Published on Aug 10, 2023 Updated 0 Hours ago
क्या लैटिन अमेरिका को रिझाने की EU की रणनीति मुनाफ़े का सौदा साबित होगी?

17-18 जुलाई को यूरोपीय संघ (EU) और लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई समुदाय के देशों (CELAC) के तक़रीबन 50 नेता एक द्वि-क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन के लिए बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में इकट्ठा हुए.

1999 में दोनों क्षेत्रों के बीच सामरिक द्वि-क्षेत्रीय साझेदारी पर दस्तख़त किए गए थे. उसी साल ब्राज़ील के शहर, रियो डी  जेनेरियो में इसकी पहली बैठक भी हुई थी. इस तरह का आख़िरी शिखर सम्मेलन (दोनों क्षेत्रों के बीच बातचीत के लिए प्राथमिक मंच के रूप में कार्य करने वाला प्रारूप) 2015 में ब्रुसेल्स में आयोजित हुआ था. आठ साल बाद, वर्तमान शिखर सम्मेलन का आयोजन एक ऐसे वक़्त पर हुआ जब दुनिया का भू-राजनीतिक  और आर्थिक परिदृश्य बुनियादी रूप से बदल चुका है. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, रूस-यूक्रेन संघर्ष और यूरोपीय संघ के हरित संक्रमण के बीच इस तरह का बदलाव आया है. ये ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हुआ है जब यूरोपीय संघ की परिषद की छह महीने की अध्यक्षता स्पेन के पास है. इलाक़े से अपनी ऐतिहासिक और भाषाई समानताओं को देखते हुए स्पेन ने लैटिन अमेरिका के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी है.

हाल ही में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन ने शिखर सम्मेलन के लिए ज़मीन तैयार करने के मक़सद से ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली और मैक्सिको का दौरा किया. इसके अलावा, मार्च में, समावेशी और जन-केंद्रित डिजिटल संक्रमण की दिशा में दोनों क्षेत्रों के बीच एक नया डिजिटल गठबंधन भी तैयार किया गया. 

यूरोप ने दशकों तक इस इलाक़े की उपेक्षा की. बहरहाल, पिछले कुछ वर्षों में साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रयास हुए हैं. 2019 में यूरोपीय संघ ने EU-CELAC संबंधों पर परिषद के ताज़ा निष्कर्षों (Council Conclusions) को अपनाया. साथ ही 2022 में EU-CELAC रोडमैप 2022-2023 जारी किया गया. इस साल जून में यूरोपीय संघ ने EU और CELAC के बीच संबंधों के नए एजेंडे का प्रकाशन किया. इन नीतिगत दस्तावेज़ों के साथ-साथ यूरोपीय संघ के शीर्ष स्तरीय अधिकारियों के दौरे भी हुए. मिसाल के तौर पर साल 2022 में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में आयोजित EU-CELAC में विदेश मंत्रियों की बैठक में जोसेप बोरेल जैसे शीर्ष स्तरीय  अधिकारी शामिल हुए, जहां उन्होंने नाटकीय रूप से 2023 को “यूरोप में लैटिन अमेरिका का वर्ष” घोषित कर दिया. हाल ही में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन ने शिखर सम्मेलन के लिए ज़मीन तैयार करने के मक़सद से ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली और मैक्सिको का दौरा किया. इसके अलावा, मार्च में, समावेशी और जन-केंद्रित डिजिटल संक्रमण की दिशा में दोनों क्षेत्रों के बीच एक नया डिजिटल गठबंधन भी तैयार किया गया.

व्यापार में छिपी समस्या की जड़

शिखर सम्मेलन में जो विषय गले की फांस बन गया वो था EU-मर्कोसुर मुक्त व्यापार समझौता. इस मसले पर 20 वर्षों से बातचीत चलती रही, और 2019 में इस पर सैद्धांतिक रूप से सहमति बनी. हालांकि समझौते को अब भी यूरोपीय संघ के सदस्यों के अनुमोदन का इंतज़ार है. इसमें फ्रांस जैसे देश शामिल हैं. अमेज़न वर्षावन में वनों की कटाई के इर्द-गिर्द पर्यावरणीय चिंताओं के कारण ऐसे हालात बने हैं.

यूरोपीय संघ और मर्कोसुर देशों की संयुक्त आबादी 70 करोड़ से ज़्यादा है. मर्कोसुर देशों में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, उरुग्वे और पराग्वे शामिल हैं. ये समूह वैश्विक आबादी के 10 प्रतिशत हिस्से की नुमाइंदगी करता है, लेकिन यहां वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 20 प्रतिशत हिस्सा उत्पादित होता है. अनुमान है कि इस समझौते से यूरोपीय निर्यातों पर 4 अरब यूरो मूल्य के बराबर शुल्क समाप्त हो जाएंगे, जिससे समझौते की अपार संभावनाएं प्रदर्शित होती हैं.

ब्राज़ील में 2022 के चुनाव में वामपंथी नेता लूला दा सिल्वा की जीत ने समझौते की उम्मीदों में नई जान फूंक दी. फिर भी इसको लेकर मतभेद बरक़रार हैं. ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला ने यूरोपीय संघ पर अपने पर्यावरणीय शर्तों की आड़ में संरक्षणवाद के प्रदर्शन का आरोप लगाया है. उधर, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज़  ने समझौते की “असमानताओं” की ओर इशारा किया है. इसके अलावा, तीन देशों (पराग्वे, ग्वाटेमाला और अर्जेंटीना) में इस साल चुनाव होने हैं, और राजनीतिक अनिश्चितताएं गहरे सहयोग में संभावित रूप से और बाधाएं खड़ी कर सकती हैं.

ये हालात भी इस क्षेत्र के साथ संबंध बढ़ाने को लेकर यूरोपीय संघ के प्रोत्साहन का एक हिस्सा है. कुछ साल पहले तक चीन इस इलाक़े में हाशिए वाला किरदार था, लेकिन 2014 में वो अमेरिका के बाद लैटिन अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया.

मर्कोसुर के अलावा, EU ने मैक्सिको और चिली के साथ अपने समझौतों को आधुनिक रूप दिया है. ये प्रयास साल 2000 और 2003 में हस्ताक्षरित पुराने समझौतों की जगह लेंगे. हालांकि इसे भी अनुमोदन का इंतज़ार है. यूरोपीय संघ, रणनीतिक स्वायत्तता, आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण और असंतुलित निर्भरताओं में कमी लाने के तौर-तरीक़े तलाश रहा है. इन क़वायदों के लिए लैटिन अमेरिकी देशों को विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखा जा रहा है. इस इलाक़े में चीन और रूस का प्रभाव बढ़ रहा है. ज़ाहिर है, ये हालात भी इस क्षेत्र के साथ संबंध बढ़ाने को लेकर यूरोपीय संघ के प्रोत्साहन का एक हिस्सा है. कुछ साल पहले तक चीन इस इलाक़े में हाशिए वाला किरदार था, लेकिन 2014 में वो अमेरिका के बाद लैटिन अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया. इस तरह वो यूरोपीय संघ से आगे निकल गया. विश्व आर्थिक मंच के अनुसार साल 2000 में चीन और लैटिन अमेरिका के बीच माल में द्विपक्षीय व्यापार 12 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो साल 2020 में बढ़कर 315 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. 2035 तक इसके 700 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने  का अनुमान है. दूसरी ओर, यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच वस्तुओं का व्यापार 2008 में 185 अरब यूरो से बढ़कर 2021 में 218 अरब यूरो हो गया. 

रूस-यूक्रेन संघर्ष का साया

ऐसी शानदार तैयारियों के बावजूद, शिखर सम्मेलन से कुछ निराशाएं हाथ लगीं.

रूस-यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद से ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील देश) कथानकों और विमर्शों की रणभूमि के तौर पर उभरा है. यूरोप ने रूस की ज़्यादा मज़बूती से निंदा करने के लिए यहां के देशों को पूरी सक्रियता से रिझाया है. सच्चाई ये है कि लैटिन अमेरिका के ज़्यादातर देशों ने युद्ध की निंदा से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के समर्थन में मतदान किया है. ये तमाम देश संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्य संख्या के एक तिहाई हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं, जो उनके राजनीतिक महत्व को दर्शाता है. जैसा कि अनुमान था, रूस-यूक्रेन संघर्ष का साया, शिखर सम्मेलन की कार्यवाहियों पर मंडरता रहा. सम्मेलन में साझा विज्ञप्ति पर व्याप्त असहमतियों के चलते आख़िरकार यूक्रेन में रूसी कार्रवाइयों की निंदा से जुड़ी क़वायद में नरमी लानी पड़ी. यहां तक कि विज्ञप्ति में रूस का नाम तक नहीं लिया गया, साथ ही उसकी अन्य महत्वाकांक्षाओं पर भी पर्दा पड़ गया. मालविनास/फॉल्कलैंड द्वीप विवाद और औपनिवेशिक क्षतिपूर्ति जैसे कई अन्य मसलों ने भी विज्ञप्ति में अपनी जगह बना ली. इसने रणनीतिक सहयोग बढ़ाने से जुड़े बहुप्रचारित लक्ष्य को विकृत कर दिया.

हालांकि ये अपेक्षित है. दरअसल CELAC के भीतर तमाम निर्णय सभी 33 सदस्य देशों के बीच आम सहमति पर आधारित होते हैं. ये एक ऐसी आवश्यकता है जिससे यूरोपीय संघ भली-भांति परिचित है. CELAC, जैसे विषमताओं से भरे समुदाय में रंग में भंग डालने वाले कारकों की संभावना अधिक है. इसके अलावा, आने वाले वर्षों में संबंधों को दिशा देने के मक़सद से EU-CELAC रोडमैप 2023-2025 को स्वीकृति दी गई.

केवल सर्वनाश और उदासी के हालात नहीं

लैटिन अमेरिका में पृथ्वी की 50 प्रतिशत जैव विविधता, व्यवहार्य भौगोलिक परिस्थितियां, और प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ लिथियम जैसे अहम कच्चे मालों का समृद्ध भंडार है. यह क्षेत्र हरित हाइड्रोजन के उत्पादन जैसे क्षेत्रों में अद्वितीय क्षमता दर्शा रहा है. ये दोनों क्षमताएं यूरोप के हरित संक्रमण और जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं.

चिली, अर्जेंटीना, बोलीविया  और पेरू में दुनिया के कुल लिथियम भंडार का दो-तिहाई हिस्सा मौजूद है, और ये वैश्विक आपूर्ति का आधा हिस्सा पैदा करते हैं. यही वजह है कि चीन ने इस क्षेत्र में लिथियम उत्पादन में 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. लिथियम खनन में लैटिन अमेरिकी क्षेत्र की तकनीकी सीमाओं को देखते हुए यूरोप भी लिथियम के निकास और उत्पादन में निवेश कर रहा है.

इस संदर्भ में “हरित संक्रमण, समावेशी डिजिटल कायाकल्प, मानव विकास और स्वास्थ्य के क्षेत्र में लचीलेपन” पर केंद्रित EU-LAC ग्लोबल गेटवे इनवेस्टमेंट एजेंडा (GGIA) की शुरुआत की गई. ये यूरोपीय संघ के ग्लोबल गेटवे कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे व्यापक रूप से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प माना जाता है. एजेंडे के तहत इस क्षेत्र में 130 से अधिक परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें महत्वपूर्ण कच्चे मालों पर सहयोग से लेकर दूरसंचार नेटवर्क और सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण जैसी तमाम क़वायदें जुड़ी हैं. इस सिलसिले में 2027 तक 45 अरब यूरो से ज़्यादा की प्रतिबद्धताएं जताई गई हैं.

इस कड़ी में हासिल की जा सकने वाली कुछ और कामयाबियां शामिल हैं. इनमें, अर्जेंटीना और उरुग्वे के साथ ऊर्जा सहयोग समझौतों पर किए गए हस्ताक्षर और चिली के साथ अहम कच्चे मालों की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर एक समझौता पत्र (MoU) शामिल है.

यूरोपीय संघ, इस क्षेत्र में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक और दान-दाता है. इतना ही नहीं, लैटिन अमेरिकी निर्यातों का तीसरा सबसे बड़ा ठिकाना भी वही है. 2021 में लैटिनोबैरोमेट्रो द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से बड़ा ख़ुलासा हुआ. सर्वेक्षण में शामिल 48 प्रतिशत लोगों का विचार था कि यूरोप के साथ संबंधों में बढ़ोतरी होने से उनके देश को सबसे अधिक फायदा होगा. उत्तरी अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए ऐसी उम्मीद जताने वाले प्रतिभागियों की तादाद क्रमश: 19 प्रतिशत और 8 प्रतिशत थी.

यूरोपीय संघ, इस क्षेत्र में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक और दान-दाता है. इतना ही नहीं, लैटिन अमेरिकी निर्यातों का तीसरा सबसे बड़ा ठिकाना भी वही है. 2021 में लैटिनोबैरोमेट्रो द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से बड़ा ख़ुलासा हुआ.

स्पेन के विदेश मंत्री जोस मैनुअल अल्बेरेस ने लैटिन अमेरिका को “पृथ्वी पर सर्वाधिक यूरो-अनुकूल क्षेत्र” क़रार दिया है. बहरहाल, यूरोपीय संघ, उथल-पुथल भरे अंतरराष्ट्रीय माहौल में आगे का रास्ता बना रहा है और ब्राज़ील, भारत से G20 की अध्यक्षता लेने की तैयारियों में जुटा है; ऐसे में शिगूफ़ों और आपसी पूरकताओं को ठोस प्रगतिशील नतीजों में बदलने की क्षमता ही असली परीक्षा साबित होगी.


शायरी मल्होत्रा ​​ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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