Published on Aug 19, 2019 Updated 0 Hours ago

इस समझौते के ख़त्म होने का असर रूस और अमेरिका के अलावा दूसरे क्षेत्रों पर भी होगा.

INF संधि के ख़त्म होने के बाद क्या हथियारों की होड़ शुरू होगी?

अमेरिका और सोवियत संघ (आज के रूस) के बीच 2 अगस्त को इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ट्रीटी (आईएनएफ़) ख़त्म हो गई. यह द्विपक्षीय संधि थी, जिसका मकसद दोनों देशों के बीच हथियारों की होड़ पर लगाम लगाना था. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने 6 महीने पहले ही इस समझौते से पीछे हटने का ऐलान कर दिया था और उसके बाद इसकी मियाद भी ख़त्म हो गई. वैसे तो आईएनएफ़ संधि के केंद्र में अमेरिका और रूस थे, लेकिन इसके ख़त्म होने का असर सिर्फ इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेगा. माना जाता है कि इस समझौते के कारण अमेरिका और रूस के बाहर भी स्थिरता बनी हुई थी. अब इसके ख़त्म होने के बाद फिर से हथियारों की होड़ तेज़ होने की आशंका जताई जा रही है.

सोवियत रूस और अमेरिका के बीच आईएनएफ़ समझौता 1978 में हुआ था. इसमें 500 से 5,000 किलोमीटर तक मार करने वाले न्यूक्लियर और ज़मीन से लॉन्च किए जाने वाले बैलस्टिक और क्रूज़ मिसाइल, सोवियत एसएस-20s, ज़मीन से मार करने वाले अमेरिकी क्रूज मिसाइलों (जीएलसीएम) और पेरशिंग 2 बैलेस्टिक मिसाइलों को हटाने पर सहमति बनी थी. इस समझौते में किए गए वादे के मुताबिक दोनों देशों ने 1 जून 1991 तक (संधि को लागू करने की समयसीमा) 2,692 शॉर्ट, मीडियम और इंटरमीडिएट रेंज मिसाइलों को नष्ट किया था. यह इकलौती परमाणु हथियार नियंत्रण संधि थी, जिसमें हथियारों के एक वर्ग की पूरी रेंज ख़त्म कर दी गई.

रूस की तरफ से संधि का उल्लंघन जारी है और यह 1987 में हुए समझौते के लिए अकेला खतरा है.’ वहीं, रूस ने आईएनएफ़ संधि की किसी भी शर्त के उल्लंघन से इनकार कर दिया था

रूस की तरफ से संधि के बार-बार उल्लंघन की शिकायतें मिलने के बाद ट्रंप ने इससे पीछे हटने का ऐलान किया था. आईएनएफ़ समझौते का उल्लंघन रूस के लिए कोई नई बात नहीं है. जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तब भी ऐसी शिकायतें मिली थीं. रूस ने तब 9एम729 नाम की एक नई क्रूज मिसाइल बनाई थी, जो इस संधि के तहत किए गए वादे का उल्लंघन था. नाटो ने इसका नाम एसएससी-8 रखा है. वह भी इस संधि के उल्लंघनों पर अपनी चिंता जाहिर कर चुका था. उसके महासचिव जे स्टोलटेनबर्ग ने कहा था कि ‘रूस की तरफ से संधि का उल्लंघन जारी है और यह 1987 में हुए समझौते के लिए अकेला खतरा है.’ वहीं, रूस ने आईएनएफ़ संधि की किसी भी शर्त के उल्लंघन से इनकार कर दिया था, जिसकी उम्मीद भी की जा रही थी. रूस के एक आला अधिकारी के हवाले से ख़बरों में कहा गया कि उसने समझौते की किसी शर्त को नहीं तोड़ा है और 9एम729 की मारक क्षमता 500 किलोमीटर से कम है. इसलिए यह संधि के दायरे में नहीं आता. रूस के कमांडर जनरल मिख़ाइल मेतवेयेवस्की ने तो दावा किया था कि मिसाइल की रेंज 480 किलोमीटर है. हालांकि, अमेरिका और कुछ अन्य देशों में संधि के टूटने के संभावित असर को लेकर आशंकाएं जताई गई हैं. अमेरिकी सीनेटर बॉब मेंडेंज (न्यूजर्सी के डेमोक्रेट) ने कहा था कि आईएनएफ़ की जगह नई संधि नहीं करना हथियारों की होड़ को न्योता देना है. वह सीनेट फॉरेन रिलेशंस कमिटी के रैंकिंग मेंबर भी हैं. उन्होंने कहा था कि संधि के ख़त्म होने के बाद ‘रूस अपने वेपन सिस्टम को अपडेट करने और उनकी क्षमता बढ़ाने की जरूर कोशिश करेगा.’ हो सकता है कि समझौते के ख़त्म होने के बाद रूस आईएनएफ़ रेंज की और मिसाइलें बनाए, लेकिन अमेरिका के इससे पीछे हटने के ऐलान की वजह सिर्फ रूस की कारगुजारियां ही नहीं थीं.

चीन ने भी बड़ी संख्या में मिसाइल बनाए और तैनात किए हैं. वह इस संधि का हिस्सा नहीं था. इसलिए उस पर इसकी बंदिशें लागू नहीं थीं. इससे पूर्वी एशिया और आसपास के क्षेत्रों में सैन्य संतुलन बिगड़ा है. पिछले साल अक्टूबर में ही ट्रंप ने कहा था, ‘जब तक रूस हमारे पास नहीं आता, चीन हमारे पास नहीं आता, वे सभी हमारे पास आकर नहीं कहते कि चलो समझदारी दिखाएं और हममें से कोई भी ऐसे हथियार न बनाए, तब तक अमेरिका को ऐसे हथियार बनाने होंगे. रूस ऐसे हथियार बनाता रहे, चीन भी बनाता रहे और हम संधि की वजह से हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें, यह मुझे मंज़ूर नहीं है.’ ट्रंप की बातें फ़िजूल नहीं हैं. यूएस-चाइना इकॉनमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन की हालिया रिपोर्ट में बताया गया कि चीन के पास ‘2,000 से अधिक बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलें हैं. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि अगर चीन ने आईएनएफ़ संधि पर दस्तख़त किए होते तो इनमें से 95 पर्सेंट से उसका उल्लंघन हुआ होता.’ इसलिए अमेरिका ने वास्तविक सुरक्षा कारणों को देखते हुए संधि से पीछे हटने का ऐलान किया था. इसका मतलब यह भी है कि ट्रंप सरकार के कार्यकाल के दौरान इस तरह की कोई संधि तभी होगी, जब चीन उसमें शामिल होगा.

जब तक चीन मिसाइल डिवेलपमेंट जारी रखता है, तब तक अमेरिका, रूस और यहां तक कि भारत को भी ऐसे हथियारों की संख्या बढ़ाने पर मज़बूर होना पड़ेगा.

आईएनएफ़ समझौते के ख़त्म होने से चीन भी आशंकित है. उसे डर है कि अमेरिका अब पूर्वी एशिया में ज़मीन से मार करने वाली पारंपरिक मिसाइलें तैनात कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो चीन मिसाइलों की संख्या और बढ़ाएगा. जानकारों ने भी कहा है कि अमेरिका अब एशिया में आईएनएफ़ रेंज की मिसाइलें तैनात करने के लिए आजाद है. ऐसे में चीन भी मिसाइल डिवेलपमेंट में तेजी ला सकता है. सच यह भी है कि जब तक चीन मिसाइल डिवेलपमेंट जारी रखता है, तब तक अमेरिका, रूस और यहां तक कि भारत को भी ऐसे हथियारों की संख्या बढ़ाने पर मज़बूर होना पड़ेगा. इससे हथियारों की होड़ शुरू होने की आशंका बन गई है. इसका असर जापान पर भी होगा. उसने आईएनएफ़ की जगह बहुदेशीय संधि का प्रस्ताव रखा था, लेकिन तब चीन ने कहा था कि वह ऐसे किसी भी समझौते में शामिल नहीं होगा. चीन के विदेश मंत्री के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा था, ‘आईएनएफ़, रूस और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय समझौता है. अगर इसमें दूसरे देशों को शामिल किया जाता है तो इससे कई जटिल राजनीतिक, सैन्य और कानूनी मसले खड़े होंगे. चीन इसके लिए तैयार नहीं है.’ अमेरिका, रूस और चीन के बीच त्रिपक्षीय संधि के लिए भी चीन ने मना कर दिया है. ख़बरों के मुताबिक, इस मामले पर चीन ने कहा था कि त्रिपक्षीय हथियार नियंत्रण वार्ता की कोई बुनियाद और आधार नहीं है और चीन कभी भी ऐसी पहल का हिस्सा नहीं बनेगा. वैसे यह चीन की मोलभाव करने की चाल भी हो सकती है और अगर ऐसा नहीं है तो आईएनएफ़ के ख़त्म होने के बाद हथियारों की होड़ शुरू होने जा रही है, जिसकी चपेट में एशिया भी आएगा. इसका भारत-प्रशांत क्षेत्र पर व्यापक असर हो सकता है.


यह लेख पहले द डिप्लोमैट में प्रकाशित हो चुका है.

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