दुनिया में अभूतपूर्व समृद्धि लाने वाला वैश्वीकरण अब भारी तनाव में है. उसकी जगह कौन-सी नई प्रणाली लेगी, यह स्पष्ट नहीं है. लेकिन देशों ने संरक्षणवादी बाधाएं खड़ी करना शुरू कर दी हैं और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) उनके साथ कदमताल करने की नाकाम कोशिश में लंगड़ाकर चल रहा है. दूसरी तरफ, पश्चिम और चीन के बीच व्यापार और तकनीकी से सम्बंधित बाधाएं बढ़ती जा रही हैं.
फाइनेंशियल टाइम्स का कहना है कि चीन के पास हालात से निपटने के लिए अपनी योजनाएं हैं. उसके प्रयास ग्लोबल साउथ पर केंद्रित हैं और अमेरिका और पश्चिमी दबावों से अछूते हैं. यह चीन द्वारा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में किए गए भारी निवेश का परिणाम है, जिसमें एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के 140 से अधिक देश सहभागी हैं.
चीन ने इन देशों के साथ द्विपक्षीय करारनामों और क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के लिए काम किया है, जो कम टैरिफ पर व्यापार और निवेश के प्रवाह को बढ़ावा देता है. बीजिंग ने सावधानीपूर्वक एक ऐसा फ्रेमवर्क तैयार किया है, जो उसके हितों की सबसे अच्छी तरह से रक्षा करेगा. वह अपने निर्यात के डेस्टिनेशंस को भी अमेरिका और यूरोपियन यूनियन से छोटे देशों में ले जाने पर लगातार काम कर रहा है.
वर्तमान में 28 देश ऐसे हैं, जो चीन के 40 प्रतिशत निर्यात का टारगेट हैं. भले ही डब्ल्यूटीओ अप्रभावी हो जाए, चीन के पास तब भी एक प्रकार का बैकअप होगा, क्योंकि उसके किसी भी एफटीए में अमेरिका या यूरोपियन यूनियन शामिल नहीं है. चीन के एफटीए नेटवर्क का पिछले साल के उसके 3.43 ट्रिलियन डॉलर निर्यात में 1.3 ट्रिलियन डॉलर का योगदान था.
ग्लोबल साउथ की ओर जाता चीन
वर्तमान में चीन का 14 देशों और हांगकांग के साथ एफटीए है. वह 10 से अधिक और देशों के साथ भी बातचीत कर रहा है. ऐसा लगता है कि वह सोची-समझी नीति के तहत अपने व्यापार को पश्चिम से ग्लोबल साउथ की ओर ले जा रहा है.
बीआरआई प्रतिभागियों के साथ चीन का व्यापार पहले से ही अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान से अधिक है. वह गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) को भी अपना निर्यात बढ़ा रहा है, जो वर्तमान में 112 अरब डॉलर से अधिक है.
वर्तमान में चीन का 14 देशों और हांगकांग के साथ एफटीए है. वह 10 से अधिक और देशों के साथ भी बातचीत कर रहा है. ऐसा लगता है कि वह सोची-समझी नीति के तहत अपने व्यापार को पश्चिम से ग्लोबल साउथ की ओर ले जा रहा है.
चीन वर्ष 2018 में अफ्रीकी महाद्वीप मुक्त व्यापार समझौते (एएफसीएफटीए) के बाद से अफ्रीका पर भी नजर जमाए हुए है, जो बीजिंग के लिए बड़े अवसर प्रदान करता है, हालांकि चीन खुद इस संगठन का सदस्य नहीं है.
चीन ने अपनी एफटीए प्रणाली की शुरुआत 2008 में चीन-सिंगापुर एफटीए पर बातचीत के साथ की थी. इसके बाद चीन-आसियान एफटीए पर चर्चा हुई. ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के माध्यम से चीन को कमजोर करने की अमेरिकी धमकी ने बीजिंग को बड़े व्यापार समझौतों की ओर बढ़ने के लिए और उत्साहित ही किया.
इसका प्रमुख परिणाम क्षेत्रीय आर्थिक व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) था, जो एक विशाल क्षेत्रीय एफटीए था. इसका भारत ने भी समर्थन किया था, लेकिन अंतिम समय में पीछे हट गया. यह 2022 में लागू हुआ था और इसके अंतर्गत आने वाले देशों का दुनिया की जीडीपी में एक तिहाई योगदान है. संयोग से अमेरिका ने ही चीन को कमजोर करने के लिए टीपीपी को एक उच्च गुणवत्ता वाले एफटीए के रूप में तैयार किया था, लेकिन 2017 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने जो पहले काम किए थे, उनमें से एक इससे बाहर निकलना भी था.
भारत का सवाल
जहां तक भारत का सवाल है, उसकी सरकार ने अपने एफटीए की समीक्षा की बड़ी कवायद शुरू की है. कुछ पुराने समझौतों को खत्म होने दिया गया और लगभग एक दशक तक किसी नए पर हस्ताक्षर नहीं किए गए. फिर 2022 में भारत ने यूएई के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) और ऑस्ट्रेलिया के साथ आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते नामक एक अंतरिम एफटीए पर हस्ताक्षर किए.
यह उस भू-राजनीतिक परिदृश्य का ही जाहिर नतीजा है, जिसमें चीन खुद को पश्चिम से दूर कर रहा है और भारत पश्चिम से नजदीकियां बढ़ाने में जुटा है.
इनके तुरंत सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं और भारत अब यूके, ईयू, कनाडा, जीसीसी, इजराइल और अन्य कई के साथ एफटीए पर बातचीत कर रहा है. अमेरिका अब एफटीए पर भरोसा नहीं करता, हालांकि वह डब्ल्यूटीओ का सदस्य बना हुआ है. हम देख सकते हैं कि भारत की नीति चीन के ठीक उलट है और हम अमीर देशों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
यह उस भू-राजनीतिक परिदृश्य का ही जाहिर नतीजा है, जिसमें चीन खुद को पश्चिम से दूर कर रहा है और भारत पश्चिम से नजदीकियां बढ़ाने में जुटा है.
भारत की नीति चीन के उलट है और हम अमीर देशों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. यह उस भू-राजनीतिक परिदृश्य का जाहिर नतीजा है, जिसमें चीन खुद को पश्चिम से दूर कर रहा है और भारत पश्चिम से नजदीकियां बढ़ाने में जुटा है.
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