भारत और वियतनाम की नौसेनाओं ने हाल ही में दक्षिण चीन सागर में साझा अभ्यास किया. इस अभ्यास से पहले भारत और वियतनाम के नेताओं के बीच वर्चुअल माध्यम से दो बार शिखर स्तर की वार्ताएं हो चुकी हैं. 21 दिसंबर को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वियतनाम के प्रधानमंत्री नगुएन शुआन फुक के बीच वर्चुअल तौर पर बातचीत हुई थी. जबकि नवंबर के आखिर में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वियतनाम के रक्षा मंत्री जनरल नेगो शुआन लिच के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई थी.
वियतनाम के साथ भारत के बढ़ते सामरिक संबंधों से एक बार फिर ये ज़ाहिर होता है कि मेकॉन्ग क्षेत्र के देशों के साथ भारत के रिश्ते आमतौर पर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तर के हैं. आसियान संगठन और उसके तहत कार्य करने वाले विभिन्न मंचों पर अपनी सक्रिय भागीदारी के ज़रिए भारत ने दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ मज़बूत सुरक्षा साझीदारी वाले संबंध बनाए हैं. इसमें आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) और आसियान रक्षा मंत्रियों की मीटिंग प्लस (एडीएमएम) जैसी साझेदारियां प्रमुख हैं. हालांकि, ये सच है कि मेकॉन्ग देशों के साथ उपक्षेत्रीय स्तर पर भारत के सुरक्षा संबंधों पर अभी तक उतना ध्यान नहीं दिया गया है.
क्षेत्रीय तौर पर उभरते हुए भूसामरिक वातावरण में भारत के लिए आवश्यक है कि वो विभिन्न स्तरों पर सुरक्षा सहयोग के मौकों की तलाश करे.
वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत और वियतनाम रक्षा और सामरिक क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए. इसके तहत दोनों देश अपनी सेनाओं के तीनों अंगों और कोस्ट गार्ड के बीच सहयोग, प्रशिक्षण और क्षमता विकास से जुड़े कार्यक्रमों में भागीदारी बढ़ाने पर रज़ामंद हुए. वियतनाम को भारत की ओर से रक्षा-उद्योग के क्षेत्र में दी जा रही सहायता को और बढ़ाने पर भी बातचीत हुई. इससे पहले रक्षा मंत्री स्तर की वार्ता के दौरान भारत और वियतनाम ने समुद्री जल-विज्ञान से जुड़े समझौते पर दस्तख़त किए थे.
दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनज़र मेकॉन्ग क्षेत्र के देशों ख़ासकर वियतनाम और म्यांमार के साथ भारत के रक्षा और सामरिक संबंध भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम हो जाते हैं. वियतनाम और म्यांमार दोनों ही देश अपनी ज़रूरतों के हिसाब से चीन से रिश्ता तो बनाए हुए हैं लेकिन उसके आक्रामक बर्ताव को लेकर दोनों ही देश समान रूप से चिंतित और सतर्क भी हैं. दक्षिण चीन सागर पर अपनी सीमाओं को लेकर वियतनाम का चीन के साथ विवाद बरकरार है. जबकि अपने घरेलू मामलों में चीन की भूमिका को लेकर म्यांमार में भी चिंताएं हैं और अपनी ज़रूरतों के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए म्यांमार लगातार दूसरे विकल्पों और स्रोतों की तलाश में है.
मेकॉन्ग क्षेत्र का भारत के लिए महत्व
भारत के लिए मेकॉन्ग उपक्षेत्र के भू-सामरिक महत्व को महादेशीय और सामुद्रिक दोनों नज़रिए से देखा जा सकता है. म्यांमार और वियतनाम दोनों ही देश मेकॉन्ग उपक्षेत्र में भूसामरिक दृष्टि से बेहद अहम स्थान रखते हैं. म्यांमार की सीमा बंगाल की खाड़ी में एक लंबे तटक्षेत्र में फैली हुई है जबकि वियतनाम दक्षिण चीन सागर के किनारे बसा है.
मेकॉन्ग क्षेत्र के 5 देशों के साथ भारत पहले से ही कई मामलों में सहयोग करता आ रहा है. मेकॉन्ग-गंगा सहयोग (एमजीसी) के तहत इन देशों के साथ सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग के क्षेत्र में भारत की सक्रिय भूमिका रही है. इसके अंतर्गत आवागमन से जुड़ी सुविधाओं, व्यापार और पर्यटन आदि के मामलों में इन देशों के साथ भारत के काफी दोस्ताना रिश्ते हैं. हालांकि, अब समय आ गया है कि सहयोग के इस दायरे को और बढ़ाया जाए और इस कड़ी में सुरक्षा से जुड़े गैर-परंपरागत क्षेत्रों में भागीदारी पर बल दिया जाए. हालांकि ये ज़रूरी नहीं कि इस उपक्षेत्रीय गठजोड़ में शामिल सभी देश सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी को लेकर समान रूप से उत्साहित हों.
दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनज़र मेकॉन्ग क्षेत्र के देशों ख़ासकर वियतनाम और म्यांमार के साथ भारत के रक्षा और सामरिक संबंध भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम हो जाते हैं.
वैसे अगर मकसद सुरक्षा सहयोग बढ़ाना है तो इसके लिए और भी रास्ते तलाशे जा सकते हैं. मसलन भारत, वियतनाम और म्यांमार आपस में त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग का एक विकल्प अपना सकते हैं. इसके ज़रिए रक्षा और सामरिक क्षेत्र में क्षमता निर्माण, साझा अभ्यास और प्रशिक्षणों से जुड़े कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं. वियतनाम और म्यांमार के साथ ऐसा त्रिपक्षीय रक्षा सहयोग भारत के दृष्टिकोण से काफी फायदेमंद हो सकता है.
अहम बात ये है कि म्यांमार और वियतनाम दोनों ही एक समान सामरिक दृष्टिकोण रखते हैं, जो भारत की रणनीति के हिसाब से भी सटीक हैं. दोनों देशों के आपसी रिश्ते काफी अच्छे हैं और दोनों के सामरिक हित भी समान हैं. एक और बात, मेकॉन्ग क्षेत्र के ज़्यादातर पड़ोसी देशों के बीच आम तौर पर किसी न किसी बात को लेकर तनाव का माहौल रहता है जैसे थाईलैंड और म्यांमार के बीच सीमा पार से होने वाली घुसपैठ और अवैध गतिविधियों को लेकर गाहे-बगाहे झगड़े होते रहते हैं. लेकिन वियतनाम और म्यांमार के बीच ऐसी कोई खटास नहीं है.
परस्पर अभ्यास व विश्वास
आगे बात करें तो नवंबर में भारत ने थाईलैंड और सिंगापुर के साथ अंडमान सागर में त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास (सिटमैक्स-20) का दूसरा चरण पूरा किया था. साझा अभ्यासों की ये श्रृंखला “परस्पर विश्वास में मज़बूती लाने और आपसी तालमेल बढ़ाने के मकसद से” शुरू की गई थी. सिटमैक्स श्रृंखला में थाईलैंड भी शामिल है जो एमजीसी का भी सदस्य है.
इस सिलसिले में एक और उपक्षेत्रीय संगठन- बे-ऑफ़-बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन यानी बिमस्टेक का भी उदाहरण लिया जा सकता है. मेकॉन्ग क्षेत्र के दो देश- म्यांमार और थाईलैंड इस संगठन के भी सदस्य हैं. बिमस्टेक के सदस्य देशों ने 2019 में अपने पहले साझा सैन्य अभ्यास के साथ ही उपक्षेत्रीय स्तर पर रक्षा सहयोग की ओर पहला कदम बढ़ा दिया था.
म्यांमार और वियतनाम दोनों ही एक समान सामरिक दृष्टिकोण रखते हैं, जो भारत की रणनीति के हिसाब से भी सटीक हैं. दोनों देशों के आपसी रिश्ते काफी अच्छे हैं और दोनों के सामरिक हित भी समान हैं.
भारत मेकॉन्ग उपक्षेत्र के देशों समेत अपने तमाम पड़ोसी देशों के साथ त्रिपक्षीय और उपक्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की दिशा में काफी सक्रिय रहा है. वियतनाम और म्यांमार के साथ बढ़ते सामरिक संबंध तेज़ी से बदलते भूराजनीतिक वातावरण में मेकॉन्ग क्षेत्र के देशों के साथ भारत के रिश्तों में बढ़ते भरोसे और गर्मजोशी को दर्शाते हैं.
क्षेत्रीय तौर पर उभरते हुए भूसामरिक वातावरण में भारत के लिए आवश्यक है कि वो विभिन्न स्तरों पर सुरक्षा सहयोग के मौकों की तलाश करे. ख़ासकर मेकॉन्ग क्षेत्र के दो अहम सामरिक साझीदारों के साथ भारत को अपने सुरक्षा संबंध और मज़बूत करने की दिशा में और आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
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