Author : Avni Arora

Published on Oct 18, 2021 Updated 0 Hours ago

महामारी ने डिजिटलाइज़ेशन को बढ़ावा दिया है, जिसे भारत में लैंगिक आधार पर डिजिटल डिवाइड को दूर करने के लिए एक अवसर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.

फिनटेक उद्योगों में महिलाओं को मिल रहा है पुरुषों के बराबर अवसर!

विवरण 

फिनटेक उद्योग भारत में फलफूल रहा है यह कोई ख़बर नहीं है. विश्व में, भारत का फिनटेक अडॉप्शन रेट प्रभावशाली 87 प्रतिशत है, जो चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. इस आशाजनक संख्या के पीछे काम करने वाले कारक- बढ़ते स्मार्टफोन का उपयोग और बेहतर इंटरनेट की पैठ है जो फिनटेक को ज़्यादा सुलभ बनाता है. लेकिन क्या यह डिजिटल समावेश भारत में ग्रामीण और शहरी के विशाल अंतर को दूर करने में लैंगिक रूप से संवेदनशनील है? यह संख्या एक गंभीर तस्वीर पेश करती है. इस लैंगिक संशयवाद के असल आर्थिक नतीजे फिनटेक उद्योग को ज़बरदस्त तरीके से प्रभावित करते हैं. जीएसएमए के Mobile Gender Gap Report 2021 के अनुसार, अल्पविकसित देशों में महिलाओं को आर्थिक रूप से शामिल करने की संभावना 9 प्रतिशत कम है और पुरुषों के मुकाबले फोन रखने की संभावना 7 प्रतिशत कम है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय शहरों में, 56 प्रतिशत महिलाओं को इंटरनेट की सुविधा हासिल है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या काफी कम केवल 34 प्रतिशत ही है.

विश्व में, भारत का फिनटेक अडॉप्शन रेट प्रभावशाली 87 प्रतिशत है, जो चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. इस आशाजनक संख्या के पीछे काम करने वाले कारक- बढ़ते स्मार्टफोन का उपयोग और बेहतर इंटरनेट की पैठ है जो फिनटेक को ज़्यादा सुलभ बनाता है.  

यूएनसीडीएफ का Inclusive Digital Economies and Gender Equality Playbook, डिजिटल और वित्तीय समावेश को महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और एजेंसी के लिए प्रमुख संचालकों में से एक मानता है- यह आमदनी और वैभव को बढ़ाता है, आर्थिक फायदों और वित्तीय फैसले लेने की शक्ति पर नियंत्रण प्रदान करता है. महामारी ने सुरक्षा तंत्र और फॉल-बैक उपायों को प्रभावित करके स्पष्ट रूप से वित्तीय असमानता को बढ़ाया है. मुख्य वाणिज्यिक गतिविधियों और ऑनलाइन व्यापार में आये आकस्मिक बदलाव से ऐसा प्रतीत होता है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था, वर्चुअल दुनिया में सक्रियता की राह प्रशस्त करता है. लैंगिक आधार पर डिजिटल अंतर को कम करने की आवश्यकता इससे पहले इतनी नहीं महसूस की गई, और ऐसा लग रहा है कि माइक्रो फाइनेंस के माध्यम से फिनटेक इस क्षेत्र में बढ़त ले रहा है. महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक और संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करके फिनटेक उद्योग में समान रूप से उनकी ज़रूरतों को आत्मसात करना आर्थिक रूप से अनिवार्य है.

चुनौतियां                            

फिनटेक में व्यापक वृद्धि एक शहरी वास्तविकता है, लेकिन फिनटेक तक निर्बाध पहुंच ग्रामीण आबादी के लिए अभी भी एक बड़ी परेशानी है. 23 प्रतिशत भारतीय महिलाएं आज भी आर्थिक तौर पर निष्कासित हैं और आर्थिक रूप से सम्मिलित 42 प्रतिशत महिलाएं निष्क्रिय खाताधारक हैं. हालांकि भारत, प्रधानमंत्री जनधन योजना 2014 जैसे उपायों के साथ बड़े कदम उठाते हुए लैंगिक उत्तरदायी वित्तीय समावेश की पहल करने में प्रगति कर रहा है, जो वित्तीय सेवाओं में लैंगिक अंतर को 2011 में 20 प्रतिशत से 2017 में 6 प्रतिशत तक कम करने में सफल रहा, लेकिन उसे डिजिटल पहुंच में बड़े अंतर से अब भी निपटना है जो नीतिगत स्तर पर महिलाओं की सुगमता को सीमित करता है, विशेषकर महामारी के दौरान जब भौतिक वास्तविकताओं में बड़ा परिवर्तन आया है.

महिलाओं द्वारा जिन संरचनात्मक चुनौतियों का सामना किया जाता है उनके बारे में थोड़ी जानकारी भी हमें उन दोहराव वाले पैटर्न को समझने में मददगार होगी जिनका अब तक समाधान मौजूदा नीतिगत स्तर पर वित्तीय समावेशन की योजनाओं द्वारा नहीं किया गया है. इनमें से कुछ चुनौतियां सामाजिक हैं, जैसे महिलाओं की आर्थिक सहभागिता को सीमित करने और आमदनी और बचत को प्रतिबंधित करने के लिए उन पर लागू की गई गतिशीलता और लैंगिक भूमिका पर नियंत्रण/कमी, जबकि अन्य बाज़ार की बाध्यता है, जैसे डिजिटल साक्षरता, उद्यमिता कौशल या बाज़ार की जानकारी और निजी कोलैट्रल या क्रेडिट हिस्ट्री की कमी. व्यक्तिक गतिशीलता पर प्रतिबंध और रोज़गार छिनने जैसे कारकों ने पहले से अंडरबैंक्ड समूहों के लिए, जैसे महिलाएं, सीमाओं में इज़ाफ़ा किया है, जिसने उनको और ज़्यादा असहाय बना दिया है. अन्य संरचनात्मक अंतर आईडी दस्तावेज़ों के स्वामित्व, मोबाइल हैंडसेट की श्रेणी और इंटरनेट सुविधा तक पहुंच में निहित है. पक्षपात और कमज़ोर विषयों की समस्याओं को दूर करने के लिए इन अंतरों की प्रकृति की संपूर्ण जानकारी के ज़रिए लैंगिकता पर एकत्रित डाटा और कारगर योजनाओं का विकास करते हुए इन चुनौतियों का निपटारा किया जाना चाहिए.

 व्यक्तिक गतिशीलता पर प्रतिबंध और रोज़गार छिनने जैसे कारकों ने पहले से अंडरबैंक्ड समूहों के लिए, जैसे महिलाएं, सीमाओं में इज़ाफ़ा किया है, जिसने उनको और ज़्यादा असहाय बना दिया है. 

कोविड-19 की परिस्थितियों ने तकनीक के फायदों को भुनाने के लिए डिजिटल दुनिया में भौतिक जगत के पक्षपातपूर्ण रवैये की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए एक अवसरवादी खिड़की मुहैया कराई है. लगातार बढ़ रहे आर्थिक साधन और महिलाओं की पहुंच के बावजूद, उन्हें अभी भी वित्तीय नज़रिए से अयोग्य माना जा रहा है. जो प्रयास लैंगिक रूप से निष्पक्ष  प्रतीत हो रहे हैं, वो वास्तव में पुरुषों की ज़रूरतों और पसंद के प्रति है’. इसलिए, फिनटेक्स को महिलाओं के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों का पता लगाकर शोध और विकास (Research and Development) में अधिक निवेश करने की ज़रूरत है. उन्हें महिलाओं के सामने आने वाली संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने के लिए लैंगिक रूप से संवेदनशील नये-नये दृष्टिकोण अपनाने और उनकी आवश्यकताओं और बचत की रणनीतियों को समझने वाले टेलर-मेड वित्तीय सेवाओं के ज़रिए विशिष्ट रूप से उन पर ही ध्यान देने की ज़रूरत है.

प्रौद्योगिकी निश्चित रूप से इस खेल के मैदान में एक बड़े लेवलर और भारत के वित्तीय परिदृश्य में गेम चेंजर के रूप में काम कर सकती है. 

समाधान के तरफ कदम

हार्वर्ड बिज़नेस रिव्यू की एक स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि महिलाएं आमदनी के हर डॉलर का 90 प्रतिशत शिक्षा जैसे मानव संसाधन के निर्माण पर खर्च करती हैं, जबकि पुरुष केवल लगभग 40 प्रतिशत ही ऐसा करते हैं. ऐसे समय पर जब महामारी की वजह से डिजिटाइज़ेशन में स्पष्ट रूप से तीन से चार साल की तेज़ी आयी है, डिजिटल नवाचार से लैस फिनटेक स्वयं सहायता समूहों (SHG) के ज़रिए ऐसे माइक्रो फाइनेंस संस्थानों के क्षेत्र में दख़ल दे सकता है जो विशिष्ट रूप से महिलाओं पर केंद्रित हैं.फिनटेक उद्योग में बड़ी संख्या में स्टार्टअप्स में अपने मॉडल को रूपांतरित करने और अपनी पहुंच, प्रभाव और समस्याओं का समाधान करने की योग्यता में नया बदलाव लाने की क्षमता है. Mann Deshi Foundation ऐसी ही एक संस्था है जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की बैंकिंग और भारत में ग्रामीण महिलाओं के वित्तीय समावेशन के प्रति कार्य करती है. महिलाओं के लिए घर के द्वार पर बैंकिंस सेवाओं को पहुंचाना और डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देना Mann Deshi की आधारशिलाओं में से एक है. यह संस्था महिला उद्यमियों को ज्ञान, कौशल और पूंजी से  सशक्त करने के उद्देश्य के साथ काम करती है. हाल ही के एक उदाहरण में, इंटरनेट की दिग्गज कंपनी गूगल ने अपने Women Will मंच के माध्यम से, 100,000 ग्रामीण महिला उद्यमियों को वित्तीय और डिजिटल साक्षरता में सहयोग करने का प्रण लिया है. मिंट में छपे एक लेख में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई को कोट किया गया है, जिसमें उन्होंने कहा है- “जब महिलाओं को पुरुषों के समान बराबर अवसर मिलेंगे, तब हम सबको उनके दृष्टिकोण, उनकी रचनात्मक और उनके विशेषज्ञता का फायदा मिलेगा और यह पूरी दुनिया के लिए एक सच्चाई है. फिर भी, जब अवसरों की उपलब्धतता की बात आती है, गहरी असमानताएं कायम हैं. इंटरनेट साथी कार्यक्रम की सफ़लता को आगे बढ़ाते हुए, हम भारत में ग्रामीण क्षेत्रों की एक मिलियन महिलाओं की मदद की नयी प्रतिबद्धता का वादा कर रहे हैं”. यह परिकल्पना पांच उत्तरी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में लॉन्च की गई है जहां लैंगिक समानता का राष्ट्रीय औसत सबसे कम है. ‘Power of Jan Dhan: Making Finance Work for Women in India’ की रिपोर्ट बताती है कि कम आय वाली 100 मिलियन महिलाओं को सेवाएं देकर भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक करीब 25,000 करोड़ रुपये के डिपोज़िट आकर्षित कर सकते हैं और साथ ही 40 करोड़ कम आय वर्ग के भारतीयों को आर्थिक रूप से सशक्त कर सकते हैं. यह न सिर्फ़ वित्तीय समावेश को बेहतर करेगा बल्कि फिनटेक कंपनियों के संचालन के लिए एक स्थिर मंच भी प्रदान करेगा.

महिलाओं के लिए घर के द्वार पर बैंकिंस सेवाओं को पहुंचाना और डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देना Mann Deshi की आधारशिलाओं में से एक है. यह संस्था महिला उद्यमियों को ज्ञान, कौशल और पूंजी से  सशक्त करने के उद्देश्य के साथ काम करती है. 

निष्कर्ष

वर्तमान में मौजूद कमज़ोर बिंदुओं और भेदभाव के समाधान के लिए इन चुनौतियों का मौजूदा अंतर के प्रकार को पूरी तरह से समझने के बाद लैंगिकता पर एकत्रित डाटा और उपयुक्त योजनाओं के विकास के ज़रिए निवारण किया जाना चाहिए. लैंगिक समावेश पर फोकस, सरकार और फिनटेक्स के बीच एक कुशल सहयोगात्मक कोशिशों में योगदान कर सकता है. हालांकि महामारी ने महिलाओं को अनुपातहीन तरीके से प्रभावित किया है, और अनौपचारिक क्षेत्र में उनकी ज़रूरत से ज़्यादा संख्या के कारण बड़ी तादाद में नौकरी के नुकसान के साथ ही उनके अत्यधिक आर्थिक विपत्ति का कारण बना है, लेकिन वो वित्तीय प्रौद्योगिकी की मदद के ज़रिए पृथक से समावेश तक एक निर्बाध राह की कल्पना करने की शुरुआत कर सकती हैं. प्रौद्योगिकी निश्चित रूप से इस खेल के मैदान में एक बड़े लेवलर और भारत के वित्तीय परिदृश्य में गेम चेंजर के रूप में काम कर सकती है. इसने भौतिक दुनिया की बाधाओं को मिटा दिया है और लैंगिकता पर केंद्रित नीतियों की मदद से, यह आर्थिक रूप से सशक्त महिलाओं की एक ज़्यादा सतत तस्वीर उकेर सकती है. इन लैंगिक अंतर को खत्म करने में यह राह निश्चित रूप से लंबी है, लेकिन फिनटेक्स इस ज़ोखिम को आसानी से पार कर सकते हैं.

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