सितंबर में देश की कमान संभालने के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके इसी हफ्ते भारत आए. दिसानायके को पहले राष्ट्रपति चुनाव में जीत मिली, फिर उनकी पार्टी नैशनल पीपल्स पावर (NPP) ने 225 सदस्यों वाले संसदीय चुनाव में ऐतिहासिक विजय हासिल की और संसद पर उनका नियंत्रण हो गया.
अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आकर दिसानायके ने संदेश दिया कि वह आपसी हितों के आधार पर रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं.
दिसानायके की जीत के 15 दिनों के अंदर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर कोलंबो की यात्रा पर गए थे. राजनीतिक बदलाव के बाद श्रीलंका की यात्रा करने वाले वह पहले विदेश मंत्री बने. उन्होंने दिसानायके सरकार के साथ बातचीत में भारत-श्रीलंका के रिश्तों को बेहतर बनाए रखने की अपनी ख्वाहिश का इजहार किया.
साझा हित
दिसानायके ने भी अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनकर यह संदेश दिया कि श्रीलंका, भारत के साथ मजबूत साझेदारी चाहता है. भारत विरोधी जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) पार्टी से जुड़े होने के कारण दिसानायके को लेकर कुछ आशंकाएं थीं, लेकिन उन्होंने उसे दूर करने का संकेत दिया है. अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आकर दिसानायके ने संदेश दिया कि वह आपसी हितों के आधार पर रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं.
यात्रा में उन्होंने श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान मदद और लोन रिस्ट्रक्चरिंग में भारत की उदारता की सराहना की. उन्होंने यह बात भी दोहराई कि श्रीलंका की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किसी भी तरह से नहीं होने दिया जाएगा. उन्होंने आशा जताई कि भारत के साथ आने वाले वक्त में सहयोग निश्चय ही और बढ़ेगा.
भारत ने भी श्रीलंका के साथ टिकाऊ साझेदारी की अपनी प्रतिबद्धता जताई. यह भी कहा कि इसमें पड़ोसी मुल्क की ख्वाहिशों का ख्याल रखा जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साझा बयान में इसका संकेत भी दिया. उन्होंने कहा कि श्रीलंका में भारत की जो द्विपक्षीय परियोजनाएं हैं, उनमें हमेशा उसकी विकास की प्राथमिकताओं का ख्याल रखा गया है. दोनों देश हाउसिंग, अक्षय ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, कृषि, डेयरी, फिशरीज और डिजिटल आइडेंटिटी प्रॉजेक्ट में मिलकर काम करेंगे. श्रीलंका के विकास के लिहाज से डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की अहमियत बढ़ती जा रही है और भारत इसमें उसकी मदद कर सकता है. यह मदद आधार लिंक्ड आइडेंटिटी और UPI पेमेंट्स इंटरफेस की बुनियाद पर की जा सकती है.
रक्षा सहयोग
दिलचस्प बात यह है कि सुरक्षा के क्षेत्र में भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग बढ़ने की आशा है क्योंकि दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग पर द्विपक्षीय समझौते को जल्द पूरा करने पर सहमति बनी है. संयुक्त अभ्यास, जॉइंट मैरीटाइम सर्विलांस और रक्षा संवाद जैसी पहल इसमें शामिल होंगी. असल में, हिंद महासागर में चीन के बढ़ते दखल की वजह से श्रीलंका के साथ भारत के मजबूत रिश्ते काफी अहमियत रखते हैं. दिसानायके ने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) को मुक्त, खुला, सुरक्षित बनाए रखने की बात कही, जिसमें भारत को लेकर संवेदनशीलता का ख्याल रखा गया.
श्रीलंका की राजनीतिक स्थिरता और नई सरकार की नीतियों को देखते हुए लगता है कि भारत के साथ उसके रिश्ते और मजबूत होंगे, लेकिन कई ऐसे मुद्दे भी हैं, जिन्हें संजीदगी से लेना होगा. इनमें से एक श्रीलंकाई तमिलों का मुद्दा भी है. तमिल वहां अल्पसंख्यक हैं. प्रधानमंत्री ने यह मामला बड़ी ही संवेदनशीलता से उठाया. उन्होंने कहा कि वह आशा करते हैं श्रीलंका अपने संविधान को पूरी तरह से लागू करेगा और वहां की सरकार सूबों के चुनाव का वादा भी पूरा करेगी.
दिसानायके की यात्रा और उसके नतीजों से भारत की कई चिंताएं दूर हुई हैं. यह बात भी एक बार फिर साबित हुई कि भारत के पड़ोसी देश उसके और चीन के बीच संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि किसी एक ओर झुकने पर उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.
संतुलन का ख्याल
दिसानायके की यात्रा और उसके नतीजों से भारत की कई चिंताएं दूर हुई हैं. यह बात भी एक बार फिर साबित हुई कि भारत के पड़ोसी देश उसके और चीन के बीच संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि किसी एक ओर झुकने पर उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.
अगर श्रीलंका की बात करें तो आर्थिक संकट के दौरान भारत ने जिस तरह से उसकी मदद की, उससे वहां के सारे राजनीतिक दलों में भारत के प्रति अच्छी भावना बनी है. यह भी जाहिर हुआ कि भारत के साथ लंबी अवधि से रिश्तों की वजह से ही ऐसा हो पाया. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि चाइना फैक्टर अब प्रासंगिक नहीं रह गया है. ऐसी खबरें आई हैं कि दिसानायके जल्द ही चीन की आधिकारिक यात्रा पर जाएंगे. लेकिन भारत का श्रीलंका के प्रति जो दोस्ताना रवैया रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि श्रीलंका की विदेश नीति में वह अहम बना रहेगा.
श्रीलंका इस बात को अच्छी तरह समझता है कि भारत की लक्ष्मण रेखाएं क्या हैं. हिंद महासागर को लेकर भी दोनों देशों को सहयोग जारी रखना चाहिए. इस क्षेत्र में चीन अपना दखल बढ़ाने की नीयत रखता है, जबकि पारंपरिक रूप से भारत यहां हमेशा ही मजबूत रहा है.
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