प्रस्तावना
बांग्लादेश में 7 जनवरी 2024 को संसदीय चुनाव होने हैं और इन चुनावों के पहले ही इसके नतीज़ों का देश की घरेलू राजनीति पड़ने वाले प्रभाव एवं दुनिया के दूसरे देशों के साथ बांग्लादेश के संबंधों पर पड़ने वाले असर को लेकर चर्चा-परिचर्चा का दौर चल रहा है. वर्तमान में बांग्लादेश सरकार का नेतृत्व अवामी लीग पार्टी की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना कर रही हैं. शेख़ हसीना वर्ष 2008, 2014 और 2018 में लगातार तीन बार जीत दर्ज़ कर चुकी हैं और लगातार तीन बार से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनी हुई हैं. शेख़ हसीना के पिता बंगबंधु शेख़ मुजीबुर रहमान ने बेहद चर्चित बात कही थी, 'सभी के साथ मित्रता, किसी के प्रति द्वेष नहीं., शेख़ हसीना ने अपने पिता की इस बात पर अक्षरश: अमल किया है और इसीलिए उनकी सरकार ने विदेशी निवेश एवं विकासात्मक सहयोग के ज़रिये बांग्लादेश के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है. इसी का परिणाम है कि वर्ष 2021 में सभी दक्षिण एशियाई देशों के बीच बांग्लादेश ने सबसे ज़्यादा आधिकारिक विकास सहायता (ODA) यानी कुल 4.93 बिलियन अमेरिकी डालर की विकास सहायता हासिल की थी.[i]
हिंद-प्रशांत क्षेत्र का भू-रणनीतिक महत्व बढ़ने के साथ-साथ, बांग्लादेश इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण देश बन गया है, साथ ही एक ऐसा देश बन गया है, जिसके साथ दूसरे देश कई कारणों से सहयोगी संबंध बनाना चाहते हैं.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र का भू-रणनीतिक महत्व बढ़ने के साथ-साथ, बांग्लादेश इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण देश बन गया है, साथ ही एक ऐसा देश बन गया है, जिसके साथ दूसरे देश कई कारणों से सहयोगी संबंध बनाना चाहते हैं. सबसे अहम बात है बांग्लादेश का रणनीतिक स्थान. यह देश बंगाल की खाड़ी के उत्तर में मौज़ूद है (मानचित्र 1 देखें) और उस जगह के नज़दीक है, जहां हिंद महासागर और प्रशांत महासागर का मिलन होता है, जो मिलकर इंडो-पैसिफिक का निर्माण करते हैं. बांग्लादेश की यह रणनीतिक उपस्थिति, उसे उन महत्वपूर्ण चोकपॉइंट्स और शिपिंग मार्गों की निगरानी करने और चौकसी करने में सहज बनाती है, जिनके ज़रिये ऊर्जा और अन्य ज़रूरी सामानों से लदे जहाजों को मलक्का जलडमरूमध्य में ले जाने से पहले बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में लाया जाता है. देखा जाए तो, ऐसे में बंगाल की खाड़ी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौज़ूदगी सुनिश्चित करने के इच्छुक देशों के लिए बांग्लादेश रणनीतिक तौर पर बेहद उपयुक्त स्थिति में है. इतना ही नहीं, अगर भौगोलिक लिहाज़ से भी देखा जाए, तो बांग्लादेश अपने लैंडलॉक्ड क्षेत्रों यानी ज़मीन से घिरे भीतरी इलाक़ों (हिंद के पूर्वोत्तर और नेपाल व भूटान जैसे हिमालयी देशों समेत) और चीन जैसे पड़ोसी देशों को समुद्र तक आसान पहुंच प्रदान करने के लिए भी बेहद अनुकूल रणनीतिक स्थिति में है.
ऐसे में अगर बांग्लादेश की आर्थिक तरक़्क़ी होती है, तो ज़ाहिर तौर पर इससे उसके भू-रणनीतिक लाभों में भी बढ़ोतरी होती है. कभी जिस बांग्लादेश को अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा आर्थिक कठिनाइयों में घिरे और अपना ऋण भुगतान करने में अक्षम राष्ट्र के रूप में चिन्हित किया गया था, , [ii] आज वही बांग्लादेश वर्ष 2026 तक अपने सबसे कम विकसित राष्ट्र के दर्ज़े ,[iii] से बाहर निकलने के लिए तैयार दिखाई दे रहा है. [iv] वास्तविकता यह है कि बांग्लादेश ने जिस प्रकार से ग़रीबी को समाप्त करने और विकास हासिल करने के लिए “अभूतपूर्व” कार्य किया है, उसे विश्व बैंक द्वारा भी सराहा गया है. [v] बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, वहां युवा आबादी भी बढ़ रही है और जिस प्रकार वहां बुनियादी ढांचे का विकास एक राजनीतिक एजेंडा बन गया है, इन सबने मिलकर उन प्रमुख देशों के लिए बांग्लादेश को एक ऐसा आकर्षक निवेश गंतव्य बना दिया है, जो इस क्षेत्र में अपना दबदबा क़ायम करना चाहते हैं. इतना ही नहीं, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को ज़मीनी रास्ते से जोड़ने वाली कड़ी के रूप में बांग्लादेश ख़ासा महत्वपूर्ण है और व्यापारिक लिहाज़ से भी इसे बेहतर स्थिति में लाता है, क्योंकि यह बांग्लादेश को दोनों क्षेत्रों के देशों के बाज़ारों के लिए प्रवेश द्वार के रूप में स्थापित करती है.
मानचित्र 1: बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश का स्थान
स्रोत: भारत की एक स्वतंत्र शोधकर्ता जया ठाकुर द्वारा निर्मित.
पिछले कुछ वर्ष व्यापारिक लिहाज़ से बांग्लादेश के लिए काफ़ी उत्साहजनक रहे हैं. चीन, अमेरिका, जापान और पड़ोसी हिंद जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की ओर से बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंध मज़बूत करने की होड़ सी लग गई है और विकास से जुड़ी परियोजनाओं में बांग्लादेश का सहयोग करने से जुड़े प्रस्तावों की भरमार हो गई है. हालांकि ये जितने भी प्रस्ताव हैं, वे बांग्लादेश के विकास के लिहाज़ से मुफीद हैं और जो भी देश ऐसे सहायता कार्यक्रमों में शामिल हैं, उन सभी के लिए भी फायदेमंद साबित हुए हैं. लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि ऐसे प्रस्तावों को बिना शर्त के आगे बढ़ाया गया है, यानी बांग्लादेश को कुछ भी दांव पर नहीं लगाना पड़ा है. कई उदाहरण तो ऐसे हैं, जिनमें विकास परियोजनाओं को लेकर सहायता की पेशकश ने बांग्लादेश की सरकार की निष्पक्षता को दांव पर लगाने का काम किया है. ज़ाहिर है कि ऐसे में सियासी आज़ादी को बरक़रार रखने एवं आर्थिक महात्वाकांक्षा हासिल करने के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए बांग्लादेश में एक ऐसी बहुमत वाली सरकार की ज़रूरत है, जो कूटनीतिक तौर पर भी निपुण हो. देखा जाए तो 24 अप्रैल 2023 को बांग्लादेश की ओर से जो इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण [vi] जारी किया गया था, वो उसकी समझबूझ वाली कूटनीत का एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करता है. बांग्लादेश के दृष्टिकोण से जुड़ा यह दस्तावेज़ देखा जाए तो न ही उसके विचारों को स्पष्टता से ज़ाहिर करता है और न ही किसी विवादित मुद्दे पर उसके रुख़ के बारे में साफ-साफ बताता है, फिर भी यह दस्तावेज़ कहीं न कहीं उसके हितों और प्राथमिकताओं के बारे में एक खाका खींचने का काम करता है. उल्लेखनीय है कि आने वाले वर्षों में बांग्लादेश का यह दृष्टिकोण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दूसरे देशों के साथ उसके पारस्परिक रिश्ते कैसे होंगे, उसका मार्गदर्शन करेगा. हालांकि, आगामी 7 जनवरी को बांग्लादेश में होने वाले आम चुनाव उसकी इस स्थिति को संभावित रूप से बदल भी सकते हैं.
वर्तमान में बांग्लादेश के राजनातिक माहौल में ज़बरदस्त अशांति और उतार-चढ़ाव का दौर चल रहा है. बांग्लादेश के प्रमुख विपक्षी दलों, यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और जमात-ए-इस्लामी ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के इस्तीफे की मांग कि जा रही है, साथ ही देश में आम चुनाव कराने के लिए एक कार्यवाहक सरकार बनाने की मांग की जा रही है. हालांकि, सत्ताधारी पार्टी ने विपक्ष की मागों को अवैध करार दिया है और चुप्पी साध ली है.[vii] चुनाव आयोग द्वारा बांग्लादेश में 7 जनवरी को मतदान की तारीख का ऐलान करने के बाद, विरोध स्वरूप विपक्षी दलों द्वारा 48 घंटे का देशव्यापी बंद आयोजित किया गया था. इस दौरान चांदपुर, गाज़ीपुर, सिलहट, नोआखाली और बोगुरा जैसे ज़िलों में ज़बरदस्त हंगामा देखने को मिला. कई जगहों पर वाहनों में तोड़फोड़ की गई, साथ ही तंगेल रेलवे स्टेशन पर एक यात्री ट्रेन को आग के हवाले कर दिया गया. [viii] संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय ने अक्टूबर 2023 की एक रिपोर्ट में बांग्लादेश में फैली इस हिंसा और लोगों की मौत को लेकर चिंता ज़ाहिर की थी.[ix] सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्षी दलों ने धमकी दी कि यदि चुनाव संचालित करने के लिए कार्यवाहक सरकार गठित करने की उनकी मांग नहीं मानी गई, तो वे आम चुनाव का बहिष्कार करेंगे.
बांग्लादेश में विपक्ष की ताक़त (एक दशक तक प्रतिबंधित रहने के बाद जमात-ए-इस्लामी पार्टी चुनावी राजनीति में वापसी कर रही है) बढ़ रही है, साथ ही मीडिया में इस प्रकार की ख़बरें हैं कि देश में 'लोकतंत्र को बनाए रखने' के लिए बाहरी देशों द्वारा हस्तक्षेप किया जा रहा है ,[x]. उल्लेखनीय है कि इन हालातों में बांग्लादेश का भविष्य अप्रत्याशित नज़र आ रहा है. अगर चुनाव के बाद बांग्लादेश में सरकार बदलती है, तो ऐसे हालात में बांग्लादेश की इंडो-पैसिफिक विदेश नीति से जुड़े सिद्धांतों में संभावित रूप से बदलाव हो सकता है. ऐसा होने पर न केवल प्रमुख देशों के साथ बांग्लादेश के रिश्तों पर असर पड़ेगा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता भी प्रभावित होगी. इन परिस्थितियों में बांग्लादेश में चुनावों से पहले उसके इंडो-पैसिफिक साझीदारों के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है, साथ ही इसका आकलन करने की भी ज़रूरत है कि अगर ढाका में सत्तासीन होने वाले राजनीतिक दल में बदलाव होता है, तो तमाम देशों के साथ उसके संबंध किस हद तक प्रभावित हो सकते हैं.
इस पेपर में बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण का विस्तार से विश्लेषण करने की कोशिश की गई है, साथ ही इस दृष्टिकोण में निहित प्राथमिकताओं को गहराई से समझने एवं इंडो-पैसिफिक रीजन के ताक़तवर देशों के साथ उसके मौज़ूदा संबंधों की पड़तास करने का भी प्रयास किया गया है. इसके साथ ही इस पेपर में यह भी परखने की कोशिश की गई है कि अगर बांग्लादेश की सत्ता में परिवर्तन होता है, तो इस क्षेत्र के प्रमुख देशों के साथ इसके द्विपक्षीय संबंधों में किस प्रकार का संभावित बदलाव हो सकता है. इसके अलावा, इस पेपर में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की प्रमुख ताक़तों के साथ, ख़ास तौर पर चीन, भारत, अमेरिका और जापान के साथ बांग्लादेश के संबंधों पर विचार-विमर्श किया गया है, क्योंकि यही वे देश हैं, जो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. इतना ही नहीं, ये चारों देश वर्ष 2024 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिहाज़ से दुनिया भर की चोटी की पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं. [xi] पेपर में इन चारों देशों के साथ बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों के अलावा ऑस्ट्रेलिया के साथ उसके प्रगाढ़ होते रिश्तों को लेकर भी संक्षेप में चर्चा की गई है, ज़ाहिर है कि वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक ताक़त के रूप में उभर रहा है.
बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण की वास्तविकता
बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित बांग्लादेश ने विज़न 2041 योजना [xii] तैयार की है. इस विज़न के अंतर्गत बांग्लादेश ने वर्ष 2041 तक एक आधुनिक और ज्ञान-संचालित विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है. बांग्लादेश को बखूबी मालुम है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इंडो-पैसिफिक रीजन में स्थिरता और समृद्धि बनाए रखना बेहद आवश्यक है. बांग्लादेश के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता का तात्पर्य इस रीजन के ताक़तवर देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त बनाए रखना है. यानी चीन और अमेरिका जैसे प्रमुख देशों के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ बनाना है, जो एक दूसरे के साथ तो होड़ करते हैं, लेकिन बांग्लादेश की आर्थिक तरक़्क़ी में अहम योगदान देते हैं. हाल के वर्षों में बांग्लादेश के घरेलू आर्थिक हालातों में गिरावट और ढाका से समक्ष तमाम आर्थिक चुनौतियां पैदा होने के बाद से इन देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मज़बूत करने की आवश्यकता ख़ासतौर पर महसूस की गई है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जो बांग्लादेश पिछले कुछ वर्षों से, "उच्च आर्थिक विकास, कम मुद्रास्फ़ीति और व्यापक स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ कुछ हद तक बेहतर आर्थिक स्थित का अनुभव कर रहा था", लेकिन ख़राब नीतियों की वजह से और यूक्रेन युद्ध के बाद उपजे हालातों के कारण अब यह सकारात्क आर्थिक परिस्थितियां उलट गई हैं. [xiii] यानी कि वर्तमान में बांग्लादेश में मुद्रास्फ़ीति बढ़ गई है, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट हो गई है और ऋण भुगतान की दर में भी कमी आई है. [xiv] निस्संदेह तौर पर विदेशी राजस्व या कहा जाए कि विदेश से मिलने वाली आर्थिक मदद पर ढाका की अत्यधिक निर्भरता है. उल्लेखनीय है कि ऐसे हालातों में बांग्लादेश को अपने साझीदार देशों के साथ संबंधों को सशक्त करना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि संबंध मज़बूत होने पर ही सहयोगी देश ज़रूरत पड़ने पर बांग्लादेश को आर्थिक संकट से बाहर निकाल सकते हैं.
जिस प्रकार से बांग्लादेश की चीन के साथ घनिष्टता बढ़ रही है, ख़ास तौर पर वाणिज्यिक और रक्षा उद्यमों के माध्यम से दोनों के बीच जो प्रगाढ़ता आ रही है, उसको लेकर अमेरिका कहीं न कहीं बेहद चिंतित है. इसके साथ ही चीन की अगुवाई वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी [xv] या फिर अमेरिका के हिंद-प्रशांत आर्थिक फोरम [xvi] में शामिल होने को लेकर बांग्लादेश की अनिर्णय की स्थिति ने भी अमेरिका के विचारों में बदलाव लाने का काम किया है. [xvii]अमेरिका को लगता है कि बांग्लादेश पर बीजिंग का दबदबा बढ़ता जा रहा है और इसी आशंका की वजह से वाशिंगटन डी.सी. बांग्लादेश में मानवाधिकारों की अलोचना के ज़रिये और चुनावी अनियमितिताओं का आरोप लगाते हुए ढाका की घरेलू राजनीति में दख़ल दे रहा है, साथ ही वह बांग्लादेश में लोकतांत्रित तरीक़े से चुनाव सुनिश्चित कराने में जुटा हुआ है. अमेरिका की ओर से की जा रही इन सभी कोशिशों का उद्देश्य देखा जाए तो बांग्लादेश में सरकार को प्रभावित करना है. [xviii] यहां एक बात यह भी है कि बांग्लादेश अगर अमेरिका को आश्वस्त करना चाहता है, तो वो खुलेआम ऐसा नहीं कर सकता है, क्योंकि अगर वह ऐसा करता है, तो यह उसकी चीन से दूरी की वजह बन सकता है. ऐसे में बांग्लादेश के लिए बीच का रास्ता निकालना अत्यंत आवश्यक है, जिससे वह चीन और अमेरिका दोनों को संतुष्ट कर सके और साथ ही यह भी सुनिश्चित कर सके कि विदेश नीति कारगर बनी रही रहे, किसी एक तरफ झुकी हुई न दिखाई दे. बांग्लादेश द्वारा जारी किए गए इंडो-पैसिफिक आउटलुक में इसी तरह की बातें सामने आई हैं.
बांग्लादेश ने हिंद-प्रशांत पर भरोसा जताने से पहले लंबे दौर तक ‘देखो और इंतज़ार करो’ की रणनीति अपनाई, और आखिरकार अपने इंडो-पैसिफिक आउटलुक के माध्यम से बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत समूह में शामिल होकर अमेरिकी उम्मीदों को पूरा करने का काम किया है.
बांग्लादेश ने हिंद-प्रशांत पर भरोसा जताने से पहले लंबे दौर तक ‘देखो और इंतज़ार करो’ की रणनीति अपनाई, और आखिरकार अपने इंडो-पैसिफिक आउटलुक के माध्यम से बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत समूह में शामिल होकर अमेरिकी उम्मीदों को पूरा करने का काम किया है. अमेरिका का मानना है कि बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण और उसकी अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति के बीच उल्लेखनीय रूप से कई समानताएं हैं. जैसे कि दोनों में ही "नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे शामिल हैं, साथ ही खुली, पारदर्शी और नियम-क़ानून पर आधारित बहुपक्षीय प्रणालिया एवं पर्यावरण को लेकर लचीलापन जैसे मसले भी शामिल हैं." [xix] बांग्लादेश के दृष्टकोण दस्तावेज़ में जिस प्रकार से सभी की साझा समृद्धि के लिए स्वतंत्र, खुले, शांतिपूर्ण, सुरक्षित और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कल्पना की गई है और इसके लिए जिन शब्दों का उपयोग किया गया है, कमोबेश वे बांग्लादेश और अमेरिका द्वारा वर्ष 2022 में उच्च स्तरीय आर्थिक परामर्श की बैठक के बाद जारी किए संयुक्त वक्तव्य में इस्तेमाल किए गए वाक्यांश के समान हैं. [xx] इतना ही नहीं बांग्लादेश के आउटलुक में क्वॉड का नाम तो नहीं लिया गया है , लेकिन इसमें इस क्वॉड समूह की आपदा से जुड़े ख़तरों में कमी लाना और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसी कई प्राथमिकताओं को भी शामिल किया गया है. [xxi] बांग्लादेश द्वारा हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण जारी किए जाने के एक दिन बाद जिस प्रकार से प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने जापान, अमेरिका और ब्रिटेन का दौरा किया था, [xxii] वो भी कहीं न कहीं अमेरिका को आश्वस्त करने की कोशिशों का ही संकेत था, हालांकि यह अलग बात है कि हसीना अपने अमेरिकी दौरे के दौरान वहां किसी भी सरकारी अधिकारी से नहीं मिलीं थीं. , [xxiii]
जहां तक बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण की बात है, तो इसमें ख़ास तौर पर चार मार्गदर्शक सिद्धांतों और 15 उद्देश्यों को समाहित किया गया है, साथ ही यह बेहद कुशलता के साथ चीन को उकसाने से भी बचता हुई दिखता है. ज़ाहिर है कि चीन इंडो-पैसिफिक को अमेरिकी पर लगाम लगाने की रणनीति के रूप में इस्तेमाल करता है. [xxiv] बांग्लादेश का कहना है कि "हम किसी का अनुसरण नहीं कर रहे हैं. हमारा आईपीओ यानी इंडो-पैसिफिक आउटलुक स्वतंत्र है." [xxv] कहने का तात्पर्य यह है कि बांग्लादेश का हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण उसकी अपनी क्षेत्रीय स्थिति को मज़बूत करने का एक प्रयास है, [xxvi] जो कहीं न कहीं इंडो-पैसिफिक में उसके अपने हितों, प्राथमिकताओं और कूटनीतिक नज़रिये के बारे में बताता है और क्षेत्र के ताक़तवर देशों के साथ उसके जुड़ाव को सशक्त करने का काम करता है. बांग्लादेश के आउटलुक में पांच मुद्दे विशेष रूप से शामिल हैं, जो यह स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर करते हैं कि ढाका किस प्रकार से अपनी संतुलन की कूटनीति के ज़रिये बेहद कुशलता के साथ प्रमुख देशों की राजनीति का उपयोग कर अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा है.
• आर्थिक अहमियत: बांग्लादेश के लोगों ने हाल के वर्षों में तीव्र गति वाले आर्थिक विकास का अनुभव किया है, इसके साथ ही पिछले दशक में देश की जीडीपी तीन गुना से अधिक हो गई है. वर्ष 2012 में बांग्लादेश की जीडीपी 133.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 460.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई. [xxvii] इसी अवधि के दौरान बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति जीडीपी में लगभग 67 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, अर्थात वर्ष 2012 में प्रति व्यक्ति जीडीपी जो 1070.6 अमेरिकी डॉलर थी वो वर्ष 2022 में बढ़कर 1784.7 अमेरिकी डॉलर हो गई. [xxviii] बांग्लादेश में हुई इसी आर्थिक प्रगति का नतीज़ा है कि देश की ग़रीबी दर में कमी (2010 में 11.8 प्रतिशत से घटकर 2022 में 5 प्रतिशत) दर्ज की गई. , [xxix] इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक 2021-2022 में बांग्लादेश की स्थित में सुधार हुआ है., [xxx] इसने कहीं न कहीं बांग्लादेश के नागरिकों को अपने भविष्य को लेकर आशावान और आकांक्षी बना दिया है. [xxxi] कहने का मतलब यह है कि वर्तमान में बांग्लादेश के लोग व्यापार की बेहतर सुविधाओं, सशक्त कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के ज़रिये आज ज़्यादा आर्थिक प्रगति करना चाहते हैं. बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण पर गहनता से नज़र डाली जाए तो, स्पष्ट रूप से पता चलता है कि आर्थिक प्रगति में निरंतरता इसकी शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है. यही वजह है कि बांग्लादेश द्वारा हर सेक्टर में कनेक्टिविटी का विस्तार करने का प्रयास किया जा रहा है, फिर चाहे वो वस्तुओं, सेवाओं और लोगों की निर्बाध आवाजाही के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाना हो, या फिर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में हो. बांग्लादेश के आउटलुक में कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पैदा हुए हालातों से भी सीख ली गई है और यही वजह है कि उसके इस दृष्टिकोण में, “भविष्य में आने वाले संकटों एवं अवरोधों को बेहतर तरीक़े से संभालने के लिए और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में व्यापार के निर्बाध और मुक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर लचीली मूल्य श्रृंखला बनाने” पर ज़ोर दिया गया है. [xxxii]
• राजनीतिक गुटनिरपेक्षता: बांग्लादेश की आर्थिक तरक़्क़ी और संपन्नता देखा जाए तो काफ़ी हद तक विदेशी निवेश पर निर्भर है. यही वजह है कि बांग्लादेश किसी भी सूरत में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ताक़तवर देशों के साथ अपने संबंधों पर आंच नहीं आने देना चाहता है और रिश्तों में संतुलन बनाए रखना चाहता है. ज़ाहिर है कि यह बड़े देश बांग्लादेश की इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं में व्यापक स्तर पर निवेश करते हैं. [xxxiii] इसी कारण से बांग्लादेश के इंडो-पैसिफिक आउटलुक में न तो खुलकर चीन का समर्थन किया गया है और न ही अमेरिका की ओर झुकाव दिखाया गया है. बल्कि अपने दृष्टिकोण के इस दस्तावेज़ में बांग्लादेश द्वारा अपने चार मार्गदर्शक सिद्धांतों में से पहले सिद्धांत के रूप में "सभी से दोस्ती, किसी से दुश्मनी नहीं" के विचार का अनुसरण किया गया है. [xxxiv] इसके अलावा, इस आउटलुक में बांग्लादेश की तरफ से इंडो-पैसिफिक के भविष्य को लेकर अपनी विचारधारा में 'समावेशी' शब्द पर ज़ोर दिया गया है. बांग्लादेश का यह दृष्टिकोण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बराबरी वाले एवं सतत विकास के लिए क्वॉड समूह के पसंदीदा परिभाषिक शब्द ‘नियम-क़ानून पर आधारित व्यवस्था’ के बाजए ‘नियम-क़ानून पर आधारित बहुपक्षीय प्रणाली’ को बढ़ावा देने की भी वक़ालत करता है. [xxxv]
• शांति और स्थिरता बनाए रखने की इच्छा: बांग्लादेश की आर्थिक सफलता और संपन्नता के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता क़ायम रहना बेहद आवश्यक है. क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य के लिए बांग्लादेश के इस आउटलुक में किसी भी रक्षा सहयोग या सैन्य समझौते का जिक्र नहीं किया गया है. हालांकि यह ज़रूर है कि इसके लिए इस दस्तावेज़ में ख़ास तौर पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक़ मंज़ूर किए गए अंतर्राष्ट्रीय नियमों और संधियों का पालन करने की बात कही गई है. [xxxvi] ज़ाहिर है कि ऐसा करके बांग्लादेश द्वारा किसी भी देश का पक्ष लेने से बचा गया है. इतना ही नहीं ऐसा करके क्षेत्र में सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त मानदंडों पर ध्यान केंद्रित किया गया है. यानी उन सभी मानदंडों को मान्यता दी गई है कि अगर जिनका उल्लंघन किया जाता है, तो ऐसा करने वाले देश को वैश्विक स्तर पर नाराज़गी का सामना करना पड़ सकता है. इसके अतिरिक्त बांग्लादेश के इंडो-पैसिफिक आउटलुक में ट्रैक-2 राजनयिक प्रक्रियाओं यानी बैक चैनल कूटनीतिक गतिविधियों पर ज़ोर दिया गया है. जैसे कि पारस्परिक विवादों को सुलझाने और क्षेत्र में शांति सुनिश्चित करने के लिए साझेदारी, सहयोग और बातचीत के माध्यम से आपसी विश्वास को सशक्त करना. इस प्रकार से इस दृष्टिकोण में संयुक्त राष्ट्र के 'शांति की संस्कृति' के घोषणापत्र में निहित विचारों का अनुसरण किया गया है, उल्लेखनीय है कि इस घोषणापत्र का मसौदा तैयार करने में वर्ष 1997 में बांग्लादेश ने अहम भूमिका निभाई थी. [xxxvii]
• मानव जाति की सुरक्षा को लेकर संज़ीदगी: बांग्लादेश अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल करता है और अपनी इसी नीति की वजह से इंडो-पैसिफिक रीजन में विभिन्न देशों के कारण उत्पन्न होने वाले सुरक्षा ख़तरों से दूरी बनाकर रखता है. बांग्लादेश के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण में एक बुनियादी सिंद्धांत के रूप में किसी देश के 'आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने' पर विशेष बल दिया गया है. इससे साफ पता चलता है कि सुरक्षा से जुड़े मामलों में दख़ल देने की बांग्लादेश की कोई दिलचस्पी नहीं है. बांग्लादेश का मुख्य ध्यान किसी देश के अंदरूरी सुरक्षा मामलों में दख़ल देने के बजाए मानव जाति की सुरक्षा और वैश्विक स्तर पर लोगों के कल्याण एवं सुख-समृद्धि पर है. ढाका ऐसे तमाम वैश्विक मुद्दों पर ख़ास तौर पर ध्यान देता है, जिनके लिए मिलजुल कर कार्य करने की आवश्यकता है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, आपदा से जुड़े ख़तरों को करना, जैव विविधता का नुक़सान, समुद्री प्रदूषण, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा स्थिरता एवं समुद्री सहयोग. इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश महिलाओं के नेतृत्व में होने वाले विकास, अंतर्राष्ट्रीय अप्रसार, शांति की स्थापना, वैश्विक स्तर पर संगठित अपराध का मुक़ाबला करने और आतंकवाद का समाधान तलाशने जैसे वैश्विक मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है. अलग-अलग मुद्दों को लेकर बांग्लादेश का अलग-अलग रुख एक तरफ उसकी कमज़ोरियों को ज़ाहिर करता है और दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर उसके योगदान को भी बताता है. उदाहरण के तौर पर बांग्लादेश संयुक्त राष्ट्र के शांति प्रयासों में सबसे बड़े भागीदारों में से एक है. [xxxviii] इन विशेष क्षेत्रों में हिंद-प्रशांत के देशों के साथ सहयोग करने से ढाका को तिहरा फायदा होता है, यानी समस्या के बेहतर समाधान के लिए सामूहिक कार्रवाई की सुविधा, साझेदार देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना और वैश्विक शांति पहल का समर्थन करते हुए मानव सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में बांग्लादेश की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करना.
• समुद्री सुरक्षा पर ज़ोर: बांग्लादेश की तटीय रेखा 580 किलोमीटर लंबी है. हिंद और म्यांमार के बाद बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी को अपना तीसरा पड़ोसी मानता है. बंगाली की खाड़ी में बांग्लादेश का गैस का अकूत भंडार मौज़ूद है, लेकिन इसके बारे में अभी पता नहीं लगाया जा सका है. इसके साथ ही बांग्लादेश का 90 प्रतिशत से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्र मार्ग के ज़रिये होता है. यही वजह है कि समुद्री सुरक्षा बांग्लादेश की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इसके व्यावसायिक हित और प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा समुद्र की सुरक्षा पर उल्लेखनीय रूप से निर्भर है. बांग्लादेश के इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण में यह स्पष्ट रूप से दिखाई भी देता है. इस दृष्टिकोण के मार्गदर्शक सिद्धांतों में समुद्री क़ानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS)-1982 भी शामिल है. बांग्लादेश का उद्देश्य "इंडो-पैसिफिक रीजन में समुद्री सुरक्षा और समुद्री संपदा के संरक्षण के वर्तमान तंत्र" का सशक्तीकरण करना है. इतना ही नहीं UNCLOS सहित अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों एवं संधियों के मुताबिक़ "नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता" से जुड़ी गतिविधियों को बरक़रार रखना है. [xxxix] इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश समुद्र में पैदा होने वाली आपातकालीन परिस्थितियों का समाना करने के लिए और राहत एवं बचाव अभियान चलाने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भागीदार देशों के साथ सहभागिता चाहता है. ज़ाहिर है कि समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा एक बड़ा मसला है और इसके महत्व के मद्देनज़र बांग्लादेश का आउटलुक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में (सतत विकास लक्ष्य 14 के मुताबिक़) महासागरों एवं समुद्री संसाधनों के संरक्षण, टिकाऊ उपयोग और प्रबंधन पर बल देता है. इसके अलावा यह दृष्टिकोण विकास से संबंधित ऐसे तमाम संकल्पों की ज़रूरत पर भी ध्यान आकर्षित करता है, जिन पर वैश्विक स्तर तमाम देशों द्वारा सहमति जताई जा चुकी है. [xl] यही कारण है कि हिंद-प्रशांत के देशों के साथ बांग्लादेश के संबंधों में समुद्री क्षेत्र में साझेदारी एक अहम मुद्दा है.
बांग्लादेश राजनीतिक तौर पर गुटनिरपेक्षता या निष्पक्षता का प्रबल पक्षधर है, लेकिन बांग्लादेश की इस विचारधारा के पीछे अमेरिका या चीन नहीं है, बल्कि उसके इस क़दम के पीछे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी एक मज़बूत स्थित बनाना है और कहीं न कहीं उसने स्वयं अपने हितों को पूरा करने के लिए इस विचारधारा को अपनाया है. [xli] साथ ही बांग्लादेश के राजनीतिक निष्पक्षता के रास्ते पर चलने के पीछे दोनों प्रमुख क्षेत्रीय ताक़तों यानी चीन और अमेरिका के साथ इसकी आर्थिक तौर पर नज़दीकी भी है, जो इसके कूटनीतिक संतुलन बनाने की ज़रूरत को ज़ाहिर करती है. हालांकि, इस बात पर ध्यान दिया जाना बेहद अहम है कि बांग्लादेश के इंडो-पैसिफिक आउटलुक में तमाम सारी बातें कही गई हैं, लेकिन उनको मुकम्मल करने के लिए कोई मार्ग नहीं दिखाया गया है. कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिन्होंने भविष्य को लेकर एक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को 'आउटलुक' कहे जाने की भी आलोचना की है और कहा है कि इसमें बांग्लादेश की बुनियादी और वास्तविक योजना की कमी दिखाई देती है. [xlii] जबकि कई अन्य लोगों का कहना है कि बांग्लादेश के इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को 'आउटलुक' कहने से इसके एक लचीले रुख का आभास होता है [xliii] और एक योजना या फिर रणनीति की तुलना में यह लचीला दृष्टिकोण बांग्लादेश के लिए लाभदायक भी है. यानी बांग्लादेश के इस इंडो-पैसिफिक आउटलुक को ढाका के एक ऐसे क़दम के रूप में समझा जा सकता है, जिसका लोग अपने-अपने तरीक़ों से अर्थ निकाल सकते हैं, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य कहीं न कहीं आर्थिक संपन्नता को हासिल करना और आकांक्षाओं की पूर्ति करना है. निसंदेह तौर पर विदेश नीति प्रधानमंत्री शेख़ हसीना सरकार की प्रमुख विशेषताओं में एक रही है. शेख़ हसीना सरकार के दौरान देखा जाए तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ताक़तवर देशों के साथ बांग्लादेश के रिश्ते सशक्त हुए हैं और इससे पारस्परिक लाभ का एक सकारात्मक माहौल बना है.[xliv]
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में विशेष योगदान देने वाले देश
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बांग्लादेश के प्रमुख साझीदार देशों में अमेरिका, जापान, चीन और भारत शामिल हैं, क्योंकि ये देश बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय रूप से अपना योगदान देते हैं. उदाहरण के तौर पर चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है और उसके बाद भारत एवं अमेरिका का नंबर आता है. [xlv] (चित्र 1 देखें)
चित्र 1: चीन, हिंद, अमेरिका और जापान के साथ बांग्लादेश का व्यापार (2019-2020, मिलियन अमेरिकी डॉलर में)
स्रोत: लेखक का अपना, बांग्लादेश ट्रेड पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित [xlvi]
बांग्लादेश को विभिन्न देशों के साथ व्यापरिक रिश्तों यानी द्विपक्षीय निर्यात और आयात के अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) से भी काफ़ी फायदा होता है. बांग्लादेश में एफडीआई करने वाले चोटी के 15 देशों में चीन, भारत, अमेरिका और जापान शामिल हैं (देखें चित्र 2). इनमें से अमेरिका शीर्ष 5 देशों में शामिल है, जिसका बांग्लादेश में होने वाले कुल एफडीआई में हिस्सा 8.8 प्रतिशत है.[xlvii] ज़ाहिर है कि बांग्लादेश पूंजी के मामले में ग़रीब देश है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से उसे सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को हासिल करने में मदद मिलती है, जैसे कि यह ग़रीबी को कम करने में सहायक होता है. इसके साथ ही एफडीआई भौतिक पूंजी के निर्माण, रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने, उत्पादक की क्षमता को बढ़ाने में मददगार होता है. इसके अलावा एफडीआई प्रौद्योगिकी और प्रबंधकीय ज्ञान के आदान-प्रदान के माध्यम से स्थानीय कामगारों के हुनर को तराशने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है, साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष खड़ा करने में मदद कर सकता है.[xlviii]
चित्र 2: चीन, भारत, अमेरिका और जापान से बांग्लादेश में होने वाला एफडीआई (वित्तीय वर्ष 22-23, मिलियन अमेरिकी डॉलर और प्रतिशत में)
स्रोत: लेखक का अपना, बांग्लादेश बैंक से मिले आंकड़ों पर आधारित [xlix]
बांग्लादेश को विदेशों से पैसा मिलने का जो तीसरा रास्ता है, वो विकास में साझीदार देशों से अनुदान या ऋण के रूप में मिलने वाली विदेशी सहायता और ऑफीशियल डेवलपमेंट असिस्टेंस यानी आधिकारिक विकास सहायता (ODA) है. सभी देशों से मिलने वाली विदेशी सहयाता को देखें तो बांग्लादेश को सबसे अधिक ODA देने वाला देश जापान है. ( देखें चित्र 3) [l]
चित्र 3: बांग्लादेश को चीन, भारत, अमेरिका और जापान से हासिल विदेशी मदद (2020/21, मिलियन अमेरिकी डॉलर में)
स्रोत: लेखक का अपना, बांग्लादेश सरकार से मिले आंकड़ों पर आधारित [li]
बांग्लादेश को मिलने वाली विदेशी सहायता को तीन प्रकारों में बांटा गया है: खाद्य सहायता, वस्तुओं के रूप में सहायता और परियोजना विकास के लिए सहायता. इन तीनों प्रकार की सहयाता में बांग्लादेश के विकास में साझीदार देशों की ओर से परियोजनाओं के निर्माण और विकास के रूप में दी जाने वाली मदद सबसे लोकप्रिय है. इसकी वजह यह भी है कि ढाका के जो भी साझीदार देश हैं, वे बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए तत्पर हैं. [lii] सभी देशों के बीच जापान ऐसा राष्ट्र है, जो बांग्लादेश को परियोजना सहायता उपलब्ध कराने में सबसे आगे है. ( देखें चित्र 4) [liii]
चित्र 4: चीन, हिंद, अमेरिका और जापान द्वारा बांग्लादेश को दी जाने वाली कुल परियोजना सहायता और भुगतान (2020-21, मिलियन अमेरिकी डॉलर में)
स्रोत: लेखक का अपना, बांग्लादेश सरकार से मिले आंकड़ों पर आधारित [liv]
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट ज़ाहिर होता है कि अगर बांग्लादेश को अपनी आर्थिक संपन्नता और प्रगति में निरंतरता बनाए रखनी है, तो उसे हर हाल में चीन, भारत, अमेरिका और जापान के साथ अच्छे रिश्ते क़ायम रखने होंगे.
इंडो-पैसिफिक के प्रमुख देशों के साथ बांग्लादेश के वर्तमान रिश्ते
चीन, भारत, अमेरिका और जापान के अलावा ऑस्ट्रेलिया भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का एक ताक़तवर देश है. ऑस्ट्रेलिया क्वॉड समूह का हिस्सा है. इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया अपने राष्ट्रीय हितों को सुनिश्चित करने के लिए बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित देशों के साथ सक्रिय रूप से अपने रिश्तों को सशक्त कर रहा है, ताकि हिंद महासागर में निर्बाध और शांतिपूर्ण आवाजाही क़ायम हो सके. [lv] बंगाल की खाड़ी के अन्य देशों के बीच कैनबरा की ढाका में गहरी दिलचस्पी है और वह तेज़ी के साथ बांग्लादेश में परियोजना विकास में मदद कर रहा है. [lvi] बांग्लादेश के चीन, भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय संबंध मुख्य रूप ने निम्न क्षेत्रों में हैं:
ऊर्जा: वैश्विक स्तर पर ऊर्जा सुरक्षा एक बड़ा मसला बन चुका है और इसको लेकर वैश्विक अनिश्चितिता का माहौल है. इन हालातों में दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं ईंधन की निर्बाध आपूर्ति और ऊर्जा के भंडारों तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रही हैं. बांग्लादेश में व्यापक संख्या में ऐसे हाइड्रोकार्बन भंडार हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया है और एक लिहाज़ से जो अभी तक अछूते हैं. बांग्लादेश मालवाहक जहाजों की आवाजाही के लिए अहम समुद्री मार्गों पर ध्यान नहीं देता है, जो ऊर्जा की आपूर्ति और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश रणनीतिक रूप से अमेरिका, जापान, चीन और ऑस्ट्रेलिया के लिए बेहद अहम है. [lvii] ढाका में एक चीनी लंगर यानी जहाजों को ठहराने का स्थान है, जो न सिर्फ़ बंगाल की खाड़ी में चीन के लिए उसकी दमदार मौज़ूदगी उपलब्ध कराता है, बल्कि बीजिंग को निकट में स्थित मलक्का जलडमरूमध्य पर कड़ी निगरानी की सुविधा भी प्रदान करता है, साथ ही 'मलक्का दुविधा' (इस संकरे जलमार्ग से चीन की ऊर्जा आपूर्ति होती है और यहां से उसका 80 प्रतिशत तेल गुजरता है. इस महत्वपूर्ण जलमार्ग को लेकर चीन हमेशा आशंकित रहता है.[lviii]) का समाधान तलाशने का भी अवसर उपलब्ध कराता है. ज़ाहिर है कि एक तरफ बांग्लादेश अपनी भौगोलिक स्थिति और अपने अकूत ऊर्जा भंडारों की वजह से दुनिया के प्रमुख राष्ट्रों के लिए एक पसंदीदा देश बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश को तेज़ विकास के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना है और इसके लिए उसे भी इन देशों की ज़रूरत है.
यही वजह है कि बांग्लादेश और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भागीदारों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को निर्धारित करने में ऊर्जा सहयोग एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है. अमेरिका की ट्रेडं एंड डेवलपमेंट एजेंसी ने वर्ष 2022 में बांग्लादेश को लगभग 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का तकनीकी सहायता अनुदान दिया था, ताकि वह स्मार्ट ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर के ज़रिये अपने इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड को बेहतर बना सके. [lix] इतना ही नहीं अपने बिजली और ऊर्जा पारेषण एवं वितरण इंफ्रास्ट्रक्चर के नवीनीकरण में निवेश करने के लिए बांग्लादेश ने जापानी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी से भी मदद मांगी थी. इसी के पश्चात जापान की तरफ से बांग्लादेश में सौर, थर्मल और गैस-आधारित कई ऊर्जा परियोजनाओं की शुरुआत की गई है, जिनमें से मातरबारी कोयला आधारित बिजली संयंत्र पूरा होने वाला है. [lx] अगर बांग्लादेश बैंक के आंकड़ों पर नज़र डालें, तो स्पष्ट होता है कि चीन ने भी बांग्लादेश के ऊर्जा सेक्टर में अच्छा ख़ासा निवेश किया हुआ है. जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली संयंत्रों में एफडीआई के माध्यम से चीन के पास बांग्लादेश के बिजली सेक्टर में 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर का स्टॉक है.[lxi] उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश ने वर्ष 2041 तक अपनी 40 प्रतिशत बिजली का उत्पादन स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, इसी के मद्देनज़र चीन ने बांग्लादेश में संचालित होने वाले नवीकरणीय ऊर्जा प्रोजेक्ट्स में व्यापक स्तर पर निवेश करना शुरू कर दिया है. [lxii] ऑस्ट्रेलिया भी ऊर्जा सेक्टर में बांग्लादेश का सहयोग कर रहा है. कैनबरा ने ऑस्ट्रेलिया, हिंद और बांग्लादेश के बीच एलएनजी आपूर्ति श्रृंखला बनाने में सहयोग के लिए ढाका को 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता देने की बात कही है. [lxiii]
जहां तक भारत की बात है, तो उसने भी ऊर्जा सेक्टर में बांग्लादेश का व्यापक सहयोग किया है. मैत्री थर्मल पावर प्रोजेक्ट बांग्लादेश के सबसे बड़े कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से एक है और इसे भारत एवं बांग्लादेश के बीच 50:50 के संयुक्त उद्यम के रूप में स्थापित किया गया है. भारत और बांग्लादेश के बीच ऊर्जा सेक्टर में प्रगाढ़ होते संबंधों का ताज़ा उदाहरण भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन है, जिसका उद्घाटन मार्च 2023 में किया गया था. [lxiv] ये परियोजनाएं ऐसे समय में चालू की गईं, जब बांग्लादेश को वर्ष 2023 की शुरुआत में बड़े बिजली संकट का सामना करना पड़ा था और इसकी वजह से शेख़ हसीना सरकार को विपक्ष की ओर से ज़बरदस्त आलोचना का सामना करना पड़ा था. भारत के सहयोग से संचालित होने वाली ऊर्जा सेक्टर की इन परियोजनाओं ने कहीं न कहीं हसीना सरकार को काफ़ी राहत प्रदान की है, साथ ही भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय रिश्तों के 'शोनाली ओध्याय' यानी स्वर्णिम अध्याय को भी मज़बूती प्रदान की है. [lxv]
भू-राजनीति: बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति उसकी सबसे बड़ी खूबी है, जो इंडो-पैसिफिक रीजन में रणनीतिक लिहाज़ से उसे एक बेहद महत्वपूर्ण देश बनाने का काम करती है. बांग्लादेश दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के संधि-स्थल पर मौज़ूद है और चीन के महात्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ज़ाहिर है कि अपनी बीआरई परियोजना के माध्यम से बीजिंग "पूर्वी एशिया से बाहर निकलने और एक बड़ी वैश्विक शक्ति बनने" की कोशिश कर रहा है.[lxvi] बांग्लादेश बीआरआई की समुद्री विंग, मैरीटाइम सिल्क रोड इनिशिएटिव के लिए भी बेहद अहम है, जो हिंद महासागर में व्यापारिक लिहाज़ से महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के किनारे स्थित प्रमुख तटवर्ती देशों में बड़ी-बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को विकसित करना चाहता है. [lxvii] ऐसे में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ढाका ने हाल ही में कॉक्स बाज़ार के तट पर चीन की मदद से निर्मित अपने पहले पनडुब्बी अड्डे बीएनएस शेख़ हसीना का उद्घाटन किया है.[lxviii] ज़ाहिर है कि इस पूरे क्षेत्र में चीन की गतिविधियों की वजह से चीन और भारत के बीच भरोसा कम होता जा रहा है, श्रीलंका पूरी तरह से कर्ज़ के जाल में उलझ चुका है और म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बना हुआ है. इन परिस्थितियों में बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए चीन के लिए सबसे मुफीद देश बांग्लादेश ही है.
जबसे अमेरिका ने दक्षिण एशिया पर एक बार फिर ध्यान देना शुरू किया है, साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना के सामने आने के बाद और वर्ष 2018 के बाद से क्वॉड समूह को नया जीवन मिलने यानी उसकी गतिविधियों को दोबारा शुरू करने के बाद से [lxix] ही बांग्लादेश देखा जाए तो अमेरिका के लिए रणनीतिक तौर पर अहम होता गया है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और वैश्विक स्तर पर तेज़ी से करवट लेती भू-राजनीति के दौर में अमेरिका को हिंद महासागर में अपना दबदबा बरक़रार रखने के लिए बांग्लादेश रणनीतिक रूप से हर तरह की सहायता के लिए तत्पर है. अमेरिका के लिए बांग्लादेश कितना महत्व रखता है, इसका अंदाज़ा उसके कई नीतिगत दस्तावेज़ों से भी लगाया जा सकता है. जैसे कि वर्ष 2010 की 'बांग्लादेश: राजनीतिक और रणनीतिक विकास एवं अमेरिकी हित' शीर्षक वाली कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस रिपोर्ट और वर्ष 2012 की 'बांग्लादेश के साथ अमेरिकी संबंधों की फैक्ट शीट' नाम की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि अमेरिका के लिए बांग्लादेश कितना अधिक महत्वपूर्ण है.[lxx]
जहां तक जापान की बात है तो दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अपने लिए बाज़ार की तलाश उसे बांग्लादेश तक ले आई है. [lxxi] बांगलादेश रणनीतिक लिहाज़ से दो भू-राजनीतिक गठबंधनों के बीच में मौज़ूद है और पूर्वोत्तर हिंद, म्यांमार, नेपाल, भूटान व बंगाल की खाड़ी तक पहंचने का सबसे आसान रास्ता है. इसलिए टोक्यो, जो कि हिंद-प्रशांत के इस क्षेत्र में अपनी मौज़ूदगी को बढ़ाने का इच्छुक है, उसके लिए अपनी हसरतों को पूरा करने के लिए बांग्लादेश सबसे सटीक जगह है. इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया के लिए भी बांग्लादेश बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया को लगता है कि बांग्लादेश, जिसके पड़ोसी मुल्कों में कहीं न कहीं अस्थिरता है, लेकिन बावज़ूद इसके वहां तेज़ आर्थिक विकास और स्थिरता का माहौल है. कहने का तात्पर्य है कि बांग्लादेश एक स्थि व संतुलित पूर्वोत्तर हिंद महासागर के लिए बेहद ज़रूरी है और ऑस्ट्रेलिया ने 2023 की अपनी रक्षा रणनीतिक समीक्षा में बांग्लादेश को प्राथमिक वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना है. [lxxii]
तमाम ताक़तवर देश भले ही बांग्लादेश को अपना रणनीतिक सहयोगी मानते हों, लेकिन इसके उलट भारत, बांग्लादेश को अपना एक स्वाभाविक साझीदार समझता है. बांग्लादेश वर्ष 1947 में पूर्वी भारत से अलग होकर बना था. बांग्लादेश देखा जाए तो हिंद के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल और असम, त्रिपुरा, मिजोरम एवं मेघालय जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा बंगाल की खाड़ी के तट और छोटे से हिस्से में म्यांमार से घिरा हुआ है. यही वजह है कि अक्सर बांग्लादेश को ‘इंडिया लॉक्ड’ यानी चारों ओर से हिंद से घिरा हुआ देश कहा जाता है. लेकिन बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह भारत के चारों और ज़मीन से घिरे पूर्वोत्तर के राज्यों को समुद्र तक पहुंच प्रदान कर सकता है. प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने हिंद को कार्गो आवाजाही और असम व त्रिपुरा के विकास के लिए बांग्लादेश के मोंगला एवं चटगांव बंदरगाहों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया है. [lxxiii] इस सबके अतिरिक्त बांग्लादेश, भारत के निकटतम पूर्वी पड़ोसी देश के रूप में, साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ संपर्क के लिए ज़मीनी मार्ग के रूप में, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और नेबरहुड फर्स्ट नीतियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है.
व्यापार: बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा योगदान देने वाले देशों की बात करें, तो इसमें चीन, हिंद, अमेरिका और जापान का नाम सर्वोपरि है. चीन के लिए अपने देश में अत्यधिक मात्रा में उत्पादन होने वाली चीज़ों को खपाने के लिए बांग्लादेश एक विकासशील देश के रूप में कहीं न कहीं रेडी मार्केट है, यानी जहां कुछ भी डंप किया जा सकता है. ज़ाहिर है चीनी उत्पादों के विकल्प बहुत अधिक होते हैं, साथ ही इनकी क़ीमत भी काफ़ी कम होती है, ऐसे में चीनी उत्पाद देखा जाए तो पूरे दक्षिण एशिया में लोकप्रिय हैं. बांग्लादेश वर्तमान में हथियारों के लिए भी चीन पर निर्भर है और अपने ज़्यादातर हथियार चीन से ही खरीदता है, क्योंकि अन्य देशों की तुलना में ख़ास तौर पर अमेरिका की तुलना में चीनी हथियारों की क़ीमत कम होती है. [lxxiv] हालांकि, जिस प्रकार से दुनिया के तमाम देशों पर बीजिंग का बेतहाशा कर्ज़ बढ़ता जा रहा है और उसके बाद जो हालात पैदा हो रहे हैं, उनके मद्देनज़र प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की सरकार द्वारा चीन के साथ विकास साझेदारी के दौरान बेहद सावधानी बरती जा रही है. [lxxv] हालांकि, कुछ लोगों का यह मानना है कि ढाका के चीनी ऋण के दुष्चक्र में फंसने की संभावना बहुत ही कम है, क्योंकि निवेश के एवज में जो रिटर्न हासिल हो रहा है, वो लागत की तुलना में कहीं ज़्यादा है. [lxxvi]
हाल के वर्षों में बांग्लादेश और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में तेज़ी देखी गई है. बांग्लादेश और अमेरिका के बीच वर्ष 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. ज़ाहिर है कि दोनों देशों के बीच वर्ष 2021 में द्विपक्षीय व्यापार 10.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2020 में 7.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. यानी हाल के वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार में लगातार बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. बांग्लादेश से सबसे अधिक रेडीमेड कपड़ों का निर्यात होता है और इसके लिए अमेरिका उसका सबसे बड़ा मार्केट है.[lxxvii] ,[lxxviii] इसके साथ ही अमेरिका द्वारा दक्षिण एशिया में सहायता हासिल करने वाले में बांग्लादेश तीसरा सबसे बड़ा देश है. [lxxix] हालांकि, जापान द्वारा बांग्लादेश को सबसे अधिक विदेशी सहायता प्राप्त होती है. बांग्लादेश और जापान, दोनों ही पारस्परिक आर्थिक रिश्तों को और अधिक प्रगाढ़ करना चाहते हैं. इस दिशा में पुख्ता प्रयास अप्रैल के महीने में किया गया था, जब प्रधानमंत्री शेख़ हसीना टोक्यो के दौरे पर गई थीं, वहां पर दोनों देशों के बीच तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे. [lxxx] इतना ही नहीं वर्तमान में दोनों देशों का एक संयुक्त स्टडी ग्रुप एक आर्थिक साझेदारी समझौते की संभावना के बारे में भी गहन मंथन कर रहा है. [lxxxi] इस एग्रीमेंट पर वर्ष 2025 के अंत में या फिर वर्ष 2026 की शुरुआत में हस्ताक्षर होने की उम्मीद है. [lxxxii] ऑस्ट्रेलिया भी बांग्लादेश के साथ अपने व्यापार को प्रोत्साहित करने में जुटा हुआ है. इसी दिशा में वर्ष 2021 में ऑस्ट्रेलिया-बांग्लादेश ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट फ्रेमवर्क अरेंजमेंट यानी व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क व्यवस्था पर हस्ताक्षर किए गए थे.[lxxxiii]
दक्षिण एशियाई देशों में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार राष्ट्र बांग्लादेश है. इसके साथ ही दोनों देश व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने वाले कॉप्रहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट अर्थात व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर वार्ता शुरू करने के लिए तैयार हैं. इसके अलावा, भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार का भुगतान भारतीय रुपये में करने की भी सहमति बन चुकी है, ऐसा दोनों देशों के बीच बढ़ते द्विपक्षीय विश्वास की वजह से ही हो पाया है. इससे बांग्लादेश को भारत के साथ अपने व्यापार को और बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही अब बांग्लादेश को अपने विदेशी मुद्रा भंडार की ज़्यादा चिंता नहीं करनी होगी. ज़ाहिर है कि मार्च 2023 में बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2016 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था. रुपये में लेनदेन होने से भारत को भी फायदा होगा, क्योंकि भारत द्वारा दक्षिण एशियाई देशों में से सबसे अधिक निर्यात बांग्लादेश को ही किया जाता है.[lxxxiv]
कनेक्टिविटी: बांग्लादेश में तमाम शक्तिशाली देश अपनी साझेदारी के लिए उत्सुक दिखाई देते हैं, इसका सबसे बड़ा कारण वहां कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना है. बांग्लादेश का ज़ोर कनेक्टिविटी के लिए बुनियादी ढांचा बनाने पर है, क्योंकि कहीं न कहीं उसकी आर्थिक और सामरिक क्षमता के लिए यह ज़रूरी है. ज़ाहिर है कि बांग्लादेश की सरकार आधुनिकीकरण और विकास की इच्छुक है और इसके लिए उसे चीन सबसे बड़ा सहयोगी दिखाई देता है. इसका कारण यह है कि चीन की ओर से प्रस्तावित की जानी वाली परियोजनाएं काफ़ी अकर्षक होती हैं. एक तो चीन की ओर से नियम-क़ानूनों को ज़्यादा तबज्जो नहीं दी जाती है और दूसरी और पश्चिमी देशों की तुलना में चीनी परियोजनाएं किफायती भी होती हैं. [lxxxv] बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं को हासिल करने में हिंद काफ़ी पिछड़ा हुआ है, यहां तक कि हिंद ने वर्तमान प्रोजेक्टस को भी पूरा नहीं किया है. वहीं चीन इस मामले में बहुत आगे हैं और पद्मा ब्रिज जैसे कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण चीनी मदद से किया गया है, जो कि बांग्लादेश के विकास का मुख्य आधार बन गया है.[lxxxvi] बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के क्षेत्र में चीन का दबदबा कितना अधिक है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि अक्टूबर 2023 तक चीन द्वारा बांग्लादेश में 21 पुलों और 27 बिजली परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा था. इतना ही नहीं लगभग 670 चीनी कंपनियों ने बांग्लादेश में निवेश किया है.[lxxxvii]
बांग्लादेश में जापान की सबसे प्रमुख परियोजनाओं में से एक बे ऑफ बंगाल कॉरिडोर इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बेल्ट है. जापान की यह परियोजना ढाका को क्षेत्रीय व्यापार और आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र बना देगी और ज़ाहिर तौर पर यह टोक्यो को पड़ोसी देशों के बाज़ारों तक सुगमता से पहुंचने में भी सहायक सिद्ध होगी.
इधर, बांग्लादेश के कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण सेक्टर में तेज़ी से जापान का दबदबा भी बढ़ता जा रहा है. ऐसे में ढाका अब बीजिंग की तरफ आने वाले परियोजना प्रस्तावों पर मोलतोल करने की स्थिति में आ गया है. बांग्लादेश में जापान की सबसे प्रमुख परियोजनाओं में से एक बे ऑफ बंगाल कॉरिडोर इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बेल्ट है. जापान की यह परियोजना ढाका को क्षेत्रीय व्यापार और आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र बना देगी और ज़ाहिर तौर पर यह टोक्यो को पड़ोसी देशों के बाज़ारों तक सुगमता से पहुंचने में भी सहायक सिद्ध होगी. [lxxxviii] इस परियोजना के अंतर्गत जापान द्वारा बांग्लादेश में मातरबारी डीप सी पोर्ट का निर्माण किया जा रहा है. मातरबारी पोर्ट देखा जाए तो जापान के काशीमा और निगाटा के बंदरगाहों की तरह है. [lxxxix] मातरबारी पोर्ट बांग्लादेश का पहला ऐसा बंदरगाह है, जो गहरे समुद्र में बन रहा है, ज़ाहिर है कि जब इसका निर्माण पूरा हो जाएगा, तो चटगांव पोर्ट का बोझ कम हो जाएगा. [xc] इतना ही नहीं मातरबारी बंदरगाह नेपाल और भूटान को ट्रांज़िट ट्रेड की और ज़्यादा सहूलियत देगा. उल्लेखनीय है कि पहले बांग्लादेश में चीन के सहयोग से सोनादिया में डीप सी पोर्ट बनाने की योजना तैयार की गई थी. [xci] हालांकि, अमेरिका और हिंद की ओर से विरोध जताए जाने के बाद बांग्लादेश ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. यह उदाहरण बताने के लिए काफ़ी है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौज़ूदगी को लेकर जापान, हिंद, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया कितने चिंतित हैं और इन देशों को चीन पर कतई भरोसा नहीं है. अगर जापान की 'स्वतंत्र और मुक्त इंडो-पैसिफिक' नीति की चर्चा की जाए, तो उसके मुताबिक़ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-क़ानून पर आधारित व्यवस्था क़ायम रखना जापान की प्राथमिकता रही है. जापान की यह पॉलिसी व्यापक बंगाल की खाड़ी के हिस्से के तौर पर पूर्वोत्तर हिंद और बांग्लादेश के विकास को एकजुट करने पर भी बल देती है. [xcii] जून 2023 में ऑस्ट्रेलिया की सरकार द्वारा वित्त पोषित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी पहल के अंतर्गत 'ऑस्ट्रेलिया-बांग्लादेश इंफ्रास्ट्रक्चर पार्टनरशिप पोटेंशियल' भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.[xciii]
हिंद और बांग्लादेश के बीच साझा अंतर्राष्ट्रीय सीमा 4,096 किलोमीटर लंबी है. यह विश्व की पांचवी सबसे लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है.[xciv] यही वजह है कि हिंद और बांग्लादेश के बीच के संबंधों में कनेक्टिविटी स्वाभाविक तौर पर एक बड़ा मुद्दा है. दोनों देशों ने कनेक्टिविटी बढ़ाने को लेकर कई सारी पहलें की हैं. इसमें मैत्री एक्सप्रेस (कोलकाता-ढाका) और मिताली एक्सप्रेस (सिलीगुड़ी-ढाका) जैसी रेलवे परियोजनाओं को शुरू करने से लेकर हिंद-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्गों को अपग्रेड करना शामिल है. साथ ही बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह को हिंद के कोलकाता बंदरगाह से जोड़ना भी शामिल है. [xcv] बांग्लादेश की ओर से नेपाल और भूटान को समुद्री व्यापार सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए हिंद द्वारा बांग्लादेश को अपने क्षेत्र से पारगमन मार्ग भी उपलब्ध कराया जाता है.[xcvi]
कूटनीति: अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से बांग्लादेश का रणनीतिक महत्व बहुत अधिक है और इसी के मद्देनज़र शक्तिशाली देश बांग्लादेश को अपने पाले में करने के लिए इस पर डोरे डालते रहते हैं. अमेरिका यह साफ कर चुका है कि उसे अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में बांग्लादेश का पूरा समर्थन चाहिए. [xcvii]इसी उद्देश्य से अमेरिका ने बांग्लादेश को इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम और क्वॉड समूह में शामिल होने के लिए राज़ामंद किया है.[xcviii] अमेरिका और बांग्लादेश के बीच राजकीय यात्राओं में उल्लेखनीय रुप से बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. वर्ष 2021 से 2022 के अंत तक दोनों देशों के बीच 18 मध्यम और उच्च स्तर की राजकीय यात्राएं हुईं. [xcix] हाल ही में, अमेरिका ने ऐसे किसी भी बांग्लादेशी नागरिक को वीज़ा जारी करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था, जो वहां होने वाले चुनावों की प्रक्रिया को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा हो या उसमें दख़ल देने की कोशिश कर रहा हो. [c] शुरुआत में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने अमेरिका के इस क़दम पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन बाद में जब उन्होंने इसकी निंदा करना शुरू किया तो उन्हें अमेरिका के गुस्से का भी सामना करना पड़ा. [ci] बांग्लादेश सरकार का मानना है कि अमेरिका सत्ता में बदलाव चाह रहा है और उसकी तरफ से उठाए गए इस तरह के क़दम कहीं न कहीं विपक्षी दलों को उकसाने का काम कर रहे हैं.[cii]
ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि अमेरिका की तरफ से उठाए क़दमों के चलते बांग्लादेश पर उसका प्रभुत्व बढ़ सकता है. इसी प्रकार से चीन भी बांग्लादेश को प्रभावित करने की कोशिशों में जुटा हुआ है. चीन के रक्षा मंत्री ने जब अप्रैल 2021 में बांग्लादेश का दौरा किया था, तब उन्हें बांग्लादेश से "दक्षिण एशिया में सैन्य गठबंधन" स्थापित करने वाली बाहरी देशों के विरुद्ध सैन्य सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया. [ciii] चीनी रक्षा मंत्री के दौरे के एक महीने बाद कोविडि-19 के दौरान बीजिंग द्वारा ढाका को वैक्सीन्स की आपूर्ति किए जाने के तत्काल बाद बांग्लादेश में मौज़ूद चीन के राजदूत ने चेताया था कि अगर वो क्वॉड समूह में शामिल होता है, तो चीन के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्तों पर इसका असर पड़ेगा. [civ] जिस समय चीन द्वारा बांग्लादेश को चेतावनी दी गई थी, वो बेहद मुश्किल भरा समय था, क्योंकि उस समय कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर चल रही थी और बांग्लादेश को वैक्सीन की बहुत अधिक ज़रूरत थी. बांग्लादेश ने हिंद से जो कोरोना वैक्सीन ख़रीदी थी, उनकी डिलीवरी नहीं हो पाई थी [cv] और अमेरिका से वैक्सीन ख़रीदने को लेकर बातचीत की जा रही थी. [cvi]ऐसे मुश्किल दौर में भी बांग्लादेश ने धैर्य नहीं खोया और अपने कूटनीतिक कौशल को दिखाते हुए चीनी मदद को स्वीकार किया, लेकिन अपनी संप्रभुता पर आंच नहीं आने दी. [cvii] हालांकि, चीन ने बांग्लादेश को अपने प्रभाव में लेने की कोशिशें जारी रखीं और जब अमेरिका ने बांग्लादेश को डेमोक्रेसी समिट यानी लोकतंत्र सम्मेलन से बाहर कर दिया, तो चीन उसके साथ खड़ा रहा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पीएम शेख़ हसीना को अमेरिका का विरोध करने में समर्थन का भरोसा दिया था. [cviii] कोविड महामारी के दौरान दुनिया के कई दूसरे देशों ने भी बांग्लादेश की सहायता करके उसके साथ रिश्तों को प्रगाढ़ किया है. ऑस्ट्रेलिया की तरफ से दी गई विकास सहायता की बात करें, तो विशेष रूप से यह बांग्लादेश में स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने और कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से बाहर निकलने को ध्यान में रखकर दी गई है. [cix]ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश में राजनीतिक तौर पर स्थिरता चाहता है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए हसीना सरकार की कोशिशों की प्रशंसा करता है, लेकिन वहां जिस प्रकार से चुनाव पूर्व हिंसा हुई है, उसको लेकर ऑस्ट्रेलिया की ओर से चिंता भी जताई गई है. [cx]
दूसरी तरफ, जापान ने बांग्लादेश में होने वाले चुनाव से अपनी दूरी बना रखी है और उसका कहना है कि चुनाव बांग्लादेश का 'अंदरूनी मामला' है. [cxi] हालांकि, भारत की ओर से बांग्लादेश में आम चुनाव का पुरज़ोर समर्थन किया गया है. 1971 में बांग्लादेश को स्वतंत्रता मिलने से पहले से ही अवामी लीग के हिंद के साथ दोस्ताना संबंध रहे हैं. हिंद की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बंगबंधु शेख़ मुजीबुर रहमान के बीच मित्रता इसका सबसे अच्छा उदाहरण था. प्रधानमंत्री शेख़ हसीना, जो कि अपने पिता की विरासत को संभाल रही है, उन्होंने भी हमेशा यह मससूस किया है कि हिंद और बांग्लादेश के बीच प्रगाढ़ संबंध बेहद ज़रूरी हैं और यह भावना उनकी विदेश नीति में बखूबी झलकती भी है. निसंदेह तौर पर हिंद यही चाहता है कि बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार बनी रहे, हालांकि हिंद का यह भी कहना है कि चुनाव बांग्लादेश का आंतरिक मसला है. इसीलिए, हिंद ने अमेरिका से भी आग्रह किया है कि वो बांग्लादेश पर 'लोकतांत्रिक चुनाव' के लिए ज़्यादा दबाव नहीं डाले, क्योंकि ऐसा करने न केवल वहां कट्टरपंथी ताक़तों को सिर उठाने का मौक़ा मिलेगा, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी ख़तरा पैदा करेगा. [cxii]
सुरक्षा: आतंकवाद के विरुद्ध बांग्लादेश का रवैया बेहत सख्त़ है और उसने आतंकवाद रोकने के लिए तमाम क़दम उठाए हैं. ऐसे में आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिका की लड़ाई में बांग्लादेश उसका एक महत्वपूर्ण भागीदार है. सितंबर 2001 में हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने आतंक की स्थिति से निपटने के लिए जो तरीक़ा अपनाया था, उसकी दुनिया के कई मुस्लिम बहुल देशों ने आलोचना की थी, लेकिन उस दौरान भी बांग्लादेश ने अमेरिका की कार्रवाई का समर्थन किया था. बांग्लादेश और अमेरिका के बीच सुरक्षा के मुद्दे पर जो सहयोग का माहौल बना है, उसके पीछे द्विपक्षीय वार्ताओं और संयुक्त अभ्यासों का लंबा दौर है. इतना ही नहीं हाल के वर्षों यानी 2021 और 2022 के अंत तक दोनों देशों के सुरक्षा संबंधों में और अधिक नज़दीकी आई है.[cxiii] बांग्लादेश ने वर्ष 2023 में जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फॉर्मेशन एग्रीमेंट के मसौदे को स्वीकार किया था. इस समझौते से बांग्लादेश को अमेरिका से हथियार मिलने में मदद मिलेगी, [cxiv] लेकिन अभी इस समझौते को अंतिम रूप दिया जाना बाक़ी है.
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने अप्रैल 2023 में जापान का दौरा किया था और उनकी इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एक सुरक्षा साझेदारी पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस सुरक्षा साझेदारी के अंतर्गत दोनों देशों के सुरक्षा बलों द्वारा सद्भावना दौरे जारी रखने समेत दोनों देशों के दूतावासों में एक डिफेंस एवं नेशनल सिक्योरिटी विंग स्थापित करने का निर्णय लिया गया था. इतना ही नहीं बांग्लादेश ने जापान से रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की इच्छा भी ज़ाहिर की थी. [cxv] इधर, ऑस्ट्रेलिया ने भी बांग्लादेश के साथ अपने रक्षा सहयोग को मज़बूत करने के क्रम में हाल ही में वहां एक रक्षा कार्यालय स्थापित किया है. [cxvi]
चीन के साथ बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों में रक्षा सहयोग एक मज़बूत स्तंभ है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2002 में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. चीन के लिए बांग्लादेश इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह चीन का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा ख़रीदकर्ता देश है. [cxvii] लेकिन चीन से मिलने वाले हथियारों और सैन्य साज़ो-सामान की गुणवत्ता को लेकर बांग्लादेश ख़ुश नहीं था. इसीलिए, बांग्लादेश ने अपनी रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हिंद के साथ 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन के अंतर्गत एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए. [cxviii] यही नहीं, हिंद भी रक्षा आधुनिकीकरण में बांग्लादेश की सहायता करना चाहता है. [cxix] दोनों देशों के बीच 2023 में पांचवीं वार्षिक रक्षा वार्ता आयोजित हुई थी. [cxx]
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ज़्यादातर प्रमुख राष्ट्रों के साथ बांग्लादेश की रक्षा साझेदारी है, लेकिन अपने इंडो-पैसिफिक आउटलुक में उसने इसका उल्लेख करने से परहेज किया है. बांग्लादेश ने अपने दृष्टिकोण दस्तावेज़ में रक्षा सहयोग के बजाए विभिन्न देशों के साथ मानव सुरक्षा क्षेत्रों में किए गए सहयोग का विस्तार से उल्लेख किया है. ज़ाहिर है कि मानवजाति की सुरक्षा के लिए सहयोग, जैसे कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और आपदा जोख़िम में कमी लाने के क्षेत्रों में सहयोग है तो बहुत महत्वपूर्ण, लेकिन ऐसा सहयोग अक्सर बहुत ही कम देखने को मिलता है. इस तरह से सहयोग को देखा जाए तो अमेरिका ने बांग्लादेश की शांति स्थापना से जुड़ी क्षमताओं यानी पीसकीपिंग कैपेसिटी को बढ़ाने में योगदान करते हुए उसकी समुद्री सुरक्षा और आपदा के दौरान राहत-बचाव की क्षमताओं को बढ़ाया है. [cxxi] ऑस्ट्रेलिया भी बांग्लादेश का सहोयग कर रहा है और उसने अंतर्राष्ट्रीय अपराध से निपटने को लेकर बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय समझौता किया है. इस प्रकार से ऑस्ट्रेलिया गैरक़ानूनी प्रवासन को रोकने और हिंसक उग्रवाद का सामना करने के लिए बांग्लादेश का सहयोग करता है. [cxxii] इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के दुष्प्रभावों के प्रति लचीलापन विकसित करने में भी बांग्लादेश का सहयोग कर रहा है. [cxxiii]चीन की बात की जाए तो उसका बांग्लादेश के ऊर्जा परिवर्तन सेक्टर में सबसे अधिक निवेश है, हालांकि चीन ने अभी तक मानव सुरक्षा के अन्य क्षेत्रों में बांग्लादेश का कोई सहयोग नहीं किया है. इसी प्रकार से बांग्लादेश के आपदा प्रबंधन तंत्र को सशक्त करने में जापान उसकी भरपूर सहायता करता है. हाल ही में जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी ने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने और इसके अनुरूप बांग्लादेश की क्षमता में बढ़ोतरी के लिए काम शुरू किया है. [cxxiv] भारत ने वर्ष 2021 में बांग्लादेश के साथ आपदा प्रबंधन पर एक समझौता किया था, ताकि बंगाल की खाड़ी के तटीय इलाकों में किसी विपरीत परिस्थिति में सहयोग किया जा सके. [cxxv] भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों के अलावा बांग्लादेश दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), बे ऑफ बंगाल मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (BIMSTEC) और इंडियन ओसीन रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय मंचों पर भी हिंद के साथ मानव सुरक्षा को लेकर अधिक सहयोग करता है.
चुनाव के बाद संभावित राजनीतिक परिदृश्य
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बांग्लादेश के जो चार सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी देश हैं, उनमें से तीन राष्ट्र यानी हिंद, जापान और चीन वहां मौज़ूदा शेख़ हसीना सरकार के समर्थक हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया ने तटस्थ रुख अपनाया है और अमेरिका ने बांग्लादेश में चुनाव प्रक्रिया का मुखर विरोध किया है. जबकि इसके विपरीत बांग्लादेश के बाक़ी सहयोगी देशों ने आगामी चुनाव को लेकर चुप्पी साध रखी है और अलग-अलग तरीक़ों से एवं परियोजनाओं के माध्यम से उसके साथ अपने सहयोग को प्रगाढ़ करने में जुटे हुए हैं. इन देशों द्वारा शेख़ हसीना सरकार का समर्थन करने की सबसे बड़ी वजह उनके शासन द्वारा क़ायम की गई बहुआयामी स्थिरता है, जिसे उन्होंने अपनी नीतियों और अच्छे शासन के ज़रिये हासिल किया है.
अवामी लीग सरकार की बांग्लादेश में स्थिरता लाने की कोशिश में सबसे अधिक ज़ोर आर्थिक प्रगति और समृद्धि पर दिया गया है. जब बांग्लादेश का गठन हुआ था, तब उसका खजाना खाली था. बांग्लादेश आज़ाद होने से पहले लगभग एक चौथाई सदी तक पाकिस्तान का हिस्सा रहा और उससे पहले 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहा था. वर्ष 1971 में अपनी स्वतंत्रता के समय बांग्लादेश एक ऐसा राष्ट्र था, जो आर्थिक तौर पर बेहद ग़रीब था और युद्ध से प्रभावित था, लेकिन आज बांग्लादेश की पहचान विश्व में एक तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में हैं. बांग्लादेश को यह उपलब्धि उसकी व्यापार, एफडीआई और ओडीए के जरिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने की काबिलियत की वजह से हासिल हुई है. [cxxvi] हालांकि, पिछले वर्ष जब अपने लगातार कम होते विदेशी भंडार की समस्या से निजात पाने के लिए बांग्लादेश ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था, तब उसकी आर्थिक स्थिरता सवालों के घेरे में आ गई थी. कुछ लोगों का मानना है कि बांग्लादेश के समक्ष आईएमएफ के सामने हाथ फैलाने की नौबत इसलिए आई, क्योंकि देश में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है और हसीना सरकार की वित्तीय गतिविधियां लचर हैं, जिसमें खराब बैंकिंग नीतियां भी शामिल हैं. इन सभी वजहों से बांग्लादेश का "विकास चमत्कार" धूमिल हो रहा है. [cxxvii] जबकि कुछ लोगों का कहना था कि बांग्लादेश द्वारा आईएमएफ से ऋण की मांग सतर्कता और एहतियात के तौर पर की गई थी, यह इस बात का कतई संकेत नहीं था कि देश पर आर्थिक संकट छाया हुआ है. [cxxviii]
इसके अलावा, बांग्लादेश में अवामी लीग की सरकार आतंकवादी गतिविधियों से भी देश को सुरक्षित रखने में कामयाब रही है. बांग्लादेश की सरकार ने आतंकवाद के विरुद्ध ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है, इसके साथ ही विभिन्न आतंकवाद रोधी उपायों पर सख्ती से अमल किया है और इस प्रकार से देश से सांप्रदायिकता, उग्रवाद और आतंकवाद को समूल नष्ट करने का प्रयास किया है. बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में ही एंटी-टेररिज़्म एक्ट यानी आतंकवाद विरोधी अधिनियम और मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम जैसे आतंकवाद विरोधी क़ानून बनाए हैं. [cxxix] इसके साथ ही आतंकवाद विरोधी इकाई का भी गठन किया ग्या है, जो कि बांग्लादेश पुलिस की आतंकवाद और कट्टरवाद का सामना करने वाली सबसे प्रमुख एजेंसी है. [cxxx] बांग्लादेश ने अपने इन सभी क़दमों के माध्यम से न केवल देश के भीतर सिर उठाने वाली तमाम चुनौतियों पर लगाम लगाने में सफलता हासिल की है, बल्कि बंगाल की खाड़ी के व्यापक क्षेत्र में भी स्थिरता बनाने में अतुलनीय योगदान दिया है. [cxxxi] इस प्रकार से बांग्लादेश ने एक ऐसा शांति व सौहार्द का माहौल बनाने का काम किया है, जिसमें व्यापार और आर्थिक गतिविधियां निर्बाध रूप फल-फूल सकती हैं. इसी का नतीज़ा है कि आज दुनिया के तमाम राष्ट्र बांग्लादेश में व्यापक स्तर पर विकास और व्यापार से संबंधित गतिविधियां संचालित करने के लिए लालायित नज़र आ रहे हैं.
अगर प्रधानमंत्री शेख़ हसीना शासन के सबसे प्रमुख योगदान की बात की जाए, तो वो देश में राजनीतिक स्थिरता लाना है. पीएम शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान न तो देश में राजनीतिक हत्याएं हुईं, न तख्त़ापलट की घटनाएं हुईं और न ही सरकार के कामकाज में सैन्य हस्तक्षेप ही दिखाई दिया है. वर्ष 2006 से 2008 की अवधि को अगर छोड़ दिया जाए, तो वर्ष 1991 के बाद से ही बांग्लादेश में तय समय पर आम चुनाव होते रहे हैं.
अगर प्रधानमंत्री शेख़ हसीना शासन के सबसे प्रमुख योगदान की बात की जाए, तो वो देश में राजनीतिक स्थिरता लाना है. पीएम शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान न तो देश में राजनीतिक हत्याएं हुईं, न तख्त़ापलट की घटनाएं हुईं और न ही सरकार के कामकाज में सैन्य हस्तक्षेप ही दिखाई दिया है. वर्ष 2006 से 2008 की अवधि को अगर छोड़ दिया जाए, तो वर्ष 1991 के बाद से ही बांग्लादेश में तय समय पर आम चुनाव होते रहे हैं. जहां तक प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और उनकी पार्टी की चुनावी जीत की बात है, तो वर्ष 2008 के संसदीय चुनाव में हसीना की जीत पर कोई भी विवाद नहीं था, लेकिन वर्ष 2014 में उनकी ज़बरदस्त जीत को कई पश्चिमी देशों ने स्वीकर नहीं किया था उस पर भरोसा नहीं किया था, क्योंकि 2014 में देश के प्रमुख विपक्षी दल बीएनपी और अन्य 27 अन्य राजनीतिक पार्टियों ने आम चुनाव का बहिष्कार किया था. इसी के चलते संसद की 300 में से 153 सीटें निर्विरोध रह गईं थीं. [cxxxii]वर्ष 2018 के संसदीय चुनाव को विपक्षी पार्टियों में मज़ाक करार दिया था. , [cxxxiii] शेख़ हसीना सकार की सबसे बड़ी अलोचना जिस वजह से होती है, वह है विपक्षी दलों के प्रति इसका रवैया और विपक्ष को संभालने का तौर-तरीक़ा. इस तरह की तमाम ख़बरें आती रही हैं, जिनमें विपक्ष को कुचलने [cxxxiv] और अवामी लीग के सुर में सुर नहीं मिलाने वाले मीडिया संस्थानों पर लगाम कसने [cxxxv] की बात कही गई है. इसके साथ हसीना सरकार पर न्यायपालिका और देश के अन्य सरकारी संस्थानों को अपने हिसाब से चलाने के आरोप भी लगते रहे हैं. [cxxxvi]
बांग्लादेश में 7 जनवरी को प्रस्तावित आम चुनावों के नतीज़ों के बाद निम्न तीन संभावित परिदृश्य सामने आ सकते हैं. अगर चुनाव निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक़ होते हैं, तो पहली संभावना सबसे प्रबल दिखाई दे रही है:
पहली संभावना: अवामी लीग की सरकार बरक़रार रहेगी
जिस प्रकार से बांग्लादेश के संसदीय चुनाव का विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार किए जाने की संभावना दिख रही है और सत्ताधारी पार्टी को चुनौती देने के लिए कोई बड़ा विपक्षी दल या फिर जाना-माना विपक्षी नेता नज़र नहीं आ रहा है, उससे तो यही लगता है कि सत्ता परिवर्तन बेहद मुश्किल है.,[cxxxvii] कहने का मतलब यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में अवामी लीग की सत्ता में वापसी की प्रबल संभावना है, यानी शेख़ हसीना का एक बार फिर प्रधानमंत्री बनना तय है. इसका मतलब है कि बांग्लादेश की विदेश नीति में कोई परिवर्तन नहीं होगा. साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ताक़तवार देशों के साथ बांग्लादेश के संबंध प्रगाढ़ बने रहेंगे और इसी प्रकार से आगे बढ़ते रहेंगे. इसके अलावा, बांग्लादेश के व्यापार, एफडीआई और ओडीए में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद बनी रहेगी.
हसीना सरकार के सत्ता में वापसी की स्थिति में नई दिल्ली और ढाका द्विपक्षीय संबंधों का 'स्वर्णिम अध्याय' यूं ही आगे बढ़ता रहेगा और परमाणु ऊर्जा, डिजिटल कनेक्टिविटी एवं साइबर सुरक्षा जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग का रास्ता खुलेगा. बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी नई-नई परियोजनाएं शुरू होंगी और इस प्रकार से चीन व जापान के साथ बांग्लादेश के संबंध सशक्त होंगे. बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के बीच कनेक्टिविटी के मामले में व्यापक प्रगति हो सकती है. इसके अलावा, जापान के साथ बांग्लादेश के सुरक्षा संबंधों में नए आयाम स्थापित होंगे. हसीना की सत्ता में वापसी पर बांग्लादेश के अमेरिका के साथ संबंध भी सामान्य हो सकते हैं, क्योंकि दोनों देशों के आर्थिक हित जुड़े हुए हैं. बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना को लेकर वाशिंगटन डी. सी. द्वारा हाल में जो क़दम उठाए गए हैं, उनके मद्देनज़र अमेरिका को संबंधों में गर्मजोशी लाने के लिए अपनी तरफ से नरम रवैया अपना होगा, ताकि ढाका को बीजिंग की ओर झुकने से रोका जा सके. इसके अलावा अवामी लीग की सरकार दोबारा बनने से क्षेत्र में स्थिरता क़ायम रहेगी, यानी कोई उथल-पुथल नहीं दिखेगी.
हालांकि, दूसरा पहलू यह भी है कि अगर विपक्षी पार्टियों द्वारा आम चुनाव का बहिष्कार किया जाता है, तो पीएम शेख़ हसीना के लिए न सिर्फ़ अपनी अवाम को, बल्कि पूरी दुनिया को यह विश्वास दिलाने में बहुत दिक़्क़त पेश आएगी की उसकी जीत विश्वसनीय है. विपक्ष के बहिष्कार के बाद अगर हसीना जीतती हैं, तो आने वाले दिनों में यह अमेरिका के साथ विवाद का मुद्दा बन सकता है. विशेष रूप से उस वक़्त यह विवाद का मुद्दा ज़रूर बनेगा, जब बांग्लादेश अमेरिका से छिटक जाए और चीन के साथ गलबहियां करता नज़र आए. इसके साथ ही पड़ोसी देश यानी बांग्लादेश में बढ़ता चीन का दबदबा भारत के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है.
दूसरी संभावना: अवामी लीग और विपक्षी दलों का गठबंधन सत्ता में आ जाये
अगर बांग्लादेश में विपक्षी दल चुनाव में हिस्सा लेते हैं और अच्छी-ख़ासी सीटों पर जीत हासिल कर लेते हैं, साथ ही अवामी लीग चुनाव में बहुमत से कम सीटें हासिल करती है, तो इसकी प्रबल संभावना है कि चुनाव के नतीज़ों के बाद एक नया गठबंधन बने. ज़ाहिर है कि इस नए गठबंधन में भी अवामी लीग सबसे बड़ी पार्टी होगी, तो प्रधानमंत्री का पद तो शेख़ हसीना के पास ही रहेगा, लेकिन तब सरकार साहसिक निर्णय नहीं ले पाएगी. ऐसा होने पर देश में आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण पैदा हो सकता है, [cxxxviii] जो कहीं न कहीं दूसरे देशों के साथ ढाका के संबंधों पर असर डाल सकता है. इन परिस्थितियों में जहां तक हिंद के साथ संबंधों की बात है, तो निश्चित तौर पर पारस्परिक रिश्तों में पहले जैसी ऊर्जा नहीं रहेगी. दोनों देशों के बीच नई साझेदारियों और सहयोग में रुकावट आएगी, साथ ही पहले से चल रही परियोजनाओं में भी देरी हो सकती है. बांग्लादेश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता है, लड़ाई-झगड़े बढ़ सकते हैं, जिससे भारत से साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर असर पड़ सकता है और क्षेत्रीय स्थिरता भी डंवाडोल हो सकती है. जापान के सहयोग से विशेष रूप से हिंद के पूर्वोत्तर में चल रही परियोजनाओं में देरी हो सकती है. हालांकि, गंठबंधन सरकार बनने की स्थिति में अमेरिका के साथ संबंधों में नज़दीकी आ सकती है, क्योंकि सरकार में अमेरिका समर्थक विपक्षी पार्टियां शामिल होंगी. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि विपक्षी दलों ने अमेरिका द्वारा की जा रही आलोचनाओं का सहारा लेकर ही हसीना सरकार के विरुद्ध आरोपों की बौछार की है. हालांकि, देखा जाए तो यह कोई ख़ास बड़ा मसला नहीं बनेगा, लेकिन अमेरिका के साथ निकटता, बांग्लादेश-चीन संबंधों में ज़रूर परेशानी पैदा करेगी.
तीसरी संभावना: अवामी लीग सत्ता में आए, लेकिन देश में विरोध प्रदर्शन बढ़ जाएं और अराजकता फैल जाए
खराब से खराब स्थिति में, हालांकि इसी संभावना बहुत कम ही दिखाई देती है, अगर शेख़ हसीना की सरकार विपक्षी दलों को चुनाव में भागीदारी के लिए मनाने में विफल रहती हैं, यानि कि वर्ष 2018 में हुए चुनाव वाली स्थिति दोबारा से पैदा होती है, जिसे लोकतंत्र के नाम पर मज़ाक करार दिया गया था, [cxxxix] तब हसीना की जीत पर विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि देश की जनता भी सवाल उठा सकती है. ऐसी परिस्थितियों में विपक्षी दल भड़क सकते हैं और उनके समर्थक हिंसक विरोध प्रदर्शनों की शुरूआत कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि हालात पर काबू पाने के लिए सरकार द्वारा कड़े क़दम उठाना मज़बूरी होगी और इसे कहीं न कहीं मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया जा सकता है. इससे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की चिंता बढ़ जाएगी. उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं देश में चुनाव पूर्व हिंसा के बारे में पहले से ही चिंता जता चुकी हैं. अगर सरकार ऐसे विपरीत हालातों को बेहतर तरीक़े से काबू में नहीं कर पाती है, तो इस बात का ख़तरा पैदा हो सकता है कि देश में सक्रिय कट्टरपंथी और चरमपंथी समूह सत्ता में हिस्सेदारी हासिल करने का प्रायस करें. ऐसा होने पर बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था और आर्थिक प्रगति का वातावरण संकट में पड़ जाएगा और यह कहीं न कहीं देश को हिंसा और अराजकता की आग में धकेलने का काम करेगा. बांग्लादेश में ऐसे हालात पैदा होने से क्षेत्रीय स्थिरता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. ज़ाहिर है कि इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख देशों के साथ बांग्लादेश के संबंधों पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में एक को छोड़कर बाकी सभी लोकतांत्रिक देश हैं.
निष्कर्ष
वैसे जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए बांग्लादेश में 7 जनवरी को होने वाले चुनाव के पश्चात वहां की सरकार में ज़्यादा कुछ बदलाव होने की संभावना नज़र नहीं आती है. इसका तात्पर्य यह है कि बांग्लादेश की विदेश नीति फिलहाल जैसी है, वैसी ही बनी रहेगी, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ तो ढाका की विदेश नीति में कोई परिवर्तन नहीं होगा. गौर करने वाली बात यह भी है कि वर्ष 1972 के बाद से ही बांग्लादेश की विदेश नीति में कोई उल्लेखनी बदलाव नहीं दिखाई दिया है. बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर रहमान ने अपने शासन के शुरुआती वर्षों के दौरान चीन के साथ मित्रता की कोशिश की थी, ज़ाहिर है कि वहां के हर दूसरे नेता द्वारा किया जाता है. हालांकि, भारत के साथ मुजीबुर रहमान की नज़दीकी उस वक़्त चीन के साथ मित्रता के आड़े आ गई थी, क्योंकि उस समय बांग्लादेश पर काबिज उनकी सरकार को हिंद की कठपुतली सरकार समझा जाता था. हालांकि, वर्ष 1975 में मुजीब सरकार का अंत होने के साथ ही बांग्लादेश में बदलाव का दौर शुरू हुआ और 1977 से राष्ट्रपति जियाउर रहमान की अगुवाई में बीएनपी सरकार बनने के बाद बांग्लादेश के हिंद के साथ रिश्तों में कमी आने लगी, साथ ही चीन के साथ उसकी क़रीबी बढ़ने लगी.[cxl] हालांकि 1982 से 1990 तक बांग्लादेश में राष्ट्रपति हुसैन मुहम्मद इरशाद के शासनकाल के दौरान हिंद के साथ उसके संबंधों में फिर से नई जान पड़ी, लेकिन वर्ष 1991 और 1996 के बीच एक बार फिर बीएनपी के सत्ता में आने के बाद इन रिश्तों की गर्माहट कम हो गई. इसके बाद वर्ष 1996 में और फिर वर्ष 2008 के बाद से शेख़ हसीना सरकार के हाथों में बांग्लादेश की बागडोर पहुंचने के बाद हिंद के साथ उसके संबंध एक बार फिर से प्रगाढ़ होने लगे. इस पूरे विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इंडो-पैसिफिक के प्रमुख देशों में हिंद ही एक ऐसा राष्ट्र है, जिसके साथ बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंध काफ़ी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं. ऐसे में अगर बांग्लादेश के इस चुनाव में अवामी लीग की सत्ता में वापसी होती है, तो हिंद के साथ उसके पारस्परिक रिश्तों में निरंतरता क़ायम होगी.
बांग्लादेश की सत्ता में शेख़ हसीना के फिर से आने के बाद इस बात की पूरी उम्मीद है कि बांग्लादेश अपनी पूर्व निर्धारित प्राथमिकताओं एवं अपने हितों (जैसा कि इंडो-पैसिफिक आउटलुक में विस्तृत है) को सर्वोपरि रखते हुए, गुटनिरपेक्ष बना रहेगा, साथ ही कूटनीतिक कौशल का परियचय देते हुए अमेरिका एवं चीन के बीच अपने रिश्तों का संतुलन बनाए रखेगा. इतना ही नहीं, इसकी भी उम्मीद है कि जापान के साथ बांग्लादेश के विभिन्न क्षेत्रों में जो संबंध बने हुए हैं, वे भी तेज़ी के साथ आगे बढ़ेंगे. इन सबके ऊपर भारत और बांग्लादेश के संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रहेगी और तेज़ी से नए आयाम भी छुएगी. इतना ही नहीं आने वाले दिनों में हिंद और बांग्लादेश संयुक्त रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भीतर बंगाल की खाड़ी के विकास की अगुवाई करेंगे. इसके अलावा बांग्लादेश के दूसरे राष्ट्रों के साथ संबंधों की बुनियाद में अपनी आर्थिक अभिलाषाओं को पूरा करना और भविष्य की ज़रूरतों के मुताबिक़ इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना निहित होगा. इसके अलावा, निर्माण और विकास की इन गतिविधियों में समुद्री क्षेत्र बांग्लादेश की पहली प्राथमिकता होगा. शेख़ हसीना के दोबारा सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश मानव सुरक्षा से जुड़े मुद्दों, वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों और नियम-क़ानून पर आधारित बहुपक्षीय प्रणाली को बढ़ावा देने पर ज़ोर देता रहेगा और इसके लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अपने भागीदार देशों के साथ आपसी सहयोग को भी बढ़ाएगा.
शेख़ हसीना के दोबारा सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश मानव सुरक्षा से जुड़े मुद्दों, वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों और नियम-क़ानून पर आधारित बहुपक्षीय प्रणाली को बढ़ावा देने पर ज़ोर देता रहेगा और इसके लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अपने भागीदार देशों के साथ आपसी सहयोग को भी बढ़ाएगा.
उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश ने हमेशा से ही क्षेत्रीय गतिविधियों में सक्रियता दिखाई है और सहयोग को सुदृढ़ करने का पुरज़ोर प्रयास किया है. इसके अलावा बांग्लादेश ने SAARC एवं BIMSTEC जैसे संगठनों के गठन की अगुवाई की है, साथ ही वर्ष 2021 और 2023 के बीच IORA के अध्यक्ष का पदभार संभाला है. ये सभी संगठन तमाम मुद्दों पर सहयोग कहते हैं और भविष्य की रूपरेखा तैयार करते हैं, जिसमें समुद्री सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, व्यापार, निवेश और विकास जैसे विषय शामिल हैं. ज़ाहिर है कि बांग्लादेश ने अपने हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण में भी इन सभी मुद्दों को प्राथमिकता में रखा है. कहने का तात्पर्य यह है कि अगर बांग्लादेश में स्थिरता का माहौल बनेगा और हिंद-प्रशांत से जुड़ी इसकी नीतियों में कोई बदलाव नहीं होगा, यानी निरंतरता क़ायम रहेगी, तो निश्चित तौर पर इससे समुद्री सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, व्यापार और निवेश जैसे सेक्टरों में न केवल क्षेत्रीय सहयोग सशक्त होगा, बल्कि तेज़ी के साथ आगे भी बढ़ेगा.
बांग्लादेश के चुनाव में लगातार जीत दर्ज करने वाली प्रधानमंत्री शेख़ हसीना इससे पूर्व में वर्ष 1996 से 2001 के बीच एक बार और पीएम पद पर रह चुकी हैं.
यह नियम बांग्लादेशी संविधान के अनुच्छेद 25 में भी निहित है.
चुनाव की तारीख़ का ऐलान 15 नवंबर 2023 को किया गया था. नाकाबंदी 19 नवंबर तक शुरू हुई.
अमेरिका तमाम सारे क़दमों के ज़रिए बांग्लादेश की घरेलू राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है. इसके पीछे उसका उद्देश्य वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराना है. अमेरिका के ताज़ा क़दमों में ऐसे बांग्लादेशी नागरिकों के लिए अमेरिकी वीज़ा को प्रतिबंधित करना था, जिनके बारे में माना जाता है कि वे लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को कमज़ोर कर रहे हैं.
यद्यपि अमेरिका ने अपनी भारत-प्रशांत रणनीति को लेकर बांग्लादेश से अग्रिम समर्थन मांगा था, लेकिन ढाका ने आंख बंद करके समर्थन करने से पहले यह जानने की कोशिश की थी कि इस रणनीति में क्या है, क्योंकि उसे लगता है कि अमेरिकी रणनीति का लक्ष्य चीन का विरोध है. बांग्लादेश आज तक अमेरिकी रणनीति में शामिल नहीं हुआ है, लेकिन अब इसने अपना खुद का भारत-प्रशांत दृष्टिकोण बना लिया है.
क्वाड, अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक समूह है. चीन का कहना है कि क्वाड एक चीन विरोधी संगठन है.
बांग्लादेश में वर्ष 2010 में ग़रीबी दर 11.8 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2022 में घटकर 5 प्रतिशत हो गई. यह 2.15 अमेरिकी डॉलर प्रति दिन की अंतर्राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा (2017 की क्रय शक्ति अनुरूपता दरों का उपयोग करके) पर आधारित है.
मानव विकास सूचकांक में 191 देशों में से बांग्लादेश 129वें स्थान पर है. बांग्लादेश मीडियम ह्यूमन डेवलपमेंट कंट्रीज में से एक है और इसका वर्तमान मूल्य 0.661 है, जो कि दक्षिण एशिया के 0.632 के मूल्य से बेहतर है.
वर्ष 1991 और 1996 के बीच बांग्लादेश में बीएनपी की सरकार थी, जबकि 1996 और 2001 के बीच अवामी लीग की सरकार थी. वर्ष 2001 और 2006 के बीच बांग्लादेश में बीएनपी की सरकार थी, जबकि वर्ष 2006 और 2008 के बीच सैन्य सहायता के साथ एक कार्यवाहक सरकार द्वारा बांग्लादेश पर शासन किया गया था.
हालांकि, वर्ष 2018 का संसदीय चुनाव ऐसा था, जो एक दशक में बांग्लादेश का पहला पूर्ण रूप से लड़ा गया चुनाव था. लेकिन इस चुनाव को विपक्षी पार्टियों द्वारा एक मज़ाक करार दिया गया था, क्योंकि अवामी लीग और उसके गठबंधन ने 96 प्रतिशत वोट के साथ भारी जीत हासिल की थी और 298 संसदीय सीटों में से 288 पर कब्जा कर लिया था, जिसका विरोध किया जा रहा था. इस चुनाव के दौरान कई अनिमितताएं देखने को मिली थीं, जैसे कि व्यापक स्तर पर हिंसा हुई थी, बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों के नेताओं को गिरफ़्तार किया गया था और मतपत्रों की गिनती में गड़बड़ी की बात कही गई थी.
बीएनपी नेता ख़ालिदा जिया अस्वस्थ हैं और घर में नज़रबंद हैं.
[v] The World Bank, “The World Bank in Bangladesh.”
[x] Sohini Bose, “Elections in Bangladesh: A kaleidoscopic overview.”
[xii] Government of Bangladesh, Making Vision 2041 a Reality, PERSPECTIVE PLAN OF BANGLADESH 2021-2041, Dhaka: General Economics Division, Bangladesh Planning Commission, Ministry of Planning, March 2020, chrome-extension://efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/http://oldweb.lged.gov.bd/UploadedDocument/UnitPublication/1/1049/vision%202021-2041.pdf
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[xxxii] Government of Bangladesh, Indo-Pacific Outlook of Bangladesh.
[xxxiv] Government of Bangladesh, Indo-Pacific Outlook of Bangladesh.
[xxxv] Rubiat Saimum, “Bangladesh’s strategic pivot to the Indo-Pacific.”
[xxxvi] Government of Bangladesh, Indo-Pacific Outlook of Bangladesh.
[xxxvii] Rubiat Saimum, “Bangladesh’s strategic pivot to the Indo-Pacific.”
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[xliv] Mubashar Hasan, “Bangladeshi PM Swings Through Japan, US and UK.”
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[xlix] Bangladesh Bank, “Foreign Direct Investment and External Debt.”
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[liv] Government of Bangladesh, “Development Partner-wise Disbursement of Project Aid during 2020-21.”
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[lxvii] Brahma Chellaney, “China’s Silky Indian Ocean Plans.”
[lxxvii] Shafiqul Elahi, “Current Trends and Future Prospects in Bangladesh-US Relations.”
[lxxix] Shafiqul Elahi, “Current Trends and Future Prospects in Bangladesh-US Relations.”
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[xcii] Fumiko Yamada, “Why is Japan Edging Closer to Bangladesh and India?.”
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[xcvi] Sohini Bose, “Bangladesh’s Seaports: Securing Domestic and Regional Economic Interests,” Observer Research Foundation, Occasional Paper no. 387, January 2023, 22-23, chrome-extension://efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https://images.hindustantimes.com/images/app-images/2023/1/ORF_OP_387_Bangladeshs_Seaports_ForUpload.pdf
[xcvii] Government of America, “Indo-Pacific Strategy of the United States,” The White House, February 2022 chrome-extension://efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https://www.whitehouse.gov/wp-content/uploads/2022/02/U.S.-Indo-Pacific-Strategy.pdf
[xcix] Shafiqul Elahi, “Current Trends and Future Prospects in Bangladesh-US Relations.”
[c] Sohini Bose, “Elections in Bangladesh: A kaleidoscopic overview.”
[cii] Shahadat Hossain, “Bangladesh’s geopolitical balancing act.”
[cviii] Mubashar Hasan, “What is Driving China-Bangladesh Bonhomie?”
[cxiii] Shafiqul Elahi, “Current Trends and Future Prospects in Bangladesh-US Relations.”
[cxiv] Shafiqul Elahi, “Current Trends and Future Prospects in Bangladesh-US Relations.”
[cxv] Mubashar Hasan, “Bangladeshi PM Swings Through Japan, US and UK.”
[cxvii] Seshadri Chari, “China’s arms game with Bangladesh getting dangerous. BNS Sheikh Hasina is just a start.”
[cxxii] Government of Australia, “Bangladesh country brief.”
[cxxix] H.E. Dr. A.K.Abdul Momen, “'Measures to Eliminate International Terrorism',”(Statement, Plenary of the Sixth Committee of the 70th UNGA on, New York, October 12, 2015), chrome-extension://efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https://www.un.org/en/ga/sixth/70/pdfs/statements/int_terrorism/bangladesh.pdf
[cxxxviii] Pranay Sharma, “If Sheikh Hasina loses January election, Bangladesh could face prolonged political and economic instability,” The Hindu, August 20, 2023, https://frontline.thehindu.com/world-affairs/sheikh-hasina-awami-league-us-china-january-election-bangladesh-terrorism-economic-south-asia/article67175717.ece
[cxxxix] Michael Safi, Oliver Holmes and Redwan Ahmed, “Bangladesh PM Hasina wins thumping victory in elections opposition reject as 'farcical'.”
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