Author : Manoj Joshi

Originally Published दैनिक भास्कर Published on Apr 19, 2024 Commentaries 0 Hours ago

भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी ऊर्जा-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है. 

भारत के ईरान और इजराइल संबंध, तनाव और तेल की कीमतों पर प्रभाव

इजराइल और ईरान के बीच जो कुछ हो रहा है, वह भारत के लिए भी बड़ी चिंता का विषय है. शनिवार को- हमला शुरू होने से पहले- ईरानी फौज ने होर्मुज के जलडमरूमध्य में एक मालवाहक जहाज को जब्त कर लिया था, जिसमें चालक-दल के 25 सदस्यों में से 17 भारत के थे.

 शनिवार को- हमला शुरू होने से पहले- ईरानी फौज ने होर्मुज के जलडमरूमध्य में एक मालवाहक जहाज को जब्त कर लिया था, जिसमें चालक-दल के 25 सदस्यों में से 17 भारत के थे.

इजराइल-ईरान तनाव: भारतीय चिंता

जहाज का स्वामित्व आंशिक रूप से एक इजराइली के पास था और इस कार्रवाई का उद्देश्य मध्य-पूर्व क्षेत्र में तनाव बढ़ाना था. इजराइल पर ईरानी हमले के तुरंत बाद भारत ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया और तत्काल तनाव कम करने का आह्वान किया. तेहरान से बातचीत में अलग से जहाजकर्मियों की हिरासत का मुद्दा भी उठाया और चालक-दल से मिलने की अनुमति मिली. वैसे इजराइल और ईरान लंबे समय से इस क्षेत्र में शैडो-वॉर लड़ रहे हैं. इजराइल ईरानी अधिकारियों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या करता है तो ईरान हिजबुल्ला और हूती सहयोगियों की मदद से इजराइली ठिकानों पर हमला बोलता है. लेकिन गत 1 अप्रैल को इजराइलियों ने कथित रूप से दमिश्क में एक ईरानी कॉन्सुलेट पर हमला कर दिया, जिसमें कुद्स फोर्स के सात वरिष्ठ अधिकारी मारे गए. यह ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) की एक इकाई है. इसके बाद ईरान को लगा कि अब उसे इजराइल के खिलाफ सीधे जवाबी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

क्या होता अगर एक भी मिसाइल इजराइल को लग जाता? 

शनिवार रात एक बड़े हमले के माध्यम से उसने ऐसा ही किया. इजराइल ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जॉर्डन और सऊदी अरब की मदद से ईरानी ड्रोन और मिसाइल हमले को सफलतापूर्वक रोक दिया. अगर एक भी मिसाइल इजराइल में घुस जाती और उसके हमले में कई इजरायली मारे जाते तो तेल अवीव को जवाबी हमला बोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती. लेकिन हमलों से अपना लगभग पूर्ण बचाव करने के बाद इजराइल के लिए इस अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज करना मुश्किल था कि वह भले अभी अपनी जीत की घोषणा कर दे, लेकिन जवाबी कार्रवाई न करे. हालांकि इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर उनके दक्षिणपंथी गठबंधन के सदस्यों की ओर से ईरान को मुंहतोड़ जवाब देने का बहुत दबाव है. इसका एक कारण यह भी है कि इससे इजराइल द्वारा गाजा में किए गए विनाश से भी दुनिया का ध्यान भटकेगा.

आज भारत ईरानी कच्चा तेल तो नहीं खरीद रहा है, लेकिन गत मार्च में उसने सऊदी अरब, इराक और यूएई से अपने कुल तेल-आयात का 48 प्रतिशत हिस्सा लिया था. इराकी और सऊदी तेल होर्मुज के जलडमरूमध्य से ही होकर आता है और तनाव बढ़ने पर ईरानी इसकी नाकाबंदी कर सकते हैं.

7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के आतंकवादी हमले के बाद से ही भारत ने स्थिति को शांत करने के लिए मध्य-पूर्व क्षेत्र के सऊदी अरब, ईरान, इजराइल, मिस्र और फिलिस्तीन के साथ-साथ यूरोप के नेताओं से बात की है. लेकिन भारत इससे अधिक कुछ कर नहीं सकता है. भारत के ईरान के साथ लंबे समय से रणनीतिक संबंध हैं, वहीं मोदी सरकार ने रक्षा के क्षेत्र में इजराइल के साथ गहरे संबंध विकसित किए हैं. इजराइल ने पिछले दशक में 2.9 अरब डॉलर मूल्य की मिसाइलें, रडार और निगरानी और लड़ाकू ड्रोन हमें निर्यात किए हैं. ईरानी तेल-गैस भी भारत के लिए हाइड्रोकार्बन के निकटतम स्रोत हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों से पहले भारत ईरानी तेल का बड़ा खरीदार था. भारत इस तथ्य से भी अवगत है कि इस्लामी कट्टरवाद की लहर में भी भारत कभी शिया चरमपंथियों के निशाने पर नहीं रहा था. दरअसल, भारत और ईरान दोनों ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सुन्नी चरमपंथियों द्वारा आतंकवाद के निर्यात को लेकर चिंतित हैं. इसके अलावा, पाकिस्तानी नाकाबंदी को देखते हुए ईरान ने भारत को चाबहार और बंदर अब्बास के बंदरगाहों के माध्यम से मध्य एशिया और यूरोप के लिए एक रास्ता प्रदान किया है. भारत ने 2016 में चाबहार को विकसित करने के लिए 8.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया था और तेहरान को 15 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन भी दी थी.

तेल की कीमतों पर मध्य-पूर्व के तनाव का भारत पर असर

ईरान-इजराइल संघर्ष के चलते तेल की कीमतों में वृद्धि से भी भारत अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकता है. भारत आज कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी अधिकांश ऊर्जा-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह आयात पर ही निर्भर है. विश्लेषकों का मत है कि मध्य-पूर्व तनाव के चलते तेल की कीमतें बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं. आज भारत ईरानी कच्चा तेल तो नहीं खरीद रहा है, लेकिन गत मार्च में उसने सऊदी अरब, इराक और यूएई से अपने कुल तेल-आयात का 48 प्रतिशत हिस्सा लिया था. इराकी और सऊदी तेल होर्मुज के जलडमरूमध्य से ही होकर आता है और तनाव बढ़ने पर ईरानी इसकी नाकाबंदी कर सकते हैं. भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी ऊर्जा-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है. विश्लेषकों का मत है तनाव के चलते तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं. 


यह लेख अमर उजाला में प्रकाशित हो चुका है

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