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अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से जो एक अहम रियायत दी थी, उसे वापस ले लिया है. उसका यह फ़ैसला यूरेशिया के साथ भारत की कनेक्टिविटी की परियोजनाओं को मुश्किल में डाल सकता है. मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत के व्यापार के लिए चाबहार बंदरगाह बेहद अहम है. ये बंदरगाह मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने में भी मददगार है. ऐसे में अमेरिका का फ़ैसला क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता के भविष्य को लेकर चिंताएं पैदा करने वाला है.
पिछले हफ़्ते ट्रंप की सरकार ने ईरान पर ‘अधिकतम दबाव बनाने की नीति’ के तहत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह को अपने प्रतिबंधों से दी गई रियायत को वापस ले लिया. अमेरिका ने ये छूट 2018 में दी थी, ताकि भारत इस बंदरगाह के विकास में निवेश कर सके और यूरेशिया के साथ कनेक्टिविटी की विश्वसनीय और सामरिक रूप से अहम परियोजनाओं को आगे बढ़ाकर क्षेत्रीय व्यापार में इज़ाफ़ा कर सके. रियायत वापस लेने का ये फ़ैसला 29 सितंबर से लागू हो जाएगा और उसके बाद चाबहार बंदरगाह पर काम कर रहे, या फिर इससे संबंधित गतिविधियों से जुड़े भारतीय नागरिकों और कंपनियों पर अमेरिका के ‘ईरान फ्रीडम ऐंड काउंटर प्रोलिफरेशन एक्ट’ के तहत प्रतिबंध लग सकते हैं.
भारत 2018 से ही चाबहार बंदरगाह को विकसित कर रहा है. मई 2024 में इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट्स ऐंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन (PMO) के बीच दस साल का एक समझौता हुआ था. इसके तहत भारत को चाबहार बंदरगाह के शहीद बहिश्ती टर्मिनल के संचालन की ज़िम्मेदारी मिल गई थी. ये बंदरगाह भारत को व्यापार और वाणिज्य के लिए यूरेशिया और मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) तक पहुंचने का सबसे छोटा और सबसे तेज़ मार्ग उपलब्ध कराता है, और इस बंदरगाह को चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे मध्य एशियाई देशों और अफ़ग़ानिस्तान के लिए हिंद महासागर तक पहुंचने का द्वार कहा जाता है. अमेरिका के छूट वापस ले लेने से इस क्षेत्र के साथ इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के ज़रिए कनेक्टिविटी बढ़ाने की भारत की योजनाओं को झटका लग सकता है.
अमेरिका ने ये छूट 2018 में दी थी, ताकि भारत इस बंदरगाह के विकास में निवेश कर सके और यूरेशिया के साथ कनेक्टिविटी की विश्वसनीय और सामरिक रूप से अहम परियोजनाओं को आगे बढ़ाकर क्षेत्रीय व्यापार में इज़ाफ़ा कर सके.
प्रतिबंधों से दी गई छूट को वापस लेने से भारत के लिए तेल और गैस से समृद्ध मध्य एशियाई क्षेत्र तक पहुंच बनाने के प्रयासों को चोट पहुंचेगी. इसके अलावा स्वच्छ ईंधन और रक्षा उद्योग में काम आने वाले दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा. मध्य एशियाई देशों में ख़ास तौर से कज़ाख़िस्तान में दुर्लभ खनिजों के पांच हज़ार से अधिक भंडार हैं, जिनका अनुमानित मूल्य 46 ट्रिलियन डॉलर बताया जाता है. इस वक़्त इन खनिजों का बेशतर हिस्सा चीन को निर्यात किया जाता है.
भारत को नए बाज़ारों, लचीली, विश्वसनीय और विविधता भरी आपूर्ति श्रृंखलाओं और परिवहन के टिकाऊ संपर्कों की ज़रूरत है. चाबहार बंदरगाह, भारत की सामरिक योजना के लिए बेहद अहम है, क्योंकि वो हिंद महासागर के तीन ‘चोक प्वाइंट्स’ में से एक, होरमुज़ जलसंधि से दूर खुले समुद्र में स्थित है. चाबहार की भौगोलिक स्थिति ये सुनिश्चित करती है कि खाड़ी या फिर पश्चिमी एशिया में कोई संघर्ष छिड़ने की सूरत में भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. चाबहार, गुजरात के मुंद्रा और कांदला बंदरगाहों से 550 समुद्री मील (NM) और महाराष्ट्र के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (JNPT) से 780 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है.
चाबहार बंदरगाह, यूरेशिया में चीन के दबदबे का मुक़ाबला करने और हिंद महासागर में उसकी बढ़ती शक्ति को सीमित करने के लिहाज से भी भारत के लिए अहम है. 1991 के बाद चीन ने बहुत सफलता से मध्य एशियाई गणराज्यों को अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा बना लिया था. ताक़त के इस समीकरण को फिर से संतुलित करने के लिए भारत और मध्य एशिया ने 2019 में भारत और मध्य एशिया संवाद की शुरुआत की थी. मध्य एशिया के अधिकतर देशों ने हिंद महासागर तक पहुंच बनाने के लिए भारत की कनेक्टिविटी की परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई है. इनमें चाबहार बंदरगाह भी शामिल है.
अमेरिका के छूट वापस ले लेने से इस क्षेत्र के साथ इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के ज़रिए कनेक्टिविटी बढ़ाने की भारत की योजनाओं को झटका लग सकता है.
2022 में भारत और मध्य एशिया की पहली वर्चुअल समिट में सभी देशों ने चाबहार बंदरगाह को इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा बनाने पर ज़ोर दिया था. भारत और मध्य एशिया के देशों ने चाबहार पर एक कार्यकारी समूह का भी गठन किया है. एक बार INSTC से जुड़ जाने के बाद चाबहार बंदरगाह भारत को 928 किलोमीटर लंबी कज़ाख़िस्तान तुर्कमेनिस्तान ईरान (KTI) रेलवे लाइन के ज़रिए तेल-गैस से समृद्ध मध्य एशिया तक सीधी पहुंच उपलब्ध कराएगा. ये रेलवे लाइन कैस्पियन सागर के पूर्व से जाती है और 2014 में शुरू हो गई थी और ये लाइन अशगाबात समझौते के तहत एक महत्वपूर्ण मार्ग है.
2000 से ही चीन ने पूरी दुनिया में 38 बंदरगाहों का निर्माण किया है. दुनिया के 78 बंदरगाहों में चीन की हिस्सेदारी भी है और 43 अन्य बंदरगाहों की या तो योजना तैयार है या फिर बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत उन पर काम चल रहा है. इनमें से कुछ बंदरगाह दक्षिण एशिया में हैं और चीन की मोतियों के हार वाले सिद्धांत का हिस्सा हैं. पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह इनमें से एक है. ग्वादर बंदरगाह 2013 में चीन के स्वामित्व वाली कंपनी को संचालन के लिए दे दिया गया था और उसके बाद से वो विवादित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा बन चुका है. इस गलियारे के निर्माण में चीन और पाकिस्तान दोनों ने ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के दावों की अनदेखी की है. चाबहार बंदरगाह, ग्वादर से लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर है, जो चीन के बढ़ते समुद्री दबदबे पर लगाम लगा सकता है.
चाबहार का मसला एक व्यापक दुविधा का प्रतीक है: क्या बड़ी ताक़तों की प्रतिद्वंदिताएं कनेक्टिविटी के अहम गलियारों का गला घोंटती रहेंगी, या फिर पूरे क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा और स्थायी विकास के साझा हितों के लिए व्यवहारिक सहयोग का पलड़ा भारी होगा.
ये लेख मूल रूप से दि इकॉनमिक टाइम्स में प्रकाशित हुआ था.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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