Occasional PapersPublished on Jan 09, 2024
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भारत का यूपीआई बाज़ार: अलग-अलग जीडीपी परिदृश्यों के तहत होने वाले विकास का अनुमान

  • Nilanjan Ghosh
  • Renita D'souza

    यह शोध पत्र विभिन्न जीडीपी विकास परिदृश्यों के तहत भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) बाज़ार के राष्ट्रव्यापी और राज्य-वार आकार का अनुमान लगाता है. इन परिदृश्यों के तहत बाज़ार के आकार को उप-राष्ट्रीय इकाइयों और समग्र रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था दोनों के पैमाने पर मौद्रिक मूल्यों में व्यक्त किया गया है. यूपीआई कंपनी फ़ोनपे के लेन-देन (ट्रांज़ैक्शन) और मार्केट शेयर डाटा की मदद से इस शोध पत्र में 2021 के राष्ट्रीय और राज्य-वार आधार मामला परिदृश्य (बेस केस सिनेरियो व्यवसाय योजना के लिए एक संदर्भ बिंदु होता है. यह तुलना के लिए आधार प्रदान कर नेतृत्व करने के लिए प्रयोग किया जाता है और जटिल वित्तीय मॉडल में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां कई अलग-अलग चर कई परिदृश्यों के खिलाफ परीक्षण किए जाते हैं.) बाज़ार की मात्रा का अनुमान लगाया गया है. प्रतिगमन विश्लेषण के लिए वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2021 तक विभिन्न तिमाहियों में विभिन्न राज्यों और उप-राष्ट्रीय इकाइयों के पैनल डेटा  का उपयोग किया गया है. संरचनात्मक मॉडल से निकलने वाले परिणाम बताते हैं कि इस तरह के डिजिटल लेन-देन से संबंधित व्यवहार को परिवर्ती कारकों (वित्तीय समावेशन, डिजिटल माध्यमों को अपनाने की इच्छा, आय स्तर, डिजिटल साक्षरता, और डिजिटल समावेशन या विभाजन) से जुड़े मापदंडों को प्रभावित करके बदला जा सकता है. इस शोध पत्र में परिदृश्यों के दो सेटों पर विचार किया गया है. पहला सेट 5-ट्रिलियन डॉलर जीडीपी की उपलब्धि तक पहुंचने के तीन संभावित वर्षों (यानी 2025-26, 2026-27 और 2027-28) से संबंधित है. दूसरा सेट 2030 तक दो जीडीपी विकास आंकड़ों (औसत और औसत से नीचे) से संबंधित है. परिदृश्यों के पहले सेट में, पाया गया कि भारत में यूपीआई बाज़ार का आकार 242.7 लाख करोड़ रुपये (या ट्रिलियन) और 356.3 लाख करोड़ रुपये (ट्रिलियन) के बीच हो सकता है. 2030-31 के परिदृश्य में, यूपीआई लेन-देन का मूल्य 542.7 लाख करोड़ रुपये (ट्रिलियन) से 600.7 लाख करोड़ रुपये (ट्रिलियन) के बीच हो सकता है.

Attribution:

रेनीता डिसूजा और नीलांजन घोष, "भारत का यूपीआई बाज़ार: अलग-अलग जीडीपी परिदृश्यों के तहत होने वाले विकास का अनुमान," ओआरएफ़ प्रासंगिक शोध पत्र संख्या 413, सितंबर 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन.

मुख्य निष्कर्ष

2030-31 में अगर वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 5% (औसत से नीचे का आंकड़ा) रहती है तो यूपीआई लेन-देन का मूल्य 542.7 ट्रिलियन रुपये होगा और अगर वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.3% रहती है (विभिन्न अध्ययनों में अनुमानित औसत वृद्धि दर) तो यह 600.7 ट्रिलियन होगा. यह गणना 2021-22 को आधार वर्ष मानकर  की गई है.

अगर भारत 2025-26, 2026-27 और 2027-28 के दौरान 5 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी का लक्ष्य हासिल कर लेता है, तो यूपीआई बाज़ारों का आकार क्रमशः 242.7 ट्रिलियन, 280.3 ट्रिलियन और 356.3 ट्रिलियन रुपये होगा.

वित्तीय समावेशन, नेटवर्क इंफ़्रास्ट्रक्चर को अपनाना और आय यूपीआई भुगतान को प्रभावित करने वाले सकारात्मक और सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण कारक पाए गए हैं.

हालांकि आय में वृद्धि ने डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया है, लेकिन डिजिटल साक्षरता और डिजिटल समावेशन जैसे विकासात्मक मापदंडों ने डिजिटल भुगतान बाज़ारों के आकार को सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण तरीके से प्रभावित नहीं किया है.

 5 मिलियन  अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था के परिदृश्यों के तहत यूपीआई बाज़ार का आकार

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भूमिका

इस बात पर सहमति बढ़ रही है कि डिजिटल भुगतान वित्तीय लेन-देन को सुविधाजनक बना सकते हैं और विकसित और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) दोनों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं.[i],[ii] वास्तव में, कोविड-19 महामारी ने दिखाया कि कैसे भुगतान तंत्रों के डिजिटलीकरण ने ईएमई को स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान विकासशील दुनिया के सामने आने वाली अनुपातहीन चुनौतियों को दूर करने में सक्षम बनाया.[iii],[iv] हाल के वर्षों में ईएमई में डिजिटल लेन-देन में ज्यामितीय वृद्धि कई कारकों का परिणाम थी, उनमें से नकदी रहित समाज बनाने के लिए सरकारों का संकल्प, तकनीकी नवाचार, प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए युवाओं का उत्साह, फिनटेक की धूम की समावेशिता और डिजिटल बुनियादी ढांचे में वृद्धि के कारण अधिक व्यापारी डिजिटल वित्तीय लेन-देन कर रहे हैं. ग्लोबल डाटा रिसर्च के अनुसार, कुल लेन-देन की मात्रा में नकदी का अनुपात 2017 में 90 प्रतिशत से घटकर 2021 में 60 प्रतिशत से कम हो गया है.[v]

डिजिटल भुगतान में वैश्विक वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा भारत का है और देश कुल वास्तविक डिजिटल भुगतान में अपनी हिस्सेदारी के मामले में शेष विश्व से कहीं बेहतर स्थिति में है.[vi] 2021-22 में भारत में डिजिटल लेन-देन की मात्रा 2018-19 के मुकाबले चार गुना थी.[vii] 2016 में नोटबंदी अभियान ने देश की भुगतान प्रणालियों के डिजिटलीकरण के किस्से में एक नया अध्याय शुरू किया और कोविड-19 महामारी ने इस विकास को गति दी.[viii]

तालिका 1: भारत में डिजिटल लेन-देनों की कुल संख्या और मूल्य (2017-18 से 2021-22)

वित्त वर्ष

डिजिटल लेन-देन की कुल संख्या (ट्रिलियन में)

डिजिटल लेन-देन का कुल मूल्य (ट्रिलियन रुपये में)

2017-18

20.71

1,962

2018-19

31.34

2,482

2019-20

45.72

2,953

2020-21

55.54

3,000

2021-22

88.40

3,021

स्रोतः आरबीआई, एनपीसीआई और बैंक जैसा कि https://www.meity.gov.in/digidhanमें बताया गया है

(9)[ix]

चित्र 1: भारत में डिजिटल लेन-देन, संख्या और मूल्य में

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आज, देश में एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) तंत्र नकदी के उपयोग का एक तेज़ी से बढ़ता पसंदीदा विकल्प बन गया है[x] और गहराई और चौड़ाई में इसका विस्तार हो रहा है.[] लेन-देन की मात्रा और मूल्य दोनों में वृद्धि देखी गई है, जो 2019 और 2022 के बीच क्रमशः 115 प्रतिशत और 121 प्रतिशत बढ़ी है.[xi] यूपीआई ने 2018-19 में कुल डिजिटल लेन-देन में अपनी हिस्सेदारी में 17 प्रतिशत से 2021-22 में 52 प्रतिशत तक की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है.[xii]

डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार[xiii] और इसके बढ़ते परिष्करण को डिजिटलीकरण के लिए सरकारी पहलों,[xiv] इंटरनेट नेटवर्क इंफ़्रास्ट्रक्चर और डिजिटल उपकरणों की तेजी से स्वीकृति, बढ़ी हुई उपभोक्ता जागरूकता,[xv] मज़बूत भुगतान बुनियादी ढांचे, मोबाइल वॉलेट की बढ़ती संख्या[xvi] और फलते-फूलते -कॉमर्स उद्योग द्वारा सुगम बनाया गया है.[xvii] डिजिटल लेन-देन के उपयोग में आसानी, गति और पारदर्शिता[xviii] भी डिजिटल मोड की ओर बदलाव को प्रोत्साहित कर रहे हैं.

डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी सरकारी पहलों ने स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि को मज़बूत बनाने और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने में डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाकर डिजिटल लेन-देन की स्वीकृति को बढ़ावा दिया है.[xix] जन धन-आधार-मोबाइल त्रिगुट ने डिजिटल लेन-देन की वृद्धि को गति दी है.[xx] नेशनल पेमेंट्स काउंसिल ऑफ़ इंडिया की स्थापना डिजिटल भुगतान के लिए बेहतर परिणामों को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण रही है.[xxi] प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) के शुभारंभ, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय समावेशन कार्यक्रम माना जाता है, ने सार्वभौमिक बैंकिंग के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रगति की है.[xxii]

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2018 में डिजिटल भुगतान इंडेक्स लॉन्च किया ताकि भारत की भुगतान प्रणाली के डिजिटलीकरण के प्रसार और डिग्री में हुई प्रगति को ट्रैक किया जा सके.[xxiii] यह माप पांच मापदंडों पर निर्भर करता है: भुगतान सक्षमकर्ता, भुगतान अवसंरचना (मांग-पक्ष कारक), भुगतान अवसंरचना (आपूर्ति-पक्ष कारक), भुगतान प्रदर्शन और उपभोक्ता केंद्रित . चित्र 2 माप अभ्यास के परिणामों का सार प्रस्तुत करता है.[xxiv]

चित्र 2: भारत में डिजिटल भुगतान सूचकांक

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स्रोत: आरबीआई प्रेस विज्ञप्ति से प्राप्त डाटा से लेखकों द्वारा की गई गणना[xxv]

मार्च 2018 को आधार मानते हुए, डिजिटल भुगतान में भारी वृद्धि की प्रवृत्ति बढ़ती हुई नज़र आती है. यद्यपि भारत ने डिजिटल लेन-देन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है लेकिन नकदी अब भी भुगतान करने का प्रमुख माध्यम है, 2021 में लेन-देन की कुल मात्रा का 59.3 प्रतिशत नकदी से किया गया.[xxvi]

भारत के नकदी रहित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए उपयुक्त मापदंडों को समायोजित करके डिजिटल विकास की प्रक्रिया को सही दिशा में चलाने की आवश्यकता होगी.[]

अब तक, यूपीआई लेन-देन उल्लेखनीय दर से बढ़ रहे हैंचित्र 3 अप्रैल 2018 से मई 2023 के बीच की वृद्धि को दर्शाता है. यह वृद्धि यूपीआई पर निर्भर बैंकों की संख्या अप्रैल 2018 से 360 प्रतिशत बढ़कर मई 2023 में 97 से 447 हो जाने से प्रेरित है. इसी अवधि में UPI लेन-देन की मात्रा में 4,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई; और मूल्य, 5,400 प्रतिशत तक बढ़ा.

चित्र 3. भारत में यूपीआई का विकास (अप्रैल 2018-मई 2023)

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स्रोत: एनपीसीआई वेबसाइट पर यूपीआई उत्पाद सांख्यिकी से प्राप्त डाटा से लेखकों द्वारा की गई गणना[xxvii]

कुल मिलाकर, भारत में डिजिटल लेन-देन की वृद्धि तीव्र गति से बढ़ते डिजिटल बुनियादी ढांचे, यूपीआई के नेतृत्व में डिजिटल भुगतानों को अपनाने, उपभोक्ताओं के झुकाव और प्राथमिकताओं में महामारी की वजह से हुए बदलावों, तेज़ी से बढ़ते व्यापारी स्वीकृति बुनियादी ढांचे (इसका अर्थ है कैशलेस भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारियों की संख्या में तेज़ वृद्धि) और बड़े तकनीकी कंपनियों और फ़िनटेक द्वारा संचालित डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में विघटनकारी तकनीकी नवाचारों (डिस्रप्टिव टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन्स ऐसे नवाचारों को कहते हैं जो उपभोक्ताओं, उद्योगों या व्यवसायों के संचालन के तरीके को उल्लेखनीय रूप से बदल देते हैं. एक विघटनकारी प्रौद्योगिकी उन प्रणालियों या आदतों को नष्ट कर देती है जिनकी जगह वह लेती है क्योंकि इसमें ऐसे गुण होते हैं जो काफ़ी बेहतर होते हैं) पर निर्भर है.[xxviii] डिजिटल लेन-देन की उल्लेखनीय वृद्धि और विशेष रूप से, यूपीआई लेन-देन की पृष्ठभूमि में, यह शोध पत्र विभिन्न जीडीपी वृद्धि परिदृश्यों के तहत यूपीआई भुगतान बाज़ार के आकार को परिकल्पित करना चाहता है.

यह शोध पत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न भविष्य के विकास प्रक्षेप पथों की गणना करके यूपीआई बाज़ार के विभिन्न आकारों का अनुमान लगाता है. यह निर्णय लेने और नीति निर्माण के लिए इनपुट प्रदान करता है. शोध पत्र कहता है कि अगर भारत की 'उपभोग-संचालित वृद्धि'[xxix] की वर्तमान गति जारी रहती है, तो यूपीआई बाज़ार कल्पना किए गए विकास परिदृश्यों के तहत विस्तार करेगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह माना जाता है कि यूपीआई अर्थव्यवस्था की उपभोग मांग को पूरा करता है, कि निवेश या मांग के अन्य रूपों को.

भारत इस दशक के मध्य तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जीडीपी तक पहुंचने का लक्ष्य लेकर चल रहा है.[xxx] विभिन्न वृद्धि अनुमान इस महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए कई समय सीमाओं की बात करते हैं. यह शोध पत्र उन समय सीमाओं और वृद्धि दरों में से तीन पर विचार करता है और उन्हें परिदृश्यों के रूप में मानता है. दो और विकास परिदृश्यों को निम्नलिखित के रूप में लिया गया है :() 6.3 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर जो एस एंड पी के पूर्वानुमान के अनुसार 2030 तक जारी रह सकती है;[xxxi] और (बी) औसत से नीचे का निशान.[सी] पैरामीट्रिक पद्धति का उपयोग करके डिजिटल लेन-देन की मॉडलिंग करके यह शोध पत्र इन सभी संभावित विकास परिदृश्यों के तहत यूपीआई बाज़ार के आकार का अनुमान लगाता है. खंड 2 डिजिटल भुगतानों पर मौजूदा दस्तावेज़ों की समीक्षा करता है, सामान्य रूप से और विशेष रूप से, भारत के यूपीआई के और जानकारी के उन अंतरालों की पहचान करता है जिन्हें यह शोध पत्र दूर करना चाहता है. खंड 3 अर्थमिति मॉडल के संरचनात्मक समीकरणों को रेखांकित करता है और फिर खंड 4 मॉडल का अनुमान लगाता है. पांचवां खंड मॉडल के आधार पर एक परिदृश्य विश्लेषण करता है, छठा भारत के लिए एक प्रशंसनीय कार्य योजना की रूपरेखा तैयार करता है, और शोध पत्र खंड 7 के साथ समाप्त होता है.

2.  लिटरेचर सामग्री की समीक्षा

डिजिटल लेन-देन के को लेकर हुई चर्चाओं ने वैश्विक स्तर पर भुगतान प्रणाली के डिजिटलीकरण से जुड़े मुद्दों, चिंताओं, अवसरों और चुनौतियों पर कई अध्ययनों को जन्म दिया. पीडबल्यूसी (PwC) द्वारा प्रकाशित 2016 के एक अध्ययन में बताया गया है कि कैसे उभरते बाज़ार भुगतान के डिजिटलीकरण में सबसे आगे रहे हैं और आगे भी रहेंगे.[xxxii] अध्ययन ने डिजिटल भुगतान की वृद्धि का श्रेय प्रौद्योगिकी के विकास, झुकाव और पसंद में बदलाव के साथ-साथ उपभोक्ता आधार की जनसांख्यिकीय विशेषताओं, फलते-फूलते -कॉमर्स और नियामक हस्तक्षेपों के मज़बूत प्रभाव में निहित एक विस्तारित ऑनलाइन भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को दिया. उसी वर्ष, मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट[xxxiii] में सात उभरती अर्थव्यवस्थाओं- अर्थात् ब्राज़ील, चीन, इथियोपिया, भारत, मेक्सिको, नाइजीरिया और पाकिस्तान में डिजिटल वित्त के उपयोग में प्रवासन के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का अनुमान लगाया गया. अध्ययन के अनुसार, डिजिटल वित्त के बड़े पैमाने पर फैलाव के परिणामस्वरूप सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की संयुक्त जीडीपी में छह प्रतिशत (3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) की वृद्धि हो सकती है और 2025 तक इससे रोज़गार के 95 मिलियन अवसर पैदा होंगे.

भारत के लिए सिंह और अन्य (2019)[xxxiv] ने डिजिटल भुगतान प्रणाली की सफलता के लिए कुछ महत्वपूर्ण कारकों की पहचान की. इनमें उपयोग में आसानी और कार्यात्मक लाभों के बारे में सकारात्मक धारणाएं; प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन के बारे में अपेक्षाएं; उपभोक्ता जागरूकता; प्रौद्योगिकी के स्वामित्व और उपयोग के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता; प्रौद्योगिकी के उपयोगकर्ता द्वारा प्राप्त ऐसे संसाधनों और सेवाओं की कीमत; प्रौद्योगिकी और संबंधित आदतों के साथ पिछला अनुभव; जोखिम लेने की क्षमता; नीति निर्माता के रूप में सरकार की प्रभावकारिता; और उपयोगकर्ता की प्रौद्योगिकी को अपनाने और उपयोग करने के लिए दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता शामिल है.

अपने स्तर पर, रस्तोगी और दामले (2020)[xxxv] ने पाया कि डिजिटल भुगतान को अपनाए जाने में मोबाइल फ़ोन की बढ़ी हुई पैठ, इंटरनेट के व्यापक उपयोग और बैंक खातों में वृद्धि मुख्य कारक साबित हुई थीं. अध्ययन ने डिजिटल भुगतान को अपनाने में कोविड-19 महामारी और नोटबंदी की भूमिका को भी उजागर किया. श्री और अन्य (2021)[xxxvi] ने 'धारणा' और 'विश्वास' के प्रभाव और डिजिटल भुगतान को अपनाने और उपयोग पर साइबर धोखाधड़ी के पिछले अनुभव को मापने के लिए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण-आधारित डाटासेट तैयार करने का एक नया तरीका अपनाया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि आयु, शिक्षा, आय और लिंग जैसे जनसांख्यिकीय पैरामीटर डिजिटल भुगतान को अपनाने और उपयोग को प्रभावित करते हैं. मणि और अय्यर (2022)[xxxvii] ने तीन बिल्डिंग ब्लॉक की पहचान की जो डिजिटल भुगतान के प्रसार को निर्धारित करते हैं: कर्ता और संस्थान; आपूर्ति-पक्ष के कारकों का प्रतिनिधित्व करने वाली तकनीक (या जानकारी); और डिजिटल भुगतान की मांग. इस बीच भावसार और सामंत (2022),[xxxviii] भारत में डिजिटल भुगतानों की स्थिरता का मूल्यांकन करने के लिए डायनामिक साधारण न्यूनतम वर्ग विधि (डीओएलएस) के साथ-साथ सह-एकीकरण के लिए एक ऑटोरेग्रसिव (सांख्यिकी के उस मॉडल को ऑटोरिग्रेसिव या स्वसमाश्रयी कहा जाता है जो पूर्व के मूल्य के आधार पर भविष्य के मूल्य का अनुमान लगाता है) वितरित अंतराल मॉडल (एआरडीएल) बाउंड टेस्ट लागू किया. अध्ययन में पाया गया कि भारत में डिजिटल भुगतानों की स्थिरता राष्ट्रीय आय और वित्तीय साक्षरता पर निर्भर करती है.

बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की पेमेंट्स एंड मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर्स समिति के 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, महामारी के बाद के वर्षों में डिजिटल लेन-देन की कुल राशि और मात्रा मुख्य रूप से कार्ड के ज़रिए भुगतानों को व्यापक रूप से अपनाने से प्रेरित थी. हालांकि, नकदी की भारी मांग को स्वीकार करते हुए, शोध पत्र प्रस्तावित सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) को नकदी की इस मांग के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता पर संकेत देता है.[xxxix]

फ़ोनपे प्लस  और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जबकि भविष्य में डिजिटल लेन-देन में वृद्धि भुगतान के बुनियादी ढांचे और व्यापारी स्वीकृति नेटवर्क के और विस्तार, मूल्य श्रृंखला के डिजिटल परिवर्तन और वित्तीय सेवाओं के बाज़ार के विकास से प्रेरित होगी लेकिन इसके लिए कड़े साइबर सुरक्षा उपायों के माध्यम से उपभोक्ता विश्वास विकसित करने, ऑनबोर्डिंग और केवाईसी प्रक्रियाओं को सरल बनाने, भुगतान प्रावधान के व्यवसाय की आर्थिक व्यवहार्यता और लाभप्रदता सुनिश्चित करने, बैंकिंग प्रणाली पर दबाव कम करने और राष्ट्रीय डिजिटल बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने की दिशा में लगातार प्रयासों की आवश्यकता है.[xl] हाल ही में, इलेक्ट्रॉनिक भुगतानों पर आरबीआई के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि अपनाए जाने और उपयोग दोनों के मामले में यूपीआई दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करता है.[xli]

जीडीपी और डिजिटल भुगतानों का अध्ययन

ऐसे कई अध्ययन हैं जिनमें यह पड़ताल की गई है कि कैसे डिजिटल भुगतानों में वृद्धि आर्थिक विकास को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. ज़ान्डी और अन्य (2016)[xlii] ने 2011 से 2015 तक 70 देशों में इस संबंध की जांच की. उन्होंने पाया कि डिजिटल भुगतानों को अपनाने में एक प्रतिशत की वृद्धि से उपभोग