Published on Jun 24, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत को अब संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव 69/131 को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए. जिसमें हर इंसान और समुदाय को स्वस्थ विकल्प और रहन-सहन की मदद से स्वस्थ जीवन और आपसी सहयोग के अधिकार की बात की गई है.

योग वो सॉफ्ट पॉवर है जो मोदी 2.0 की सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मज़बूत करेगा

दुनिया भर में पूरे ज़ोर-शोर से मनाये गए विश्व योग दिवस ने भारत की सॉफ्ट पावर को मज़बूती दी है. अगर, अमेरिका के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों का निर्यात उसकी सॉफ्ट पावर है. जिसके ज़रिए अमेरिका जनता के वोट की ताक़त और हर नागरिक के अधिकार की वक़ालत करता है, तो, भारत के लिए यही काम योग करता है. शुरुआत में ये व्यक्तिगत स्तर पर होता है फिर ये अनदेखे तौर पर, हम योग की ताक़त को राष्ट्रीय शक्ति के तौर पर महसूस करते हैं. किसी व्यक्ति का योग करना शुद्ध रूप से निजी तौर पर भारत की ताक़त को महसूस करना है.

योग की शुरुआत भारत में हुई थी. ये ऐसी तकनीक है, जो कोई भी मुफ़्त में इस्तेमाल कर सकता है. इसमें कोई आरक्षण नहीं है. ये किसी ख़ास वर्ग के लिए नहीं है. ये प्राचीन भारत के ज्ञान का विस्तार है. पहला विश्व योग दिवस 21 जून 2014 को मनाया गया था. ये विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देन है. उन्होंने ही योग की ख़ूबियों का ज़ोर-शोर से प्रचार कर के इसे विश्व स्तर पर मान्यता दिलाई. आज ये दुनिया में भारत की शक्ति के तौर पर दिखाई देता है. ये जनता की भलाई का वो वरदान है, जो भारत ने दुनिया को दिया है.

आर्थिक दृष्टि से देखें, तो योग से किसी को नुक़सान नहीं हो सकता. (क्योंकि इसमें वो शक्ति है जो किसी एक के इस्तेमाल करने से दूसरे के लिए कम नहीं होती). कोई भी व्यक्ति योग के लाभ को लेने से किसी दूसरे को रोक नहीं सकता. यानि ये सर्वसुलभ है. जो लोग ‘सनातन धर्म’ के विचारों से वाक़िफ़ नहीं हैं, उन्हें बता दें कि ‘भोग’ एक भारतीय के लिए वैसा ही शब्द है, जैसा किसी ग़ैर-भारतीय के लिए ‘आत्मा’ है. आत्मा का विचार ही भारत के योग को भारतीयता वाला रूप देता है. योग केवल आसनों तक सीमित नहीं है. न ही ये वर्ज़िश और सांस लेने की प्रक्रिया भर है. ये तो महज़ वो तरीक़े हैं, जिनके माध्यम से लोग अपने भीतर गहराई से झांकते हैं. ये भीतरी हिस्सा ही आत्मा है.

योग दिवस की छठवीं सालगिरह पर भारत को एक बार फिर विश्व योग दिवस की कमान अपने हाथ में लेनी चाहिए. अब योग के आसन दुनिया के मानस पर स्थायी तौर पर अंकित हो चुके हैं. अब इस के ज़रिए भारत की सॉफ्ट पावर को मज़बूती से दुनिया के पटल पर स्थापित करने की ज़रूरत है. भारत को अब संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव 69/131 को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए. जिसमें हर इंसान और समुदाय को स्वस्थ विकल्प और रहन-सहन की मदद से स्वस्थ जीवन और आपसी सहयोग के अधिकार की बात की गई है. जिसमे तमाम देशों के रहन-सहन के प्रचार की मदद से पूरी दुनिया के कल्याण और स्वस्थ जीवन की कल्पना है.

हम ने सोशल मीडिया पर देखा कि दुनिया के हर कोने से, सभी आबाद छह महाद्वीपों से योग करने की तस्वीरें आईं. इनसे साफ़ है कि भारत ने दुनिया को ये समझाने में कामयाबी हासिल कर ली है कि योग से किसी का नुक़सान नहीं है. ये सबकी भलाई के लिए है. ये भारत की सॉफ्ट पावर है. सॉफ्ट पावर का मतलब है बिना किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती के दूसरों को प्रभावित करना. योग के माध्यम से भारत ने दुनिया में अपनी सॉफ्ट पावर की धाक जमाई है. इससे दुनिया भारत के विचार से परिचित हुई है. योग के सैकड़ों कॉपीराइट दुनिया भर में कराए गए हैं. भारत में उत्पन्न योग के बहुत से ट्रेडमार्क दूसरे देशों के नागरिकों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. लेकिन, विश्व योग दिवस हर तरह की पाबंदियों से आज़ाद है. ये दुनिया को मिला भारत का वरदान है, जो मुफ़्त है.

अगर हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान मनाए गए योग दिवस पर नज़र डालें, तो हम पाते हैं कि योग को आज लोकतांत्रिक देशों और तानाशाही व्यवस्था वाले देशों ने बराबर के उत्साह से स्वीकर कर लिया है. अपने अगले पाँच साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी को ऐसी व्यवस्था विकसित करनी होगी, जो पहले पाँच साल की उपलब्धियों की बुनियाद पर दुनिया को योग की सच्चाई से वाकिफ़ कराए और वो सच है- अंतरात्मा का शरीर से मेल.

इस काम में हमें ऋषियों के ज्ञान जैसे ऋग्वेद, उपनिषद, पतंजलि के अलावा आधुनिक गुरुओं जैसे स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद और श्री ऑरोबिंदो की भी मदद लेनी चाहिए. ये वो लोग हैं जिन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान और ग्रंथों से नए युग को और दुनिया को परिचित कराया. उसे नए दौर की ज़रूरत के हिसाब से परिभाषित किया.

दुनिया आज योग के कुछ आसनों जैसे हठयोग से परिचित हो गई है. ये योग के विशाल ज्ञान का ऊपरी हिस्सा मात्र है. योग, ज्ञान का बहुत ही विशाल भंडार है. जिसकी मदद से अंतरात्मा का शरीर से मेल होता है. दुनिया की ज़्यादातर सभ्यताएं इस दर्शन से अनजान हैं. ये ठीक उसी तरह है जैसे नैनोटेक्नोलॉजी का न्यूरोसाइंस से या आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का अंतर्ज्ञान से संगम हो. एक परेशानी ये भी है कि योग को एक ख़ास धार्मिक दायरे से बांध कर इसकी पवित्रता पर कीचड़ उछालने की कोशिश होती है. ऐसी मनोवैज्ञानिक चुनौतियों से पार पाने के लिए विश्व योग दिवस को लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य लाभ के दायरे से निकालकर समस्त मानवता के संपूर्ण जनकल्याण का माध्यम बनाना होगा. शारीरक स्वास्थ्य में बदलाव को तो महसूस किया जा सकता है. लेकिन, अंतरात्मा का कल्याण तभी होगा, जब किसी का अंतर्मन उसे महसूस करे. वरना ये कल्पना भर होता है. जैसे, कैंसर के किसी मरीज़ का इलाज हो और वो अपने अंदर आ रहे बदलाव को अच्छे से महसूस करे.

भारत की सॉफ्ट पावर के इस पहलू के विस्तार के लिए मोदी सरकार को योग उद्यमियों को बढ़ावा देना होगा. हालांकि, कुछ तो अपने स्तर पर पहले से ये काम कर रहे हैं. जैसे कि श्री श्री रविशंकर संगीत और ध्यान पर प्रवचन देते हैं. सदगुरू जग्गी वासुदेव योग और ध्यान के कार्यक्रम आयोजित करते हैं. इसी तरह बाबा रामदेव ने गली-मुहल्लों के पार्कों को रोज़मर्रा के योग केंद्रों में बदल दिया है. इसके अलावा रामदेव ने देश भर में 21 योग केंद्र, स्कूल और आश्रम खोले हैं. उनकी उपलब्धियों की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है. उनके शिष्यों और मीडिया के ज़रिए इसका प्रचार होता है. व्यक्तिगत तौर पर भी ये सभी अपने मिशन का ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. ये सभी योग उद्यमी मिलकर योग की सॉफ्ट पावर से दुनिया को परिचित करा रहे हैं.

हम घरेलू राजनीति और योग में विश्वास न करने वालों की बात करें तो उनके बीच योग दिवस को कोई महत्व नहीं दिया जाता. इसकी बड़ी वजह ये है कि इसकी शुरुआत मोदी ने की. दक्षिणपंथी भारतीय इसे भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताने लगे. पर, अगर सारे अंक जोड़-घटाव एक सा ही बताएंगे, तो क्या हम गणित पढ़ना बंद कर देंगे? योग के तमाम आसनों में पांच हज़ार वर्षों का अनुभव और प्रयोग शामिल है. वो हर तरह के शरीर पर लागू होते हैं. भले ही वो शरीर किसी भी धर्म या राजनीतिक व्यवस्था में यक़ीन रखता हो. दूसरी बात ये है कि योग के ज़रिए कोई भी अपने शरीर, दिमाग़ और अंतरात्मा का संगम करवा सकता है. इसके लिए कोई भी इंसान अपनी पसंद के हिसाब से कर्मयोग, ज्ञान योग, भक्ति योग या हठ योग का रास्ता चुन सकता है.

भारत की ये परंपरा बहुत विशाल और गहराई वाली है. इसके कई लाभ हैं. हर व्यक्ति अपने हिसाब से ख़ुद को पाने का रास्ता चुन सकता है. ठीक वैसे ही जैसे लोग अमेरिकी सॉफ्ट पावर यानि लोकतंत्र के किसी भी रूप को चुन सकते हैं. इसी तरह हर इंसान भारत की महान सॉफ्ट पावर यानि योग के किसी भी रूप को चुन सकता है. ये जनता की भलाई के लिए है. लेकिन, किसी पर ज़बरदस्ती थोपा नहीं जाता. लेकिन, अगर कोई ये कहता है कि योग केवल शारीरक अभ्यास के लिए ही ठीक है, आध्यात्मिक शांति के लिए नहीं, तो वो ये बात समझ नहीं पा रहा है कि योग का किसी धर्म से कोई ताल्लुक़ नहीं है. ये शरीर, दिमाग़ और अंतरात्मा के संतुलन का माध्यम है. योग एक विज्ञान है. और विज्ञान का मक़सद खोज करना होता है. इस विज्ञान, इस व्यवस्था का सृजन करने वाले देश भारत को इस सॉफ्ट पावर को मज़बूती से इस्तेमाल करना चाहिए. भारत को इस खोज का विस्तार करने की अगुवाई करनी चाहिए.

आज दुनिया बड़ी तेज़ी से व्यक्तिवादी होती जा रही है. ये समुदायों, संप्रदायों में बंट रही है. उग्रवादी और अलगाववादी सोच का तेज़ी से विस्तार हो रहा है. ऐसे में योग ही वो माध्यम है, जो राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक खाई को पाट सकता है. ज़ख़्मी दिलों और ज़ेहन को सुकून दे सकता है. दुनिया की 7 अरब से ज़्यादा आबादी को आत्म-शांति प्रदान कर सकता है. योग शरीर और दिमाग़ के मेल का नाम है. ये दिमाग़ का अंतरात्मा से मेल कराता है. योग के माध्यम से मोदी सरकार अगले पांच साल में भारत की सॉफ्ट पावर के विस्तार की मज़बूत और संस्थागत आधारशिला रख सकते हैं. ये बेहतर भविष्य का विचार है. योग के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व स्तर पर स्कॉलरशिप योजना शुरू की जा सकती है. योग के तमाम स्वरूपों के प्रसार के लिए योगियों को एकजुट कर के उनकी मदद ली जा सकती है. एक ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है जिस के ज़रिए इस प्राचीन भारतीय ज्ञान का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल पूरी दुनिया कर सके.

दूसरे शब्दों में कहें, तो पिछले पांच वर्षों में योग की प्राईमरी पाठशाला बनाने का काम हुआ है. अब अगले पांच साल में इसके व्याकरण को दुरुस्त करने और इसके अगले दर्जे तक ले जाने का काम करने का समय है. इससे भारत की अथाह गहराई वाली, अद्भुत सॉफ्ट पावर से दुनिया को रूबरू कराने का चक्र पूरा होगा.

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