Author : Atul Kumar

Issue BriefsPublished on Sep 27, 2024
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भारत की रक्षा कूटनीति: मोदी कार्यकाल में चीन को दिया गया रणनीतिक जवाब!

  • Atul Kumar

    चीन को लेकर अपने रणनीतिक रुख़ में भारत ने पिछले दशक में प्रभावी प्रतिरोध के तीन प्रमुख स्तंभों - क्षमता, साख और संचार को सफ़लतापूर्वक दिखाया है. उसने अपनी रक्षा कूटनीति को दक्षिण एशिया तथा दक्षिणपूर्व एशिया में अपने प्रमुख सहयोगियों के साथ पुख़्ता किया है. इसी प्रकार व्यापक भारत-प्रशांत क्षेत्र में उसने नियमित संयुक्त सैन्य अभ्यासों, सैन्य अधिकारी एक्सचेंज प्रोग्राम्स, निरंतर उच्च स्तरीय राजनायिक यात्रा और द्विपक्षीय रक्षा समझौतों को पूर्ण कर लिया है. कुल-मिलाकर इन प्रयासों की वजह से ईस्टर्न हेमिस्फियर यानी पूर्वी गोलार्द्ध की एक अहम शक्ति के रूप में उसने अपनी साख को और मजबूती प्रदान की है

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अतुल कुमार, भारत की रक्षा कूटनीति: मोदी कार्यकाल में चीन को दिया गया रणनीतिक जवाब,” ORF इश्यू ब्रीफ नं. 733, सितंबर 2024, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

17 सितंबर 2014 को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत की अपनी पहली यात्रा के लिए रवाना हुए थे. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल का दौर था. उनके यात्रा पर रवाना होने से महज़ एक सप्ताह पहले ही चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के 200 जवानों ने पूर्वी लद्दाख के चुमार सेक्टर में भारतीय इलाके में घुसपैठ की थी.[1] PLA के ये सैनिक अपने साथ क्रेन और बुलडोजर लेकर आए थे, ताकि भारतीय इलाके में वे सड़क निर्माण करने के साथ-साथ सर्विलांस कैमरे स्थापित कर सकें. जल्द ही इसे लेकर उत्पन्न सैन्य गतिरोध बढ़ गया, जिसकी वजह से शी की भारत की आधिकारिक यात्रा पर सवालिया निशान लग गया था. चीन के आक्रामक प्रतिकार के साथ मोदी की यह पहली भिड़ंत थीं.[2]

 पिछले एक दशक के दौरान भारत और चीन के संबंधों को अनेक झटके लगे हैं. ऐसे में भारत को अपनी सैन्य कूटनीति में इस तरह संशोधन करना पड़ा है कि वह अपने प्रतिरोध को पुख़्ता कर सकें. 

पिछले एक दशक के दौरान भारत और चीन के संबंधों को अनेक झटके लगे हैं. ऐसे में भारत को अपनी सैन्य कूटनीति में इस तरह संशोधन करना पड़ा है कि वह अपने प्रतिरोध को पुख़्ता कर सकें. पहले यह संशोधन सावधानीपूर्वक किया गया था, इस रवैये का उद्देश्य विवाद का निपटारा होने तक अस्थायी समझौता हासिल करना ही था. परंतु दो प्रमुख द्विपक्षीय केस - डोकलाम गतिरोध तथा गलवान घटना ने चीन को लेकर सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने पर भारत को मजबूर कर दिया. चीन के ख़िलाफ़ प्रभावी प्रतिकार के लिए क्षमताओं का प्रदर्शन, साख और संचार के क्षेत्र पहलूओं में निपुणता होनी आवश्यक है. दो क्षेत्रीय मामलों को आधार बनाकर यह ब्रीफ पिछले एक दशक में भारत को इन तीनों क्षेत्रों में मिली सफ़लता की चर्चा करती है. 

 

मालाबार नौसैनिक अभ्यास और रक्षा कूटनीति

 

चुमार घटना के बाद 2014 में चीनी नौसेना की छोटी नावों के बेड़े का हिस्सा बनाकर दो चीनी अटैक सबमरीन, जिसमें एक परमाणु उर्जित थी, को हिंद महासागर में भेजा गया था.[3] ये सबमरीन श्रीलंका के एक बंदरगाह पर तेल भरने और अन्य आवश्यक सामग्री लेने के लिए लंगर डालकर बैठी तो इससे  प्रायद्वीप की सुरक्षा पर खतरा मंडराने लगा था. मोदी सरकार ने चीनी सेना की ओर से इस तरह के हथकंडे अपनाये जाने का जवाब देने के लिए तत्काल क्षेत्रीय रणनीति विकसित करने की आवश्यकता को पहचान लिया. इसके जवाब में दक्षिण एशिया तथा दक्षिणपूर्व एशिया के साथ-साथ भारत-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख हितधारकों के साथ रक्षा कूटनीति को मजबूत करना शामिल था.

 

इसी संदर्भ में मालाबार नौसेना अभ्यास एक प्रमुख रणनीति बनकर उभरी है. 2015 में भारत तथा US ने इन अभ्यासों में जापान को भी एक स्थायी हिस्सेदार के रूप में शामिल करने को लेकर सहमति बनाई. इस फ़ैसले की वजह से पूर्वी गोलार्द्ध की इन तीन प्रमुख नौसेनाओं को अपनी नौसैनिक क्षमताओं को मजबूत करने का एक सुनहरा अवसर मिल गया. इन तीनों ही देशों की नौसेनाओं ने चीन से कभी न कभी चुनौतियों का सामना किया ही है. 2020 में इस समूह का विस्तार करते हुए इसमें ऑस्ट्रेलिया को चौथे सदस्य के रूप में शामिल किया गया. मालाबार अभ्यास की वजह से इसमें शामिल देशों को एक साझा मंच मिल गया है, जहां वे अपने सिद्धांतों का आदान-प्रदान करते हुए प्रशिक्षण कौशल को परिष्कृत करते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए ऑपरेशनल समन्वय बढ़ा सकते हैं.

 

इस अभ्यास के दायरे को बढ़ाकर इसमें कैरियर-स्ट्राइक ग्रुप ऑपरेशंस, समुद्री गश्त तथा टोही ऑपरेशंस, सरफेस एंड एंटी-सबमरीन वॉरफेयर, हेलीकॉप्टर क्रॉस-डेक ऑपरेशंस तथा अंडरवे रिप्लेनिशमेंट का समावेश किया गया है.[4] पिछले एक दशक में इन अभ्यासों का विभिन्न क्षेत्रों तथा देशों में आयोजन किया गया है. इसमें बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, फिलीपींस सागर, ईस्ट चाइना सी, गुआम, जापान तथा साउथ पसिफ़िक ओशन का समावेश है. आज मालाबार अभ्यास एशिया में नौसैनिक कूटनीतिक का सबसे अहम साधन बन गया है.

 

जैसा कि उम्मीद थी चीनी सरकार ने इस इलाके में लोकतांत्रिक देशों के बीच बढ़ रहे नौसैनिक सहयोग की आलोचना की है. US सेनाओं के साथ भारत-प्रशांत फ्रेमवर्क यानी ढांचे के तहत भारत के सहयोग तथा समुद्री क्षेत्र को लेकर जागरुकता बढ़ाने पर दिए जा रहे बल की निंदा भी की गई है.[5] चीनी जहाजों की ओर से पाकिस्तान ले जाए जा रहे दोहरे-उपयोग की वस्तुओं की भारत की ओर से की जा रही जांच को लेकर भी चीन क्षुब्ध है. भारत बाद में ऐसी वस्तुओं को ज़ब्त कर लेता है. [a]

 

इसके अलावा मालाबार अभ्यास के कारण भारत को US तथा जापान से अत्याधुनिक सेंसर्स और हथियार प्रणालियां ख़रीदना आसान हो गया है.[6] हथियारों की यह बिक्री और एक-दूसरे की सैन्य क्षमताओं के साथ मेल-जोल बढ़ने से आने वाली समझ के कारण वक़्त आने पर एक-दूसरे का सहयोग करना आसान हो जाएगा. इसी वजह से एशिया में क्षेत्रीय एकाधिकार या एशियाई नेतृत्व हासिल करने के चीनी इरादों को झटका लगता है. अत: मालाबार अभ्यास को चीन का प्रतिकार करने के लिए सटीक रक्षा कूटनीति की पहल माना जा सकता है. 

 

दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ रक्षा कूटनीति

 

भारत के वाणिज्यिक तथा रणनीतिक हितों के साथ नौवहन की आजादी इस बात पर निर्भर करती है कि साउथ चाइना सी तथा वेस्टर्न पसिफ़िक में स्थिरता बनी रहे. लेकिन चीन की बल का उपयोग करने की नीति और विस्तारवादी रवैये के कारण इस क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था के साथ-साथ भारत के हितों पर भी ख़तरा मंडराता रहता है. इसके परिणामस्वरूप भारतीय रक्षा कूटनीति ने दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों जैसे सिंगापुर, विएतनाम और फिलीपींस के साथ साझेदारी को गहरा करते हुए अपने संबंधों को मजबूत किया है. इस वजह से उन देशों को भी चीनी प्रभाव के ख़िलाफ़ अपने रणनीतिक विकल्पों में विविधता लाने का अवसर मिला है.

 

नवंबर 2015 में सिंगापुर ने एक रक्षा सहयोग समझौते पर अंतिम फैसला लेने के बाद जून 2016 में रक्षा मंत्रियों के बीच पहला सम्मेलन/संवाद हुआ. इसके बाद नवंबर 2017 में भारत तथा सिंगापुर के बीच एक नौसेना सहयोग समझौता हुआ, जिसका उद्देश्य समुद्री सुरक्षा में इज़ाफ़ा करने के साथ आपसी लॉजिस्टिक्स सहयोग और संयुक्त अभ्यास करना था.[7] इस समझौते की प्रमुख विशेषतओं में एक-दूसरे के इलाकों में अस्थायी तैनाती के साथ ईंधन पुर्नभरण और जहाजों को लंगर डालने के लिए सिंगापुर के बंदरगाहों तक सुसंगत पहुंच सुनिश्चित करना था. इस समझौते की वजह से भारतीय नौसेना को मलक्का जलडमरूमध्य के पूर्व तक ऑपरेशनल पहुंच मिल गई. इसके साथ ही उसे अनेक दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने सैन्य संबंधों को सीधे मजबूती प्रदान करने का अवसर भी दिया. इस विस्तृत साझेदारी में सबमरीन रेस्क्यू सपोर्ट, मानवीय सहायता और राहत के साथ साइबर सुरक्षा पर अहम समझौते भी शामिल हैं.[8]

 मोदी की अगुवाई वाले भारत के साथ विएतनाम एवं फिलीपींस ने भी अपने रक्षा सहयोग को तेज़ कर दिया है. भारत और विएतनाम ने अपने सैन्य संबंधों को 2016 में समग्र रणनीतिक साझेदारी के रूप में उन्नत करते हुए 2018 में अपने पहले रक्षा सम्मेलन/संवाद का आयोजन किया. 

इसके अलावा मोदी की अगुवाई वाले भारत के साथ विएतनाम एवं फिलीपींस ने भी अपने रक्षा सहयोग को तेज़ कर दिया है. भारत और विएतनाम ने अपने सैन्य संबंधों को 2016 में समग्र रणनीतिक साझेदारी के रूप में उन्नत करते हुए 2018 में अपने पहले रक्षा सम्मेलन/संवाद का आयोजन किया. शांति, संपन्नता तथा जनता को लेकर उनका संयुक्त दृष्टिकोण 2020 में स्थापित किया गया. इसके बाद इसी तरह का एक समझौता 2022 में भी किया गया. इस समझौते में आपसी लॉजिस्टिक्स सपोर्ट को सुगम बनाया गया. किसी भी देश के साथ विएतनाम ने पहली बार ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.[9]

 

हालिया वर्षों में चीन ने विएतनाम के विशेष आर्थिक क्षेत्र में लगातार घुसपैठ करते हुए उसके तेल एवं गैस संबंधी ऑपरेशंस को भी बाधित किया है. इस वजह से दोनों देशों के बीच विवाद बढ़े हैं.[10] उदाहरण के लिए 2014 से 2022 के बीच चीनी सेना ने विएतनाम की 100 के आसपास नावों को नष्ट किया है. चीन के धमकाने वाले रवैये की वजह से विएतनाम की भारत के साथ नज़दीकी बढ़ी है और उसने भारत से राजनीतिक एवं सैन्य सहायता मांगी है. बीजिंग की चेतावनियों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन के ख़िलाफ़ भारत सरकार लगातार इन दक्षिणपूर्व एशियाई देशों का समर्थन करती है.[11] निश्चित रूप से 2020 के बाद से ही साउथ चाइना सी में चीन की दादागिरी को लेकर भारत की ओर से कठोर शब्दों का उपयोग होने लगा है. इसके अलावा भारत ने इस क्षेत्र में नौसेना की तैनाती भी की है.

 

इसके अलावा भारत ने विएतनाम को सामग्रिक सहायता भी प्रदान की है. उसने विएतनाम को चेन्नैई स्थित लार्सन एंड टुब्रो शिपयार्ड से 12 गश्ती जहाज ख़रीदने के लिए 100 मिलियन अमेरिकी डालर की क्रेडिट लाइन भी मुहैया करवाई है.[12] इतना ही नहीं भारत ने जून 2023 में विएतनामी नौसेना को INS किरपाण भी सौंपा है. यह एक मिसाइल युक्त लड़ाकू जलपोत है.[13] इसके अलावा विएतनाम को ब्रम्होस मिसाइल की संभावित बिक्री के बारे में भी विचार किया जा रहा है.[14] दक्षिणपूर्व एशिया में भारत की रक्षा कूटनीति में विएतनाम आधारशिला बनकर उभरा है. इसके अलावा वह भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का मजबूत स्तंभ है और भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को सहारा भी देता है. 

 

फिलीपींस भी अपने स्तर पर भारतीय सैन्य बलों के लिए 2016 से एक अहम साझेदार बनकर उभरा है. इसके अलावा वह रक्षा सामग्री के निर्यात का भी एक गंतव्य बना हुआ है. ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में भारत- फिलीपींस के संबंध नहीं के बराबर ही थे. फिलीपींस की पिछली सरकारों ने US तथा चीन के साथ संबंधों को संतुलित रखने पर ही प्रमुखता से ध्यान दिया था. लेकिन पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते के US के विरोध तथा चीन संबंधी चिंताओं के कारण उन्होंने इस क्षेत्र में रक्षा साझेदारी हासिल करने को लेकर प्रोत्साहित किया. इसी वजह से फिलीपींस के सुरक्षा ढांचे में भारतीय रक्षा कूटनीति का स्थान अहम होता चला गया.

 

2017 में मनीला में हुए ASEAN तथा ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलनों में मोदी की मौजूदगी तथा बाद में 2018 में दुतेर्ते की नई दिल्ली यात्रा ने गहरे रक्षा सहयोग की नींव रखी थी.[15] पहले दुतेर्ते तथा बाद में उनकी जगह लेने वाले फ़र्डिनांड “बॉन्गबॉन्ग” मार्कोस जूनियर की अगुवाई में द्विपक्षीय संबंध विकसित ही हुए है. उदाहरण के तौर पर भारतीय नौसैनिक युद्धपोत अब नियमित रूप से फिलीपींस के बंदरगाहों पर जाते रहते हैं और दोनों देशों की नौसेनाएं संयुक्त अभ्यास में भी शामिल होती है.[16]

 

इसके अलावा भारत सरकार ने पहली बार फिलीपींस मरीन कोर को ब्रम्होस सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल्स की तीनों बैटरियां बेचने को लेकर भी सहमति जताई है.[17] मार्च 2023 में हुई चौथी फिलीपींस-भारत संयुक्त रक्षा समन्वय समिति की बैठक में भारत ने मनीला में एक डिफेंस अताशे को तैनात करने को भी स्वीकृति प्रदान की. यह अताशे रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नज़र रखेगा.[18] इसके अलावा प्रशिक्षण, ख़ुफ़िया जानकारी साझा करना, साइबर सुरक्षा, समुद्री क्षेत्र जागरुकता और व्हाइट शिपिंग इंर्फोमेशन एक्सचेंज भी शुरू हो गए है. यह द्विपक्षीय साझेदारी अब एक निर्धारित क्षेत्रीय साझेदारी के रूप में उभरती दिखाई दे रही है, जो चीन को लेकर दोनों देशों की चिंताओं का ध्यान रखती है. 

 

चीनी धारणा और भारतीय सैन्य कूटनीति

चीनी रक्षा बातचीत में अब इस बात का अक्सर उल्लेख होता है कि मोदी के सत्ता संभालने के बाद भारत की विदेश रणनीति में एक बदलाव आया है. यह बदलाव विशेष रूप से भारत के जापान, US, विएतनाम, फिलीपींस तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ सैन्य संबंधों में हुई प्रगति में दिखाई देता है.[19] साउथ चाइना सी में भारत के बढ़ते हित और सीमा पर होने वाली चीनी कार्रवाईयों का मुकाबला करने के लिए इस इलाके से जुड़े विवादों का उपयोग करने की कोशिशें अब चर्चा में रहती हैं.[20] चीन का मानना है कि गलवान घटना के बाद साउथ चाइना सी के इलाके में भारत की गतिविधियां बढ़ी हैं, जिसकी वजह से भारत से सटी चीनी सीमा पर संसाधनों में चीनी निवेश सीमित हुआ है.

 

इसके अलावा चीन का मानना है कि हिंद महासागर को भारत अपने रणनीतिक क्षेत्र के रूप में देखता है. इसकी वजह से प्रमुख समुद्री चैनल्स को नियंत्रित करने वाली एक भारत केंद्रीत क्षेत्रीय व्यवस्था उभरती है.[21] वैश्विक दक्षिण में भी विकास मॉडल को लेकर भारत और चीन में प्रतिस्पर्धा दिखाई दे रही है. इसी प्रकार भारत-प्रशांत में मजबूत सैन्य कूटनीति के माध्यम से भी भारत सत्ता के संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका अदा करने वाली ताकत के रूप में उभर रहा है. फिलीपींस को ब्रम्होस मिसाइल की बिक्री पूर्ण होने के बाद चीन को आशंका है कि अब भारत दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के लिए हथियारों की आपूर्ति का प्रमुख स्रोत बन जाएगा.[22]

 

सबक और विचारधारा

 

ऐतिहासिक रूप भारत, एशिया में चीन की दादागिरी और विस्तारवादी कार्रवाईयों पर टिप्पणी करने से बचता रहा है. लेकिन हाल के वर्षों में इसमें बदलाव देखा गया है. भारत अब ऐसी नीतियों का दृढ़ता के साथ विरोध करने लगा है. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को लेकर भारत का ख़ुला विरोध, साउथ चाइना सी में चीन के ‘नाइन-डैश लाइन’ के ख़िलाफ़ समुद्रिक कानून के तहत आए फ़ैसले पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2016 में बुलाए गए सम्मेलन को समर्थन, नियम आधारित व्यवस्था पर बल देने के साथ ख़ुले और स्वतंत्र भारत-प्रशांत की वकालत से चीन के ख़िलाफ़ लोकतांत्रिक आवाज को बल मिला है. इसके अतिरिक्त अब भारत के रक्षा प्रक्षेप पथ को आने वाले दशक में और भी ऊंचाई हासिल होगी. भारतीय हथियारों के मंचों को उनके प्रदर्शन के आधार पर पहचाना जाने लगा है. इसके विपरीत चीनी रक्षा सामग्री की घटिया गुणवत्ता की ज़्यादा चर्चा हो रही है. ऐसे में चीन के परिसर में आने वाले देशों के लिए भारत का एक प्रमुख रक्षा सामग्री आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरना तय है. ऐसा होने पर एक दीर्घावधि की रणनीतिक साझेदारी विकसित होगी जो इस इलाके में चीन को कूटनीतिक जवाब देने का काम करेगी.

 भारत के बढ़ते प्रालेख की वजह से इस इलाके में संभावित चीनी एकाधिकार को बराबरी की टक्कर मिल रही है. इसका कारण भारत का विशाल आकार, जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, भारत की सेना और कूटनीतिक क्षमताएं हैं. निश्चित रूप से भारत की रक्षा कूटनीति में और तेज़ी आने की संभावना है. 

अंतत: संयुक्त सैन्य अभ्यासों, सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों में अफसरों के आदान-प्रदान, नियमित उच्चस्तरीय यात्राओं के साथ-साथ अनेक द्विपक्षीय रक्षा समझौतों पर अंतिम फैसला होने की वजह से पूर्वी गोलार्द्ध में एक शक्ति के रूप में भारत की छवि को नए सिरे से आकार के साथ मजबूती मिली है. भारत के बढ़ते प्रालेख की वजह से इस इलाके में संभावित चीनी एकाधिकार को बराबरी की टक्कर मिल रही है. इसका कारण भारत का विशाल आकार, जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, भारत की सेना और कूटनीतिक क्षमताएं हैं. निश्चित रूप से भारत की रक्षा कूटनीति में और तेज़ी आने की संभावना है. इस वजह से इस इलाके में चीन की रणनीतिक स्थिति को निश्चित रूप से चुनौती मिलेगी.

 

Endnotes

[a] India’s membership in the Wassenaar Arrangement, where China’s bid for a seat has been repeatedly rejected, affords it the legal authority to regulate and confiscate dual-use items with potential applications in missiles and nuclear technology.

[1] Shishir Gupta, “China, India in Border Skirmish Ahead of Xi Visit,” Hindustan Times, September 16, 2014, https://www.hindustantimes.com/india/china-india-in-border-skirmish-ahead-of-xi-visit/story-es46bqLyFXY5qgosyMnQAK.html; Rishi Iyengar, “A Border Standoff and Free Tibet Protests Mar Xi Jinping’s Arrival in Delhi,” Time, September 18, 2014, https://time.com/3396041/china-india-xi-jinping-visit-free-tibet-protests-border-confrontation/

[2] Henry Kissinger, On China (New York: Penguin Books, 2011), pp. 217.

[3] Sachin Parashar, “Sri Lanka Snubs India, Opens Port to Chinese Submarine Again,” Times of India, November 2, 2014, https://timesofindia.indiatimes. com/india/sri-lanka-snubs-india-opens-port-to-chinese-submarine-again/ articleshow/45008757.cms

[4] Megan Eckstein, “US, India and Japan participating in annual Malabar Exercise in Bay of Bengal,” USNI News, October 16, 2015, https://news.usni.org/2015/10/16/u-s-india-and-japan-participating-in-annual-malabar-exercise-in-bay-of-bengal

[5] Ding Xinting, “India’s Three Axes for Using Sea to Control China (印度“以海制华” 的“三板斧),” Observer News Network, March 27, 2024, http://comment.cfisnet. com/2024/0327/1329746.html

[6] Yusuke Takeuchi, “Japan Eyes Export of Stealth Naval Ship Antennas to India,” Nikkei, March 10, 2024, https://asia.nikkei.com/Business/Aerospace-Defense- Industries/Japan-eyes-export-of-stealth-naval-ship-antennas-to-India

[7] Rajat Pandit, “Eye on China: India and Singapore ink naval pact,” Times of India, November 30, 2017, https://timesofindia.indiatimes.com/india/eye-on-china-india-and-singapore-ink-naval-pact/articleshow/61852056.cms

[8]  Rajat Pandit, “Eye on China: India and Singapore Ink Naval Pact”

[9] Prime Minister’s Office, India, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage. aspx?PRID=1682468; Ministry of Defence, Government of India, https://www.pib. gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1831981

[10] Govi Snell, “Tensions High as Chinese vessels Shadow Vietnam’s Oil, Gas Operations,” VOA News, June 17, 2023, https://www.voanews.com/a/tensions-high-as-chinese-vessels-shadow-vietnam-s-oil-and-gas-operations-/7141273.html

[11] Anurag Srivastava (@ANI), “We Firmly Stand for the Freedom of Navigation and Overflight”, Twitter Post, July 16, 2020, https://twitter.com/ANI/ status/1283753534815518726

[12]  Nguyen Tien, “One More High Speed Patrol Vessel Built with Indian Assistance Launched,” VN Express International, April 12, 2021, https://e.vnexpress.net/news/ news/one-more-high-speed-patrol-vessel-built-with-indian-assistance-launched-4262029.html

[13]  “India Gifts Indigenously Built Missile Corvette ÍNS Kirpan’ to Vietnam,” ANI News, June 19, 2023, https://www.aninews.in/news/world/asia/india-gifts-indigenously-built-missile-corvette-ins-kirpan-to-vietnam20230619155752/

[14] Anuvesh Rath, “Exclusive: India likely to sell Brahmos missiles to Vietnam in deal ranging up to $625 million,” Zee Business, June 9, 2023, https://www.zeebiz.com/ india/news-exclusive-india-likely-to-sell-brahmos-missiles-to-vietnam-in-deal-ranging-up-to-625-million-239380

[15]  Nguyen Tien, “One more high-speed patrol vessel built with Indian assistance launched”

[16]  “India and Philippines conduct naval drills in South China Sea,” NDTV, August 24, 2021, https://www.ndtv.com/india-news/india-and-philippines-conduct-naval-drills-in-south-china-sea-2517042; Tim Kelly, “US, Japan, India and Philippines challenge Beijing with naval drills in the South China Sea,” Reuters, May 9, 2019, https://www.reuters.com/article/us-southchinasea-usa-japan-india-idUSKCN1SF0LS/

[17] Priam Nepomuceno, “DND inks P18.9-B cruise missile deal with Indian firm,” Philippine News Agency, January 28, 2022, https://www.pna.gov.ph/articles/1166596

[18]  Kaycee Valmonte, “Philippines, India discuss possible deployment of Indian defense attaché,” Philstar Global, April 4, 2023, https://www.philstar.com/ headlines/2023/04/04/2256878/philippines-india-discuss-possible-deployment-indian-defense-attach

[19] Liu Zongyi, “India’s Indo-Pacific Strategy (印度的“印太战略”),” Observer News Network, February 29, 2024, http://comment.cfisnet.com/2024/0229/1329580.html

[20] Peng Nian, “India is increasingly becoming a new disruptor in the South China Sea (印度日益成为南海新搅局者),” World Knowledge Journal, August 30, 2023, http:// comment.cfisnet.com/2023/0830/1328526.html

[21]  Peng Nian, “India is increasingly becoming a new disruptor in the South China Sea” (印度日益成为南海新搅局者),” World Knowledge Journal, August 30, 2023, http:// comment.cfisnet.com/2023/0830/1328526.html

[22] Peng, “India is increasingly becoming a new disruptor in the South China Sea” 

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