-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
EU और भारत के बीच मौजूदा WTO विवाद निपटारा भारत के द्वारा घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने की कोशिश को उलझा सकता है.
यूरोपियन यूनियन (EU) ने 2019 से भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के विवाद निपटान निकाय (DSB) में एक बहुत ऊंचे स्तर वाले गतिरोध में उलझा दिया है. वो भारत की तरफ से लगाए गए शुल्कों, ख़ास तौर पर कई इन्फॉर्मेशन-कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (ICT) उत्पादों पर आयात शुल्क, का विरोध कर रहा है. भारत-EU फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर चल रही बातचीत को देखते हुए समाधान की मुश्किल राह के साथ भारत व्यापार संरक्षणवाद और बहुपक्षवाद के बीच संतुलन बनाना चाहता है.
EU दावा करता है कि भारत के द्वारा 2014 से मोबाइल फोन, इंटिग्रेटेड सर्किट और ऑप्टिकल उपकरणों जैसे ICT उत्पादों पर 7.55 से लेकर 20 प्रतिशत की दर से कस्टम और अन्य शुल्क लगाने की वजह से भारत को उसके 600 मिलियन यूरो की कीमत के निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ा है. WTO की एक पैनल रिपोर्ट ने अप्रैल 2023 में विवाद पर ध्यान दिया. इसमें कहा गया कि भारत के टैरिफ मानदंड वैश्विक मानकों, विशेष रूप से जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ (GATT), के विरुद्ध हैं. GATT के तहत सदस्य देशों को बताए गए सामानों पर अनिवार्य दर से ज़्यादा टैक्स से बचने की आवश्यकता होती है.
पैनल ने भारत की अपडेटेड टैरिफ लाइन की शब्दावली को सोचा-समझा बताया और भारत के द्वारा अपनी शुल्क प्रतिबद्धता को संशोधित करने के अनुरोध की समीक्षा करने से ये कहते हुए इंकार कर दिया कि इस तरह के बदलाव के लिए WTO के सदस्यों के बीच बातचीत की ज़रूरत होगी.
पैनल ने स्पष्ट रूप से कहा कि WTO सूची में की गई प्रतिबद्धताओं से बचने के लिए भारत इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एग्रीमेंट (ITA) को लागू नहीं कर सकता है और न ही उसी टैरिफ लाइन के तहत आने वाले हालिया तकनीकी उत्पादों को बाहर कर सकता है. पैनल ने भारत की अपडेटेड टैरिफ लाइन की शब्दावली को सोचा-समझा बताया और भारत के द्वारा अपनी शुल्क प्रतिबद्धता को संशोधित करने के अनुरोध की समीक्षा करने से ये कहते हुए इंकार कर दिया कि इस तरह के बदलाव के लिए WTO के सदस्यों के बीच बातचीत की ज़रूरत होगी. भारत ने तथ्य की गलती के आधार पर विवादित मानकों से बाध्य होने की अपनी मंज़ूरी को खारिज करने के लिए संधि कानून की ओर रुख किया लेकिन पैनल ने कानूनी आवश्यकताओं को अपर्याप्त ठहरा दिया.
पैनल समानांतर भारत-जापान और भारत-ताइवान विवादों में भी इसी तरह के नतीजे पर पहुंचा. भारत ने विरोध जताया कि जापान समेत कुछ सदस्यों ने भारत की सूची में सामानों की शुल्क दर के संबंध में तकनीकी गलतियों को ठीक करने के उसके अनुरोध पर अनुचित ढंग से आपत्ति जताई. हालांकि ये आपत्तियां पैनल के विचार में रखे गए विषय के तहत नहीं थीं. इसके अलावा भारत ने बिना सफलता के दलील दी कि जापान-भारत व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) के तहत शुल्क-मुक्त (ड्यूटी-फ्री) बर्ताव उत्पत्ति के अधिमान्य नियमों (प्रेफरेंशियल रूल्स ऑफ ऑरिजिन) को पूरा करने पर आधारित है और सभी संबंधित जापानी उत्पादों के लिए बिना शर्त ड्यूटी-फ्री बर्ताव की अनुमति नहीं देता है.
मई 2023 में जापान ने DSB की सुनवाई में पैनल की रिपोर्ट को अपनाने के लिए तुरंत WTO का रुख किया. इसके विपरीत EU और ताइवान ने भारत के साथ सौहार्दपूर्ण निपटारे की कोशिश की और पैनल की रिपोर्ट पर विचार करने में देरी के लिए DSB से अनुरोध किया. अनिर्णायक भारत-EU बातचीत के बाद दिसंबर 2023 में EU ने भारत को निराश करते हुए पैनल की रिपोर्ट को अपनाने के लिए DSB की तरफ रुख किया. इसके जवाब में भारत ने अपनी अपील दायर की.
निपटारे के लिए चर्चा असफल रही क्योंकि EU ने भारत से शुल्क में रियायत की मांग की. लेकिन भारत ने अपने रुख पर कायम रहते हुए कहा कि ऐसी रियायतें वैश्विक व्यापार के मानकों का उल्लंघन करेंगी क्योंकि सबसे पसंदीदा देश (MFN) के आधार पर भी WTO का कोई सदस्य सिर्फ एक सदस्य को आयात शुल्क में रियायत नहीं मुहैया करा सकता है. भारत ने दलील दी कि केवल FTA के तहत ही इन पर चर्चा हो सकती है, ऐसा नहीं होने पर इसका मतलब EU से तरजीही बर्ताव निकलेगा.
भारत ने EU और जापान- दोनों ही मामलों में पैनल के फैसले के ख़िलाफ उच्च स्तरीय अपील की है. लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए अपीलीय निकाय, जो कि WTO DSB में अंतिम फैसला देने वाली संस्था है, कामकाज की हालत में नहीं है क्योंकि इसके गठन को लेकर सदस्य देशों के बीच अनबन है. कोई अंतिम फैसला नज़र नहीं आने के कारण विवाद थमा हुआ है.
विशेष रूप से अमेरिका के द्वारा अपीलीय निकाय में सदस्यों की नियुक्ति रोके जाने के कारण सदस्यों ने व्यापार में अग्रणी देशों/संगठनों जैसे कि अमेरिका, EU और चीन के पक्ष में संरचनात्मक असंतुलन के लिए अक्सर WTO की आलोचना की है. विकसित देश सबसे ज़्यादा विवादों को आगे बढ़ाते हैं जबकि विकासशील देशों की दशकों से हिस्सेदारी WTO DSB में उनके भरोसे की कमी दिखाती है.
वैसे तो भारत की अपील सही कदम है लेकिन EU और जापान ने भारत की कार्यवाही के लिए खेद जताया है और मध्यस्थता पर ज़ोर दिया है. EU ने बार-बार भारत को मध्यस्थता का सहारा लेने की पेशकश की है जिसे स्वीकार करने से भारत हिचक रहा है क्योंकि इस तरह के अंतरिम मध्यस्थता समझौते किसी देश के द्वारा स्थायी निकाय में अपील करने के अधिकार, जो कि बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के लिए आधारभूत है, को कमज़ोर करते हैं. EU भारत के साथ बेहतर निवेशक-देश मध्यस्थता (इन्वेस्टर-स्टेट आर्बिट्रेशन) के अपने महत्वाकांक्षी नए मॉडल को भी आगे बढ़ा रहा है जिसमें दोनों पक्षों के द्वारा एक बहुपक्षीय अदालत का सहारा लेने की प्रतिबद्धता शामिल है.
EU और भारत ने 2022 में FTA पर बातचीत फिर से शुरू की जो कि भारतीय व्यापार व्यवस्था के लिए एक गेम-चेंजर हो सकता है. भारत के विदेश व्यापार में EU का हिस्सा 10.9 प्रतिशत है और वो भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है. अनुकूल घटनाओं जैसे कि 2020 में अपनाए गए ‘रोडमैप 2025’ और 2022 में स्थापित साझा व्यापार और तकनीकी परिषद ने भारत-EU के बीच संबंधों का विस्तार किया है और वो लंबे समय से उम्मीद किए जा रहे FTA को आगे बढ़ा सकते हैं.
भारत ख़ुद को ग्लोबल सप्लाई चेन में अपने बढ़ते औद्योगिक उत्पादन के एक मज़बूत निर्यातक के तौर पर पेश करने का इरादा रखता है और इस तरह प्रतिस्पर्धी एशियाई सप्लायर्स, ख़ास तौर पर चीन, की जगह लेना चाहता है. ये उम्मीद की जाती है कि सामानों और सेवाओं में भारत का मुख्य निर्यात ICT के सेक्टर में होगा और कोई बड़ा टैरिफ विवाद इस क्षमता को रोक सकता है.
ICT गतिरोध मौजूदा FTA वार्ता को लेकर कुछ चिंताएं पैदा करता है. ये आशंका FTA को लेकर सर्वसम्मति पर पहुंचने की पहली कोशिश की वजह से है जो कि सात वर्षों की निरर्थक बातचीत के बाद बहुत ज़्यादा मतभेदों के कारण 2013 में नाकाम हो गई थी.
ये उम्मीद की जाती है कि सामानों और सेवाओं में भारत का मुख्य निर्यात ICT के सेक्टर में होगा और कोई बड़ा टैरिफ विवाद इस क्षमता को रोक सकता है.
विवाद को दूर करने के लिए EU शुल्क में रियायत की मांग कर रहा है. लेकिन अगर इसे FTA में शामिल किया गया तो भारत मुश्किल में पड़ेगा. कुशल कामगारों की बड़े पैमाने पर कमी को देखते हुए EU भी लोगों के आने को लेकर पहले की तुलना में अधिक तैयार हो सकता है.
चर्चा में ये शामिल है कि FTA में एक निवेश संरक्षण समझौता होने की उम्मीद है. वैसे तो सैद्धांतिक तौर पर ऐसा समझौता अनुकूल है लेकिन यूरोपीय संसद और EU की परिषद के द्वारा इस समझौते को मंज़ूरी देना ज़रूरी है. इसके साथ-साथ EU के सदस्य देशों से भी स्वीकृति की आवश्यकता है.
निकट भविष्य में EU और भारत के बीच मतभेद उभर सकते हैं. ऐसा क्षेत्र जहां EU ने चिंता जताई है वो है भारत का निराशाजनक जलवायु रिकॉर्ड और वैश्विक स्थिरता मानकों के साथ जुड़ने में झिझक. कार्बन-बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकेनिज़्म (CBAM) जैसी ऐतिहासिक नीतियां भारत में EU के निर्यात को और अधिक दबाव में डाल सकती हैं क्योंकि ठोस तरीके से इसके लागू होने पर अतिरिक्त 20 से 35 प्रतिशत शुल्क लागू होगा.
मौजूदा समय में WTO पैनल का फैसला भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है. WTO के अपीलीय निकाय में जजों की नियुक्ति को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए मौजूदा विवाद पर फैसले तक पहुंचने में कई साल लग सकते हैं. हालांकि एक अंतरिम उपाय लागू है जिसके तहत संबंधित ICT उत्पादों पर शुल्क को पूरी तरह हटा दिया गया है. भारत के द्वारा ये विवेकपूर्ण कदम वैश्विक मानकों और भरोसा बनाने की ज़रूरतों को पूरा करता है.
सुलह के लिए भारत की झिझक ने कई मौकों पर WTO में बहुपक्षीय बातचीत की प्रगति में रुकावट पैदा की है- उदाहरण के लिए कृषि सब्सिडी की सीमा तय करना. भारत WTO के असंतुलन का एक शिकार है जिसे समझौते और कूटनीति से ही दूर किया जा सकता है. जून 2023 में भारत की तरफ से अमेरिका के ख़िलाफ़ कई केस दायर करने से भारत को सौदेबाज़ी का जो फायदा हुआ उसके बाद अमेरिका और भारत ने आपसी चर्चा के ज़रिए छह WTO विवादों को ख़त्म कर लिया.
भारत को चिंता है कि ये विवाद चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने की उसकी कोशिशों पर असर डाल सकता है. भारत सरकार अपने “आत्मनिर्भर भारत” के विज़न, जिसका लक्ष्य IT हार्डवेयर उत्पादकों के लिए प्रोडक्शन-आधारित इंसेंटिव स्कीम के साथ घरेलू उत्पादन को बढ़ाना और आयात कम करना है, को देखते हुए ICT उत्पादों पर शुल्क कम करने के लिए तैयार नहीं होगी. RCEP (रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) और CPTPP (कंप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप) में शामिल देशों से आयात शुल्क के नतीजतन उत्पादन लागत में बढ़ोतरी को देखते हुए भारत इंडो-पैसिफिक विदेश व्यापार के संबंध में पहले से ही ख़ुद को एक बोझिल स्थिति में पाता है.
ज़िम्मेदारी WTO पर है कि वो अपीलीय निकाय में जजों की नियुक्ति में गड़बड़ी को दुरुस्त करे और समानता की तरफ अपने DSB (विवाद निपटान निकाय) में सुधार करें. इस बीच भारत को वैश्विक मानकों और EU के संरक्षणवाद से ख़ुद को सुरक्षित करने की अपनी नीतियों के बीच खामियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.
धर्मिल दोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Dharmil Doshi is a Research Assistant at ORF’s Centre for New Economic Diplomacy, where his research spans international commercial law (encompassing treaties and conventions, foreign ...
Read More +