-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
यूक्रेन संघर्ष को लेकर चीन दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. एक तरफ वह रूस का सहयोगी बना रहना चाहता है तो दूसरी ओर पश्चिमी देशों की नाराज़गी से भी बचना चाहता है.
हाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मॉस्को की 20 से 22 मार्च तक की तीन दिवसीय दौरे के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है. विश्व स्तर पर इस हाई-प्रोफाइल यात्रा को चीन द्वारा एक नई वैश्विक व्यवस्था बनाने की कोशिश के रूप में बताया गया तो साथ ही कहा गया कि रूस अब बीजिंग के साथ अपने संबंधों में "सहयोगी" या "जूनियर पार्टनर" की भूमिका निभाने को तैयार है. भारतीय रणनीतिकारों ने भी रूस-चीन हितों के कन्वर्जेंस (अभिसरण) को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की, जो निश्चित रूप से "भारत के रणनीतिक स्थान को झटका" देगा. हालांकि, जिस पहलू पर भारत और उससे बाहर के रणनीतिक समुदाय ने तुलनात्मक रूप से कम ध्यान दिया है, वह है रूस और यूक्रेन संकट को लेकर चीन के घरेलू संवाद में पैदा होते बदलाव. ख़ास तौर पर इसकी जटिल दुविधाएं, अंतर्निहित विरोधाभास और सूक्ष्म बारीक़ियां और ये सारी चीजें कैसे हाल ही में शी-पुतिन की मुलाक़ात को संभव बनाया.
एक ओर चीन आधिकारिक तौर पर यह ऐलान करता है कि "वह नए युग के लिए रूस के साथ व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने के लिए दृढ़ संकल्प है". दोनों देशों के संयुक्त बयान ने आगे दोनों पक्षों के बीच आम सहमति को "एक दूसरे के मूल हितों की रक्षा के लिए मज़बूत समर्थन देने और सबसे पहले संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, सुरक्षा और विकास के मुद्दों पर" बढ़ाने की वकालत की है. आधिकारिक लाइन का पालन करते हुए, चीन की स्टेट मीडिया ने भी चीन-रूस को अच्छा पड़ोसी बताया और दोनों देशों के बीच मित्रता और सहयोग की सराहना की और शी और पुतिन के बीच व्यक्तिगत तालमेल के बारे में बढ़-चढ़ कर बताया, और लिखा कि कैसे इसने चीन के प्रस्तावित नए तरह के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए इसे नए मॉडल/प्रतिमान में बदल दिया, जिसमें एक नए तरह से प्रमुख-देशों के संबंध "परस्पर विश्वास और रणनीतिक समन्वय के उच्चतम स्तर और रणनीतिक मूल्य के साथ शामिल हैं.
हालांकि दूसरी ओर, चीन के रणनीतिक समुदाय को वैश्विक स्तर पर "रूस और चीन के बीच यह जुड़ाव" चुभते हैं, क्योंकि चीन-रूस की प्रवृत्ति को भू-राजनीतिक अर्थ में "समग्रता" के रूप में देखा जाता है और उनके गहन रणनीतिक समन्वय को "एक वास्तविक सैन्य-राजनीतिक गठबंधन" के तौर पर पहचाना गया है. रूस के साथ जुड़ने या यूक्रेन युद्ध में रूस को जवाबदेह ठहराए जाने को लेकर चीन की परेशानी के साथ ही चीन-रूस को "एक्सिस ऑफ इवल" या "निरंकुश शासकों के गठबंधन" के रूप में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा बहिष्कार किया जा रहा है. इसी वज़ह से चीन ने "चीन-रूस असीमित मित्रता" के नैरेटिव से ख़ुद को किनारा करने का मन बना लिया है और जैसा कि चीन इसे पश्चिम द्वारा "चीन को बदनाम करने की साज़िश" बताता रहा है इसलिए वो इसके ख़िलाफ़ अभियान चलाने में जुट गया है. कुछ चीनी विद्वानों ने चीन रूस संबंधों को मौज़ूदा यूक्रेन संघर्ष से अलग करने के लिए भी कड़ी मेहनत की है. हाल ही में हस्ताक्षरित संयुक्त वक्तव्य में भी यह स्पष्ट करने की कोशिश की गई है कि नया चीन-रूस गठजोड़ शीत युद्ध के दौरान सैन्य और राजनीतिक गठबंधन की तरह नहीं है, बल्कि दोनों राष्ट्र के संबंध उस मॉडल से विपरीत हैं और इसकी प्रकृति "गुट-निरपेक्ष, गैर-टकराव और तीसरे देशों को टारगेट नहीं” करने पर आधारित है.
शी जिनपिंग की रूस यात्रा ने चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के बीच एक दूसरे को दोषी ठहराने की प्रतिस्पर्द्धा की शुरुआत कर दी है कि कौन युद्ध को लम्बा खींचना चाहता है और कौन वास्तव में शांति चाहता है. जैसा कि चीनी सरकार ने जिनपिंग की रूस यात्रा को "शांति के लिए एक यात्रा" के रूप में दुनिया के सामने रखा लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने चेतावनी दी कि यूक्रेन के लिए चीन-रूस शांति योजना द्वारा "दुनिया को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता" और यूक्रेन "रूस द्वारा ज़ब्त किए गए क्षेत्र में कब्ज़े" को यूं ही नहीं मान सकता. बदले में चीन ने दावा किया कि चीनी राष्ट्रपति ने ना तो किसी का पक्ष लिया और ना ही एक पक्ष को दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हथियार दिए/ या प्रोत्साहित किया,बल्कि इसका उद्देश्य तनाव कम करना, शांति वार्ता को बढ़ावा देना, संकट के राजनीतिक समाधान को तलाशना था जो हाल ही में चीन द्वारा सऊदी अरब और ईरान के बीच दोस्ती की डील कराने जैसा ही है. इस बीच चीन ने उल्टे अमेरिका पर युद्ध को और भड़काने, संघर्ष की आग को हवा देने और ख़ुद के लाभ के लिए स्थिति का फायदा उठाने का आरोप मढ़ दिया. चीन ने आगे तर्क दिया कि जहां चीन संवाद और बातचीत के ज़रिए संकट का हल निकालने की दिशा में प्रयास कर रहा है वहीं अमेरिका युद्ध के मैदान में यूक्रेन को घातक हथियारों की सप्लाई कर लगातार तनाव बढ़ा रहा है और युद्ध को लंबा खींच रहा है.
चीन ने दावा किया कि चीनी राष्ट्रपति ने ना तो किसी का पक्ष लिया और ना ही एक पक्ष को दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हथियार दिए/ या प्रोत्साहित किया,बल्कि इसका उद्देश्य तनाव कम करना, शांति वार्ता को बढ़ावा देना, संकट के राजनीतिक समाधान को तलाशना था जो हाल ही में चीन द्वारा सऊदी अरब और ईरान के बीच दोस्ती की डील कराने जैसा ही है.
हालांकि, आधिकारिक तौर पर अमेरिका के साथ ज़ुबानी जंग के विपरीत, चीन के घरेलू हलकों में रूस-यूक्रेन युद्ध के लंबा खींचने को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. सवाल पूछे जा रहे हैं कि एक लंबे युद्ध के लिए अमेरिका और पश्चिम की प्रतिबद्धता कितने समय तक है? आख़िर यूरोप और अमेरिका में आर्थिक स्थिति, ऊर्जा आपूर्ति और मांग में बदलाव, अमेरिका में राजनीतिक पार्टियों के बीच संघर्ष, चीन का मुद्दा जैसी वज़हें आगे चलकर यूक्रेन संकट के प्रति पश्चिम की प्रतिबद्धता को कैसे प्रभावित करेंगे ? दूसरी ओर चीन के एक्सपर्ट ने घरेलू राजनीति और सामाजिक स्थिरता को प्रभावित करने से पहले रूस द्वारा युद्ध को समाप्त करने की मज़बूरी की ओर भी इशारा किया है. चीनी रणनीतिकार विशेष रूप से रूस की घरेलू राजनीतिक स्थिति में संभावित विरोध को लेकर ख़ासे चिंतित हैं जो रूस में तख़्तापलट की संभावना को मज़बूत करता है और जो एक नया नेतृत्व देश में बहाल कर सकता है. जो या तो अधिक कट्टरपंथी या पश्चिम के क़रीब हो सकता है और इस प्रकार, रूस की आंतरिक और बाहरी मुसीबतों के सामने रूस को अपने "पश्चिमी-विरोधी" रुख़ को ख़त्म करना पड़ सकता है. किसी भी तरह से यह चीन के राष्ट्रीय हित के लिए बेहतर नहीं होगा.
कुल मिलाकर चीन के मूल्यांकन की बात करें तो जहां रूस-यूक्रेन संघर्ष कुछ ही दिनों में और बढ़ सकता है जबकि शांति के लिए सामान्य वैश्विक अपेक्षा और उपर्युक्त ट्रेंड इसमें थोड़े अंतराल के लिए मौक़ा पेश कर सकता है और यह संघर्ष के दौरान अहम साबित हो सकता है. इसलिए पुतिन के रूस को स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से सहायता करने और संघर्ष को लंबा खींचने के लिए चीन में मज़बूत जन समर्थन के बावज़ूद (क्योंकि इसे वर्तमान में अमेरिका के साथ-साथ पश्चिम की चीन नीति में सबसे बड़ा परेशान करने वाला तत्व माना जाता है. यहां तक कि चीनी इंटरनेट पर अमेरिका की चीन नीति का मज़ाक उड़ाते हुए कई तरह के चुटकुले चर्चा में हैं जिसमें लिखा है, "कृपया मुझे रूस को नियंत्रित करने में मदद करें ताकि मैं भविष्य में आपको बेहतर तरीक़े से नियंत्रित कर सकूं." रूस के मामलों पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ लोगों ने सरकार को चेतावनी दी है कि उभरती विपरीत परिस्थितियों को नज़रअंदाज़ ना करें या यूरोपीय संकट के ख़िलाफ़ ना जाएं.
इन वरिष्ठ पर्यवेक्षकों का कहना है कि मौज़ूदा हालात में ना तो अलग रहना और ना ही सार्वजनिक तौर पर किसी एक पक्ष का समर्थन करना चीन के हित में होगा लेकिन अगर परिस्थितियां बड़े पैमाने पर युद्ध या परमाणु युद्ध में तब्दील होती है तो यह हर देश के लिए विनाशकारी होगा. हालांकि युद्ध का माहौल अगर कम होगा तो चीन को वैश्विक महत्व के इस भू-राजनीतिक परिस्थितियों में बड़ी भूमिका निभाने के मौक़े को छोड़ना नहीं चाहिए और शांति बहाली में अपनी भूमिका को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना चाहिए. साथ ही दुनिया में, ख़ास तौर पर यूरोप में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहिए. इस बीच क्षेत्रीय बातचीत पर राजनीतिक शांति वार्ता को प्राथमिकता देकर चीन इस नाज़ुक मोड़ पर पुतिन प्रशासन को बेहद ज़रूरी लाइफ दे सकता है.
कुल मिलाकर यूक्रेन के मुद्दे पर चीन एक नाज़ुक संतुलन बनाने की कोशिश करता हुआ नज़र आ रहा है - यह चीन के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए रूस को बतौर एक सहयोगी की तरह देख रहा है जो वाशिंगटन के नेतृत्व वाली मौज़ूदा व्यवस्था को चुनौती तो देता है लेकिन साथ ही अमेरिका और यूरोपीय संघ को भड़काना नहीं चाहता है. ताकि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को प्रतिबंधों के जोख़िमों से बचा सके और पश्चिमी देशों के साथ अपनी आर्थिक गतिविधियों से लाभ लेता रहे.
कुल मिलाकर यूक्रेन के मुद्दे पर चीन एक नाज़ुक संतुलन बनाने की कोशिश करता हुआ नज़र आ रहा है - यह चीन के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए रूस को बतौर एक सहयोगी की तरह देख रहा है जो वाशिंगटन के नेतृत्व वाली मौज़ूदा व्यवस्था को चुनौती तो देता है लेकिन साथ ही अमेरिका और यूरोपीय संघ को भड़काना नहीं चाहता है. ताकि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को प्रतिबंधों के जोख़िमों से बचा सके और पश्चिमी देशों के साथ अपनी आर्थिक गतिविधियों से लाभ लेता रहे. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में क्या चीन अपनी बनाई हुई व्यवस्था का फायदा उठाने में सफल हो पाता है या फिर अपने दोहरे चरित्र की वज़ह से तीनों देशों की तीखी आलोचनाओं का शिकार होता है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...
Read More +