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एट्रीब्यूशन: हर्ष वी. पंत, सुयश देसाई, “भारत-ताइवान साझेदारी: विचारधारात्मक आधार से व्यावहारिक रणनीति तक” ORF समसामयिक पेपर नं. 448 जुलाई 2025, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन
Image Source: Getty
2024 में ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए लगातार तीसरी बार विजय हासिल की. 1996 में प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव की शुरुआत होने के बाद पहली बार किसी पार्टी ने ऐसी उपलब्धि हासिल की.[1] तीन पार्टियों के बीच मुकाबले में DPP के राष्ट्रपति उम्मीदवार लाई-चिंग-ते[a] ने 40.1 प्रतिशत लोकप्रिय मत हासिल किए, कुओमिनतांग (KMT) के उम्मीदवार हाउ यू-इह को 33.5 प्रतिशत मत मिले और ताइवान पीपुल्स पार्टी (TPP) के उम्मीदवार वेन-जे ने 26.5 प्रतिशत वोट प्राप्त किए.[2]
हालांकि ताइवान की संसद युआन में विभाजित फैसले से DPP की ये जीत धूमिल हो गई जहां KMT, DPP और TPP को क्रमश: 52, 51 और आठ सीटें मिलीं. ये बंटा हुआ परिणाम ताइवान में विभाजित सरकार के एक नए युग का प्रतीक है क्योंकि 16 साल में पहली बार सत्ताधारी पार्टी को राष्ट्रीय संसद में बहुमत नहीं मिला है.
1992 की आम सहमति” उल्लेखनीय है जो चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और KMT के बीच एक समझौता है जिसमें कहा गया है कि केवल एक ही चीन का अस्तित्व है. ताइवान के भीतर इसकी व्याख्या अलग-अलग है: DPP “1992 की आम सहमति” को खारिज करती है और ये दलील देती है कि ये समझौता ताइवान के लोगों की आकांक्षाओं पर विचार करने में नाकाम रहा है
इसलिए लाई चिंग-ते का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर जहां निरंतरता का संकेत देती है, वहीं KMT और TPP के साझा विपक्ष ने संसद में गतिरोध को बढ़ा दिया है जिसकी वजह से शासन व्यवस्था और नीति तैयार करने की रफ्तार धीमी हुई है.[3] दोनों गुटों में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतभेद है, इनमें “1992 की आम सहमति” उल्लेखनीय है जो चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और KMT के बीच एक समझौता है जिसमें कहा गया है कि केवल एक ही चीन का अस्तित्व है.[4] ताइवान के भीतर इसकी व्याख्या अलग-अलग है: DPP “1992 की आम सहमति” को खारिज करती है और ये दलील देती है कि ये समझौता ताइवान के लोगों की आकांक्षाओं पर विचार करने में नाकाम रहा है क्योंकि ये ताइवान के लोकतांत्रिक बनने से पहले का समझौता है.[5] हालांकि लेखक और विद्वान रायन हास, बोनी ग्लेसर और रिचर्ड बुश ने 2023 के अपने एक विश्लेषण में लिखा है कि ताइवान की पूर्व राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने स्पष्ट रूप से “1992 की आम सहमति” का समर्थन किए बिना एक व्यावहारिक, उदारवादी रवैया अपनाया. इसका कारण वो घरेलू राजनीतिक मजबूरियां थीं जिनका सामना उन्होंने पिछले आठ वर्षों में किया था.[6]
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिए गए अपने बयानों और शासन संभालने के एक साल से ज़्यादा समय के बाद ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति लाई चीन के साथ संबंधों के मामले में पूर्व राष्ट्रपति साई के व्यावहारिक दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहते हैं.[7] हालांकि उनकी छवि स्वतंत्रता समर्थक की रही है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण जुलाई और अगस्त 2023 में देखने को मिला जब उन्होंने स्पष्ट किया था कि ताइवान, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं है.[8] उन्होंने यही विचार 2024 और 2025 में भी बनाए रखा जिसका पता उनके भाषणों से चलता है.[b],[9]
इसी तरह KMT, जो कि “1992 की आम सहमति” की एक पक्षकार है, ने मा यिंग-जियोउ के प्रशासन के तहत 2008 में इसे एक नीति के रूप में अपनाया. लेकिन 2024 के ताइवान चुनाव में उसका रवैया अस्पष्ट रहा[10] - विशेष रूप से हॉन्ग कॉन्ग पर चीन की पकड़ मज़बूत होने और CCP के महासचिव शी जिनपिंग के 2019 के बयान के बाद जिसमें उन्होंने “1992 की आम सहमति” को “एक देश, दो प्रणाली” के साथ जोड़ा था.[11] पिछले आठ वर्षों में “1992 की आम सहमति” को लेकर KMT का रवैया मा यिंग-जियोउ के “संबंधित व्याख्याओं के साथ मेल-मिलाप” वाले दृष्टिकोण और पूर्व KMT अध्यक्ष हुंग सियू-चू के कोई “संबंधित व्याख्या” नहीं वाले दृष्टिकोण के साथ नरम रवैये के बीच झूलता रहा है.[12] इसके अलावा, जैसा कि विद्वान चेन और पेरिस-रॉड्रिग्ज़ ने बताया है, DPP के सत्ता में आने के बाद से KMT का नेतृत्व चार अध्यक्षों ने किया है- हुंग सियू-चू (2016-17), वू डेन-यिह (2017-20), जॉनी चियांग (2020-21) और एरिक चू (2021-वर्तमान). “1992 की आम सहमति” को लेकर हर अध्यक्ष की अपनी अलग व्याख्या है.[13] ये रवैया कई महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों को लेकर पार्टी के भ्रम में डालने वाले दृष्टिकोण में महसूस होता है.
चीन से संबंध को लेकर भी DPP और KMT में बुनियादी मतभेद हैं. ऐतिहासिक रूप से ताइवान की राजनीतिक स्थिति और चीन के साथ उसके काम-काजी संबंधों को लेकर दोनों पार्टियों की अलग-अलग व्याख्या रही है.[14] 80 के दशक से KMT ने अपनी कम्युनिस्ट विरोधी नीतियों को त्याग दिया है और चीन के साथ संबंध बनाए रखे हैं. उसने ताइवान-चीन बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए नीतियां बनाई, घनिष्ठ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा दिया, शांति समझौते पर विचार किया, आर्थिक सहयोग रूप-रेखा समझौते (ECFA) [c] पर हस्ताक्षर किएऔर चीन के साथ संस्थागत बातचीत की फिर से शुरुआत की.[15] सरल शब्दों में कहें तो KMT टकराव के बदले एकीकरण के माध्यम से सुरक्षा और प्रतिरोध (डिटरेंस) चाहती है. वो चीन के साथ घनिष्ठ आर्थिक और राजनीतिक संबंध की वकालत करती है. साथ ही “1992 की आम सहमति” की रूप-रेखा के तहत स्थिरता और बातचीत पर ज़ोर देती है. उसने ऐतिहासिक रूप से तनाव कम करने के साधन के रूप में चीन के साथ संघर्ष कम करने और आर्थिक अंतर-निर्भरता को प्राथमिकता भी दी है.
इसके विपरीत, साई के नेतृत्व में विरोध की भूमिका से लेकर उनके राष्ट्रपति बनने तक चीन को लेकर DPP का रवैया बदला है. KMT के शासन के दौरान पार्टी अध्यक्ष के रूप में साई ने “1992 की आम सहमति” को स्वीकार करने के लिए मा यिंग-जियोउ प्रशासन की आलोचना की, ECFA का विरोध किया और 2012 में “1992 की आम सहमति” को ताइवान की नई आम राय के साथ बदलने को लेकर अभियान चलाया.[16] लेकिन 2016 में सत्ता संभालने के बाद उनका रवैया नरम हो गया. साई प्रशासन ने सार्वजनिक रूप से “वन चाइना” को खारिज करने से परहेज़ किया, स्पष्ट रूप से स्वतंत्रता का दावा करने से बचा और “1992 की आम सहमति” को एक ऐतिहासिक घटना के रूप में स्वीकार किया.[17] फिर भी, DPP ज़ोर देकर कहती है कि ताइवान एक संप्रभु इकाई है जो चीन से अलग है.
“1992 की आम सहमति” और चीन को लेकर ताइवान का रवैया ताइवान की दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों के बीच बुनियादी नीतिगत मतभेदों के दो उदाहरण मात्र हैं.
तालिका 1: DPP और KMT: नीतिगत मतभेद
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नीतिगत क्षेत्र |
DPP (डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी) |
KMT (कुओमिनतांग) |
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अंतर्राष्ट्रीय संबंध |
अमेरिका और जापान समर्थक; लोकतांत्रिक देशों और साझेदारों के साथ संबंधों में मजबूती का समर्थन |
अमेरिका-चीन के साथ संबंधों को संतुलित करती है, चीन के साथ बातचीत को बढ़ावा देती है |
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अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में ताइवान की हिस्सेदारी का समर्थन करती है |
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में अनौपचारिक भागीदारी समेत कूटनीतिक लचीलेपन को लेकर खुला रवैया |
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“एक देश, दो प्रणाली” को खारिज करती है; ताइवान की संप्रभुता और पहचान पर ज़ोर देती है |
तनाव कम करने के लिए चीन के साथ संबंधों में व्यावहारिक रवैये को प्राथमिकता देती है |
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चीन के असर का मुकाबला करने के लिए भारत एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे इंडो-पैसिफिक के देशों और यूरोपीय देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करती है |
स्वायत्तता बनाए रखते हुए चीन के साथ आर्थिक भागीदारी का समर्थन करती है |
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राष्ट्रीय सुरक्षा |
रक्षा खर्च में बढ़ोतरी करती है और विषम युद्ध की रणनीतियों को बढ़ावा देती है |
सैन्य आधुनिकीकरण का समर्थन करती है लेकिन अमेरिका पर बहुत अधिक निर्भरता की तुलना में लागत प्रभावी दृष्टिकोण को प्राथमिकता देती है |
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साइबर सुरक्षा को मज़बूत करती है और चीन के प्रभाव वाले अभियानों का मुकाबला करती है |
चीन से साइबर सुरक्षा के ख़तरों को लेकर कम आक्रामक; बातचीत को प्राथमिकता देती है |
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पहले के साई प्रशासन के दौरान सैन्य भर्ती की अवधि में बढ़ोतरी |
कुछ स्तर तक सैन्य भर्ती को बनाए रखती है लेकिन व्यावसायिकता पर ध्यान केंद्रित करती है |
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क्षेत्रवाद और चीन से संबंध |
“1992 की आम सहमति” का विरोध; ताइवान पर चीन के दावे को खारिज करती है |
“1992 की आम सहमति” का समर्थन (अलग-अलग अर्थों के साथ) |
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चीन पर निर्भरता कम करने के लिए नई दक्षिण की ओर नीति (न्यू साउथबाउंड पॉलिसी) को बढ़ावा देती है |
चीन के साथ आर्थिक एकीकरण और संवाद को बढ़ावा देती है |
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ताइवान की अलग पहचान पर ज़ोर देती है और संप्रभुता को प्राथमिकता देती है |
पहचान के मुद्दे पर कम आक्रामक
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अमेरिका-ताइवान संबंध |
अमेरिका-ताइवान संबंधों (सैन्य, आर्थिक, तकनीकी) को बढ़ावा देने की मज़बूत वकालत करती है |
अमेरिका-ताइवान संबंधों का समर्थन लेकिन चीन को उकसाने से बचती है |
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चीन को नियंत्रित/रोकने के लिए अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति की पक्षधर
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अमेरिका-चीन-ताइवान की गतिशीलता में स्थिरता बनाए रखने की वकालत करती है. अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में ताइवान की जगह को लेकर स्पष्ट रवैया नहीं |
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बहुपक्षवाद को लेकर रवैया |
चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर सक्रिय भागीदारी करती है |
चीन के साथ संबंधों को संतुलित करते हुए सीमित आधार पर बहुपक्षीय संगठनों में व्यावहारिक भागीदारी चाहती है |
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क्वॉड, G7 और EU के साथ भागीदारी के ज़रिए लोकतांत्रिक देशों से सहयोग को मज़बूत करती है |
स्पष्ट राजनीतिक गठबंधन के बिना क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को प्राथमिकता देती है |
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CPTPP (कंप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप) के लिए ताइवान के प्रयास का समर्थन करती है |
RCEP (रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) और दूसरे व्यापार समझौतों के ज़रिए आर्थिक भागीदारी के लिए खुला रवैया रखती है |
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चीन से निपटना |
ताइवान की संप्रभुता पर दृढ़ रवैया अपनाती है और चीन के दबाव को खारिज करती है |
चीन के साथ बातचीत और आर्थिक भागीदारी बरकरार रखने का समर्थन करती है |
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चीन पर बढ़ती आर्थिक निर्भरता का विरोध, सप्लाई-चेन विविधता को प्रोत्साहन |
मानती है कि आर्थिक अंतर-निर्भरता तनाव में कमी कर सकती है
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ताइवान में चीनी मीडिया, निवेश और राजनीतिक प्रभाव पर प्रतिबंध लगाती है |
चीन के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान के मामले में ज़्यादा खुला विचार |
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सेमीकंडक्टर नीति |
सेमीकंडक्टर सेक्टर में ताइवान के वर्चस्व को प्राथमिकता देती है |
ताइवान के सेमीकंडक्टर उद्योग का समर्थन करती है लेकिन निवेश के व्यापक विकल्पों को लेकर खुला रवैया |
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R&D और चिप मैन्युफैक्चरिंग के लिए सरकार के समर्थन को मज़बूत करती है |
प्राइवेट सेक्टर के नेतृत्व वाले सेमीकंडक्टर विकास को प्रोत्साहन देती है |
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अमेरिका-ताइवान सेमीकंडक्टर सहयोग को बढ़ावा देती है (जैसे कि चिप्स एक्ट) |
अमेरिका-ताइवान और चीन-ताइवान के बीच सेमीकंडक्टर व्यापार संबंधों को संतुलित करती है |
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अमेरिका की पाबंदियों से मेल खाते हुए चीन को उन्नत सेमीकंडक्टर के निर्यात पर पाबंदी |
चीन से व्यापार का समर्थन लेकिन बहुत ज़्यादा निर्भरता को लेकर सावधान |
स्रोत: अलग-अलग स्रोतों का उपयोग करके लेखक का अपना
जैसा कि तालिका 1 में उजागर किया गया है, ये मतभेद चीन के साथ संबंधों के आगे भी मौजूद हैं और अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं भारत जैसी इंडो-पैसिफिक की ताकतों के प्रति ताइवान के व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं.
ताइवान ने साई और लाई- दोनों प्रशासनों के तहत भारत के साथ अपने रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी संबंधों को बढ़ाने की कोशिश की है. औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं होने के बावजूद पिछले दशक के दौरान द्विपक्षीय भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है. 2025 में दोनों देशों के बीच अनौपचारिक कूटनीतिक संबंधों के 30 साल पूरे हो रहे हैं. आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा पहलुओं के साथ-साथ लोगों के बीच आदान-प्रदान ने इस संबंध को मज़बूत किया है, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के बाद.
रेखाचित्र 1: ताइवान में भारतीय जनसंख्या

स्रोत: विदेश मंत्रालय [18]
रेखाचित्र 1 से पता चलता है कि ताइवान में भारतीय जनसंख्या 2010 के 2,358 की तुलना में 2024 में बढ़कर 5,804 हो गई यानी 14 वर्षों के दौरान इसमें 68.42 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. अप्रवासी भारतीय (NRI) इस बढ़ोतरी में सबसे ज़्यादा तेज़ी ला रहे हैं जिनकी संख्या में 72.86 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और ये 3,068 से बढ़कर 5,303 हो गई है. इनमें से 3,000 छात्र हैं. सात वर्षों के दौरान छात्रों की संख्या में 76.76 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है, 2017 में 1,689 भारतीय छात्र थे और 2021 में 2,239. इसके अलावा, भारतीय छात्र अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के शीर्ष 10 समूहों में शामिल हैं, साथ ही ताइवान में सबसे तेज़ी से बढ़ते समुदाय में भी शामिल हैं. इसी तरह, ताइवान में भारतीय मूल के लोगों (PIO) की संख्या में 32.54 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और ये 378 से बढ़कर 501 हो गई है.
भारतीय डिग्री और भाषा सीखने वाले छात्रों के लिए ताइवान के शिक्षा मंत्रालय की तरफ से उदार छात्रवृत्ति के साथ साई और लाई प्रशासनों के तहत श्रम साझा करने की पहल ने इस विकास में योगदान किया है. 2024 में दोनों देशों ने ताइवान में भारतीय कामगारों को रोज़गार की सुविधा देने के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए.[19] वैसे तो इस MoU का विवरण नहीं दिया गया है लेकिन ख़बरों से पता चलता है कि इसके तहत उद्योग, कृषि और स्वास्थ्य देखभाल में 1,00,000 तक भारतीय कामगारों को नियुक्त किया जा सकता है.[20] हालांकि जब बात प्रवासियों, विशेष रूप से भारतीयों को स्वीकार करने की आती है तो ताइवान की राजनीति और समाज में मतभेद भी स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. ये मतभेद दिसंबर 2024 में छोटे स्तर के एक प्रदर्शन में दिखा जब ताइवान के निवासी राष्ट्रपति कार्यालय के बाहर जमा हुए और श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए भारत के प्रवासी कामगारों को लाने की योजना को रद्द करने का सरकार से अनुरोध किया.[21] श्रम मंत्रालय के अनुसार उस समय लगभग 2,700 भारतीय पेशेवर पहले से ही ताइवान में काम कर रहे थे, मुख्य रूप से हाई-टेक सेक्टर में.[22]
2024 में दोनों देशों ने ताइवान में भारतीय कामगारों को रोज़गार की सुविधा देने के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए. वैसे तो इस MoU का विवरण नहीं दिया गया है लेकिन ख़बरों से पता चलता है कि इसके तहत उद्योग, कृषि और स्वास्थ्य देखभाल में 1,00,000 तक भारतीय कामगारों को नियुक्त किया जा सकता है
वैसे तो ताइवान की संसद युआन ने 30 दिन के भीतर भारतीय श्रमिकों को स्वीकार करने और प्रोत्साहन देने के प्रस्ताव को मंज़ूर् दे दी लेकिन ताइवान के तत्कालीन श्रम मंत्री की तरफ से नस्लवादी टिप्पणी और भारतीय कामगारों को लेकर स्थानीय मीडिया में एक अप्रिय लेख- जिसमें यौन अपराधों के बारे में चिंताएं उजागर की गई थी- भारत के संबंध में ताइवान के भीतर छिपी हुई गलतफहमियों और सामाजिक मतभेदों के बारे में बताते हैं.[23] हालांकि ताइवान की संसद में भारत के साथ संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए द्विदलीय समर्थन है जो नई दक्षिण दिशा की नीति (न्यू साउथबाउंड पॉलिसी) के तहत ताइवान के द्वारा अपनी अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का विस्तार करने की व्यापक रणनीति के साथ मेल खाता है.[24] ये नीति भारत को एक प्रमुख साझेदार के रूप में मानती है जो उसके रणनीतिक महत्व को रेखांकित करती है.[25] ताइवान की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ संबंधों को मज़बूत बनाने पर ज़ोर दे रही हैं. चूंकि दोनों देश आर्थिक, तकनीकी, सांस्कृतिक, सुरक्षा और भू-राजनीतिक क्षेत्रों में लगातार एक-दूसरे के नज़दीक आ रहे हैं, विशेष रूप से पिछले आठ वर्षों के दौरान, ऐसे में द्विपक्षीय संबंधों में सुधार करने और सहयोग के स्तंभों, संभावित मेल-मिलाप के क्षेत्रों और भारत-ताइवान संबंधों की हदों को वास्तविक रूप से उजागर करने के लिए एक रूप-रेखा विकसित करना अहम है.
पुरातन समय से अलग-अलग देशों ने आर्थिक साधनों का उपयोग करके सत्ता की राजनीति की है. उदाहरण के लिए, 404 ईसा पूर्व में स्पार्टा के सामने एथेंस के साम्राज्य का आत्मसमर्पण मुख्य रूप से स्पार्टा के द्वारा एथेंस के अनाज आयात को बाधित करने की वजह से हुआ था जिसके लिए हेलेस्पोंट स्ट्रेट पर नियंत्रण किया गया. इस काम में फारस की वित्तीय मदद लेकर एक बेड़े का निर्माण किया गया जो समुद्र में एथेंस के वर्चस्व को चुनौती देने में सक्षम था.[26] इसी तरह मार्शल प्लान के ज़रिए अमेरिका ने युद्ध-ग्रस्त यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए पश्चिमी यूरोप को भारी आर्थिक सहायता मुहैया कराई थी लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात ये थी कि इसका उद्देश्य साम्यवाद के उदय को रोकना था.[27] इसके अलावा, अमेरिकी प्रशासन ने अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक आर्थिक साधन के रूप में 5 अप्रैल 2025 से शुरुआत करके सभी देशों पर 10 प्रतिशत बुनियादी टैरिफ लगाया है.[28] भू-अर्थशास्त्र की धारणा शीत युद्ध के बाद के दौर में सामने आई जब राजनीतिक वैज्ञानिक एडवर्ड लुटवाक ने आधुनिक शासनकला की सैन्य शक्ति और भू-राजनीतिक विचारों से आर्थिक रणनीतियों और व्यापार की ओर बदलाव को वैश्विक प्रभाव और संघर्ष के मुख्य साधन के रूप में उजागर किया.[29] वास्तविकता में ये धारणाएं शीत युद्ध के बाद की अवधि से काफी पहले से शासनकला का हिस्सा थीं.
राजनीतिक वैज्ञानिक ब्लैकविल और हैरिस की दलील है कि भू-आर्थिक नरम संतुलन उस समय होता है जब दो अपेक्षाकृत कमज़ोर देश एक अधिक मज़बूत या वर्चस्ववादी शक्ति का मुकाबला करने के लिए सहयोग एवं तालमेल करते हैं और आर्थिक, तकनीकी एवं दूसरे असैन्य उपकरणों का लाभ उठाते हैं. वो भू-अर्थशास्त्र को इस तरह परिभाषित करते हैं, “राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने एवं उनकी रक्षा करने और लाभदायक भू-राजनीतिक परिणाम उत्पन्न करने के लिए आर्थिक साधनों का उपयोग; और किसी देश के भू-राजनीतिक लक्ष्यों पर दूसरे देशों की आर्थिक कार्रवाइयों का प्रभाव.”[30] हालांकि वो ये दलील भी देते हैं कि अलग-अलग देश न केवल भू-राजनीतिक बल्कि भू-आर्थिक एवं अन्य हितों को हासिल करने के लिए भू-आर्थिक साधनों का उपयोग कर सकते हैं.[31] राजनीतिक वैज्ञानिक सुरगाई तर्क देते हैं कि “भू-अर्थशास्त्र समकालीन अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में राज्यों की शक्ति की स्थिति को बढ़ाने के लिए सरकार की एजेंसियों और विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के बीच बातचीत को दर्शाता है.”[32] राजनीतिक वैज्ञानिक मैटलिन और विगेल का सुझाव है कि भू-आर्थिक रणनीतियां गैर-पश्चिमी ताकतों- ब्राज़ील, चीन और भारत- की ख़ासियत है क्योंकि अमेरिका के संबंध में अपने नरम संतुलन (सॉफ्ट बैलेंसिंग) में वो गैर-सैन्य साधनों पर निर्भर होते हैं.[33] इस परिभाषा का उपयोग करते हुए मैटलिन और विगेल ने भू-अर्थशास्त्र की रूप-रेखा में सॉफ्ट बैलेंसिंग वेरिएबल को शामिल किया है.[34] राजनीतिक वैज्ञानिक पेप क्षेत्रीय आर्थिक गुटों को मज़बूत करने, व्यापार को मोड़ने और श्रेष्ठ या धमकी देने वाले देश की नीतियों का विरोध करने के लिए आपसी प्रतिबद्धता को समन्वित करने के गैर-सैन्य तंत्र को सॉफ्ट बैलेंसिंग की रणनीतियों में से एक के रूप में परिभाषित करते हैं.[35] इसी तरह राजनीतिक वैज्ञानिक पॉल दलील देते हैं, “सॉफ्ट बैलेंसिंग उस समय होती है जब अलग-अलग देश ख़तरा पैदा करने वाले किसी संभावित देश या उभरती हुई शक्ति को संतुलित करने के लिए एक-दूसरे के साथ आम तौर पर समझौता करते हैं या सीमित सुरक्षा समझ विकसित करते हैं.”[36] ऊपर बताई गई परिभाषा को आगे बढ़ाते हुए राजनीतिक वैज्ञानिक लारिओनोवा तर्क देती हैं कि “भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य, रणनीतिक साझेदारी या मेल-जोल अपेक्षाकृत रूप से कमज़ोर देशों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों या क्षेत्रीय नेटवर्क के माध्यम से किसी गुट में शामिल होकर वर्चस्ववादी ताकत के ख़िलाफ़ लाभ उठाने में मदद करते हैं. सरल शब्दों में कहें तो भू-राजनीतिक स्तर पर रणनीतिक साझेदारी के ज़रिए सॉफ्ट बैलेंसिंग करके अलग-अलग किरदार अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं.”[37]
हम ऊपर बताई गई अवधारणाओं का उपयोग ये तर्क देने के लिए करते हैं कि भू-आर्थिक नरम संतुलन उस समय होता है जब दो अपेक्षाकृत कमज़ोर देश एक मज़बूत या वर्चस्ववादी शक्ति का मुकाबला करने के लिए आर्थिक, तकनीकी एवं दूसरे गैर-सैन्य साधनों का सहयोग एवं तालमेल करते हैं और लाभ उठाते हैं. हालांकि भारत के मामले में ताइवान के साथ उसकी साझेदारी नरम संतुलन से आगे तक जाती है. भारत ने आर्थिक, तकनीकी एवं अन्य द्विपक्षीय भागीदारी के माध्यम से अपनी रणनीतिक जगह बनाने की कोशिश की है जो कि वर्चस्ववादी देश के प्रभाव से स्वतंत्र हैं. वर्चस्ववादी देश की भूमिका विविधीकरण या पुनर्संतुलन के लिए शुरुआती गति को प्रेरित करने तक सीमित है. इसलिए ताइवान के साथ भारत की भागीदारी एक व्यापक रणनीतिक आकलन को दर्शाती है जिसे विकास से जुड़ी प्राथमिकताओं, आर्थिक हितों और अधिक रणनीतिक स्वायत्तता के लिए इच्छा ने आकार दिया है.
हालांकि रणनीतिक क्षेत्र में भारत-चीन और चीन-ताइवान संबंध अभी भी भारत-ताइवान साझेदारी के महत्वपूर्ण प्रेरक हैं. लेकिन वो एकमात्र निर्णायक कारक नहीं हैं क्योंकि भारत ने चीन के ख़िलाफ़ ताइवान कार्ड का उपयोग किसी साधन या टकरावपूर्ण ढंग से करने से परहेज़ किया है. ताइवान को चीन के विरुद्ध इस्तेमाल करने- जो कि भागीदारी के पैमाने, दायरे और प्रकृति के कारण संभव नहीं है- के बदले भारत रणनीतिक अस्पष्टता बनाए रखते हुए आपसी लाभ के क्षेत्रों में ताइवान के साथ संबंध बनाता है.
इस दोहरे रास्ते वाली भागीदारी- सक्रिय संबंध और चयनात्मक भू-आर्थिक नरम संतुलन- ने लंबे समय तक भारत-ताइवान भागीदारी के लिए व्यावहारिक बुनियाद का निर्माण किया है. आगे आने वाले खंड सहयोग के प्रमुख स्तंभों, विशेष रूप से आर्थिक और डिजिटल क्षेत्रों में, की पड़ताल करते हैं. ये लेख तालमेल के संभावित क्षेत्रों का भी पता लगाता है जैसे कि चीन के सूचना युद्ध के ख़िलाफ़ सहयोग, सैन्य लामबंदी और एक विषय के रूप में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की समीक्षा. इसके बाद इस रूप-रेखा के भीतर भागीदारी की सीमाओं पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही नीतिगत सिफारिशें भी की गई हैं. ये सभी क्षेत्र मिलकर भारत-ताइवान संबंधों की उभरती रूप-रेखा को रेखांकित करते हैं जिसकी जड़ में न केवल क्षेत्रीय शक्ति की विषमता को लेकर साझा चिंताएं हैं बल्कि तकनीकी परस्पर निर्भरता और आर्थिक एवं रणनीतिक दूरदर्शिता द्वारा निर्धारित मिलते हित भी हैं.
व्यापार, डिजिटल और तकनीकी भागीदारी में बढ़ोतरी भारत-ताइवान संबंध की बुनियाद है. आर्थिक लाभ उठाने, सप्लाई चेन को मज़बूत करने और उच्च स्तरीय मैन्युफैक्चरिंग, सेमीकंडक्टर, डिजिटल इनोवेशन और बाज़ार विस्तार में मददगार शक्तियों का फायदा उठाने के लिए दोनों देशों ने लगातार अपनी साझेदारी बढ़ाई है. ये तालमेल आपसी सामर्थ्य और विकास के एक नए चरण को आगे बढ़ा रहा है.
पिछले दशक में भारत-ताइवान आर्थिक विचार-विमर्श में काफी तेज़ी आई है. भारत, ताइवान का 17वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और निर्यात के लिए 14वां सबसे बड़ा गंतव्य है.[38] दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2006 के 2 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 10.9 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. इस तरह 18 वर्षों में 545 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.[39]
तालिका 2: वर्ष के हिसाब से भारत-ताइवान व्यापार
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वर्ष |
ताइवान को भारत का निर्यात (अरब अमेरिकी डॉलर) |
ताइवान से भारत का आयात (अरब अमेरिकी डॉलर) |
कुल व्यापार (अरब अमेरिकी डॉलर) |
व्यापार संतुलन (अरब अमेरिकी डॉलर) |
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2015–2016 |
1.4 |
3.3 |
4.7 |
-1.9 |
|
2016–2017 |
2.2 |
3.1 |
5.3 |
-0.9 |
|
2017–2018 |
2.15 |
3.9 |
6.05 |
-1.75 |
|
2018–2019 |
2.6 |
4.5 |
7.1 |
-1.9 |
|
2019–2020 |
1.7 |
4 |
5.7 |
-2.3 |
|
2020–2021 |
1.6 |
4 |
5.6 |
-2.4 |
|
2021–2022 |
2.7 |
6.2 |
8.9 |
-3.5 |
|
2022–2023 |
2.6 |
8.3 |
10.9 |
-5.7 |
स्रोत: वाणिज्य विभाग, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार; ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन[40]
भारत द्वारा ताइवान को किए जाने वाले सबसे बड़े निर्यातों में कोयला, लोहा, तांबा एवं इस्पात जैसे खनिज और अयस्क; रिफाइंड पेट्रोलियम, नेफ्था एवं डेरिवेटिव जैसे पेट्रोलियम उत्पाद; मक्का, गेहूं, लाल मिर्च एवं हल्दी जैसे कृषि उत्पाद; ऑर्गेनिक केमिकल; प्लास्टिक; रबर, वस्त्र उत्पाद; कीमती पत्थर और चुनिंदा औद्योगिक उपकरण शामिल हैं.[41] ताइवान से किए जाने वाले आयात में सेमीकंडक्टर, इंटिग्रेटेड सर्किट एवं प्रिंटेड सर्किट बोर्ड जैसे इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट; औद्योगिक मशीनरी एवं टूल; प्लास्टिक एवं पॉलिमर; इलेक्ट्रॉनिक एवं औषधीय उपयोग के लिए ऑप्टिकल उपकरण; पेट्रोकेमिकल, औद्योगिक केमिकल एवं डाई; ऑटोमोटिव कंपोनेंट, मशीनरी के लिए लोहा एवं इस्पात के उत्पाद; दूरसंचार उपकरण जैसे स्मार्टफोन, नेटवर्किंग गियर एवं कम्युनिकेशन डिवाइस, सोलर पैनल और मेडिकल डिवाइस शामिल हैं.[42]
तालिका 3: भारत-ताइवान निर्यात एवं आयात
|
भारत से ताइवान को निर्यात |
व्यापार का मूल्य (मिलियन अमेरिकी डॉलर) |
कुल निर्यात का प्रतिशत (%) |
ताइवान से भारत का आयात |
व्यापार का मूल्य (मिलियन अमेरिकी डॉलर) |
कुल आयात का प्रतिशत (%) |
|
नेफ्था, खनिज ईंधन |
1,492.84 |
45.8 |
प्राथमिक रूपों में पॉली (विनाइल क्लोराइड) |
386.57 |
10.21 |
|
एल्युमीनियम, मिश्रित नहीं, कच्चा |
162.65 |
4.99 |
पॉलियामाइड 6 (नायलॉन 6) |
148.39 |
3.92 |
|
फेरोक्रोमियम (4% से ज़्यादा कार्बन) |
119.26 |
3.66 |
टेरेफ्थेलिक एसिड |
139.36 |
3.68 |
|
जिंक, मिश्रित नहीं (99.99% या ज़्यादा) |
85.6 |
2.63 |
सोलर सेल |
106.16 |
2.8 |
|
फेरो-सिलिकोमैंगनीज़ |
62.69 |
1.92 |
फ्लैट-रोल्ड एलॉय स्टील, कोल्ड-रोल्ड |
97.91 |
2.59 |
|
पी-ज़ाइलीन |
45.18 |
1.39 |
अन्य इलेक्ट्रॉनिक इंटिग्रेटेड सर्किट |
71.12 |
1.88 |
|
फ्रोज़ेन मछली, कीमा (सुरीमी) |
43.35 |
1.33 |
डेटा प्रोसेसिंग मशीनों के लिए पुर्जे/एसेसरीज़ |
65.49 |
1.73 |
|
संचार उपकरण (वायर्ड/वायरलेस नेटवर्क) |
38.34 |
1.18 |
मशीनिंग सेंटर |
52.23 |
1.38 |
|
गैर-औद्योगिक हीरे, जिन पर काम हुआ है लेकिन उन्हें लगाया नहीं गया है |
38.31 |
1.18 |
डिजिटल स्टिल/वीडियो कैमरा |
51.13 |
1.35 |
|
रिफाइंड कॉपर, कैथोड और सेक्शन |
38.3 |
1.18 |
डेटा रिसेप्शन, कन्वर्ज़न, ट्रांसमिशन के लिए मशीनें |
49.54 |
1.31 |
स्रोत: भारत-ताइपे एसोसिएशन[43]
दोनों देश दोहरा कराधान निवारण समझौता (डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट), सीमा शुल्क पारस्परिक सहायता समझौता (कस्टम्स म्यूचुअल असिस्टेंस एग्रीमेंट), ATA कार्नेट प्रोटोकॉल, कृषि सहयोग समझौता, उद्योग संवर्धन समझौता (इंडस्ट्री प्रमोशन एग्रीमेंट), बौद्धिक संपदा समझौता (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अंडरस्टैंडिंग), श्रम गतिशीलता समझौता (लेबर मोबिलिटी एग्रीमेंट) और सेमीकंडक्टर हब स्थापित करने पर चर्चा जैसी वाणिज्यिक परियोजनाओं में भी शामिल रहे हैं.[44]
इन आपसी पहल के बावजूद साल 2000 से 2023 तक भारत में ताइवान का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) महज़ 932.55 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है.[45] इसकी तुलना में तनाव और संकटों के बावजूद 1990 से 2023 तक चीन के लिए ताइवान FDI के सबसे बड़े स्रोतों में से एक रहा है.[46] 80 के दशक के अंत से चीन में ताइवान ने कुल मिलाकर लगभग 200 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया है.[47] ताइवान की कंपनियों ने चीन के आर्थिक विकास, विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सर्विस सेक्टर में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. हाल के दिनों में ये रुझान धीमा हुआ है और 2020 से 2023 के बीच ताइवान के कुल बाहरी FDI का 5 प्रतिशत से भी कम चीन में गया है.[48] इसी अवधि के दौरान भारत और वियतनाम ने सामूहिक रूप से ताइवान के कुल बाहरी FDI प्रोजेक्ट का लगभग एक-चौथाई हिस्सा हासिल किया है.[49]
तालिका 4: चीन और भारत में ताइवान का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI)
|
वर्ष |
चीन में FDI (अरब अमेरिकी डॉलर) |
भारत में FDI (मिलियन अमेरिकी डॉलर) |
|
1990–1999 |
8 |
5 |
|
2000–2010 |
100 |
10 |
|
2011 |
15 |
16 |
|
2012–2015 |
20 |
20 |
|
2016 |
10 |
23 |
|
2017–2020 |
5 |
50 |
|
2021 |
2 |
1,200 |
|
2022 |
2 |
1,300 |
|
2023 |
1.5 |
1,000 |
स्रोत: आर्थिक मामलों का मंत्रालय, रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान)[50]
राष्ट्रपति पद पर DPP का कब्ज़ा बने रहने के साथ भारत को उम्मीद है कि ताइवान की कंपनियां चीन से दूरी बनाए रखेंगी और भारत में विस्तार जारी रखेंगी. भारत में ताइवान की लगभग 228 कंपनियां हैं जिन्होंने 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है जिससे 1,70,000 नौकरियों का सृजन हुआ है.[51] द्विपक्षीय आर्थिक भागीदारी लगातार बढ़ रही है जो अनेक समझौतों पर आधारित है. इनमें व्यापार एवं वाणिज्य पर सितंबर 2018 का समझौता ज्ञापन (MoU); शिक्षा, अकादमिक आदान-प्रदान एवं सांस्कृतिक सहयोग पर फरवरी 2020 का MoU; विज्ञान एवं तकनीक पर अप्रैल 2023 का MoU; बौद्धिक संपदा अधिकार पर मई 2022 का MoU; पर्यटन को बढ़ावा देने पर जनवरी 2024 का MoU; पारंपरिक औषधि पर जून 2024 का MoU; और हवाई सेवा कनेक्टिविटी पर जुलाई 2024 का MoU शामिल हैं. इसके अलावा, हाल के दिनों में प्रवासी कामगारों को लेकर एक समझौता ज्ञापन और संभावित भारत-ताइवान मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को लेकर चर्चा आर्थिक संबंधों के और प्रगाढ़ होने का संकेत देती हैं.[52] ये घटनाक्रम दोनों पक्षों के द्वारा द्विपक्षीय सहयोग के दायरे को व्यापक बनाने और आर्थिक सामर्थ्य बढ़ाने के लिए किए गए ठोस प्रयास को दर्शाते हैं.
भारत-ताइवान संबंधों में तकनीकी सहयोग एक और महत्वपूर्ण विस्तार है. 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेमीकंडक्टर नीति की घोषणा की जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा.[53] भारत अपने स्वदेशी सेमीकंडक्टर उद्योग में फैब्रिकेशन सुविधाओं, ATMP (मोडिफाइड असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग एंड पैकेजिंग यूनिट्स) और OSAT (आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्टिंग) सुविधाओं के विकास और डिज़ाइन के लिए विदेशी निवेश चाहता है. सेमीकंडक्टर नीति के तहत भारत में सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन स्थापित करने वाले निवेशकों को प्रोजेक्ट की लागत का 50 प्रतिशत तक वित्तीय समर्थन मुहैया कराया जाता है.[54] इसके अलावा, गुजरात जैसी प्रांतीय सरकारें प्रोजेक्ट की लागत में 20 प्रतिशत अतिरिक्त योगदान करती हैं.[55]
सेमीकंडक्टर उद्योग में ताइवान एक अग्रणी देश है जो दुनिया के 63.8 प्रतिशत सेमीकंडक्टर का निर्माण करता है. उसके 7 नैनोमीटर (nm) से छोटे अत्याधुनिक इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) ने वैश्विक बाज़ार में 70 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा जमाया, जबकि उसकी 2 nm प्रोसेस टेक्नोलॉजी- जो दुनिया में सबसे आधुनिक है- ने 2022 में बाज़ार का 59 प्रतिशत हिस्सा हासिल किया.[56] ताइवान के नेतृत्व का लक्ष्य अपने सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ाकर विविधता लाना और आधुनिक, टिकाऊ सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन बनाने के लिए भारत जैसे समान विचार वाले साझेदारों के साथ अंतर्राष्ट्रीय तालमेल को बढ़ावा देना है.[57]
भारत-ताइवान संबंधों में तकनीकी सहयोग एक और महत्वपूर्ण विस्तार है. 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेमीकंडक्टर नीति की घोषणा की जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा.
भारत का पहला वाणिज्यिक सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कारपोरेशन (PSMC) और भारत की टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक ज्वाइंट वेंचर है. 91,000 करोड़ रु. के इस ज्वाइंट वेंचर को फरवरी 2024 में मंज़ूरी दी गई थी.[58] इसके अलावा दुनिया में सेमीकंडक्टर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) ने ग्राहकों को सहायता प्रदान करने के लिए बैंगलोर में एक ऑफिस खोला है और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IIT) से हर साल सक्रिय रूप से इंजीनियर्स की भर्ती करती है.[59] साथ ही, 2023 से ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन भारत में सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित करने के लिए TSMC और जापान की TMH के साथ बातचीत कर रही है.[60] ये बातचीत भारत की धातु से लेकर तेल तक के व्यवसाय में शामिल कंपनी वेदांता के साथ 19.5 अरब अमेरिकी डॉलर के सेमीकंडक्टर ज्वाइंट वेंचर से फॉक्सकॉन के अलग होने के बाद चल रही है.[61] फॉक्सकॉन को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार ने उसके चेयरमैन यंग लू को पद्म भूषण से भी सम्मानित किया.[62] अब ताइवान की कंपनी और भारत की हिंदुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड (HCL) ग्रुप सेमीकंडक्टर आउटसोर्स्ड असेंबली एंड टेस्टिंग यूनिट स्थापित करने के लिए एक ज्वाइंट वेंचर की योजना बना रही हैं.[63] फॉक्सकॉन परियोजना में 37.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर रही है और उसके पास 40 प्रतिशत हिस्सा रहेगा.[64] इसी तरह, ताइवान की चौथी सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनी मीडियाटेक के भारत में कई सेमीकंडक्टर रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर हैं और वो उन्नत चिप डिज़ाइन के लिए स्थानीय प्रतिभा में भारी निवेश करती है.[65] वहीं यूनाइटेड माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन भी भारत में एक फैब्रिकेशन लैब स्थापित करने के लिए भारतीय सरकार और कई भारतीय साझेदारों के साथ बातचीत में लगी है और माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने जून 2023 में भारत में 2.75 अरब अमेरिकी डॉलर के नए ATMP की घोषणा की.[66]
भारत सरकार के द्वारा इस प्रयास का नेतृत्व करने के साथ भारत ताइपे एसोसिएशन (ITA), इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन और SEMI ने बातचीत को बढ़ावा देने और भारत एवं ताइवान के सेमीकंडक्टर उद्योगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहन देने के लिए मई 2024 में संयुक्त रूप से एक सेमीकंडक्टर फोरम का आयोजन किया.[67] 2021 के “इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन” के तहत भारत सरकार ने देश भर के 104 विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ साझेदारी की ताकि उनके सेमीकंडक्टर पाठ्यक्रम में सुधार किया जा सके और विशेष कोर्स तैयार किया जा सके. इसमें ताइवान के 15 बड़े विश्वविद्यालयों के साथ तालमेल शामिल है.[68] मार्च 2025 में ताइवान के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सू ज़ू-चिएन ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में दोनों देशों के बीच सेमीकंडक्टर सहयोग को मज़बूत करने और चीन पर भारत की निर्भरता को कम करने में मदद देने के लिए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का प्रस्ताव रखा.[69]
ISM और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना जैसी अपनी निवेश समर्थक नीतिगत पहल के साथ भारत ख़ुद को ताइवान के सेमीकंडक्टर उद्योग के विस्तार के लिए एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित कर रहा है. ये तकनीकी सहयोग भारत और ताइवान- दोनों के लिए सकारात्मक परिणाम देने वाला है क्योंकि इसके माध्यम से भारत उन्नत सेमीकंडक्टर तकनीक हासिल कर रहा है, निवेश आकर्षित कर रहा है, रोज़गार सृजन कर रहा है और विविधीकरण के ज़रिए आयात पर निर्भरता कम कर रहा है. वहीं ताइवान को भारत के विशाल बाज़ार, कुशल कामगारों और विविध उत्पादन आधार तक पहुंच का लाभ मिल रहा है जिससे भू-राजनीतिक जोखिम कम होते हैं.
हालांकि सेमीकंडक्टर उद्योग के भीतर तालमेल तकनीकी और डिजिटल क्षेत्रों में भारत और ताइवान के बीच बढ़ते सहयोग का केवल एक पहलू है. 2019 में दोनों देशों ने नेशनल चुंग चेंग यूनिवर्सिटी, चियाई, ताइवान; भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रोपड़, पंजाब; और चितकारा यूनिवर्सिटी, पंजाब में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) के साझा अनुसंधान केंद्र की स्थापना की.[70] इन पहलों के माध्यम से भारत और ताइवान मैन्युफैक्चरिंग, फिनटेक, स्मार्ट सिटी, इमेज एनालिसिस, टेक्स्ट माइनिंग और बिग डेटा में AI और ML एप्लिकेशन को लेकर अकादमिक स्तर और अकादमिक से उद्योग स्तर पर तालमेल को बढ़ावा देने का लक्ष्य रख रहे हैं.
दोनों देश अपने हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर अनुकूलता का भी पता लगा रहे हैं क्योंकि 5G हार्डवेयर (चिपसेट, बेस स्टेशन) में ताइवान का दबदबा भारत की बाज़ार मांग और विशेषज्ञता के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है. ये तालमेल संभावित ज्वाइंट वेंचर में साफ दिखता है जैसे कि मीडियाटेक भारत की दूरसंचार कंपनियों जियो एवं एयरटेल को 5G चिपसेट की सप्लाई कर रही है जो ताइवान के कंपोनेंट से लैस नोकिया और एरिकसन के उपकरण पर निर्भर हैं.[71] इसके अलावा, दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा की तकनीकों, रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, बायोटेक, STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग एंड मैथमेटिक्स), स्टार्टअप इकोसिस्टम, वेंचर कैपिटल फंड्स, स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग और अन्य में सहयोग करते हैं. तालिका 5 में तकनीकी और डिजिटल क्षेत्रों में हाल के सभी तालमेल के बारे में बताया गया है.
तालिका 5: तकनीकी और डिजिटल कार्यक्षेत्रों में भारत-ताइवान का तालमेल
|
क्षेत्र |
परियोजना/पहल |
विवरण |
तिथि |
|
सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग |
टाटा-PSMC- हाईमैक्स गठबंधन
|
टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने भारत के गुजरात में एक सेमीकंडक्टर फेब्रिकेशन प्लांट की स्थापना के लिए ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कारपोरेशन (PSMC) और हाईमैक्स टेक्नोलॉजी के साथ साझेदारी की जो डिस्प्ले और अल्ट्रालो-पावर AI सेंसिंग प्रोडक्ट पर ध्यान केंद्रित करेगा. |
मार्च 2025 |
|
स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग |
टाटा-पेगाट्रॉन आईफोन प्लांट अधिग्रहण |
चेन्नई के नज़दीक आईफोन बनाने वाले प्लांट का प्रबंधन करने वाली पेगाट्रॉन टेक्नोलॉजी इंडिया में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने 60% हिस्सा ख़रीदा और इस तरह एपल के एक सप्लायर के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत की है. |
जनवरी 2025
|
|
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस |
AI आधारित महामारी रोकथाम प्रणाली |
नेशनल चुंग चेंग यूनिवर्सिटी (ताइवान) और SRM इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (भारत) ने महामारी की रोकथाम में सहायता के लिए एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जिसकी विशेषता शरीर की ऑटोमेटिक निगरानी, चेहरे की पहचान और सामाजिक संपर्क का विश्लेषण है. |
मार्च 2021 |
|
इलेक्ट्रिक वाहन (EV) |
गोगोरो-बेलराइज़ बैटरी स्वैपिंग (अदला-बदली) नेटवर्क |
गोगोरो ने बैटरी चार्जिंग और स्वैपिंग के बुनियादी ढांचे में 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश करने के लिए बेलराइज़ इंडस्ट्री और महाराष्ट्र की राज्य सरकार के साथ साझेदारी की जिससे भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उपयोग बढ़ सके. |
जनवरी 2023
|
|
नवीकरणीय ऊर्जा |
सौर ऊर्जा तालमेल |
भारत और ताइवान ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में चीन के वर्चस्व का विकल्प तैयार करने के लिए सौर ऊर्जा तकनीकों में साझेदारी का पता लगाया. |
नवंबर 2024 |
|
रोबोटिक्स और ऑटोमेशन |
ताइवान एक्सीलेंस इनिशिएटिव्स |
ताइवान की कंपनियों ने ऑटोमेशन और स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग सॉल्यूशंस पर ध्यान केंद्रित करके भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के साथ तालमेल और इनोवेशन को लेकर प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया. |
अगस्त 2024 |
|
बायोटेक्नोलॉजी |
बायोटेक और फार्मा तालमेल |
ग्लोबल लाइफ साइंस बाज़ार में अपनी स्थिति बढ़ाने के लिए ताइवान ने भारत के साथ तालमेल की इच्छा जताई जिसका लक्ष्य फार्मास्यूटिकल और बायोटेक्नोलॉजी में चीन के दबदबे का मुकाबला करना है. |
मार्च 2025 |
|
STEM शिक्षा |
स्कॉलरशिप और अकादमिक अवसर |
भारत-ताइवान साझा रिसर्च- द्विपक्षीय विज्ञान एवं तकनीकी सहयोग कार्यक्रम के तहत AI, जैव तकनीक, हरित ऊर्जा और एयरोस्पेस में तालमेल वाली परियोजनाएं. IIT गुवाहाटी में ताइवान शिक्षा केंद्र- इसकी स्थापना STEM एवं तकनीकी उन्नति पर ध्यान केंद्रित करते हुए अकादमिक एवं उद्योग तालमेल बढ़ाने के लिए की गई. उच्च शिक्षा प्रदर्शनी और नौकरी मेला- STEM शिक्षा और अनुसंधान के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए ताइवान के विश्वविद्यालयों ने भारतीय छात्रों के साथ भागीदारी की. |
2024 |
|
स्टार्टअप इकोसिस्टम |
भारत-ताइवान स्टार्टअप ब्रिज |
ये दोनों देशों के स्टार्टअप इकोसिस्टम के बीच गहरे तालमेल को बढ़ावा देने की पहल है ताकि स्टार्टअप, निवेशक, इनक्यूबेटर और कंपनियां वैश्विक स्तर पर जुड़ने और विस्तार करने में सक्षम हों. |
चालू |
|
वेंचर कैपिटल |
याली कैपिटल डीप टेक वेंचर फंड |
याली कैपिटल ने 810 करोड़ रु. के वेंचर फंड की शुरुआत की ताकि भारत में शुरुआती चरण के डीप टेक स्टार्टअप का समर्थन किया जा सके. ये डीप टेक निवेश में बढ़ती दिलचस्पी को दर्शाता है. |
जुलाई 2024 |
स्रोत: अलग-अलग ओपन सोर्स का उपयोग करके लेखक का अपना
जैसे-जैसे ताइवान और भारत अलग-अलग मोर्चों पर अपनी साझेदारी बढ़ा रहे हैं, वैसे-वैसे पारंपरिक आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों से परे तालमेल के नए रास्ते उभर रहे हैं. इनमें दुष्प्रचार का मुकाबला करना, चीन की सैन्य लामबंदी की साझा समझ को बढ़ाना, मंदारिन भाषा के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना और अंतरिक्ष में सहयोग की संभावना का पता लगाना शामिल हैं. दोनों देश विशेषज्ञता को साझा करने और आपसी क्षमताओं का निर्माण करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं.
राजनीतिक वैज्ञानिक नाइहन और रीफलर के अनुसार, “दुष्प्रचार में गलत या भ्रामक सूचना शामिल होती है जिसे जान-बूझकर गुमराह करने के इरादे के बिना साझा किया जाता है, ऐसा अक्सर इसलिए किया जाता है क्योंकि साझा करने वाला व्यक्ति इसे सच मानता है.”[72] इसी तरह राजनीतिक वैज्ञानिक बेंकलर, फारिस और रॉबर्ट्स दुष्प्रचार की परिभाषा इस तरह देते हैं, “गलत या गुमराह करने वाली सूचना जो धोखा देने और हेरफेर करने के लिए जान-बूझकर तैयार की जाती है और फैलाई जाती है.”[73]
2003 में चीन ने “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए राजनीतिक काम के दिशानिर्देश” में संशोधन किया. इस संशोधित संस्करण में चीन के तीन युद्धों के बारे में बताया गया: जनमत युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध और कानूनी युद्ध.[74] इन अवधारणाओं में हाल के दिनों में राजनीतिक युद्ध, बाहरी दुष्प्रचार युद्ध और ज्ञान संबंधी क्षेत्र में युद्ध को जोड़ा गया है. [e]
द साइंस ऑफ मिलिट्री स्ट्रेटजी, जो कि PLA अधिकारियों के लिए एक पाठ्यपुस्तक है, का 2020 का ताज़ा संस्करण युद्ध की क्षमता में सुधार करने के लिए ज्ञान संबंधी युद्ध (कॉग्निटिव वॉरफेयर) की चर्चा ताकत बढ़ाने वाले के रूप में करता है.[75] ये सभी अवधारणाएं मिलकर चीन का प्रभाव अभियान (इनफ्लुएंस ऑपरेशन) बनाती हैं. राजनीतिक वैज्ञानिक कानिया बताती हैं कि इनका प्रयोग- शांतिकाल और युद्धकाल दोनों के दौरान- मुख्य रूप से प्रचलित संवाद को नियंत्रित करने और सोच को प्रभावित करने के लिए इस तरह से किया जाता है कि चीन के हितों को बढ़ाया जा सके.[76] इनका इस्तेमाल दुश्मन के द्वारा प्रतिक्रिया देने की क्षमता को सीमित करते हुए उसके बर्ताव से जुड़े पैटर्न को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है.[77] इन्फ्लुएंस ऑपरेशन लंबे समय से चीन के द्वारा दबाव बनाने के तरीके का हिस्सा रहा है जिसका संदर्भ माओत्से तुंग के द्वारा लिखे गए साहित्य में मिलता है और चीन के गठन के बाद माओ युग से ये व्यवहार में है.[78]
तालिका 6: आज के संदर्भ में माओ युग का सूचना युद्ध
|
आधुनिक सूचना युद्ध की धारणा |
माओ युग का समकक्ष
|
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मनोवैज्ञानिक युद्ध |
विचार थोपना, स्ट्रगल सेशन (क्रांति के ख़िलाफ़ विचार रखने वालों का सार्वजनिक रूप से अपमान), सामूहिक सभाएं, राजनीतिक विचार थोपना, मनोबल युद्ध |
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जनमत युद्ध |
दुष्प्रचार अभियान, रेड गार्ड्स, दाज़िबाओ (राजनीतिक राय व्यक्त करने वाला बड़े अक्षरों में लिखा दीवार पोस्टर) |
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कानूनी युद्ध |
वैचारिक ठप्पा लगाना, कानून पर पार्टी का नियंत्रण |
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साइबर/ज्ञान संबंधी (कॉग्निटिव) युद्ध |
एकीकृत विचार नियंत्रण, फिर से शिक्षा |
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रणनीतिक संदेश |
पीकिंग रिव्यू (साप्ताहिक मैगज़ीन), “साम्राज्यवाद विरोधी” रूप-रेखा |
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सूचना विषमता |
भौतिक कमज़ोरी की भरपाई करने के लिए समय, जगह और विचारधारा का उपयोग |
|
सांस्कृतिक हथियारीकरण |
युद्ध लड़ने के उपकरण के रूप में भावनाओं और प्रतीकों का उपयोग |
स्रोत: अलग-अलग ओपन सोर्स का उपयोग करके लेखक का अपना [79]
हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि शी जिनपिंग ने चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन का विस्तार करने के लिए माओ युग की युद्धनीति अपनाई है जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय चर्चा को आकार देना और अपनी सीमा से परे असंतोष को रोकना है.[80] ताइवान संभवत: चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में से एक हैं. ऐसे ऑपरेशन में चीन के सरकारी और CCP के संस्थानों का नेटवर्क जुड़ा होता है जिनमें CCP के संपर्क विभाग के साथ-साथ ताइवान अफेयर्स ऑफिस ऑफ द स्टेट काउंसिल, CCP का यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट, PLA का पॉलिटिकल वर्क ब्यूरो एवं नवगठित साइबर फोर्स, सेंट्रल प्रोपेगेंडा डिपार्टमेंट, कम्युनिस्ट यूथ लीग, सेंट्रल फॉरेन अफेयर्स कमीशन और सेंट्रल लीडिंग ग्रुप फॉर पब्लिसिटी, आइडियोलॉजी एंड कल्चरल वर्क शामिल हैं.
हालांकि कुछ गतिविधियों के बारे में पता चला है कि उन्हें प्राइवेट कंपनियों या हैकिंग सिंडिकेट ने अंजाम दिया है जो संभवत: सरकार द्वारा प्रायोजित हैं या उन्हें पहले की PLA स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLA SSF) (मौजूदा समय में PLA साइबर फोर्स) की किसी यूनिट का समर्थन हासिल है.[81] इन गतिविधियों में संगठित रूप से व्यक्तिगत हमले, मुख्यधारा एवं ऑनलाइन मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार फैलाना और चुनाव में हस्तक्षेप शामिल हैं. उदाहरण के लिए, ताइवान की डबलथिंक लैब्स ने 2020 और 2024 के चुनावों के दौरान सिलसिलेवार ढंग से चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन के बारे में बताया है जिसकी वजह से “ताइवान के मार्शल लॉ का अतीत, लोकतंत्र की विफलता, DPP की अविश्वसनीयता, साई इंग-वेन की नाकामियां, चीन पर ताइवान की निर्भरता और अमेरिकी क्लाइंट के रूप में ताइवान की स्थिति” जैसे नैरेटिव को आगे बढ़ाया गया.[82] इसके अलावा, 2024 के चुनावों के दौरान 300 पन्नों की एक ई-किताब, जिसका शीर्षक द सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ साई इंग-वेन था, सोशल मीडिया और ई-मेल के माध्यम से प्रसारित होने लगी जिसमें राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ निंदनीय और झूठे आरोप थे कि उन्होंने यौन संबंधों के ज़रिए सत्ता हासिल की है.[83]
ताइवान के बाद भारत और अमेरिका चीन के दुष्प्रचार अभियानों के प्रमुख पीड़ितों में से हैं.[84] ख़बरों से पता चलता है कि चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर झूठी बातें फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है, भारत के संघर्ष से ग्रस्त पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में सामाजिक तनाव को बढ़ाने की कोशिश की है और 2024 के आम चुनाव एवं उसके बाद के प्रांतीय चुनावों के दौरान भारतीय सरकार एवं सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ख़िलाफ़ अभियान चलाया है. [85]
इसके अलावा, ताइवान में प्रवासी भारतीयों को भी निशाना बनाया गया है. 2024 के भारत-ताइवान श्रम गतिशीलता MoU से जुड़ी बातचीत के दौरान और उसके बाद चीन के दुष्प्रचार अभियानों ने भारतीय कामगारों के बारे में नुकसानदेह रूढ़िवादी सोच को प्रसारित किया. इसके जवाब में ताइवान के विदेश मंत्रालय और श्रम मंत्रालय ने सार्वजनिक बयान जारी कर चीन के दुष्प्रचार अभियानों को उजागर किया और उनकी निंदा की.[86]
इस तरह, चीन के दुष्प्रचार युद्ध के ख़िलाफ़ लड़ाई निकट और लंबे समय में भारत और ताइवान के लिए मेल-जोल का एक बड़ा संभावित क्षेत्र है. ताइवान ने चीन के दुष्प्रचार अभियानों का मुकाबला करने के लिए एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण विकसित किया है जिसमें सरकारी संस्थानों का एक नेटवर्क शामिल है. इस नेटवर्क में राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय, राष्ट्रपति कार्यालय, विदेश मामलों का मंत्रालय और दुष्प्रचार अभियान की प्रकृति के अनुसार दूसरे महत्वपूर्ण मंत्रालय शामिल हैं. इसकी मदद सक्रिय रूप से सिविल सोसायटी नेटवर्क करता है जैसे कि ताइवान फैक्टचेक सेंटर, डबलथिंक लैब्स और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी प्लेटफॉर्म. इसके अलावा, ताइवान प्रांतीय, स्कूल और संस्थानों के स्तर पर जागरूकता फैलाने के लिए कठोर सार्वजनिक शिक्षा अभियान चलाता है. दूसरी तरफ चीन के इन्फ्लूएंस अभियानों का मुकाबला करने के लिए भारत अभी भी एक इकोसिस्टम विकसित करने का काम कर रहा है जिसमें सरकारी संस्थान, कानूनी रूप-रेखा, साइबर सुरक्षा एवं रक्षा और सार्वजनिक जागरूकता उपाय शामिल हैं. देश के आकार और जनसंख्या के साथ-साथ विशाल डिजिटल इकोसिस्टम की वजह से भारत सरकार को अपने सामने मौजूद चुनौती के बारे में अच्छी तरह से पता है.
2024 में भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दुष्प्रचार अभियानों के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.[87] इससे पहले, दिसंबर 2023 में ताइवान, भारत और अमेरिका ने वैश्विक सहयोग और प्रशिक्षण की रूप-रेखा के तहत दिल्ली में साइबर सुरक्षा पर एक वर्कशॉप का आयोजन किया जिसमें इन चुनौतियों से निपटने की प्रतिबद्धता दिखाई गई.[88] हालांकि भारत और ताइवान के बीच सरकार, संस्थागत, सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर सहयोग की अपार संभावना और आवश्यकता है. अंतर्राष्ट्रीय दुष्प्रचार और गलत सूचना युद्ध के अभियानों के ख़िलाफ़ भारत, ताइवान और दूसरे क्वाड देशों के द्वारा संयुक्त रूप से एक साझा रणनीतिक रूप-रेखा विकसित करने की आवश्यकता है. इसमें कम-से-कम सार्वजनिक और निजी संस्थानों में साझा उपकरणों, संसाधनों और वास्तविक समय पर सूचना के माध्यम से सामर्थ्य बनाने और दुष्प्रचार का पता लगाने, फर्ज़ी कंटेंट के बारे में बताने एवं उनके स्रोत का पता लगाने के लिए मिलकर AI टूल को विकसित करना शामिल किया जा सकता है.
ताइवान अपनी मंदारिन भाषा की क्षमताओं और वर्षों से चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन के ख़िलाफ मज़बूत सुरक्षा के कारण इसमें फिट बैठता है. इसके विपरीत, भारत के पास एक विशाल लोकतांत्रिक डिजिटल इकोसिस्टम, गहरी तकनीकी प्रतिभा और एक जटिल एवं विविध सूचना के माहौल को संभालने का अनुभव है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि भारत और ताइवान- दोनों देश लगातार चीन की चालबाज़ी के शिकार रहे हैं. ऐसे में दोनों देश मिलकर ऐसी रूप-रेखा, तकनीक और नीतिगत प्रारूप बना सकते हैं जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और उससे आगे भी चीन के दुष्प्रचार और इन्फ्लुएंस ऑपरेशन के ख़िलाफ़ संस्थागत और सामाजिक सामर्थ्य को मज़बूत बनाते हैं.
केवल सूचना के अभियान में ही नहीं बल्कि हथियारों के दम पर चीन के द्वारा दादागिरी करने के मामले में भी भारत और ताइवान दो बड़े पीड़ित हैं. वैसे तो भारत और ताइवान के मामलों में थिएटर कमान, कार्यरत सैन्य सेवाएं और परिचालन के क्षेत्र अलग-अलग हैं लेकिन सेना की लामबंदी का पैटर्न- विशेष रूप से नए थिएटर कमांड की ब्रिगेड-बटालियन संरचना के तहत- और PLA के नवीनतम ‘अभियान के मूल रूप’- एकीकृत संयुक्त अभियान- समान हैं.[89] PLA की पूर्वी थिएटर कमान (ETC) चीन की ताइवान से जुड़ी किसी भी स्थिति के लिए परिचालन के स्तर पर ज़िम्मेदार है.[90] अगस्त 2022 से, जब अमेरिकी संसद की पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया था, इसने कम-से-कम पांच बार ताइवान के इर्द-गिर्द सैन्य अभ्यास करने के लिए सेना की लामबंदी की है.[91] विश्लेषक लुईस और ब्राउन ने पूरी बारीकी से बताया है कि ताइवान पर दबाव बनाने के लिए चीन ने अपनी सेना का उपयोग शुरू कर दिया है और ताइवान के वास्तविक एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन (ADIZ) [f] का लगभग 10,000 बार उल्लंघन किया है.[92] इनमें ताइवान के ADIZ में चालक दल के साथ हवाई गश्त,[93] ताइवान के चारों ओर परिक्रमा, मध्य रेखा पार करना, चालक दल रहित विमानों, जासूसी वाले गुब्बारों और ताइवान स्ट्रेट में PLA नौसेना (PLAN) के जहाज़ों का उपयोग शामिल है.[94]
इसी तरह, भारत-चीन सीमा पर पिछले दशक में कम-से-कम पांच गतिरोध हुए हैं. इनमें 2013 का देपसांग गतिरोध, 2014 का चुमार एवं देमचोक गतिरोध, 2015 का बुर्त्से गतिरोध, चीन-भारत-भूटान ट्राई-जंक्शन के पास डोकलाम पठार में 73 दिनों का गतिरोध और पूर्वी लद्दाख में अलग-अलग बिंदुओं पर 2020 से जारी गतिरोध शामिल हैं.[95] हालांकि ये महज़ कुछ प्रमुख घटनाएं हैं क्योंकि भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत की तरफ चीन की घुसपैठ में बढ़ोतरी हुई है.[96] इस लेख के लेखक के द्वारा व्यक्तिगत रूप से आंकड़ों को समझने पर पता चलता है कि पिछले 15 वर्षों में चीन ने पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्टर में 5,500 से 7,500 बार LAC का उल्लंघन किया है[g]
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि चीन के द्वारा दिसंबर 2022 से पूरे देश में राष्ट्रीय रक्षा लामबंदी कार्यालय (NDMO) की स्थापना के साथ राष्ट्रीय रक्षा लामबंदी का एक नया पैटर्न उभर रहा है जो सेना और नागरिक एजेंसियों के बीच साझा प्रयासों को एकीकृत करता है.[97] इस प्रणाली के तहत चीन शांतिकाल और युद्धकाल में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और अन्य नागरिक संसाधनों का लाभ उठाने में सक्षम होगा.[98] वैसे तो ये सुधार अभी भी शुरुआती चरण में हैं लेकिन एक बार लागू हो जाने के बाद ये चीन को ताइवान, अमेरिका या भारत के ख़िलाफ़ पूर्वी, दक्षिणी या पश्चिमी मोर्चों पर किसी संभावित तनाव की स्थिति में लोगों को संगठित करने और नागरिक एवं सैन्य संसाधनों का अधिक व्यवस्थित एवं संस्थागत रूप से उपयोग करने की अनुमति देगा.[99] अलग-अलग थिएटर और भूगोल में काम करने के बावजूद PLA के द्वारा मोर्चा खोलने से पहले की लामबंदी का पैटर्न- जो राजनीतिक एवं मनोवैज्ञानिक संकेत देने से लेकर साजो-सामान जुटाने तक, PLA, पीपुल्स आर्म्ड पुलिस (PAP), सशस्त्र मिलिशिया एवं नागरिक संसाधनों को शामिल करके सैन्य गतिविधियों और बुनियादी ढांचे की गतिविधि तक है- पूरी तरह एक नहीं तो लगभग समान होगा. वैसे तो PLA की लामबंदी के उभरते पैटर्न को लेकर बहुत अधिक अस्पष्टता बनी हुई है लेकिन ये भारत और ताइवान के लिए मेल-जोल का एक संभावित क्षेत्र है.
इसके अलावा, हाल के समय में चीन के द्वारा सैनिकों की लामबंदी को लेकर कोई जानकारी नहीं है क्योंकि चीन ने आख़िरी बड़ा युद्ध 1979 में वियतनाम के ख़िलाफ़ लड़ा था. हालांकि कोविड-19 महामारी, भारत-चीन गतिरोध और ताइवान के इर्द-गिर्द सैन्य अभ्यास के दौरान PLA के द्वारा आंशिक लामबंदी शी जिनपिंग के द्वारा सैन्य सुधार के बाद चीन के सशस्त्र बलों के संगठन, तैनाती और निरंतरता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं. ये उदाहरण शांतिकाल और लगभग युद्ध जैसी स्थिति के दौरान साजो-सामान, कमान की संरचना और नागरिक-सैन्य एकीकरण में उभरते पैटर्न के बारे में बताते हैं. भारत और ताइवान समूह सेनाओं के रोटेशन, थिएटर कमान के भीतर संयुक्त सशस्त्र ब्रिगेड के रोटेशन, सहायक ब्रिगेड की तैनाती, परिवहन नोड में बदलाव और अन्य के बारे में जानकारी साझा कर सकते हैं. PLA की लामबंदी के उभरते पैटर्न को संयुक्त रूप से सूचीबद्ध करने और अत्याधुनिक शुरुआती चेतावनी क्षमता को विकसित करने से पूर्वी और पश्चिमी- दोनों मोर्चों पर चीन की सैन्य दादागीरी के ख़िलाफ़ प्रतिरोध की क्षमता बढ़ेगी.
लामबंदी, जो कि चीन की सेना के अध्ययन का केवल एक पहलू है, के अलावा दोनों देश PLA के अभियानों के अलग-अलग पक्षों पर भी जानकारी साझा कर सकते हैं. राजनीतिक वैज्ञानिक फ्रावेल ने अपनी किताब एक्टिव डिफेंस में चीनी भाषा के साहित्य से ऐसे साक्ष्य प्रदान किए हैं जिनसे पता चलता है कि ताइवान को लगातार चीन की ‘मुख्य रणनीतिक दिशा’ के रूप में माना जाता है.[100] वो ये तर्क भी देते हैं कि भारत तेज़ी से एक महत्वपूर्ण सेकेंडरी थिएटर बन रहा है, विशेष रूप से सीमा रक्षा, प्रतिरोध और स्थानीय, ऊंचाई वाले संघर्ष की तैयारी के लिए.[101] रणनीतिक गहराई, दो मोर्चों पर दबाव और पश्चिमी घेरे को संभालने की चीन की योजना में भी भारत शामिल है.[102] इस तरह, ताइवान के लिए अस्तित्व के ख़तरे और भारत के लिए विघटनकारी-दादागीरी के ख़तरे को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है कि सरकारों, संस्थानों, अकादमिक जगत एवं नीतिगत समुदायों, सशस्त्र बलों और मीडियो को एक विषय के रूप में PLA का अध्ययन करना चाहिए लेकिन ये पहलू वर्तमान में दोनों देशों से लापता है.
चीन की सैन्य दादागिरी का सीधा निशाना होने के बावजूद भारत और ताइवान ने PLA को लेकर सीमित समझ ही विकसित की है जो काफी हद तक उनकी अपनी-अपनी क्षेत्रीय अनिश्चितता से प्रभावित है. ताइवान का ध्यान पूर्वी और दक्षिणी थिएटर कमान पर बना हुआ है जो ताइवान और दक्षिण चीन सागर विवाद पर नज़र रखती है. इसी तरह, भारत तिब्बत एवं शिनजियांग सैन्य ज़िलों के साथ पश्चिमी थिएटर कमान (WTC) के बारे में चिंतित है जो भारत-चीन सीमा विवाद के लिए ज़िम्मेदार है. इस बंटवारे ने एक सैन्य संस्थान के रूप में PLA को लेकर समग्र समझ विकसित करने में बाधा डाली है और ये काम अमेरिका को सौंप दिया गया है. इसके परिणामस्वरूप अमेरिका के द्वारा उत्पन्न PLA स्कॉलरशिप पर भारी निर्भरता ने काफी हद तक अमेरिका केंद्रित रणनीतिक विमर्श को बढ़ावा दिया है, न कि “उच्च तकनीक की स्थितियों के तहत स्थानीय युद्धों” की स्थानीय रूप से निहित समझ को जो कि 1993 से चीन की सैन्य रणनीति का सामरिक केंद्र रहा है. इसलिए संसाधनों को साझा करने और PLA को लेकर एक विषय के रूप में व्यापक रूप से, क्षेत्रीय स्तर पर बारीक समझ विकसित करने के लिए भारत और ताइवान के द्वारा संयुक्त प्रयास मेल-जोल का एक प्रमुख क्षेत्र है.
चीन पर नज़र रखने वाले भारत के अकादमिक जगत, कूटनीति और सेना के लोग चीनी भाषा अच्छी तरह से नहीं जानने के कारण अक्षम हैं. ये बाधा प्राथमिक स्रोतों तक पहुंच पर रोक लगाती है और अत्याधुनिक अनुसंधान में रुकावट डालती है जिसकी वजह से भारत की नीति बनाने की क्षमता कमज़ोर होती है और चीन को लेकर उसकी नीति प्रतिक्रियात्मक हो जाती है.[103] ताइवान भारत के नागरिकों, राजनयिकों और सैन्य समुदाय से जुड़े लोगों को चीनी भाषा का गहन प्रशिक्षण देकर इस मुद्दे का समाधान कर सकता है. लेकिन ताइवान में भाषा से जुड़े कोर्स सामान्य होते हैं जिनमें विशेष सैन्य, कूटनीतिक एवं रणनीतिक अध्ययन के साथ-साथ पार्टी-राजनीति को लेकर ख़ास ट्रेनिंग पर बहुत कम ज़ोर दिया जाता है.[104] ऐसे में ये ताइवान और भारत के लिए मेल-जोल का एक संभावित क्षेत्र है जिस पर भारत की कूटनीति, सैन्य और अकादमिक जगत से जुड़े लोग निश्चित रूप से सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) छोटे, कम लागत के उपग्रह को प्रक्षेपित करने में अग्रणी है जबकि ताइवान के राष्ट्रीय अंतरिक्ष संगठन (NSO) के पास प्रक्षेपण की क्षमता का अभाव है और वो अमेरिका और फ्रांस पर निर्भर है.[105] ताइवान की फॉर्मोसैट सीरीज़ भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) मिशन के लिए एक आदर्श पेलोड हो सकती है. इसके अलावा, यूक्रेन के द्वारा स्टारलिंक के उपयोग से प्रेरित होकर ताइवान बेहतर प्रतिरोध के लिए अपनी लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रह संचार प्रणालियों पर काम कर रहा है.[106]
इसके अलावा, ताइवान को योग्य प्रवासी कामगारों की आवश्यकता है जबकि भारत को चीनी भाषा के शिक्षकों की आवश्यकता है. इस तरह अकादमिक एवं औद्योगिक साझेदारी और आदान-प्रदान से भारत और ताइवान के लिए आपसी लाभदायक अवसर तैयार हो सकते हैं. ये दोनों देशों के लिए फायदे की स्थिति है और इस सहयोग में दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संबंधों को घनिष्ठ बनाने और द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने की क्षमता है. अंत में, अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग- जिनमें हरित ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड टेक्नोलॉजी, बिग डेटा एवं मशीन लर्निंग, पर्यटन, जैव तकनीक, स्वास्थ्य देखभाल और साइबर सुरक्षा में साझा पहल शामिल हैं- अपार संभावनाएं प्रदान करता है. ये साझेदारियां इनोवेशन को बढ़ावा दे सकती हैं, साझा चुनौतियों का समाधान कर सकती हैं और दोनों लोकतंत्रों के बीच रणनीतिक संबंधों को मजबूत कर सकती हैं.
दोहरी ट्रैक रूप-रेखा के भीतर संरचनात्मक यथार्थवाद [107] और असमान अंतर-निर्भरता का सिद्धांत [108] सुझाव देते हैं कि व्यवस्थात्मक दबाव और भौतिक बाधाएं भारत-ताइवान सहयोग को पूरी तरह से साकार होने से रोकती हैं. इसके अलावा, अराजक प्रणाली और ताकत में अंतर की वजह से रणनीतिक एहतियात इन सीमाओं को और मज़बूत करते हैं. इसके परिणामस्वरूप रणनीतिक सहयोग, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में, की गति, गहराई और दृश्यता में रुकावट आती है.
तालिका 7: भारत-ताइवान सहयोग के भीतर भौतिक बाधाएं और व्यवस्थात्मक दबाव
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भौतिक बाधाएं |
व्यवस्थात्मक दबाव |
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औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की कमी
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चीन दबदबा रखने वाली क्षेत्रीय शक्ति |
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सैन्य और सुरक्षा विषमता
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वैश्विक “वन चाइना” नीति की प्रणाली
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आर्थिक विषमता |
वैश्विक शक्ति गतिशीलता और संतुलन व्यवहार
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व्यापार के लिए चीन पर निर्भरता |
आर्थिक वैश्वीकरण और अंतर-निर्भरता |
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क्षेत्रीय रणनीतिक गणना |
व्यवस्थात्मक अराजकता के द्वारा रणनीतिक सावधानी पर ज़ोर |
स्रोत: लेखक का अपना
उदाहरण के लिए, ताइवान की न्यू साउथबाउंड पॉलिसी के इर्द-गिर्द तमाम शोरगुल के बावजूद भारत ताइवान के वैश्विक दृष्टिकोण में बहुत महत्व नहीं रखता है.[109] ये ताइवान की कूटनीतिक और आर्थिक नीतिगत पहल के साथ-साथ उसके सांस्कृतिक और लोगों के बीच संपर्क के माध्यम से भी दिखता है.[i] मिसाल के तौर पर, चीनी भाषा सीखने वाले भारतीयों के लिए ताइवान एक प्रमुख गंतव्य बन गया है, विशेष रूप से 2020 में कोविड-19 महामारी के बाद.[110] ताइवान विदेशी लोगों को चीनी भाषा सिखाने के लिए नेशनल ताइवान नॉर्मल यूनिवर्सिटी (NTNU) की मानकीकृत पाठ्यपुस्तकों का उपयोग करता है. इन मानकीकृत पाठ्यपुस्तकों में भारत का उल्लेख एक बार भी नहीं किया गया है, जबकि अमेरिका,[111] यूरोप और चीन पर केंद्रित केस स्टडी का दबदबा है. ये ताइवानी समाज में ताइवान के अमेरिका, यूरोप और चीन पर केंद्रित वैश्विक दृष्टिकोण को दर्शाता है.
हाल के दिनों में भारत के साथ जुड़ाव के लिए ताइवान के उभरते द्विदलीय समर्थन के बावजूद ताइवानी राजनीति और समाज के एक हिस्से में भारत के साथ संबंध को लेकर अभी भी अस्पष्टता बनी हुई है. ताइवानी राजनीति का एक वर्ग चीन को लेकर नरम बना हुआ है और वो अमेरिका, भारत और दूसरे समान विचारधारा वाले देशों को संदेह की नज़र से देखता है.
इसी तरह, ताइवान के कूटनीतिज्ञों की फौज के लिए ध्यान केंद्रित करने का एक क्षेत्र अमेरिका और चीन है.[112] इन दोनों देशों के बाद जापान, दक्षिण कोरिया, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों और पश्चिमी यूरोप की बारी आती है.[113] हालांकि पिछले कुछ वर्षों में भारत के महत्व में बढ़ोतरी हुई है और DPP की पिछली और वर्तमान सरकारों के दौरान भारत तक पहुंचने और उसके साथ भागीदारी करने की ईमानदार कोशिश की गई है. ये कोशिश ताइवान के द्वारा हाल के दिनों में दिल्ली और चेन्नई के बाद मुंबई में तीसरा प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की पहल में भी दिखती है. हालांकि ताइवान की सीमित क्षमताओं और संसाधनों को देखते हुए भारत उसकी कूटनीतिक पहुंच में प्रयोग में नहीं लाया गया लेकिन एक आशाजनक साझेदार बना हुआ है.
इसके अलावा, हाल के दिनों में भारत के साथ जुड़ाव के लिए ताइवान के उभरते द्विदलीय समर्थन के बावजूद ताइवानी राजनीति और समाज के एक हिस्से में भारत के साथ संबंध को लेकर अभी भी अस्पष्टता बनी हुई है. ताइवानी राजनीति का एक वर्ग चीन को लेकर नरम बना हुआ है और वो अमेरिका, भारत और दूसरे समान विचारधारा वाले देशों को संदेह की नज़र से देखता है. हालांकि शी जिनपिंग के उदय और पिछले आठ वर्षों के दौरान चीन-ताइवान संबंधों के बिगड़ने के साथ इसमें कमी आई है. फिर भी, ताइवानी राजनीति की मुख्यधारा के भीतर इस वर्ग का अस्तित्व एक बड़ी बाधा है जो ताइवान की विदेश नीति को एक कदम आगे तो दो कदम पीछे तक सीमित कर देती है.
अंत में, ताइवानी समाज के भीतर भारत के प्रति सार्वजनिक सोच में बड़ी खामी है. भारत को ताइवान पुरानी रूढ़ियों के माध्यम से देखता है जो अक्सर समकालीन वास्तविकताओं के बदले मीडिया के चित्रण, चुनिंदा न्यूज़ कवरेज और ऐतिहासिक धारणा से आकार लेती है. अगर सभी नहीं तो ताइवान के ज़्यादातर लोग अभी भी भारत को ग़रीबी, अत्यधिक जनसंख्या या आध्यात्मिकता के साथ जोड़ते हैं. हाल के वर्षों में भारत की तकनीकी प्रगति, तेज़ी से बढ़ते स्टार्ट-अप इकोसिस्टम, संपन्न अर्थव्यवस्था और दुनिया के मंच पर बढ़ते भू-राजनीतिक प्रभाव के बारे में ताइवान के लोगों को पता नहीं है.
इसी तरह, ताइवान शायद ही भारत के कूटनीतिक रडार पर है. दोनों देश पिछले दो दशकों के दौरान नज़दीक आए हैं जब भारत-चीन संबंध बिगड़े हैं. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि चीन भारत की ताइवान नीति को महत्व देता है. ये चीन के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के लिए ताइवान के साथ केवल संबंध बनाए रखने से कहीं ज़्यादा है. जैसा कि रूप-रेखा खंड में प्रकाश डाला गया है, भारत ने ताइवान को चीन के ख़िलाफ़ एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने से परहेज़ किया है और इसके बदले इस साझेदारी से आर्थिक लाभ उठाने को प्राथमिकता दी है. फिर भी, भारत-चीन संबंधों ने ताइवान को लेकर भारत के बदलते दृष्टिकोण को प्रभावित किया है. उदाहरण के लिए, अतीत में चीन की संवेदनशीलता को लेकर भारत सतर्क रहा है और चीन के साथ तनाव बढ़ाने से बचने के लिए ताइवान के साथ अलग-अलग मामलों के आधार पर व्यवहार करता रहा है. हालांकि 2010 से भारत ने सार्वजनिक रूप से ‘वन चाइना’ नीति का ज़िक्र करना बंद कर दिया है.[114] ये कदम चीन की तरफ से अरुणाचल प्रदेश से आने वालों को स्टेपल (नत्थी) वीज़ा जारी करने के बाद उठाया गया.[115] 2014 में भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी को साफ कर दिया कि भारत “वन चाइना” नीति का समर्थन उसी स्थिति में करेगा जब चीन “वन इंडिया” नीति का समर्थन करेगा.[116] कई गतिरोधों और चीन के द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में अनुच्छेद 370 को रद्द करने का मुद्दा उठाए जाने के बाद भारत ने “वन चाइना” नीति को लेकर अस्पष्टता बनाए रखी है और वो न तो इसे खारिज करता है, न ही इसकी पुष्टि करता है. ताइवान ने इसकी प्रशंसा की है क्योंकि भारत-चीन के बीच संबंध बिगड़ने से उसे फायदा हुआ है. इसके अलावा, 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद ताइवान के साथ भारत की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है. ये उजागर करता है कि भारत की ताइवान नीति भारत-चीन संबंधों से स्वतंत्र होने के बावजूद वो व्यापक द्विपक्षीय गतिशीलता को लेकर प्रतिक्रियाशील बना हुआ है.
इसके अतिरिक्त, तीन दशक तक भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी और लगभग 15 वर्षों से एक्ट ईस्ट पॉलिसी के बावजूद भारत की क्षेत्रीय रणनीति में ताइवान एक स्तंभ के रूप में नहीं उभरा है. ये आंशिक रूप से भू-राजनीतिक कारणों और चीन एवं ताइवान की तुलनात्मक तौर पर भारी-भरकम अर्थव्यवस्था की वजह से लागू सीमाओं के कारण है. अतीत में चीन की संवेदनशीलता को ठेस पहुंचाकर ताइवान के साथ संबंध बनाने की अवसर लागत ताइवान के द्वारा प्रदान किए जाने वाले सामरिक और आर्थिक लाभ से अधिक रही है. लेकिन पिछले दो दशकों में ये धीरे-धीरे बदल गया है और जैसा कि पूरे लेख के दौरान प्रकाश डाला गया है, मौजूदा भारतीय प्रशासन के तहत राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में द्विपक्षीय भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है.
इसी तरह, ताइवान को लेकर भारतीय समाज की समझ अत्यंत सीमित है. भारतीय अक्सर ताइवान को थाईलैंड, हॉन्ग कॉन्ग या चीन के हिस्से के रूप में मानते हैं. इसके अलावा, ताइवान को लेकर भारतीय संसद या राष्ट्रीय सुरक्षा हलकों में शायद ही कभी चर्चा होती है और 2020 के भारत-चीन गलवान संघर्ष से पहले भारतीय मीडिया में भी बमुश्किल से ताइवान का उल्लेख किया गया है. लेकिन गलवान संघर्ष की वजह से ताइवान का महत्व बढ़ गया है. इसके अलावा, अमेरिका या यूरोप की तरह भारत में ताइवान समर्थक लॉबी उतनी मज़बूत नहीं है और उसके पास संस्थागत प्रभाव एवं निरंतर राजनीतिक समर्थन- दोनों की कमी है. वैसे तो रणनीतिक विचारकों और कारोबारी समुदाय के कुछ हिस्सों के बीच ताइवान को लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है लेकिन ये अभी तक भारत की ताइवान नीति को तय करने में सक्षम एक व्यवस्थित गुट में नहीं बदल पाया है.
अंत में, भारत की सामान्य घरेलू समस्याओं- जैसे कि नौकरशाही की जड़ता, सीमित श्रम एवं भूमि सुधार, नियामक अनिश्चितता और धीमी न्यायिक प्रक्रिया- के साथ ताइवान को लेकर विशिष्ट सीमाएं- जैसे कि सीमित वित्तीय गुंजाइश, बुनियादी ढांचे में कमी और सेमीकंडक्टर फेब्रिकेशन उद्योग के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने में चुनौतियां- इस संबंध को पूरी तरह साकार करने में बाधा खड़ी कर सकती हैं.
ये लेख सिफारिश करता है कि भारत एक नरम दांव की नीति अपनाए जो अपनी रणनीतिक अस्पष्टता को बनाए रखते हुए ताइवान के साथ असमान आर्थिक अंतर-निर्भरता का फायदा उठाए. आसान शब्दों में कहें तो ये रणनीति वर्चस्ववादी ताकत चीन से प्रणालीगत प्रतिक्रिया उत्पन्न किए बिना आर्थिक और सीमित रणनीतिक लाभ को अधिकतम करती है. ताइवान के साथ भू-आर्थिक और तकनीकी भागीदारी के माध्यम से समायोजित नरम संतुलन की इस रूप-रेखा को अपनाना जारी रखकर भारत एक अराजक और ताकत के मामले में असमान प्रणाली में तनाव में बढ़ोतरी के ख़तरे को कम करते हुए अपने रणनीतिक स्थान को बेहतर कर सकता है. इसके अलावा, भारत को रणनीतिक क्षेत्र, जैसे कि संसाधन और सूचना साझा करना, में काम-काजी सहयोग को संस्थागत रूप देने पर विचार करना चाहिए ताकि PLA एवं उसकी गतिविधियों के बारे में समझ बढ़ाई जा सके और उसका विश्वसनीय प्रतिरोध स्थापित किया जा सके.
ये लेख भारत-ताइवान द्विपक्षीय संबंध को मज़बूत करने के लिए निम्नलिखित नीतिगत उपायों की सिफारिश करता है:
काम-काजी सहयोग को संस्थागत बनाना: भारत और ताइवान को औपचारिक कूटनीतिक संबंधों को बढ़ावा दिए बिना सरकारी एवं स्वतंत्र संस्थागत MoU, कार्य समूहों, थिंक टैंक और ट्रैक 1.5 डायलॉग के माध्यम से क्षेत्र विशिष्ट संबंधों (सेमीकंडक्टर, शिक्षा, महत्वपूर्ण तकनीक, डिजिटल अर्थव्यवस्था) को मज़बूत बनाना चाहिए. इसे रणनीतिक क्षेत्रों में भी दोहराना चाहिए जहां थिंक-टैंक और स्वतंत्र स्कॉलर महत्वपूर्ण हित के मुद्दों पर सहयोग कर सकें. ताइवान के स्कॉलर्स, और नीति एवं सुरक्षा विशेषज्ञों को “स्कॉलरशिप” पर भारत में आने की अनुमति देने जैसे उपाय इस दिशा में शुरुआती कदम होंगे.
रणनीतिक अस्पष्टता को बढ़ाना: भारत को औपचारिक रूप से अपनी “वन चाइना” नीति बरकरार रखनी चाहिए लेकिन ताइवान के साथ अनौपचारिक राजनीतिक, आर्थिक, तकनीकी एवं सुरक्षा आदान-प्रदान का विस्तार जारी रखना चाहिए जिससे अस्वीकार्यता और लचीलापन बनाए रखा जा सके. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि चीन के साथ भारत की कठिनाइयों के बावजूद ये स्वतंत्र बना रहना चाहिए.
सप्लाई चेन और तकनीकी सहयोग में विविधता लाना: भारत को अपनी “चाइना+1” रणनीति में ताइवान की कंपनियों को सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, ICT और दूसरी महत्वपूर्ण सप्लाई चेन में. इस तरह दीर्घकालिक और परस्पर लाभदायक आर्थिक अंतर-निर्भरता तैयार होगी.
चीन के दबाव के सामने सामर्थ्य में मज़बूती लाना: भारत को चीन की धौंस और सुरक्षा के मुद्दों पर ताइवान के साथ साइबर सहयोग, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा और साझा अकादमिक अनुसंधान में निवेश करना चाहिए. ताइवान फैक्टचेक सेंटर, डबलथिंक लैब्स और दूसरी अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी पहल जैसे प्लैटफ़ॉर्म के साथ सहयोग किया जाना चाहिए, साथ ही भारत में ऐसे प्लैटफॉर्म को लागू करने की कोशिश करनी चाहिए.
बहुपक्षीय संपर्क को बढ़ावा: ताइवान, अमेरिका, जापान और अन्य देशों को शामिल करके तैयार वैश्विक सहयोग एवं प्रशिक्षण रूप-रेखा (GCTF) जैसे मंचों का उपयोग करना चाहिए ताकि सीधे द्विपक्षीय टकराव के बिना ताइवान को भारत की व्यापक इंडो-पैसिफिक भागीदारी से जोड़ा जा सके. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आपसी चिंता के मुद्दों पर ताइवान को नरम समर्थन देने के लिए क्वॉड्रिलेटरल के मंच का उपयोग करना चाहिए.
अकादमिक आदान-प्रदान: भारतीय विश्वविद्यालयों और सरकारी एजेंसियों में चीनी भाषा के शिक्षकों की आवश्यकता है. ऐसे में भारत और ताइवान को नियमित आधार पर भारत में शिक्षकों की आवाजाही को संस्थागत बनाना चाहिए. इसके अलावा, रणनीतिक मुद्दों पर स्कॉलरशिप के आदान-प्रदान की अनुमति दी जानी चाहिए. ताइवान के विदेश मंत्रालय की फेलोशिप की तरह फेलोशिप दी जानी चाहिए ताकि ताइवान के स्कॉलर भारत में रिसर्च और नेटवर्किंग कर सकें.
क्षेत्रीय दावों पर रणनीतिक स्पष्टता: ऐतिहासिक रूप से रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) यानी ताइवान अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को दक्षिण तिब्बत मानता है और 1914 के शिमला सम्मेलन के दौरान स्थापित मैकमोहन रेखा को खारिज करता है. अक्साई चिन की बात करें तो ROC ने स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र पर दावा नहीं किया है लेकिन उसने चीन के द्वारा किए गए सीमा समझौतों जैसे कि 1963 के चीन-पाकिस्तान समझौते, जिसके तहत विवादित कश्मीर क्षेत्र के कुछ हिस्से चीन को सौंपे गए थे, को लगातार अस्वीकार किया है. वैसे तो ताइवान- विशेष रूप से डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) की सरकार के तहत- ने हाल के वर्षों में इन ऐतिहासिक दावों पर ज़ोर नहीं दिया है लेकिन स्पष्ट बयान और चीन की घुसपैठ की खुलकर निंदा भारत-ताइवान संबंधों को मज़बूत बनाएगी.
निरंतरता: उभरती प्रौद्योगिकियों, हरित ऊर्जा और सार्वजनिक स्वास्थ्य में तालमेल के नए रास्तों का पता लगाते हुए व्यापार, प्रौद्योगिकी, संस्कृति और डिजिटल सहयोग में मौजूदा भागीदारी को जारी रखना चाहिए.
दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत पर नीतिगत ध्यान केंद्रित करना: ताइवान के विदेश मंत्रालय और थिंक टैंक को मौजूदा न्यू साउथबाउंड पॉलिसी की रूप-रेखा के तहत दक्षिण एशिया नीति विभाग को मज़बूत करना चाहिए ताकि भारत से संबंधित अनुसंधान, पहुंच और साझेदारी को प्राथमिकता दिया जा सके.
वीज़ा और प्रतिभा को आकर्षित करने को व्यवस्थित बनाना: ताइवान को भारतीय स्कॉलर, छात्रों और प्रोफेशनल्स के लिए वीज़ा नियमों- जिनमें कई वर्षों की रिसर्च फेलोशिप और तकनीकी वीज़ा शामिल हैं- को आसान बनाना चाहिए ताकि एक स्थायी प्रतिभा का भंडार बनाया जा सके और लोगों के बीच संबंधों को गहरा किया जा सके.
भारत-ताइवान संबंध संभावनाओं से आकार लेते हैं और एहतियात से बाधित होते हैं. दोनों पक्ष घनिष्ठ संबंधों के महत्व को समझते हैं, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर, शिक्षा, मंदारिन सीखने, सप्लाई चेन और अलोकतांत्रिक धमकी का मुकाबला करने में. लेकिन चीन, संस्थागत समर्थन की कमी और दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण के अभाव में दोनों देशों के बीच सहयोग में रुकावट आ रही है. इन बाधाओं को अलग-अलग क्षेत्रों में धीरे-धीरे भागीदारी बढ़ाकर, मौन कूटनीति, व्यावहारिक तालमेल और कम जोखिम, अधिक लाभ वाले अवसरों का फायदा उठाकर दूर किया जा सकता है.
[a] Taiwan’s elected President, Lai Ching-te, was Vice President under President Tsai Ing-wen’s administration. Although he got 40 percent of the popular vote, it is much lower than the popular vote which former President Tsai Ing-wen received in 2016 (56.12 percent) and 2020 (57.13 percent).
[b] In his inaugural speech in May 2024, National Day speech in October 2024, and New Year speech in 2025, he maintained the same stance, resulting in a strong reaction from Beijing in the form of criticism, military exercises, and increased diplomatic pressure. See: https://english.president.gov.tw/News/6816; “President Lai Delivers 2025 New Year’s Address,” Office of the President of the Republic of China, January 1, 2025, https://english.president.gov.tw/News/6893. For instance, in his 2024 National Day speech, he said,
“The Republic of China and the People’s Republic of China are not subordinate to each other…and the PRC has no right to represent Taiwan”. See: https://english.president.gov.tw/News/6816.
[c] ECFA was a free trade agreement between the PRC and ROC aiming to reduce tariffs, commercial barriers and create cross-strait integration. It was signed on June 29, 2010, in Chongqing, however, was terminated by the PRC in December 2023 – a month before the most recent Presidential elections.
[d] Information from an interview by one of the authors with an Indian diplomat aware of these developments.
[e] This claim is based on authors’ own understanding and reading of the PLA over the years.
[f] Taiwan's ADIZ overlaps with China's, including airspace near Fujian, Zhejiang, and Guangdong provinces, and across the Taiwan Strait, East China Sea, and South China Sea. https://amti.csis.org/the-skys-the-limit-comparing-chinas-adiz-intrusions/
[g] One of the authors’ forthcoming publication on the India-China border dispute.
[h] One of the authors has stayed in Taiwan (Kaohsiung and Taipei) and pursued all the Chinese language courses at the language training centres.
[i] One of the authors has studied all the textbooks – both 2003 and 2017 editions.
[j] The visa issue is a big sticking point between the two countries, and one of the authors has experienced first-hand the consequences of Taiwan’s (TECC Delhi’s) haphazard visa policy.
[1] Tommy Lin, “DPP Needs Partners to Fulfil Lai’s Ambitions,” Taipei Times, February 7, 2024, https://www.taipeitimes.com/News/editorials/archives/2024/02/07/2003813184
[2] “The President’s 10 Key Questions: Where will Taiwan Go?,” The Reporter [報道者], January 16, 2024, https://www.twreporter.org/topics/2024-election
[3] Lev Nachman and Wen-Ti Sung, “Lai’s Victory isn’t the Full Story. Here are Five Deeper Takeaways from Taiwan’s Election,” Atlantic Council, January 22, 2024, https://www.atlanticcouncil.org/blogs/new-atlanticist/lais-victory-isnt-the-full-story-here-are-five-deeper-takeaways-from-taiwans-election/
[4] “An Overview of Cross-Strait Relations [九二共識 — 史實與效益],” Straits Exchange Foundation, https://www.sef.org.tw/files/869/51D01BB5-1941-423B-9615-8D24254096FE.
[5] Jessica Drun, “The KMT Continues to Grapple with the 1992 Consensus,” Global Taiwan Brief, Global Taiwan Institute, September 21, 2022, https://globaltaiwan.org/2022/09/the-kmt-continues-to-grapple-with-its-1992-consensus/
[6] Ryan Hass, Bonnie S. Glaser and Richard C. Bush, U.S. Taiwan Relations, (Washington DC: Brookings Institution Press, 2023); Dean P. Chen and Kiely Paris-Rodriguez, “The Role of the 1992 Consensus and Taiwan’s 2024 Presidential Elections,” East-West Center, January 2024, https://www.eastwestcenter.org/publications/role-1992-consensus-and-taiwans-2024-presidential-elections
[7] “President-elect Lai Ching-te Promises to Maintain Cross-Strait Status Quo,” Focus Taiwan, January 14, 2024, https://focustaiwan.tw/cross-strait/202401140001#:~:text=%22I%20will%20act%20in%20accordance,%2Dold%20president%2Delect%20said.
[8] Lina Arvidsson, “Taiwan’s 2024 Presidential Election and the Cross-Strait Relations: Consequences for the European Union,” Swedish National China Centre, 2023, https://www.ui.se/globalassets/ui.se-eng/publications/other-publications/taiwans-2024-presidential-election-and-cross-strait-relations-consequences-for-the-european-union.pdf
[9] “Inaugural Address of ROC 16th Term President Lai Ching Te,” Office of the President of the Republic of China, May 5, 2024, https://english.president.gov.tw/News/6726; “President Lai Delivers 2024 National Day Address,” Office of the President of the Republic of China, October 10, 2024, https://english.president.gov.tw/News/6816; “President Lai Delivers 2025 New Year’s Address,” Office of the President of the Republic of China, January 1, 2025, https://english.president.gov.tw/News/6893
[10] Yu-Jie Chen and Jerome A. Cohen, “China-Taiwan Relations Re-examined: The ‘1992 Consensus’ and Cross-Strait Agreements,” University of Pennsylvania Asian Law Review 14, no. 1 (2019): 1–39, https://scholarship.law.upenn.edu/alr/vol14/iss1/1.
[11] Jessica Drun, “The KMT Continues to Grapple with the 1992 Consensus,” Xi Jinping; “Working Together to Realize Rejuvenation of the Chinese Nation and Advance China’s Peaceful Reunification,” [習近平在《告台灣同胞書》發表四十週年紀念大會演講(英文稿)], (Speech, Beijing, April 12, 2019), http://www.gwytb.gov.cn/wyly/201904/t20190412_12155687.htm
[12] Jessica Drun, “The KMT continues to Grapple with the 1992 Consensus.”
[13] Dean P. Chen and Kiely Paris-Rodriguez, “The Role of the 1992 Consensus and Taiwan’s 2024 Presidential Elections.”
[14] Mumin Chen, “Embracing or Resisting the Giant Neighbour: Debates between KMT and DPP on the Mainland Policy,” China Report 49, no. 4 (2013): 399-411, https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/0009445513506649?icid=int.sj-full-text.similar-articles.8
[15] Chen, “Embracing or Resisting the Giant Neighbour.”
[16] Yu-Jie Chen and Jerome A. Cohen, “China-Taiwan Relations Re-examined: The ‘1992 Consensus’ and Cross-Strait Agreements,” University of Pennsylvania Asian Law Review 14, no. 1 (2019): 1–39.
[17] David G. Brown, “Are DPP and KMT Views on China Converging,” Global Taiwan Institute, October 21, 2020, https://globaltaiwan.org/2020/10/are-dpp-and-kmt-views-of-china-converging/
[18] Ministry of External Affairs, “Population of Overseas Indians,” https://www.mea.gov.in/population-of-overseas-indians.htm
[19] “India Plans Taiwan Labour Supply Pact while China Tensions Brew,” Hindustan Times, November 10, 2023, https://www.hindustantimes.com/world-news/india-plans-taiwan-labor-supply-pact-while-china-tensions-brew-101699600426103.html; “Taiwan, India sign MOU on Labor,” Taiwan Today, February 17, 2024, https://www.taiwantoday.tw/Economics/Top-News/248632/Taiwan%252C-India-sign-MOU-on-labor-force
[20] Sudhi Ranjan Sen, Shruti Shrivastava, and Betty Hou, “India plans Taiwan Labor Supply Pact while China Tensions Brew,” Bloomberg, November 10, 2023, https://www.bloomberg.com/news/articles/2023-11-10/india-plans-taiwan-labor-supply-pact-while-china-tensions-brew?embedded-checkout=true
[21] “Indian Migrant Protest in Taipei,” Taipei Times, December 4, 2023, https://www.taipeitimes.com/News/taiwan/archives/2023/12/04/2003810111.
[22] “Indian Migrant Protest in Taipei”
[23] Sanjay Jha, “Taiwan Apologies for Labor Minister’s Remarks on Indian Workers,” VOA, March 6, 2024, https://www.voanews.com/a/taiwan-apologizes-for-labor-minister-s-remarks-on-indian-workers/7517256.html; Manoj Kumar Panigrahi, “Racism and Cognitive Warfare: Speed Breakers in India-Taiwan Relations,” Commonwealth Magazine, December 4, 2023, https://english.cw.com.tw/article/article.action?id=3574
[24] “New Southbound Policy,” Executive Yuan, https://english.ey.gov.tw/News3/9E5540D592A5FECD/2ec7ef98-ec74-47af-85f2-9624486adf49
[25] Sana Hashmi, “Taiwan must Boost Ties with India,” Taipei Times, April 3, 2024, https://www.taipeitimes.com/News/editorials/archives/2024/04/03/2003815861
[26] Donald Kagan, The Peloponnesian War (New York: Penguin Books, 2004); Thucydides, History of the Peloponnesian War (Project Gutenberg, 2004), https://www.gutenberg.org/files/7142/7142-h/7142-h.htm.
[27] National Archives and Records Administration, “The Marshall Plan,” Milestone Documents, April 30, 2025, https://www.archives.gov/milestone-documents/marshall-plan.
[28] The White House, “Fact Sheet: President Donald J. Trump Declares National Emergency to Increase Our Competitive Edge, Protect Our Sovereignty, and Strengthen Our National and Economic Security,” April 2, 2025, https://www.whitehouse.gov/fact-sheets/2025/04/fact-sheet-president-donald-j-trump-declares-national-emergency-to-increase-our-competitive-edge-protect-our-sovereignty
[29] Edward N. Luttwak, “From Geopolitics to Geo-Economics: Logic of Conflict, Grammar of Commerce,” The National Interest, no. 20 (1990): 17–23, http://www.jstor.org/stable/42894676.
[30] Robert D. Blackwill and Jennifer M. Harris, War by Other Means: Geoeconomics and Statecraft (Cambridge MA: Harvard University Press, 2016).
[31] Blackwill and Harris, War by Other Means.
[32] Gyula Csurgai, “The Increasing Importance of Geoeconomics in Power Rivalries in the Twenty-First Century,” Geopolitics, no. 1 (October, 2018): 38–46, https://doi.org/10.1080/14650045.2017.1359547
[33] Mikael Mattlin and Mikael Wigell, “Geoeconomics in the Context of Restive Regional Powers,” Asia Europe Journal 14, no. 2 (2016): 125–134, https://doi.org/10.1007/s10308-015-0443-9.
[34] Mattlin and Wigell, “Geoeconomics in the Context of Restive Regional Powers.”
[35] Robert A. Pape, “Soft Balancing: How the World Will Respond to US Preventive War on Iraq,” Oak Park Coalition for Truth and Justice, January 20, 2003, http://www.opctj.org/articles/robert-a-pape-universityofchicago-02-21-2003-004443.html; Robert A. Pape, “Soft Balancing Against
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[36] Anders Wivel and T.V Paul, “Soft Balancing, Institutions, and Peaceful Change,” Ethics and International Affairs 34, no. 4 (2020): 473-485.
[37] Mila Larionova, “Conceptualizing Soft Balancing Beyond Cold War: What’s Changed, What Remains the Same?,” Central European Journal of International and Security Studies 14, no. 3 (2020): 65–91, https://doi.org/10.51870/CEJISS.A140303
[38] “Taiwan-India Economic Relations,” International Trade Administration, February 2, 2023, https://www.trade.gov.tw/english/BilateralTrade/BilateralTrade.aspx?code=7030&nodeID=4618&areaID=2&country=SW5kaWE=#:~:text=As%20India%20is%20Taiwan's%2017th,9.8%25%20over%20the%20previous%20year.
[39] Sana Hashmi, “India’s Taiwan Dilemma amid Escalating Rivalry with China,” China-India Brief #231, 2023, https://lkyspp.nus.edu.sg/cag/publications/center-publications/publication-article/detail/india-s-taiwan-dilemma-amid-escalating-rivalry-with-china#:~:text=In%202021%2D22%2C%20India%2D,the%20USD%2010%20billion%20mark.
[40] Department of Commerce, Ministry of Commerce and Industry, Government of India, https://www.commerce.gov.in/; Pratnashree Basu and Soumya Bhowmick, “India-Taiwan Economic Ties: Synergies, Challenges, and Strategies,” Taiwan Politics, January 2025, https://taiwanpolitics.org/article/127681-india-taiwan-economic-ties-synergies-challenges-and-strategies
[41] Basu and Bhowmick, “India-Taiwan Ties: Synergies, Challenges, and Strategies.”
[42] Basu and Bhowmick, “India-Taiwan Ties: Synergies, Challenges, and Strategies.”
[43] India-Taipei Association, “Commercial,” https://www.india.org.tw/pages?id=MTQ%2C&subid=MTQ%2C
[44] India-Taipei Association, “Commercial.”
[45] Investing in India, “India-Taiwan Relations,” https://www.investindia.gov.in/country/taiwan-plus
[46] Xiangming Chen, “Taiwan Investments in China and Southeast Asia: Go West but also go South,” Asian Survey 36, no. 5 (May 1996): 447-467, https://www.jstor.org/stable/2645493
[47] Chen, “Taiwan Investments in China and Southeast Asia.”
[48] Hideaki Ryugen, “Taiwan Investments in China Plummets as it Soars in U.S. and Germany,” Nikkei Asia, December 29, 2023, https://asia.nikkei.com/Economy/Taiwan-investment-in-China-plummets-as-it-soars-in-U.S.-and-Germany#:~:text=TAIPEI%20%2D%2D%20Taiwanese%20investment%20in,in%20the%20U.S.%20and%20Germany.
[49] Alex Irwin-Hunt, “Taiwan’s New President Lai to Aid FDI beyond China,” FDI Intelligence, January 15, 2024.
[50] Ministry of Economic Affairs [經濟部], Republic of China (Taiwan), “Homepage,” May 1, 2025, https://www.moea.gov.tw/Mns/populace/home/Home.aspx.; ANZ Research, “The India-Taiwan Economic Corridor Can Flourish,” ANZ Institutional Insights, May 2024, https://www.anz.com/institutional/insights/articles/2024-05/the-india-taiwan-economic-corridor-can-flourish/
[51] ANZ Research, “The India-Taiwan Economic Corridor Can Flourish,” ANZ Institutional Insights, May 2024, https://www.anz.com/institutional/insights/articles/2024-05/the-india-taiwan-economic-corridor-can-flourish/
[52] India Semiconductor Mission, “SemiconIndia 2022,” May 1, 2025, https://www.ism.gov.in/semiconindia-2022.
[53] India Briefing, “Setting Up a Semiconductor Fabrication Plant in India: What Foreign Investors Should Know,” India Briefing, April 18, 2023, https://www.india-briefing.com/news/setting-up-a-semiconductor-fabrication-plant-in-india-what-foreign-investors-should-know-22009.html/
[54] Manharish Yadav, “India-Taiwan Tech Collaboration,” Taipei Times, April 19, 2022, https://www.taipeitimes.com/News/editorials/archives/2024/04/19/2003816625
[55] Chen-Yuan Tung, “Taiwan and the Global Semiconductor Supply Chain,” Taiwan Representative Office in Singapore, February 2024, https://roc-taiwan.org/uploads/sites/86/2024/02/February-2024-Issue.pdf
[56] Konark Bhandari, “Taiwan-India Chips Cooperation and the Logic of Choosing India,” Carnegie India, August 8, 2024, https://carnegieendowment.org/research/2024/08/taiwan-india-chips-cooperation-and-the-logic-of-choosing-india?lang=en
[57] Raghav Aggarwal, “Cabinet Approves Setting up of Three Semiconductor Plants in India,” Business Standard, February 29, 2024, https://www.business-standard.com/industry/news/cabinet-approves-setting-up-of-three-semiconductor-plants-in-india-124022900636_1.html
[58] Meng-hsuan Yang, “Why TMSC and Mediatek are keen to Hire More Indian Engineers,” Commonwealth Magazine, March 2, 2023, https://english.cw.com.tw/article/article.action?id=3387
[59] Aashish Aryan and Twesh Mishra, “Foxconn May Partner with TSMC and TMH to Set up Fab Units,” The Economic Times, July 14, 2023, https://economictimes.indiatimes.com/tech/technology/foxconn-may-partner-with-tsmc-and-tmh-to-set-up-fab-units/articleshow/101737416.cms
[60] Ben Blanchard, Munsif Vengattil, and Aditya Kalra, “Foxconn Dumps $19.5 Vedanta Chip Plan in Blow to India,” Reuters, July 11, 2023, https://www.reuters.com/technology/foxconn-pulls-out-india-chip-jv-with-vedanta-2023-07-10/
[61] Gurjit Singh, “Indian Civil Honor Given to Hon Hai’s Young Liu,” Taipei Times, January 29, 2024, https://www.taipeitimes.com/News/editorials/archives/2024/01/29/2003812764
[62] Anubhav Mukherjee, “Foxconn Plans to Invest Rs 424 Crore in Semiconductor JV with HCL,” Mint, October 1, 2024, https://www.livemint.com/companies/news/foxconn-plans-to-invest-rs-424-crore-in-semiconductor-jv-with-hcl-11727794820140.html
[63] Albin Thomas, “Beyond the Strait: Taiwan’s Role in India’s Semiconductor Rise,” Global Taiwan Institute 9, no. 21, November 13, 2024, https://globaltaiwan.org/2024/11/beyond-the-strait-taiwan-india-semiconductor/
[64] Yang, “Why TMSC and Mediatek are keen to Hire More Indian Engineers.”
[65] Yadav, “India-Taiwan Tech Collaboration.”
[66] “India and Taiwan Deepen Collaboration to Drive Semiconductor Development,” EE Times India, November 27, 2023, https://www.eetindia.co.in/india-and-taiwan-deepen-collaboration-to-drive-semiconductor-development/.
[67] Yadav, “India-Taiwan Tech Collaboration.”
[68] Manash Pratim Bhuyan, “Taiwan Ready to Assist India Reduce Trade Deficit with China: Taiwanese NSA Hsu Szu-Chien,” Press Trust of India, March 20, 2025, https://www.ptinews.com/story/business/taiwan-ready-to-assist-india-reduce-trade-deficit-with-china-taiwanese-deputy-nsa-hsu-szu-chien/2389480
[69] Taiwan-India Artificial Intelligence Academy, “Homepage,” https://twinai.ccu.edu.tw/en.
[70] “India Will Be a Major Market for 5G, Says Taiwan’s MediaTek,” The Economic Times, November 11, 2020, https://economictimes.indiatimes.com/industry/telecom/telecom-news/india-will-be-a-major-market-for-5g-says-taiwans-mediatek/articleshow/79158910.cms.
[71] Brendan Nyhan and Jason Reifler, “When Corrections Fail: The Persistence of Political Misperceptions,” Political Behavior 32, no. 2 (2010): 303–30, https://doi.org/10.1007/s11109-010-9112-2.
[72] Yochai Benkler, Robert Faris, and Hal Roberts, Network Propaganda: Manipulation, Disinformation, and Radicalization in American Politics (New York: Oxford University Press, 2018).
[73] National Policy Foundation, “The CCP’s Military Strategy and Taiwan’s Security,” Taiwan Security Forum, no. 43 (March 2023): 1–20, https://www.taiwanncf.org.tw/ttforum/43/43-15.pdf.
[74] Xiao Tianliang, The Science of Military Strategy (Beijing: National Defense University Press, 2020), pp. 236, https://www.airuniversity.af.edu/Portals/10/CASI/documents/Translations/2022-01-26%202020%20Science%20of%20Military%20Strategy.pdf
[75] Elsa B. Kania, “The PLA’s Latest Strategic Thinking on the Three Warfares,” Center for International Maritime Security (CIMSEC), September 18, 2016, https://cimsec.org/plas-latest-strategic-thinking-three-warfares/
[76] Kania, “The PLA’s Latest Strategic Thinking on the Three Warfares.”
[77] Mao Tse-tung, “On the Correct Handling of Contradictions Among the People,” February 27, 1957, https://www.marxists.org/reference/archive/mao/selected-works/volume-2/mswv2_09.htm; Mao Tse-tung, “Talks at the Yenan Forum on Literature and Art,” Redsails, May 1942, https://redsails.org/mao-on-literature-and-art/; Shu-mei Shih, Propaganda and Culture in Mao’s China: Deng Tuo and the Intelligentsia (Oxford: Oxford University Press, 1998), https://global.oup.com/academic/product/propaganda-and-culture-in-maos-china-9780198290667; James Farley and Matthew D. Johnson, eds., Redefining Propaganda in Modern China: The Mao Era and Its Legacies (Abingdon, Oxon: Routledge, 2021); PLA, In Their Own Words: Science of Military Strategy (Beijing: Military Science Press , 2001); PLA, In Their Own Words: Science of Military Strategy (Beijing: Military Science Press [軍事科學出版社], 2013); Andrew Scobell, Seizing the Initiative: Chinese Military Culture in the Mao Era (Stanford: Stanford University Press, 2003); John Delury, Mao and the Politics of Emotions (Cambridge: Cambridge University Press, 2019); Anne-Marie Brady, Guiding Public Opinion: The Role of Media in China’s Information Strategy (Singapore: Palgrave Macmillan, 2015).
[78] Tse-tung, “On the Correct Handling of Contradictions Among the People”; Tse-tung, Talks at the Yenan Forum on Literature and Art; Shih, Propaganda and Culture in Mao’s China: Deng Tuo and the Intelligentsia; Farley and Johnson, Redefining Propaganda in Modern China: The Mao Era and Its Legacies; PLA, Science of Military Strategy; PLA, Science of Military Strategy; Scobell, Seizing the Initiative: Chinese Military Culture in the Mao Era; Delury, Mao and the Politics of Emotions; Brady, Guiding Public Opinion: The Role of Media in China’s Information Strategy.
[79] Freedom House, “New Report: Beijing Intensifying Its Global Push for Media Influence, Turning More Covert and Aggressive,” April 11, 2024, https://freedomhouse.org/article/new-report-beijing-intensifying-its-global-push-media-influence-turning-more-covert-and; Hannah Waight, Yin Yuan, Margaret E. Roberts and Brandon M Stewart, “China’s Changing Propaganda Abroad: Evidence from Newspaper Content in 200 Countries,” Proceedings of the National Academy of Sciences 121, no. 17 (2024), e2408260122, https://doi.org/10.1073/pnas.2408260122.
[80] Gagandeep Kaur, “Is China Waging a Cyber War with China,” CSO, December 1, 2023, https://www.csoonline.com/article/1250513/is-china-waging-a-cyber-war-with-taiwan.html
[81] Doublethink Lab, “Deafening Whispers: China’s Information Operation in Taiwan,” September 9, 2021, https://medium.com/doublethinklab/deafening-whispers-f9b1d773f6cd; Doublethink Lab, “2024 Taiwan Elections Foreign Influence Observation Preliminary Statement,” January 13, 2024, https://medium.com/doublethinklab/2024-taiwan-elections-foreign-influence-observation-preliminary-statement-caeeccb5b88e; Doublethink Lab, “2024 Taiwan Election: The Increasing Polarization of Taiwanese Politics & Reinforcement of Existing Biases,” February 1, 2024, https://medium.com/doublethinklab/2024-taiwan-election-the-increasing-polarization-of-taiwanese-politics-reinforcement-of-2e0e503d2fe2; Doublethink Lab, “Artificial Multiverse: Foreign Information Manipulation and Interference in Taiwan’s 2024 National Elections,” Medium, March 5, 2024, https://medium.com/doublethinklab/artificial-multiverse-foreign-information-manipulation-and-interference-in-taiwans-2024-national-f3e22ac95fe7.
[82] Rishi Iyengar, “Taiwan Elections – What it could do next?,” Foreign Policy, January 24, 2023, https://foreignpolicy.com/2024/01/23/taiwan-election-china-disinformation-influence-interference/
[83] Federal Bureau of Investigation, “The China Threat,” https://www.fbi.gov/investigate/counterintelligence/the-china-threat.
[84] Nishit Kumar, Elena Yi-Cheng Ho, and Albert Zhang, “Beijing’s Online Influence Operations along the India-China Border,” ASPI, November 28, 2024, https://www.aspistrategist.org.au/beijings-online-influence-operations-along-the-india-china-border/
[85] Jake Chung, “China’s Cognitive Warfare Targets Elections: Report,” Taipei Times, November 28, 2023, https://www.taipeitimes.com/News/taiwan/archives/2023/11/28/2003809832.
[86] Ministry of Home Affairs, Government of India, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2087389.
[87] U.S. Embassy and Consulate in India, “Representatives from the United States, India, and Taiwan Collaborate on Cybersecurity under the Global Cooperation and Training,” December 11, 2023, https://in.usembassy.gov/representatives-from-the-united-states-india-and-taiwan-collaborate-on-cybersecurity-under-the-global-cooperation-and-training-framework/#:~:text=New%20Delhi%20%E2%80%93%20Representatives%20from%20the,and%20Training%20Framework%20(GCTF).
[88] Joel Wuthnow and M. Taylor Fravel, “China’s Military Strategy for a ‘New Era’: Some Change, More Continuity, and Tantalizing Hints,” Journal of Strategic Studies 46, no. 6-7, March 1, 2022, https://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/01402390.2022.2043850
[89] Suyash Desai and Manoj Kewalramani, “Xi’s Military Reforms and its Efficacy in Furthering China’s National Security Objectives,” India Quarterly 78, no. 3, https://doi.org/10.1177/09749284221108249
[90] Lily Kuo, “China Military Extends Drills near Taiwan after Pelosi Trip,” The Washington Post, August 8, 2022, https://www.washingtonpost.com/world/2022/08/08/taiwan-china-military-exercises-pelosi/; “Tracking China’s April 2023 Military Exercises around Taiwan,” ChinaPower-CSIS, April 10, 2023, https://chinapower.csis.org/tracking-chinas-april-2023-military-exercises-around-taiwan/; Kathrin Hill, “China Launches Military Maneuvers around Taiwan in Wake of Elections,” Financial Times, January 18, 2024, https://www.ft.com/content/872c0ceb-9dc8-4451-9a36-b58b880b9742
[91] Gerald C. Brown and Ben Lewis, “Taiwan ADIZ Violations, dataset,” https://docs.google.com/spreadsheets/d/1qbfYF0VgDBJoFZN5elpZwNTiKZ4nvCUcs5a7oYwm52g/edit?pli=1#gid=1129588231
[92] Brown and Lewis, “Taiwan ADIZ Violations, Dataset.”
[93] Suyash Desai, “Civilian and Military Developments in Tibet,” Takshashila Institution, December 6, 2021, https://static1.squarespace.com/static/618a55c4cb03246776b68559/t/61e5f12005a42f2bec475733/1642459437927/Civilian-and-Military-Developments-in-Tibet-1.0-SD.pdf
[94] Sushant Singh, “Big Surge in Chinese Transgression, most of them in Ladakh,” The Indian Express, May 22, 2020, https://indianexpress.com/article/india/aksai-chin-army-big-surge-in-chinese-transgressions-most-of-them-in-ladakh-6421674/
[95] Suyash Desai, “Changing Patterns of Chinese Mobilisation: National Defence Mobilisation Office and Reserve Personnel Law,” The Indian Express, June 30, 2020, https://indianexpress.com/article/explained/explained-global/expert-explains-chinese-mobilisation-national-defence-mobilisation-offices-reserve-personnel-law-8693019/
[96] David Thorne, Testimony before the U.S.-China Economic and Security Review Commission, “China’s National Defense Mobilization,” June 13, 2024, https://www.uscc.gov/sites/default/files/2024-06/Devin_Thorne_Testimony.pdf
[97] Suyash Desai, “Taiwan Forceful Reunification: China’s Targeted Military and Civilian Measures,” Foreign Policy Research Institute, March 11, 2025, https://www.fpri.org/article/2025/03/forceful-taiwan-reunification-chinas-targeted-military-and-civilian-military-measures/
[98] M. Taylor Fravel, Active Defense (New Jersey: Princeton University Press, 2019).
[99] Fravel, Active Defense.
[100] Joel Wuthnow, “System Overload: Can China’s Military Be Distracted in a War over Taiwan?,” China Strategic Perspective 15, June 25, 2020, https://ndupress.ndu.edu/Portals/68/Documents/stratperspective/china/china-perspectives-15.pdf
[101] Harsh Pant, “We All are Sinologist Now,” Observer Research Foundation, June 10, 2020, https://www.orfonline.org/expert-speak/we-are-all-sinologists-now-67643
[102] Sana Hashmi and Kalpit A. Mannikar, “Charting a Course for Deeper India-Taiwan Cooperation,” Observer Research Foundation, February 6, 2025, https://www.orfonline.org/english/research/charting-a-course-for-deeper-india-taiwan-cooperation
[103] Hashmi and Mannikar, “Charting a Course for Deeper India-Taiwan Cooperation.”
[104] Kenneth N. Waltz, Theory of International Politics (Reading, MA: Addison-Wesley, 1979).
[105] Keohane and Nye, Power and Interdependence: World Politics in Transition (Boston: Little, Brown, 1977).
[106] From authors interviews with Taiwanese diplomats.
[107] Suyash Desai, “Bridging Minds: Strengthening Educational Ties between India and Taiwan,” Upcoming publication with Observer Research Foundation and Taiwan Asia Exchange Foundation.
[108] From authors interviews with Taiwanese diplomats.
[109] From authors interviews with Taiwanese diplomats.
[110] From authors interviews with Indian diplomats.
[111] Shubhajit Roy, “India’s One-China Stand and Relations with Taiwan,” The Indian Express, August 3, 2022, https://indianexpress.com/article/explained/explained-global/india-one-china-stand-relations-with-taiwan-8066647/
[112] Sachin Parashar, “One-China? No Need to Reiterate our Consistent Policies, says India,” The Times of India, August 13, 2022, https://timesofindia.indiatimes.com/india/one-china-no-need-to-reiterate-our-consistent-policies-says-india/articleshow/93530107.cms
[113] Pranab Dhal Samantha, “One China? What about One India Policy? Sushma Swaraj to Wang Yi,” Indian Express, June 12, 2014, https://indianexpress.com/article/india/india-others/one-china-what-about-one-india-policy-sushma-to-wang/
[114] Chilamkuri Raja Mohan, “India’s One-China Policy and Taiwan Dilemmas,” ISAS Briefs, August 15, 2022, https://www.isas.nus.edu.sg/papers/indias-one-china-policy-and-taiwan-dilemmas/
[115] Vijay Gokhale, “What Should India do Before the Next Taiwan Crisis?,” Carnegie India, April 2023, https://carnegie-production-assets.s3.amazonaws.com/static/files/Gokhale_India_Taiwan_Final_PDF_edited.pdf
[116] Ben Freeman, “How the Taiwan Lobby Helped Pave the Way for Pelosi Trip,” Responsible Statecraft, August 4, 2022, https://responsiblestatecraft.org/2022/08/04/how-the-taiwan-lobby-helped-pave-the-way-for-pelosis-trip/
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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SuyashDesai is a research scholar studying Chinas defence and foreign policies. His research areas include Chinese security and foreign policies Chinese military affairs Chinese nuclear ...
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