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चीन में इससे पहले भी विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, जिन्हें ताकत के जोर से दबाया जाता रहा है. संभावना है कि इस बार भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मशीनरी मौजूदा असंतोष को पूरी क्रूरता से दबा दे.
Image Source: राजधानी पेइचिंग में जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग-- नवभारत टाइम्स
इन विरोध-प्रदर्शनों में एक बात मुख्य रूप से दिख रही है कि लोग चीनी राष्ट्रपति की खुलकर आलोचना कर रहे हैं और उनसे इस्तीफा देने की मांग की जा रही है.
चीन से कुछ दूर ताइवान में बैलेट बॉक्स के जरिए दूसरे तरीके से असंतोष व्यक्त किया गया है. 2020 के राष्ट्रीय चुनावों में भारी बहुमत से जीतने वालीं राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने बाद में गवर्निंग डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया. वजह रही वहां के स्थानीय चुनावों में उनकी पार्टी का खराब प्रदर्शन. ताइवान के ये चुनाव काफी हद तक घरेलू सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर होते हैं. वहीं राष्ट्रपति ने चुनावी लड़ाई को चीन के साथ बढ़ते तनाव के इर्द-गिर्द फ्रेम करके चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को लोकतंत्र पर एक संदेश देने की कोशिश की थी. लेकिन वोटरों के मन में कुछ और चल रहा था, जो कि राष्ट्रपति इंग-वेन के लिए साफ मेसेज था. अब उन्होंने जनादेश को शालीनता से स्वीकार किया है और वोटरों के संदेश के आगे झुकते हुए पार्टी नेतृत्व छोड़ने का फैसला किया है.
चीन से कुछ दूर ताइवान में बैलेट बॉक्स के जरिए दूसरे तरीके से असंतोष व्यक्त किया गया है. 2020 के राष्ट्रीय चुनावों में भारी बहुमत से जीतने वालीं राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने बाद में गवर्निंग डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया.
ताइवान और चीन में जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए हमें न केवल अधिनायकवाद के खतरों के प्रति सचेत होना चाहिए, बल्कि यह भी समझना चाहिए कि ताइवान के लिए खड़े होने के महत्व को कम करके क्यों नहीं आंका जा सकता है. ताइवान पर आज दुनिया की नजरें टिकी हैं.
लोकतांत्रिक दुनिया में खुद को बदनाम करने के इस कभी न खत्म होने वाले चक्र ने शासन के चीनी मॉडल की गलतफहमी और भी मजबूत की.
चीन की आक्रामकता और उसकी खुद की आंतरिक कमजोरियां निश्चित रूप से आज की लोकतांत्रिक दुनिया की इस विशेषता को रेखांकित कर रही हैं कि इनमें चाहे जो भी खामियां रही हों, चीन का मॉडल लाखों-लाख लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की इनकी क्षमता की बराबरी कभी कर ही नहीं सकता.
जाहिर है, दुनिया के लोकतंत्र जब खुद अपने मूल्यों के लिए खड़े नहीं होंगे, तो बाकी लोग उन्हें एक उदाहरण के रूप में क्यों देखेंगे? चीन की आक्रामकता और उसकी खुद की आंतरिक कमजोरियां निश्चित रूप से आज की लोकतांत्रिक दुनिया की इस विशेषता को रेखांकित कर रही हैं कि इनमें चाहे जो भी खामियां रही हों, चीन का मॉडल लाखों-लाख लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की इनकी क्षमता की बराबरी कभी कर ही नहीं सकता.
चीन में इससे पहले भी विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, जिन्हें ताकत के जोर से दबाया जाता रहा है. संभावना है कि इस बार भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मशीनरी मौजूदा असंतोष को पूरी क्रूरता से दबा दे. सड़कों पर लोग शी से इस्तीफा मांग रहे हैं, पर इसी वजह से शी इस्तीफा दे नहीं देंगे. फिर भी, घरेलू और विदेश नीति के मोर्चे पर चीन जिस तरह से लगातार गलतियां कर रहा है, उससे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि शासन का बहुप्रचारित चीनी मॉडल धीरे-धीरे ही सही, पर निश्चित रूप से अलग-थलग होता जा रहा है.
यह आर्टिकल नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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