Published on Nov 06, 2025 Commentaries 2 Days ago

बीजिंग में एक बार फिर शी जिनपिंग का लोहे का फरमान गूंजा है जिसमें नौ जनरल, एक झटके में बाहर हो गए. अब हर तरफ़ एक ही सवाल है कि क्या ये सफ़ाई का अभियान है या शी अपने सिंहासन के चारों ओर डर का किला खड़ा कर रहे हैं?

जिनपिंग का नया फरमानः भ्रष्टाचार पर वार या डर की दीवार?

17 अक्टूबर 2025 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने अपनी सेना के नौ सबसे सीनियर नेताओं को पार्टी से निकाल बाहर किया. कम्युनिस्ट पार्टी से निकाले जाने वालों में चीन की सेना की सबसे अहम संस्था सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) के सदस्य, पूर्व रक्षा मंत्री और थिएटर कमांडर तक शामिल हैं. वैसे तो ये क़दम कोई हैरानी वाली नहीं था क्योंकि निकाले गए ज़्यादातर अधिकारी पिछले कुछ महीनों के दौरान हिरासत में रखे गए थे. लेकिन, चीन पर नज़र रखने वाले इस बात पर हैरान हैं कि शी जिनपिंग के ज़माने में सेना से जितने बड़े पैमाने पर छंटनी की गई है, उसने माओ के दौर में की गई ऐसी कार्रवाइयों को भी पीछे छोड़ दिया है. इस हालिया कार्रवाई ने कुछ अहम सवाल खड़े कर दिए हैं: क्या जिन अधिकारियों पर कार्रवाई की गई, वो शी जिनपिंग के विरोधी तबक़े से जुड़े थे, जो उनके दबदबे को चुनौती देने की कोशिश कर रहे थे? क्या ये चीन की सेना और सिविलियन लीडरशिप के बीच बढ़ते टकराव का संकेत है? या फिर, बड़े सैन्य अधिकारियों पर इस कार्रवाई से क्या चीन की सैनिक शक्ति और ख़ास तौर से ताइवान पर हमला करने की उसकी तैयारियों पर भी असर पड़ेगा?

  • शी जिनपिंग अब तक, 50 लाख से ज़्यादा अधिकारियों पर कार्रवाई कर चुके हैं.

  • शी जिनपिंग, माओ और देंग शाओ पिंग का अक़्स नज़र आते हैं. माओ और देंग ने भी अपना एक सियासी वारिस तय करने से पहले बहुत से लोगों को आज़माया था.

सभी हैं शी जिनपिंग के वफ़ादार

जब 2002 में शी जिनपिंग के पूर्ववर्ती हू जिंताओ चीन के राष्ट्रपति बने थे, तभी से जिनपिंग ये देखते आ रहे थे कि उनको कितनी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा था. क्योंकि, हू जिंताओ को जिस व्यवस्था से राज-काज चलाना था, उसमें उनके पहले के राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन के वफ़ादारों का दबदबा था. ऐसे में हू जिंताओ जो भी बड़े नीतिगत फ़ैसले लेते, उनमें जियांग ज़ेमिन द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी अक्सर अड़ंगे लगाते रहते थे; शी जिनपिंग ने इस तजुर्बे से जो सबक़ सीखा था, उसके चलते वो ऐसी ग़लती दोहराने से हर हाल में बचना चाहते थे. इसी वजह से अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों में ही शी जिनपिंग ने निर्णायक क़दम उठाते हुए जियांग ज़ेमिन के नज़दीकी लोगों और सहयोगियों को सेना और पूरे सुरक्षा ढांचे से निकाल बाहर किया था. 

 कुल मिलाकर चीन की राजनीति और सेना के शीर्ष नेतृत्व को शी जिनपिंग की छवि के मुताबिक़ ढाल दिया गया है. ऐसे में अब शायद ही कोई ऐसा बड़ा नेता बचा है, जो जिनपिंग का वफ़ादार न हो.

2012 में सत्ता में आने के बाद से शी जिनपिंग अब तक, 50 लाख से ज़्यादा अधिकारियों पर कार्रवाई कर चुके हैं. भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के तहत की गई इस कार्रवाई के दायरे में सीनियर और जूनियर दोनों तरह के अधिकारी आए हैं. इस मुहिम का आग़ाज़ तो कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर अनुशासन लाने के नाम पर हुआ था. लेकिन, आगे चलकर जिनपिंग ने इसके बहाने पार्टी और सैन्य बलों के भीतर अपने प्रतिद्वंदियों का सफ़ाया भी शुरू कर दिया. इसी के साथ साथ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने ‘चेयरमैन रिस्पॉन्सिबिलिटी सिस्टम’ लागू कर दिया, जिसमें शी जिनपिंग को औपचारिक रूप से ‘चीन के नेतृत्व की धुरी’ घोषित कर दिया गया, जिनको चुनौती नहीं दी जा सकती है.

इसीलिए, आज चीन की राजनीति हो या फिर सैन्य बल हर अहम पदाधिकारी या तो सीधे शी जिनपिंग के मातहत काम कर चुका है या फिर अपनी तरक़्क़ी के लिए उनका क़र्ज़दार है. कुल मिलाकर चीन की राजनीति और सेना के शीर्ष नेतृत्व को शी जिनपिंग की छवि के मुताबिक़ ढाल दिया गया है. ऐसे में अब शायद ही कोई ऐसा बड़ा नेता बचा है, जो जिनपिंग का वफ़ादार न हो. ऐसे में सैन्य अधिकारियों पर हालिया कार्रवाई के पीछे इस तर्क में दम नहीं दिखता कि ये वो गुट था, जो सत्ता पर उनकी पकड़ को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा था.

उत्तराधिकार और भ्रष्टाचार

शी जिनपिंग के लिए अपनी हुकूमत की स्थिरता बनाए रखना और सेना में गोपनीयता का वो ढांचा एक बड़ी चुनौती है, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, और इन दोनों से अपनी अलग तरह की चुनौतियां पैदा होती रही हैं. किसी भी हुकूमत को स्थिर बनाए रखने के लिए उत्तराधिकार की एक स्पष्ट योजना का होना ज़रूरी है. पर चूंकि शी जिनपिंग लगातार अपने वफ़ादारों को ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहते हैं, इसलिए ये योजना लड़खड़ाती दिख रही है. जिनपिंग उन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाते रहे हैं, जो या तो कमज़ोर समझे जाते हैं, या फिर जिनकी वफ़ादारी पर उनको पूरा यक़ीन नहीं होता है. ऐसे में निष्कासन की उनकी कार्रवाई कुछ अधिकारियों तक सीमित नहीं रही है. बल्कि, अधिकारियों के साथ ही उनके अपने नेटवर्क और उनके उत्तराधिकारी भी कार्रवाई का शिकार बने हैं. ऐसे में जिनपिंग के मातहत काम करने वालों के बीच लगातार अनिश्चितता का माहौल बना रहता है और वो हमेशा सतर्क बने रहते हैं. इससे जिनपिंग तक हर ख़बर अबाध रूप से पहुंचती रहती है और इस तरह निर्णय प्रक्रिया में उनका निजी नियंत्रण और मज़बूत होता रहता है.

जिनपिंग के उत्तराधिकार की योजना एक बुनियादी विरोधाभास की शिकार है: शी जिनपिंग अपने वफ़ादारों में से किसी एक को अपना सियासी वारिस बनाना चाहते हैं. लेकिन, वो किसी को भी इतनी ताक़त देने को तैयार नहीं हैं, जो उनकी ताक़त को चुनौती दे सके.

यही नहीं, शी जिनपिंग ने उप-राष्ट्रपति के पद को नेतृत्व संभालने की ट्रेनिंग वाले ओहदे की जगह एक नुमाइशी पद में तब्दील कर डाला है, जिस पर रिटायर होने वाले अधिकारियों को बैठाया जाता है. इसी तरह उन्होंने केंद्रीय सैन्य आयोग में सिविलियन नेताओं की तैनाती भी रोक दी है. ऐसे में जिनपिंग के उत्तराधिकार की योजना एक बुनियादी विरोधाभास की शिकार है: शी जिनपिंग अपने वफ़ादारों में से किसी एक को अपना सियासी वारिस बनाना चाहते हैं. लेकिन, वो किसी को भी इतनी ताक़त देने को तैयार नहीं हैं, जो उनकी ताक़त को चुनौती दे सके. इस मामले में शी जिनपिंग, माओ और देंग शाओ पिंग का अक़्स नज़र आते हैं. माओ और देंग ने भी अपना एक सियासी वारिस तय करने से पहले बहुत से लोगों को आज़माया था.

जिनपिंग की दूसरी चुनौती, सेना की भयंकर गोपनीयता वाली परंपरा है. इसकी वजह से भ्रष्टाचार एक महामारी की तरह फैल गया है. अब जबकि चीन का रक्षा बजट बढ़कर 249 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, तो पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के भीतर अपारदर्शिता ने हथियारों की ख़रीद, मूलभूत ढांचे के विकास और अन्य क्षेत्रों में भयंकर भ्रष्टाचार को जन्म दिया है. इसके अलावा, चीन की सेना में पैसे देकर प्रमोशन पाने की संस्कृति लंबे समय से फलती फूलती आई है. चूंकि जिनपिंग को सेना में काम करने का कोई अनुभव नहीं रहा है, ऐसे में उनको अपनी कमियों का बख़ूबी अंदाज़ा है और ये भी पता है कि इससे उनको निगरानी और अपनी पकड़ बनाए रखने में क्या दिक़्क़तें आने वाली हैं.

इस कमज़ोरी से निपटने के लिए शी जिनपिंग ने दोहरी रणनीति अपनाई है: वो सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और उनसे जुड़े लोगों पर लगातार कार्रवाई करते रहे हैं. इसके अलावा जिनपिंग नई नई तकनीकों और अगली पीढ़ी के हथियारों में निवेश करके PLA के आधुनिकीकरण पर ज़ोर दे रहे हैं. लेकिन, इसके नतीजे विरोधाभासी रहे हैं: एक तरफ़ चीन की सेना में ज़बरदस्त तकनीकी क्रांति आ रही है, तो उसके शीर्ष नेतृत्व में लगातार अस्थिरता बनी हुई है, जिससे कोई भी कमांडर अपने ओहदे पर सुरक्षित नहीं महसूस करता और जिनपिंग का शिकंजा कसा रहता है.

क्या होगा दूरगामी असर?

चीन की सेना से बड़े अधिकारियों को निकालने की ये कार्रवाई न तो नई है, न आख़िरी है. वैसे तो इसको लेकर जानकारों की अलग अलग राय है. लेकिन, बड़े पैमाने पर अधिकारियों को निकाले जाने से चीन की सेना के युद्ध कौशल पर बुरा असर पड़ता है. ग़लती कर बैठने के डर से PLA के कमांडर जोखिम लेने से बचेंगे और साहसिक पहल करने से हिचकिचाएंगे. वहीं, सेना और सिविलियन लीडरशिप के बीच भरोसे का पुल कमज़ोर होगा और अभियान चलाने के दौरान जो तालमेल चाहिए, उसमें कमी आएगी. भले ही PLA के पास हाई टेक हथियार बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन, उसके कमांडर्स के बीच अस्थिरता सबसे कमज़ोर कड़ी है. हालांकि, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बहुत बड़ी ताक़त है और उसके सुप्रीम कमांडर के तौर पर शी जिनपिंग के पास पर्याप्त कारण, शक्ति और हथियार हैं जिनके ज़रिए वो मनमानी से सैन्य अधिकारियों पर कार्रवाई कर सकते हैं और वो तब तक कार्रवाइयों का ये सिलसिला जारी रखेंगे, जब तक लोग वफ़ादारी के उनके पैमाने पर खरे नहीं उतरते.


ये लेख मूल रूप से NDTV में प्रकाशित हुआ था.

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