Author : Atul Kumar

Published on Nov 14, 2022 Updated 0 Hours ago

पार्टी पर अपना शिकंजा कसने की ताज़ा क़वायद में शी जिनपिंग ने पूरी बेशर्मी से अपने समर्थकों को तरक़्क़ी दे डाली है और इसके साथ-साथ 20वीं पार्टी कांग्रेस में कम्युनिस्ट यूथ लीग का कद छोटा कर दिया है.

Xi Jinping’s power grab in China: सियासी फ़ेरबदल और CYL को कमज़ोर कर चीन की सत्ता पर हक़ जमाते शी जिनपिंग!

22 अक्टूबर 2022 को चीन की राष्ट्रीय राजनीति ने एक स्याह मोड़ लेकर सख़्त कम्युनिस्ट प्रशासन की ओर रुख़ कर लिया. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party- CPC) की 20वीं कांग्रेस के अंत में शी जिनपिंग  (Xi Jinping) ने तीसरी बार पार्टी महासचिव की कुर्सी सुरक्षित कर ली. इस तरह उन्होंने चीन (China) के भीतर अगले पांच वर्षों के लिए प्रभावी रूप से सभी तरह के विपक्ष को कुचलने की ओर मज़बूती से क़दम आगे बढ़ा दिया. पांच साल में एक बार आयोजित होने वाले इस सम्मेलन के लिए जिनपिंग की व्यापक और चतुराई भरी तैयारी, सियासी दुनिया के लिए एक सबक़ है. 

शी ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने जिस तरीक़े से अपने पूर्ववर्ती हु जिंताओ को बाहर का रास्ता दिखाया, वो घरेलू मोर्चे पर उनके तमाम संभावित प्रतिस्पर्धियों के लिए एक खरा और क्रूर संदेश था कि उनको भी ऐसे ही नतीजे भुगतने होंगे.

शी ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने जिस तरीक़े से अपने पूर्ववर्ती हु जिंताओ को बाहर का रास्ता दिखाया, वो घरेलू मोर्चे पर उनके तमाम संभावित प्रतिस्पर्धियों के लिए एक खरा और क्रूर संदेश था कि उनको भी ऐसे ही नतीजे भुगतने होंगे. पार्टी में अपने सभी वफ़ादारों को शामिल करने और कम्युनिस्ट यूथ लीग (CYL) के सदस्यों का लगभग संपूर्ण सफ़ाया करने की उनकी बेशर्मी भरी क़वायद चीन में उनकी बेलगाम ताक़त को दर्शाती है. 

देंग शियाओपिंग के देहांत के बाद पिछले 25 वर्षों से चीनी राजनीति में कुछ अटूट परंपराएं चली आ रही थीं, हालांकि इनको कभी भी ज़ुबानी तौर पर ज़ाहिर नहीं किया गया. CPC मुख्य रूप से दो प्रकार के सदस्यों वाले धड़ों से बनी है. पहला है- रईस कुनबा, जिसके सदस्यों में रजवाड़ों के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और शीर्ष पदों पर तैनात अफ़सरों के बच्चे शामिल हैं. दूसरा धड़ा CYL के सदस्यों से तैयार लोकप्रियतावादी गठजोड़ है. इन लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत और तजुर्बे से सियासी सीढ़ियां चढ़ी हैं. महासचिव कोई भी हो लेकिन CPC ने हमेशा इन दो कुनबों में नाज़ुक संतुलन बनाकर रखा है. 

2012 मे जब जियांग जेमिन ने शी जिनपिंग को तरक़्क़ी देकर महासचिव की कुर्सी पर बिठाया, उस वक़्त भी हु जिंताओ के नेतृत्व वाले CYL धड़े ने प्रभावी संतुलन बनाने के लिए ली केकियांग को आगे बढ़ाकर प्रधानमंत्री पद पर पहुंचा दिया. बहरहाल, नेतृत्व के मोर्चे पर ताज़ा फेरबदल में इस संतुलन को तार-तार कर दिया गया है. CYL धड़े को शीर्ष सियासी नेतृत्व (24 सदस्यीय पॉलित ब्यूरो और 7 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी) से पूरी तरह बेदख़ल कर दिया गया है. हु चुनहुआ जैसे CYL के कुछ मुट्ठी भर सदस्य ही CPC की 205 सदस्यों वाली सेंट्रल कमेटी में जगह बचा पाने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, सियासी मोर्चे पर प्रभावी रूप से उनको शक्तिहीन बना दिया गया है. 

परंपराएं तोड़ना

शी जिनपिंग ने सियासी साफ़-सफ़ाई को लेकर चीन में गुपचुप तौर पर क़ायम सहमति को आख़िरकार तोड़ डाला है. आमतौर पर तानाशाही व्यवस्थाएं शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के लिए ख़तरनाक होती हैं क्योंकि सत्ता गंवाते ही उनके विशेषाधिकार भी छिन जाते हैं. इन सहूलियतों में उनकी ज़िंदगी भी शामिल है. माओत्से तुंग के निरंकुश राज के दौरान भी चीन की सियासत में ऐसे अनेक सफ़ाई अभियान चले थे. उस वक़्त लियु शाओकी जैसे शीर्ष नेता को जान से हाथ धोना पड़ा था. देंग शियाओपिंग ने इस मनहूस प्रक्रिया को ख़त्म करने की दिशा में क़दम बढ़ाए थे. इस सिलसिले में उन्होंने शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के लिए 68 साल में रिटायरमेंट की परंपरा शुरू की थी. सेवानिवृति की इस प्रक्रिया में अंदरुनी तौर पर ये रज़ामंदी भी थी कि एक बार रिटायर होने के बाद नया सियासी नेतृत्व अपने पूर्ववर्ती नेताओं का सफ़ाया नहीं करेगा. 

शी ने अपने कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में इस परंपरा का सम्मान किया. हालांकि, जल्द ही भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उनकी जंग, सेवानिवृत सियासी और फ़ौजी नेतृत्व के निचले स्तरों तक पहुंच गई. बाद के वर्षों में शी ने अपनी सियासी पकड़ मज़बूत करने के लिए भूतपूर्व महासचिवों के क़रीबियों को गिरफ़्तार करने और उनपर अभियोग चलाने का फ़ैसला कर लिया. हालांकि व्यक्तिविशेष की सुरक्षा और पूर्ववर्ती शासकों के विशेषाधिकार पर कोई आंच नहीं आई. नेतृत्व में किए गए हालिया फ़ेरबदल में शी ने इस परंपरा पर भी ज़बरदस्त चोट पहुंचाई है. CPC की बैठक में हु जिंताओ को पहली कतार से हटाए जाने के सार्वजनिक प्रदर्शन (ख़ासतौर से वहां अंतरराष्ट्रीय मीडिया की मौजूदगी के बाद) का मक़सद दुनिया के सामने उनकी बेइज़्ज़ती करना था.

हु बैठक से जाने को तैयार नहीं थे और उन्हें वहां से हटाने को लेकर निचले दर्जे के कर्मचारियों की ज़िद से वो हक्काबक्का हो गए थे. इतना ही नहीं, मेडिकल टीम से कोई उनकी मदद के लिए नहीं आया और चाल-ढाल से उनकी सेहत में किसी तरह की कमज़ोरी दिखाई नहीं दे रही थी.

चीन की आधिकारिक मीडिया ने इस घटना पर लीपापोती करने के लिए तरह-तरह की दलीलें पेश कीं. कहा गया कि हु बीमार और सुस्त थे, लिहाज़ा उनकी सेहत की जांच और स्वास्थ्य लाभ के लिए उन्हें वहां से ले जाया गया. हालांकि, इस घटना से जुड़े तमाम वीडियो बिलकुल अलग तस्वीर पेश करते हैं. हु बैठक से जाने को तैयार नहीं थे और उन्हें वहां से हटाने को लेकर निचले दर्जे के कर्मचारियों की ज़िद से वो हक्काबक्का हो गए थे. इतना ही नहीं, मेडिकल टीम से कोई उनकी मदद के लिए नहीं आया और चाल-ढाल से उनकी सेहत में किसी तरह की कमज़ोरी दिखाई नहीं दे रही थी. इतना ही नहीं, जब हु वहां से जा रहे थे तब ली केकियांग को छोड़कर वहां मौजूद तमाम सदस्य बुत बने बैठे रहे और किसी ने भी तालियां बजाने की हिम्मत नहीं की. 

योग्यता पर भारी वफ़ादारी

बाद के घटनाक्रमों से शी ने इस पहलू पर ज़ोर दिया. इस तरह उन्होंने CYL गुट का चीनी राजनीति से समग्र रूप से ख़ात्मा सुनिश्चित कर दिया. ले केकियांग और वांग यांग जैसे वरिष्ठ नेताओं को जबरन रिटायर कर दिया गया, जबकि हु चुनहुआ का दर्जा घटाकर पोलित ब्यूरो से बाहर कर दिया गया. CCP की ताज़ा स्टैंडिंग कमेटी में शी के सबसे क़रीबी छह नेताओं को शामिल किया गया है. इस तरह वफ़ादारी की बजाए योग्यता पर आधारित चयन की व्यापक प्रक्रिया को लेकर जारी चौतरफ़ा अटकलों के दौर को प्रभावी रूप से ख़त्म कर दिया गया है.

स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों की उम्र सीमा, शी की हुकूमत को भविष्य में किसी तरह की चुनौती दिए जाने की संभावना को प्रभावी रूप से कुचल देगी. 2027 में पार्टी के अगले अधिवेशन तक दिंग शुशियांग (जो सियासी दुनिया के हल्के खिलाड़ी हैं) को छोड़कर ज़्यादातर सदस्य सेवानिवृति की उम्र के क़रीब पहुंच चुके होंगे. दिंग शुरू से पार्टी मैनेजर रहे हैं. वो शी के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ की भूमिका निभाते रहे हैं. इसके साथ ही पोलित ब्यूरो या स्टैंडिंग कमेटी में किसी महिला या नस्लीय अल्पसंख्यक नेता को जगह नहीं मिली है. 205 सदस्यों वाली सेंट्रल कमेटी में भी महज़ 11 महिलाएं (प्रभावी रूप से 5 प्रतिशत) हैं. नेतृत्व से जुड़े इस फ़ेरबदल में शी ने महिला और नस्लीय बराबरी को बढ़ावा देने से जुड़े तमाम नक़ाब उतारकर फेंक दिए हैं.

CPC की शीर्ष फ़ौजी शाखा सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) में भी शी ने योग्यता से ज़्यादा वफ़ादारी को तरजीह दी है. उन्होंने अपने पुराने दोस्त जनरल झांग योक्सिया को 72 साल की उम्र हो जाने के बावजूद पहले उपाध्यक्ष के तौर पर तरक़्क़ी दे दी है. झांग के शी के साथ गहरे व्यक्तिगत और पारिवारिक रिश्ते हैं. दोनों के पिता 1947 में नॉर्थवेस्ट आर्मी कोर में एक साथ काम कर चुके थे. 

CPC की शीर्ष फ़ौजी शाखा सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) में भी शी ने योग्यता से ज़्यादा वफ़ादारी को तरजीह दी है. उन्होंने अपने पुराने दोस्त जनरल झांग योक्सिया को 72 साल की उम्र हो जाने के बावजूद पहले उपाध्यक्ष के तौर पर तरक़्क़ी दे दी है. 

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की वायुसेना को CMC में कोई नुमाइंदगी नहीं मिली है, जबकि PLA नौसेना का एक आंशिक सदस्य इसमें मौजूद है. नौसेना के प्रतिनिधि एडमिरल मिआओ अपना पूरा करियर चीनी फ़ौज में बिताकर लेफ़्टिनेंट जनरल की रैंक तक पहुंचे थे. आख़िरकार 2014 में उनका चीनी नौसेना में तबादला कर दिया गया, लेकिन उन्हें अब भी थल सेना के प्रतिनिधि के तौर पर ही पुकारा जाता है. लिहाज़ा साझा जंग और पारस्परिक क्रियाशीलता से जुड़ी PLA की मुहिम अब भी एक अधूरी आकांक्षा बनी हुई है. ग़ौरतलब है कि इस क़वायद की कामयाबी के लिए फ़ौज के शीर्ष प्रशासनिक अमलों में पहले से ज़्यादा और लगभग समान नुमाइंदगी की दरकार है. PLA की थलसेना के ज़बरदस्त दबदबे से बाहरी ख़तरों को लेकर चीन की धारणाओं पर प्रभाव पड़ेगा और इस तरह उसके ज़मीनी विवादों पर ज़्यादा ज़ोर रहेगा.

पार्टी कांग्रेस में शी का प्रदर्शन एक ओर चीनी सत्ता पर उनकी बेजोड़ पकड़ को ज़ाहिर करता है तो दूसरी ओर, इससे शी के बढ़ते एकाकीपन और डर की स्याह तस्वीर भी सामने आती है. चीन की साम्यवादी सरकार जायज़ तौर पर हुकूमत चलाने की ताक़त हासिल करने में लड़खड़ा रही है. शुरुआती सालों में अपने आर्थिक विकास एजेंडे के बूते इसकी नैया पार लग गई. उस वक़्त जनता का ध्यान प्रभावी रूप से विकास और अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने पर बना रहा. बहरहाल शी को अपने तीसरे कार्यकाल के लिए एक नए एजेंडे की ज़रूरत होगी. इसके अलावा सदी में एक बार आने वाली महामारी ने भी हुकूमती ताक़त को झटका दिया है. कोविड-19, चीनी नागरिकों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भारी तकलीफ़ और दुश्वारियां लेकर आया. शी ने ‘ज़ीरो-कोविड’ नीति लागू करके इन हालातों को और संगीन बना दिया.

CPC की इन दोहरी नाकामियों के बीच शी ने अपनी हुकूमत को जायज़ रंग देने के लिए राष्ट्रवाद और मार्क्सवाद की ओट लेने की कोशिश की है. हालांकि इस क़वायद में वो अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं.

CPC की इन दोहरी नाकामियों के बीच शी ने अपनी हुकूमत को जायज़ रंग देने के लिए राष्ट्रवाद और मार्क्सवाद की ओट लेने की कोशिश की है. हालांकि इस क़वायद में वो अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं. पार्टी अधिवेशन में पेश अपनी ताज़ा रिपोर्ट में ‘संघर्ष’ से भरे आने वाले दौर पर उनके ज़ोर से चुनौतियों से भरपूर भविष्य के संकेत मिलते हैं. इतना ही नहीं, चीन के बाहरी मोर्चे पर भी ज़ाहिर तौर पर दुश्मनी भरा माहौल बनता जा रहा है. इन तमाम चुनौतियों के मद्देनज़र शी को पार्टी की सदस्यता के व्यापक आधार से योग्यता और तजुर्बे की बुनियाद पर नेताओं का चुनाव करना चाहिए था. इसकी बजाए उन्होंने अपने नज़दीकी दोस्तों पर भरोसा जताया है. ऐसे में चीन के लिए अतीत के मुकाबले भविष्य के शगुन ज़्यादा स्याह दिखाई दे रहे हैं. 

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