने की स्वाभाविक इच्छा रखते हैं. यह स्वाभाविक इच्छा ही है जो इन संगठन की ओर अन्य देशों को सदस्यता हासिल करने के लिए आकर्षित करती है. इसका सदस्य बनने की चाह रखने वाले देशों को लगता है कि वे इस संगठन का हिस्सा बनेंगे तो वे भी इस बात को नियंत्रित करेंगे कि ये संगठन कैसे काम करेगा. निर्णय-प्रक्रिया में आम सहमति पर आधारित होने की वजह से इसमें शामिल अधिक शक्तिशाली देश अपना एजेंडा चलाने के लिए अपने संसाधनों का अनुचित अथवा गलत तरीके से उपयोग करते हुए बहुमत को अपने पक्ष में नहीं कर सकते. ऐसे में उनकी ओर से की जाने वाली कार्रवाई भी सीमित हो जाती है. BRICS एवं SCO की महत्वाकांक्षाओं में विस्तार के बावजूद इसके सदस्य देशों में भविष्य के बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था के मापदंडों को प्रभावित करने या अन्य बहुपक्षीय प्रारूपों वाले संगठनों में निर्णय-प्रक्रिया को आकार देने वाली संयुक्त आवाज बनने में सक्षम एक प्रभावी संस्थानों का अभाव साफ़ झलकता है. ऐसे में BRICS एवं SCO जैसे संगठनों का विस्तार होने से इन संगठनों की आम सहमति पर आधारित निर्णय-प्रक्रिया के समक्ष और भी मजबूरियां पेश आने लगेंगी. इसका कारण यह होगा कि सदस्य देशों की संख्या में इज़ाफ़ा होने से जटिल मुद्दों पर आम सहमति बनाना और भी मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि विभिन्न सदस्य देशों के हितों में भी भिन्नता रहेगी.
वैश्विक मुद्दों पर BRICS और SCO घोषणापत्रों की अस्पष्ट एवं गैर-प्रतिबद्ध प्रकृति भी इस बात का संकेत है कि इसके सदस्य देश विश्व के समक्ष मौजूद प्रमुख चुनौतियों का हल निकालने को लेकर एक समूह के रूप में काम नहीं कर रहे हैं. ये सदस्य देश मामला-दर-मामला देखकर ही काम करते हैं. ऐसे में बहुध्रुवीय विश्व की राह पर जाने के लिए विचारों में भिन्नता झलकती है, जिसकी वजह से यह साफ़ नहीं होता कि ये संगठन व्यापक तौर पर नियम-निर्माण प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित करेंगे.
निष्कर्ष
बदलती हुए विश्व व्यवस्था में बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार बेहद आवश्यक हो गए हैं. विकासशील विश्व में स्थापित नियमों को लेकर बढ़ रहे असंतोष का प्रवाह प्रासंगिक बना हुआ है. इसी संदर्भ में BRICS एवं SCO में मौजूद संभावनाओं को नज़रअंदाज करना मुश्किल हो जाता है. इसका कारण है इन संगठनों की सदस्यता एवं वे महत्वपूर्ण मुद्दें जिन्हें ये संगठन हल करना चाहते हैं. भारत और रूस के लिए इन संगठनों का महत्व इस बात पर आधारित रहेगा कि ये संगठन कैसे इन दोनों देशों को उनके राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करने में सहायक साबित होकर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उनकी अहमियत को स्थापित करने में सहायता करते हैं. वर्तमान में भारत एवं रूस दोनों को ही BRICS एवं SCO के साथ जुड़े रहने में लाभ दिखाई दे रहा है. यह लाभ इस बात के बावजूद दिखाई दे रहा है कि भारत इन संगठनों में धीरे-धीरे बदलाव करना चाहता है, जबकि रूस इनमें तत्काल एवं तेजी से परिवर्तन करने की इच्छा रखता है.
पिछले दशक में बहुपक्षीय सहयोग के साथ जुड़े रहने के बावजूद नई दिल्ली एवं मॉस्को दोनों के बीच में BRICS एवं SCO के भीतर ही मूल और विस्तारित एजेंडे में शामिल मुद्दों को भिन्नता दिखाई देती है. कमज़ोर संस्थानीकरण को लेकर दोनों के विचार मेल खाते हैं. लेकिन इसकी वजह से उन संगठनों की कार्य पद्धति ही सीमित हो रही है जिन्हें ये दोनों देश आगे बढ़ाने की इच्छा रखते हैं. अब यह देखना होगा कि क्या भारत एवं रूस BRICS एवं SCO के मूल एजेंडे में शामिल मुद्दों पर सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध वित्तपोषण, टाइम-बाउंड डिलिवरेबल्स यानी समयबद्ध परिणाम देने और नवाचार वाली सोच रखकर सहयोग कर सकेंगे या नहीं. दोनों देशों की साझा चिंताओं के बावजूद उनमें मौजूद मतभिन्नताओं में मौजूद दूरी कम नहीं हुई है. ऐसे में संयुक्त कार्रवाई भी सीमित हुई है. यह भी देखना होगा कि क्या इन संगठनों के भीतर मौजूद आपसी प्रतिस्पर्धा को सीमित किया जा सकता है. यह बात अन्य सदस्य देश और वैश्विक भूराजनीतिक स्थिति पर निर्भर करेगी. या फिर इसके सदस्यों की संख्या में विस्तार के साथ इन संगठनों में मौजूद मतभेदों को दूर करना भी संभव नहीं होगा.
मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार की गैर-पश्चिमी मांग में वृद्धि के बीच BRICS और SCO की वैधता इस बात पर आधारित होगी कि वे कितनी जल्दी प्रभावी परिणाम देने वाले संगठन साबित होंगे. ऐसा होने पर ही वैश्विक दक्षिण के लिए इन संगठनों की कीमत में इज़ाफ़ा होगा. भारत और रूस को यह सोचना होगा कि कैसे वे इस ब्रीफ में चर्चा की गई चुनौतियों के बीच इन संगठनों के भीतर ही प्रभावी एजेंडा-मेकिंग यानी कार्यसूची-निर्धारण को हासिल करते हैं. वर्तमान में इन संगठनों के सीमित लाभ ही दिखाई देते हैं. ऐसे में यदि BRICS और SCO को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी है तो इन दोनों संगठनों को काफ़ी काम करना होगा. प्रासंगिकता वाली बात भारत-रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी पर भी लागू होती है.
Endnotes
[a] The financial crisis is seen as marking a key point in the decline of US unipolarity and giving an impetus to Chinese ambitions, coinciding with a rising Russian scepticism of the West driven by events in Europe. See: https://www.brookings.edu/articles/brics-and-chinas-aspiration-for-the-new-international-order/
[b] Western sanctions led by the US and EU were imposed on Russia after the latter annexed Crimea from Ukraine in February 2014. These included restrictions on trade, asset freezes and travel bans on specific individuals, officials and businesses from Russia.
[c] The western sanctions on Russia after 2014 began with restrictions on trade and slowdown in financial investment from abroad, increasing the importance of strengthening economic relations with the developing world. Here, BRICS countries play an important role for Russia, especially as they do not comply with non-UN sanctions. BRICS members also coordinate their positions on the G20 agenda when common concerns are involved. The BRICS strategy for economic partnership focuses on cooperation on areas important for the Russian economic agenda including trade and investment, manufacturing and mineral processing, energy, agriculture cooperation, science and technology, connectivity, financial cooperation and people-to-people contact.
[1] Ministry of External Affairs, “Charter of the Shanghai Cooperation Organisation,” https://www.mea.gov.in/Portal/LegalTreatiesDoc/000M3130.pdf
[2] The Kremlin, “Joint Statement of the BRIC Countries’ Leaders,” January 16, 2009, http://en.kremlin.ru/supplement/209
[3] Harsh V Pant, “Introduction,” in A Decade of Modi’s Foreign Policy India Shows the Way, ed. Harsh V Pant (New Delhi: Observer Research Foundation, 2024), 4-7.
[4] C Raja Mohan, “India’s pivot to the United States,” East Asia Forum, May 19, 2020, https://eastasiaforum.org/2020/05/19/indias-pivot-to-the-united-states/
[5] The Kremlin, “Joint Statement following the 22nd India-Russia Annual Summit India-Russia: Enduring and Expanding Partnership,” http://en.kremlin.ru/supplement/6168
[6] Rohan Mukherjee and David M. Malone, “From High Ground to High Table: The Evolution of Indian Multilateralism,” Global Governance: A Review of Multilateralism and International Organizations 17, no. 3, August 12, 2011: 311-329.
[7] Ian Hall, “India’s Frustrated Search for a Multipolar Order,” in Pluralism and World Order, ed. Feng Zhang (Singapore: Palgrave Macmillan, 2023), 111-131.
[8] Sergey Lavrov, “Genuine Multilateralism and Diplomacy vs the “Rules-Based Order,” Russia in Global Affairs, 21, no. 3 (2023): 104–113.
[9] Robert Legvold, “The role of multilateralism in Russian foreign policy,” in The Multilateral Dimension in Russian Foreign Policy, eds. Elana Wilson Rowe and Stina Torjesen (Abingdon: Routledge, 2008): 21-45.
[10] Sergey Utkin, “Multilateralism in Russian Foreign Policy: A Toolbox for the Future,” in OSCE Yearbook 2017, ed. IFSH (Baden-Baden: Nomos, 2018), 51-64.
[11] Collective Security Treaty Organization, “From the Treaty to the Organization,” CSTO, https://en.odkb-csto.org/25years/.
[12] Mikhail Troitskiy, “A Russian perspective on the Shanghai Cooperation Organization,” in The Shanghai Cooperation Organization: SIPRI Policy Paper No. 17, eds. Alyson J. K. Bailes et al. (Stockholm: CM Gruppen, 2007), 30-44.
[13] Yu Bin, “The SCO Ten Years After: In Search of Its Own Identity,” in The Shanghai Cooperation Organization and Eurasian Geopolitics, ed. Michael Fredholm (Copenhagen: NIAS Press, 2013), 50.
[14] The Kremlin, “Joint Statement of the Russian Federation and the People’s Republic of China on the International Relations Entering a New Era and the Global Sustainable Development,” http://www.en.kremlin.ru/supplement/5770.
[15] Vasily Kashin, “Russia and China: Evolution of Strategic Partnership,” Russia International Affairs Council, May 3, 2024, https://russiancouncil.ru/en/analytics-and-comments/comments/russia-and-china-evolution-of-strategic-partnership/
[16] The Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, “The Concept of the Foreign Policy of the Russian Federation,” March 31, 2023, https://mid.ru/en/foreign_policy/fundamental_documents/1860586/
[17] CGTN, “Putin: Eurasian Economic Union supports pairing with China's BRI,” May 25, 2023, https://news.cgtn.com/news/2023-05-25/Putin-Eurasian-Economic-Union-supports-pairing-with-China-s-BRI-1k65JcgBE1a/index.html
[18] Harsh V Pant, Indian Foreign Policy: An Overview (Manchester: Manchester University Press, 2016), pp. 56.
[19] Waheguru Pal Singh Sidhu et al., “A Hesitant Rule Shaper?,” in Shaping the Emerging World India and the Multilateral Order, eds. Waheguru Pal Singh Sidhu et al. (Washington DC: Brookings Institution Press), 3-24.
[20] Ian Hall, Modi and the Reinvention of Indian Foreign Policy (Bristol: Bristol University Press,2019), pp. 29.
[21] The Kremlin, “Shanghai Cooperation Organisation Summit,” http://en.kremlin.ru/catalog/keywords/82/events/46605
[22] The Kremlin, “Joint Statement of the BRIC Countries’ Leaders,” http://en.kremlin.ru/supplement/209.
[23] Paulo Nogueira Batista Jr., “BRICS Financial and Monetary Initiatives,” Valdai Discussion Club, October 3, 2023, https://valdaiclub.com/a/highlights/brics-financial-and-monetary-initiatives/#masha_1=2:1,2:10
[24] Oliver Stuenkel, The BRICS and the Future of Global Order, (Maryland: Lexington Books, 2015), pp. 116.
[25] Sputnik International, “BRICS Working on New Form of Currency - State Duma Deputy Chairman,” March 30, 2023, https://sputnikglobe.com/20230330/brics-working-on-new-form-of-currency---state-duma-deputy-chairman-1108974142.html
[26] MEA, “Charter of the Shanghai Cooperation Organisation,” https://www.mea.gov.in/Portal/LegalTreatiesDoc/000M3130.pdf.
[27] The Kremlin, “Joint Statement of the BRIC Countries’ Leaders,” http://en.kremlin.ru/supplement/209.
[28] Assem Assaniyaz, “SCO RATS Committee Director Highlights Achievements in Security Collaboration, Cooperation Program,” The Astana Times, January 22, 2024, https://astanatimes.com/2024/01/sco-rats-committee-director-highlights-achievements-in-security-collaboration-cooperation-program/
[29] Richard Weitz, “The Shanghai Cooperation Organization (SCO): Rebirth and Regeneration?,” ISN, October 10, 2014, https://www.files.ethz.ch/isn/187944/ISN_184270_en.pdf
[30] Richard Weitz, “Analyzing Peace Mission 2014: China and Russia Exercise with the Central Asian States,” CNAS, https://www.cnas.org/publications/commentary/analyzing-peace-mission-2014-china-and-russia-exercise-with-the-central-asian-states.
[31] MEA, “Prime Minister Shri Narendra Modi’s remarks at the SCO Summit,” https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/37924/Prime+Minister+Shri+Narendra+Modis+remarks+at+the+SCO+Summit
[32] Thomas Wallace, “China and the Regional Counter-Terrorism Structure: An Organisational Analysis,” Asian Security 10, no. 3, December 2014: 199–220.
[33] Ekaterina Mikhaylenko et al., “The SCO and security cooperation,” in The Shanghai Cooperation - Organization Exploring New Horizon, eds. Sergey Marochkin and Yury Bezborodov (London: Routledge, 2022), 38-52.
[34] Paul Stronski and Richard Sokolsky, “Multipolarity in Practice: Understanding Russia’s Engagement With Regional Institutions,” Carnegie Endowment for International Peace, https://carnegieendowment.org/research/2020/01/multipolarity-in-practice-understanding-russias-engagement-with-regional-institutions?lang=en.
[35] The Kremlin, “Joint meeting of SCO and CSTO heads of state,” http://en.kremlin.ru/catalog/persons/550/events/66707
[36] Robert Wihtol, “Does China wield excessive influence in the Asian Infrastructure Investment Bank,” The Interpreter, June 16, 2023, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/does-china-wield-excessive-influence-asian-infrastructure-investment-bank
[37] Rachel Savage and Brenda Goh, “BRICS bank looks to local currencies as Russia sanctions bite,” Reuters, August 10, 2023, https://www.reuters.com/business/finance/brics-bank-looks-local-currencies-russia-sanctions-bite-2023-08-10/
[38] The Kremlin, “Meeting with journalists from BRICS countries,” October 18, 2024, http://en.kremlin.ru/events/president/news/75349
[39] Gita Gopinath, “Geopolitics and its Impact on Global Trade and the Dollar,” IMF, May 7, 2024, https://www.imf.org/en/News/Articles/2024/05/07/sp-geopolitics-impact-global-trade-and-dollar-gita-gopinath#_ftn1
[40] Gopinath, “Geopolitics and its Impact on Global Trade and the Dollar”
[41] Evan Freidin, “BRICS Pay as a challenge to SWIFT network,” The Interpreter, November 13, 2024, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/brics-pay-challenge-swift-network
[42] Keshav Padmanabhan, “Trump’s rhetoric against BRICS currency doesn’t worry India. US President-elect, Modi are on same page,” The Print, December 3, 2024, https://theprint.in/diplomacy/trumps-rhetoric-against-brics-currency-doesnt-worry-india-us-president-elect-modi-are-on-same-page/2384751/
[43] Ministry of External Affairs, “Transcript of Special Briefing on Prime Minister’s Visit to Russia,” October 23, 2024, https://www.mea.gov.in/media-briefings.htm?dtl/38459/transcript+of+special+briefing+on+prime+ministers+visit+to+russia+october+23+2024
[44] MEA, “Sixth BRICS Summit – Fortaleza Declaration,” https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/23635/Sixth+BRICS+Summit++Fortaleza+Declaration.
[45] Kabir Taneja, “West Asia crisis spells tough choices for China, Russia,” The Hindu, August 21, 2024, https://www.thehindu.com/opinion/op-ed/west-asia-crisis-spells-tough-choices-for-china-russia/article68547576.ece
[46] BRICS Information Center, “BRICS Compliance Assessments,” University of Toronto, https://www.brics.utoronto.ca/compliance/index.html
[47] Ministry of Foreign Affairs of the Republic of Tajikistan, “Dushanbe Declaration of the Heads of SCO Member States,” https://www.mid.tj/en/main/view/467/dushanbe-declaration-of-the-heads-of-sco-member-states
[48] The World and Japan database, “The Astana declaration of the Heads of State of the Shanghai Cooperation Organisation,” https://worldjpn.net/documents/texts/SCO/20170609.D2E.html
[49] MEA, “Astana Declaration of the Council of Heads of State of the Shanghai Cooperation Organization,” https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/37942/Astana_Declaration_of_the_Council_of_Heads_of_State_of_the_Shanghai_Cooperation_Organization
[50] Embassy of India, “India's initiatives in SCO,” November 2022, https://www.eoibeijing.gov.in/eoibejing_pages/NDg
[51] Alexander Lukin, “Russian–Chinese Cooperation in Central Asia and the Idea of Greater Eurasia,” India Quarterly 75, no. 1 (2019): 1-14.
[52] Shamil Yenikeyeff et al., “Шанхайская организация сотрудничества в новых геополитических условиях (Shanghai Cooperation Organisation in new geopolitical conditions),” International Organisations Research Journal 19, no. 1 (2024): 129-148.
[53] Shamil Yenikeyeff, “The SCO Energy Club in the Changing Global Energy Order,” Valdai Discussion Club, April 26, 2023, https://valdaiclub.com/a/highlights/the-sco-energy-club-in-the-changing-global-energy-/
[54] Yenikeyeff et al., “Шанхайская организация сотрудничества в новых геополитических условиях (Shanghai Cooperation Organisation in new geopolitical conditions)”
[55] MEA, “Dushanbe Declaration on the Twentieth Anniversary of the Shanghai Cooperation Organisation,” https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/34275/Dushanbe_Declaration_on_the_Twentieth_Anniversary_of_the_Shanghai_Cooperation_Organisation
[56] Shanghai Cooperation Organisation, “Astana Declaration of the Council of Heads of State of the SCO,” July 9, 2024, https://eng.sectsco.org/20240709/1438929.html
[57] Ministry of External Affairs, “Prime Minister Shri Narendra Modi's remarks at the extended format Meeting of the SCO Council of Heads of States,” July 4, 2024, https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/37926/Prime_Minister_Shri_Narendra_Modis_remarks_at_the_extended_format_Meeting_of_the_SCO_Council_of_Heads_of_States
[58] The Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, “The Concept of the Foreign Policy of the Russian Federation,” March 31, 2023, https://mid.ru/en/foreign_policy/fundamental_documents/1860586/
[59] Alyson Bailes and Pal Dunay, “The Shanghai Cooperation Organization as a regional security institution,” SIPRI, 2007, https://www.jstor.org/stable/pdf/resrep19208.7.pdf
[60] Harsh V Pant and Ayjaz Wani, “SCO is not an anti-Western club. India’s presence is a guarantee against it,” Observer Research Foundation, May 2, 2024, https://www.orfonline.org/research/sco-is-not-an-anti-western-club-indias-presence-is-a-guarantee-against-it
[61] Andrey Kortunov, “Collective Security in (Eur)Asia: Views from Moscow and from New Delhi,” Russia International Affairs Council, November 13, 2024, https://russiancouncil.ru/en/analytics-and-comments/analytics/collective-security-in-eur-asia-views-from-moscow-and-from-new-delhi/
[62] “Russia would support Pakistan's inclusion in BRICS, says Russian deputy PM,” Reuters, September 18, 2024, https://www.reuters.com/world/russia-would-support-pakistans-inclusion-brics-says-russian-deputy-pm-2024-09-18/
[63] Jagannath Panda, “India’s BRICS Balancing Act,” USIP, October 17, 2024, https://www.usip.org/publications/2024/10/indias-brics-balancing-act
[64] Rezaul H Laskar, “India cautious on Brics expansion,” Hindustan Times, June 30, 2022, https://www.hindustantimes.com/india-news/india-cautious-on-brics-expansion-101656526682146.html
[65] The Kremlin, “Restricted-format meeting of the BRICS Summit,” http://en.kremlin.ru/events/president/transcripts/75374
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