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टिकटॉक को लेकर अमेरिका और चीन में चल रही जंग पर अब विराम लग चुका है, लेकिन इससे एक बात साफ हो गई है कि शी जिनपिंग की वैश्विक शासन पहल सही दिशा में जा रही है. चीन इन नियमों को फिर से लिखने की कोशिश कर रहा है.
Image Source: Getty Images
सितंबर के मध्य में मैड्रिड में अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और चीन के उप-प्रधानमंत्री ही लिफ़ेंग के बीच नवीनतम दौर की बातचीत हुई. इस वार्ता का नतीजा ये हुआ कि लोकप्रिय सोशल मीडिया ऐप टिकटॉक के भविष्य पर सहमति बन गई. चीनी मीडिया की रिपोर्टों से पता चलता है कि अमेरिका और चीन, अमेरिका में टिकटॉक के भविष्य के संचालन से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए एक "बुनियादी रूपरेखा पर सहमति" के बिल्कुल करीब पहुंच गए हैं. टिकटॉक को लेकर चीन का रुख़ ये है कि ऐप के अमेरिकी परिचालन को अमेरिका की ही किसी कंपनी को बेचना, वास्तव में बीजिंग द्वारा "एल्गोरिदम के उपयोग के अधिकार" और "बौद्धिक संपदा" का लाइसेंस अमेरिका को हस्तांतरित करना है. इससे यह धारणा पुष्ट होती है कि चीन की उन्नत तकनीक के विदेशों में निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अलावा, दोनों पक्ष आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए निवेश की बाधाओं को कम करने की योजना बना रहे हैं. मैरिड वार्ता के तुरंत बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में टिकटॉक के विनिवेश की समय सीमा 16 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी. ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 19 सितंबर 2025 को भी बातचीत की थी और टिकटॉक समझौते सहित व्यापार संबंधी मुद्दों पर चर्चा की थी. शी-ट्रंप की बातचीत के चीनी संस्करण में 'पारस्परिक लाभ' पर ज़ोर दिया गया था. ट्रंप और शी जिनपिंग दक्षिण कोरिया में आगामी एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग मंच के दौरान भी मिलेंगे. इतना ही नहीं, ट्रंप ने यह संकेत भी दिया है कि वो 2026 में बीजिंग की यात्रा कर सकते हैं. टिकटॉक ऐप पर ट्रंप के प्रशंसकों की बहुत बड़ी संख्या है, और ऐसा लगता है कि वो इस ऐप को प्रचलन में बनाए रखने के लिए उत्सुक हैं. टिकटॉक को लेकर छिड़ा विवाद ट्रंप 2.0 के लेन-देन वाले स्वभाव को दर्शाता है, और जिसका चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने एक सोशल मीडिया ऐप के ज़रिए फायदा उठाया है.
मैड्रिड में हुई वार्ता का नवीनतम दौर जुलाई में स्वीडन में हुई चर्चाओं के बाद अमेरिका-चीन के बीच व्यापार को लेकर हो रही बातचीत की श्रृंखला का चौथा दौर है. इस बीच, टैरिफ जैसे ज़्यादा जटिल मुद्दों पर बातचीत अगले दौर की वार्ता के लिए स्थगित कर दी गई है.
अमेरिका और चीन के बीच जो टैरिफ वॉर चल रही थी, उस पर फिलहाल युद्धविराम की स्थिति बनी हुई है. अगस्त के मध्य में ट्रंप ने टैरिफ युद्धविराम को और 90 दिनों के बढ़ाया था. ये समय सीमा 10 नवंबर 2025 को ख़त्म हो रही है. इसके बाद अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर का दौर फिर शुरू हो सकता है. अगस्त में ट्रंप ने जो अस्थायी समझौते किया था, उसमें कुछ चीनी वस्तुओं पर 30 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भी लगाया गया है. इसके बदले में, चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाया है. इस अनिश्चितता के बीच, चीन का अमेरिका को निर्यात धीमा हो गया है. अगस्त 2025 में, ये लगातार पांचवें महीने गिरा, और साल-दर-साल के हिसाब से देखें तो, इसमें 33.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. ऐसे में अमेरिका को निर्यात में कमी से चीन को जो घाटा हो रहा है, उसकी भरपाई के लिए चीन अब दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) अर्थव्यवस्थाओं और यूरोपीय संघ (ईयू) को निर्यात बढ़ाना चाहता है. चीन अपने लिए नए बाज़ार खोज रहा है. आसियान के साथ चीन के निर्यात में 22.5 प्रतिशत और यूरोपीय संघ के साथ निर्यात में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
अमेरिका और चीन के बीच जो टैरिफ वॉर चल रही थी, उस पर फिलहाल युद्धविराम की स्थिति बनी हुई है. अगस्त के मध्य में ट्रंप ने टैरिफ युद्धविराम को और 90 दिनों के बढ़ाया था.
रियल एस्टेट बाज़ार से भी कोई अच्छी खबर नहीं है, जो चीन की आर्थिक वृद्धि में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान देता है. बीजिंग, शंघाई और शेन्ज़ेन जैसे शहरों द्वारा प्रतिबंधों में ढील दिए जाने और स्थानीय आवासीय पंजीकरण ना रखने वालों को संपत्ति खरीदने की अनुमति दिए जाने के बावजूद, रियल एस्टेट कारोबार में मंदी जारी है. चीन के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 16-24 आयु वर्ग में बेरोज़गारी दर 18.9 प्रतिशत है, जबकि लगभग 1.22 करोड़ स्नातक नई नौकरियों की तलाश में होंगे. नौकरी-भर्ती के एक पोर्टल से मिले आंकड़ों से पता चला है कि जनवरी और जून 2025 के बीच नए कॉलेज स्नातकों के लिए रिक्तियों में 2024 की तुलना में 22 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि नौकरी चाहने वालों की संख्या पिछले साल की तुलना में 8 प्रतिशत बढ़ी है. परंपरागत रूप से, वित्तीय सेवाएं, प्रौद्योगिकी, रियल एस्टेट और कोचिंग जैसे क्षेत्र चीन में नौकरी देने वाले प्रमुख सेक्टर थे, लेकिन अब उन्होंने नए भर्तियों में कमी कर दी है. ज़ाहिर है, नौकरियां कम होंगी तो फिर आकर्षक पदों की घटती संख्या के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी. ये चीनी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी संरचनात्मक समस्या की ओर भी इशारा करता है, क्योंकि अगले 15 साल तक चीन में औसतन हर साल 1 करोड़ लोग स्नातक होंगे. पर्याप्त मात्रा में रोज़गार सृजित करने में चीनी अर्थव्यवस्था की विफलता का नतीजा ये होगा कि बड़ी संख्या में चीनी प्रतिभाएं हाशिये पर चली जाएगी, उनके टैलेंट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा.
रोजगार में कमी की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए चीन और अधिक सुधारों का वादा कर रहा है. सितंबर में, चीन के वाणिज्य मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना सहित नौ सरकारी एजेंसियों ने सेवाओं में खपत बढ़ाने के लिए नए उपायों की घोषणा की. चीन अधिक अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों की मेजबानी करना चाहता है. इस योजना के तहत, स्थानीय सरकारों को खेल गतिविधियों के आयोजन और पेशेवर लीगों तथा खेल ब्रांडों को बढ़ावा देने में ज़्यादा मदद दी जाएगी. चीन अब इंटरनेट, संस्कृति, दूरसंचार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को खोलने की भी शुरुआत करेगा. चीन वीज़ा-मुक्त प्रवेश का विस्तार करके और वीज़ा प्रक्रियाओं में सुधार करके विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की भी कोशिश कर रहा है. वित्तीय संस्थानों को सेवा उपभोग बढ़ाने के लिए ऋण देने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा. घरेलू उपकरणों, मोबाइल फोन और टैबलेट सहित उपभोक्ता वस्तुओं के लिए ट्रेड-इन कार्यक्रम के लिए 231 अरब युआन के विशेष ट्रेजरी बॉन्ड निर्धारित किए गए हैं. ट्रेड इन का अर्थ ये है कि अगर कोई शख्स अपने पुराने उपकरणों के बदले वैसे ही नए उत्पाद खरीदना चाहता है तो इस कीमत में काफ़ी छूट दी जाती है.
चीन अब इंटरनेट, संस्कृति, दूरसंचार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को खोलने की भी शुरुआत करेगा. चीन वीज़ा-मुक्त प्रवेश का विस्तार करके और वीज़ा प्रक्रियाओं में सुधार करके विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की भी कोशिश कर रहा है.
टैरिफ को लेकर अमेरिका के साथ बढ़ते विवाद और उसकी वजह से पैदा हो रही आर्थिक मंदी ने एक 'एकीकृत घरेलू बाज़ार' के निर्माण को पुनर्जीवित किया है. ये ऐसा बाज़ार है, जो उत्पादन को ज़मीन, मानव पूंजी, वित्तीय पूंजी, प्रौद्योगिकी, डेटा और ऊर्जा जैसे उत्पादन कारकों के इस्तेमाल से जोड़ता है. अप्रैल 2022 में जारी दिशानिर्देशों के तहत, इस योजना में संपत्ति के अधिकार, बाज़ार तक पहुंच और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए सामान्य बुनियादी नियम और प्रणालियां बताई गई हैं. इस रणनीति का उद्देश्य चीन के भीतर अधिक कुशल उत्पादन, वितरण, संचालन और उपभोग को बढ़ावा देना था. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पत्रिका, क्यूसी में राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग द्वारा लिखे गए एक निबंध में इस पर विस्तार से लिखा गया है. लेख में कहा गया है कि ट्रंप टैरिफ के कारण उत्पन्न "बाहरी ज़ोखिमों" और "व्यापार अनिश्चितता" से निपटने के लिए एक "रणनीतिक उपाय" के रूप में एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार के निर्माण को आगे बढ़ाना समय की मांग है. लेख में तर्क दिया गया है, चूंकि चीन भौतिक उपभोग का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है, इसलिए एक साझा राष्ट्रीय बाज़ार, और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभों पर निर्भर करते हुए, घरेलू मांग का पूरा दोहन किया जाए. इस तरह, जहां आंतरिक संतुलन और राज्य क्षमता में वृद्धि, ट्रंप के टैरिफ युद्ध के प्रति शी जिनपिंग की रणनीतिक प्रतिक्रिया को परिभाषित करती है, वहीं चीन का बाहरी दृष्टिकोण सितंबर 2025 में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान पेश किए गए शी जिनपिंग की नवीनतम वैश्विक शासन पहल (जीजीआई) द्वारा निर्धारित होगा. वैश्विक शासन के लिए शी जिनपिंग की मास्टरप्लान के मुख्य विषयों में 'समावेशी बहुपक्षवाद' और 'विकास में स्वायत्तता' शामिल हैं. शी जिनपिंग एक अधिक समतापूर्ण अंतर्राष्ट्रीय शासन प्रणाली बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं. इसके ज़रिए, चीन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने की कोशिश कर रहा है, और इसकी तुलना ट्रंप के कूटनीतिक लेन-देन वाले रवैये और उनके एकतरफा टैरिफ से कर रहा है.
चीन के केंद्रीय बैंक के प्रमुख, पैन गॉन्ग शेंग द्वारा क्यूसी में लिखी गई एक टिप्पणी, इस संदर्भ में जीजीआई का तात्कालिक एजेंडा प्रस्तुत करती है. उनका पहला तर्क ये है कि प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं में वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं के गुण होते हैं, लेकिन एक संप्रभु मुद्रा जो कार्य करती है, वो अस्थिरता की संभावना को जन्म देती है. संघर्ष या राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की स्थिति में, प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह, वो एकल मुद्रा पर बहुत ज़्यादा निर्भरता को कम करने के उपायों को शामिल करने की सिफ़ारिश करते हैं, इसके साथ ही, गोंगशेंग कुछ संप्रभु मुद्राओं के बीच प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे उनका लचीलापन बढ़े. दूसरा, सीमा-पार भुगतान प्रणाली अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की नींव है, व्यापार और निवेश को सुगम बनाने का एक माध्यम है. पैन का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली में संप्रभु मुद्राओं के सह-अस्तित्व और डिजिटल तकनीक के विकास से सीमा पार भुगतान व्यवस्था में विविधता आएगी. अंत में, चीन के केंद्रीय बैंकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की शासन प्रणाली में सुधार का भी समर्थन करते हैं. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि, शी जिनपिंग की वैश्विक शासन पहल ऐसे समय में आई है, जब पश्चिम एशिया और यूरोप में संघर्ष चल रहा है. ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका के नेतृत्व वाले बहुपक्षवाद पर लोगों को संदेह है. इतना ही नहीं, अमेरिका के सहयोगी देशों समेत दुनिया भर के राष्ट्र इस वक्त ट्रंप के प्रतिबंधों या कूटनीतिक दबाव का सामना कर रहे हैं. ऐसे में वैश्विक शासन पहल तहत आर्थिक सुधार को प्राथमिकता देते हुए शी जिनपिंग चीन को एक स्थिर शक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं. हालांकि, चीन की अमेरिका के साथ व्यापार मुद्दों पर बातचीत चल रही है. इस सबके बावजूद जिनपिंग बहुध्रुवीय प्रणाली में उथल-पुथल के बीच पश्चिम की कीमत पर चीन के प्रभाव का विस्तार करना चाहते हैं.
कल्पित ए मानकिकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...
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