प्रस्तावना
पिछले एक दशक से अब भारत तथा यूनाइटेड स्टेट्स (US) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पहले से ज़्यादा समान दृष्टिकोण अपना रहे हैं. इसमें मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद और भी इज़ाफ़ा हुआ है. निश्चित ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र अब भारत-US संबंधों का अभिन्न अंग बन गया है. इसी वजह से अब द्विपक्षीय सहयोग का इस क्षेत्र तक विस्तार होता दिखाई दे रहा है.
सत्ता संभलाने के कुछ ही दिनों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों को मज़बूती प्रदान करने के अपने इरादों का संकेत दे दिया था. उनके कार्यकाल के साथ चलने वाले तीनों US प्रशासनों (राष्ट्रपति बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप तथा जो बाइडेन का कार्यकाल) ने भी 2014 से ही हिंद-प्रशांत पर अपना ध्यान केंद्रित करने के दृष्टिकोण को और धार प्रदान की है.
भारत-US द्विपक्षीय संबंधों के लिए चार तत्व बेहद अहम हैं. ये चार तत्व ही इन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के अलाइनमेंट यानी एक साथ जोड़ने और कन्वर्जन्स में अहम भूमिका अदा करते हैं. (a) द्विपक्षीय संबंधों में हिंद-प्रशांत को लेकर सहयोग तथा समन्वय को सीधे शामिल करने के लिए कोशिश कर उन्हें पुख़्ता करना; (b) एक नए मिनीलैटरल "वार्यस्" यानी लघुपक्षीय तंत्रिका को प्राथमिकता देना. इन मिनीलैटरल "वार्यस्" में क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (Quad) का समावेश है. इसके साथ ही ASEAN-केंद्रित क्षेत्रीय संस्थानों जैसे ईस्ट एशिया समिट (EAS) तथा ASEAN डिफेंस मिनिस्टर्स मिटिंग प्लस जैसे ताने-बाने का समर्थन करना शामिल है. (c) भारत का रणनीतिक अविश्वास एवं चीन के साथ US की बढ़ती प्रतिस्पर्धा तथा (d) क्षेत्रीय आर्थिक पहलों को लेकर मिश्रित बातचीत जो बाइडेन प्रशासन के इंडो-पसिफ़िक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के साथ ही चल रही है.
भारत-US द्विपक्षीय संबंधों के लिए चार तत्व बेहद अहम हैं. ये चार तत्व ही इन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के अलाइनमेंट यानी एक साथ जोड़ने और कन्वर्जन्स में अहम भूमिका अदा करते हैं.
एक कुल जमा विश्लेषण यह है कि समानता, अलाइनमेंट और कन्वर्जन्स का मिश्रण ही हिंद-प्रशांत में भारत-US के संबंधों की विशेषता है अथवा उसका वर्णन इन तीन बातों से ही किया जाता है. इन दोनों देशों के बीच हिंद-प्रशांत में संबंधों का दृष्टिकोण न तो एकसमान है और न ही एक जैसा है. इसके बावजूद यह दृष्टिकोण उनके संपूर्ण संबंधों को बेहद मजबूती प्रदान करने वाला है. सहयोग की यह स्थिति उन दिनों से एकदम नाटकीय अंदाज में अलग है जब वे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों को लेकर एक-दूसरे के साथ कोई साझा दृष्टिकोण नहीं रखते थे.
कन्वर्जन्स का क्षेत्र
हिंद-प्रशांत में द्विपक्षीय सहयोग एवं समन्वय
1991 में आरंभ हुई भारत की ‘लुक ईस्ट’ पॉलिसी को तीस वर्ष पूर्ण होने ही वाले थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली. EAS में पहली मर्तबा हिस्सा लेते हुए ही प्रधानमंत्री मोदी ने यह घोषण कर दी कि अब भारत ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी को अपनाएगा. यह इस बात का संकेत था कि वह अब इस क्षेत्र को लेकर अधिक प्रतिबद्धता के साथ काम करेगा. एक वर्ष के बाद अपने वर्षांत के आकलन में उनके प्रशासन ने पाया कि एक्ट ईस्ट पॉलिसी, “जिसकी शुरुआत एक आर्थिक पहल के रूप में की गई थी, अब राजनीतिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक पहलूओं से युक्त हो गई है. इस पॉलिसी में अब बातचीत तथा सहयोग की संस्थागत प्रक्रिया स्थापित हो गई है.”[1] दिसंबर 2015 में जब भारत के विदेशी संबंधों की आधिकारिक समीक्षा ‘ए ईयर ऑफ स्मार्ट डिप्लोमेसी : माइलस्टोंस 2015’ जारी की गई तो देखा गया कि पूर्वी एशिया को अब प्राथमिकता दी जा रही है. समीक्षा में ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी : विजन, विगर एंड प्लान ऑफ एक्शन’ के हिस्से के बाद ‘नेबरहूड डिप्लोमेसी’ पर चर्चा की गई थी. यह चर्चा ‘एंगेजिंग मेजर पॉवर्स’ के हिस्से से पहले की गई थी.[2]
इसी संदर्भ में भारत तथा US ने एशिया-पसिफ़िक तथा हिंद महासागर क्षेत्र के लिए जनवरी 2015 में अपना संयुक्त कूटनीतिक बयान जारी किया. यह बयान भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख़्य अतिथि के रूप में आए बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान जारी किया गया था.[3] प्रधानमंत्री मोदी ने उस वक़्त कहा था कि, "बहुत लंबे समय से भारत तथा US ने एक-दूसरे की तरफ यूरोप और अटलांटिक के आर-पार देखा है. अब जब मैं पूर्व की ओर देखता हूं तो मुझे यूनाइटेड स्टेट्स का पश्चिमी किनारा दिखाई देता है."[4] यह तथ्य कि इस क्षेत्र को लेकर भारत-US के पहले द्विपक्षीय बयान में एशिया-पसिफ़िक और हिंद महासागर दोनों ही क्षेत्रों का उल्लेख मिलता है को बेहद अहम कहा जाएगा. यह इस बात का संकेत है कि ऐतिहासिक रूप से केवल एशिया-पसिफ़िक पर ध्यान केंद्रित करने वाले US की नज़र अब हिंद महासागर पर भी जमी हुई है. जबकि केवल हिंद महासागर तक ध्यान देने वाला भारत भी अब एशिया-पसिफ़िक में ज़्यादा नज़र रख रहा है. दोनों देशों के बीच हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर के बीच की कड़ी को लेकर देखे जा रहे कन्वर्जन्स का ही प्रभाव है कि अब इस इलाके को हिंद-प्रशांत क्षेत्र कहा जाने लगा है. इस संयुक्त कूटनीतिक बयान के बाद सेट हुए पैटर्न को ही साझेदारी को लेकर जारी बयान तथा दोनों देशों की परस्पर कूटनीतिक एवं नीति अभिव्यक्ति में आगे भी देखा जा रहा है.
उदाहरण के तौर पर 2018 में शांगरी-ला डायलॉग में अपने मुख़्य संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने हिंद-प्रशांत को भारत-US के बीच संबंधों को सुधारने वाला एक स्तंभ बताया था. उन्होंने कहा था कि, “भारत की यूनाइटेड स्टेट्स के साथ वैश्विक कूटनीतिक साझेदारी ने अब अपनी ऐतिहासिक हिचकिचाहट को पीछे छोड़ दिया है. यह साझेदारी अब हमारे संबंधों में असाधारण रूप से व्यापक होती जा रही है. बदलती हुई दुनिया में इसने एक नया महत्व हासिल कर लिया है. यह साझेदारी अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला, स्थिर, सुरक्षित और संपन्न बनाने के साझा दृष्टिकोण का अहम स्तंभ हो गई है.”[5]
2018 में शांगरी-ला डायलॉग में अपने मुख़्य संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने हिंद-प्रशांत को भारत-US के बीच संबंधों को सुधारने वाला एक स्तंभ बताया था. उन्होंने कहा था कि, “भारत की यूनाइटेड स्टेट्स के साथ वैश्विक कूटनीतिक साझेदारी ने अब अपनी ऐतिहासिक हिचकिचाहट को पीछे छोड़ दिया है. यह साझेदारी अब हमारे संबंधों में असाधारण रूप से व्यापक होती जा रही है.
ट्रंप प्रशासन ने इस गठबंधन को बनाए रखा है. उदाहरण के लिए 2019 में डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के एक दस्तावेज़, ‘अ फ्री एंड ओपन इंडो-पसिफ़िक : एडवांसिंग अ शेयर्ड विजन’, में भारत का 33 मर्तबा उल्लेख किया गया. इसी दस्तावेज़ में यह घोषणा की गई थी कि “[a] एक मजबूत US-भारत साझेदारी ही US के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.”[6] इसके साथ ही 2021 के एक अनक्लासीफाइड US स्ट्रैटेजिक फ्रेमवर्क फॉर इंडो-पसिफ़िक में भारत के साथ सहयोग के लिए एक विस्तृत एवं ऊंची-उम्मीदों वाले उद्देश्य की बात की गई थी. इसका लक्ष्य इस कूटनीतिक साझेदारी को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आने वले दक्षिण एशिया से लेकर हिंद महासागर तक के इलाके में काम करते हुए पुख़्ता करना था.[7]
हिंद-प्रशांत को लेकर भारत-US के बीच गठबंधन बाइडेन प्रशासन के तहत भी चल रहा है. फरवरी 2022 में जारी प्रशासन की हिंद-प्रशांत कूटनीति में कहा गया है कि, “हम इस सकारात्मक क्षेत्रीय दृष्टिकोण (जो स्वतंत्र एवं खुलेपन को बढ़ावा देकर स्वायत्तता के साथ विकल्प मुहैया करवाता है) में भारत का एक साझेदार के रूप में समर्थन करते हैं. ”[8]
अंत में भारत तथा US दोनों ही इस गठबंधन और सहयोग को आपस में जुड़े हुए ढांचों जैसे इंडो-पसिफ़िक ओशन इनिशिएटिव के माध्यम से बनाए हुए हैं. इंडो-पसिफ़िक ओशन इनिशिएटिव की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने नवंबर 2019 में बैंकॉक में हुए 14वें EAS में की थी. इसके अलावा दोनों देश एक-दूसरे के साथ इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के माध्यम से भी बातचीत करते हैं.[9]
मिनीलैटरल्स और ASEAN की अगुवाई वाले क्षेत्रीय संस्थान
भारत-प्रशांत, जिसमें दक्षिणपूर्व एशिया, पसिफ़िक और हिंद महासागर शामिल हैं, को लेकर दृष्टिकोण, कूटनीति और नीतियों में सबसे अधिक व्यवस्थित अभिव्यक्ति भारत-US के बीच क्वॉड में हो रहे सहयोग (जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ) में देखने को मिलती है.[10] इस मिनीलैटरल यानी लघुपक्षीय व्यवस्था को नए सिरे से आरंभ करने के कारण ही हिंद-प्रशांत को लेकर भारतीय तथा US की ओर से किए जा रहे सहयोग के धागे दोबारा जुड़े थे. इस लघुपक्षीय व्यवस्था को दोबारा जीवित करने का उद्देश्य क्षेत्रीय जनता को सामग्री पहुंचाने के लिए सहयोग करना था. इस घटनाक्रम के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता. इसका महत्व क्वॉड की ओर से मिलने वाले परिणामों के विस्तार और उसमें वृद्धि की अपार संभावनाओं के बावजूद बना हुआ है. US तथा भारत अब इस क्षेत्र में एक-दूसरे से जुदा नहीं हैं. ये दोनों देश अब ASEAN-अगुवाई वाले क्षेत्रीय संस्थानों के भीतर भी काम कर रहे हैं. इसके लिए इन दोनों ही देशों के पास एक पहले से ही शर्तिया तौर पर एक गठबंधन साझेदार-क्वॉड-मौजूद है. इसका उपयोग करके वे आपस में सहयोग कर रहे हैं.
चीन पर कन्वर्जन्स
कन्वर्जन्स का एक और अहम क्षेत्र चीन है. डोकलाम पठार क्षेत्र में 2017 में हुए गतिरोध के बाद से ही भारत-चीन संबंधो में काफ़ी गिरावट आई है . भारत और चीन दोनों के ही G20 तथा BRICS समूह में शामिल होने के बावजूद दोनों देशों के बीच भूमि विवादों ने द्विपक्षीय संबंधों को लगभग पर विराम लगा रखा है. इसी बीच US ने चीन को तेजी से उभरते हुए ख़तरे के रूप में पहचान लिया है. हालिया US एन्यूअल थ्रेट असेसमेंट् यानी वार्षिक ख़तरा आकलन में यूक्रेन तथा ग़ाजा युद्ध के बीच चीन को ही सबसे बड़ा ख़तरा बताया गया है.[11] उदाहरण के लिए US की हिंद-प्रशांत कूटनीति में की गई इस स्वीकारोक्ति में कन्वर्जन्स दिखता है कि चीन की जबरदस्ती और आक्रामकता लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े विवाद में झलकती है. इसकी वजह से ही भारत तथा यूनाइटेड स्टेट्स के बीच सहयोग को पुख़्ता करने की दिशा में काम हुआ है, जिसमें जानकारी को साझा करने और इंटेलिजेंस को आपस में बांटने का समावेश है.
द इंडो-पसिफ़िक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क यानी हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा
भारत तथा US एक नई क्षेत्रीय आर्थिक पहल के माध्यम से भी जुड़े हैं. उदाहरण के लिए भारत बाइडेन प्रशासन के IPEF में तीन स्तंभों (सप्लाइ चेन यानी आपूर्ति श्रृंखला, क्लीन इकोनॉमी यानी स्वच्छ अर्थव्यवस्था एवं फेयर इकोनॉमी यानी निष्पक्ष अर्थव्यवस्था) के साथ जुड़ गया है. वह उसके चौथे और अंतिम स्तंभ यानी व्यापार के साथ बतौर निरीक्षक काम कर रहा है.[12] भारत तथा US दोनों ही रिजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप अथवा कॉम्प्रिहेंसिव प्रोग्रेसिव ट्रांस-पसिफ़िक पार्टनरशिप के साथ जुड़े हुए नहीं हैं. ऐसे में IPEF ही गठबंधन के तहत वाणिज्यिक क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार तथा निवेश संबंधों को बढ़ावा देने वाला का एक क्षेत्र बना हुआ है.[13]
निष्कर्ष
पिछले एक दशक से अब भारत तथा यूनाइटेड स्टेट्स (US) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पहले से ज़्यादा समान दृष्टिकोण अपना रहे हैं. दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंध मुख़्य सिद्धांतों पर आधारित होकर एक-दूसरे के करीब आए हैं. इसमें क्वॉड को लेकर कूटनीति और नीति, चीन, वाणिज्यिक पहलों का समावेश है. प्रधानमंत्री मोदी की ओर से घोषित भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी में ‘हिंद-प्रशांत’ को लेकर भारत के विचार को स्पष्ट कर दिया गया था. इसी नीति में इंडो-पसिफ़िक ओशन इनिशिएटिव को लेकर समुद्रीय धारणा की बात की गई थी. उसके बाद के वर्षों में ही भारत-US के बीच संबंधों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियमित रूप से मजबूती देखी गई है. यह मज़बूती दोनों देशों के व्यक्तिगत संबंधों में, एक-दूसरे के साझेदार के रूप में तथा अपने नज़दीकी सहयोगी या फिर क्वॉड के साझेदारों के साथ देखी जा सकती है.
भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी में ‘हिंद-प्रशांत’ को लेकर भारत के विचार को स्पष्ट कर दिया गया था. इसी नीति में इंडो-पसिफ़िक ओशन इनिशिएटिव को लेकर समुद्रीय धारणा की बात की गई थी. उसके बाद के वर्षों में ही भारत-US के बीच संबंधों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियमित रूप से मजबूती देखी गई है.
निकट भविष्य में जहां तक देखा जा सकता है वहां तक तो हिंद-प्रशांत ही भारत-US द्विपक्षीय संबंधों का एक मजबूत एवं टिकाऊ पहलू दिखाई देता है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय साझेदारी विकसित हुई है. यह अब उस दौर से आगे निकल चुकी है, जब इस क्षेत्र को लेकर होने वाली किसी भी चर्चा के दौरान US के किसी भी कूटनीतिक दस्तावेज़ में भारत का एक बार भी उल्लेख नहीं किया जाता था. उस दौर में भारत भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय संस्थानों तथा पहलों के साथ बेहद कम सक्रियता के साथ काम करता था. आज दोनों ही देश इस क्षेत्र को लेकर अपनी कूटनीति तथा नीति संबंधी घोषणाओं में एक-दूसरे का उल्लेख करते हैं. अब उन्होंने इस क्षेत्र के लिए एक नई केंद्रित पहल जैसे, क्वॉड, को भी विकसित कर लिया है.
पिछले एक दशक में भारत तथा US के बीच एक व्यापक वैश्विक साझेदारी विकसित हुई है. इस साझेदारी में केवल हिंद-प्रशांत को ही अंतिम सत्य मान लेना या फिर इस साझेदारी को हिंद-प्रशांत के रूप में कुल जमा बता देना नाइंसाफी होगी. भारत-US के बीच संबंधों में अनेक व्यवहार में लाने योग्य एवं क्षेत्रीय मामले हैं, जिन्हें साथ लेकर आगे बढ़ा जा सकता है. निश्चित रूप से भारत-US के बीच बढ़ते हुए संबंधों में भारत-प्रशांत एक अहम और प्रमुख हिस्सा है.
Endnotes
[1] Dr. Rajkumar Ranjan Singh, Minister of State for External Affairs of India, (speech, March 24, 2022), Ministry of External Affairs, Government of India, https://www.mea.gov.in/rajya-sabha.htm?dtl/35027/QUESTION+NO2459+TARGETS+OF+ACT+EAST+POLICY
[2] Ministry of External Affairs, Government of India, https://pib.gov.in/newsite/printrelease.aspx?relid=133723
[3] The White House, Office of the Press Secretary, “U.S.-India Joint Strategic Vision for the Asia-Pacific and Indian Ocean Region,” https://obamawhitehouse.archives.gov/the-press-office/2015/01/25/us-india-joint-strategic-vision-asia-pacific-and-indian-ocean-region
[4] Amb (Retd) Ashok Sajjanhar, (lecture, Kasaragod, February 11, 2015), Ministry of External Affairs, Government of India, https://www.mea.gov.in/distinguished-lectures-detail.htm?213
[5] Prime Minister Narendra Modi, (keynote address, Singapore, June 1, 2018), Ministry of External Affairs, Government of India, https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/29943/Prime+Ministers+Keynote+Address+at+Shangri+La+Dialogue+June+01+2018
[6] “A Free and Open Indo-Pacific advancing a Shared Vision,” U.S. Department of State, November 4, 2019, https://www.state.gov/wp-content/uploads/2019/11/Free-and-Open-Indo-Pacific-4Nov2019.pdf
[7] “U.S. Strategic Framework for the Indo-Pacific,” Trump White House, https://trumpwhitehouse.archives.gov/wp-content/uploads/2021/01/IPS-Final-Declass.pdf
[8] “Indo-Pacific Strategy of the United States,” The White House, February 2022, https://www.whitehouse.gov/wp-content/uploads/2022/02/U.S.-Indo-Pacific-Strategy.pdf
[9] Premesha Saha and Abhishek Mishra, “The Indo-Pacific Oceans Initiative: Towards a Coherent Indo-Pacific Policy for India,” ORF Occasional Paper No. 292, Observer Research Foundation, December 23, 2020, https://www.orfonline.org/research/the-indo-pacific-oceans-initiative-towards-a-coherent-indo-pacific-policy-for-india; Ministry of External Affairs, Government of India, https://www.mea.gov.in/Portal/ForeignRelation/IORARC.pdf
[10] “Quad Leaders’ Joint Statement,” White House, May 20, 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2023/05/20/quad-leaders-joint-statement/
[11] “Annual Threat Assessment of the U.S. Intelligence Community,” Office of the Director of National Intelligence, February 5, 2024, https://www.dni.gov/files/ODNI/documents/assessments/ATA-2024-Unclassified-Report.pdf
[12] “FACT SHEET: In Asia, President Biden and a Dozen Indo-Pacific Partners Launch the Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity,” White House, May 23, 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2022/05/23/fact-sheet-in-asia-president-biden-and-a-dozen-indo-pacific-partners-launch-the-indo-pacific-economic-framework-for-prosperity/
[13] “Regional Comprehensive Economic Partnership,” Congressional Research Service, October 17, 2022, https://crsreports.congress.gov/product/pdf/IF/IF11891; “CPTPP: Overview and Issues for Congress,” Congressional Research Service, June 16, 2023, https://crsreports.congress.gov/product/pdf/IF/IF12078
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.